Monday, January 11, 2016

|| दीक्षायें तीन प्रकार की होती हैं ||



     

दीक्षायें तीन प्रकार की होती हैं ।
१-स्पर्श दीक्षा
२-वैधदीक्षा
३-दृग्दीक्षा
१- स्पर्श दीक्षा –स्पर्शमात्र से जो गुरुजन शिष्य के अन्दर शक्तिपात करते हैं । वह स्पर्शदीक्षा कहलाती है । सीतारामदास
ओंकारनाथ इसी स्तर के महापुरुष थे । जिसकी कुव्डलिनी महाशक्ति का जागरण स्पर्शमात्र से उन्होंने किया था । वे अभी भी जीवित हैं और उनसे मेरा अच्छा सम्बन्ध भी है । पक्षी अपने बच्चों को चारा चुगाने के साथ ही अपने पंखों से
उनको ढकते हुए ऐसा स्पर्श करते हैं कि उन बच्चों का संवर्धन होता है ।
२- वैधदीक्षा – जब कूर्म ( कछवी ) को अण्डा देना होता है तब वह तालाब आदि से निकलकर दूर जाकर मिट्टी खोदकर उसमें अण्डे देकर ढँकने के बाद लौट आती है । तत्पश्चात् निरन्तर चिन्तन करती रहती है कि अब मेरे अण्ड इतने बढ़ गये
होंगे । उसके चिन्तन के प्रभाव से अन्यों में वृद्धि उत्तरोत्तर होती रहती है । एक दिन वह चिन्तन करती है कि अब अण्डों से बच्चे निकलने वाले हैं । वह उस स्थल पर पहुँचकर मिट्टी हटाती है और अपने बच्चों को लेकर चली आती है ।
ऐसे प्रखर मनःशक्तिसम्पन्न गुरुजन स्वप्न आदि अवस्थाओं में शिष्य के समीप पहुँचकर उसे दीक्षित कर देते हैं । ये सब कार्य इनकी संकल्पशक्ति से ही होता है । इनसे किया गया चिन्तन या स्मरणमात्र शिष्य के जीवन में महान् परिवर्तन ला देता है । ये बहुत उच्चकोटि के सिद्ध महापुरुष होते हैं । अभी भी कुछ साधक मेरे सम्बन्ध में हैं जिन पर ऐसे महापुरुषों की कृपा हुई है ।
३- दृग्दीक्षा – कुछ महापुरुष इस कोटि के होते हैं जिनकी दृष्टिमात्र से साधक में महाशक्ति का जागरण हो जाता है । ये अपने संकल्पमात्र से किसी जीव पर कृपा कर सकते हैं । इनका दृष्टिपात साधक को सबल बना देता है । भागवत में मन्दराचल पर्वत से मरे देवताओं को भगवान् ने अपने दृष्टिनिक्षेप से ही जीवित कर दिया-ऐसा वर्णन हैं । ऐसे ही महापुरुषों के विषय में कहा गया है कि वे दर्शन मात्र से पवित्र कर देते हैं–”दर्शनादेव साधवः।।”–भागवतमहापुराण
मछली अपने बच्चों को दुग्धपान तो नहीं कराती । किन्तु क्षुधा से पीड़ित बच्चे जब उसके नेत्रों के सामने आते हैं तब वह अपनी दृष्टि द्वारा ही उनका पोषण करती है ।
ऐसे ही गुरुजनों की कृपादृष्टि में आने पर साधकों का कल्याण होता रहता है ।
आज रोहिणी नक्षत्र युक्त अष्टमी है । इसलिए इसकी जयन्ती संज्ञा हो जाती है । और जन्माष्टमी तो है ही। इसलिए इस दिन व्रत और उपासना का फल द्विगुणित हो जाता है । इसलिए हमें सोल्लास इसे मनाना चाहिए ।
ध्यातव्य है कि जिसकी जन्माष्टमी मना रहे हैं । उन्होंने अपना जीवन गोसेवा से आरम्भ किया । मृत्युलोक ही नहीं अपितु स्वर्गलोक के अधिपति देवराज इन्द्र के कोप से समस्त ब्रज और गौओं की रक्षा की । जिसके कारण उन्हें “गोविन्द” गोपाल कहा जाता है । अतः इस जन्माष्टमी पर हमें उनके आदर्शों पर चलने का दृढ़ संकल्प करना चाहिए कि हम अपनी भारतमाता के साथ ही गोमाता की भी रक्षा करेंगे । और जैसे भगवान् श्रीकृष्ण ने देवराज का दर्प चूर्ण चूर्ण कर दिया था ।
वैसे ही हम देशद्रोहियों गोहत्यारों यवनराज ( आतंकवादी मुल्लों ) का दर्पदलन कर देंगे । तभी हमारे व्रत की सफलता है ।


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830 

|| हरिः ॐ तत्सत्! सुप्रभातम् ||


     
हरिः ॐ तत्सत्!  सुप्रभातम्।
सर्वेभ्यो भक्तेभ्यो देवभाषारसरसिकेभ्यश्च नमो नमः। 
☀सच्चर्चा☀
अस्माकं महापुरुषा उपदिशन्ति, यद्भगवत्प्राप्तौ भावस्य प्राधन्यं वर्तते न तु क्रियादीनाम्।
यथा श्रीरामचरितमानसेSपि- उत्तरकाण्डे वर्णितम्......
"मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा।
किएँ जोग तप ज्ञान बिरागा॥"
(दो०-६१/चौ०-१)
सर्वे सज्जनाः विचारयन्तु......
परमात्वतत्त्वस्य यथार्थमनुभूतिः तदा भवितुमर्हति, यथा...
" विषयभोग निद्रा हँसी जगतप्रीति बहु बात"  इत्यनुसारेण
सत्सङ्गप्रभावादेतान् पञ्चविकारान् प्रति हृदये  सहजैवारुचिः भविष्यति तदा भगवत्प्राप्तौ विलम्बो न भविष्यति।
☀सत्यसनातनधर्मो विजयतेतराम्☀
अमरवाणी विजयताम्


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830 

|| आज बसंती रंग छा गया ||


     
आज बसंती रंग छा गया,...कुछ बिछुड़े हुये अपनों के घर आने से

प्रकृति पालकी पर चढकर,देखो ये मधुमास आ गया!
विदा हुआ हेमंत आज पर सबमें बसंती रंग छा गया!!
आज हुई साकार कल्पना, सारी धरती कुञ्ज बन गई!
विधु बैनी के पीत वसन पर,अम्बर की द्रष्टि थम गई!!
मलय पवन ने विजन डुलाया, तरुओं की तंद्रा टूटी!
भौरें गुंजन गान कर उठे, फूलों की लज्जा छूटी!!
ढलने लगे पात वृक्षों से,जैसे नभ से तारे टूटे!
मित्र सभी झर गए पुराने,नए सभी खुशियाँ मिल लूटें!!
अमुओं के सिर मौर बाँधकर,महक व्याह लाइ अमराई!
कोयल की खुल गई समाधि,खग दल की बारात बौराई!!
सरसों की पीली साड़ी संग,हरी किनारी लगी नाचने!
खेत बन गए आज नव-वधु,पहिन लिए धरती ने गहने!!
किलकारी भर हरी डालियाँ, कण-कण में आई तरुणाई!
सांझ दान में लेकर जाती,फूलों के तन की अरुणाई!!
रात माधवी श्वेत चाँदनी, धरती का श्रंगार चूमती!
भोर सूर्य की किरने आकर,कमल वृक्ष पर नित्य झूमती!!
नर-नारी पशु पाखी सब की,गली-गली गलहार बन गई!
धरती की छाती अनंग के, मादक का संसार बन गई!!
सहरन व्यापी अंग-अंग ली,किंसुक कुसुमो ने ले अंगडाई!
लाल देह ऐसी सुलगी ज्यों, जले अनल न बुझे बुझाई!!
गंगा तट चरणों को छूने, लहरों ने भी होड लगाई!
कालिंदी के नील सलिल के,आज कृष्ण की याद सताई!!
खुशी हँसी जब सिरहाने तो, पीड़ा का संसार भा गया!
बैठा रहा विरह द्वारे पर,मिलन खुशी के गीत गा रहा!!
प्रकृति पालकी पर चढकर,देखो"धीर"मधुमास आ गया!
विदा हुआ हेमंत आज पर, सबमें बसंती रंग छा गया!!


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830 

|| मेरा काली कमली वाले ने दिल लूट लिया ||


     
मेरा काली कमली वाले ने दिल लूट लिया,
लूट लिया, दिल लूट लिया ।
कजरारे नैनो वाले ने दिल लूट लिया ॥
मेरे दिल में बस गया आ कर सुन्दर श्याम सलोना,
उस बांके की बाँकी अदा ने कर दिया मुझ पर टोना ।
तिरछी चित्तवन वाले ने दिल लूट लिया,
कजरारे नैनो वाले ने दिल लूट लिया ॥
जब से देखि सांवरी सूरत हर पल रहूँ मैं खोयी,
रात दिन तेरी याद सताए छुप छुप बैठ के रोयी ।
उस छैल छबीले ग्वाले ने दिल लूट लिया,
मेरा काली कमली वाले ने दिल लूट लिया ॥
एक झलक क्या देखि तेरी हम तेरे हो बैठे,
तेरी सांवरी सूरतिया पे दिल अपना खो बैठे ।
चीत्त चोर कन्हैया काले ने दिल लूट लिया,
मेरा काली कमली वाले ने दिल लूट लिया ॥
तेरी प्रीत में पागल होकर डोलूं वन वन प्यारे,
‘चित्र विचित्र’ का व्याकुल मन अब कैसे धीरज धारे ।
बांके वृन्दावन वाले ने दिल लूट लिया,
मेरा काली कमली वाले ने दिल लूट लिया ॥


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830