Sunday, November 8, 2015

|| वज्रांग हनुमंत पर विशेष ||


     

वज्रांग  हनुमंत  पर  विशेष 
लंका दहन के उपरांत  श्री  हनुमंत लाल  निज  दल  में  आते  हैं ।
   जाम्बवान दादा  ::
            लंका  जलाने  का  आदेश  नहीं  था  आपने  क्यूँ  जलाया  ?
श्री हनुमंत ::
          दादा  ~  शास्त्र  मत  यह  की
 जिन्ह हरि भगति हृदय नहिँ आनी ।
जीवत सव समान तेइ प्राणी ।।
      हमें  हरि भक्त दिखे  नहीं शव  को  जलाना  तो  पुन्य कार्य  होता  है  दादा जी
जाम्बवंत  ::
        चलो  प्रभू  जब  पूंछेंगे  तो  उन्हें  अपना  तर्क  दीजियेगा ।
       और  सरकार  भी  प्रश्न  कर  ही  देते  हैं
     मेरे  हनुमंत  प्रभू  से  कह  रहे  हैं  सरकार  लंका  मैंने  नहीं  जलाई
      तो  किसने  यह  कार्य  किया  ?  राघव  पूंछते  हैं
    हनुमंत  ::
       लंका  पांच  लोग  जला  रहे  थे
१     प्रभू  आपका  प्रताप  था ।
२    मां जानकी  का  संताप  था ।
३    ॠषियो  का  श्राप  था ।
४    रावण  का  पाप  था ।
५     हमारा  बाप  था ।
      सरकार  यदि  लंका  जलाना  अपराध  था  तो  इन  पांच  को  सजा  मिले  हम  तो  निमित्त  मात्र  थे
     भाव लोक  से  लिखित  लेख  में  त्रुटियों   पर  आप  भावग्राही  ध्यान  नहीं  देंगे ।
      अंत  में  आप  सब  में  विराजित  सांवरे  को  शब्दावली  अर्पित  करते  हुए  अभिवादन
      संत चरण अनुरागी
           अनुरागी जी

पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

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