Wednesday, December 30, 2015

हरिः ॐ तत्सत्!  शुभरात्रि। सर्वेभ्यो भक्तेभ्यो देवभाषारसरसिकेभ्यश्च नमो नमः।🌺🙏🌺

💥विवेक-विचार💥
भगवत्कृपा का फल संत-महापुरुषों का दर्शन।

सन्त-महापुरुषों के दर्शन का फल भगवद्दर्शन।

सन्त का कोई भेष-वर्ण नहीं होता है, अपितु  उनका सहज पवित्रविचार और परमार्थिकव्यवहार ही उनके सन्तत्व के वैशिष्ट्य का प्रतिपादन करता है।
विभिन्‍न मतावलम्बियों के चिह्न-वस्त्रादि होते हैं। चारों आश्रम में सन्त-महापुरुषों का दर्शन हुआ है, हो रहा है और आगे भी होगा।
सन्त-महापुरुषों का स्वभाव सदा परमार्थिक और राष्ट्रीयप्रेम से अोत-प्रोत रहता है। पूज्यपाद डोंगरे महाराज जी कहते थे चमत्कार तो जादूगर (मायावी) दिखाता है। उपदेशक और शिक्षक का श्रृंगार उनका ज्ञान और सदाचारण है। स्वच्छता अनिवार्य है, किन्तु कृत्रिम साधनों से अपने आप को सजाना-सँवाराना केवल धन और समय का अपव्यय करना है।
💥जो किसी रंगमञ्च के कलाकार हैं अथवा जिन्हें शास्त्र ने अनुमति दी है, वे लोग करें तो करें।
कुछ तथाकथित लोग सनातनधर्म की मर्यादा और उसके मानबिन्दुअों का जानबूझ कर उल्लंघन कर रहें हैं, उनसे हम सब सावधान रहें तथा दूसरे सनातनियों को भी सुरक्षित करें।
🌺सत्य सनातन धर्म की जय🌺

शिवपुराण में कहा गया है कि साकार और निराकार दोनों ही रूप में शिव की पूजा कल्याणकारी होती है, लेकिन शिवलिंग की पूजा करना अधिक उत्तम है। साकार रूप में शिव हाथ में त्रिशूल, डमरू लिए और बाघ की छाल पहने नज़र आते हैं। जबकि महादेव के अतिरिक्त अन्य कोई भी देवता साक्षात् ब्रह्मस्वरूप नहीं हैं। संसार भगवान शिव के ब्रह्मस्वरूप को जान सके इसलिए ही भगवान शिव ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए और लिंग के रूप में इनकी पूजा होती है। माना जाता है कि शिवलिंग की पूजा करके जो भक्त शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं, उन्हें सुबह से लेकर दोपहर से पहले ही इनकी पूजा कर लेनी चाहिए। इस दौरान शिवलिंग की पूजा विशेष फलदायी होती है।
शिवलिंग का महत्व
शिवलिंग जो कि भगवान शंकर का प्रतीक है। उनके निश्छल ज्ञान और तेज का यह प्रतिनिधित्व करता है। 'शिव' का अर्थ है - 'कल्याणकारी'। 'लिंग' का अर्थ है - 'सृजन'। सृजनहार के रूप में उत्पादक शक्ति के चिन्ह के रूप में लिंग की पूजा होती है। स्कंद पुराण में भी लिंग का अर्थ लय लगाया गया है। लय ( प्रलय) के समय अग्नि में सब भस्म हो कर शिवलिंग में समा जाता है और सृष्टि के आदि में लिंग से सब प्रकट होता है। लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार
दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में शिव जी का भाग नहीं रखा, जिससे गुस्से में आकर जगजननी सती दक्ष के यज्ञ मण्डप में योगाग्नि से जल कर भस्म हो गई। सती के शरीर त्याग की खबर मिलते ही ही भगवान शिव बहुत गुस्से में आ गए। वे नग्न हो कर पृथ्वी में भ्रमण करने लगे। एक दिन वह उसी अवस्था में ब्राह्मणों की बस्ती में पहुंच गए। शिव जी को उस अवस्था में देख कर वहां की स्त्रियां मोहित हो गई। यह देख कर ब्राह्मणों ने भगवान भोलेनाथ को शाप दे दिया कि उनका लिंग तत्काल शरीर से अलग हो कर भूमि पर गिर जाए। ब्राह्मणों के शाप के प्रभाव से शिव का लिंग उनके शरीर से अलग होकर गिर गया, जिससे तीनों लोकों में हाहाकार होने लगा। सभी देव, ऋषि, मुनि व्याकुल हो कर ब्रह्मा की शरण में गए।
ब्रह्मा ने योगबल से शिवलिंग के अलग होने का कारण जान लिया और वह समस्त देवताओं, ऋषियों और मुनियों को अपने साथ लेकर शिव जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा ने शिव जी की स्तुति की और उन्हें प्रसन्न करते हुए उनसे लिंग धारण करने का निवेदन किया। तब भगवान शिव ने कहा कि आज से सभी लोग मेरे लिंग की पूजा प्रारम्भ कर दें तो मैं पुन: उसे धारण कर लूंगा। भगवान भोलेनाथ की बात सुनकर ब्रह्मा जी ने सर्वप्रथम स्वर्ण का शिवलिंग बना कर उसकी पूजा की। उसके बाद देवताओं, ऋषियों और मुनियों ने अनेक द्रव्यों के शिवलिंग बनाकर पूजन किया। तभी से शिवलिंग की पूजा आरम्भ हो गई।

मित्र करइ सत रिपु कै करनी, ता कहँ बिबुधनदी बैतरणी।
सब जग ताहि अनलहु ते ताता, जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता।।

(अरण्यकाण्ड - श्रीरामचरितमानस)

भावार्थ:-गोस्वामी जी कहते है जो रघुनाथ जी से विमुख होता है उसके मित्र सैकड़ो शत्रुओ सी करनी करने लगते है, देवनदी गंगा जी उसके लिए वैतरणी (यमपुरी को नदी) हो जाती हैं। और हे भाई सुनिए ! सारा जगत उसके लिए अग्नि से भी अधिक गरम जलाने वाला हो जाता है जो भी रघुनाथ जी से विमुख हो जाता है।

श्रीराम जय राम जय जय राम

गायत्री मंत्र की खास बातें और चमत्कारी उपाय...
बहुत कम लोग जानते हैं गायत्री मंत्र की खास बातें और
चमत्कारी उपाय...
मंत्र जप ऐसा उपाय है जिससे किसी भी प्रकार
की समस्या को दूरकिया जा सकता है। मंत्रों की शक्ति से
सभी भलीभांति परिचित हैं।
मनचाही वस्तु प्राप्ति और इच्छा पूर्ति के लिए मंत्र जप से अधिक
अच्छा साधन कोई और नहीं है। सभी मंत्रों में गायत्री मंत्र सबसे
दिव्य और चमत्कारी है। इस जप से बहुत जल्द परिणाम प्राप्त
हो जाते हैं। यहां जानिए मंत्र से जुड़ी खास बातें और
चमत्कारी उपाय...
गायत्री मंत्र विद्या का प्रयोग भगवान की भक्ति, ब्रह्मज्ञान
प्राप्ति, दैवीय कृपा प्राप्त करने के साथ ही सांसारिक एवं भौतिक
सुख-सुविधाओं, धन प्राप्त करने की इच्छा के लिए
भी किया जा सकता है।
ये है गायत्री मंत्र:- ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण् यं
भर्गो देवस्य
धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र को वेदों को सर्वश्रेष्ठ मंत्र
बताया गया है। इस मंत्र जप के लिए तीन समय बताए गए हैं।
इन तीन समय को संध्याकाल भी कहा जाता हैं।
गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है
प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू
किया जाना चाहिए।
जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए। मंत्र जप के लिए
दूसरा समय है दोपहर मध्यान्ह का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप
किया जाता है। इसके बाद तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त के
कुछ
देर पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद
तक जपकरना चाहिए। इन तीन समय के अतिरिक्त
यदि गायत्री मंत्र का जपकरना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप
से जप करना चाहिए। मंत्र जपअधिक तेज आवाज में
नहीं करना चाहिए। गायत्री मंत्र का अर्थ:
सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम
ध्यान करते है, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सद्मार्ग
की ओर
चलने के लिए प्रेरित करें।
शास्त्रों में इसके जाप की विधि विस्तृत रूप से दी गई हैं। इस मंत्र
को जाप
करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना श्रेष्ठ
होता है। इस मंत्र के जप से हमें यह लाभ प्राप्त होते हैं...
उत्साह एवं सकारात्मकता, त्वचा में चमक आती है, तामसिकता से
घृणा होती है, परमार्थ में रूचि जागती है, पूर्वाभास होने लगता है,
आर्शीवाद
देने की शक्ति बढ़ती है, नेत्रों में तेज आता है, स्वप्र सिद्धि प्राप्त
होती है,
क्रोध शांत होता है, ज्ञान की वृद्धि होती है।
विद्यार्थीयों के लिए-
गायत्री मंत्र का जप सभी के लिए उपयोगी है किंतु
विद्यार्थियों के लिए
तो यह मंत्र बहुत लाभदायक है। रोजाना इस मंत्र का एक सौ आठ
बार जप
करने से विद्यार्थी को सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करने
मेंआसानी होती है। विद्यार्थियों को पढऩे में मन नहीं लगना, याद
किया हुआ भूल जाना, शीघ्रता से याद न होना आदि समस्याओं से निजात
मिल जाती है।
दरिद्रता के नाश के लिए-
यदि किसी व्यक्ति के व्यापार, नौकरी में हानि हो रही है या कार्य
में सफलता नहीं मिलती, आमदनी कम है तथा व्यय अधिक है तो उन्हें
गायत्री मंत्र का जप काफी फायदा पहुंचाता है। शुक्रवार
को पीले वस्त्र पहनकर हाथी पर विराजमान गायत्री माता का ध्यान
कर गायत्री मंत्र के आगे और पीछे श्रीं सम्पुट लगाकर जप
करने से दरिद्रता का नाश होता है। इसके साथ ही रविवार को व्रत
किया जाए तो ज्यादा लाभ होता है।
संतान संबंधी परेशानियां दूर करने के लिए...
किसी दंपत्ति को संतान प्राप्त करने में कठिनाई आ रही हो या संतान
से
दुखी हो अथवा संतान रोगग्रस्त हो तो प्रात: पति-पत्नी एक साथ
सफेद
वस्त्र धारण कर यौं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर
गायत्री मंत्र का जप
करें। संतान संबंधी किसी भी समस्या से शीघ्र
मुक्ति मिलती है।
शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए... यदि कोई
व्यक्ति शत्रुओं के कारण परेशानियां झेल रहा हो तो उसे प्रतिदिन
या विशेषकर मंगलवार, अमावस्या अथवा रविवार को लाल वस्त्र पहनकर
माता दुर्गा का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र के आगे एवं
पीछे क्लीं बीज
मंत्र का तीन बार सम्पुट लगाकार एक सौ आठ बार जाप करने
से शत्रुओं
पर विजय प्राप्त होती है। मित्रों में सद्भाव, परिवार में एकता होती है
तथा न्यायालयों आदि कार्यों में भी विजय प्राप्त होती है।
विवाह कार्य में देरी हो रही हो तो...
यदि किसी भी जातक के विवाह में अनावश्यक देरी हो रही हो तो सोमवार
को सुबह के समय पीले वस्त्र धारण कर माता पार्वती का ध्यान
करते हुए
ह्रीं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर एक सौ आठ बार जाप करने
से विवाह
कार्य में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं। यह
साधना स्त्री पुरुष
दोनों कर सकते हैं।
यदि किसी रोग के कारण परेशानियां हो तो...
यदि किसी रोग से परेशान है और रोग से मुक्ति जल्दी चाहते
हैंतो किसी भी शुभ मुहूर्त में एक कांसे के पात्र में स्वच्छ
जल भरकर रख लें एवं उसके सामने लाल आसन पर बैठकर
गायत्री मंत्र के साथ ऐं
ह्रीं क्लीं का संपुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें।
जप के पश्चात जल
से भरे पात्र का सेवन करने से गंभीर से गंभीर रोग का नाश
होता है। यही जल किसी अन्य रोगी को पीने देने से उसके भी रोग
का नाश होता हैं।
जो भी व्यक्ति जीवन की समस्याओं से बहुत त्रस्त है यदि वह
यह उपाय
करें तो उसकी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। उपाय इस प्रकार
है पीपल,
शमी, वट, गूलर, पाकर की समिधाएं लेकर एक पात्र में
कच्चा दूध भरकर
रख लें एवं उस दूध के सामने एक हजार गायत्री मंत्र का जाप
करें। इसके
बाद एक-एक समिधा को दूध में छुआकर गायत्री मंत्र का जप
करते हुए
अग्रि में होम करने से समस्त परेशानियों एवं दरिद्रता से
मुक्ति मिल जाती है। किसी भी शुभ मुहूर्त में दूध, दही,
घी एवं शहद को मिलाकर एक हजार
गायत्री मंत्रों के साथ हवन करने से चेचक, आंखों के रोग
एवं पेट के रोग
समाप्त हो जाते हैं। इसमें समिधाएं पीपल की होना चाहिए।
गायत्री मंत्रों के
साथ नारियल का बुरा एवं घी का हवन करने से शत्रुओं
का नाश होता है ।
श्रीगायत्री-मन्त्र से रोग-ग्रह-शान्ति
१॰ क्रूर से क्रूर ग्रह-शान्ति में, शमी-वृक्ष
की लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े कर,
गूलर-पाकर-पीपर-बरगद की समिधा के
साथ ‘गायत्री-मन्त्र से १०८ आहुतियाँ देने से
शान्ति मिलती है।
२॰ महान प्राण-संकट में कण्ठ-भर या जाँघ-भर जल में खड़े
होकर नित्य १०८ बार गायत्री मन्त्र जपने से
प्राण-रक्षा होती है।
३॰ घर के आँगन में चतुस्र यन्त्र बनाकर १ हजार बार
गायत्री मन्त्र का जप कर यन्त्र के
बीचो-बीच भूमि में शूल गाड़ने से भूत-
पिशाच से रक्षा होती है।
४॰ शनिवार को पीपल के वृक्ष के नीचे
गायत्री मन्त्र जपने से सभी प्रकार
की ग्रह-बाधा से रक्षा होती है।
५॰ ‘गुरुचि’ के छोटे-छोटे टुकड़े कर गो-दुग्ध में डुबोकर नित्य १०८
बार गायत्री मन्त्र पढ़कर हवन करने से ‘मृत्यु-
योग’ का निवारण होता है। यह मृत्युंजय-हवन’ है।
६॰ आम के पत्तों को गो-दुग्ध में डुबोकर ‘हवन’ करने से
सभी प्रकार के ज्वर में लाभ होता है।
७॰ मीठा वच, गो-दुग्ध में मिलाकर हवन करने से
‘राज-रोग’ नष्ट होता है।
८॰ शंख-पुष्पी के पुष्पों से हवन करने से कुष्ठ-
रोग का निवारण होता है।
९॰ गूलर की लकड़ी और फल से नित्य
१०८ बार हवन करने से ‘उन्माद-रोग’ का निवारण होता है।
१०॰ ईख के रस में मधु मिलाकर हवन करने से ‘मधुमेह-रोग’
में लाभ होता है।
११॰ गाय के दही, दूध व घी से हवन
करने से ‘बवासीर-रोग’ में लाभ होता है।
१२॰ बेंत की लकड़ी से हवन करने से
विद्युत्पात और राष्ट्र-विप्लव की बाधाएँ दुर
होती हैं।
१३॰ कुछ दिन नित्य १०८ बार गायत्री मन्त्र जपने
के बाद जिस तरफ मिट्टी का ढेला फेंका जाएगा, उस
तरफ से शत्रु, वायु, अग्नि-दोष दूर हो जाएगा।
१४॰ दुःखी होकर, आर्त्त भाव से मन्त्र जप कर
कुशा पर फूँक मार कर शरीर का स्पर्श करने से
सभी प्रकार के रोग, विष, भूत-भय नष्ट हो जाते
हैं।
१५॰ १०८ बार गायत्री मन्त्र का जप कर जल
का फूँक लगाने से भूतादि-दोष दूर होता है।
१६॰ गायत्री जपते हुए फूल का हवन करने से
सर्व-सुख-प्राप्ति होती है।
१७॰ लाल कमल या चमेली फुल एवं शालि चावल से
हवन करने से लक्ष्मी-प्राप्ति
होती है।
१८॰ बिल्व -पुष्प, फल, घी, खीर
की हवन-सामग्री बनाकर बेल के छोटे-
छोटे टुकड़े कर, बिल्व की लकड़ी से
हवन करने से भी लक्ष्मी-प्राप्ति
होती है।
१९॰ शमी की लकड़ी में गो-
घृत, जौ, गो-दुग्ध मिलाकर १०८ बार एक सप्ताह तक हवन
करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है।
२०॰ दूध-मधु-गाय के घी से ७ दिन तक १०८ बार
हवन करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है।
२१॰ बरगद की समिधा में बरगद
की हरी टहनी पर गो-घृत,
गो-दुग्ध से बनी खीर रखकर ७ दिन
तक १०८ बार हवन करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है।
२२॰ दिन-रात उपवास करते गुए गायत्री मन्त्र जप
से यम पाश से मुक्ति मिलती है।
२३॰ मदार की लकड़ी में मदार का कोमल
पत्र व गो-घृत मिलाकर हवन करने से विजय-
प्राप्ति होती है।
२४॰ अपामार्ग, गाय का घी मिलाकर हवन करने से
दमा रोग का निवारण होता है।
विशेषः- प्रयोग करने से पहले कुछ दिन नित्य १००८ या १०८ बार
गायत्री मन्त्र का जप व हवन करना चाहिए

पूरे भारत में बारह ज्योर्तिलिंग हैं जिसके विषय में मान्यता है कि इनकी उत्पत्ति स्वयं हुई। इनके अलावा देश के विभिन्न भागों में लोगों ने मंदिर बनाकर शिवलिंग को स्थापित किया है और उनकी पूजा करते हैं।
भारतीय सभ्यता के प्राचीन अभिलेखों एवं स्रोतों से भी ज्ञात होता है कि आदि काल से ही मनुष्य शिव के लिंग की पूजा करते आ रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि सभी देवों में महादेव के लिंग की ही पूजा क्यों होती है। इस संदर्भ में अलग-अलग मान्यताएं और कथाएं हैं।
एक बार शिव को अपना होश नहीं रहा और वह निर्वस्त्र होकर भटकने लगे इससे ऋषियों ने उन्हें शाप दिया कि उनका लिंग कटकर गिर जाए। इसके बाद शिव का लिंग कटकर पाताल में चला गया। उससे निकलने वाली ज्योति से संसार में तबाही मचने लगी।
इइसके बाद सभी देवतागण देवी पार्वती के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का समाधान करने की प्रार्थना करने लगे। इसके बाद पार्वती ने शिवलिंग को धारण कर लिया और संसार को प्रलय से बचा लिया।
इसके बाद से शिवलिंग के नीचे पार्वती का भाग विराजमान रहने लगा। यह नियम बनाया गया कि शिवलिंग की आधी परिक्रमा होगी। इस प्रकार की कथा कई पुराणों में है।
शिव पुराण में शिवलिंग की पूजा के विषय में जो तथ्य मिलता है वह तथ्य इस कथा से अलग है। शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है। इस पुराण के अनुसार भगवान शिव ही पूर्ण पुरूष और निराकार ब्रह्म हैं। इसी के प्रतीकात्मक रूप में शिव के लिंग की पूजा की जाती है।
भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग प्रकट किया था। इस लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ। इसी समय से शिव के परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में लिंग की पूजा आरंभ हुई।
हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो की खुदाई से पत्थर के बने लिंग और योनी मिले हैं। एक मूर्ति ऐसी मिली है जिसके गर्भ से पौधा निकलते हुए दिखाया गया। यह प्रमाण है कि आरंभिक सभ्यता के लोग प्रकृति के पूजक थे। वह मानते थे कि संसार की उत्पत्ति लिंग और योनी से हुई है। इसी से लिंग पूजा की परंपरा चल पड़ी।
सभ्यता के आरंभ में लोगों का जीवन पशुओं और प्रकृति पर निर्भर था इसलिए वह पशुओं के संरक्षक देवता के रूप में पशुपति की पूजा करते थे। सैंधव सभ्यता से प्राप्त एक सील पर तीन मुंह वाले एक पुरूष को दिखाया गया है जिसके आस-पास कई पशु हैं।
इसे भगवान शिव का पशुपति रूप माना जाता है। प्रथम देवता होने के कारण ही इन्हें ही सृष्टिकर्ता मान लिया गया और लिंग रूप में इनकी पूजा शुरू हो गयी।

गायत्री मंत्र की खास बातें और चमत्कारी उपाय...
बहुत कम लोग जानते हैं गायत्री मंत्र की खास बातें और
चमत्कारी उपाय...
मंत्र जप ऐसा उपाय है जिससे किसी भी प्रकार
की समस्या को दूरकिया जा सकता है। मंत्रों की शक्ति से
सभी भलीभांति परिचित हैं।
मनचाही वस्तु प्राप्ति और इच्छा पूर्ति के लिए मंत्र जप से अधिक
अच्छा साधन कोई और नहीं है। सभी मंत्रों में गायत्री मंत्र सबसे
दिव्य और चमत्कारी है। इस जप से बहुत जल्द परिणाम प्राप्त
हो जाते हैं। यहां जानिए मंत्र से जुड़ी खास बातें और
चमत्कारी उपाय...
गायत्री मंत्र विद्या का प्रयोग भगवान की भक्ति, ब्रह्मज्ञान
प्राप्ति, दैवीय कृपा प्राप्त करने के साथ ही सांसारिक एवं भौतिक
सुख-सुविधाओं, धन प्राप्त करने की इच्छा के लिए
भी किया जा सकता है।
ये है गायत्री मंत्र:- ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण् यं
भर्गो देवस्य
धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र को वेदों को सर्वश्रेष्ठ मंत्र
बताया गया है। इस मंत्र जप के लिए तीन समय बताए गए हैं।
इन तीन समय को संध्याकाल भी कहा जाता हैं।
गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है
प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू
किया जाना चाहिए।
जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए। मंत्र जप के लिए
दूसरा समय है दोपहर मध्यान्ह का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप
किया जाता है। इसके बाद तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त के
कुछ
देर पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद
तक जपकरना चाहिए। इन तीन समय के अतिरिक्त
यदि गायत्री मंत्र का जपकरना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप
से जप करना चाहिए। मंत्र जपअधिक तेज आवाज में
नहीं करना चाहिए। गायत्री मंत्र का अर्थ:
सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम
ध्यान करते है, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सद्मार्ग
की ओर
चलने के लिए प्रेरित करें।
शास्त्रों में इसके जाप की विधि विस्तृत रूप से दी गई हैं। इस मंत्र
को जाप
करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना श्रेष्ठ
होता है। इस मंत्र के जप से हमें यह लाभ प्राप्त होते हैं...
उत्साह एवं सकारात्मकता, त्वचा में चमक आती है, तामसिकता से
घृणा होती है, परमार्थ में रूचि जागती है, पूर्वाभास होने लगता है,
आर्शीवाद
देने की शक्ति बढ़ती है, नेत्रों में तेज आता है, स्वप्र सिद्धि प्राप्त
होती है,
क्रोध शांत होता है, ज्ञान की वृद्धि होती है।
विद्यार्थीयों के लिए-
गायत्री मंत्र का जप सभी के लिए उपयोगी है किंतु
विद्यार्थियों के लिए
तो यह मंत्र बहुत लाभदायक है। रोजाना इस मंत्र का एक सौ आठ
बार जप
करने से विद्यार्थी को सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करने
मेंआसानी होती है। विद्यार्थियों को पढऩे में मन नहीं लगना, याद
किया हुआ भूल जाना, शीघ्रता से याद न होना आदि समस्याओं से निजात
मिल जाती है।
दरिद्रता के नाश के लिए-
यदि किसी व्यक्ति के व्यापार, नौकरी में हानि हो रही है या कार्य
में सफलता नहीं मिलती, आमदनी कम है तथा व्यय अधिक है तो उन्हें
गायत्री मंत्र का जप काफी फायदा पहुंचाता है। शुक्रवार
को पीले वस्त्र पहनकर हाथी पर विराजमान गायत्री माता का ध्यान
कर गायत्री मंत्र के आगे और पीछे श्रीं सम्पुट लगाकर जप
करने से दरिद्रता का नाश होता है। इसके साथ ही रविवार को व्रत
किया जाए तो ज्यादा लाभ होता है।
संतान संबंधी परेशानियां दूर करने के लिए...
किसी दंपत्ति को संतान प्राप्त करने में कठिनाई आ रही हो या संतान
से
दुखी हो अथवा संतान रोगग्रस्त हो तो प्रात: पति-पत्नी एक साथ
सफेद
वस्त्र धारण कर यौं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर
गायत्री मंत्र का जप
करें। संतान संबंधी किसी भी समस्या से शीघ्र
मुक्ति मिलती है।
शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए... यदि कोई
व्यक्ति शत्रुओं के कारण परेशानियां झेल रहा हो तो उसे प्रतिदिन
या विशेषकर मंगलवार, अमावस्या अथवा रविवार को लाल वस्त्र पहनकर
माता दुर्गा का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र के आगे एवं
पीछे क्लीं बीज
मंत्र का तीन बार सम्पुट लगाकार एक सौ आठ बार जाप करने
से शत्रुओं
पर विजय प्राप्त होती है। मित्रों में सद्भाव, परिवार में एकता होती है
तथा न्यायालयों आदि कार्यों में भी विजय प्राप्त होती है।
विवाह कार्य में देरी हो रही हो तो...
यदि किसी भी जातक के विवाह में अनावश्यक देरी हो रही हो तो सोमवार
को सुबह के समय पीले वस्त्र धारण कर माता पार्वती का ध्यान
करते हुए
ह्रीं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर एक सौ आठ बार जाप करने
से विवाह
कार्य में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं। यह
साधना स्त्री पुरुष
दोनों कर सकते हैं।
यदि किसी रोग के कारण परेशानियां हो तो...
यदि किसी रोग से परेशान है और रोग से मुक्ति जल्दी चाहते
हैंतो किसी भी शुभ मुहूर्त में एक कांसे के पात्र में स्वच्छ
जल भरकर रख लें एवं उसके सामने लाल आसन पर बैठकर
गायत्री मंत्र के साथ ऐं
ह्रीं क्लीं का संपुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें।
जप के पश्चात जल
से भरे पात्र का सेवन करने से गंभीर से गंभीर रोग का नाश
होता है। यही जल किसी अन्य रोगी को पीने देने से उसके भी रोग
का नाश होता हैं।
जो भी व्यक्ति जीवन की समस्याओं से बहुत त्रस्त है यदि वह
यह उपाय
करें तो उसकी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। उपाय इस प्रकार
है पीपल,
शमी, वट, गूलर, पाकर की समिधाएं लेकर एक पात्र में
कच्चा दूध भरकर
रख लें एवं उस दूध के सामने एक हजार गायत्री मंत्र का जाप
करें। इसके
बाद एक-एक समिधा को दूध में छुआकर गायत्री मंत्र का जप
करते हुए
अग्रि में होम करने से समस्त परेशानियों एवं दरिद्रता से
मुक्ति मिल जाती है। किसी भी शुभ मुहूर्त में दूध, दही,
घी एवं शहद को मिलाकर एक हजार
गायत्री मंत्रों के साथ हवन करने से चेचक, आंखों के रोग
एवं पेट के रोग
समाप्त हो जाते हैं। इसमें समिधाएं पीपल की होना चाहिए।
गायत्री मंत्रों के
साथ नारियल का बुरा एवं घी का हवन करने से शत्रुओं
का नाश होता है ।
श्रीगायत्री-मन्त्र से रोग-ग्रह-शान्ति
१॰ क्रूर से क्रूर ग्रह-शान्ति में, शमी-वृक्ष
की लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े कर,
गूलर-पाकर-पीपर-बरगद की समिधा के
साथ ‘गायत्री-मन्त्र से १०८ आहुतियाँ देने से
शान्ति मिलती है।
२॰ महान प्राण-संकट में कण्ठ-भर या जाँघ-भर जल में खड़े
होकर नित्य १०८ बार गायत्री मन्त्र जपने से
प्राण-रक्षा होती है।
३॰ घर के आँगन में चतुस्र यन्त्र बनाकर १ हजार बार
गायत्री मन्त्र का जप कर यन्त्र के
बीचो-बीच भूमि में शूल गाड़ने से भूत-
पिशाच से रक्षा होती है।
४॰ शनिवार को पीपल के वृक्ष के नीचे
गायत्री मन्त्र जपने से सभी प्रकार
की ग्रह-बाधा से रक्षा होती है।
५॰ ‘गुरुचि’ के छोटे-छोटे टुकड़े कर गो-दुग्ध में डुबोकर नित्य १०८
बार गायत्री मन्त्र पढ़कर हवन करने से ‘मृत्यु-
योग’ का निवारण होता है। यह मृत्युंजय-हवन’ है।
६॰ आम के पत्तों को गो-दुग्ध में डुबोकर ‘हवन’ करने से
सभी प्रकार के ज्वर में लाभ होता है।
७॰ मीठा वच, गो-दुग्ध में मिलाकर हवन करने से
‘राज-रोग’ नष्ट होता है।
८॰ शंख-पुष्पी के पुष्पों से हवन करने से कुष्ठ-
रोग का निवारण होता है।
९॰ गूलर की लकड़ी और फल से नित्य
१०८ बार हवन करने से ‘उन्माद-रोग’ का निवारण होता है।
१०॰ ईख के रस में मधु मिलाकर हवन करने से ‘मधुमेह-रोग’
में लाभ होता है।
११॰ गाय के दही, दूध व घी से हवन
करने से ‘बवासीर-रोग’ में लाभ होता है।
१२॰ बेंत की लकड़ी से हवन करने से
विद्युत्पात और राष्ट्र-विप्लव की बाधाएँ दुर
होती हैं।
१३॰ कुछ दिन नित्य १०८ बार गायत्री मन्त्र जपने
के बाद जिस तरफ मिट्टी का ढेला फेंका जाएगा, उस
तरफ से शत्रु, वायु, अग्नि-दोष दूर हो जाएगा।
१४॰ दुःखी होकर, आर्त्त भाव से मन्त्र जप कर
कुशा पर फूँक मार कर शरीर का स्पर्श करने से
सभी प्रकार के रोग, विष, भूत-भय नष्ट हो जाते
हैं।
१५॰ १०८ बार गायत्री मन्त्र का जप कर जल
का फूँक लगाने से भूतादि-दोष दूर होता है।
१६॰ गायत्री जपते हुए फूल का हवन करने से
सर्व-सुख-प्राप्ति होती है।
१७॰ लाल कमल या चमेली फुल एवं शालि चावल से
हवन करने से लक्ष्मी-प्राप्ति
होती है।
१८॰ बिल्व -पुष्प, फल, घी, खीर
की हवन-सामग्री बनाकर बेल के छोटे-
छोटे टुकड़े कर, बिल्व की लकड़ी से
हवन करने से भी लक्ष्मी-प्राप्ति
होती है।
१९॰ शमी की लकड़ी में गो-
घृत, जौ, गो-दुग्ध मिलाकर १०८ बार एक सप्ताह तक हवन
करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है।
२०॰ दूध-मधु-गाय के घी से ७ दिन तक १०८ बार
हवन करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है।
२१॰ बरगद की समिधा में बरगद
की हरी टहनी पर गो-घृत,
गो-दुग्ध से बनी खीर रखकर ७ दिन
तक १०८ बार हवन करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है।
२२॰ दिन-रात उपवास करते गुए गायत्री मन्त्र जप
से यम पाश से मुक्ति मिलती है।
२३॰ मदार की लकड़ी में मदार का कोमल
पत्र व गो-घृत मिलाकर हवन करने से विजय-
प्राप्ति होती है।
२४॰ अपामार्ग, गाय का घी मिलाकर हवन करने से
दमा रोग का निवारण होता है।
विशेषः- प्रयोग करने से पहले कुछ दिन नित्य १००८ या १०८ बार
गायत्री मन्त्र का जप व हवन करना चाहिए