Thursday, May 18, 2017

*मन की बात-------:*😊

*मन की बात-------:*😊
अनंत काल से यह सृष्टि चल रही है, लाखों मानव आये और चले गये, कितने नक्षत्र बने और टूटे. कितनी विचार धाराएँ पनपी और बिखर गयीं। कितने देश बने और लुप्त हो गये इतिहास की नजर जहाँ तक जाती है। सृष्टि उससे भी पुरानी है, फिर एक मानव का सत्तर-अस्सी वर्ष का छोटा सा जीवन क्या एक बूंद जैसा नहीं लगता इस महासागर में, व्यर्थ की चिंताओं में फंसकर वह इसे बोझिल बना लेता है।हर प्रातः जैसे एक नया जन्म होता है, दिनभर क्रीड़ा करने के बाद जैसे एक बालक निशंक माँ की गोद में सो जाता है, वैसे ही हर जीव प्रकृति की गोद में सुरक्षित है।यदि जीवन में एक सादगी हो, आवश्यकताएं कम हों और हृदय परम के प्रति श्रद्धा से भरा हो तो हर दिन एक उत्सव है और हर रात्रि परम विश्रांति का अवसर !  
*जय श्री राधे*✍
*अाप सभी का दिन मंगलमय हो।*
*आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी*

Tuesday, May 9, 2017

धर्मार्थ वार्ता

[4/7, 09:55] व्यासup: ॐ त्रयंमकम यजामहे, सुंगधीपुष्टीवर्धनम
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।
महामृत्युंजय मंत्र-संस्कृत में महामृत्युंजय उस व्यक्ति को कहते हैं जो मृत्यु को जीतने वाला हो। ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद में भी इस मंत्र का उल्लेख मिलता हैं। इसके अलावा शिवमहापुराण में इस मंत्र व इसके आशय को विस्तार से बताया गया हैं। रतलाम के अनेक शिवमंदिरों में इस मंत्र का जप निरंतर चलता रहता हैं।
महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरश: अर्थ
त्रयंबकम- त्रि.नेत्रों वाला ;कर्मकारक।
यजामहे- हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं। हमारे श्रद्देय।
सुगंधिम- मीठी महक वाला, सुगंधित।
पुष्टि- एक सुपोषित स्थिति, फलने वाला व्यक्ति। जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम- वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है।
उर्वारुक- ककड़ी।
इवत्र- जैसे, इस तरह।
बंधनात्र- वास्तव में समाप्ति से अधिक लंबी है।
मृत्यु- मृत्यु से
मुक्षिया, हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
मात्र न
अमृतात- अमरता, मोक्ष।
सरल अनुवाद
हम त्रि-नेत्रीय वास्तविकता का चिंतन करते हैं। जो जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित करता है और वृद्धि करता है। ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग हम जीवन व मृत्यु के बंधन से मुक्त हो।
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ !!
[5/2, 16:36] ‪+91 98896 25094‬: *मेरेगिरधारी...*
🙏🏻🥀🙏🏻🥀🙏🏻🥀🙏🏻
*आसरा इस जहाँ का मिले ना मिले*
*मुझको तेरा सहारा सदा चाहिए*

👆आदरणीय मंगलेश्वर भैया जी  हमसे गाने के लिये कहे पर समयाभाव के चलते उस वक्त मैं गा न सका सो आज उस भजन को भेजा है ।
आप एक बार सुनने की कृपा करें ।
[5/2, 16:48] ‪+91 89616 84846‬: 🌹श्रील प्रभुपाद जी से एक भक्त ने पुछा:-

🌷"हम लोग अपने दोनों हाथो को ऊपर उठा कर कीर्तन, सत्संग क्यों करते हैं जबकि ये तो बिना हाथ ऊपर करे भी किया जा सकता हैं?:

🌼श्रील प्रभुपाद बताते है की:-
"बच्चा जब छोटा होता हैं, तब वो अपनी माँ को देख कर अपने दोनों हाथो को ऊपर उठा कर मचलने लगता हैं, तड़पने लगता हैं।

🎋वो ये कहना चाहता हैं की मुझे अपनी गोद में उठा कर अपने सीने से लगा लो।

🍁ठीक वैसे हैं जब एक भक्त हाथ उठा कर सत्संग करता हैं तो वो ये कहना चाहता हैं की:-
🍂🍃"हे गोविन्द" ,
🍂🍃"हे करुणानिधान" ,
🍂🍃"हे गोपाल" ,
🍂🍃"हे मेरे नाथ"
आप मेरा हाथ पकड़ लो और मुझे इस भवसागर से, इस दुखरूपी भौतिक संसार से बाहर निकाल कर अपने चरणों से लगा लो।

🌾मेरे जीवन की नैय्या को पार लगा दो प्रभु, मुझे इन 84 लाख योनियों के चक्कर से मुक्ति दीजिये
🍂🍃"गोविन्द"....

एक बार सभी दोनों हाथ उठा के बोले

📢🙌☺हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे,
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे...🙌🌺🙌🌸🙌                                      जय सोनी उदयपुर राजः
[5/2, 17:04] घनश्याम जी पं: 🌹❤मन की बातें,आपके साथ 🌹❤ -- दृढ़ निश्चयी ब्यक्ति के कार्यो में कोई भी बाधा कार्य को पूरा होने में बाधक नही बन सकता है । -- पर साधक दृढ़ निश्चयी हो तब । यदि साधक दृढ निश्चय कर लिया कि चाहे लोग मेरा स्तुति करे या गाली दे,या निन्दा, आपमान हो,या विमार हो जाऊ,सत्य पथ पर चलने से मौत ही क्यो न हो जाय मैं नही रुकूँगा चलते रहूंगा,चाहे कोई भी आफत क्यो न आये तो साधक को सफलता से कोई नही रोक सकता। और अन्त में अपने ध्येय प्राप्त कर ही लेता है। जैसे ध्रुव आदि । बन्धुओ दुनियां में तीन तरह के लोग रहते है। ये मेरा मानना है । --- (1) द्वेष रखने वाले लोग , (2)स्नेह करने वाले लोग, (3) उदासीन लोग जो न स्नेह न द्वेष करने वाले । ये तीनो प्रकार के लोग दृढ़ निश्चयी साधक को सहायता ही करते है। हानि नही पहुचा पाते । जैसे ध्रुव द्वेष रखने वाली विमाता ने द्वेष किया पर फल ?भजन के लिए प्रेरित कर दी । स्नेह मयी माता ने भी भगवत भजन का समर्थन कर दिया। माता का स्नेह ध्रुव को नही रोक पाया । उल्टे मद्त की । उदासीन श्री देवर्षि नारदजी आशीर्वाद प्रदानकर मार्ग ही बता दिया । भाव ---परमकर्तव्य पथ पर चलने वाले दृढ़ निश्चयी ब्यक्ति को किसी भी प्रकार की बाधा कोई नुकसान नही पहुचा पाता । यदि आप परमकर्तब्य पथ चल रहे हो और रास्ते मे यदि अपमान,गाली,सुख, दुख,कस्ट,दरिद्रता,आलोचना,आदि मिले तो समझ लो हम सही रास्ता पर चल रहे है।तब जीव को और भी दुगने उत्साह से चलना चाहिए । क्योंकि निश्चय की दृढ़ता सफलता की कुंजी है । समस्त गुरुजन,भूदेव,एवम विद्वत समाज को नमन बन्दन। कोई गलती होगी तो क्षमा के साथ ही मार्गदर्शन अवश्य करे । 🙏
[5/2, 20:20] ‪+91 94501 23732‬: अन्नाद् भवन्ति भूतानि अद्यत इत्यन्नं मतम्।
अपरिपक्वं न हितकरं नैव स्वास्थ्यकरञ्च तत्।।
पक्वं फलं विलोक्यैव मदमत्ता कोकिला भवति।
तथा विम्बाधरं प्राप्य मदमत्तो युवको भवति।।
पक्वे फले च माधुर्यं पाकभावे प्रसन्नता।
अपरिपक्वे स्वभावे च सौमनस्यं न जायते।।
  परिपक्वं भोजनं मात्रा गुरुणा ज्ञानं प्रदत्तञ्च।
    मनुष्येभ्यो द्वे हितकरे स्तः वै  नास्त्यत्रविशंकनम्।। 

                          डा गदाधर त्रिपाठी
[5/3, 07:26] पं ऊषा जी: *छिन्नोपि रोहति तरुः*
*क्षीणोप्युपचीयते पुनश्चन्द्रः।*
*इति विमृशन्त: सन्तः*
*सन्तप्यन्ते न लोकेषु।।*

कटा हुआ भी वृक्ष पुनः उग जाता है तथा कृष्णपक्ष में क्षीण हुआ चन्द्रमा शुक्लपक्ष में बढ़ जाता है। यह विचार करते हुए सज्जन दुःख से पीड़ित होने पर अथवा विपत्तिग्रस्त होने पर दुःखी नहीं होते हैं।

🌹🍃🌹 *अमरवाणी विजयतेतराम्* 🌹🍃🌹
--गणान्तरात्

धर्मार्थ वार्ता

[5/3, 08:26] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूल श्लोकः 🔔*
इष्टान्भोगान् हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः।।३.१२।।
*🌷पदार्थः...... 🌷*
यज्ञभाविताः - यज्ञवर्धिताः
देवाः — इन्द्रादयः
वः — युष्मभ्यम्
इष्टान् — अभीप्सितान्
भोगान् — पदार्थान्
दास्यन्ते — वितरिष्यन्ति
तैः — देवैः
दत्तान् — वितीर्णान्
एभ्यः — देवेभ्यः
अप्रदाय — अदत्त्वा
यः भुङ्क्ते — यः पुरुषः अनुभवति
सः स्तेनः एव — सः चोरः एव।
*🌻अन्वयः 🌻*
यज्ञभाविताः देवाः वः इष्टान् भोगान् दास्यन्ते। तैः दत्तान् एभ्यः अप्रदाय यः भुङ्क्ते स स्तेनः एव।
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_दास्यन्ते।_
के दास्यन्ते?
*देवाः दास्यन्ते।*
देवाः कान् दास्यन्ते?
*देवाः भोगान् दास्यन्ते।*
देवाः कीदृशान् भोगान् दास्यन्ते?
*देवाः इष्टान् भोगान् दास्यन्ते।*
देवाः केभ्यः इष्टान् भोगान् दास्यन्ते?
*देवाः वः इष्टान् भोगान् दास्यन्ते।*
कीदृशाः देवाः वः इष्टान् भोगान् दास्यन्ते?
*यज्ञभाविताः देवाः वः इष्टान् भोगान् दास्यन्ते।*
_भुङ्क्ते।_
कान् भुङ्क्ते?
*दत्तान् भुङ्क्ते।*
कैः दत्तान् भुङ्क्ते?
*तैः दत्तान् भुङ्क्ते।*
तैः दत्तान् कथं भुङ्क्ते?
*तैः दत्तान् अप्रदाय भुङ्क्ते।*
तैः दत्तान् केभ्यः अप्रदाय भुङ्क्ते?
*तैः दत्तान् एभ्यः अप्रदाय भुङ्क्ते।*
तैः दत्तान् एभ्यः अप्रदाय यः भुङ्क्ते सः कः?
*तैः दत्तान् एभ्यः अप्रदाय यः भुङ्क्ते सः स्तेनः एव।*
*📢 तात्पर्यम्......*
यज्ञेन सन्तुष्टाः देवाः प्रार्थनां विनापि अस्मभ्यम् अभीप्सितं वस्तु प्रयच्छन्ति। तेभ्यः देवेभ्यः किमपि अदत्त्वा यः सर्वम् अनुभवति सः चोरः एव भवति।
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
वो देवाः = वः देवाः - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः।
तैर्दत्तान् = तैः + दत्तान् - विसर्गसन्धिः (रेफः)।
प्रदायैभ्यो = प्रदाय + एभ्यः - वृद्धिसन्धिः।
प्रदायैभ्यो यो = प्रदायैभ्यः + यः - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः।
यो भुङ्क्ते = यः + भुङ्क्ते - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः।
स्तेन एव = स्तेनः + एव - विसर्गसन्धिः (लोपः)।
▶ समासः
यज्ञभाविताः = यज्ञेन भाविताः - तृतीयातत्पुरुषः।
▶ कृदन्तः
इष्टान् = इषु + क्त। (कर्मणि) तान्।
प्रदाय = प्र + दा + ल्यप्।
दत्तान् = दा + क्त। (कर्मणि) तान्।
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                              *गीताप्रवेशात्*
[5/3, 08:26] ‪+91 99773 99419‬: अत्र शङ्का भवति यद्, या सामग्री प्राप्ता अस्ति, तां यदि अन्येभ्यः ददाति, तर्हि कर्मयोगिनः जीवननिर्वाहः कथं शक्यते ? इति । समाधानम् अस्ति यद्, वस्तुतः एषा शङ्का तदा भवति, यदा शरीरेण सह तादात्म्यसम्बन्धः स्थापितः अस्ति । परन्तु कर्मयोगी तु शरीरेण सह स्वस्य सम्बन्धम् एव नाङ्गीकरोति । प्रत्युत शरीरं संसारस्य, संसाराय च इति मत्वा तस्य सेवायै शरीरम् अर्पयति । तस्य दृष्टिः अविनाशिस्वरूपं प्रति भवति, न तु नाशवत् शरीरं प्रति । यस्य दृष्टिः शरीरस्योपरि भवति, स एव शङ्कां करोति जीवननिर्वाहस्य । यावत्पर्यन्तं भोगेच्छा भवति, तावत्पर्यन्तं जीवनेच्छा, मृत्युभयञ्च भवतः । कर्मयोगिषु भोगेच्छा न भवति । किञ्च तस्य सकलानि कार्याणि अन्येभ्यः एव भवन्ति । अतः कर्मयोगी स्वजीवनस्य चिन्तां न करोति । वस्तुतः यस्य हृदये जगतः आवश्यकता न भवति, तस्य आवश्यकता जगते भवति । अतः तस्य निर्वाहदायित्वं जगत् स्वीकरोति ।
[5/3, 10:12] ‪+91 74159 69132‬: *तूलसी वृक्ष ना जानियै,🌿*
*गाय ना जानीयै ढौर !🐄*
*🏻माता पिता मनुष्य ना जानियै,🏻*
*ये तीनों नन्द किशोर!!*
*अर्थात्:-- तूलसी को कभी वृक्ष नही समझना चाहिए,*
*गाय को कभी पशु ना समझें !*
*और माता पिता को कभी सिर्फ मनुष्य ना समझें,*
*क्योकि ये तीनो तो साक्षात् भगवान का रूप है!!

    💐💐शुप्रभात 💐💐
  🌹 आपका दिन शुभ हो 🌹
      🚩 जय श्री राम 🚩
[5/3, 11:20] पं अलोपी: ऋग्वेद के अनुसारः

ब्राह्मणासः सोमिनो वाचमक्रत , ब्रह्म कृण्वन्तः परिवत्सरीणम् ।
अध्वर्यवो घर्मिणः सिष्विदाना, आविर्भवन्ति गुह्या न केचित् ॥ ऋग्वेद 7/103/8 ॥

ब्राह्मण वह है जो शांत, तपस्वी और यजनशील हो । जैसे वर्षपर्यंत चलनेवाले सोमयुक्त यज्ञ में स्तोता मंत्र-ध्वनि करते हैं वैसे ही मेढक भी करते हैं । जो स्वयम् ज्ञानवान हो और संसार को भी ज्ञान देकर भूले भटको को सन्मार्ग पर ले जाता हो, ऐसों को ही ब्राह्मण कहते हैं । उन्हें संसार के समक्ष आकर लोगों का उपकार करना चाहिये ।
[5/3, 11:22] पं अलोपी: अग्निशेषमृणशेषं शत्रुशेषं तथैव च । पुन: पुन: प्रवर्धेत तस्माच्शेषं न कारयेत् ॥

 भावार्थ :

यदि कोई आग, ऋण, या शत्रु अल्प मात्रा अथवा न्यूनतम सीमा तक भी अस्तित्व में बचा रहेगा तो बार बार बढ़ेगा ; अत: इन्हें थोड़ा सा भी बचा नही रहने देना चाहिए । इन तीनों को सम्पूर्ण रूप से समाप्त ही कर डालना चाहिए ।

नाभिषेको न संस्कार: सिंहस्य क्रियते मृगैः । विक्रमार्जितराज्यस्य स्वयमेव मृगेंद्रता ॥

 भावार्थ :

वन्य जीव शेर का राज्याभिषेक (पवित्र जल छिड़काव) तथा कतिपय कर्मकांड के संचालन के माध्यम से ताजपोशी नहीं करते किन्तु वह अपने कौशल से ही कार्यभार और राजत्व को सहजता व सरलता से धारण कर लेता है
[5/3, 11:23] ‪+91 94501 23732‬: मात्स्यन्यायेन जीवा अत्र बलवन्तः सुरक्षिता:।
सृष्टेरादिकालादेव व्यवस्थेयं प्रचलिताभवत्।।
असमर्था:विपन्ना ये तेषामपि रक्षणं भवतु।
अनेनैव हि  राज्ञां प्राक्काले कल्पनाभूद् वै।।
  समये हि वर्तमाने च प्रजातन्त्र॔ व्यवस्थितम्।
शासकः प्रधानमन्त्री सर्वे सन्ति सुरक्षिता:।।
स्वास्थ्यशिक्षासुरक्षाया: विधिवत् संचालनं भवतु।
प्रधानमन्त्रिणानेनैव सन्निरीक्षा क्रियते सदा।।
                                           डा गदाधर त्रिपाठी
[5/3, 15:34] ओमीश Omish Ji: 🙏 *श्री मात्रे नमः* 🙏
*पतिव्रतरतां भार्यां सुगुणां पुण्यवत्सलाम् ।।*
*तामेवापि परित्यज्य धर्मकार्यं प्रयाति यः।*
*वृथा तस्य कृतः सर्वो धर्मो भवति नान्यथा।।*
*भार्यां विना हि यो लोके धर्मं साधितुमिच्छति।*
*विफलो जायते लोके नान्नमश्नन्ति देवताः।।* *पद्मपुराण भूमिखण्ड अ. 59*
अर्थ - जो पुरूष अपनी सद्गुणवती, पुण्यानुरागिणी, पतिव्रता पत्नी का परित्याग कर धर्म के लिए तीर्थादि में बाहर जाता है, उसका किया हुआ सारा धर्म व्यर्थ होता है - इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है।
जो पुरूष अपनी पत्नी को छोड़कर धर्मसाधन की इच्छा करता है, वह संसार में असफल होता है, और उसका अन्न देवता भी ग्रहण नहीं करते।

*यः स्वनारीं परित्यज्य निर्दोषां कुलसम्भवाम्*।
*परदाररतो हि स्यादन्यां वा कुरुते स्त्रियम्*।
*सोऽन्यजन्मनि देवेशि स्त्री भूत्वा विधवा भवेत्*।। *स्कन्दपुराण*
*अर्थ* - इसी प्रकार जो स्त्री स्वेच्छा से या किसी के प्रस्ताव से सम्मत होकर परपुरूष में आसक्त हो कुकृत्य करती है, पति को कष्ट पहुँचाने तथा पवित्र सतीत्व - धर्म से डिगने के कारण उसकी संतान और धन का नाश हो जाता है, परलोक में उसे भयानक नर्क यन्त्रणा भोगनी पडती है, युवावस्था में विधवा होना पडता है और उसके बाद विविध दुःख संतापमयी घृणित कुयोनियों में जन्म लेकर घोर क्लेश युक्त जीवन बिताना पडता है। संकलनकर्ता-आचार्य ✍
[5/3, 18:21] घनश्याम जी पं: 🌴🌹ये मेरा मानना है कि जहां भाव है वहां भाषा भी है।🌹🌴जरा सोचिए समुद्र रात-दिन क्यों गरजता है? शायद वह अपनी भाषा मे कुछ बोलता हो जो हम सब नही समझ पा रहे है । भाई किट पतंगे,पशु,पक्षी की भी तो भाषा है। पर हम सब नही समझ पाते । हलाकि पाश्चात्य पंडितों ने इनकी भाषा को समझने की चेष्टा की है और कुछ हद तक सफलता भी मिली है। हमारे यहां ऋषि मुनि भी इनकी भाषा समझते थे । अब यही देखिए हम मानवो की भी भाषा अलग अलग प्रान्तों में बोली जाती है जिसे हम नही समझ पाते है। पर एक येसी भाषा भी है,जो सब जीवो की एक भाषा उसका नाम है । "पश्यंती वाणी " । ऋषिगण चित्त का संयम करने पर इसे समझते थे। और " शकुन - शास्त्र " के रूप में अभी भी कुछ विधमान है। या यों कहें भाव के रूप में भी हम समझ सकते है। हम बाहरी शब्दो की सहायता से ही मन का भाव समझ सकते है । परन्तु यह पूर्ण नही है। एक अर्थ में बन्धुओ यह भी कह सकते है कि हम उनकी भाषा को समझना नही चाहते। मनुष्य बड़ा अहंकारी होता है हम किसी दूसरे की ज्ञान,भाषा,बुद्धि,भाव, आदि स्वीकार ही नही करना चाहते है । पर हमारे समझ से ये सब छाती के जोर के सिवा और कुछ नही है । अब देखिए --- एक बाघ भी मनुष्य का गला पकड़कर उसका खून पीते हुए यह सोचता है कि मनुष्य अज्ञानी जीव है,ज्ञानी तो हम है। तभी तो इसका गला पकड़कर खून पी रहे है । भाव की हम अभिमान के कारण एक दूसरे को नीचा,तुक्ष समझते है,किसी की उपदेश,ज्ञान,बुद्धि आदि को सुनना ही नही चाहते है। पर यदि बन्धुओ हम सबके सुर को एक मे यदि लय कर दे मिला दे तो हम सबकी भाषा समझ सकते है। भाव की अगर जीव दूसरे जीव के साथ सुर मिला दे तो समझ सकते है। अब देखिए वाद्य यंत्र हारमोनियम,तबला,सितार,बेंजो आदि वो क्या बोलते है ये हम नही समझते है उसकी भाषा हम नही समझते है। पर यदि हमारी सुर और उसके सुर जब मिलते है तब हम समझते है कि इसकी भी वही भाषा वही है जो हमारी है। ठीक उसी प्रकार भगवान के साथ भी हमे इसी तरह सुर मिला देना चाहिए ।क्योंकि भगवान को पाने का यही तो साधन है। जहां उनके साथ हमारे सुर मिला तो हमारा कल्याण निश्चित है । आप सभी विद्वत समाज,भूदेव, से आग्रह कुछ गलती हो गई हो तो इस अबोध को क्षमा करने के साथ मार्गदर्शन देने की कृपा करें । 🌹🌴🙏🙏🙏
[5/4, 08:23] ‪+91 98670 61250‬: *सर्वार्थसंभवो देहो जनित: पोषितो यत: ।*
*न तयोर्याति निर्वेशं पित्रोर्मत्र्य: शतायुषा ॥*

*भावार्थ -* सौ वर्ष की आयु प्राप्त करके भी माता-पिता के ऋण से उऋण नही हुआ जा सकता । वास्तव में जो शरीर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति का प्रमुख साधन है, उसका निर्माण तथा पालन-पोषण जिनके द्वारा हुआ है, उनके ऋण से मुक्त होना कठिन ही नही, सर्वथा असम्भव है ।
🙏💐🌼🌺 *सुप्रभात*🌺🌼💐🙏
[5/4, 08:43] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूल श्लोकः 🔔*
यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।३.१३।।
*🌷पदार्थः...... 🌷*
यज्ञशिष्टाशिनः — यज्ञशेषभोजिनः
सन्तः — साधवः
सर्वकिल्बिषैः — सकलपापैः
मुच्यन्ते — त्यजन्ते
ये पापाः — ये च पापिनः
आत्मकारणात् — आत्मार्थम्
पचन्ति — पचन्ति
ते तु — तादृशाः तु
अघम् — पापम्
भुञ्जते — अनुभवन्ति।
*🌻अन्वयः 🌻*
यज्ञशिष्टाशिनः सन्तः सर्वकिल्बिषैः मुच्यन्ते। ये च पापाः आत्मकारणात् पचन्ति ते तु अघं भुञ्जते।
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_मुच्यन्ते।_
कैः मुच्यन्ते?
*सर्वकिल्बिषैः मुच्यन्ते।*
के सर्वकिल्बिषैः मुच्यन्ते?
*सन्तः सर्वकिल्बिषैः मुच्यन्ते।*
कीदृशाः सन्तः सर्वकिल्बिषैः मुच्यन्ते?
*यज्ञशिष्टाशिनः सन्तः सर्वकिल्बिषैः मुच्यन्ते।*
_पचन्ति।_
कस्मात् पचन्ति?
*आत्मकारणात् पचन्ति।*
ये आत्मकारणात् पचन्ति ते कीदृशाः भवन्ति?
*ये आत्मकारणात् पचन्ति ते भुञ्जते।*
ये आत्मकारणात् पचन्ति ते कीदृशाः भुञ्जते?
*ये आत्मकारणात् पचन्ति ते पापाः भुञ्जते।*
ये आत्मकारणात् पचन्ति ते पापाः किं भुञ्जते?
*ये आत्मकारणात् पचन्ति ते पापाः अघं भुञ्जते।*
*📢 तात्पर्यम्......*
ये यज्ञशेषं भुञ्जते ते सर्वेsपि श्रेष्ठाः पुरुषाः पापान्मुक्ताः भवन्ति। ये च पापिनः आत्मार्थं पचन्ति ते तु पापमेव भुञ्जते।
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
सन्तो मुच्यन्ते = सन्तः + मुच्यन्ते - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः।
त्वघम् = तु + अघम् - यण्सन्धिः।
पापा ये = पापाः + ये - विसर्गसन्धिः (लोपः)।
पचन्त्यात्मकारणात् = पचन्ति + आत्मकारणात् - यण्सन्धिः।
▶ समासः
यज्ञशिष्टाशिनः = यज्ञस्य शिष्टम् यज्ञशिष्टम् - षष्ठीतत्पुरुषः।
# यज्ञशिष्टम् अशितुं शीलं येषां ते - कर्तरि णिनि उपपदसमासश्च।
आत्मकारणात् = आत्मैव कारणम्, तस्मात् - कर्मधारयः।
▶ कृदन्तः
सन्तः = अस् + शतृ (कर्तरि)।
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                              *गीताप्रवेशात्*
[5/4, 08:50] व्यासup: युधिष्ठर को पूर्ण आभास था,
कि कलयुग में क्या होगा ?
पूरा अवश्य पढें।
अच्छा लगेगा।

पाण्डवों का अज्ञातवाश समाप्त होने में कुछ समय शेष रह गया था।

पाँचो पाण्डव एवं द्रोपदी जंगल मे छूपने का स्थान
ढूंढ रहे थे।

उधर शनिदेव की आकाश मंडल से पाण्डवों पर नजर पड़ी शनिदेव के मन विचार आया कि इन 5 में बुद्धिमान कौन है परीक्षा ली जाय।

शनिदेव ने एक माया का महल बनाया कई योजन दूरी में उस महल के चार कोने थे, पूरब, पश्चिम, उतर, दक्षिण।

अचानक भीम की नजर महल पर पड़ी
और वो आकर्षित हो गया ,

भीम, यधिष्ठिर से बोला- भैया मुझे महल देखना है भाई ने कहा जाओ ।

भीम महल के द्वार पर पहुंचा वहाँ शनिदेव दरबान के रूप में खड़े थे,

भीम बोला- मुझे महल देखना है!

शनिदेव ने कहा- महल की कुछ शर्त है ।

1- शर्त महल में चार कोने हैं आप एक ही कोना देख सकते हैं।
2-शर्त महल में जो देखोगे उसकी सार सहित व्याख्या करोगे।
3-शर्त अगर व्याख्या नहीं कर सके तो कैद कर लिए जाओगे।

भीम ने कहा- मैं स्वीकार करता हूँ ऐसा ही होगा ।

और वह महल के पूर्व छोर की ओर गया ।

वहां जाकर उसने अद्भूत पशु पक्षी और फूलों एवं फलों से लदे वृक्षों का नजारा देखा,

आगे जाकर देखता है कि तीन कुंए है अगल-बगल में छोटे कुंए और बीच में एक बडा कुआ।

बीच वाला बड़े कुंए में पानी का उफान आता है और दोनों छोटे खाली कुओं को पानी से भर देता है। फिर कुछ देर बाद दोनों छोटे कुओं में उफान आता है तो खाली पड़े बड़े कुंए का पानी आधा रह जाता है इस क्रिया को भीम कई बार देखता है पर समझ नहीं पाता और लौटकर दरबान के पास आता है।

दरबान - क्या देखा आपने ?

भीम- महाशय मैंने पेड़ पौधे पशु पक्षी देखा वो मैंने पहले कभी नहीं देखा था जो अजीब थे। एक बात समझ में नहीं आई छोटे कुंए पानी से भर जाते हैं बड़ा क्यों नहीं भर पाता ये समझ में नहीं आया।

दरबान बोला आप शर्त के अनुसार बंदी हो गये हैं और बंदी घर में बैठा दिया।

अर्जुन आया बोला- मुझे महल देखना है, दरबान ने शर्त बता दी और अर्जुन पश्चिम वाले छोर की तरफ चला गया।

आगे जाकर अर्जुन क्या देखता है। एक खेत में दो फसल उग रही थी एक तरफ बाजरे की फसल दूसरी तरफ मक्का की फसल ।

बाजरे के पौधे से मक्का निकल रही तथा
मक्का के पौधे से बाजरी निकल रही । अजीब लगा कुछ समझ नहीं आया वापिस द्वार पर आ गया।

दरबान ने पूछा क्या देखा,

अर्जुन बोला महाशय सब कुछ देखा पर बाजरा और मक्का की बात समझ में नहीं आई।

शनिदेव ने कहा शर्त के अनुसार आप बंदी हैं ।

नकुल आया बोला
मुझे महल देखना है ।

फिर वह उत्तर दिशा की और गया वहाँ उसने देखा कि बहुत सारी सफेद गायें जब उनको भूख लगती है तो अपनी छोटी बछियों का दूध पीती है उसे कुछ समझ नहीं आया द्वार पर आया ।

शनिदेव ने पूछा क्या देखा ?

नकुल बोला महाशय गाय बछियों का दूध पीती है यह समझ नहीं आया तब उसे भी बंदी बना लिया।

सहदेव आया बोला मुझे महल देखना है और वह दक्षिण दिशा की और गया अंतिम कोना देखने के लिए क्या देखता है वहां पर एक सोने की बड़ी शिला एक चांदी के सिक्के पर टिकी हुई डगमग डोले पर गिरे नहीं छूने पर भी वैसे ही रहती है समझ नहीं आया वह वापिस द्वार पर आ गया और बोला सोने की शिला की बात समझ में नहीं आई तब वह भी बंदी हो गया।

चारों भाई बहुत देर से नहीं आये तब युधिष्ठिर को चिंता हुई वह भी द्रोपदी सहित महल में गये।

भाइयों के लिए पूछा तब दरबान ने बताया वो शर्त अनुसार बंदी है।

युधिष्ठिर बोला भीम तुमने क्या देखा ?

भीम ने कुंऐ के बारे में बताया

तब युधिष्ठिर ने कहा- यह कलियुग में होने वाला है एक बाप दो बेटों का पेट तो भर देगा परन्तु दो बेटे मिलकर एक बाप का पेट नहीं भर पायेंगे।

भीम को छोड़ दिया।

अर्जुन से पुछा तुमने क्या देखा ??

उसने फसल के
बारे में बताया

युधिष्ठिर ने कहा- यह भी कलियुग में होने वाला है।
वंश परिवर्तन अर्थात ब्राह्मण के घर शूद्र की लड़की और शूद्र के घर बनिए की लड़की ब्याही जायेंगी।

अर्जुन भी छूट गया।

नकुल से पूछा तुमने क्या देखा तब उसने गाय का वृतान्त बताया ।

तब युधिष्ठिर ने कहा- कलियुग में माताऐं अपनी बेटियों के घर में पलेंगी बेटी का दाना खायेंगी और बेटे सेवा नहीं करेंगे ।

तब नकुल भी छूट गया।

सहदेव से पूछा तुमने क्या देखा, उसने सोने की शिला का वृतांत बताया,

तब युधिष्ठिर बोले- कलियुग में पाप धर्म को दबाता रहेगा परन्तु धर्म फिर भी जिंदा रहेगा खत्म नहीं होगा।।  आज के कलयुग में यह
सारी बातें सच
साबित हो रही है ।।

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[5/4, 11:02] ‪+91 98670 61250‬: आज गुरुवार को जानिये देवगुरु वृहस्पति के बारे में।

तैत्तिरीय ब्राह्मण और ऋगवेद संहिता में सबसे पहले अत्यंत उच्च स्वर्ग लोक में प्रकट हुआ, ऐसा कहा गया है । सबसे पहली बार वैदिक ऋषियों ने इसे तिष्य ( पुष्य ) नक्षत्र के पास देखा।

शब्दकल्पद्रुम के अनुसार।
अंगरिस पुत्रः च देवानां गुरुः, धर्मशास्त्र प्रयोजकः, नवग्रहमध्ये पंचम ग्रहश्च ।
वृहस्पति अंगरिस ऋषि के पुत्र हैं, देवताओं के मार्गदर्शक हैं, गुरु पद पर सुशोभित हैं, धर्म शास्त्र के मर्मज्ञ ज्ञाता एवं नव ग्रह के मध्य पांचवें चक्र में स्थापित तेजस्वी ग्रह हैं । इनके वृहद् आकर के कारण इनका नाम वृहस्पति पडा।

पौराणिक कथा के अनुसार।
ऋषि अंगरिस के पुत्र हुए अथर्वन ।अर्थवन के पुत्र हुए उशिज ।उशिज के तीन पुत्र हुए । 1. उचस्थ 2. वृहस्पति और 3. संवर्त ।
उचथ्य की पत्नि का नाम ममता था । ममता जब गर्भवती थी तब वृहस्पति ने उसके साथ व्यभिचार करने की चेष्टा की।गर्भस्थ शिशु ने विरोध किया तो वृहस्पति ने उसे जन्मान्ध होने का श्राप दे दिया।उचथ्य के इस तेजस्वी बालक का नाम दीर्घतमा रखा गया जो जन्म से अन्धा होते हुए षडांग वेदों का ज्ञाता था । उसने अपने तपस्या के बल से दृष्टि वापस प्राप्त कर ली।
दीर्घतमा के वर से राजा बलि को मिला था पांच पुत्र।
पाताल के राजा बलि की स्त्री सुदेष्णा को दीर्घतमा के आशीर्वाद से क्रमशः अंग, बंग , कलिंग , पौंड्र नाम के पांच पुत्रों की प्राप्ति हुई । इनके नाम से पांच प्रदेश बन गए।

महाभारत के अनुसार।
महाभारत के आदि पर्व के अनुसार वृहस्पति अंगिरा ऋषि के पुत्र थे । अंगिरा ऋषि की पत्नि ने सनतकुमारों के बताए व्रतों का पालन करके वृहस्पति को पुत्र रत्न के रूप में प्राप्त किया था ।

वृहस्पति ग्रह और गुरु कैसे बने
स्कंद पुराण के अनुसार वृहस्पति ने प्रभास तीर्थ में जाकर भगवान शंकर की कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें देवगुरु का पद और ग्रहत्व प्राप्त करने का वर दिया।( श्री मद् भागवत महापुराण 5/22/15 )

वृहस्पति का परिवार।
देवगुरु वृहस्पति की एक पत्नि का नाम शुभा और दूसरी पत्नि का नाम तारा है । शुभा से सात कन्याएं हुई भानुमति, राका, अर्चिष्मति, महामति, महिष्मति, सिनीवाली और हविष्मति ।तारा से सात पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुई । उनकी तीसरी पत्नि ममता से भरद्वाज और कच नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए।

।सप्त ऋषियों में एक हैं भरद्वाज।भरद्वाज, वाल्मीकि के पट्ट शिष्य रहे ।
वृहस्पति के अधिदेवता इन्द्र और प्रत्यधि देवता ब्रह्मा हैं ।

ऋग्वेद के अनुसार।
वृहस्पति अत्यंत सुंदर है । इनका आवास स्वर्ण निर्मित है । ये विश्व के लिए वरणीय है । ये अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें संपत्ति तथा बुद्धि से संपन्न कर देते हैं, उन्हें सन्मार्ग पर चलाते हैं । और विपत्ति में उनकी रक्षा भी करते हैं । शरणागत वत्सलता का गुण इनमें कूट कूट कर भरा हुआ है । देवगुरु वृहस्पति का वर्ण पीत है ।

वृहस्पति का विचित्र रथ।
वृहस्पति का रथ संपूर्ण सोने का बना है । इनमें वायु के समान वेग वाले पीले रंग के आठ घोडे जुते रहते हैं । वृहस्पति के रथ का नाम नीतिघोष है !!
[5/4, 11:44] ‪+91 94501 23732‬: सर्वे कार्याणि कुर्वन्ति फलमिच्छन्ति सर्वदा।
     अनेनैव हि कार्येषु रुचिर्वै जायते सदा।।
  परिपूर्णं यथा चन्द्रमवलोक्य मुदितो भवति सागरः।
परकार्याणि समवलोक्य भवन्ति सुजनाः हर्षविह्वला:।
       धनं प्राप्तं बलं प्राप्तमिच्छा वै यशसे भवति।
       पुरस्कारै: सा इच्छा परिपूर्णा जायते सदा।।
    जीवने लब्धा यदि शान्तिर्यदि लब्धा भगवत्कृपा।
        स एव प्रथमपुरस्कारः प्राप्तो मानवजीवने।।
                                   डा गदाधर त्रिपाठी
[5/4, 11:57] ‪+91 94501 23732‬: सर्वे कार्याणि कुर्वन्ति फलमिच्छन्ति सर्वदा।
     अनेनैव हि कार्येषु रुचिर्वै जायते सदा।।
  परिपूर्णं यथा चन्द्रमवलोक्य मुदितो भवति सागरः।
परकार्याणि समवलोक्य भवन्ति सुजनाः हर्षविह्वला:।
       धनं प्राप्तं बलं प्राप्तमिच्छा वै यशसे भवति।
       पुरस्कारै: सा इच्छा परिपूर्णा जायते सदा।।
    जीवने लब्धा यदि शान्तिर्यदि लब्धा भगवत्कृपा।
        स एव प्रथमपुरस्कारः प्राप्तो मानवजीवने।।
                                   डा गदाधर त्रिपाठी
[5/4, 13:22] पं अर्चना जी: 🌹🌹ऊँ0 शिवः हरिः 🌹🌹
~~~~~~~~~~~~~~~~~
कुछ ख्वाहिशें को मेरी,लोग इल्जाम लगा बैठे,,

जिन्हें अपना बनाना चाहा,
वो गुनहगार बना बैठे!!

रब से दुआ है मेरी उम्र भी लग जाये उनको,
जो अपनी जिंदगी का सितमगार बना बैठे!!

हम हैं जमीं के जर्रे, ना आसमाँ की ख्वाहिश,
खुद को ही अपने जुल्म का शिकार बना बैठे!!

मिल जाती अगर थोड़ी रजकण, तेरे चरण की,
है श्याम मेरे कांन्हाँ,तुझको ही अपनी जिंदगी का संसार बना बैठे!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
       स्वरचित  अर्चना भूषण त्रिपाठी,,"भावुक""
       (4/5/2017)
[5/4, 13:29] पंडित अजय जी: श्रीगुरुचरणकमलेभ्यो नमः
जय सियाराम
आप समस्त आदरणीयगण को मेरा सहृदयिक नमन। हमारे प्रिय अनुज रोहित जी ने आप सबके इस सार्थक प्रयास के बारे में मुझे बताया था कि आप सब सनातन संस्कृति के संवर्धन में किस प्रकार अपना योगदान यथासामर्थ्य दे रहें हैं। मेरे आदरणीय गुरुजी का आशीष ही मुझे आप सबके स्नेह का पात्र बनाने का कारण हुआ है । आशा करता हूँ कि आप सबके स्नेह सानिध्य की कृपा से सनातनी संस्कृति के उत्थान में सहयोगी बन सकूँ । जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति में आप सबके सहयोग की अपेक्षा रहेगी ।
सबको पुनः प्रणाम
जय जय सियाराम
सर्वे भवन्तु सुखिनः....
[5/4, 13:33] पंडित अजय जी: गुरुकृपा से मेरे प्रिय अनुज रोहित बाबू ने पिछली बार के वार्तालाप में मुझे एक विषय पर भजन लिखने हेतु नवऊर्जा से पोषित किया था; किंतु समयाभाववश उस समय यह कार्य पूर्ण न हो सका । मैं उस अपूर्ण देवकार्य हेतु तुरन्त लिखने की कोशिश कर रहा हूँ । आप सबके मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ेगी...... सहयोग कीजियेगा...... निवेदन....!
[5/4, 13:41] पंडित अजय जी: हमारी किशोरी  कल्पवृक्ष के नीचे खड़ी हैं एवं हमारे श्याम जी के लिए पुष्पों की सुंदर माला बना रही हैं। उनके करुणा भरे नयनों से प्रेमायुक्त अश्रु प्रवाहित हो रहे हैं; वे कान्हा जी से मिलने को आतुर हैं एवं मन में विचार कर रही हैं कि अपने नाथ के लिए किस प्रकार पुष्पों को गूँथ दूँ या कितना अनोखा बना दूँ कि मेरे नारायण आनंदित हो जाएं.......
उधर पीछे एक वृक्ष के आड़ में सांवरे सरकार खड़े होकर राधारानी को देख रहें हैं एवं देख-देखकर प्रसन्न हो रहें हैं। हालांकि उन्हें राधे जी के नेत्रों में आसुओं का होना व्यथित कर रहा है, किंतु वे उनके सौंदर्यपान को बीच में जाकर अधूरा नही छोड़ना चाहते।
अहा! अद्भुत दृश्य है। आइये आनंद लेते हैं.......
.
[5/4, 13:45] पं अनुरागी जी: 🌺🌺🌳🍀🌺🌺

🌻सुस्वागतमतिथये🌻

अतिथि प्राणप्रिय लागहिं जेहीं ।
  तेहिं उर बसहु सहित वैदेहीं ।।
   
   धर्मार्थ के पुनीत प्रांगण में पधारे
     अतिथि देव !!
       आपका अभिनन्दन
           🌳🙏🏼🌳

उपवन को नित मधु मुकुल नवल रस गागरी  से अभिसिंचित करने वाले अनुज ओमीश जी के लिए "आभार "  शब्द  निरर्थक प्रतीत हो रहा है ।
     अपने सार्थक प्रयास से
        संघ को अनुग्रहीत करते रहें
[5/4, 14:09] पंडित अजय जी: श्रीगुरुचरणकमलेभ्यो नमः

पुष्पों को चुनकर राधे माला बना रहीं हैं
पुष्पों को चुनकर राधे माला बना रहीं हैं
देख-देख उनकी शोभा सृष्टि लजा रही है
पुष्पों को चुनकर राधे....................

हमारी किशोरी जी कह रही हैं
१....
कोई उपाय इन संग ;अपना हृदय लगा दूँ
कैसी है प्रीति मन में ; कैसे उन्हें बता दूँ
कोई उपाय इन संग; अपना हृदय लगा दूँ
कैसी है प्रीत मन में ; कैसे  उन्हें बता दूँ
यही सोच-सोच राधे ; झरने बहा रहीं
हैं
पुष्पों को चुनकर राधे.....................

हमारे नारायण जी मन में विचार कर रहे हैं कि
२......

मेरी राधिका दुलारी ;तूने गलत किया रे!
अनमोल इस हृदय को; संग क्यों पिरो दिया रे!
मेरी राधिका दुलारी;तूने गलत किया रे!
अनमोल इस हृदय को संग क्यों पिरो दिया रे!
भावों की बहती सरिता;कैसे हृदय समा लूँ.....
पुष्पों को चुनकर राधे.........

किशोरी जी को इसका भान नही है कि नारायण पीछे ही पेड़ की आड़ में खड़े हैं, वे कह रही हैं.......

कोई तो ढूंढ लाए ;जाने हैं किस सदय में
यह धुन सुनाए उनको; जो उठ रहा हृदय में
कोई तो ढूंढ लाए;जाने हैं किस सदय में
यह धुन सुनाए उनको;जो उठ रहा हृदय में
हर साँस-साँस संग वे; मुरली बजा रहा हैं
पुष्पों को चुनकर राधे........

यह सब महसूस कर नारायण का धैर्य जबाब दे गया । वे प्रेम के वशीभूत होकर राधेरानी के सामने आ गए। अब भक्तों का प्रेम-हृदय क्या कहता है उसकी एक झलक........

बहियों का हार राधे;सबसे उपाय उत्तम
हृदय की पुकार राधे;है रागिनी सर्वोत्तम
बहियों का हार राधे ; सबसे उपाय उत्तम
हृदय की पुकार राधे ;है रागिनी सर्वोत्तम
अँखियों के झील में खो;मन मुस्कुरा रही हैं
पुष्पों को चुनकर राधे......
@अजय प्रकाश पांडेय
[5/4, 14:12] पंडित अजय जी: अद्भुत.....
आदरणीय केवल मेरे हृदय के भाव को समझिये.....

मेरी स्थिति माता सबरी वाली है ,
बस प्रेम..... इससे इतर कुछ जान न सका आज तक ।
[5/4, 15:20] पं अनुरागी जी: रामहिं केवलु प्रेमु पियारा

नमो नमः

प्रभु शबरी आश्रम से ऋष्यमूक की ओऱ बन पथ में हैं सौमित्र श्री राघव से निवेदन कर रहे हैं
     हमें सुग्रीव के पास नहीं चलना चाहिए प्रभु । क्यूँकि जब रावण अकेले  ऋष्यमूक के ऊपर से जा रहा था उस समय सुग्रीव मंत्री गण के साथ थे । रावण को नहीं रोक सके आज तो रावण अपने अभेद्य दुर्ग में है ऐसे में सुग्रीव हमारी क्या सहायता कर सकेंगे भला । प्रभु श्री राम कह रहे हैं कि सुग्रीव हमारी सहायता कर सकेंगे या नहीं हम इस पर चिंतन नहीं करेंगे हम तो शबरी माँ के आदेश का पालन करेंगे ।
    नवधा धारण करने वाली महान शबरी माँ को प्रणाम 🙏🏼
[5/4, 18:57] घनश्याम जी पं: 🌴🌹भक्ति में जो विघ्न करे,उसका त्याग कर देना चाहिए,चाहे कोई भी हो । यैसे दुर्जनो से दूर रहना चाहिए ।🌹🌴पर ध्यान रहे सद्भाव में कमी नही होना चाहिए । किसी भी जीव के लिए मनमें कुभाव नही लाना चाहिए। क्योंकि सभी जीव ईश्वर के अंश है।"ईश्वर अंश जीव अविनाशी "। चाहे दुर्जन हो या सज्जन,पापी हो या पुण्यात्मा,धर्मी हो या अधर्मी सभी भगवान के ही है। दुष्टों से दुर्जनो से दूर रहे पर उसके प्रति कुभाव अच्छा नही । ये मेरा मानना है। कुभाव भक्ति में विघ्न उपस्थित करता है । सन्तजन कहते है । कि धर्म भगवान के हृदय में है और अधर्म भगवान के पीठ पर । इसलिए पापी से,अधर्मी से दूर रहे पर कुभाव न रखे । यही कारण है कि विदुर जी ने धृतराष्ट्र का परित्याग किया ,पर उसके प्रति सद्भाव नही । आप सभी विद्वतजन को नमन बन्दन । कोई भूल हो गई हो तो क्षमा करें ।🙏🙏
[5/4, 21:02] पं अनुरागी जी: नमो नमः

चितचोर हैं  कभी निकुंज में छुपकर रास राशेश्वरी किशोरी जू को तड़पाते हैं तो कभी लता ओट में छुपकर विदेहराजा की योग वाटिका में श्री जानकी जू को ब्यथित करते हैं ।
       कभी सरकार का चित्त जब  भक्त चुराते हैं तो उनकी अनुभूति का अनुभव करते हैं
      राघव जी को किरात कोल आकर निवेदित करते है कि भरत जी आ रहे हैं ।  बार बार अवलोकन कर रहे हैं उस मार्ग का जहां से प्रेमाचार्य का आगमन होना है ।
कर कमलनि धनु सायक फेरत

      तनिक इस स्थान पर चित चोर के चित्त का अनुभव करें ।
       श्री भरत जी संत हैं । तदनुकूल ब्यवहार करते हैं
पाहि नाथ कहि पाहि गोसाईं
    भूतल परे लकुट की नाईं ।।

            मार्ग में हूँ प्रेमी को पाकर प्रेम छलक गया । समय निकालकर उपस्थित होता हूं ।
        अनुरागी जी
[5/4, 21:03] ‪+91 95548 67212‬: टेढ़े कान्हा

एक बार की बात है - वृंदावन का एक साधू अयोध्या की गलियों में राधे कृष्ण - राधे कृष्ण जप रहा था । अयोध्या का एक साधू वहां से गुजरा तो राधे कृष्ण राधे कृष्ण सुनकर उस साधू को बोला - अरे जपना ही है तो सीता राम जपो, क्या उस टेढ़े का नाम जपते हो ?

वृन्दावन का साधू भडक कर बोला - ज़रा जुबान संभाल कर बात करो, हमारी जुबान भी पान भी खिलाती हैं तो लात भी खिलाती है । तुमने मेरे इष्ट को टेढ़ा कैसे बोला ?

अयोध्या वाला साधू बोला इसमें गलत क्या है ? तुम्हारे कन्हैया तो हैं ही टेढ़े । कुछ भी लिख कर देख लो-
उनका नाम टेढ़ा - कृष्ण
उनका धाम टेढ़ा - वृन्दावन

वृन्दावन वाला साधू बोला चलो मान लिया, पर उनका काम भी टेढ़ा है और वो खुद भी टेढ़ा है, ये तुम कैसे कह रहे हो ?

अयोध्या वाला साधू बोला - अच्छा अब ये भी बताना पडेगा ? तो सुन -
जमुना में नहाती गोपियों के कपड़े चुराना, रास रचाना, माखन चुराना - ये कौन सीधे लोगों के काम हैं ? और आज तक ये बता कभी किसी ने उसे सीधे खडे देखा है कभी ?

वृन्दावन के साधू को बड़ी बेइज्जती महसूस हुई , और सीधे जा पहुंचा बिहारी जी के मंदिर । अपना डंडा डोरिया पटक कर बोला - इतने साल तक खूब उल्लू बनाया लाला तुमने ।
ये लो अपनी लुकटी, ये लो अपनी कमरिया, और पटक कर बोला ये अपनी सोटी भी संभालो ।
हम तो चले अयोध्या राम जी की शरण में ।
और सब पटक कर साधू चल दिये ।

अब बिहारी जी मंद मंद मुस्कुराते हुए उसके पीछे पीछे । साधू की बाँह पकड कर बोले अरे " भई तुझे किसी ने गलत भडका दिया है "

पर साधू नही माना तो बोले, अच्छा जाना है तो तेरी मरजी , पर ये तो बता राम जी सीधे और मै टेढ़ा कैसे ? कहते हुए बिहारी जी कूंए की तरफ नहाने चल दिये ।

वृन्दवन वाला साधू गुस्से से बोला -

" नाम आपका टेढ़ा- कृष्ण,
धाम आपका टेढ़ा- वृन्दावन,
काम तो सारे टेढ़े- कभी किसी के कपडे चुरा, कभी गोपियों के वस्त्र चुरा,
और सीधे तुझे कभी किसी ने खड़े होते नहीं देखा। तेरा सीधा है किया"।
अयोध्या वाले साधू से हुई सारी झैं झैं और बइज़्जती की सारी भड़ास निकाल दी।

बिहारी जी मुस्कुराते रहे और चुप से अपनी बाल्टी कूँए में गिरा दी ।
फिर साधू से बोले अच्छा चला जाइये, पर जरा मदद तो कर जा, तनिक एक सरिया ला दे तो मैं अपनी बाल्टी निकाल लूं ।

साधू सरिया ला देता है और कृष्ण सरिये से बाल्टी निकालने की कोशिश करने लगते हैं ।

साधू बोला अब समझ आइ कि तौ मैं अकल भी ना है।
अरै सीधै सरिये से बाल्टी भला कैसे निकलेगी ?
सरिये को तनिक टेढ़ा कर, फिर देख कैसे एक बार में बाल्टी निकल आवेगी ।

बिहारी जी मुस्कुराते रहे और बोले - जब सीधापन इस छोटे से कूंए से एक छोटी सी बालटी नहीं निकाल पा रहा, तो तुम्हें इतने बडे भवसागर से कैसे पार लगा सकेगा ?
अरे आज का इंसान तो इतने गहरे पापों के भवसागर में डूब चुका है कि इस से निकाल पाना मेरे जैसे टेढ़े के ही बस की है ।

" बोलो टेढ़े वृन्दावन बिहारी लाल की जय "💐💐💐

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
[5/4, 21:04] घनश्याम जी पं: 🌴🌹बहुत सुंदर श्रीमान अजय भैयाजी नमन 🙏अद्भुत दर्शन कराया आपने गोलोक विहारिणी राज राजेश्वरी,रास रासेश्वरी श्रीराधाजी एवम श्रीकृष्ण जी का । अद्भुत है। मैं पुनः दिल से❤आपको नमन करता हूँ । भैयाजी आपके लेखनी येसी है कि मैं अपने आप को रोक नही सका और कुछ लिखने का दुःसाहस कर बैठा । विवस हो गया लिखने का जो मैंने सन्तो से सुना है । इसके लिए क्षमा करेंगे । 🙏गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराधा जी का नित्य संयोग होता है वस्तुतः ये दोनों एक है भिन्न नही । नित्य दोनों लीला करती रहती है। एक बार दोनों विहार करने निकली । वही का एक भाव है।🌹💐सुन्दर अनुपम जोड़ी,अति मन को भावति । 🌹देखी मैं आज मग में,कुंजन से आवति -2- - 🌹-(दोनों सुन्दर जोड़ी कुंजन में विहार कर रहे है।ये कवि ने देखा,अनुभव किया । कैसे आ रही है? )🌹पांव धरत हौले हौले गति देख रति लागे 🌹(धीरे धीरे आरहे है )चरणों मे नूपुर ढुलत,मधुर मधुर बाजे ।🌹अंग अंग सोहे गहना, भूषण जड़ाव वाली ।🌹नैनो में सोहे कजरा,अधरन पे होठ लाली ।🌹(सुन्दर शृंगार राधेरानी के । )🌹प्रीतम के कन्धे कर धर,प्यारी आनन्द सो ।🌹अस कही करती बातें, श्याम मुख चन्द्र सो । 🌹(अपने प्रीतम के कंधे पर हाथ रख आनन्द पूर्वक विहार कर रही है और बातें कर रही है। सन्तजन तो यहां तक कहते है कि भगवान को यहां भूख लग गई। तब भगवान ने यहां गौ माता को प्रकट किया।)🌹एहि भांति जो नित्य,लीला करत है दोय ।🌹नारायण रसिक जन बिन,यह रसना जाने कोय । 🌹कुछ गलती होगा तो आप सब इस अबोध को क्षमा करेंगे।🙏🙏🙏
[5/4, 22:09] ‪+91 98976 88858‬: दुख दर्द भरे दुख-आलय में, सुख की अभिलाषा है व्यर्थ यहाँ।
क्षण भंगुर जीवन की बगिया, रमने का नहीं कोई अर्थ यहाँ॥
भगवान की भक्ति करी जो नहीं, समझो किया खूब अनर्थ यहाँ।
परिवार न मित्र न कोई सगा, प्रभु सच्चे हैं साथी समर्थ यहाँ॥जय जय श्री राधे
[5/4, 22:24] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: जयतु,गुरूदेव! आप तो हम सब को किशोरी जी एवं कष्ण जी के अनन्त प्रेमरूपी सागर मे गोता लगवा दिये जिसके लिये आपको यह अबोध बालक हृदय की आखिरी सतह से नमन करता है।
हालाकि कृष्ण और राधा जी ने बचपन के कुछ ही साल साथ-साथ गुजारे, फिर भी आज हजारों साल बाद भी हम उन दोनों प्रेमछवियों को अलग-अलग करके नहीं देख पाते। ऐसा कौन सा जादू था उस रिश्ते में?
जब कृष्ण जी ने गोपियों के कपड़े चुराए तो यशोदा माँ ने उन्हें बहुत मारा और फिर ओखली से बांध दिया। कृष्ण भी कम न थे। मौका मिलते ही उन्होंने ओखली को खींचा और उखाड़ लिया और फौरन जंगल की ओर निकल पड़े, क्योंकि वहीं तो उनकी गायें और सभी साथी संगी थे।
अचानक जंगल में उन्हें दो महिलाओं की आवाजें सुनाईं दी। कृष्ण जी ने देखा वे दो बालिकाएं थीं, जिनमें से छोटी वाली तो राधे जी की सखी ललिता थी और दूसरी जो उससे थोड़ी बड़ी थी, उसे वह नहीं जानते थे, लेकिन लगभग १२ साल की इस लड़की की ओर कृष्ण जी स्वयं ही खिंचते चले गए।वस्तुत: यह देखा जाये।कि
१६साल की उम्र के बाद कृष्ण राधा से कभी नहीं मिले। लेकिन सात से सोलह साल की उम्र तक, राधा के साथ गुजारे उन नौ सालों में राधा हमेशा के लिए कृष्ण का हिस्सा बन गई।इतने कम समय तक साथ रहने के बाद भी अनन्त प्रेम का इतिहास बन गया जिसका गुणगान हम सभी करते रहते हैं और अत्यन्त आनन्दित होते रहते हैं। पूज्यपाद् सूरदास जी  कितना सुन्दर वर्णन करते हैं-----
खेलत हरि निकसै ब्रज-खोरी
कटि कछनी पीतांबर बाँधे, हाथ लिये भौंरा,चक, डोरी ॥
मोर-मुकुट, कुंडल स्रवननि बर, बसन-दमक दामिनि-छबि छोरी ।
गए स्याम रबि-तनया कैं तट, अंग लसति चंदन की खोरी ॥
औचक ही देखी तहँ राधा, नैन बिसाल भाल दिये रोरी ।
नील बसन फरिया कटि पहिरे, बेनी पीठि रुलति झकझोरी ।
संग लरिकिनी चलि इत आवति, दिन-थोरी, अति छबि तन-गोरी ।
सूर स्याम देखत हीं रीझे, नैन-नैन मिलि परी ठगोरी ॥🌸🙏🏻🌸😊
[5/5, 07:35] पं अर्चना जी: 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
          *🌹प्रातः सन्देश🌹*
          *============*
*🌹जो बाहर की सुनता है*
         *वो बिखर जाता है*
      *जो भीतर की सुनता है*
         *वो सँवर जाता है*
*ज़िन्दगी तस्वीर भी है और तकदीर भी*
*फर्क रंगों का है*
*मनचाहे रंगों से बने तो तस्वीर*
*और अनजाने रंगों से बने तो तकदीर।*
*माना दुनियाँ बुरी है ,सब जगह धोखा है,*
*लेकिन हम तो अच्छे बने ,हमें किसने रोका है !*

          *❤ सुप्रभात ❤*
*🌹आप का दिन मंगलमय हो 🌹*
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
[5/5, 09:56] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूल श्लोकः 🔔*
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यः यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।३.१४।।
*🌷पदार्थः...... 🌷*
भूतानि — प्राणिनः
अन्नात् — आहारात्
भवन्ति — जायन्ते
पर्जन्यात् — वृष्टेः
अन्नसम्भवः — आहारोत्पत्तिः भवति
पर्जन्यः — वृष्टिः
यज्ञात् — यागात्
भवति — समुद्भवति
यज्ञः — यागः
कर्मसमुद्भवः — कर्मजन्यः (भवति)।
*🌻अन्वयः 🌻*
अन्नात् भूतानि भवन्ति। पर्जन्यात् अन्नसम्भवः (भवति)। पर्जन्यः यज्ञात् भवति। यज्ञः कर्मसमुद्भवः भवति।
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_भवन्ति।_
कानि भवन्ति?
*भूतानि भवन्ति।*
कस्मात् भूतानि भवन्ति ?
*अन्नात् भूतानि भवन्ति।*
अन्नात् भूतानि भवन्ति। कस्मात् अन्नसम्भवः?
*अन्नात् भूतानि भवन्ति। पर्जन्यात् अन्नसम्भवः।*
अन्नात् भूतानि भवन्ति। पर्जन्यात् अन्नसम्भवः। कस्मात् पर्जन्यः भवति?
*अन्नात् भूतानि भवन्ति। पर्जन्यात् अन्नसम्भवः। यज्ञात् पर्जन्यः भवति।*
अन्नात् भूतानि भवन्ति। पर्जन्यात् अन्नसम्भवः। यज्ञात् पर्जन्यः भवति। यज्ञः कीदृशः?
*अन्नात् भूतानि भवन्ति। पर्जन्यात् अन्नसम्भवः। यज्ञात् पर्जन्यः भवति। यज्ञः कर्मसमुद्भवः।*
*📢 तात्पर्यम्......*
प्राणिनः आहारात् उत्पद्यते। आहारः वृष्टेः भवति। वृष्टिश्च यज्ञात् भवति। यज्ञस्तु कर्मणः समुद्भवति।
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
अन्नाद्भवन्ति = अन्नात् + भवन्ति - जश्त्वसन्धिः।
पर्जन्यो यज्ञः = पर्जन्यः + यज्ञः - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः।
▶ समासः
अन्नसम्भवः = अन्नस्य सम्भवः - षष्ठीतत्पुरुषः।
कर्मसमुद्भवः = कर्मणः समुद्भवः - पञ्चमीतत्पुषः।
▶ कृदन्तः
समुद्भवः = सम् + उत् + भू + अप् (भावे)।
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                              *गीताप्रवेशात्*
[5/5, 10:00] ‪+91 99773 99419‬: 'अन्नाद्भवन्ति भूतानि' – प्राणिनां भोजनम् अन्नम् इति । 'अद भक्षणे' इतस्य धातोः 'क्त'-प्रत्यये कृते 'अदोऽनन्ने' (अष्टाध्यायी३/२/६८) इत्यनेन सूत्रेण 'जग्धः' इति शब्दः निष्पद्यते । यस्य प्राणिनः यत् खाद्यम् अस्ति, तदेवात्र 'अन्नम्' इति उक्तम् । यथा मृत्कीडस्य खाद्यं मृद् अस्ति, तर्हि सा मृदेव तस्य कीडस्य 'अन्नम्' इति । जरायुजाः, उद्भिज्जाः, अण्डजाः, स्वेदजाः च अन्नादेव उत्पद्यन्ते । ततः तेषां जीवननिर्वाहः अन्नादेव भवति । 'पर्जन्यादन्नसम्भवः' – सर्वेषां खाद्यपदार्थानाम् उत्पत्तिः जलाद् भवति । ग्रासादि, अन्नादि च जलेन एव उत्पद्यन्ते । मृतः उत्तपत्तेः पृष्ठेऽपि जलम् एव कारणभूतं भवति । अन्न-वस्त्र-गृहादीनां सर्वेषां शरीरनिर्हवाहवस्तूनां सामग्र्यः जलाधारिताः भवन्ति । जलस्य आधाराः वर्षाः भवन्ति ।

'यज्ञाद्भवति पर्जन्यः' - 'यज्ञः' इत्येषः शब्दः मुख्यतया आहुतिक्रियावाचकः मन्यते । परन्तु गीतायां सर्वत्र कर्तव्यपालनार्थे तस्य शब्दस्य उपयोगः वर्तते । यज्ञे त्यागस्य प्राधान्यम् अस्ति । आहुतौ अन्नादां त्यागः, दाने वस्त्वादीनां त्यागः, तपसि सखोपभोगस्य त्यागः, कर्तव्यकर्मणि स्वार्थत्यागः च । अतः 'यज्ञः' इत्यस्य शब्दस्य अर्थः केवलम् आहुतिक्रियायां न, अपि तु दानकर्तव्यकर्मादिषु शास्त्रविहितक्रियासु अपि उपलक्ष्यकः अस्ति । बृहदारण्यकोपनिषदि काचित् कथा वर्तते । प्रजापतिः विश्ववाट् देवान्, मनुष्यान्, असुरान् च रचयति । ततः तेभ्यः 'द' इत्याक्षरस्य उपदेशं करोति । तस्योपदेशस्य भोगप्रधानाः देवाः 'दमनं', सङ्ग्रहप्रवृत्ताः मनुष्याः 'दानं', हिंसारताः असुराः 'दया' इति अर्थग्रहणं कृतवन्तः । तेषां सर्वेषाम् उपदेशग्रहणस्य तात्पर्यम् अन्येषां हिताय आसीत् । वर्षाकाले मेघगर्जनम् अद्यापि विश्वौहः उपदेशस्य (दमनं, दानं, दया) स्मरणं कारयति । अत्र प्रश्नः भवति यद्, स्वकर्तव्यपालनस्य वर्षाभिस्सह को वा सम्बन्धः ? इति । वचनापेक्षया आचरणस्य प्रभावः अन्येषु अधिकः भवति  । मनुष्याः यदि स्वकर्तव्यपालनं करिष्यन्ति, तर्हि तेषां प्रभावः देवेषु अपि भविष्यति । एवं ते देवाः अपि स्वकर्तव्यपालनं करिष्यन्ति अर्थात् वर्षाः भविष्यन्ति । एतस्मिन् सन्दर्भे काचित् लघ्वी कथा प्रसिद्धा अस्ति । कस्यचित् कृषकस्य चत्वारः पुत्राः आसन् । वर्षाकाले सञ्जातेऽपि वर्षाः न भवन्ति स्म । ते पुत्राः विचारमग्नाः आसन् यद्, वर्षाणाम् अभावे क्षेत्र हलचालनेन को वा लाभः ? इति । परन्तु ततः तैः निश्चयः कृतः यद्, वर्षाः भवन्तु उत न, अस्माभिः तु अस्माकं कर्तव्यस्य पालनं करणीयम् एव । अतः तैः कृषिकार्यम् आरब्धम् । कृषकाः हलं चालयन्तः सन्ति इति दृष्ट्वा मयूरः आश्चर्यचकितः अभवत् । सः अचिन्तयत्, मम ध्वनिम् अश्रुत्वा कृषकाः हलकार्यं कथम् आरब्धवन्तः ? इति । ततः कृषकानां कर्तव्यपालनस्य विषयं ज्ञात्वा सः अचिन्तयत्, अहमपि स्वकर्तव्यपालने किमर्थँ प्रमादी भवामि ? अतः तेनापि सुन्दरध्वनिः निष्पादितः । मयूरध्वनिं श्रुत्वा मेघाः आश्चर्यचकिताः । मयूरस्य कर्तव्यपालननिष्ठां दृष्ट्वा तेऽपि स्वकर्तव्यपालनं कुर्वन्तः गभीरं गर्जनम् अकुर्वन् । मेघानां गर्जनं श्रुत्वा इन्द्रचकितः । सर्वेषां कर्तव्यपालनसज्जतां दृष्ट्वा सः अपि अचिन्तयत्, अहं मे कर्तव्ये किमर्थं शिथिलः भवामि ? इति । तः सोऽपि मेघेभ्यः वर्षाः आज्ञाम् अयच्छत् ।

'यज्ञः कर्मसमुद्भवः' – निष्कामभावपूर्वकं यानि कर्माणि क्रियन्ते, तानि लौकिकशास्त्रविहितानि कर्माणि 'यज्ञः' एव उच्यन्ते । ब्रह्मचारिणे अग्निहोत्रः 'यज्ञः' अस्ति । स्त्रीभ्यः पाककार्यं 'यज्ञः' अस्ति  । सर्वप्रकारकः यज्ञः क्रियाजन्यः एव भवति ।
[5/5, 10:21] ‪+91 98670 61250‬: हमारे घर के अंदर अगर मकड़ी का जाला लग
जाता है तो हम उसे झाड़ू से साफ करते है।

वह जाला झाड़ू पर चिपक जाता है और हमारे घर की साफ सफाई हो जाती है।ठीक इसी तरह हम किसी की बुराई करते हैं या निंदा करते हैं तो समझो हम झाड़ू का काम कर रहे ।

उसकी बुराई अपने सिर पर ले लेते हैं। जिस तरह झाड़ू पर जाला चिपकता उसी ही तरह सामने वाले के अवगुणो के पाप हमारे ऊपर चिपक जाते हैं।

इसलिए कहा गया है किसी की बुराई मत करो।
[5/5, 11:18] घनश्याम जी पं: मैं आज जगत जननी श्रीजनकीजी एवम भगवान श्रीरामजी के एवम सकल चराचर के चरणों मे 🙏प्रणाम कर आप सबको जनकपुर ले जाना चाहता हु। इस मानसिक यात्रा से मुझे विश्वास है आप सब पर माता की कृपा अवश्य मिलेगी ।और सर्वमनोकामना पूर्ण होगी। आइए हम आपको पुष्प वाटिका का दर्शन करते है,वर्णन करते है जिसे रसिकों ने 🌴🌹💐श्रृंगार-युद्ध-रहस्य का नाम दिया है।🌹💐🌴जो रसिक समाज के लिए है।🙏बन्धुओ भगवान श्रीरामजी भैया लक्छ्मण के साथ नगर भ्र्मन के लिए निकले है।जनकपुर की सारे स्त्री पुरुष भगवान की शोभा देख रहे है। देह की सुधि किसी की नही है। सबका मन भगवान ने बस में कर रखे है।भारी भीड़ है स्त्री सब कोठा अटारी से दर्शन का लाभ ले रही है।💐"हिय हरषहिं बरषहिं सुमन सुमुखि सुलोचनि बृंद - - - -"। 💐🌺जानकीजी की सखियां फूल बरसा रही है।💐इसका भाव -- फूल बरसाकर स्वागत कर रही है। 🙏"स्वागतम भगवन" 🙏दूसरा भाव --निमंत्रण दे रही है।आपने हमे बिना स्वामिनी के पाकर हम सबको मोहित कर दिया,घायल कर दिया कल आइए पुष्प वाटिका में आपका भी यही हाल न हुआ तो कहिएगा।🌹भगवान ने सखियों के चैलेंज को स्वीकार किया।ठीक है कल आऊंगा।(मित्रो यह एक मात्र भाव है) बन्धुओ भगवान नगर भ्र्मन कर आये,ओर दूसरे दिन ("युद्ध स्थल")अर्थात पुष्प वाटिका में पहुचते है। मालियों से आज्ञा ले प्रवेश करते है। और सम्पति को खजाना को लूटने लगे । अर्थात फूल तोड़ने लगे।🌺बन्धुओ यहां बाग एक नही बहुत है। पर यह विशेष है। "राजबाग"नाम है।यह ऋतुराज बसन्त की राजधानी है। 🥀🕊चातक,🌴 🐧कोयल,मोर आदि सचिव,मंत्री आदि है।मदनवीर सुहद, पत्र,पुष्प,फल खजाना है।वन, उपवन देश है,मकरन्द आमोद, आदि दुर्ग और सखिया सेना है और श्रीजनकीजी अधिष्ठात्री देवी है। तो मित्रो भगवान बाग की सम्पत्ति लूटने लगे अर्थात फूल तोड़ने लगे एक सखी ने भगवान को ज्योही देखा,और भगवान ने जब देखा सखी भगवान की शोभा देख मोहित हो गई अर्थात घायल हो गई। वह किसी तरह गिरते पड़ते अदिष्ठात्री देवी माँ जानकीजी के पास पहुची और सारा समाचार सुनाई । दो राजकुमार अद्भुत सुन्दर आये है जिन्होंने मेरा ये हाल किया और फूल तोड़ रहे है,खजाना लूट रहे है। जिन्होंने कल हम सबको,पूरे जनकपुर के लोगो को बस में करने वाला है वही आया है।यह खबर पा कर गिरजा पूजन कर सखियों के साथ माँ जानकी जी चली। माँ अपनी सेना लेकर क्रोधित हो चली । इधर मदनवीर ने युद्ध का नगाड़ा आदि बजाया ।अर्थात माँ के करधनी,पायजेब आदि की ध्वनि हो रही है।इधर भगवान को नूपुर,करघनी,पायजेब आदि की आवाज सुनाई दी । "कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनी, कहत लखन सन रामु हृदय गुनी "। ध्वनि येसी मानो कामदेव विश्वविजयी का संकल्प ले डंका पर चोट मार रहा हो। भगवान बोले लक्छ्मण यह ध्वनि सुन रहे हो?यैसा लग रहा है कामदेव विश्व को जीतने चला है अब क्या करे?लक्छ्मण जी कुछ नही बोले । क्या सन्धि कर लिया जाय या मुकाबला किया जाय ? लखन लाल जी सुनकर दंग हो गए । भैया आप बिर होकर सन्धि की बात करते हो?और ठीक उसी समय जानकी जी प्रकट हुई। और प्रभुजी ने जैसे ही माँ को देखा बस देखते रह गए। श्री जानकी जी की मुख चन्द्र का वाण चला और सीधे जाके भगवान के वक्ष स्थल पर लगा प्रभु घायल हो गए। उनकी सारी वीरता,धीरता धरि की धरी रह गई। और ठीक उसी समय सखी ने श्रीजानकी जी को दिखते बोली -- देख देख सखी वो रहा गिरफ्तार कर लो इन्हें छोड़ना मत । और माता ने जैसेही प्रभु को देखा देखती ही रह गई।"थके नयन रघुपति छबि देखे- - - - -!"माता चकित हो गई पलके गिरना बंद हो गया।सुध बुध खो बैठी।पर एक चतुर सखी ने अवगत कराया । सखी देख भाग न पाए गिरफ्तार कर लो और पकड़कर बन्दीगृह में बंद कर लो। जानकीजी अपने आप को सम्हाली और सावधान होकर अपने सौंदर्य रूपी बाण तड़ तड़ ताबड़तोड़ वाण वृष्टि करने लगी।"जह बिलोक मृग सावक नैनी,जनु तह बरसी कमलसित श्रेणी - - -!" बन्धुओ मेरे प्रभु घायल हुए,देह की सुधि न रही ।और इस तरह श्री जानकीजी अपने सौंदर्य रूपी,नेत्र के कटाक्ष रूपी वाण चलाकर मेरे प्रभु को हराकर उन्हें गिरफ्तार कर कैद कर लिए और "लोचनमग रामहि उर आनी, दीन्हे पलक कपाट सयानी - - - - !"श्री जानकी जी ने अपने नेत्र रूपी मार्ग से प्रभु को हृदय रूपी बन्दीगृह में बंद कर,नेत्र के पलकें रूपी किवाड़ को बंद कर चल दिये। अब नही निकल सकोगे । इस तरह बन्धुओ सखिया सब श्री किशोरी जी के जय जयकार करती हुई चली। कहा चली भगवती गौरी के पास क्योकि उनके कृपा से ही विजयी हुई है। "जय गिरवर राज किशोरी - - - -।बन्धुओ बहुत बहुत सक्षेप में वाटिका का दृश्य रखने की कोशिश की ,यह मात्र एक भाव है और कुछ नही । गलतियों के लिए क्षमा। सभी भूदेव,विद्वत समाज को नमन बन्दन🙏🙏🙏
[5/5, 11:26] ‪+91 98896 25094‬: पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है"
   जिसको समस्या न हो"
                      "और"
"पृथ्वी पर कोई समस्या ऐसी नहीं है"
जिसका कोई समाधान न हो...

मंजिल  चाहें  कितनी भी  ऊँची  क्यों न हो,
रास्ते  हमेशा  पैरों  के  नीचे  ही  होते है।
[5/5, 12:37] ओमीश Omish Ji: जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा। करहु सो बेगि दास मैं तोरा॥
निज माया बल देखि बिसाला। हियँ हँसि बोले दीनदयाला॥

भावार्थ:-हे नाथ! जिस तरह मेरा हित हो, आप वही शीघ्र कीजिए। मैं आपका दास हूँ। अपनी माया का विशाल बल देख दीनदयालु भगवान मन ही मन हँसकर बोले-।।
[5/5, 15:16] ‪+91 94501 23732‬: के निवसन्ति सदा अत्र केषां नित्यं गृहं भुवि।
सर्वे यान्ति आयान्ति अतिथिशालेव दृश्यते।।
जगदिदं भाटकगृहं सर्वे भाटकगृहस्वामिनः।
सावधानेन वसितव्यमन्यथा निष्कासनं ध्रुवम्।।
जन्मनः किमानीतं वै किं गच्छति त्वया सह।
  यदस्ति भाटकं वस्तु भाटकं गृह्णातीश्वरः।
विरक्ता: सन्ति अधिवक्तारस्तेषामस्ति कथनमिदम्।
आसक्तिर्न करणीया हि जगदिदं भाटकं गृहम्।।
                                       डा गदाधर त्रिपाठी
[5/5, 15:44] पं अनिल ब: 🙏🏼💐🙏🏼
*बिकती है ना ख़ुशी कहीं*,
*ना कहीं गम बिकता है..*.
*लोग गलतफहमी में हैं*,
*कि शायद कहीं मरहम बिकता है..*.

*इंसान ख्वाइशों से बंधा हुआ एक जिद्दी परिंदा है,*
*उम्मीदों से ही घायल है और*
*उम्मीदों पर ही जिंदा है...!*

     *जय महाँकाल*
[5/5, 15:47] पं अनिल ब: *ज्यों की त्यों से ........*🙏🏼💐🙏🏼नमो नमः🙏🏼💐🙏🏼

जब हाथी चिंघाड़ रहे थे।घोड़े हिनहिना रहे थे, बड़े-बड़े सेनापति मारो-मारो, काटो-काटो धनुष की प्रत्यंचाएँ और शंखनाद, बड़े-बड़े *शंख् दध्मौ प्रतापवान्* सब शंख बज रहे थे, तब श्रीकृष्ण गीता कह रहे थे ।

और

जब हजारों स्त्रियाँ रुदन कर रही थीं, माताएँ बिलख रही थीं, पुत्रों और पौत्रों की लाशें पड़ी थीं, सारा द्वारिका श्मसान हो गया, पौत्र और पुत्रों के शव पड़े हुए थे, तब मुस्कुराते हुए श्रीकृष्ण एकादश का उपदेश कर रहे थे।

*जय महाँकाल*
[5/5, 16:10] पं अनुरागी जी: सादर नमो नमः

सगुणोपासक मोक्ष न लेहीं ।
  तिन्ह कँह राम भगति निज देहीं ।।

         🌺🌺🍀🌺🌺
[5/5, 17:15] घनश्याम जी पं: 🌴🌹💐गुलिस्तां में जाकर जो हर गुल को देखा 🌺ना तेरी सी रंगत न तेरी सी बु है 🌺समाया है जबसे तू नजरो में मेरी 🌹जिधर देखता हूं उधर तू ही तू है ।🌺ये गोविंद जिधर देखता हूं- - - -।🌺
[5/5, 18:58] ‪+91 97530 19651‬: 💐🌷 जय श्रीमन्नारायण🌷💐
      श्रीमते रामानुजाय नमः
एतदर्थं कुलीनानां नृपाः कुर्वन्ति संग्रहम् ।
आदिमध्यावसानेषु न त्यजन्ति च ते नृपम् ।।

भावार्थः

चूँकि बुद्धिमान एवं कुलीन व्यक्ति विपरीत एवं विषम परिस्थितियों में भी साथ नहीं छोड़ते, इसलिए राजा एवं विद्वान् मनुष्य भी इन्हें आश्रय देने के लिए सदा तत्पर रहते हैं। ऐसे सुसंस्कृत एवं विवेकयुक्त मनुष्य विपरीत परिस्थितियों से लड़ने में सक्षम होने के कारण साहसपूर्वक उनका सामना करते हैं।

👏 अडियन रामानुज दासः 👏
            🌺शुभोदयम्🌞🌺
[5/5, 20:51] ओमीश Omish Ji: 🌹रघुवंशम्-1.1 🌹
🌺 श्लोक 🌺

वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थाप्रतिपत्तये।।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ।। 1।।

अन्वयः - (अहम्) वागर्थप्रतिपत्तये वागर्थाविव सम्पृक्तौ जगतः पितरौ पार्वतीपरमेश्वरौ वन्दे।

वाच्यपरिवर्तनं- (मया) वागर्थप्रतिपत्तये वागर्थाविव सम्पृक्तौ जगतः पितरौ पार्वतीपरमेश्वरौ वन्द्येते ।

अहं विशिष्टशब्दार्थयोः सम्यग्ज्ञानार्थे शब्दार्थाविव नित्यसम्मिश्रौ संसारस्य मातापितरौ शिवाशिवौ भक्तया नमस्करोमि इति सरलार्थः। पार्वतीपरमेश्वरौ प्रसन्नौ भूत्वा मयि काव्यरचनाशक्तिं देदीयेतामिति भावः।

भावार्थः-मैं वाणी और अर्थ की सिद्धि के निमित्त वाणी और अर्थ की समान मिले हुए जगत् के माता-पिता पार्वती-शिव को प्रणाम, वंदन करता हूँ।
रघुवंशमहाकाव्य-व्याख्या -- श्रीज्वालाप्रसादमिश्रः-- १९६४✍🙏
[5/5, 21:37] ‪+91 98670 61250‬: गर्मी की छुट्टी में कही कोई *समर कैंप* नहीं होते थे,
पुरानी चादर से छत के कोने पर ही टेंट बना लेते थे ,
क्या ज़माना था जब ऊंगली से लकीर खींच बंटवारा हो जाता था,
लोटा पानी खेल कर ही घर परिवार की परिभाषा सीख लेते थे।
मामा , मासी ,  बुआ, चाचा के बच्चे सब सगे भाई लगते थे,
कज़िन क्या बला होती है कुछ पता नही था।
घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था.

कंचे, गोटियों, इमली के चियो से खजाने भरे जाते थे,
कान की गर्मी से वज़ीर , चोर पकड़ लाते थे,
सांप सीढ़ी गिरना और संभलना सिखलाता था ,
कैरम घर की रानी की अहमियत बतलाता था,
घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था.

पुरानी पोलिश की डिब्बी तराजू बन जाती थी ,
नीम की निंबोली आम बनकर बिकती थी ,
बिना किसी ज़द्दोज़हद के नाप तोल सीख लेते थे ,
साथ साथ छोटों को भी हिसाब किताब सिखा देते  थे ,
माचिस की डिब्बी से सोफा सेट बनाया जाता था ,
पुराने बल्ब में मनीप्लान्ट भी सजाया जाता था ,
घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था.

कापी के खाली पन्नो से रफ बुक बनाई जाती थी,
बची हुई कतरन से गुडिया सजाई जाती थी ,
रात में नानी से भूत की कहानी सुनते थे ,
डर भगाने के लिये हनुमान चालीसा पढते थे,
स्लो मोशन सीन करने  की कोशिश करते थे ,
सरकस के जोकर की भी  नकल उतारते थे ,
सीक्रेट कोड ताली और सीटी से बनाया जाता था ,
घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था.

कोयल की आवाज निकाल कर उसे चिढ़ाते थे,
घोंसले में अंडे देखने पेड पर चढ जाते थे ,
गरमी की छुट्टी में हम बड़ा मजा करते थे ,
बिना होलिडे होमवर्क के भी काफी कुछ सीख लेते थे ,
शाम को साथ बैठ कर हमलोग देखा जाता था ,
घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था......

जैसा भी था मेरा - तेरा बचपन बहुत हसीन था।
*यादे कल की , बीते पल की*
🙏🙏हरे कृष्णा🙏🙏