Friday, October 28, 2016

धनतेरश का त्योहार दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है।

आप को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाऐँ। हम सब को बल, बुद्धि, ज्ञान, भक्ति 
और वैराग्य मिलता रहे यही भगवान से प्रार्थना है।
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धनतेरश का त्योहार दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है। हमारे देश में 
सर्वाधिक धूमधाम से मनाए जाने वाले त्योहार दीपावली का प्रारंभ धनतेरस से 
हो जाता है। इसी दिन से घरों की लिपाई-पुताई प्रारम्भ कर देते हैं। 
दीपावली के लिए विविध वस्तुओं की ख़रीद आज की जाती है। इस दिन से कोई 
किसी को अपनी वस्तु उधार नहीं देता। इसके उपलक्ष्य में बाज़ारों से नए 
बर्तन, वस्त्र, दीपावली पूजन हेतु लक्ष्मी- गणेश, खिलौने, खील-बताशे तथा 
सोने- चांदीके जेवर आदि भी ख़रीदे जाते हैं। 
आज ही के दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धन्वन्तरिवैद्य 
समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे, इसलिए धनतेरस को धन्वन्तरि जयन्ती 
भी कहते हैं। इसीलिए वैद्य-हकीम और ब्राह्मण समाज आज धन्वन्तरि भगवान का 
पूजन कर धन्वन्तरि जयन्ती मनाता है। 
*महत्त्व* 
धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस दिन का विशेष महत्त्व है। शास्त्रों 
में इस बारे में कहा है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज के 
निमित्त दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती। घरों में 
दीपावली की सजावट भी आज ही से प्रारम्भ हो जाती है। इस दिन घरों को 
स्वच्छ कर, लीप-पोतकर, चौक, रंगोली बना सायंकाल के समय दीपक जलाकर 
लक्ष्मी जी का आवाहन किया जाता है। इस दिन पुराने बर्तनों को बदलना व नए 
बर्तन ख़रीदना शुभ माना गया है। इस दिन चांदी के बर्तन ख़रीदने से तो 
अत्यधिक पुण्य लाभ होता है। इस दिन हल जुती मिट्टी को दूधमें भिगोकर 
उसमें सेमर की शाखा डालकर लगातार तीन बार अपने शरीर पर फेरना तथा कुंकुम 
लगाना चाहिए। कार्तिक स्नानकरके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, कुआं, 
बावली, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए। तुला राशि के 
सूर्य में चतुर्दशी व अमावस्या की सन्ध्या को जलती लकड़ी की मशाल से 
पितरों का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। 
*!! धनतेरस की यमराज को दीप देने की कथा !!*
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा 
भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी समय में एक 
राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति 
हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का 
विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। 
राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया 
जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर 
से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व 
विवाह कर लिया। 
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत 
उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे 
थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो 
उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब 
यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे 
यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु के लेख से 
मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल 
मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें 
बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से 
पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय 
नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर 
दीप जलाकर रखते हैं। 🌷🙏🌷

*वर्षोद्भवम्*

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               *वर्षोद्भवम्*
               *शरत्पक्वधान्यम्,*
               *आल्हादकम्*
               *हेमंत-शिशीरशैत्यम्।*
               *मिष्टान्नभोगम्*
               *नववसनयोगम्,*
               *आनंदपर्वम्*
               *दीपोत्सवोऽयम्॥*
                    *...........*
               *॥शुभदीपावली॥*

आज से आरंभ दिपउत्सव की
आपको हार्दिक शुभकामनाये .....

Monday, October 24, 2016

हिमाद्रि संकल्प

ॐ स्वस्ति श्री समस्त जगदुत्पत्तिस्थितिलयकारणस्य रक्षा – शिक्षा – विचक्षणस्य प्रणतपारिजातस्य अशेषपराक्रमस्य श्रीमदनन्तवीर्यस्यादि नारायणस्य अचिन्त्यापरिमितशक्त्या ध्रियमाणानां महाजलौघमध्ये परिभ्रमताम् अनेककोटि ब्रह्माण्डानाम् एकतमे अव्यक्त– महदहंकार – पृथिव्यप्तेजो वाय्वाकाशाद्यावरणैरावृते अस्मिन् महति ब्रह्माण्डखण्डे आधारशक्तिश्रीमदादि –वाराह – दंष्ट्राग्र – विराजिते कूर्मानन्त – वासुकि –तक्षक – कुलिक कर्कोटक – पद्म – महापद्म –शङ्खाद्यष्ट महानागैर्ध्रियमाणे एरावत – पुण्डरीक –वामन – कुमुदाञ्जन – पुष्पदन्त – सार्वभौम –सुप्रतीकाष्टदिग्गजोपरिप्रतिष्ठितानाम् अतल – वितल –सुतल – तलातल – रसातल – महातल – पाताल –लोकानामुपरिभागे पुण्यकृन्निवासभूत भूर्लोक –भुवर्लोक – स्वर्लोक – महर्लोक – जनोलोक –तपोलोक  सत्यलोकाख्यसप्तलोकानामधोभागे चक्रवालशैलमहावलयनागमध्यवर्तिनो महाकाल महाफणिराजशेषस्य सहस्त्रफणामणिमण्डलमण्डिते दिग्दन्तिशुण्डादण्डोद्दन्डिते अमरावत्यशोकवती भोगवती – सिद्धवती – गान्धर्ववती – काञ्ची –अवन्ती अलकावती यशोवतीतिपुण्यपुरीप्रतिष्ठि ते लोकालोकाचलवलयिते लवणेक्षु – सुर सर्पि – दधि –क्षीरोदकार्णवपरिवृते जम्बू – प्लक्ष – कुश – क्रोञ्च –शाक शाल्मलिपुष्कराख्यसप्तद्वीपयुते इन्द्र – कांस्य –ताम्र – गभस्ति – नाग – सोम्य – गन्धर्व –चारणभारतेतिनवखण्डमण्डिते सुवर्णगिरिकर्णिकोपेतमहासरोरुहाकारपञ्चाशत् कोटियोजनविस्तीर्णभूमण्डले अयोध्या मथुरा – माया –काशी – काञ्ची – अवन्तिकापुरी –द्वारावतीतिमोक्षदायिकसप्तपुरीप्रतिष्ठिते सुमेरु निषधत्रिकूट – रजतकूटाम्रकूट – चित्रकूट –हिमवद्विन्ध्याचलानां महापर्वत प्रतिष्ठिते हरिवर्षकिं पुरुषभारतवर्षयोश्च दक्षिणे नवसहस्रयोजन विस्तीर्णे मलयाचल – सह्याचल विन्ध्याचलानामुत्तरे स्वर्णप्रस्थ– चण्डप्रस्थ – चान्द्र – सूक्तावन्तक – रमणक –महारमणक – पाञ्चजन्य – सिंहल – लङ्केति –नवखण्डमण्डिते गंगा – भागीरथी – गोदावरी – क्षिप्रा– यमुना – सरस्वती – नर्मदा – ताप्ती – चन्द्रभागा –कावेरी – पयोष्णी – कृष्णा – वेण्या – भीमरथी –तुंगभद्रा ताम्रपर्णी – विशालाक्षी – चर्मण्वती – वेत्रवती– कौशिकी – गण्डकी – विश्वामित्रीसरयूकरतोया –ब्रह्मानन्दामहीत्यनेकपुण्यनदीविराजिते दण्डक –विन्ध्यक – चम्पक – बदरिक – महीलांगुहेक्षुक नैमिष– कदलिक देवदार्वाख्यदशारण्ययुते भारतवर्षे सकल देवतानां निवासभूमौ, वेदभूमौ श्रीभगवतो महापुरुषस्य नाभिसरोरुहादुत्पन्नस्य तदाज्ञया प्रवर्तमाने सकलजगत्स्रष्टुः परार्धद्वयजीविनो ब्रह्मणः प्रथमे परार्धे पंचाशदब्दात्मिके व्यतीते द्वितीये परार्धे रथन्तरादिद्वात्रिंशतकल्पानांमध्ये अष्टमे श्वेतवाराहकल्पे प्रथमे वर्षे प्रथम मासे प्रथम पक्षे प्रथमे दिवसे अह्नि द्वितीये यामे तृतीये मुहूर्ते स्वायम्भुव स्वारोचिषोत्तम् तामस रैवत चाक्षुषाख्येषु षट्सु मनुषु व्यतीतेषु सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे कृत त्रेताद्वापरकलिसंज्ञकानां चतुर्णां युगानां मध्ये वर्तमाने अष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमे पादे महर्षि ज्ञानयुगीयवैदिकविश्वप्रशासनस्य राजधान्यां पूर्णभूमौ, भारतवर्षस्य ब्रह्मस्थाने, महर्षि वेद विज्ञान विश्व विद्यापीठ परिसरे चान्द्र सौरसावनमानानां प्रभवादि षष्ठि सम्वत्सराणां मध्ये_________ सम्वत्सरे________उत्तरसहस्रद्वयपरिमिते वैक्रमाब्दे ____________ उत्तर एकोनविंशतिशततमे शालिवाहन शकाब्दे ________उत्तर एक पञ्चाशच्छततमेयुधिष्ठिर सम्वत्सरे उत्तर पञ्चविंशतिशततमे आद्यशङ्कराचार्य सम्वत्सरे महर्षि ज्ञानयुगीय __________सम्वत्सरे ________अयने________ऋतो _______मासे _______पक्षे________तिथौ ______वासरे _______नक्षत्रे________योगे _________करणे________राशिस्थितेश्रीचन्द्रे________रशिस्थितेश्रीसूर्ये_________रशिस्थितेश्रीभौमे_________रशिस्थितेश्रीबुधे_________रशिस्थितेश्रीदेवगुरौ_________रशिस्थितेश्रीशुक्रे_________रशिस्थितेश्रीशनौ_________रशिस्थितेश्रीराहौ_________रशिस्थितेश्रीकेतौ एवं ग्रहगणगुणविशेषण विशिष्टायां पुण्यायां पुण्यकालेमहापुण्य शुभतिथौ_____________

जयतु संस्कृतम्

जयतु संस्कृतम्

संस्कृत देवभाषा है ! यह सभी भाषाओँ की जननी है ! विश्व  की समस्त भाषाएँ इसी के गर्भ से उद्भूत हुई है ! वेदों की रचना इसी भाषा में होने के कारण  इसे वैदिक  भाषा भी कहते हैं ! संस्कृत  भाषा का प्रथम काव्य-ग्रन्थ  ऋग्वेद को माना जाता है ! ऋग्वेद को आदिग्रन्थ भी कहा जाता है ! किसी भी भाषा के उद्भव के बाद इतनी दिव्यता एवं अलौकिक कृति का सृजन कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता है ! ऋग्वेद की ऋचाओं में संस्कृत भाषा का लालित्य , व्याकरण  , व्याकरण , छंद, सौंदर्य , अलंकार अद्भुत एवं आश्चर्यजनक है ! दिव्य ज्ञान  का यह विश्वकोश संस्कृत की समृद्धि का परिणाम है ! यह भाषा अपनी दिव्य एवं दैवीय विशेषताओं के कारण  आज भी उतनी ही प्रासंगिक एवं जीवंत है !
संस्कृत का तात्पर्य परिष्कृत, परिमार्जित  ,पूर्ण, एवं अलंकृत है ! यह भाषा इन सभी विशेषताओं से पूर्ण है ! यह भाषा अति परिष्कृत एवं परिमार्जित है ! इस भाषा में भाषागत त्रुटियाँ नहीं मिलती हैं जबकि अन्य  भाषाओं के साथ ऐसा नहीं है ! यह परिष्कृत होने के साथ-साथ अलंकृत भी है ! अलंकर इसका सौंदर्य है !  अतः संस्कृत को पूर्ण भाषा का दर्जा दिया गया है ! यह अतिप्राचीन एवं आदि भाषा है ! भाषा विज्ञानी इसे इंडो-इरानियन परिवार का सदस्य  मानते है ! इसकी प्राचीनता को ऋग्वेद के साथ जोड़ा जाता है ! अन्य मूल भारतीय ग्रन्थ भी संस्कृत में ही लिखित है !
संस्कृत का प्राचीन व्याकरण  पाणिनि का अष्टाध्यायी है ! संस्कृत को   वैदिक एवं क्लासिक संस्कृत के रूप में प्रमुखतः विभाजित किया जाता है ! वैदिक संस्कृत में वेदों से लेकर उपनिषद तक की यात्रा सन्निहित है , जबकि क्लासिक संस्कृत में पौराणिक ग्रन्थ, जैसे रामायण,महाभारत आदि हैं ! भाषा विज्ञानी श्री भोलानाथ तिवारी जी के अनुसार इसके चार भाग किये गए हैं — पश्चिमोत्तरी, मध्यदेशी, पूर्वी, एवं दक्षिणी !
संस्कृत की इस समृद्धि ने पाश्चात्य विद्वानों को अपनी ओर अकर्षित  किया है ! इस भाषा से प्रभावित होकर सर विलियम जोन्स ने २ फरवरी, १७८६ को एशियाटिक सोसायटी , कोल्कता में कहा- ” संस्कृत एक अद्भुत भाषा है ! यह ग्रीक से अधिक पूर्ण है, लैटिन से अधिक समृद्ध और अन्य किसी भाषा से अधिक परिष्कृत है !” इसी कारण संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी कहा जाता है ! संस्कृत को देव भाषा वर्ग के अंतर्गत रखा जाता है और सभी भाषाओं की उत्पत्ति का सूत्रधार इसे माना जाता है !
समस्त विश्व की भाषाओं को ११ वर्गों में बाँटा गया है :-
१) इंडो इरानियन- इसके भी दो उपवर्ग है – एक में इंडो-आर्यन जिसमें संस्कृत एवं इससे उद्भूत भाषाएँ हैं, दुसरे वर्ग में ईरानी भाषा जिसमें अवेस्तन , पारसी एवं पश्तो भाषाएँ आती हैं !
२) बाल्टिक:- इसमें लुथी अवेस्तन  लेटवियन  आदि भाषाएँ आती हैं !
३) स्लैविक :- इसमें रसियन, पोलिश, सर्वोकोशिया, आदि भाषाएँ सम्मिलित हैं !
४) अमैनियम:-इसके अंतर्गत अल्बेनिया आती हैं !
५) ग्रीक –
६) सेल्टिक;- इसके अंतर्गत आयरिश , स्कॉटिश गेलिक, वेल्स एवं ब्रेटन भाषाएँ आती है !
७) इटालिक – इसमें लैटिन एवं इससे उत्पन्न भाषाएँ सम्मिलित हैं !
८) रोमन :- इटालियन, फ्रेंच, स्पेनिश, पोर्तुगीज, रोमानियन एवं अन्य भाषाएँ इसमें सम्मिलित हैं !
९) जर्मनिक :- जर्मन , अंग्रेजी, डच, स्कैनडीनेवियन भाषाएँ आती है इस वर्ग में !
१०) अनातोलियन :- हिटीट पालैक, लाय्दियाँ, क्युनिफार्म, ल्युवियान, हाइरोग्लाफिक ल्युवियान  और   लायसियान   !
११) लोचरीयन (टोकारिश):- इसे उत्तरी चीन में प्रयोग किया जाता है, इसकी लिपि  ब्राह्मी लिपि से मिलती है !
भाषाविद मानते हैं कि इन सभी भाषाओँ की उत्पत्ति का तार कहीं-न-कहीं से संस्कृत से जुड़ा हुआ है; क्योंकि यह सबसे पुरानी एवं समृद्ध भाषा है ! किसी भी भाषा की विकासयात्रा में  उसकी यह विशेषता जुडी होती है कि वह विकसित होने की कितनी क्षमता  रखती है !   जिस भाषा में यह क्षमता विद्यमान होती है , वह दीर्घकाल तक अपना अस्तित्व बनाये रखती है , परन्तु जिसमें इस क्षमता का आभाव होता  है उनकी विकासयात्रा थम जाती है ! यह सत्य है कि  संस्कृत  भाषा आज प्रचालन में नहीं है परन्तु इसमें अगणित विशेषताएं मौजूद हैं ! इन्हीं विशेषताओं को लेकर इसपर कंप्यूटर के क्षेत्र में भी प्रयोग चल रहा है ! कंप्यूटर विशेषज्ञ इस तथ्य से सहमत है कि यदि संस्कृत को कंप्यूटर की डिजिटल भाषा में प्रयोग करने की तकनीक खोजी  जा सके तो भाषा जगत के साथ-साथ कंप्यूटर क्षेत्र में भी अभूतपूर्व परिवर्तन देखें जा सकते हैं ! जिस दिन यह परिकल्पना साकार एवं मूर्तरूप लेगी, एक नए युग का उदय होगा ! संस्कृत उदीयमान भविष्य की एक महत्वपूर्ण धरोहर है !
अपने देश में संस्कृत भाषा वैदिक भाषा बनकर सिमट गयी है ! इसे विद्वानों एवं विशेषज्ञों कि भाषा मानकर इससे परहेज किया जाता है ! किसी अन्य भाषा कि तुलना में इस भाषा को महत्त्व ही नहीं दिया गया , क्योंकि वर्तमान व्यावसायिक युग में उस भाषा को ही वरीयता दी  जाती है जिसका व्यासायिक मूल्य सर्वोपरि होता है ! कर्मकांड के क्षेत्र में इसे महत्त्व तो मिला है, परन्तु कर्मकांड कि वैज्ञानिकता का लोप हो जाने से इसे अन्धविश्वास मानकर संतोष कर लिया जाता है और इसका दुष्प्रभाव संस्कृत पर पड़ता है ! यदि इसके महत्त्व को समझकर इसका प्रयोग किया जाये तो इसके अगणित लाभ हो सकते हैं !
संस्कृत की भाषा विशिष्टता को समझकर लन्दन के बीच बनी एक पाठशाला ने अपने जूनियर डिविजन  में इसकी शिक्षा को अनिवार्य बना दिया है ! श्री आदित्य घोष ने सन्डे हिंदुस्तान  टाइम्स    ( १० फरवरी, २००८ ) में इससे सम्बंधित एक लेख प्रकाशित किया था ! उनके अनुसार लन्दन की उपर्युक्त पाठशाला के अधिकारीयों की यह मान्यता है कि संस्कृत का ज्ञान होने से अन्य भाषाओँ को सिखने व समझने की शक्ति में अभिवृद्धि होती है ! इसको सिखने से गणित व विज्ञान को समझने में आसानी होती है !   Saint James Independent school नामक यह विद्यालय लन्दन के कैनिंगस्टन ओलंपिया क्षेत्र की डेसर्स स्ट्रीट में अवस्थित है ! पाँच से दस वर्ष तक की आयु के इसके अधिकांश छात्र काकेशियन है ! इस विद्यालय की आरंभिक  कक्षाओं  में  संस्कृत अनिवार्य विषय के रूप में सम्मिलित है !
इस विद्यालय के बच्चे अपनी पाठ्य पुस्तक के रुप में रामायण को पढ़ते हैं ! बोर्ड पर सुन्दर देवनागरी लिपि के अक्षर शोभायमान होते हैं ! बच्चे अपने शिक्षकों से संस्कृत में प्रश्नोत्तरी करते हैं और अधिकतर समय संस्कृत में ही वार्तालाप करते हैं ! कक्षा के उपरांत समवेत स्वर में श्लोकों का पाठ भी करते हैं ! दृश्य ऐसा होता है मानो यह पाठशाला वाराणसी एवं हरिद्वार के कसीस स्थान पर अवस्थित  हो और वहां पर किसी कर्मकांड का पाठ चल रहा हो ! इस पाठशाला के शिक्षकों ने अनेक शोध-परीक्षण करने के पश्चात् अपने निष्कर्ष में पाया कि संस्कृत  का ज्ञान बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है ! संस्कृत जानने वाला छात्र अन्य  भाषाओँ के साथ अन्य  विषय भी शीघ्रता से सीख जाता है ! यह निष्कर्ष उस विद्यालय के विगत बारह वर्ष के अनुभव से प्राप्त हुआ है !
Oxford University से संस्कृत में Ph.D करने वाले डॉक्टर वारविक जोसफ उपर्युक्त विद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष हैं ! उनके अथक लगन ने संस्कृत भाषा को इस विद्यालय के ८०० विद्यार्थियों के जीवन का अंग बना दिया है ! डॉक्टर जोसफ के अनुसार संस्कृत विश्व की सर्वाधिक पूर्ण, परिमार्जित एवं तर्कसंगत भाषा है ! यह एकमात्र ऐसी भासा है जिसका नाम उसे बोलने वालों के नाम पर आधारित नहीं है ! वरन संस्कृत शब्द का अर्थ ही है “पूर्ण भाषा ” ! इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक पॉल मौस का कहना है कि संस्कृत अधिकांश यूरोपीय और भारतीय भाषाओँ की जननी है ! वे संस्कृत से अत्यधिक प्रभावित है ! प्रधानाचार्य ने बताया कि प्रारंभ  में संस्कृत को अपने पाठ्यक्रम का अंग बनाने के लिए बड़ी चुनौती झेलनी पड़ी थी !
प्रधानाचार्य मौस ने अपने दीर्घकाल के अनुभव के आधार पर बताया कि संस्कृत सिखने से अन्य लाभ भी हैं ! देवनागरी लिपि लिखने से तथा संस्कृत बोलने से बच्चों की जिह्वा तथा उँगलियों का कडापन समाप्त हो जाता है और उनमें लचीलापन आ जाता है ! यूरोपीय भाषाएँ बोलने से और  लिखने से जिह्वा एवं उँगलियों के कुछ भाग सक्रिय नहीं होते है ! जबकि संस्कृत के प्रयोग से इन अंगों के अधिक भाग सक्रिय होते हैं ! संस्कृत अपनी विशिष्ट ध्वन्यात्मकता के कारण प्रमस्तिष्कीय (Cerebral) क्षमता में वृद्धि करती है ! इससे सिखने की क्षमता , स्मरंशक्ति, निर्णयक्षमता में आश्चर्यजनक अभिवृद्धि होती है ! संभवतः यही कारण है कि पहले बच्चों का विद्यारम्भ संस्कार कराया जाता था और उसमें मंत्र लेखन के साथ बच्चे को जप करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता था ! संस्कृत से छात्रों की गतिदायक कुशलता (Motor Skills)  भी विकसित होती है !

१४ से २२ तक की वार्ता

[10/15, 09:39] P Omish Ji: 🌷🙏�सुप्रभातम🙏�🌷
सभी सदस्यों को यथोचित वंदन
कभी सुना था कि अगर किसी व्यक्ति के कारण परिवार में दाग लग रहा हो तो उसे घर से बाहर निकाल देना चाहिए, उसको आज इस धर्मार्थ परिवार मे प्रत्यक्ष रूप से देखने का सौभाग्य मिला।
अग्रज मंगला जी की कर्मनिष्ठता को कुछ कहने के लिए शायद शब्दकोष में शब्द ही न हो।केवल प्रणाम ही कर सकता हूँ। कुछ तो प्रसन्नता का विषय हमारे लिए भी होता है अग्रज अनिल जी का रिमूव करना लेकिन कुछ कष्ट भी जो कि यह कार्य हम नहीं कर पाए।
अब धर्मार्थ के सभी वयोवृद्ध गुरूजनों से प्रार्थना के साथ आशा करता हूँ कि इस धर्मार्थ को पुराने ढंग से चलाने की कृपा करें।
आप सबके ज्ञान वर्षा से ऐसा प्रतीत ही न हो कि कभी धर्मार्थ में कोई विघटन या प्रलय आई थी, आप सबसे मेरा यह करबद्ध निवेदन है🙏�🙏�🙏�।
[10/15, 09:48] P Omish Ji: अग्रज विद्यानिधि जी को सादर प्रणाम 🙏�🙏�
इस परिवार के दो खण्ड होने के कारण शायद अनिल जी ही हो इसलिए मंगला भैया को यह कठिन निर्णय लेना पडा हो।🙏�🙏
[10/15, 10:03] P Omish Ji: आपसे निवेदन 🙏�🙏�
आप अपने ज्ञान से अभिसिंचित करते रहे।
अब पारदर्शिता तो हो ही चुकी शायद, जो कुछ कमी है वो भी पूरी हो जाएगी आप सबके आशीर्वचनो से🙏�🙏�🙏
[10/15, 10:40] P ss: आप सभी को शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
   
    आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा
के रुप में मनाई जाती है ऐसा कई वर्षों 
बाद हो रहा है जब शरद पूर्णिमा और शनिवार का संयोग
बना है. इस दिन पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण इसे
महापूर्णिमा भी कहते हैं. इस दिन चन्द्रमा 16 कलाओं से
युक्त होता है, इसलिए इस दिन का विशेष महत्व बताया
गया है.

इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था. मान्यता है इस
रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस
दिन खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।

~~ दिल से बोलो जी राधे राधे ~~
[10/15, 10:49] P ss: वरं न राज्यं न कुराजराज्यं
वरं न मित्रं न कुमित्रमित्रम् ।
वरं न शिष्यो न कुशिष्यशिष्यो
वरं न दारा न कुदारदाराः ।

एक बेकार राज्य का राजा होने से यह बेहतर है की व्यक्ति किसी राज्य का राजा ना हो.
एक पापी का मित्र होने से बेहतर है की बिना मित्र का हो.
एक मुर्ख का गुरु होने से बेहतर है की बिना शिष्य वाला हो.
एक बुरीं पत्नी होने से बेहतर है की बिना पत्नी वाला हो.।

🌺🌻जय श्री राधे🌻🌺
[10/15, 10:59] P ss: परमात्मा शब्द नही जो तुम्हे
     किताब में मिलेगा..
परमात्मा मूर्ति नही जो तुम्हे
      मंदिर में मिलेगा..
परमात्मा इंसान नही जो तुम्हे
      समाज में मिलेगा..
"परमात्मा तुम स्वंय हो जो तुम्हे..
   अपने भीतर मिलेगा"
[10/15, 11:03] P ss: धर्मार्थ परिवार के सभी आदरणीय को सादर चरण स्पर्श एवं यथोचित अभिवादन ग्रुप में सेवा का अवसर देने के लिए मैं ग्रुप के समस्त विद्वानों का आभार प्रकट करता हूं जिसमें सबसे अधिक आभारी मैं श्री मंगला जी का हूं क्योंकि सबसे पहले मैं मंगला जी को जाना उसके बाद  को इसलिए इस जगह यह बात चरितार्थ होती है कि गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपनो गोविंद दियो बताए इसलिए श्री मंगला जी का बार बार नमन🙏🏻
[10/15, 11:06] P ss: उपरोक्त में कुछ त्रुटियां थी इसलिए पुनः भेजा जा रहा ह🙏🏻ै धर्मार्थ परिवार के सभी आदरणीय को सादर चरण स्पर्श एवं यथोचित अभिवादन l ग्रुप में सेवा का अवसर देने के लिए मैं ग्रुप के समस्त विद्वानों का आभार प्रकट करता हूं l जिसमें सबसे अधिक आभारी मैं श्री मंगला जी का हूं क्योंकि सबसे पहले मैं मंगला जी को जाना उसके बाद  धर्मार्थ ग्रुप को  इसलिए इस जगह यह बात चरितार्थ होती है कि 👉🏻गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपनो गोविंद दियो बताएl🙏🏻 इसलिए श्री मंगला जी का बार बार नमन🙏🏻
[10/15, 14:14] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: धर्मार्थ परिवार में उपस्थित आप सभी गुरुजनों को बालक का दंडवत स्वीकार हो और धर्मार्थ परिवार के प्रति  समर्पण भाव के लिये भैया शिव शंकर जी को हृदय से नमन,लल्ला ओमीश जी राजकुमार जी बरेती के ही हैं वहीं मेरी  सादी भी हुई है ! 🌷🙏🌷
[10/15, 14:28] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: आचार्य प्रवर श्रीमान विद्यानिधि जी को सादर प्रणाम, भैया जी मैंने अनिल जी को कुछ दिनों के लिए निकाला है 1 हफ्ते बाद वह पुनः आएंगे वह भले ही इस समय संघ हमें नहीं है लेकिन हमारे हृदय में और हमारे परिवार के मन हृदय में बसते हैं🌷🙏🌷
[10/15, 15:20] P Omish Ji: *राधे राधे*- आज का भगवद चिंतन,
              15-10-2016
🌺        शरद पूर्णिमा वह पावन दिवस जब भगवान श्रीकृष्ण ने वृन्दावन में असंख्य गोपिकाओं के साथ "महारास" रचाया था। शास्त्रों में कहा गया कि "रसो वै स:" अर्थात परमात्मा रसस्वरूप है अथवा जो रस तत्व है, वही परमात्मा है।
🌺        श्रीकृष्ण द्वारा उसी आनंद रूप रस का गोपिकाओं के मध्य वितरण ही तो "रास" है। यानि एक ऐसा महोत्सव जिसमें स्वयं ब्रह्म द्वारा जीव को अपने ब्रह्म रस में डुबकी लगाने का अवसर प्रदान किया जाता है। जीवन के अन्य सभी सांसारिक रसों का त्याग कर जीव द्वारा ब्रह्म के साथ ब्रह्मानन्द के आस्वादन का सौभाग्य ही "महारास" है।
🌺         काम तभी तक जीव को सताता है जब तक जीव जगत में रहे, जगदीश की शरण लेते ही उसका काम स्वतः गल जाता है। अतः "महारास" जीव और जगदीश का मिलन ही है। इसीलिए श्रीमद् भागवत जी में कहा गया कि जो काम को मिटाकर राम से मिला दे, वही "महारास" है।

🌺आज ही  शरद पूर्णिमा  है 🌺
[10/15, 18:20] रामकुमार: सूर्य   के  दिब्य  तेज  के  समान
    प्रकाश  वान  परम्  तेजस्वी
               श्रीमान्
सोख  गुरु  जी को  मै 
                                बारम्बार 🙏 प्रणाम करता  हूँ            राधे  राधे 

सिंहासने मणि-मयूख-शिखा-विचित्रे विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम्| बिम्बं वियद् विलसदंशुलता-वितानं तुगोंदयाद्रिशिरसीव
सहस्र-रश्मेः |

अर्थात् :
मणियों की किरण-ज्योति से सुशोभित सिंहासन पर, आपका सुवर्ण कि तरह उज्ज्वल शरीर, उदयाचल के उच्च शिखर पर
आकाश में शोभित, किरण रुप लताओं के समूह वाले सूर्य मण्डल की तरह शोभायमान हो रहा है|
[10/15, 20:13] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: लड़का और एक लड़की
उम्र का कोई पता नहीं
उनकी त्वचा से उम्र का पता नहीं चल रहा था
कपड़े थे
गंदे
पर दाग अच्छे थे
जैसे कि एक गरीब के होने चाहिए
मांग रहे थे
अपने जीने का हक
अठन्नी, रुपया, दो रुपया
उन्हें देख कोई सिकोड़ता था
मुंह
तो कोई अपनी जेब
कोई देना चाहता था बिना भेदभाव किये
“चोकलेट” और करना चाहता था
“चोकलेटबाजी”
वे भूखे थे
उन्हें नहीं पता था
आत्मा और परमात्मा के बारे में
उन्हें नहीं पता था
माता-पिता के बारे में
वे दुनिया में अकेले थे
उन्हें किसी से मोह नहीं था
उन्हें सिर्फ भूख लगी थी
वे नंगे नहीं थे
बस भूखे थे
[10/15, 20:16] P Omish Ji: भगवानपि ता रात्रि शरदोत्फुल्लमल्लिका।
वीक्ष्यरन्तुंमनश्चक्रे योगमाया मुपाश्रित:।।
शरद्पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें 🙏�💐💐💐🙏
[10/15, 20:22] प विजयभान: सर्वेभ्यो नमो नमः शुभ रात्रि🙏🌹🙏
कहते हैं कि शादी के लिए जोड़ियां ईश्वर ही बनता है। पर ईश्वर की बनाई जोड़ियां एक ही जाती की क्यों होती हैं?  क्या ईश्वर जातिवादी है ? या फिर जातिवादियों ने ही ईश्वर बनाया है।
  आदरणीय विदुत जनों से निवेदन है कि इस विषय पर अपने अपने विचार प्रकट करने की कृपा करें कारण की यह प्रश्न मुझे पर्शनल मैं भेजा गया है और में अभी लिखने मैं असमर्थ हूँ । स्वास्थ्य ठीक नहीं है।
[10/15, 20:55] P anuragi. ji: उपवन में बहारें आती हैं
  हर चीज़ सुहानी होती है
फूलों की हसीं का क्या कहना
काँटों पे जवानी होती है
जो प्यार में हो जाते हैं विकल
उनसे ये निवेदन करना है
जब दर्द पुराना होता है
तब प्रीति सयानी होती है।

बाबा श्री के स्वागत को सम्पूर्ण ( अखंड ) धर्मार्थ तत्पर है
[10/15, 21:35] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: प्रश्न-: अगर किसी जजमान द्वारा भगवान को पूजन के समय चढ़ाया हुआ पैसा जजमान ही उठाकर रख ले अपने पास तो उसका क्या प्रायश्चित लगता है, अगर कुछ लिखित प्रमाण हो तो गुरूजनों द्वारा मैं समाधान चाहूंगा बहुत ही आवश्यक विषय है यह मेरे ही एक जजमान हैं वह चढ़ाया हुआ पैसा उठा कर के रख लेते हैं🌷🙏🌷
[10/15, 22:24] पंशिवाकान्त: देवे दत्वा तु दानानि देवे दत्वा तु दक्षिणाम्।तत्सर्वं बाह्मणं दद्यादन्यथा विफलं भवेत्।।

महर्षि वैदिक ब्राह्मण संघके सौजन्य से।
[10/15, 22:28] ‪+91 81713 59552‬: *🌹🌹शरद पूर्णिमा रास पूर्णिमा कि हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाईयाँ समस्त भक्तो को🌹🌹*

*🌹🌹रास रचो है रास रचो है यमुना किनारे सखी रास रचो है🌹🌹*

*🌹🌹चलो सखी देखे आज मदन गोपाल  ,   जहाँ यमुना के तट पे  नाचे गोपि संग मे🌹🌹*

*🌹🌹राधे कृष्ण प्रेम रस प्रचार मंडल वृन्दावन🌹🌹*
[10/15, 23:06] P Omish Ji: चारुचंद्र की चंचल किरणें,
खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है
अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती,
हरित तृणों की नोकों से,
मानों झूम रहे हैं तरु भी,
मन्द पवन के झोंकों से॥

राष्ट्रकवि मैथिलिशरण गुप्त की इन अनुपम पंक्तियों से शरद ऋतुू का आगाज.....।

आप सभी को शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें
😊😊😊😊😊😊😊😊😊
[10/16, 17:09] महाकाल जी: सभी सन्त विद्वानों को सायं कालीन नमन स्वीकार हो और सभी से निवेदन भी उचित उपस्थिति भी बनाये मैं एक ही बात कहता हूँ की मंगला जी जो छः महीने पहिले था धर्मार्थ उसी तरह इसे भी निर्विवाद  बने सभी विद्वानों से निवेदन करेंगे की ग्रुप को बिना किसी ईर्ष्या दोष के बालक मंगला का सहयोग दे और मंगला जी भी श्रेष्ठ विद्वानों को उचित सम्मान दे यही आग्रह और शुभ कामना के साथ सबको नमन करते हुए आशीर्वाद के अभिलाषी है
[10/16, 22:52] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: आज के समाज में बहुत नफरत बढ़ गई है मैंने देखा की कुछ लोग अपनी पत्नी बच्चे के अलावा बाकी सबको दुश्मन के रूप में देखने लगे हैं कुछ लोगो का व्यवहार देख कर मुझे नही लगता की वो अपने माँ बाप को भी अपना जन्मदाता मानते होंगे,,,वो माता पिता भी ऐसी औलाद को पैदा करके अवश्य ही पछिता रहे होंगे,,,कुछ लोग दो चार बच्चे पैदा करके अपने आपको माँ बाप समझने लगते हैं उनके लिए मै एक बात कहूंगा सायद उन्हें मेरी बात अच्छी नही लगेगी तुम माँ बाप तभी कहलाओगे जब तुम अपनी संतान को अच्छा संस्कार देने में सफल हुए वरना आपने निकम्मी संतान पैदा करके समाज के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है,,, क्योंकि इस दुनिया को नफरत करने वाले लोगों की जरुरत नही है नफरत से दुनिया नही चलेगी ,,,,भला किसी का कर ना सको तो बुरा किसी का मत करना।फूल नही बन सकते हो तो काटे बनकर मत रहना।।किसी ने ऐसा कहा है क्योंकि इसी की समाज को जरुरत है।।🌷🙏🌷
[10/16, 23:30] ‪+91 88783 97946‬: एक *पत्थर* लो और एक *कुत्ते* को मारो। *कुत्ता* भाग जायेगा *डर* से।

अब वही *पत्थर* लो और *मधुमक्खी* के *छत्ते* पर दे मारो। आपका *हाल* क्या होगा?

*पत्थर* वही है *आप* भी वही हो। *फर्क* इतना है
*एकता* का ॥ *एकता* में ही *शक्ति* है। हम मे *एकता* नही तो ना ही हमारा *देश* बदलेगा ओर ना ही हमारा अपना *समाज*
   
       🙏जय माता दी🙏
[10/17, 07:12] P ss: 🐾☀🐾
*✍“जीवन में खुशी का अर्थ लड़ाइयाँ लड़ना नहीं,बल्कि उन से बचना है।*
        *कुशलतापूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है।”*
      *🌺क्योकि🌹*
*"अभिमान"की ताकत फरिश्तो को भी"शैतान"बना देती है,और*
*"नम्रता"साधारण व्यक्ति को भी "फ़रिश्ता"बना देतीहै।*
       *🌹हँसते रहिये हंसाते रहिये🌹*
         *🌹सदा मुस्कुराते रहिये🌹*
                    *🐚☀🐚*
                *🐾स्नेह वंदन🐾*
                 *🙏सुप्रभात🙏*
*🙏आपका दिन शुभ एवं मंगलमय हो🙏*
                           .
[10/17, 07:30] P ss: श्रीराम जय राम जय जय राम

सब कर मत खगनायक एहा।
करिअ राम पद पंकज नेहा॥
श्रुति पुरान सब ग्रंथ कहाहीं।
रघुपति भगति बिना सुख नाहीं॥

श्रीरामचरितमानस-उत्तरकाण्ड

भावार्थ:- हे पक्षीराज गरुड़ जी! शिवजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, सनकादि और नारद आदि ब्रह्मविचार में परम निपुण जो मुनि हैं उन सबका मत यही है कि श्री रामजी के चरणकमलों में प्रेम करना चाहिए। श्रुति, पुराण और सभी ग्रंथ कहते हैं कि श्री रघुनाथजी की भक्ति के बिना सुख नहीं है।
[10/17, 20:24] P Omish Ji: संकलित👇�👇�

निरुक्त वेदांग==निरुक्त वेदपुरुष का श्रोत्र है---"निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते ।" सम्प्रति उपलब्ध निरुक्त यास्ककृत है । इस निरुक्त का आधार ग्रन्थ निघण्टु है । इसका कर्त्ता भी यास्क ही माने जाते है । इसे वैदिक कोष माना जाता है ।
निघण्टु में पाँच अध्याय है । इन्हें तीन भागों में बाँटा गया है । इसके आदि के तीन अध्यायों को (1.) "नैघण्टुक-काण्ड", चौथे अध्याय को (2.) "नैगमकाण्ड" (ऐकपदिककाण्ड) और अन्तिम पाँचवे अध्याय को (3.) "देवतकाण्ड" कहा जाता है ।
इसके प्रथम अध्याय में 17 खण्ड, 407 शब्द, द्वितीय में 22, 452 शब्द, तृतीय में 30, 402 शब्द, चतुर्थ में 3, 281 शब्द और पञ्चमाध्याय में 6 खण्ड, 151 शब्द हैं । इस प्रकार निघण्टु में वेद के कुल 1863 शब्दों का संग्रह है । निघण्टु पर एक ही व्याख्या उपलब्ध होती है--"निघण्टु-निर्वचनम्" । इसके कर्त्ता देवराज यज्वा हैं । इसकी व्याख्या अतीव प्रामाणिक और उपादेय है ।
निरुक्त का महत्त्व
================
व्याकरण और कल्प की तुलना में निरुक्त अधिक महत्त्वपूर्ण है । व्याकरण से केवल शब्द का ज्ञान होता है और कल्प से केवल मन्त्रों के विनियोग का ज्ञान होता है, किन्तु निरुक्त से शब्दों के अर्थ का ज्ञान होता है । अर्थ-ज्ञान के पश्चात् ही यज्ञों में मन्त्रों का विनियोग होता है । अर्थ-ज्ञान के पश्चात् शब्द-ज्ञान सरल हो जाता है ।
निरुक्त का लक्षण
=================
आचार्य सायण के अनुसार निरुक्त का लक्षण हैः---
"अर्थावबोधे निरपेक्षतया पदजातं यत्रोक्तं तन्निरुक्तम् ।"
अर्थः---अर्थ-ज्ञान के विषय में, जहाँ स्वतन्त्र रूप से पदसमूह का कथन किया गया है, वह "निरुक्त" कहलाता है । यास्क ने स्वयमेव निरुक्त और व्याकरण के सम्बन्ध को स्पष्ट किया हैः---
"तदिदं विद्यास्थानं व्याकरणस्य कार्त्स्न्यम् ।" (निरुक्त--1.5)
इससे ज्ञात होता है कि व्याकरण और निरुक्त का घनिष्ठ सम्बन्ध है । वस्तुतः निरुक्त के ज्ञान के लिए व्याकरण का ज्ञान होना आवश्यक है । यास्क ने आचार्यों को सावधान किया है कि जिसे व्याकरण न आता हो, उसे निरुक्त न पढायें--
"नावैयाकरणाय.....निर्ब्रूयात् ।" (निरुक्त--2.1.4)
निरुक्त का प्रतिपाद्य विषय है---वैदिक शब्दों का निर्वचन । यह निरुक्ति पाँच प्रकार से होती हैः---
"वर्णागमो वर्णविपर्ययश्च द्वौ चापरौ वर्णविकारनाशौ ।
धातोस्तदर्थातिशयेन योगस्तदुच्यते पञ्चविधं निरुक्तम् ।।"
(1.) वर्णागम के द्वारा---शब्द के निर्वचन के समय यदि किसी अन्य वर्ण की आवश्यकता पडे तो उसे ले लेना चाहिए, मूल धातु में वह वर्ण न हो तो भी , जैसे--वार--द्वार ।
(2.) वर्णविपर्यय के द्वारा---शब्द के निर्वचन में वर्णों को आगे या पीछे उद्देश्य के अनुसार कर लेना चाहिए । जैसे--द्योतिष्---ज्योतिष् । कसिता---सिकता ।
(3.) वर्णविकार के द्वारा---मूल शब्दों के उच्चारण में परिवर्तन करके, जैसे---वच--उक्तिः ।
(4.) वर्णनाश के द्वारा---मूल धातु में किसी वर्ण का लोप करके---अस्---स्तः, दा---प्रत्तम्, गम्--गत्वा, राजन्---राजा, गम्--जग्मुः, याचामि--यामि ।
(5.) धातु का अर्थ बढा कर---धातु का उससे भिन्न अर्थ के साथ योग ।
निरुक्त का परिचय
==================
निरुक्त में कुल 14 अध्याय हैं । अन्तिम के दो अध्याय परिशिष्ट माने जाते हैं । निरुक्त के भी तीन ही विभाग किए गए हैंः--
(1.) नैघण्टुक-काण्ड
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निरुक्त के भी प्रारम्भ के तीन अध्यायों को "नैघण्टुक-काण्ड" ही कहा जाता है । इसके प्रथम अध्याय में यास्क ने पद के चार भेद माने हैं--नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात । निरुक्त के द्वितीय और तृतीय अध्यायों में पर्यायवाची शब्दों का निर्वचन किया गया है । इनमें 1341 पद हैं, जिनमें यास्क ने 350 पदों की निरुक्ति की है ।
(2.) नैगमकाण्ड
==================
निरुक्त के चौथे-पाँचवें अध्याय को "नैगमकाण्ड" कहा जाता है । इसे "ऐकपदिक" भी कहते हैं । इन अध्यायों में तीन प्रकार के शब्दों का निर्वचन हुआ हैः--
(क) एक अर्थ में प्रयुक्त अनेक शब्द (पर्यायवाची शब्द), (ख) अनेक अर्थों में प्रयुक्त एक शब्द (अनेकार्थक शब्द), (ग) ऐसे शब्द, जिनकी व्युत्पत्ति (संस्कार) ज्ञात नहीं है (अनवगतसंस्कार शब्द) । इनमें कुल 179 पद हैं ।
(3.) दैवतकाण्ड
==============
निरुक्त के सात से बारह अध्यायों को "दैवतकाण्ड" कहा जाता है । इस काण्ड में वेद में प्रधान रूप से स्तुति किए गए देवताओं के नामों का निर्वचन है । इनमें कुल 155 पद हैं ।
इस प्रकार 12 अध्यायों में कुल 1675 पद हैं ।
निरुक्त में तीन प्रकार के देवता कहे गए हैं---
(क) पृथिवीस्थानीय देवता---अग्नि ।
(ख) अन्तरिक्षस्थानीय देवता---इन्द्र या वायु ।
(ग) द्युस्थानीय देवता--सूर्य ।
(4.) परिशिष्ट
=================
निरुक्त के तेरहवें और चौदहवें अध्याय को परिशिष्ट माना जाता है । इनमें अग्नि की स्तुति और ब्रह्म की स्तुति है ।

निरुक्त का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है कि सभी नाम शब्द धातुज हैं--"सर्वाणि नामानि आख्यातजानि ।"
बारह निरुक्तकार
==============
दुर्गाचार्य ने 14 निरुक्तकारों का उल्लेख किया है--निरुक्तं चतुर्दशप्रभेदनम् । निरुक्त में स्वयं यास्क ने 12 निरुक्तकारों का उल्लेख किया हैः---(1.) अग्रायण, (2.) औपमन्यव, (3.) औदुम्बरायण, (4.) और्णवाभ, (5.) कात्थक्य, (6.) क्रौष्टुभि, (7.) गार्ग्य, (8.) गालव, (9.) तैटीकि, (10.) वार्ष्यायणि, (11.) शाकपूणि, (12.) स्थौलाष्ठीवि । तेरहवें निरुक्तकार स्वयम् आचार्य यास्क हैं । चौदहवाँ निरुक्तकार कौन है, इसका उल्लेख नहीं है ।
वेदार्थ के अनुशीलन के आठ पक्ष---
=========================
(क) अधिदैवत, (ख) अध्यात्म, (ग) आख्यान-समय, (घ) ऐतिहासिकाः, (ङ) नैदानाः, (च) नैरुक्ताः, (छ) परिव्राजकाः, (ज) याज्ञिकाः ।
टीकाकार
=============
निरुक्त पर अनेक व्याख्याएँ लिखी गईं हैं---
(1.) दूर्गाचार्यः--
====================
इन्होंने निरुक्त पर एक वृत्ति लिखी थी, जिसे दुर्गवृत्ति कहा जाता है । यह विद्वत्तापूर्ण और प्रामाणिक टीका है । इनके बारे में बहुत अल्प जानकारी मिलती है । ये कापिष्ठल शाखाध्यायी वसिष्ठगोत्री ब्राह्मण थे । अनुमान के आधार पर ये गुजरात अथवा काश्मीर के वासी थे । इस वृत्ति की सबसे प्राचीन हस्तलिखित प्रति 1444 वि.सं. की है ।
(2.) स्कन्द महेश्वरः---
===================
ये दुर्गाचार्य से प्राचीन टीकाकार हैं । इनकी टीका लाहौर से प्राप्त हुई है । यह टीका अतीव पाण्डित्यपूर्ण है । इन्होंने ऋग्वेद पर एक भाष्य लिखा था । ये गुजरात के वल्लभी के रहने वाले थे ।
(3.) निरुक्त-निचय--इसके रचयिता वररुचि हैं ।
[10/17, 20:37] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: विशेष सूचना
👇👇👇👇👇👇

धर्मार्थ वार्ता समाधान में उपस्थित सभी श्रेष्ठ विद्युत गुरुजनों को सादर चरण वंदन करते हुए एक विशेष सूचना दे रहा हूं!
आप सभी गुरुजन सदस्यों से मुझे सहयोग की सख्त जरूरत है !
कल कुछ नए विद्वान संघ में जुड़ रहे हैं और साथ ही साथ कुछ विदूषी देवीयों का भी समायोजन संघ मे होने जा रहा है! संघ में संयमित एवं शिष्टा चार से परिपूर्ण पोस्टों का आगमन होगा तो यह बालक अपने आप को धन्य समझेगा!
[10/17, 21:49] रामकुमार: संघ के शिखर पुरुष सोख गुरु जी को प्रणाम और अनुरागी भैया को विजय भैया को भैया विद्यानिधि जी को और माननीय मंगलेश्वर जी को और दिनानाथ गुरु जी को प्रणाम करते हुए बहुत ही आभार आप सबका जो पुनः हमें अपने परिवार में आने का अवसर प्राप्त हुआ और संघ के सभी दिव्य विभूतियों से आशा यही है कि इस संघ को इतने उच्च शिखर पर पहुंचाने की महती कृपा करें आप सब, की देखने वाले यह देखें यह संघ को अकेला छोड़ कर , ये सोच कर जाते हैं यहां से,
की रहने वाले हर एक व्यक्ति इस संघ के हर एक अंग है और आप सब का आशीर्वाद प्राप्त होता रहे संघ को और हम जैसे बालकों को संस्थापक महोदय को क्योंकि आप सब के आशीर्वाद का और सहयोग का इस समय बहुत ही महत्वपूर्ण है बहुत ही आवश्यकता है आप सभी भाइयों से करबद्ध प्रार्थना है कि आप हमारा सहयोग करें और हम अपने परिवार को जितने भी सदस्य हैं सब कुशल पूर्वक से रहते हुए ज्ञान की वार्ता करें इन्हीं शब्दों के साथ
🙏🌺🙏 जय महाकाल🙏🌺🙏
मै बहुत ही अपने आप को सौभाग्य साली मानता हूँ की आप सब का प्यार और आशीर्वाद  मिल रहा है
[10/17, 21:51] जग्या: मंगला जी आपके सफल प्रयास की हम ह्रदयस्थल से शुभकामना करते है।
[10/17, 21:54] रामकुमार: बहुत-बहुत धन्यवाद अगर आप सबका आशीर्वाद और प्यार नहीं होता हम लोगों के साथ तो कुछ भी नहीं कर पाते विद्यानिधि जी भैया योग्यानंद जी और अनुज पराशर जी आप सबका साथ ही है जो इस तरीके से हम सब करने में सफल होते हैं बहुत बहुत धन्यवाद आप सबका🙏🌺🙏
[10/17, 22:17] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: भैया विद्यानिधि जी रामकुमार जी अनिल भैया जी के बड़े भाई साहब के साले हैं संयोग से आज वह अनिल जी के यहां गए हैं उनके मोबाइल को उन्ही ने इस्तेमाल किया है👌
[10/17, 22:18] P anil. mumba: 

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जब भी कोई मुश्किल हो रामचरितमानस की ये चौपाई जरूर पढ़े

धर्मडेस्क. उज्जैन | May 29,2012 3:25 PM IST

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जानउं सदा भरत कुलदीपा। बार-बार मोहि कहेउ महीपा कसे कनकु मनि पारिखि पाएं। 

 पुरुष परिखिअहिं समयं सुभाएं। अनुचित आजु कहब अस मोरा।

सोक सनेहं सयानप थोरा। सुनि सुरसरि सम पावनि बानी। 

भई सनेह बिकल सब रानी। सोना कसौटी पर कसे जाने पर रत्न पारखी। 

रामचरित मानस में मिले वर्णन के अनुसार सोना कसौटी पर कसे जाने पर रत्न पारखी के मिलने पर और वैसे ही किसी भी इंसान की पहचान परीक्षा के समय पर ही होती है। बात एकदम सही भी है क्योंकि प्यार और दुख में अच्छे-अच्छे लोग भी अपना सयानापन या विवेक भूल जाते हैं। तुलसीदासजी ने बहुत ही सुंदर बात कही है कि असली टैलेंट की या धैर्य की परीक्षा हमेशा विपरीत समय में ही होती है जो इंसान परिस्थितियों की दुहाई देकर हार नहीं मानता है। 
कठोर परिस्थितयों में भी धैर्य के साथ निर्णय लेता है वही अपने लक्ष्य तक पहुंच पाता है। यहां कौसल्या जी भरत जी के शील, गुण आदि की प्रशंसा करते हुए कह रही हैं कि ये भरतजी की परीक्षा का समय है उन्हें धैर्य से काम लेना चाहिए। तुलसी लिखते हैं कि कौसल्याजी सीताजी की मां से दुख भरे हृदय से कहती है। 
राम-लक्ष्मण और सीता वन में जाएं। इसका परिणाम तो अच्छा ही होगा, बुरा नहीं। मुझे तो भरत की चिंता है। ईश्वर के अनुग्रह और आपके आर्शीवाद से मेरे पुत्र और बहुए गंगा के समान पवित्र है। मैं राम की कसम खाकर सत्य भाव से कहती हूं। भरत के शील, गुण, नम्रता, बड़प्पन, भाईपन बहुत ज्यादा है। उनके अच्छेपन का वर्णन करने में सरस्वतीजी की बुद्धि भी हिचकती है। 
जय महाँकाल🙏🏼🕉🙏🏼
[10/17, 22:20] P anil. mumba: ( अर्जुन उवाच )
चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् |
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ||

अर्थात् :
( अर्जुन ने श्री हरि से पूछा ) हे कृष्ण ! यह मन चंचल और प्रमथन स्वभाव का तथा बलवान् और दृढ़ है ; उसका निग्रह
( वश में करना ) मैं वायु के समान अति दुष्कर मानता हूँ |

🙏🏼🎊🙏🏼
[10/17, 22:22] P anil. mumba: आस्तां तव स्तवनमस्त-समस्त-दोषं त्वत्सड्कतथाऽपि जगतां दुरितानि हन्ति| दूरे सहस्र किरणः कुरुते प्रभैव पध्माकरेषु जलजानि
विकासभाज्जि||

अर्थात् :
सम्पूर्ण दोषों से रहित आपका स्तवन तो दूर, आपकी पवित्र कथा भी प्राणियों के पापों का नाश कर देती है| जैसे, सूर्य तो दूर,
उसकी प्रभा ही सरोवर में कमलों को विकसित कर देती है|
🙏🏼⚜🙏🏼
[10/17, 22:30] P anil. mumba: 🙏🏼🌷🙏🏼 परम आदरणीय श्रीमान विद्यानिधि भैया जी यह सूचना मैं आपको देना चाहता हूं कि यह जो शुक्ला जी हैं हमारे बड़े भाई  जी के साले लगते हैं रिश्ते में और मंगला जी को जब मैं ग्रुप से बाहर हुआ तो इनसे कहकर  छुड़वाया और आज मैं घर पर आया हूं मुंबई से तो यह आए हुए हैं घर पर तो मोबाइल हमारा स्विच ऑफ था चार्जिंग में लगा था और पुनः परिवार में सम्मिलित होने की खुशी इतनी हुई थी कि मैं अपने आप को रोक नहीं सका और इंहीं के मोबाइल से लिख करके भेज दीया अन्यथा न लिया जाए और त्रुटि के लिए अगर गलती लिखावट में हुई होगी तो कृपा करके छमा करिएगा आप सब का छोटा अनुज अनिल पांडे जय महाकाल🙏🏼🌷🙏🏼
[10/18, 11:34] ‪+91 80091 04631‬: राधे-राधे ।
🌺🙏🌺

मूलाधारस्य वहवयात्म तेजोमध्ये व्यवस्थिता।
जीवशक्ति: कुण्डलाख्या प्राणाकारण तैजसी।।
#अर्थात :
कुण्डलिनी मूलाधार चक्र में स्थित आत्माग्नी तेज के मध्य में स्थित है। वह जीवनी शक्ति है। तेज और प्राणाकार है।

मूलाधारे मूलविद्दया विद्युत्कोटि समप्रभासम्।
सूर्यकटि प्रतीकाशां चन्द्रकोटि द्रवां प्रिये।।  ( ज्ञानार्णव तंत्र )

#अर्थात मूलाधार चक्र में विद्युत प्रकाश ही करोड़ों किरणों वाला, करोड़ों सूर्यो और चन्द्रमाओं के प्रकाश के समान, कमल की डण्डी के समान अविच्छिन्न तीन घेरे डाले हुए मूल विद्या रूपिणी कुण्डलिनी स्थित है। वह कुण्डलिनी परम प्रकाशमय है, अविच्छिन्न शक्तिधारा है और तेजोधारा है।

#घेरण्ड संहिता में कुण्डलिनी को ही आत्मशक्ति या दिव्य शक्ति व परम देवता कहा गया है।

मूलाधारे आत्मशक्ति: कुण्डली परदेवता।
शमिता भुजगाकारा, सार्धत्रिबलयान्विता।।

#अर्थात मूलाधार में परम देवी आत्माशक्ति कुण्डलिनी तीन बलय वाली सर्पिणी के समान कुण्डल मारकर सो रही है।

महाकुण्डलिनी प्रोक्त: परब्रह्म स्वरूपिणी।
शब्दब्रह्ममयी देवी एकाऽनेकाक्षराकृति:।।

#अर्थात कुण्डलिनी शक्ति परम ब्रह्मा स्वरूपिणी, महादेवी, प्राण स्वरूपिणी तथा एक और अनेक अक्षरों के मंत्रों की आकृति में माला के समान जुड़ी हुई बतायी जाती है।

कन्दोर्ध्व कुण्डली शक्ति: सुप्ता मोक्षाय योगिनाम्।
बन्धनाय च मूढ़ानां यस्तां वेति से योगिवित्।।

#अर्थात कन्द के ऊपर कुण्डलिनी शक्ति अवस्थित है। यह कुण्डलिनी शक्ति सोई हुई अवस्था में होती है। इस कुण्डलिनी शक्ति के द्वारा ही योगिजनों को मोक्ष प्राप्त होता है। सुख के बन्धन का कारण भी कुण्डलिनी है। जो कुण्डलिनी शक्ति को अनुभाव पूर्ण रूप से कर पाता है, वही सच्चा योगी होता है।
[10/18, 11:42] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ नियमावली(२०१६)

ॐसच्चा नामधेयाय श्री गुरवे परमात्मने नमः

~~~~~~~~~~~~|
जिसका पालन करना "धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ"के सभी विद्वत आचार्यसदस्यों को अनिवार्य होगा।
धर्मार्थ वा०स० संघ-नियमावली
_______________________
१.सर्व प्रथम संघ के सभी आदरणीय श्रेष्ठ विद्वत आचार्य गणों से वार्ता करते समय उनके नाम के आगे सम्मान सूचक शब्द अवश्य लगायें।
२.श्रेष्ठ आचार्य गणों द्वारा छोटों को भी उचित सम्मान से ही संबोधित किया जाये।
३.आपसी शिष्टाचार एवम्
सौम्यता बनाते हुये सब से प्रेम पूर्वक सदाचार का परिचय दें |
४.किसी भी सदस्य के प्रति हीन भावना न रखते हुये सब को अपने परिवार का अभिन्न अंग माने।
५.किसी भी विद्वत सदस्य के ऊपर कोई भी ऐसी टिप्पणी न करें जिससे किसी का मन आहत हो या किसी को दुःख पहुँचे।
६.संघ के नाम एवम् प्रोफाइल फोटो से किसी प्रकार की छेड़खानी न करें यह कार्य संस्थापक महोदय एवं संचालक समिति के अंतर्गत आता है।
७.किसी भी प्रकार के अनावश्यक मैसेज न भेजें,जैसे चुटकुले, शायरी,कॉमेडी या 'ये मैसेज २० लोगो को शेयर करो शाम तक अच्छी खबर मिलेगी नहीँ तो आपका अनिष्ट होगा'_ इस प्रकार के मैसेज भेजना दण्डनीय अपराध माना जायेगा।
८.संघ में मात्र केवल सनातन धर्म,आध्यात्म,पुराण,
वेदोपनिषद् ,समस्त सनातन धर्म से सम्बंधित संग्रह ही भेजें। वह भी लिखित इमेज लेख न हो |
९.किसी भी सदस्य के प्रति हास परिहास,आपत्तिजनक टिप्पणी न करें,जिससे किसी भी प्रकार का विवाद हो।
१०.किसी भी सदस्य को अपनी विद्वता से निचा दिखाने का प्रयास न करें,बल्कि अपने ज्ञान को प्रेम पूर्वक प्रस्तुत करें।
११.किसी भी प्रश्न के ऊपर चल रही वार्ता समाधान  के वक्त दूसरे पोस्ट न भेजें |
१२.कोई भी चित्र या वीडियो फोटो भेजना विशेष मुख्य रूप से वर्जित है इसका विशेष ध्यान रखें |किसी भी सदस्य द्वारा इमेज या वीडियो भेजे जाने पर,समिति द्वारा २४ घंटे के लिये तत्काल निष्कासित किया जायेगा |कारण स्पष्ट होने के बाद ही पुन: जोड़ा जा सकता है |
१३.संघ में किसी भी नए अतिथि विद्वान के आने पर उनका समुचित स्वागत अभिवादन करना हम सब के अच्छे शिष्टाचार का परिचायक है |
१४.किसी भी सदस्य से किसी प्रकार की त्रुटि होने पर उनके प्रति अन्य कोई सदस्य न उलझें। उसका समाधान, प्रशासनिक श्रेष्ठ गुरुजनों द्वारा या संघ संस्थापक द्वारा किया जायेगा। यदि किसी को किसी से शिकायत है तो वे संस्थापक महोदय या प्रसाशनिक समिति के किसी भी गुरूजन सदस्यों से पर्सनल एकाउंट में जाकर अपनी बात रख सकते हैं !
१५.अगर अपने निजी कारणों बस कोई भी सदस्य संघ से बाहर होना चाहते हैं तो कृपया सूचना अवश्य देने की कृपा करें।
१६.संघ के नियमो को कुछ और सुदृढ़ बनाने के लिए आप सब अपनी राय दे सकते हैं संस्थापक महोदय के पर्शनल में।
१७."आप सभी विद्वत जन अपने प्रोफाइल में अपनी फोटो व अपना नाम अवश्य लिखें |
१८.कभी कभी मनोविनोद एवं मनोरंजन की वार्ता को अन्यथा न लेकर आनन्द की अनुभूति करें क्यों कि इस भागदौड़भरे जीवन में हसना और हसाना भी बहुत आवश्यक है ! लेकिन हास्य सामाजिक मर्यादा को ध्यान में रखते हुये करें |
१९.संघ में किसी भी पोस्ट को दुबारा पोस्ट करना वर्जित है किसी सदस्य के आग्रह करने पर ही दुबारा पोस्ट भेज सकते हैं |
२०.संघ को और मजबूत बनाने हेतु विशिष्ठ विद्वत जनों की आवश्यकता होती है,अतः जिन विद्वत जनों के सम्पर्क में अच्छे शुमधुर व्यवहार वाले ज्ञानमय ब्राम्हण हों,उन विद्वानों को जोड़ने के लिए संस्थापक महोदय या समिति के गुरू जनों से सम्पर्क कराएं तथा उन्हें संघ के नियमो से भी अवगत कराये |
२१.संघ में वार्ता करने का समय सुबह ५:३०से रात्रि ११:००तक विशेष आवश्यकता पड़ने पर १२:००तक
२२. संघ में किसी भी प्रकार के लिंक भेजना वर्जित है!!!!!!!!
२३.धर्मार्थ वार्ता समाधान की प्रशासनिक-सूची :—
१--स्वतंत्र प्रभार--:श्री मान संतोष मिश्र (शोष जी)
श्रीमान् विजयभान गोस्वामी जी
२--न्यायाधीश--:श्रीमान् सत्यप्रकाश अनुरागी जी
३--उप न्यायाधीश--: यज्ञाचार्य श्रीमान ब्रजभूषण त्रिपाठी जी 
४.संस्थापक एवं अध्यक्ष--: श्रीमान् मंगलेश्वर त्रिपाठी जी
५.उपाध्यक्ष--:श्रीमान् अनिल पाण्डेय जी(मुं.दे.)
६.कोशाध्यक्ष--: श्रीमान दीना नाथ तिवारी जी
७.प्रवक्ता--:श्रीमान् ओमीश जी (कोपरखैरणे महालक्ष्मी मन्दिर)
एवं श्रीमान् विद्यानिधि जी
८.--:सचिव--:श्रीमान पं. आलोक शास्त्री जी
९.उप सचिव--:श्रीमान् कुणाल पाण्डेय जी (कल्याण)
१०.संयोजक--:श्रीमान् सत्यप्रकाश शुक्ल जी (हिमांचल)
श्रीमान संदीप त्रिपाठी जी
श्रीमान शिव शंकर मिश्र जी (प्रयाग)
११.मार्गदर्शक--:श्रीमान् सूर्यमणि मिश्र जी,श्रीमान बलभद्र उपाध्याय जी,श्रीमान शिवाकान्त त्रिपाठी जी,श्रीमान सान्ति भूषण त्रिपाठी जी,
श्रीमान नीरजधर द्विवेदी जी
श्रीमान पवनेश शुक्ल जी
श्रीमान पद्मधर मिश्र जी
१२--:व्यवस्थापक ÷श्रीमान् रवीन्द्र व्यास जी (यू-पी भवन नवी मुंबई) एवं समस्त धर्मार्थ परिवार !
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********************
जयतु गुरुदेव, जयतु भारतम्
[10/18, 12:13] पं राजेन्द्र: किसी भी चीज में बहुत अधिक मोह होना भी परेशानियों का कारण बन जाता है। कई लोग मोह के कारण सही और गलत का भेद भूल जाते हैं। मोह को जड़ता का प्रतीक माना गया है। जड़ता यानी यह व्यक्ति को आगे बढ़ने नहीं देता है, बांधकर रखता है। मोह में बंधा हुआ व्यक्ति अपनी बुद्धि का उपयोग भी ठीक से नहीं कर पाता है। यदि व्यक्ति आगे नहीं बढ़ेगा तो कार्यों में सफलता नहीं मिल पाएगी।

धृतराष्ट्र को दुर्योधन से और हस्तिनापुर के राज-पाठ से अत्यधिक मोह था। इसी कारण धृतराष्ट्र अपने पुत्र दुर्योधन द्वारा किए जा रहे अधार्मिक कर्मों के लिए भी मौन रहे। इस मोह के कारण कौरव वंश का सर्वनाश हो गया।
[10/18, 14:28] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: हिंदू सनातन पद्धति में करवा चौथ सुहागिनों का महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है। इस पर्व पर महिलाएं हाथों में मेहंदीरचाकर, चूड़ी पहन व सोलह श्रृंगार कर अपने पति की पूजा कर व्रत का पारायण करती हैं। 
सुहागिन या पतिव्रता स्त्रियों के लिए करवा चौथ बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत कार्तिक कृष्ण की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। यदि दो दिन की चंद्रोदय व्यापिनी हो या दोनों ही दिन, न हो तो 'मातृविद्धा प्रशस्यते' के अनुसार पूर्वविद्धा लेना चाहिए।
स्त्रियां इस व्रत को पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं। यह व्रत अलग-अलग क्षेत्रों में वहां की प्रचलित मान्यताओं के अनुरूप रखा जाता है, लेकिन इन मान्यताओं में थोड़ा-बहुत अंतर होता है। सार तो सभी का एक होता है पति की दीर्घायु।
*जयतु सनातन धर्म:*🌻🙏🌻
[10/18, 14:40] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: *करवा चौथ पूजन विधि
************************
करवा चौथ की आवश्यक संपूर्ण पूजन सामग्री को एकत्र करें। 
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
* व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'
* पूरे दिन निर्जला रहें।
* दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
* आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।
* पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
* गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
* जल से भरा हुआ लोटा रखें।
* वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
* रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
* गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।
'नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥'
* करवा पर १३बिंदी रखें और गेहूं या चावल के १३दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
* कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
* तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें
* रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
* इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवाचौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।*
[10/18, 17:45] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ लुटाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है !   - 
[10/18, 17:52] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: अपनेपन का मतवाला था भीड़ों में भी मैं
खो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
देखा जग ने टोपी बदली
तो मन बदला, महिमा बदली
पर ध्वजा बदलने से न यहाँ
मन-मंदिर की प्रतिमा बदली
मेरे नयनों का श्याम रंग जीवन भर कोई
धो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
हड़ताल, जुलूस, सभा, भाषण
चल दिए तमाशे बन-बनके
पलकों की शीतल छाया में
मैं पुनः चला मन का बन के
जो चाहा करता चला सदा प्रस्तावों को मैं
ढो न सका
चाहे जिस दल में मैं जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका
दीवारों के प्रस्तावक थे
पर दीवारों से घिरते थे
व्यापारी की ज़ंजीरों से
आज़ाद बने वे फिरते थे
ऐसों से घिरा जनम भर मैं सुखशय्या पर भी
सो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता
मैं हो न सका  
[10/18, 17:56] ‪+91 88783 97946‬: " चंदन " से " वंदन "
ज्यादा शीतल होता हैे,

" योगी " होने के बजाय
" उपयोगी " होना ज्यादा अच्छा हैे,

"प्रभाव " अच्छा होने के बजाय
"स्वभाव " अच्छा होना ज्यादा जरूरी है। !
👏
हँसता हुआ चेहरा आपकी शान
बढ़ाता है

मगर....

हँसकर किया हुआ कार्य आपकी
पहचान बढ़ाता है!!.
     🙏जय माता दी🙏
[10/18, 19:33] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: रामचरितमानस की कुछ चौपाइयां घर या नौकरी से जुड़ी कई परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए बड़ी असरदार मानी गई हैं। इन परेशानियों का सामना हर व्यक्ति दैनिक जीवन में करता है। रामचरित मानस की इन चौपाइयों को बोलने से पहले श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान सहित राम दरबार की पूजा करें। यथासंभव शांत जगह व बनारस यानी काशी की ओर मुंह कर १०८बार बोलें, क्योंकि माना जाता है कि मानस स्वयं काशी विश्वनाथ द्वारा प्रमाणित की गई है। आइए जानते हैं कुछ ऐसी ही चौपाइयों के बारे में जिनके जप से जीवन की कई समस्याएं दूर हो जाती हैं।
🌷धन-दौलत, सम्पत्ति पाने व बढ़ाने के लिए –
जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।
सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।
🌷मनचाही नौकरी पाने या किसी भी कारोबार की सफलता के लिए – 
बिस्व भरण पोषन कर जोई।
ताकर नाम भरत जस होई।।
🌷पुत्र पाने के लिए –
प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।
🌷जहर उतारने के लिए –
नाम प्रभाउ जान सिव नीको।
कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।
🌷नजर उतारने के लिए –  
स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी।
निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।
🌷शादी के लिए –
तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि संवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उर्मिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥
🌷सिरदर्द या दिमाग की कोई भी परेशानी दूर करने के लिए 
– हनुमान अंगद रन गाजे।
हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।
🌷पढ़ाई या किसी भी परीक्षा में कामयाबी के लिए-  
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥
🌷खोई वस्तु या व्यक्ति पाने के लिए-
गई बहोर गरीब नेवाजू।
सरल सबल साहिब रघुराजू।।
🌷हनुमानजी की कृपा के लिए – 
सुमिरि पवनसुत पावन नामू।
अपनें बस करि राखे रामू।।
🌷सभी तरह के संकटनाश या भूत बाधा दूर करने के लिए – 
प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदय आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥
[10/18, 19:55] ‪+91 80091 04631‬: ।।आचार्य गोविन्द वराणसी!!

आज से आरंभ करके दीपावली तक करें ये उपाय, बरसेगा धन -
1. घर के मंदिर में और तुलसी के आगे रोज़ शाम को दिया जलाएं. अगर दोनों जगह नहीं तो एक जगह जलाएं. अगर पूरा महीना न जला सकें, तो सप्ताह के किसी दिन शुरू करके 7 दिन तक रोज़ अवश्य जलाएं.
सभी प्रकार के अशुभ ग्रहों का दुष्प्रभाव समाप्त होगा और सुख-समृद्धि आएगी.
2. सूर्यास्त के समय घर में कच्चा दूध लाकर शहद व गंगाजल मिलाएं। फिर इसके दो भाग कर लें, एक भाग से सभी पारिवारिक सदस्य स्नान करें और दूसरे भाग से सारे घर में छिड़काव करें। ध्यान रखें घर का कोई भी कोना छूटना नहीं चाहिए। जो दूध बच जाए उसे घर के मेन गेट के बाहर धार बना कर फैला दें।
3. कार्तिक स्नान व व्रत करने वालों को नमक व शहद का बहुत कम मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।
4. यथा संभव जौ के आटे का सेवन करें व एक समय भोजन करें।
5. भोजन में तुलसी पत्ते का सेवन जरूर करना चाहिए।
6. किसी केस को या मुकदमे को जीतने के लिए भी दीपक को जलाना शुभ होता हैं. किसी भी मुकदमे में जीत हासिल करने के लिए भगवान के आगे पांच मुखी दीपक जलायें.
7. कार्तिक भगवान को प्रसन्न रखने के लिए भी रोजाना पांच मुख वाला दीपक प्रज्वलित करना चाहिए.
8. लक्ष्मी जी की कृपा हमेशा घर पर बनी रहें. इसके लिए हमें लक्ष्मी जी के समक्ष सात मुख वाला दीपक जलाना चाहिए.
9. अगर आपके घर में आर्थिक तंगी चल रही हैं, तो इस तंगी से मुक्ति पाने के लिए आपको रोजाना अपने घर के देवालय में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए. रोजाना दीपक जलाने से घर की आर्थिक स्थिति में सुधार आ जायेगा.
10. अगर आपके शत्रु आपको हानि पहुँचाने की कोशिश कर रहें हैं तो इसके लिए आपको प्रतिदिन भैरव जी के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए. इस उपाय को करने से आपके शत्रु द्वारा आपको हानि पहुँचाने के लिए किये गए प्रयास सफल नहीं होंगे.
11. अपने पति की लंबी आयु की मनोकामना
[10/18, 23:00] पं रोहित: मंगला भैया आपका यह प्रयास अविस्मरणीय है जिसके कारण धर्मार्थ होना संगठित हो पाया है आपके इस प्रयास की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है आपके श्री चरणों में मेरा कोटि-कोटि नमन तथा समस्त मूर्धन्य विद्वानों से मेरा अनुरोध है दास पर अपनी कृपा बनाए रखें यदि कहीं कोई ग़लतियां हो गलत किया हो तो उन पर पर दाना ना डालते हुए स्पष्ट करें जिससे वह दोबारा ना हो सके आप सभी वरिष्ठ हैं हमें डांटने का आपको पूरा अधिकार है श्री के चरणो में कोटि कोटि नमन
[10/18, 23:31] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: अनुज रोहित जी आपके द्वारा तो कभी भी किसी प्रकार की गलती नहीं हुई है आपने आपने हमेसा अच्छे व्यवहार का परिचय दिया है!
आप जैसे मूर्धन्य विद्वानों का सहयोग मिलता रहा तो निश्चित ही यह संघ एक दिन उच्च शिषर पर होगा! 🌷🙏🌷
[10/19, 06:33] पं संदीप: धर्मार्थपरिवारस्यसर्वभ्योरसिकरसिकेभ्योभूदेवेभ्योनमो-नमःशुभ-प्रभातम्🌺🙏🌺
[10/19, 08:35] रजनीस: 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 सभी गुरुजनों एवं अग्रज भाइयों को कोटिश: प्रनाम.🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽
[10/19, 08:44] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: सर्वेभ्यो श्री गुरूचरणकमलेभ्यो नमो नम:🌷🙏🌷सुप्रभातम् 🌻
जग-जीवन में जो चिर महान,
सौंदर्य-पूर्ण औ सत्‍य-प्राण,
मैं उसका प्रेमी बनूँ, नाथ!
जिसमें मानव-हित हो समान!
जिससे जीवन में मिले शक्ति,
छूटें भय, संशय, अंध-भक्ति;
मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ!
मिट जावें जिसमें अखिल व्‍यक्ति!
दिशि-दिशि में प्रेम-प्रभा प्रसार,
हर भेद-भाव का अंधकार,
मैं खोल सकूँ चिर मुँदे, नाथ!
मानव के उर के स्‍वर्ग-द्वार!
पाकर, प्रभु! तुमसे अमर दान
करने मानव का परित्राण,
ला सकूँ विश्‍व में एक बार
फिर से नव जीवन का विहान!  
[10/19, 19:51] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: आप सभी भूदेवों को सादर नमन एवं करवा चौथ की हार्दिक बधाई 🌷🙏🌷
जीवन विफलताओं से भरा है,
सफलताएँ जब कभी आईं निकट,
दूर ठेला है उन्हें निज मार्ग से ।
तो क्या वह मूर्खता थी ?
नहीं ।
सफलता और विफलता की
परिभाषाएँ भिन्न हैं मेरी !
इतिहास से पूछो कि वर्षों पूर्व
बन नहीं सकता प्रधानमन्त्री क्या ?
किन्तु मुझ क्रान्ति-शोधक के लिए
कुछ अन्य ही पथ मान्य थे, उद्दिष्ट थे,
पथ त्याग के, सेवा के, निर्माण के,
पथ-संघर्ष के, सम्पूर्ण-क्रान्ति के ।
जग जिन्हें कहता विफलता
थीं शोध की वे मंज़िलें ।
मंजिलें वे अनगिनत हैं,
गन्तव्य भी अति दूर है,
रुकना नहीं मुझको कहीं
अवरुद्ध जितना मार्ग हो ।
निज कामना कुछ है नहीं
सब है समर्पित ईश को ।
तो, विफलताओं पर तुष्ट हूँ अपनी,
और यह विफल जीवन
शत–शत धन्य होगा,
यदि समानधर्मा प्रिय तरुणों का
कण्टकाकीर्ण मार्ग
यह कुछ सुगम बन जावे !  
[10/20, 07:53] ‪+91 80091 04631‬: 🙏�राधेराधे🙏�
आयुः प्रजां धनं विद्यां
       स्वर्गं मोक्षं सुखानी च ।
प्रयच्छन्ति तथा राज्यं
      पितरः श्राद्ध तर्पिताः ।।
अर्थात -श्राद्ध से त्रिप्त पितर जो आशिर्वाद देते है वह भगवान भी नही दे सकते लम्बी -आयुः संतान प्राप्ति धन संपदा विद्या स्वर्ग की प्राप्ति मोक्ष अनेक प्रकार के भौतिक सुख और शुभ कामनाओं की पूर्ति -यह सभी आशीर्वाद पितरश्राद्ध करनेसे प्राप्त होते है अतः पितरका श्राद्ध जरूर करना चाहिए
                सुप्रभात      
             🙏�राधेराधे🙏
[10/20, 09:35] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: सर्वेभ्यो श्री गुरूचरणकमलेभ्यो नमो नमः सुप्रभातम् 🌷🙏🌷
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।   
[10/20, 10:09] पं सत्यशु: *इसे 👇🏾पढ़ना ध्यान से*

एक छोटे बालक को आम का पेड बहोत पसंद था। जब भी फुर्सत मिलती वो तुरंत आम के पेड के पास पहुंच जाता। पेड के उपर चढना, आम खाना और खेलते हुए थक जाने पर आम की छाया मे ही सो जाना। बालक और उस पेड के बीच एक अनोखा संबंध बंध गया था।
*
बच्चा जैसे जैसे बडा होता गया वैसे वैसे उसने पेड के पास आना कम कर दिया।
कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया।
आम का पेड उस बालक को याद करके अकेला रोता रहता।
एक दिन अचानक पेड ने उस बच्चे को अपनी और आते देखा। आम का पेड खुश हो गया।
*
बालक जैसे ही पास आया  तुरंत पेड ने कहा, "तु कहां चला गया था? मै रोज़ तुम्हे याद किया करता था। चलो आज दोनो खेलते है।"
बच्चा अब बडा हो चुका था, उसने आम के पेड से कहा, अब मेरी खेलने की उम्र नही है। मुझे पढना है,
पर मेरे पास फी भरने के लिए पैसे नही है।"
पेड ने कहा, "तु मेरे आम लेकर बाजार मे जा और बेच दे,
इससे जो पैसे मिले अपनी फीस भर देना।"
*
उस बच्चे ने आम के पेड से सारे आम उतार लिए, पेड़ ने भी ख़ुशी ख़ुशी दे दिए,और वो बालक उन सब आमो को लेकर वहा से चला गया।
*
उसके बाद फिर कभी वो दिखाई नही दिया।
आम का पेड उसकी राह देखता रहता।
एक दिन अचानक फिर वो आया और कहा,
अब मुझे नौकरी मिल गई है, मेरी शादी हो चुकी है, मेरा संसार तो चल रहा है पर मुझे मेरा अपना घर बनाना है इसके लिए मेरे पास अब पैसे नही है।"
*
आम के पेड ने कहा, " तू चिंता मत कर अभी में हूँ न,
तुम मेरी सभी डाली को काट कर ले जा,
उसमे से अपना घर बना ले।"
उस जवान ने पेड की सभी डाली काट ली और ले के चला गया।
*
आम का पेड के पास कुछ नहीं था वो  अब बिल्कुल बंजर हो गया था।
कोई उसके सामने भी नही देखता था।
पेड ने भी अब वो बालक/ जवान उसके पास फिर आयेगा यह आशा छोड दी थी।
*
फिर एक दिन एक वृद्ध वहां आया। उसने आम के पेड से कहा,
तुमने मुझे नही पहचाना, पर मै वही बालक हूं जो बारबार आपके पास आता और आप उसे हमेशा अपने टुकड़े काटकर भी मेरी मदद करते थे।"
आम के पेड ने दु:ख के साथ कहा,
"पर बेटा मेरे पास अब ऐसा कुछ भी नही जो मै तुझे दे सकु।"
वृद्ध ने आंखो मे आंसु के साथ कहा,
"आज मै कुछ लेने नही आया हूं, आज तो मुझे तुम्हारे साथ जी भरके खेलना है, तुम्हारी गोद मे सर रखकर सो जाना है।"
*
ईतना कहते वो रोते रोते आम के पेड से लिपट गया और आम के पेड की सुखी हुई डाली फिर से अंकुरित हो उठी।
*
वो वृक्ष हमारे माता-पिता समान है, जब छोटे थे उनके साथ खेलना अच्छा लगता था।
जैसे जैसे बडे होते गये उनसे दुर होते गये।पास तब आये जब जब कोई जरूरत पडी, कोई समस्या खडी हुई।

आज भी वे माँ बाप उस बंजर पेड की तरह अपने बच्चों की राह देख रहे है।

आओ हम जाके उनको लिपटे उनके गले लग जाये जिससे उनकी वृद्धावस्था फिर से अंकुरित हो जाये।

यह कहानी पढ कर थोडा सा भी किसी को एहसास हुआ हो और अगर अपने माता-पिता से थोडा भी प्यार करते हो तो...
माँ बाप आपको सिर्फ प्यार प्यार प्यार  देंगे..✍*😊

🙏🙏🙏🙏🙏🏻🙏🏻
[10/20, 11:01] दीना महराज: 🙏�जय श्री राम🙏�
जानि कृपाकर किंकर मोहू। सब मिलि करहु छाड़ि छल छोहू॥
निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं। तातें बिनय करउँ सब पाहीं॥
भावार्थ:-मुझको अपना दास जानकर कृपा की खान आप सब लोग मिलकर छल छोड़कर कृपा कीजिए। मुझे अपने बुद्धि-बल का भरोसा नहीं है, इसीलिए मैं सबसे विनती करता हूँ॥
करन चहउँ रघुपति गुन गाहा। लघु मति मोरि चरित अवगाहा॥
सूझ न एकउ अंग उपाऊ। मन मति रंक मनोरथ राउ॥
भावार्थ:-मैं श्री रघुनाथजी के गुणों का वर्णन करना चाहता हूँ, परन्तु मेरी बुद्धि छोटी है और श्री रामजी का चरित्र अथाह है। इसके लिए मुझे उपाय का एक भी अंग अर्थात्‌ कुछ (लेशमात्र) भी उपाय नहीं सूझता। मेरे मन और बुद्धि कंगाल हैं, किन्तु मनोरथ राजा है॥
[10/20, 14:54] पं रोहित: 🙏�जय श्री राम🙏�
जानि कृपाकर किंकर मोहू। सब मिलि करहु छाड़ि छल छोहू॥
निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं। तातें बिनय करउँ सब पाहीं॥
भावार्थ:-मुझको अपना दास जानकर कृपा की खान आप सब लोग मिलकर छल छोड़कर कृपा कीजिए। मुझे अपने बुद्धि-बल का भरोसा नहीं है, इसीलिए मैं सबसे विनती करता हूँ॥
करन चहउँ रघुपति गुन गाहा। लघु मति मोरि चरित अवगाहा॥
सूझ न एकउ अंग उपाऊ। मन मति रंक मनोरथ राउ॥
भावार्थ:-मैं श्री रघुनाथजी के गुणों का वर्णन करना चाहता हूँ, परन्तु मेरी बुद्धि छोटी है और श्री रामजी का चरित्र अथाह है। इसके लिए मुझे उपाय का एक भी अंग अर्थात्‌ कुछ (लेशमात्र) भी उपाय नहीं सूझता। मेरे मन और बुद्धि कंगाल हैं, किन्तु मनोरथ राजा है॥
Ati sundar
[10/22, 07:44] ‪+91 80091 04631‬: 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
नास्ति विद्या समं चक्षु नास्ति सत्य समं तप:।
नास्ति राग समं दुखं नास्ति त्याग समं सुखम्॥ 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
भावार्थ -  विद्या के समान आँख नहीं है, सत्य के समान तपस्या नहीं है, आसक्ति के समान दुःख नहीं है और त्याग के समान सुख नहीं है ।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आपका आज का दिन परम् सुख एवम् शान्ति से सम्पन्न रहे, इस शुभकामना के साथ -
           - सुप्रभात
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
22-10-2016
[10/22, 10:49] दीना महराज: हर व्यक्ति सफल होना चाहता है, शिखर चाहता है, परन्तु विवेक का प्रयोग नहीं करता । जीवन को सफल बनाने की तमाम परिस्थितियों के बावजूद विवेक न होने पर व्यक्ति रोशनी के बीच भी अंधेरों से घिरा रहता है। निराशा और हताशा प्राप्त करता है जो हमारे मनोबल को कमजोर कर देती है।

आप अपनी रूचि के अनुरूप अपना लक्ष्य निर्धारित कीजिये और अपनी पूरी शक्ति लक्ष्य को पूरा करने में लगा दीजिये ।आलस्य का त्याग जीवन के प्रति खुद को और अधिक समर्पित कीजिये |
जय श्री राम🙏
[10/22, 10:52] दीना महराज: जिस प्रकार शक्ति के अभाव में शिव भी शव के समान हो जाते हैं, उसी तरह कर्म के अभाव में मनुष्य भी निष्क्रिय बन जाता है। इसलिए कर्म-संसार में सर्वदा कर्मशील बने रहें।
कर्म से फल संतोष और सफलता मिलती है। कर्म से शारीरिक और मानसिक श्रम का योग होता है। यह योग हमारी आंतरिक शक्ति को सदैव जाग्रत रखता है। प्रभु में विश्वास रखिए। सबसे प्रेम करना सीखिए। अलौकिक शक्तियां बाहर से नहीं आतीं। यह तो ईश्वरभक्ति द्वारा मन में स्वत: उत्पन्न होती हैं।
हे अर्जुन! लोग जिस तरह से भी मुझे याद करते हैं, मैं भी उन्हें उसी तरह से याद करता हूं, क्योंकि सभी इंसान हर तरह से मेरे दिखाए रास्ते पर ही चलते हैं। धर्म कोई भी हो परमात्मा तो एक ही हैं और भक्त जिस भाव से उनको याद करता है, भगवान को भी वैसा ही अनुभव होने लगता है।
भगवान सभी रूपों में सबके भीतर मौजूद हैं। सृष्टि में ऐसा कुछ भी नहीं, जिसमें भगवान न हो। । इसलिए जो सच्चे ह्रदय से याद करते हैं, वे मोक्ष पाकर हमेशा के लिए उनके पास चले जाते हैं।
[10/22, 11:10] प विजयभान: सुंदरकांड का धार्मिक महत्त्व :-----
🌹🌹🌹🌹🌹*********************🌹🌹

सुंदर कांड वास्तव में हनुमान जी का कांड है । हनुमान जी का एक नाम सुंदर भी है । सुंदर कांड के लिए कहा गया है - सुंदरे सुंदरे राम: सुंदरे सुंदरीकथा । सुंदरे सुंदरे सीता सुंदरे किम् न सुंदरम् ।। सुंदर कांड में मुख्य मूर्ति श्री हनुमान जी की ही रखी जानी चाहिए । इतना अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि हनुमान जी सेवक रूप से भक्ति के प्रतीक हैं, अत: उनकी अर्चना करने से पहले भगवान राम का स्मरण और पूजन करने से शीघ्र फल मिलता है । कोई व्यक्ति खो गया हो अथवा पति - पत्नी, साझेदारों के संबंध बिगड़ गए हों और उनको सुधारने की आवश्यकता अनुभव हो रही हो तो सुंदर कांड शीघ्र में कहा गया है - सकल सुमंगलदायक, रघुनायक गुन गान । सादर सुनहिं ते तरहिं, भवसिंधु बिना जलजान ।। अर्थात् श्री रघुनाथ जी का गुणगान संपूर्ण सुंदर मंगलों का यानी सभी लौकिक एवं परलौकिक मंगलों को देने वाला है, जो इसे आदरसहित सुनेंगे, वे बिना किसी अन्य साधन के ही भवसागर को तर जाएंगे । सुंदरकांड में तीन श्लोक, साठ दोहे तथा पांच सौ छब्बीस चौपाइयां हैं । साठ दोहों में से प्रथम तीस दोहों में विष्णुस्वरूप श्री राम के गुणों का वर्णन है । सुंदर शब्द इस कांड में चौबीस चौपाइयों में आया है । सुंदरकांड के नायक रूद्रावतार श्रीहनुमान हैं । अशांत मन वालों को शांति मिलने की अनेक कथाएं इसमें वर्णित हैं । इसमें रामदूत श्रीहनुमान के बल , बुद्धि और विवेक का बड़ा ही सुंदर वर्णन है । एक और श्रीराम की कृपा पाकर हनुमान जी अथाहसागर को एक ही छलांग में पार करके लंका में प्रवेश भी पा लेते हैं । बालब्रह्माचारी हनुमान ने विरह - विदग्ध मां सीता को श्रीराम के विरह का वर्णन इतने भावपूर्ण शब्दों में सुनाया है कि स्वयं सीता अपने विरह को भूलकर राम की विरह वेदना में डूब जाती है । इसी कांड में विभीषम को भेदनीति, रावण को भेद और दंडनीति तथा भगवत्कृपा प्राप्ति का मंत्र भी हनुमान जी ने दिया है । अंतत: पवनसुत ने सीता जी का आशिर्वाद तो प्राप्त किया ही है, राम काज को पूरा करके प्रभु श्रीराम को भी विरह से मुक्त किया है और उन्हें युद्ध के लिए प्रेरित भी किया है । इस प्रकार सुंदरकांड नाम के साथ साथ इसकी कथा भी अति सुंदर है । अध्यात्मिक अर्थों में इस कांड की कथा के बड़े गंभीर और साधनामार्ग के उत्कृष्ट निर्देशन हैं । अत: सुंदरकांड आधिभौतिक, आध्यात्मिक एवं आधिदैविक सभी दृष्टियों से बड़ा ही मनोहारी कांड है । सुंदरकांड के पाठ को अमोघ अनुष्ठान माना जाता है ऐसा विश्वास किया जाता है कि सुंदरकांड के पाठ करने से दरिद्रता एवं दुखों का दहन, अमंगलों संकटों का निवारण तथा गृहस्थ जीवन में सभी सुखों की प्राप्ति होती है । पूर्णलाभ प्राप्त करने के लिए भगवान में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास होना जरूरी है ।
[10/22, 18:16] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: चुप्पियाँ तोड़ना ज़रुरी है
लब पे कोई सदा ज़रुरी है
आइना हमसे आज कहने लगा
ख़ुद से भी राब्ता ज़रुरी है
हमसे कोई ख़फ़ा-सा लगता है
कुछ न कुछ तो हुआ ज़रुरी है
ज़िंदगी ही हसीन हो जाए
इक तुम्हारी रज़ा ज़रुरी है
अब दवा का असर नहीं होगा
अब किसी की दुआ ज़रुरी है
🌷🙏🌷
[10/22, 18:23] P anil. mumba: •¡✽🌿🌹शुभ🙏🏻सन्ध्या🌹🌿✽¡• 
         
🌹     शास्त्र कहते हैं कि जीवन क्षणभंगुर है l बिजली के चमकने जैसा क्षणिक है जीवन l जिस वक्त जन्म हुआ उसी वक्त मृत्यु की ओर हमारी यात्रा का आरम्भ हो जाता है l आयु पल पल बीतती है और हम मृत्यु के और और और करीब हो जाते हैं l

🌹     दिन अर्थोपार्जन में बीत जाता है , रात्रि निद्रा में या विषयभोग में चली जाती है और आयु बीत रही है l व्यक्ति यह जानता भी है , लेकिन सावधान नहीं होता l एक एक पल कितना अनमोल है l

🌹      समाज में होती हुई हर मृत्यु हमारी मृत्यु का पैगाम लेकर आती है कि ' सावधान , तेरी भी बारी आयेगी l कोई अमर तो है नहीं l संसार में होती हुई हर मौत हमारे अस्तित्व को प्रभावित करती है l   
                     🌿 ✍🏻
 
   
            •🌿शुभ🙏🏻सन्ध्या🌿•
      *🌹🙏🏻जय महाँकाल🙏🏻🌹*
  *🌿 पंडित अनिल पाण्डेय ✍🏼( उपाध्यक्ष ) धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ 🌿*

              •🌿🍚🌿•
          &﹏*))🌹((*﹏&  

•¡✽🌿🌺🕉🕉🕉🌺🌿✽¡•
[10/22, 18:26] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: शुभ संध्या को समर्पित 🌷🙏🌷

मंजुल मधु का सागर अपार
तन से टकराता बार-बार
ले विपुल स्नेह से पद पखार
रस घोल पिलाता वह अपार
अंतःस्थल में उठता हिलोर
हे मेरे चितवन के चकोर

सीने में स्नेह भरा मेरे
रससिक्त ह्रिदय लेता फेरे
पलकों में श्याम घटा घेरे
बूँदों नें डाले हैं डेरे
उर डूब रहा रस में विभोर
हे मेरे चितवन के चकोर

सुरभित अंचल की रेखा सी
मधुमय की सघन सुरेखा सी
झीना यौवन अषलेखा सी
जलमाला की अभिलेखा सी
साँसें करतीं उन्मत्त शोर
हे मेरे चितवन के चकोर

मन चंचल होकर डोल रहा
अवचेतन हो कुछ बोल रहा
हिय के नीरव पट खोल रहा
अंतर में मधुरस घोल रहा
मन-उपवन नाचे मन के मोर
हे मेरे चितवन के चकोर

तुम कभी मिले जीवन पथ में
हो अवलंबित इस मधुबन में
ज्यों स्वप्न सुमन सौरभ सुख में
बरसे अधराम्रित तन-मन में
विस्मित यौवन करता है शोर
हे मेरे चितवन के चकोर

नव तुषार के बिंदु बने हो
जीवन के प्रतिबिंब बने हो
मधुरितु के अरविंद बने हो
विकल वेदना मध्य सने हो
समर्पित इस जीवन की डोर
हे मेरे चितवन के चकोर
[10/22, 18:46] रजनीस: 💎: बहुत सुन्दर पंक्ति 👌

"जो मुस्कुरा रहा है, उसे दर्द ने पाला होगा...,
जो चल रहा है, उसके पाँव में छाला होगा...,
बिना संघर्ष के इन्सान चमक नहीं सकता, यारों...,
जो जलेगा उसी दिये में तो, उजाला होगा...।

💎: "उदास होने के लिए उम्र पड़ी है,
"नज़र उठाओ सामने ज़िंदगी खड़ी है,
"अपनी हँसी को होंठों से न जाने देना!
"क्योंकि आपकी मुस्कुराहट के पीछे
             दुनिया पड़ी है🚩

         🙏🙏🙏🏻🙏🙏
[10/22, 20:15] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: सत सृष्टि तांडव रचयिता,नटराज राज नमो नमः
हेआद्य गुरु शंकर पिता,नटराज राज नमो नमः
सत.....
 गंभीर नाद मृदंगना धबके उरे ब्रह्माडना,
नित होत नाद प्रचंडनानटराज राज नमो नमः
सत.....
 शिर ज्ञान गंगा चंद्रमा चिद्ब्रह्म ज्योति ललाटमां,
विषनाग माला कंठमां नटराज राज नमो नमः
सत......
तवशक्ति वामांगे स्थिता हे चंद्रिका अपराजिता,
चहु वेद गाए संहिता नटराज राज नमोः
सत......
[10/22, 21:28] रामकुमार: कोसलो नाम मुदितः स्फीतो जनपदो महान् |
निविष्ट सरयू तीरे प्रभूत धन धान्यवान् ||
🐚🌻🐚🙏🙏🙏🐚🌻🐚

सरयू नदी के तट पर सन्तुष्ट जनों से पूर्ण धन धान्य से भरा पूरा, उत्तरोत्तर उन्नति को प्राप्त, कोसल नामक एक बड़ा देश था || १-
🌻🕉🌻🙏🐚🙏🌻🕉🌻
राधे राधे
[10/22, 21:40] प विजयभान: तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर |
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ।।
अर्थ : तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं |किसी को भी वश में करने का ये एक मन्त्र होते हैं इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे |
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||
अर्थ : गोस्वामीजी कहते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर ) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है |
तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||
अर्थ : गोस्वामीजी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मूर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं |सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान है लेकिन आहार साँप का है |
मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||
अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है |
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान |
तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||
अर्थ: गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही धर्म का मूल है और इसके विपरीत अहंकार समस्त पापों की जड़ होता है|
[10/22, 21:51] प विजयभान: _यह सबको ज्ञात है कि बाली जो पुन्यभिमान का रूप है वह बाली रावण को हरा कर छ: महीने तक अपनी काख में दबा कर एक प्रमाणपत्र की तरह लोगों को दिखाता फिरा था।बाली रावण को मार तो सकता नहीं था पर अभिमान हेतु रावण पर अपनी विजय को दर्शाता फिरा, यह जानकर भी कि ईश्वर अवतार लेकर रावण को मारने वाले हैं।_

_जब बाली सुग्रीव से युद्ध करने निकला तो उसकी पत्नी तारा ने बताया कि सुग्रीव ने जिनसे मित्रता की है वे बहुत बलवान हैं तो बाली बोला वह तो साक्षात ईश्वर हैं। बाली ने ईश्वर के स्वरूप को जानने की घोषणा भी की, बाली जानता था कि ये ईश्वर हैं फिर भी वह युद्ध करने गया तब श्री तुलसीदास जी ने लिखा *“अस कहि चला महा अभिमानी “* तात्पर्य यह है कि जिसकी वाणी में ज्ञान होने पर भी भीतर अभिमान भरा हो तो वह तो महा अभिमानी है।_
_इसीलिए श्री राम बाली को बाण मारते हैं और बाण लगते ही बाली का अहंकार दूर हो गया। अब केवल पुन्य रह गया, तब बाली ने पूछा कि *“ मैं बैरी सुग्रीव पियारा “* तो श्रीराम ने बाली से कहा, मुझे बाध्य होकर तुम्हारे ऊपर बाण चलाना पड़ा मेरे बाण चलाने का मतलब यही है कि फोड़ा होने पर जैसे चिकित्सक अस्त्र द्वारा फोड़े को काट डालता है यह अभिमान भी एक फोड़ा था जिसे मैंने काट दिया।इसके पश्चात् श्रीराम ने बाली को प्राण रखने को कहा। परन्तु बाली बोला मेरा जीवन तो आपके दर्शन से ही सार्थक हो गया अब मै प्राण नहीं रखना चाहता।  तब प्रभु श्री राम बोले की चलो यहाँ नहीं रहना चाहते तो मेरे धाम चलो तुम्हारा धाम मैंने सुग्रीव को दे दिया तुम मेरे धाम चलो।_

*प्रभु के प्रेम में भी कृपा है और क्रोध में भी कल्याण है । सुग्रीव से प्रेम किया और उसे राज्य दिया, बाली पर प्रहार किया उसे अपना धाम दे दिया ।माता शबरी ने प्रभु श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने को कहा था क्योंकि वह जानती थी कि सुग्रीव निरभिमानी है और बाली अभिमानी है। माता सीता का पता अभिमान के रहते हुए कोई नहीं लगा सकता क्योंकि भक्ति केवल अभिमान त्यागने से ही प्राप्त हो सकती है।ईश्वर जब तक निराकार, निर्गुण है वह सूर्य की भांति सबको समान रूप से प्रकाश देते हुए समदर्शी है। जब वही ईश्वर आकार लेकर अवतरित होता है तो वह भी गुणात्मक हो जाता है और उसके यहाँ भी एक दुनी दो और दो दुनी चार होता प्रतीत होता है।*

*जय श्रीराम*        *शुभरात्रि*
[10/23, 06:43] प विजयभान: 💢⭐💢⭐💢⭐💢⭐💢⭐💢
🍁🙏🌹ॐ नमः शिवाय सुप्रभातम्🌹 🙏🍁
सर्वेभ्यो भू-देवेभ्यो नमो नमः 🌺🙏🌺
🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞
दोहा : > 
*जे रहीम बिघि बड़ किए, को कहि दूषण काढ़ि ।*
*चंद्र दूबरो कूबरो, तऊ नखत तें बाढ़ि ॥*

*भावार्थ : >👇*
कवि रहीम कहते हैं कि विघाता ने जिन्हें महान बनाया है, उनके दोष कौन निकाल सकता है, जैसे चंद्रमा निर्बल कुबड़ा होने पर भी आकाश में नक्षत्रों से आगे बढ़ जाता है ।

भाव : > 👇
श्रीतुलसीदासजी ने अपने 📕रामचरितमानस ''महाकाव्य में एक स्थान पर लिखा है ---- "
समरथ को नहीं दोष गुंसाई। " इस पंक्ति  का . अर्थ यही है कि समर्थ व्यक्ति  में कोई दोष नही निकालता।
यहां भी कवि रहीम ने उसी और संकेत करते हुए कहा है कि परमात्मा  ने जिन्हें अतुल संपदा दी है, अतुल बल दिया है , अतुल बुद्धि दी है, ऐसे महान व्यक्तियों में दोष निकालने का साहस कौन कर सकता है ?

⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐

जिस प्रकार चंद्रमा निर्बल और कुबड़ा (गोल) होने पर भी आकाश के नक्षत्रों में सर्वश्रेष्ठ कहलाता है।  उसी प्रकार दोषी और दागदार होने पर भी समर्थ व्यक्ति महान कहलाता है |

कवि तुलसीदासजी ने इसी भाव को लेकर यह भी कहा है

*होंहिं बड़े लघु समय सह, तो लघु सकहिं न काढ़ि ।*
*चंद्र  दूबरो कूबरो, तऊ देखत तें बाढ़ि ॥*

* भावार्थ : >👇
         बड़े व्यक्ति छोटे (बुरे) समय को भी सहन करते हैं l वह उनकी महानता कम नहीं करता । दूज का चंद्रमा कुबड़ा  होता है, किंतु देखते- देखते बढ़ जाता है ॥
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
🐚🔔🐚🔔🐚🔔🐚🔔🐚🔔🐚
[10/23, 09:35] पं सत्यशु: ✍🏻 “जीवन में खुशी का अर्थ लड़ाइयाँ लड़ना नहीं,बल्कि उन से बचना है।
कुशलतापूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है।”
क्योकि
"अभिमान"की ताकत फरिश्तो को भी"शैतान"बना देती है,और
"नम्रता"साधारण व्यक्ति को भी "भगवान बना देतीहै।
🙏🌹🌹सु प्रभात🌹🌹🙏
[10/23, 14:23] P Alok Ji: जीवन का आनंद, जीने वाले की दृष्टिं में होता है। वह आप में है। वह आपके अनुरूप होता है। क्या आपको मिलता है- उसमें नहीं, कैसे आप उसे लेते हैं- उसमें ही वह छिपा है।

मंदिर बन रहा था। तीन श्रमिक धूप में बैठे पत्थर तोड़ रहे थे। एक राहगीर ने पूछा, क्या कर रहे हैं?

एक से पूछा। वह बोला, पत्थर तोड़ रहा हूं। उसने गलत नहीं कहा था। लेकिन, उसके कहने में दुख था और बोझ था। निश्चय ही पत्थर तोड़ना आनंद की बात कैसे हो सकती है? वह उत्तर देकर फिर उदास मन से पत्थर तोड़ने लगा था।

दूसरे से पूछा। वह बोला, आजीविका कमा रहा हूं। उसने जो कहा वह भी ठीक था। वह दुखी नहीं दिख रहा था, लेकिन आनंद का कोई भाव उसकी आंखों में नहीं था। निश्चय ही आजीविका कामना भी काम ही है, आनंद वह कैसे हो सकता है?

तीसरे से पूछा। वह गीत गा रहा था। उसने गीत को बीच में रोक कर कहा, मैं मंदिर बना रहा हूं। उसकी आंखों में चमक थी और हृदय में गीत था। निश्चय ही मंदिर बनाना कितना सौभाग्यपूर्ण है! और, सृजन से बड़ा आनंद और क्या है? हरि शरणम् हर शरणम्

मैं सोचता हूं कि जीवन के प्रति भी ये तीन उत्तर हो सकते हैं। आप कौन-सा उत्तर चुनते हैं, वह आप पर निर्भर है। और, जो आप चुनेंगे, उस पर ही आपके जीवन का अर्थ और अभिप्राय निर्भर होगा। जीवन तो वही है, पर दृष्टिं भिन्न होने से सब-कुछ बदल जाता है। दृष्टिं भिन्न होने से फूल कांटे हो जाते हैं और कांटे फूल बन जाते हैं । आनंद तो हर जगह है, पर उसे अनुभव कर सकें, ऐसा हृदय सबके पास नहीं है। और, कभी किसी को आनंद नहीं मिला है, जब तक कि उसने उसे अनुभव करने के लिए आने हृदय को तैयार न कर लिया हो। विशेष स्थिति और स्थान नहीं- वरन जो आनंद अनुभव करने की भावदशा को पा लेता है, उसे हर स्थिति और स्थान में ही आनंद मिल जाता है।
[10/23, 16:12] P Alok Ji: जीवन का आनंद, जीने वाले की दृष्टिं में होता है। वह आप में है। वह आपके अनुरूप होता है। क्या आपको मिलता है- उसमें नहीं, कैसे आप उसे लेते हैं- उसमें ही वह छिपा है।

मंदिर बन रहा था। तीन श्रमिक धूप में बैठे पत्थर तोड़ रहे थे। एक राहगीर ने पूछा, क्या कर रहे हैं?

एक से पूछा। वह बोला, पत्थर तोड़ रहा हूं। उसने गलत नहीं कहा था। लेकिन, उसके कहने में दुख था और बोझ था। निश्चय ही पत्थर तोड़ना आनंद की बात कैसे हो सकती है? वह उत्तर देकर फिर उदास मन से पत्थर तोड़ने लगा था।

दूसरे से पूछा। वह बोला, आजीविका कमा रहा हूं। उसने जो कहा वह भी ठीक था। वह दुखी नहीं दिख रहा था, लेकिन आनंद का कोई भाव उसकी आंखों में नहीं था। निश्चय ही आजीविका कामना भी काम ही है, आनंद वह कैसे हो सकता है?

तीसरे से पूछा। वह गीत गा रहा था। उसने गीत को बीच में रोक कर कहा, मैं मंदिर बना रहा हूं। उसकी आंखों में चमक थी और हृदय में गीत था। निश्चय ही मंदिर बनाना कितना सौभाग्यपूर्ण है! और, सृजन से बड़ा आनंद और क्या है? हरि शरणम् हर शरणम्

मैं सोचता हूं कि जीवन के प्रति भी ये तीन उत्तर हो सकते हैं। आप कौन-सा उत्तर चुनते हैं, वह आप पर निर्भर है। और, जो आप चुनेंगे, उस पर ही आपके जीवन का अर्थ और अभिप्राय निर्भर होगा। जीवन तो वही है, पर दृष्टिं भिन्न होने से सब-कुछ बदल जाता है। दृष्टिं भिन्न होने से फूल कांटे हो जाते हैं और कांटे फूल बन जाते हैं । आनंद तो हर जगह है, पर उसे अनुभव कर सकें, ऐसा हृदय सबके पास नहीं है। और, कभी किसी को आनंद नहीं मिला है, जब तक कि उसने उसे अनुभव करने के लिए आने हृदय को तैयार न कर लिया हो। विशेष स्थिति और स्थान नहीं- वरन जो आनंद अनुभव करने की भावदशा को पा लेता है, उसे हर स्थिति और स्थान में ही आनंद मिल जाता है।
[10/23, 17:58] P anuragi. ji: अधः पंक्तियों में आंग्ल लिपि में उद्धृत नौ शब्द ब्यक्ति को उसकी प्रतिभा का  प्रमाण प्रदान करते हैं । उत्तम प्रवृत्ति के अजिर में अंकुरित मुनि कुमार सदैव यशश्वी बनो
         अनुरागी जी
[10/23, 18:44] जग्या: ✍🏻एक 'माटी' का *दिया*
सारी रात अंधियारे से लड़ता है..
तू तो "भगवान" का *दिया* है
☄☄☄☄☄
तु किस बात से डरता है।✍🏻
🙏🏻☘🙏🏻
[10/23, 23:47] प विजयभान: प्रस्तुत लेख आनंद रामायण से लिया गया है इसलिये यदि किसी प्रकार की कोई भी शंका हो तो कृप्या आनंद रामायण का अध्यन करे।

🌷(जब हनुमान जी देवी उर्मिला की सिद्धियों को देखकर दंग रह गए)

🎞आनंद रामायण के अनुसार जब हनुमानजी ने अपने बाएं हाथ पर संजीवनी पवर्त उठाया तो दिव्य गंधमय पुष्पों की वर्षा होने लगी व चारों ओर से मंगल-ध्वनि होने लगी।
हनुमानजी पर्वत सहित ऊर्ध्वगामी होकर संकल्प मात्र से वायु देव के 48 स्वरूपों को पार करके 49 वें स्वरूप पर पहुंच गए।

यहां से हनुमान जी को अयोध्या पुरी नज़र आई।
जिसे देखकर उनके मन में इच्छा जागृत हुई कि श्रीराम की नगरी व उनके परिवार जनों का दर्शन किया जाए।

पुरी अयोध्या को ‘रां’ बीज मंत्र द्वारा कीलित देखकर हनुमानजी को रोमांच हो आया। हनुमानजी ने हाथ जोड़कर नंदीग्राम सहित अयोध्या की परिक्रमा की।

फिर नंदीग्राम की एक कुटिया में खिड़की से झांका तो देखा कि भरत जी सिंहासन पर स्थापित चरण पादुकाओं के पास बैठकर ध्यान-मग्न थे।

अर्धरात्रि काल था, सभी सो रहे थे, कौशल्या जी, सुमित्रा जी व कैकयी जी को हनुमानजी ने शयन करते देखा।
उन्होंने देखा कि माता कौशल्या के पलंग पर ही, पैरों की ओर भरत पत्नी मांडवि जी लेटी थी।
ठीक यही स्थिति शत्रुघ्न-पत्नी श्रुतकीर्ति की माता सुमित्रा के पलंग पर थी।

केवल माता कैकयी अपने पलंग पर अकेली थीं।
हनुमानजी ने विचारा कि घर में एक राजबहू उर्मिला भी हैं, फिर माता कैकयी अकेली क्यों?

जिज्ञासा वश हनुमानजी ने ध्यान लगाया तो देखा कि उर्मिला जी ने 14 वर्षों की अवधि में विशेष साधनों का प्रण लिया है तथा वो विशिष्ट साधना में पूरे मनोयोग से जुट हुई हैं।

हनुमानजी ने देखा कि श्रीराम के वियोग में पूरा परिवार योगी-तपस्वी हो गया है।

हनुमान जी ने देखना चाहा कि देवी उर्मिला जी की साधना कहां तक पहुंची है।

देवी उर्मिला जी के भवन का द्वार बंद था, हनुमानजी सूक्ष्म रूप से भीतर प्रवेश कर गए।
हनुमानजी एक दृश्य देखकर चकित रह गए।

एक उच्च पीठासन पर मनोहर दीपक प्रज्वलित है, जिसके दिव्य प्रकाश से सारा कक्ष आलोकित हो रहा है।
उसी दीपक के नीचे ललित चुनरी कलात्मक ढंग से तह की हुई रखी है।

संजीवनी पर्वत पर दिव्य पुष्पों की जो सुगंध थी, वही सुगंध पूरे गर्भगृह को सुवासित किए हुए थी।

हनुमान जी अभी विस्मय से उबर भी नहीं पाए थे कि उन्हें नारी-कंठ की ध्वनि में सुनाई पड़ा, ‘‘आइए हनुमानजी आपका स्वागत है"।

यह ध्वनि देवी उर्मिला जी की है।

हनुमानजी अत्यंत विनम्र होकर बोले, ‘‘मुझे पूरा विश्वास है देवी कि आपकी साधना पूर्ण रूपेण सफल हो गई, तभी आपने मुझ अदृश्य को देख लिया और पहचान भी लिया।

हनुमान जी ने देवी उर्मिला जी से दर्शन देने की प्रार्थना की।
फिर एक कक्ष का द्वार खुला व एक अद्भुत घटना हुई।

प्रज्वलित दीपक की लौ बढ़कर द्वार तक गई व उर्मिला के मुख मंडल को आलोकित करती हुई उन्हीं के साथ चलती रही।

उर्मिला जी जब दीपक के पास आकर खड़ी हो गई, तब शिखा भी सामान्य शिखा में समाहित हो गई।

हनुमानजी ने भाव-विभोर होकर उर्मिला जी को प्रणाम किया व कहा "आप मुझे आज्ञा व आशीर्वाद दें, मुझे शीघ्र लंका पहुंचना है।’’

उर्मिला जी ने कहा, ‘‘मुझे ज्ञात है पुत्र! मेरे पतिदेव, मेघनाद की वीरघातिनी शक्ति से मूर्छित हैं, क्योंकि उन्होनं  शबरी के भावना से अर्पित जूठे बेरों की उपेक्षा की थी।

अब उन्हीं बेरों के परिवर्तित रूप से आपके द्वारा सिंचित संजीवनी से उनकी मूर्छा दूर होगी, यही उनका प्रायश्चित है।"

उर्मिला जी ने कहा, ‘‘हे पुत्र हनुमान! आपके इस महान कार्य का एक दूसरा परिणाम यह भी हुआ है कि आपने बेर की पत्तियों का जो तांत्रिक प्रयोग किया है, उसने रावण के तांत्रिक प्रयोगों का निराकरण किया है।
यह कार्य आपके अतिरिक्त और कोई नहीं कर सकता था।’’

हनुमानजी बोले, ‘‘सब कुछ प्रभु श्रीराम की कृपा से हुआ है"।

उर्मिला जी ने कहा, ‘‘यह सत्य है कि सब राम कृपा से होता है, परंतु आप साधारण व्यक्ति नहीं हैं।
मैं जानती हूं, आप शिवशंकर के ग्यारहवें रुद्र के अवतार हैं।

अब जाओ वत्स! आगे का कार्य भी निर्विघ्न रूप से संपन्न करो।’’

हनुमानजी बोले, ‘‘आपका आशीर्वाद अवश्य फलीभूत होगा, आपकी साधना महान है।
आपने सर्वज्ञता की सिद्धि भी प्राप्त कर ली है"।

हनुमानजी ‘जय श्रीराम’ कहकर अदृश्य हो गए।
[10/24, 06:50] प विजयभान: 🙏🌹ॐ नमः शिवाय सुप्रभातम् 🌹🙏
"उमा राम गुन गूढ़ पंडित मुनि पावहिँ बिरति।
पावहिँ मोह विमूढ़ जे हरि बिमुख न धर्म रति ॥
"भगवान शिव पार्वती से कहते हैँ -देवी !भगवान के गुण (उनकी लीलाएँ) इतनी गूढ़ हैँ कि पंडित[ज्ञानी] और मुनि ,भक्तगण तो उसे समझकर वैराग्य प्राप्त कर लेते है किन्तु जो भगवान की भक्ति से विमुख हैँ जिनका धर्म मेँ प्रेम ही नहीँ है ऐसे महामूढ़ (उन्हे सुनकर) मोह को ही प्राप्त होते हैँ ।"🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
[10/24, 09:16] प विजयभान: देवादिदेव महादेव जी द्वारा राम नाम की महिमा*

***महादेव जी को एक बार बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी ने पूछा आप किसको प्रणाम करते रहते हैं?
शिव जी ने अपनी धर्मपत्नी पार्वती जी से कहते हैं की, हे देवी! जो व्यक्ति एक बार *राम* कहता है उसे मैं तीन बार प्रणाम करता हूँ। 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

***पार्वती जी ने एक बार शिव जी से पूछा आप श्मशान में क्यूँ जाते हैं और ये चिता की भस्म शरीर पे क्यूँ लगते हैं?
उसी समय शिवजी पार्वती जी को श्मशान ले गए। वहाँ एक शव अंतिम संस्कार के लिए लाया गया। लोग *राम नाम सत्य है* कहते हुए शव को ला रहे थे।
शिव जी ने कहा की देखो पार्वती इस श्मशान की ओर जब लोग आते हैं तो *राम* नाम का स्मरण करते हुए आते हैं। और इस शव के निमित्त से कई लोगों के मुख से मेरा अतिप्रिय दिव्य *राम* नाम निकलता है उसी को सुनने मैं श्मशान में आता हूँ, और इतने लोगो के मुख से *राम* नाम का जप करवाने में निमित्त बनने वाले इस शव का मैं सम्मान करता हूँ, प्रणाम करता हूँ, और अग्नि में जलने के बाद उसकी भस्म को अपने शरीर पर लगा लेता हूँ। *राम* नाम बुलवाने वाले के प्रति मुझे इतना प्रेम है।

***एक बार शिवजी कैलाश पर पहुंचे और पार्वती जी से बहुजन माँगा। पार्वती जी विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर रहीं थी। पार्वती जी ने कहा अभी पाठ पूरा नही हुआ, कृपया थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए। शिव जी ने कहा की इसमें तो समय और श्रम दोनों लगेंगे। संत लोग जिस तरह से सहस्र नाम को छोटा कर लेते हैं और नित्य जपते हैं वैसा उपाय कर लो।
पार्वती जी ने पूछा वो उपाय कैसे करते हैं? मैं सुन्ना चाहती हूँ।
शिव जी ने बताया, केवल एक बार *राम* कह लो तुम्हे सहस्र नाम, भगवान के एक हज़ार नाम लेने का फल मिल जाएगा। एक *राम* नाम हज़ार दिव्य नामों के समान है। पार्वती जी ने वैसा ही किया।

पार्वत्युवाच -
*केनोपायेन लघुना विष्णोर्नाम सहस्रकं?*
*पठ्यते पण्डितैर्नित्यम् श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो।।*
ईश्वर उवाच-
*श्री राम राम रामेति, रमे रामे मनोरमे।*
*सहस्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने।।*

यह *राम* नाम सभी आपदाओं को हरने वाला, सभी सम्पदाओं को देने वाला दाता है, सारे संसार को विश्राम/शान्ति प्रदान करने वाला है। इसीलिए मैं इसे बार बार प्रणाम करता हूँ।

*आपदामपहर्तारम् दातारम् सर्वसंपदाम्।*
*लोकाभिरामम् श्रीरामम् भूयो भूयो नमयहम्।।*

भव सागर के सभी समस्याओं और दुःख के बीजों को भूंज के रख देनेवाला/समूल नष्ट कर देने वाला, सुख संपत्तियों को अर्जित करने वाला, यम दूतों को खदेड़ने/भगाने वाला केवल *राम* नाम का गर्जन(जप) है।

*भर्जनम् भव बीजानाम्, अर्जनम् सुख सम्पदाम्।*
*तर्जनम् यम दूतानाम्, राम रामेति गर्जनम्।*

प्रयास पूर्वक स्वयम् भी *राम* नाम जपते रहना चाहिए और दूसरों को भी प्रेरित करके *राम* नाम जपवाना चाहिए। इस से अपना और दोसरों का तुरन्त कल्याण हो जाता है। यही सबसे सुलभ और अचूक उपाय है।  इसीलिए हमारे देश में प्रणाम *राम राम* कहकर किया जाता है। 🙏🏻
*।।राम राम।।*🙏🏻
[10/24, 09:46] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ में उपस्थित आप सभी  गुरुजनों के श्री चरणों में बालक का दंडवत स्वीकार हो सुप्रभात🌷🙏🌷
यों मन कबहूँ तुमहिं न लाग्यो । 
ज्यों छल छाँड़ी सुभाव निरंतर रहत बिषय अनुराग्यो ॥ १ 
ज्यों चितई परनारि, सुने पातक-प्रपंच घर-घरके । 
त्यों न साधू, सुरसरि-तरंग-निरमल गुनगन रघुबरके ॥ २ 
ज्यों नासा सुगंधरस-बस, रसना षटरस-रति मानी । 
राम-प्रसाद-माल जूठन लगी त्यों न ललकि ललचानी ॥ ३ 
चन्दन-चंद-बदनि-भूषन-पट ज्यों चह पाँवर परस्यो । 
त्यों रघुपति-पद-पदुम-परस को तनु पातकी न तरस्यो ॥ ४
ज्यों सब भाँती कुदेव कुठाकुर सेये बपु बचन हिये हूँ । 
त्यों न राम सुकृतग्य जे सकुचत सकृत प्रनाम किये हूँ ॥ ५ 
चंचल चरन लोभ लगी लोलुप द्वार-द्वार जग बागे । 
राम-सीय-आस्त्रमनि चलत त्यों भये न स्त्रमित अभागे ॥ ६ 
सकल अंग पद-बिमुख नाथ मुख नामकी ओट लई है ।
है तुलसिहिं परतीति एक प्रभु-मूरति कृपामई है ॥ ७🌷🙏🌷
[10/24, 10:01] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: सरागिलोकदुर्लभं विरागिलोकपूजितं सुरासुरैर्नमस्कृतं जरापमृत्युनाशकम् । 
गिरा गुरुं श्रिया हरिं जयन्ति यत्पदार्चकाः नमामि तं गणाधिपं कृपापयः पयोनिधिम् ॥ १॥ 
गिरीन्द्रजामुखाम्बुज प्रमोददान भास्करं करीन्द्रवक्त्रमानताघसङ्घवारणोद्यतम् । 
सरीसृपेश बद्धकुक्षिमाश्रयामि सन्ततं शरीरकान्ति निर्जिताब्जबन्धुबालसन्ततिम् ॥ २॥ 
शुकादिमौनिवन्दितं गकारवाच्यमक्षरं प्रकाममिष्टदायिनं सकामनम्रपङ्क्तये ।
चकासतं चतुर्भुजैः विकासिपद्मपूजितं प्रकाशितात्मतत्वकं नमाम्यहं गणाधिपम् ॥ ३॥ 
नराधिपत्वदायकं स्वरादिलोकनायकं ज्वरादिरोगवारकं निराकृतासुरव्रजम् ।
कराम्बुजोल्लसत्सृणिं विकारशून्यमानसैः हृदासदाविभावितं मुदा नमामि विघ्नपम् ॥ ४॥ 
श्रमापनोदनक्षमं समाहितान्तरात्मनां सुमादिभिः सदार्चितं क्षमानिधिं गणाधिपम् । 
रमाधवादिपूजितं यमान्तकात्मसम्भवं शमादिषड्गुणप्रदं नमामि तं विभूतये ॥ ५॥ 
गणाधिपस्य पञ्चकं नृणामभीष्टदायकं प्रणामपूर्वकं जनाः पठन्ति ये मुदायुताः । 
भवन्ति ते विदां पुरः प्रगीतवैभवाजवात् चिरायुषोऽधिकः श्रियस्सुसूनवो न संशयः ॥ ६
[10/24, 11:28] P anil. mumba: 🌷🙏🏼🌷सर्वेभ्यो नमो नमः🌷🙏🏼🌷
         
शास्त्र   कहते हैं कि भगवान की भक्ति तो कुमारावस्था से ही करनी चाहिये l प्रह्लाद जी कहते है कि भगवान के पास लिंगभेद , जातिभेद, वयभेद कुछ भी नहीं है l देवों , दानवों , मानवों सबको भगवान मिल सकते हैं l

🌹     जिस प्रकार देव , दानव और मानव तीन हैं न उसी प्रकार काम , क्रोध और लोभ तीन हैं l देवों में है काम , दानव में है क्रोध और मानव में है लोभ l ब्रह्मा जी ने तीनों से कहा तुम्हारा कल्याण होगा lतीनों से द, द, द कह दिया l

🌹      तो देवों ने *द* से मतलब लिया *दमन* , दानवों ने *द* से मतलब लिया *दया* और मानवों ने *द* से मतलब लिया *दान* l तो *दमन से काम को , दया से क्रोध को और दान से लोभ* को जीतें l इस प्रकार देव , दानव और मानव का कल्याण हो सकता है l
                     🌿 ✍🏻
 
        &﹏*))🌹((*﹏&
            •🌿🍚🌿•
      *🌹🙏🏻 पंडित  अनिल पाण्डेय  ✍🏼 (उपाध्यक्ष ) धर्मार्थ वार्ता  समाधान संघ 🙏🏻🌹*
 
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🌼🐾🌾🌼🐾🌾🌼🐾🌾
               
                  हमेशा खुश
                रहना  चाहिए,
                   क्योंकि
               परेशान होने से
              कल की मुश्किल
                दूर नही होती
                   बल्कि....
              आज का सुकून
               भी चला जाता
                     है !!

🌼🐾🌾🌼🐾🌾🌼

           🙏🏼🙏🏻।।श्री:।।🙏🏻🙏🏻
वक्त कहता है मै
              फिर न आऊंगा
               क्या पता तुझे
          हँसाउगा या रुलाउंगा
                जीना है तो इस
                  पल को जी ले
                क्योंकि इस पल
                  को अगले पल
               तक न रोक पाऊंगा हँसते                          रहिए हंसाते रहिये
               सदा मुस्कुराते रहिये.
       🌞🌹जय महाँकाल 🌹🌞
[10/24, 11:32] दीना महराज: शरीर विनाशी और आत्मा अविनाशी है। यही शाश्वत सत्य है। आत्मसाक्षात्कार और भगवत दर्शन ही मानव जीवन का परम लक्ष्य है। इसके लिए घर-बार छोड़ने की आवश्यकता नहीं है। संसार में रहते हुए सांसारिक कार्यों और अपने लौकिक दायित्वों का निर्वाह करना चाहिए ।
संसार के समस्त पदार्थ विनाशी हैं। अविनाशी तो केवल आत्मा है।साधकों को इस जीवन में ही सचेत होकर निरंतर आत्म-चिंतन करना चाहिए।
जय श्री राम🙏
[10/24, 11:40] दीना महराज: भगवान् नारद कहते हैं—
कंठावरोधरोमाञ्चाश्रुभिः परस्परं लपमाना: पावयन्ति कुलानि पृथिवीं च |
तीर्थिकुर्वंती तीर्थानि सुकर्मीकुर्वन्ति कर्माणि सच्छास्त्रीकुर्वन्ति शास्त्राणि |
(नारदभक्तिसूत्र ६८-६९)
‘ऐसे भक्त कंठावरोध, रोमांचित और अश्रुयुक्त नेत्रवाले होकर परस्पर सम्भाषण करते हुए अपने कुलों को और पृथ्वी को पवित्र करते हैं | वे तीर्थों को सुतीर्थ और कर्मों को सुकर्म तथा शास्त्रों को सत-शास्त्र बनाते हैं, उनके भक्ति के आवेश से वायुमंडल शुद्ध होता है, जिससे सम्बन्ध रखनेवाले सब कुछ पवित्र हो जाते हैं और पृथ्वीपर ऐसे पुरुषों के निवास से पृथ्वी पवित्र हो जाती है | वे जिस तीर्थ में रहते हैं वही सुतीर्थ, वे जिन कर्मों को करते हैं वे ही सत्कर्म और वे जिन शास्त्रों का उपदेश करते हैं वे ही सत-शास्त्र बन जाते हैं |’
मोदन्ते पितरो नृत्यन्ति देवताः सनाथा चेयं भूर्भवती |
(नारदभक्तिसूत्र ७१)
‘ऐसे भक्तों को प्रकट हुए देखकर उनके पितृगण अपने उद्धार की आशा से आह्लादित होते हैं, देवतागण उनके दर्शन कर नाचने लगते हैं, और माता पृथ्वी अपने को सनाथ समझने लगती है |’
[10/24, 11:55] P parmanand Ji: 🌹धर्म के नाम पर बलिदान🌹
लोग धर्म के नाम पर बलिदान करते आए है, परन्तु धर्म स्वयं भी बलिदान होता आया है।,,इसी धर्म के नाम बलिदान,,के नारे से आज भी धर्म के नाम पर हिंसा को बढ़ावा देते हैं।परन्तु अब समय की पुकार है कि हे धर्म प्रेमियों धर्म की रच्छा के लिये इस क्रोध व अहंकार का बलिदान करो।यदि तुम्हारे अंदर ही अग्नि जलती रहेगी तो तुम दूसरों की अग्नि कैसे बुझाओगे।अर्थात तुम शांति का साम्राज्य कैसे लाओगे।इसलिए पवित्र धर्म अपनी रच्छा ऊँची आवाज में प्रभु के गुण गायें और दिनभर मनुष्यों पर बंदूक चलायें।यह सत्य ही है कि भगवान
से प्यार करने वाला मनुष्य,भगवान की रचना से अवश्य ही प्यार करेगा।उसकी रचना से प्यार न करना स्वार्थी ईश्वरीय प्यार का प्रतीक है।परंतु कितना आश्चर्य है कि एक ओर इसाई धर्म का मूल उपदेश ,प्रेम, है। ईसा मसीह ने मानव को सत्य प्रेम का पाठ पढ़ाया था, परन्तु आज उसकी संतान मानव जाति को पृथ्वी से पूर्णतया नष्ट करने पर उतारू हैं।काश, इन्हें ईसा की आवाज फिर से सुनाई दे जाय और ये प्रेम पथ अपना लें।

🙏🏽धर्मार्थ वार्ता में 🙏🏽

🌹सभी भूदेवों को परमानन्द का प्रणाम 🌹

👌🏽हैप्पी दीवाली 👌🏽
[10/24, 12:37] ‪+91 94519 33129‬: हर अच्छी किताब पढऩे के कुछ फायदे हैं। यदि बारीकी से शब्दों को पकड़ेंगे तो हम पाएंगे किताब में चार संदेश जरूर होते हैं। कैसे रहें, कैसे करें, कैसे जिएं और कैसे मरें। यह चार सवाल हर मनुष्य के जीवन में खड़े होते ही हैं।

यूं तो अनेक पुस्तकें हैं, पर आज हम भारतीय संस्कृति की चार किताबों पर नजर डालेंगे। महाभारत हमारा एक ग्रंथ है जो हमको रहना सिखाती है। गीता हमें करना सिखाती है। रामायण जीना सिखाती है और भागवत हमें मरना सिखाती है।

महाभारत हमें रहना सिखाती है यानी आर्ट ऑफ लिविंग, कैसे रहें, जीवन की क्या परंपराएं हैं, क्या आचार संहिता, क्या सूत्र हैं, संबंधों का निर्वहन कैसे किया जाता है ये महाभारत से सिखा जा सकता है। क्या भूल जीवन में होती है कि जीवन कुरूक्षेत्र बन जाता है। हम लोग सामाजिक प्राणी हैं। इसलिए नियम, कायदे और संविधान से जीना हमारा फर्ज है। महाभारत में अनेक पात्रों ने इन नियम-कायदों का उल्लंघन किया था। छोटी सी घटना है महाभारत के मूल में।

जब आप वचन देकर मुकर जाएं तो या तो सामने वाला आपकी इस हठधर्मिता को स्वीकार कर ले, या विरोध करे। और विरोध होने पर निश्चित ही युद्ध होगा। पाण्डव कौरवों से जुएं में हार गए। पहली बात तो यह है कि जुआ खेलना ही गलत था। गलत काम के सही परिणाम हो ही नहीं सकते।

दूसरी बात हारने पर उन्हें वनवास जाना था और जंगल से लौटने पर कौरव पाण्डवों को उनका राज्य लौटाने वाले थे, लेकिन कौरवों की ओर से दुर्योधन ने साफ कह दिया कि सूई की नोंक से नापा जा सके इतना धरती का टुकड़ा भी नहीं दूंगा और इस एक जिद ने महाभारत जैसा युद्ध करवा दिया। हम समाज, परिवार में रहते हैं, किए हुए वादे को निभाना हमारा फर्ज है। जुबान दी है तो बात पूरी तरह निभाई जाए।
[10/24, 14:55] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: | बूढ़ा पिता |

किसी गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति अपने बेटे और बहु के साथ रहता था । परिवार सुखी संपन्न था किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी । बूढ़ा बाप जो किसी समय अच्छा खासा नौजवान था आज बुढ़ापे से हार गया था, चलते समय लड़खड़ाता था लाठी की जरुरत पड़ने लगी, चेहरा झुर्रियों से भर चूका था बस अपना जीवन किसी तरह व्यतीत कर रहा था।

घर में एक चीज़ अच्छी थी कि शाम को खाना खाते समय पूरा परिवार एक साथ टेबल पर बैठ कर खाना खाता था । एक दिन ऐसे ही शाम को जब सारे लोग खाना खाने बैठे । बेटा ऑफिस से आया था भूख ज्यादा थी सो जल्दी से खाना खाने बैठ गया और साथ में बहु और एक बेटा भी खाने लगे । बूढ़े हाथ जैसे ही थाली उठाने को हुए थाली हाथ से छिटक गयी थोड़ी दाल टेबल पे गिर गयी । बहु बेटे ने घृणा द्रष्टि से पिता की ओर देखा और फिर से अपना खाने में लग गए।

बूढ़े पिता ने जैसे ही अपने हिलते हाथों से खाना खाना शुरू किया तो खाना कभी कपड़ों पे गिरता कभी जमीन पर । बहु चिढ़ते हुए कहा – हे राम कितनी गन्दी तरह से खाते हैं मन करता है इनकी थाली किसी अलग कोने में लगवा देते हैं , बेटे ने भी ऐसे सिर हिलाया जैसे पत्नी की बात से सहमत हो । बेटा यह सब मासूमियत से देख रहा था ।

अगले दिन पिता की थाली उस टेबल से हटाकर एक कोने में लगवा दी गयी । पिता की डबडबाती आँखे सब कुछ देखते हुए भी कुछ बोल नहीं पा रहीं थी। बूढ़ा पिता रोज की तरह खाना खाने लगा , खाना कभी इधर गिरता कभी उधर । छोटा बच्चा अपना खाना छोड़कर लगातार अपने दादा की तरफ देख रहा था । माँ ने पूछा क्या हुआ बेटे तुम दादा जी की तरफ क्या देख रहे हो और खाना क्यों नहीं खा रहे । बच्चा बड़ी मासूमियत से बोला – माँ मैं सीख रहा हूँ कि वृद्धों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, जब मैं बड़ा हो जाऊँगा और आप लोग बूढ़े हो जाओगे तो मैं भी आपको इसी तरह कोने में खाना खिलाया करूँगा ।

बच्चे के मुँह से ऐसा सुनते ही बेटे और बहु दोनों काँप उठे शायद बच्चे की बात उनके मन में बैठ गयी थी क्युकी बच्चा ने मासूमियत के साथ एक बहुत बढ़ा सबक दोनों लोगो को दिया था ।
बेटे ने जल्दी से आगे बढ़कर पिता को उठाया और वापस टेबल पे खाने के लिए बिठाया और बहु भी भाग कर पानी का गिलास लेकर आई कि पिताजी को कोई तकलीफ ना हो ।
[10/24, 15:51] P anil. mumba: 🌷🙏🏼🌷🙏🏼🌷।।श्री:।।🌷🙏🏼🌷🙏🏼

भगवान की सेवा मेँ जो व्यक्ति अपना शरीर लगा देता है , उसका देहाभिमान कम हो जाता है । भक्तिमार्ग मेँ धन या तन नहीँ मन ही प्रधान है । जब से भक्तिमार्ग मे धन की प्रधानता हो गयी है तब से भक्ति छिन्न भिन्न हो रही है । सर्वप्रथम कहना चाहिए कि मेरा मन सदा कृष्ण के चरण कमलोँ मेँ ही रहे । हे प्रभू आप मेरी रक्षा करेँ >
" तस्मात् कारुण्यभावेन रक्ष रक्ष परमेश्वर " ।
सेवा का अर्थ है सेव्य श्रीकृष्ण को मन बसाए रखना , सेवा का सम्बन्ध मन से है । शरीर से जो क्रिया की जाय , यदि उसमेँ मन सहायक नहीँ होगा तो वह व्यर्थ हो जाएगी ।
सेवा का आरम्भ मन से होता है । मन सूक्ष्म होता है । चंचल होता है । वह जगत ओर ईश्वर के साथ एक साथ सम्बन्ध नहीँ रख सकता ।
" ये मन बड़ा चंचल है ,...
जितना इसे समझाऊँ
उतना ही मचल जाये ।"
मन किसी के उपदेश से नही मानता उसे स्वयं समझाना पड़ेगा । मन को अपने अतिरिक्त और कौन समझा सकता है ?
दास्य भाव मेँ सेवा ही मुख्य है । पेट उसी का भरता है जो भोजन स्वयं करता है । जो भजन और सेवा स्वयं करता है उसे ही फल मिलता है ।
भोजन , विवाह , ठाकुरजी की सेवा और मृत्यु स्वयं ही करना पड़ता है ।
दूसरे के द्वारा किये गये भोजन से अपनी भूख शांत नहीँ होती , दूसरे के विवाह करने से अपनी गृहस्थी नहीँ बसती , दूसरे द्वारा ठाकुर जी की सेवा करने से उसका फल स्वयं को नहीँ मिलता , अपनी मृत्यु का समय आ जाने पर किसी की अदला बदली नही चलती । गाँव मे कहावत है >
" खेती बारी विनती और घोड़े की तंग ।
अपने हाथ सवाचिए लाख लोग रहे संग ।।"
             🌷जय महाँकाल🌷
पं अनिल पाण्डेय✍🏼
[10/24, 19:17] P anil. mumba: 🙏🏼सर्वेभ्यो नमो नमः शुभ् संध्या🙏🏼

🕉🕉पं  अनिल पाण्डेय🕉🕉

🐌🌿🍁🐌🐇🐌🍁🌿
       
विद्या रूपं कुरूपाणां
        क्षमा रूपं तपस्विनाम्।
कोकिलानां स्वरो रूपं
        स्त्रीणां रूपं पतिव्रतम्॥

भावार्थ - कुरूप का रूप विद्या है, तपस्वी का रूप क्षमा है, कोकिला का रूप स्वर है, और स्त्री का रूप पातिव्रत्य है ।अर्थात् संसार में व्यक्ति का सम्मान उसके गुण से होता है, बाहरी रूप और सजावट से नही। 
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
        🙏🏻🙏🏻।।श्री:।।🙏🏻🙏🏻
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"क्रोध" भी तब पुण्य बन जाता है, जब वह "धर्म" और "मर्यादा" के लिए किया जाए,
और
"सहनशीलता" भी तब पाप बन जाती है, जब वह "धर्म" और "मर्यादा" को बचा ना पाये.
                           जय महाँकाल
               🌷🙏🏼🌷✡✡🌷🙏🏼🌷
[10/24, 20:01] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: सिद्ध सारस्वत स्तोत्र

।। श्रीसरस्वत्युवाच ।।
वर्तते निर्मलं ज्ञानं, कुमति-ध्वंस-कारकं
स्तोत्रेणानेन यो भक्तया, मां स्तुवति सदा नरः ।।
त्रि-सन्ध्यं प्रयतो भूत्वा, यः स्तुतिं पठते तथा ।
तस्य कण्ठे सदा वासं, करिष्यासि न संशयः ।।
सिद्ध-सारस्वतं नाम, स्तोत्रं वक्ष्येऽहमुत्तमम् ।।
जो व्यक्ति सदैव इस कुमति (दुर्बुद्धि) नाशक स्तोत्र से मेरी स्तुति करता है, उसे निर्मल ज्ञान की प्राप्ति होती है । जो तीनों सन्ध्याओं में पवित्रता-पूर्वक इस स्तुति का पाठ करता है, मैं सदा उसके कण्ठ में निवास करती हूँ, इसमें संशय नहीं है । मैं “सिद्ध-सारस्वत” नामक उत्तम स्तोत्र को कहती हूँ -
उमा च भारती भद्रा, वाणी च विजया जया ।
वाणी सर्व-गता गौरी, कामाक्षी कमल-प्रिया ।।
सरस्वती च कमला, मातंगी चेतना शिवा ।
क्षेमंकरी शिवानन्दी, कुण्डली वैष्णवी तथा ।।
ऐन्द्री मधु-मती लक्ष्मीर्गिरिजा शाम्भवाम्बिका ।
तारा पद्मावती हंसा, पद्म-वासा मनोन्मनी ।।
अपर्णा ललिता देवी, कौमारी कबरी तथा ।
शाम्भवी सुमुखी नेत्री, त्रिनेत्री विश्व-रुपिणी ।।
आर्या मृडानी ह्रीं-कारी, साधनी सुमनाश्च हि ।
सूक्ष्मा पराऽपरा कार्त-स्वर-वती हरि-प्रिया ।।
ज्वाला मालिनिका चर्चा, कन्या च कमलासना ।
महा-लक्ष्मीर्महा-सिद्धिः स्वधा स्वाहा सुधामयी ।।
त्रिलोक-पाविनी भर्त्री, त्रिसन्ध्या त्रिपुरा त्रयी ।
त्रिशक्तिस्त्रिपुरा दुर्गा, ब्राह्मी त्रैलोक्यमोहिनी ।।
त्रिपुष्करा त्रिवर्गदा, त्रिवर्णा त्रिस्वधा-मयी ।
त्रिगुणा निर्गुणा नित्या, निर्विकारा निरञ्जना ।।
कामाक्षी कामिनी कान्ता, कामदा कल-हंसगा ।
सहजा कालका प्रजा, रमा मङ्ल-सुन्दरी ।।
वाग्-विलासा विशालाक्षी, सर्व-विद्या सुमङ्गला ।
काली महेश्वरी चैव, भैरवी भुवनेश्वरी ।।
वाग्-वीजा च ब्रह्मात्मजा, शारदा कृष्ण-पूजिता ।
जगन्माता पार्वती च, वाराही ब्रह्म-रुपिणी ।।
कामाख्या ब्रह्म-वारिणी, वाग्-देवी वरदाऽम्बिका ।
देवताओं के द्वारा एक सौ आठ नामों से पूजिता वाग्-देवी (सरस्वती) का जो व्यक्ति तीनों सन्ध्याओं में कीर्तन करता है, वह सभी सिद्धियाँ पाता है ।
यह स्तोत्र आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, सुख-सम्पत्ति को बढ़ाने वाला, षट्-कर्मों की सिद्धि देनेवाला और तीनों लोकों को मोहित करने वाला है ।
जो इसका नित्य पाठ करता है – स्वयं बृहस्पति भी उसके कथन के विपरित कुछ कहने में समर्थ नहीं होते, अन्य लोगों की क्या कथा ! अर्थात् कोई भी साधक के कथन के विपरित कुछ नहीं कह सकता ।
सिद्ध-सारस्वतं चैव, भवेद् विषय-नाशनम् ।।
साधक को सभी विषयों (ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त आनन्द, लौकिक, पदार्थ, मैथुन सम्बन्धी उपभोग आदि) का नाश करने वाले निर्मल ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
[10/24, 20:20] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: एक बार जो जरा देख मुझे मुस्कुरा दिया होता, 
कसम परमात्मा की, कलेजे को समन्दर किया होता !
कभी जो तुमने सपनों से मुझे झाँक ही लिया होता,
मजाल! जो उसे बटोर के न हकीकत किया होता?
बस एक कदम खुद धरती पे हमारी जो तुम रखते,
कहते गर उसे नींव से न ईमारत किया होता !
अगले तिराहे से मिल चलने का गर भरोसा दिया होता,
सीना ठोक ज़माने से मैंने बगावत किया होता !
उस रात अँधेरी में मुझसे मिलने जो तुम आते,
सच कहूँ? तोहफे में तुझे चाँद-सितारां दिया होता !
तेरी नादानगी ने ही तो किया है यूँ बदहाल मुझे,
वरना हिम्मत किसमे थी? जमाना जीत लिया होता !
इस प्रेम ने ही लताड़ा है मुझे लत्ते की तरह वरना,
नाकारा ही सही, आज भी शीशे में  इज़्ज़तदार दिखा होता ! 
[10/24, 20:30] जग्या: Please read this

ऑफिस से निकल कर शर्माजी ने

स्कूटर स्टार्ट किया ही था कि उन्हें याद आया,
.
पत्नी ने कहा था 1 दर्ज़न केले लेते आना।
.
तभी उन्हें सड़क किनारे बड़े और ताज़ा केले बेचते हुए

एक बीमार सी दिखने वाली बुढ़िया दिख गयी।
.
वैसे तो वह फल हमेशा "राम आसरे फ्रूट भण्डार" से

ही लेते थे,
पर आज उन्हें लगा कि क्यों न

बुढ़िया से ही खरीद लूँ ?
.
उन्होंने बुढ़िया से पूछा, "माई, केले कैसे दिए"
.
बुढ़िया बोली, बाबूजी 20 रूपये दर्जन,

शर्माजी बोले, माई 15 रूपये दूंगा।
.
बुढ़िया ने कहा, 18 रूपये दे देना,

दो पैसे मै भी कमा लूंगी।
.
शर्मा जी बोले, 15 रूपये लेने हैं तो बोल,

बुझे चेहरे से बुढ़िया ने,"न" मे गर्दन हिला दी।
.
शर्माजी बिना कुछ कहे चल पड़े

और राम आसरे फ्रूट भण्डार पर आकर

केले का भाव पूछा तो वह बोला 28 रूपये दर्जन हैं
.
बाबूजी, कितने दर्जन दूँ ?

शर्माजी बोले, 5 साल से फल तुमसे ही ले रहा हूँ, 

ठीक भाव लगाओ।
.
तो उसने सामने लगे बोर्ड की ओर इशारा कर दिया।

बोर्ड पर लिखा था- "मोल भाव करने वाले माफ़ करें"

शर्माजी को उसका यह व्यवहार बहुत बुरा लगा,

उन्होंने कुछ  सोचकर स्कूटर को वापस

ऑफिस की ओर मोड़ दिया।
.
सोचते सोचते वह बुढ़िया के पास पहुँच गए।

बुढ़िया ने उन्हें पहचान लिया और बोली,
.
"बाबूजी केले दे दूँ, पर भाव 18 रूपये से कम नही लगाउंगी।

शर्माजी ने मुस्कराकर कहा,

माई एक  नही दो दर्जन दे दो और भाव की चिंता मत करो।
.
बुढ़िया का चेहरा ख़ुशी से दमकने लगा।

केले देते हुए बोली। बाबूजी मेरे पास थैली नही है ।

फिर बोली, एक टाइम था जब मेरा आदमी जिन्दा था
.
तो मेरी भी छोटी सी दुकान थी।

सब्ज़ी, फल सब बिकता था उस पर।

आदमी की बीमारी मे दुकान चली गयी,

आदमी भी नही रहा। अब खाने के भी लाले पड़े हैं।

किसी तरह पेट पाल रही हूँ। कोई औलाद भी नही है
.
जिसकी ओर मदद के लिए देखूं।

इतना कहते कहते बुढ़िया रुआंसी हो गयी,

और उसकी आंखों मे आंसू आ गए ।
.
शर्माजी ने 50 रूपये का नोट बुढ़िया को दिया तो

वो बोली "बाबूजी मेरे पास छुट्टे नही हैं।
.
शर्माजी बोले "माई चिंता मत करो, रख लो,

अब मै तुमसे ही फल खरीदूंगा,
और कल मै तुम्हें 500 रूपये दूंगा।

धीरे धीरे चुका देना और परसों से बेचने के लिए

मंडी से दूसरे फल भी ले आना।
.
बुढ़िया कुछ कह पाती उसके पहले ही

शर्माजी घर की ओर रवाना हो गए।

घर पहुंचकर उन्होंने पत्नी से कहा,

न जाने क्यों हम हमेशा मुश्किल से

पेट पालने वाले, थड़ी लगा कर सामान बेचने वालों से

मोल भाव करते हैं किन्तु बड़ी दुकानों पर

मुंह मांगे पैसे दे आते हैं।
.
शायद हमारी मानसिकता ही बिगड़ गयी है।

गुणवत्ता के स्थान पर हम चकाचौंध पर

अधिक ध्यान देने लगे हैं।
.
अगले दिन शर्माजी ने बुढ़िया को 500 रूपये देते हुए कहा,

"माई लौटाने की चिंता मत करना।

जो फल खरीदूंगा, उनकी कीमत से ही चुक जाएंगे।

जब शर्माजी ने ऑफिस मे ये किस्सा बताया तो

सबने बुढ़िया से ही फल खरीदना प्रारम्भ कर दिया।

तीन महीने बाद ऑफिस के लोगों ने स्टाफ क्लब की ओर से

बुढ़िया को एक हाथ ठेला भेंट कर दिया।

बुढ़िया अब बहुत खुश है।

उचित खान पान के कारण उसका स्वास्थ्य भी

पहले से बहुत अच्छा है ।

हर दिन शर्माजी और ऑफिस के

दूसरे लोगों को दुआ देती नही थकती।
.
शर्माजी के मन में भी अपनी बदली सोच और

एक असहाय निर्बल महिला की सहायता करने की संतुष्टि का भाव रहता है..!

जीवन मे किसी बेसहारा की मदद करके देखो यारों,

अपनी पूरी जिंदगी मे किये गए सभी कार्यों से

ज्यादा संतोष मिलेगा...!!
😊😊

नोट: - यदि लेख अच्छा लगा हो तो अपने Group Me जरुर शेयर करे.....
सोच को बदलो जिंदगी जीने का नजरिया बदल जायेगा।

दीवाली की खरीदी_
_ऐसी जगह से करें_

_जो आपकी खरीदी की वजह से_
_दीवाली मना सके ❜_🙏
[10/24, 20:30] प विजयभान: रावण मायावी था। रूप बदल लेता था।एक भिक्षुक का वेश धारण कर उसने जगत जननी सीता जी का अपहरण कर लिया, पर निरंतर लंका में स्थित अशोक वाटिका में सीता जी से प्रार्थना ही करता रहा की तुम मेरी पटरानी बन जाओ।मंदोदरी आदि सब तुम्हारी सेवा करेंगी। सलाहकारों ने कहा कि आपके पास तो अनेकों विद्याएँ हैं एक दिन राम बनकर चले जाओ और सीता से कहो मैं तुम्हे छुड़ाने आया हूँ। रावण ने कहा ऐसा नहीं की मेने कोशिश नहीं की मैं राम बना, परंतु राम बनने के बाद परनारी का विचार तक नहीं आया। यह काम तो रावण बनकर ही संभव है।
     अर्थात बुरे काम करना है, आसुरी कर्म करना है, तो रावण ही बनना होगा। लेकिन यदि हम अच्छे कर्म करना चाहते हैं तो क्यों न् श्रीराम बनने का निरंतर अभ्यास करें।
जय जय श्रीराम 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[10/24, 20:51] प विजयभान: आज फिर मन भ्रमित हुआ जिससे तमाम शंकाओं ने जन्म लिया। कहते है सुख दुख अपनों से बाँट लेना चाहिए। इसलिए आप विद्दुत जनों के समक्ष अपनी शंकाओं को प्रस्तुत कर रहा हूँ समाधान करने की कृपा करें

१- हनुमान यदि ब्राह्मण हैं तो राम का उनके कन्धे पर चढना कहॉ तक उचित है ?

२- हनुमान यदि वानर हैं तो मूंज की जनेउ पहनना कहॉ तक सार्थक है ?

३-हनुमान यदि वानर हैं तो गोस्वामी जी ने  उनको  लंगूर ( अरु धरि लाल लंगूर)  क्यों कहा ?

४-हनुमान यदि मानव हैं तो लाल शरीर और  पूंछ का होना कैसे सार्थक है ?

५- हनुमान यदि  वानर नहीं हैं तो  स्वयं को शाखामृग /// सुनु माता शाखामृग //   कहना कहॉ तक उचित है?

६- हनुमान यदि किम्पुरुष हैं तो पूरी रामायण में कहीं भी किसी ने भी किसी भी रूप में उनको  उनकी इस विशेष जाति के रूप में  क्यों नहीं पहचाना  है ?
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।। जय श्री राम ।।
[10/24, 21:09] P anuragi. ji: नूतन ज्ञान दान का साधुवाद स्वीकृत करें ऋषि श्रेष्ठ
      वंदन है इस दिव्य चित्रांकन को
[10/24, 21:10] प विजयभान: भगवन् आपका आशीर्वाद ही फलीभूत हो रहा है 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[10/24, 21:15] P anil. mumba: 🙏🏼🌷🙏🏼आदर्णीय अनुरागीं गुरु जी को  प्रणाम🙏🏼🌷🙏🏼
[10/24, 21:23] P anuragi. ji: अत्युत्तम प्रस्तुति
   साधुवाद अनुज
[10/24, 21:34] P anuragi. ji: जो ब्यक्ति एक बार राम कहता है उसे मैं तीन बार प्रणाम करता हूँ ।

सन्त शिरोमणि आपश्री को अनुरागी का देह गेह सहित वन्दन
[10/24, 22:13] प विजयभान: पूज्यनीय गुरुदेव अनुरागी जी को बालक का सादर प्रणाम 🙏🌹🙏
[10/24, 23:01] P anuragi. ji: अनुज विजय जी
   आप आरोग्यता प्राप्त करें

सबको यथायोग्य अभिवादन
   आशीस
[10/24, 23:02] प विजयभान: गुरुदेव आपकी कृपा से जल्दी ही स्वस्थ्य हो जाऊँगा प्रणाम स्वीकार हो भगवन् 🙏🌹🙏
[10/24, 23:26] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: बड़े अन्तराल के बाद आदरणीय अनुरागी गुरू जी का दर्शन प्राप्त करके मन की कलिया खिल उठी,गुरू जी बालक का दण्डवत स्वीकार हो 🌷🙏🌷😊