Tuesday, October 3, 2017

सितम्बर २१/३ की वार्ता।

[9/30, 08:44] पं अनिल ब: *🌹वो रिश्ते बड़े प्यारे होते हैं*,
*जिनमें न हक़ हो, न शक हो*.
*न अपना हो, न पराया हो,*
*न दूर हो, न पास हो..*
*न जात हो, न जज़बात हो*,
*सिर्फ अपनेपन का*      
*एहसास ही एहसास हो*🌹

🌹💝सुप्रभातम 💖🌹
++++++++++++++++++++
🌺🌸🌻🌼🍀🍁🌷🌹🌲🌳
"सारा *जहाॅ* उसीका है
             जो *मुस्कुराना* जानता है 
        *रोशनी* भी उसीकी है जो शमा
                 *जलाना* जानता है

      हर जगह *मंदिर,मस्जिद, गुरूद्वारे* है।
      लेकीन *इश्वर* तो उसीका है जो
              *"सर"*  झुकाना जानता है.....

🌹🌹🍂🍂💐💐आप को पूरे परिवार को दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं✍🏻आचार्य अनिल पाण्डेय
जय महाँकाल🙏🏼🌹🙏🏼
[9/30, 08:54] ‪+91 94554 91582‬: समुद्र मंथन से निकले थे चौदह रत्न, इनमें छिपी है हमारी जीवन पद्धति।पढ़े कौन कौन से हैं चौदह रत्न?

मान्यता के अनुसार, धनतेरस के दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन भगवान धन्वंतरि की विशेष पूजा की जाती है। समुद्र मंथन से धन्वतंरि के साथ अन्य रत्न भी निकले थे। आज हम आपको समुद्र मंथन की पूरी कथा व उसमें छिपे जीवन पद्वति के सूत्रों के बारे में बता रहे हैं-

*ये है समुद्र मंथन की कथा*

धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्ग श्रीहीन (ऐश्वर्य, धन, वैभव आदि) हो गया। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का उपाय बताया और ये भी बताया कि समुद्र मंथन को अमृत निकलेगा, जिसे ग्रहण कर तुम अमर हो जाओगे। यह बात जब देवताओं ने असुरों के राजा बलि को बताई तो वे भी समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए। वासुकि नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया। समुद्र मंथन से उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि सहित 14 रत्न निकले।

समुद्र मंथन को अगर जीवन पद्धति के नजरिए से देखा जाए तो हम पाएंगे कि सीधे-सीधे किसी को अमृत (परमात्मा) नहीं मिलता। उसके लिए पहले मन को विकारों को दूर करना पड़ता है और अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करना पड़ता है।

समुद्र मंथन में 14 नंबर पर अमृत निकला था। इस 14 अंक का अर्थ है ये है 5 कमेन्द्रियां, 5 जनेन्द्रियां तथा अन्य 4 हैं- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। इन सभी पर नियंत्रण करने के बाद में परमात्मा प्राप्त होते हैं।

1. *कालकूट विष* समुद्र मंथन में से सबसे पहले कालकूट विष निकला, जिसे भगवान शिव ने ग्रहण कर लिया। इससे तात्पर्य है कि अमृत (परमात्मा) इस इंसान के मन में स्थित है। अगर हमें अमृत की इच्छा है तो सबसे पहले हमें अपने मन को मथना पड़ेगा। जब हम अपने मन को मथेंगे तो सबसे पहले बुरे विचार ही बाहर निकलेंगे। यही बुरे विचार विष है। हमें इन बुरे विचारों को परमात्मा को समर्पित कर देना चाहिए और इनसे मुक्त हो जाना चाहिए।

2. *कामधेनु* समुद्र मंथन में दूसरे क्रम में निकली कामधेनु। वह अग्निहोत्र (यज्ञ) की सामग्री उत्पन्न करने वाली थी। इसलिए ब्रह्मवादी ऋषियों ने उसे ग्रहण कर लिया। कामधेनु प्रतीक है मन की निर्मलता की। क्योंकि विष निकल जाने के बाद मन निर्मल हो जाता है। ऐसी स्थिति में ईश्वर तक पहुंचना और भी आसान हो जाता है।

3. *उच्चैश्रवा घोड़ा* समुद्र मंथन के दौरान तीसरे नंबर पर उच्चैश्रवा घोड़ा निकला। इसका रंग सफेद था। इसे असुरों के राजा बलि ने अपने पास रख लिया। लाइफ मैनेजमेंट की दृष्टि से देखें तो उच्चैश्रवा घोड़ा मन की गति का प्रतीक है। मन की गति ही सबसे अधिक मानी गई है। यदि आपको अमृत (परमात्मा) चाहिए तो अपने मन की गति पर विराम लगाना होगा। तभी परमात्मा से मिलन संभव है।

4. *ऐरावत हाथी* समुद्र मंथन में चौथे नंबर पर ऐरावत हाथी निकला, उसके चार बड़े-बड़े दांत थे। उनकी चमक कैलाश पर्वत से भी अधिक थी। ऐरावत हाथी को देवराज इंद्र ने रख लिया। ऐरावत हाथी प्रतीक है बुद्धि का और उसके चार दांत लोभ, मोह, वासना और क्रोध का। चमकदार (शुद्ध व निर्मल) बुद्धि से ही हमें इन विकारों पर काबू रख सकते हैं।

5. *कौस्तुभ मणि* समुद्र मंथन में पांचवे क्रम पर निकली कौस्तुभ मणि, जिसे भगवान विष्णु ने अपने ह्रदय पर धारण कर लिया। कौस्तुभ मणि प्रतीक है भक्ति का। जब आपके मन से सारे विकार निकल जाएंगे, तब भक्ति ही शेष रह जाएगी। यही भक्ति ही भगवान ग्रहण करेंगे।

6. *कल्पवृक्ष* समुद्र मंथन में छठे क्रम में निकला इच्छाएं पूरी करने वाला कल्पवृक्ष, इसे देवताओं ने स्वर्ग में स्थापित कर दिया। कल्पवृक्ष प्रतीक है आपकी इच्छाओं का। कल्पवृक्ष से जुड़ा लाइफ मैनेजमेंट सूत्र है कि अगर आप अमृत (परमात्मा) प्राप्ति के लिए प्रयास कर रहे हैं तो अपनी सभी इच्छाओं का त्याग कर दें। मन में इच्छाएं होंगी तो परमात्मा की प्राप्ति संभव नहीं है।

7. *रंभा अप्सरा* समुद्र मंथन में सातवे क्रम में रंभा नामक अप्सरा निकली। वह सुंदर वस्त्र व आभूषण पहने हुई थीं। उसकी चाल मन को लुभाने वाली थी। ये भी देवताओं के पास चलीं गई। अप्सरा प्रतीक है मन में छिपी वासना का। जब आप किसी विशेष उद्देश्य में लगे होते हैं तब वासना आपका मन विचलित करने का प्रयास करती हैं। उस स्थिति में मन पर नियंत्रण होना बहुत जरूरी है।

8. *देवी लक्ष्मी* समुद्र मंथन में आठवे स्थान पर निकलीं देवी लक्ष्मी। असुर, देवता, ऋषि आदि सभी चाहते थे कि लक्ष्मी उन्हें मिल जाएं, लेकिन लक्ष्मी ने भगवान विष्णु का वरण कर लिया। लाइफ मैनेजमेंट के नजरिए से लक्ष्मी प्रतीक है धन, वैभव, ऐश्वर्य व अन्य सांसारिक सुखों का। जब हम अमृत (परमात्मा) प्राप्त करना चाहते हैं तो सांसारिक सुख भी हमें अपनी ओर खींचते हैं, लेकिन हमें उस ओर ध्यान न देकर केवल ईश्वर भक्ति में ही ध्यान लगाना चाहिए।

9. *वारुणी देवी* समुद्र मंथन से नौवे क्रम में निकली वारुणी देवी, भगवान की अनुमति से इसे दैत्यों ने ले लिया। वारुणी का अर्थ है मदिरा यानी नशा। यह भी एक बुराई है। नशा कैसा भी हो शरीर और समाज के लिए बुरा ही होता है। परमात्मा को पाना है तो सबसे पहले नशा छोड़ना होगा तभी परमात्मा से साक्षात्कार संभव है।

10. *चंद्रमा* समुद्र मंथन में दसवें क्रम में निकले चंद्रमा। चंद्रमा को भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया। चंद्रमा प्रतीक है शीतलता का। जब आपका मन बुरे विचार, लालच, वासना, नशा आदि से मुक्त हो जाएगा, उस समय वह चंद्रमा की तरह शीतल हो जाएगा। परमात्मा को पाने के लिए ऐसा ही मन चाहिए। ऐसे मन वाले भक्त को ही अमृत (परमात्मा) प्राप्त होता है।

11. *पारिजात वृक्ष* इसके बाद समुद्र मंथन से पारिजात वृक्ष निकला। इस वृक्ष की विशेषता थी कि इसे छूने से थकान मिट जाती थी। यह भी देवताओं के हिस्से में गया। लाइफ मैनेजमेंट की दृष्टि से देखा जाए तो समुद्र मंथन से पारिजात वृक्ष के निकलने का अर्थ सफलता प्राप्त होने से पहले मिलने वाली शांति है। जब आप (अमृत) परमात्मा के इतने निकट पहुंच जाते हैं तो आपकी थकान स्वयं ही दूर हो जाती है और मन में शांति का अहसास होता है।

12. *पांचजन्य शंख* समुद्र मंथन से बारहवें क्रम में पांचजन्य शंख निकला। इसे भगवान विष्णु ने ले लिया। शंख को विजय का प्रतीक माना गया है साथ ही इसकी ध्वनि भी बहुत ही शुभ मानी गई है। जब आप अमृत (परमात्मा) से एक कदम दूर होते हैं तो मन का खालीपन ईश्वरीय नाद यानी स्वर से भर जाता है। इसी स्थिति में आपको ईश्वर का साक्षात्कार होता है।

13 व 14. *भगवान धन्वंतरि व अमृत कलश*
समुद्र मंथन से सबसे अंत में भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले। भगवान धन्वंतरि प्रतीक हैं निरोगी तन व निर्मल मन के।

जब आपका तन निरोगी और मन निर्मल होगा तभी इसके भीतर आपको परमात्मा की प्राप्ति होगी। समुद्र मंथन में 14 नंबर पर अमृत निकला। इस 14 अंक का अर्थ है ये है 5 कमेंद्रियां, 5 जननेन्द्रियां तथा अन्य 4 हैं- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। इन सभी पर नियंत्रण करने के बाद में परमात्मा प्राप्त होते हैं।
[9/30, 10:00] कख: *💐🌷जय श्रीमन्नारायण🌷💐*
      *श्रीमते रामानुजाय नमः*
*शमि शमयते पापं शमीशत्रु विनाशनं।*
*अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शनम्।।*
*किं कुलेन विशालेन विद्याहीनेन देहिनाम्।*
*दुष्कुलीनोपि विद्वांश्च देवैरपि सुपूज्यते।।*

*भावार्थः*
इस श्लोक द्वारा आचार्यों ने विद्वत्ता के महत्व पर प्रकाश डाला है। वे सटीक शब्दों में कहते हैं कि विद्वत्ता एवं गुणों के अभाव में उच्च कुल में जनमा व्यक्ति भी तिरस्कार का भागी बन जाता है। इसके विपरीत नीच कुल में जनमा विद्वान् एवं गुणों से युक्त व्यक्ति भी समाज में ऊंचा स्थान प्राप्त करता है। अर्थात् महान् बनने के लिए मनुष्य का उच्च कुल में जन्म लेना ही पर्याप्त नहीं है। इसके लिए उसका सहनशील, संतोषी, विद्वान एवं परोपकारी होना भी आवश्यक है।

             *🌺 विष्णु वर्धनाचार्यः🌺*
🌸 *सर्वेषां कृते विजयदशमी पर्वणः शुभाषयाः🌞🌸*
[9/30, 11:07] हरिमोहन: 🌹🌹सर्वेभ्यो नमो नमः सुप्रभातम🌷🌷
  धर्मार्थ वार्ता समाधान परिवार में उपस्थित सभी विद्युत जनो को यथायोग्य प्रणाम आप लोगों से मेरी एक जिज्ञासा है कि क्या ब्राह्मण को एक ही गोत्र की कन्या के साथ विवाह करना चाहिए और अगर करे तो उससे क्या हानि  होगी और क्या कोई इसका निराकरण है आप सब से अनुरोध है शीघ्र स्पष्टीकरण देने की कृपा करें

धन्यवाद
[9/30, 11:50] ‪+91 70397 80394‬: विजयदशमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें,,अधर्म पर धर्म की विजय
असत्य पर सत्य की विजय
बुराई पर अच्छाई की विजय
पाप पर पुण्य की विजय
अत्याचार पर सदाचार की विजय
क्रोध पर दया, क्षमा की विजय
अज्ञान पर ज्ञान की विजय
रावण पर श्रीराम की विजय के प्रतीक पावन पर्व
विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनायें
[9/30, 11:56] पं विजय जी: "अधर्म पर धर्म की जीत, अन्याय पर न्याय की विजय, बुरे पर अच्छे की जय जय कार, यहीं है दशहरे का त्योहार...."           मेरी तरफ से आपको और आपके पूरे परिवार को दशहरा की हार्दिक बधाई..।    🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[9/30, 16:14] विरेन्द्र पाण्डेय जी: 🌷🙏हरे कृष्णा🙏🌷
"सुख", "सम्पत्ति", "स्वरुप", "संयम", "सादगी", "सफलता", "साधना", "संस्कार", "स्वास्थ्य", "सम्मान", "शान्ति" एवं "समृध्दि" की "मंगलकामनाओं" के साथ आपको तथा आपके समस्त परिजन को "विजय दशमी" की हार्दिक शुभकामनाएं।
[9/30, 18:21] ओमीश: क्या हमारा आचरण है क्या अजब व्यवहार है?
प्रेम बंधन तक बना अब तो यहाँ व्यापार है।
हर कोई ये चाहता है कि उसे सीता मिले,
राम बनना बोलिये किसको यहाँ स्वीकार है?

आओ दशहरा के पावन अवसर पर श्री राम जैसा बनने की प्रेणना लें।🙏
[9/30, 18:31] ‪+91 94554 91582‬: मर्त्या वतारस्त्विह मर्त्य शिक्षणं
भगवान को अवतार लेने का एक
यह भी कारण है कि मानव को मानवता सिखाने के लिए
[9/30, 19:51] ‪+91 95548 67212‬: *🤔मित्रो ये सन्देश जाने कहाँ से आया पता नही लेकिन ये चिंतन करने योग्य हे*

हम हिन्दू पलायनवादी क्यों है। हम कब तक सहेंगे और कब तक समझोतावादी बने रहेंगे। समझोतावाद ही हमारी कमजोरी बन गया है। और जब तक ये समझोतावाद बना रहेगा तब तक दुसरे लोग हमे ऐसे ही झुकाते रहेंगे। और ऐसे ही हम अपनी इस मात्रभूमि, जन्मभूमि, कर्मभूमि, पुण्यभूमि भारत वर्ष का बटवारा होते देखते रहेंगे।

सर्वप्रथम अरबो ने सिंध पर हमला किया, राजा दाहिर अकेले लड़े बाकि पूरा भारत देखता रहा। परिणाम, अरबो की जीत हुई, मुहम्मद बिन कासिम ने सिन्धी हिन्दुओ और बौद्धों का कत्ले आम किया, औरतो को गुलाम बनाकर फारस, बगदाद और दमिश्क के बाजारों में बेचा। जबरन धर्मांतरण करा कर मुस्लमान बनाया। सिंध भारत वर्ष से अलग हो गया। बाकि हिन्दुओ ने सोचा की इस्लाम की आंधी उन तक नहीं आयेगी, वे चुप रहे। और सिंध से पलायन कर गए।

फिर बारी आई मुल्तान और गंधार की। मुल्तान जिसका वर्णन ऋग्वेद समेत लगभग सभी वैदिक ग्रंथो में है। मुल्तान का सूर्य मंदिर पूरे भारत वर्ष में काशी विश्वनाथ की तरह पूजनीय था। अरबो ने हमला किया सब तहस नहस कर दिया। सूर्य मंदिर तोड़ा, हिन्दुओ का कत्ले आम किया, तलवार की नौक पर मुसलमान बनाया। पूरा भारत वर्ष चुप रहा। सोचा चलो मुल्तान गया बाकि भारत तो बचा। अब इस्लाम की आंधी और आगे नहीं बढ़ेगी। प्रतिकार नहीं किया।

मामा शकुनी का गंधार गया। राजा विजयपाल का साथ किसी ने नहीं दिया। हम फिर पलायन कर गए। सोचा बस इस्लाम की आंधी और आगे नहीं बढ़ेगी, बाकि भारत तो हमारे पास है। अगर सिंध, मुल्तान, गंधार के समय ही हिन्दुओ ने प्रतिकार किया होता तो इस्लाम की आंधी वही रुक जाती। परन्तु हमारा समझौतावादी और पलायनवादी रवेया जारी रहा। आज हम गांधीवाद का रोना रो रहे है, अरे तब तो गाँधी नहीं थे।

गजनी ने सोमनाथ तोडा गुजरात को छोड़ कर सारा भारत चुप रहा। क्या सोमनाथ केवल गुजरात का था। सोमनाथ बारह ज्योतिर्लिंगों में से सर्वपर्थम है जिसका वर्णन ऋग्वेद में भी है। उस सोमनाथ के टूटने पर सारा भारत चुप रहा। गजनी यहीं नहीं रुका उसने मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर तोड़ा, मोहम्मद गौरी ने काशी विश्वनाथ तोड़ा, बाबर ने श्रीराम जन्मभूमि का मंदिर तोड़ा और उस पर बाबरी मस्जिद बनवाई। औरंगजेब ने सोमनाथ, काशी विश्वनाथ और श्रीकृष्ण जन्मभूमि को पुनः तोड़कर हमीरी पवित्र जगहों पर मस्जिदे बनवाई। मगर हम चुप रहे, सब कुछ सह गए। हमारे समझोतावादी और पलायनवादी रुख ने हमे फिर ठगा।

जब जब सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा और काशी पर किसी भी मुस्लिम शासक का राज हुआ उसने मंदिरों को तोड़ने के नए कीर्तिमान बनाये। इतिहासकार सीता राम गोयल, अरुण शोरी, राम स्वरुप के अनुसार मुस्लिमो ने इस देश में दो हजार मंदिरों को तौड़ कर उनके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण कराया। क्या इतिहास में कभी किसी हिन्दू शासक ने कोई मस्जिद तुड़वाकर उसके स्थान पर मंदिर बनाया। क्या कोई हमें बताएगा। और तो और मुगलों के शासन के बाद जब अयोध्या, मथुरा, काशी पर हिन्दू मराठो का शासन आया तो भी उन्होंने पवित्र मंदिरों को तौड़ कर गर्भगृह की जगह पर बनाई गई मस्जिदों को नहीं हटाया। अयोध्या, मथुरा, काशी कोई गली नुक्कड़ पर बने हुए मंदिर नहीं थे। काशी विश्वनाथ, ऋग्वेद में वर्णित बारह ज्योतिर्लिंगों में से सर्वोच्च। अयोध्या का मंदिर जहा राम जी का जन्म हुआ। मथुरा का मंदिर जहाँ क्रष्ण का जन्म हुआ। ये पलायनवाद और समझोतावाद आज तक जारी है।

नेहरु, गाँधी और कांग्रेस ने देश का बटवारा कराया हम चुप रहे। जिन्नाह और मुस्लिम लीग से ज्यादा देश के बटवारे के लिए यही लोग जिम्मेदार थे। ऋग्वेद की जन्मस्थली सिंध चला गया। वो सिंध जहाँ हमारी सभ्यता का जन्म हुआ। गुरुओ की धरती पंजाब चला गया। वो पंजाब जहाँ भगत सिंह का जन्म हुआ। पूर्वी बंगाल चला गया, जहाँ इक्यावन आदि शक्ति पीठो में से छ: शक्ति पीठ मौजूद है। जिनकी दुर्दशा आज वहां की सरकार और जनता ने बना दी है। मगर इस देश में मस्जिदे आज भी सीना ताने खड़ी है। हम फिर पलायन कर गए, नेहरु और गाँधी की बातों में आकर बटवारा स्वीकार कर लिया। किसका बटवारा भारत माँ का बटवारा। भाग कर “सेकुलर इंडिया” में आ गए। आगए या मारकर भगाए गए ये हम सब जानते है। क्यों हमने मुसलमानों के ड़ारेक्ट एक्सन, ग्रेट कलकत्ता किलिंग, रिलीजियस पियोरिटी ऑफ़ लाहौर का जवाब नहीं दिया। अगर दिया होता तो आज हम ये इस्लामिक आतंवाद नहीं झेल रहे होते।

आधा कश्मीर गया हम तब भी चुप रहे। कश्मीर में मस्जिदों से नारे लगाये गए। “हिन्दू मर्दो के बिना, हिन्दू औरतो के साथ, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान”। हम क्यों चुप रहे। क्या कश्मीर केवल कश्मीरी हिन्दुओ की समस्या है हमारी नहीं।

जरा याद करो कैसे फिलिस्तीन के मुसलमानों के लिए सारी दुनिया के मुस्लमान एक हो जाते है। तो फिर कश्मीर के हिन्दुओ के लिए हम क्यों एक नहीं हुए। क्या इसकी जिम्मेदारी केवल आर एस एस, वि एच पी और बी जे पी की ही है। हमारी कुछ भी नहीं।

वो कहते है “हंस के लिया पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिंदुस्तान” और हम अब भी कह रहे है की पाकिस्तान के साथ बात करेंगे।

हम क्यों नहीं सोचते सिंध, पश्चिम पंजाब और पूर्वी बंगाल को वापस लेने की। आखिर वो भी तो हमारी भारत माँ के अंग है। जिस दिन हम ऐसा सोचने लगेंगे उस दिन से भारत वर्ष फिर बढ़ने लगेगा और अखंड भारत फिर साकार रूप लेगा।

किसी ने सही कहा है की हिन्दुओ की नींद जब टूटेगी जब मुस्लमान उसकी पीठ पर गरम सलाख लगाएँगे। क्या हम उस दिन की प्रतीक्षा कर रहे है।

🤔
[9/30, 20:39] ओमीश: विजयदशमी                                   30/09/17
%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%
रावणो राक्षस आसीत् सनातनधर्मतिरस्कृतः।
कृत्वा सीतापमानं स्त्रीमर्यादापि लंघिता।।
देव्या नवरूपाणि सन्ति पूज्यानि हि भारते।
आसां पूजनं कृत्वा विजयाय रामो गतः।।
केचित् कथयन्ति अद्यैव समरे रामेण रावणो हतः।
तेनैव शस्त्रपूजनं कृत्वा क्षत्रिया उल्लसिता हि वै।।
कामक्रोधादिकाः दशदुर्गुणा सर्वैः त्याज्या:सर्वदा।
अनेन हि 'दशहरा ' इति नाम्ना दिवसो$यं प्रचलितो$भूत।।
असत्याश्रितमासीद् वै रावणस्य हि जीवनम्।
सत्यस्वरूपेण रामेण हतः सो$पराजितः।।
                           डा गदाधर त्रिपाठी
[9/30, 21:49] ओमीश: आईये बुराई पर अच्छाई के इस पर्व को मिलकर मनाते है एक प्रण के साथ एक वचन के साथ।

समय के नीले अंबर में सूरज ढल जाएगा
राम के कोमल हाथों से रावण जल जाएगा
आज अगर तुम नहीं उठे संत्रास बुराई को
और किसी के अंतस में फिर वो पल जाएगा!! आचार्य ओमीश 🙏🏻💐💐💐
[9/30, 23:02] ‪+91 98239 16297‬: *सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे दैनिक पंचांग-- ०१ अॉक्टोबर २०१७*
*पंचांगकर्ते*:सिद्धांती ज्योतिषरत्न गणकप्रवर *डॉ.पं.गौरवशास्त्री देशपांडे-०९८२३९१६२९७*

***!!श्री मयूरेश्वर प्रसन्न!!***
☀धर्मशास्त्रसंमत प्राचीन शास्त्रशुद्ध सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग (पुणे) नुसार
दिनांक ०१ अॉक्टोबर २०१७
*राष्ट्रीय भारतीय सौर दिनांक* आश्विन ०९ शके १९३९
पृथ्वीवर अग्निवास नाही.
शनि मुखात आहुती आहे.
शिववास क्रीडेत,काम्य शिवोपासनेसाठी अशुभ दिवस आहे.
☀ *सूर्योदय* -०६:२६
☀ *सूर्यास्त* -१८:२०
*शालिवाहन शके* -१९३९
*संवत्सर* -हेमलंबी
*अयन* -दक्षिणायन
*ऋतु* -शरद (सौर)
*मास* -आश्विन
*पक्ष* -शुक्ल
*तिथी* -एकादशी
*वार* -रविवार
*नक्षत्र* -श्रवण (१८:३९ नंतर धनिष्ठा)
*योग* -सुकर्मा (११:४८ नंतर धृति)
*करण* -वणिज (११:१८ नंतर भद्रा)
*चंद्र रास* -मकर
*सूर्य रास* -कन्या
*गुरु रास* -तुळ
*राहु काळ* -१६:३० ते १८:००
*पंचांगकर्ते*:सिद्धांती ज्योतिषरत्न गणकप्रवर *डॉ.पं.गौरवशास्त्री देशपांडे-०९८२३९१६२९७*
*विशेष* -पाशांकुशा एकादशी (उपवास),भद्रा ११:१८ ते २३:५४,रवियोग २८:३९ पर्यंत
या दिवशी पाण्यात केशर घालून स्नान करावे.
आदित्य ह्रदय व विष्णु सहस्रनाम या स्तोत्रांचे पठण करावे.
"-हीं सूर्याय नमः" या मंंत्राचा किमान १०८ जप करावा.
सत्पात्री व्यक्तिस तूप व गहू दान करावे.
सूर्यदेवांना दलियाच्या खिरिचा व विष्णुंना बदामाचा नैवेद्य दाखवावा.
यात्रेसाठी घरातून बाहेर पडताना गाईचे तूप प्राशन करुन बाहेर पडल्यास प्रवासात ग्रहांची अनुकूलता प्राप्त होईल.
www.facebook.com/DeshpandePanchang
*टीप*-->>सकाळी ११.१५ पर्यंत शुभ दिवस आहे.
*कोणतेही महत्त्वाचे काम करणे झाल्यास ते सकाळी ७.०० ते सकाळी ९.०० या वेळेत केल्यास कार्यसिद्धी होईल.*
*कोजागिरी पौर्णिमा विशेष माहितीसाठी देशपांडे पंचांग महत्त्वाची ध्वनिचित्रफित बघण्यासाठी खालील लिंक पहावी.*
https://youtu.be/3SKVUwd2kCQ
**या दिवशी भात खावू नये.
**या दिवशी केशरी वस्त्र परिधान करावे.
♦ *लाभदायक वेळा*-->>
लाभ मुहूर्त--  सकाळी ९.३० ते सकाळी ११
अमृत मुहूर्त--  सकाळी ११ ते दुपारी १२.३०
|| *यशस्वी जीवनाचे प्रमुख अंग* ||
|| *सूर्यसिध्दांतीय देशपांडे पंचांग* ||
आपला दिवस सुखाचा जावो,मन प्रसन्न राहो.
(कृपया वरील पंचांग हे पंचांगकर्त्यांच्या नावासहच व अजिबात नाव न बदलता शेअर करावे.या लहानश्या कृतीने तात्त्विक आनंद व नैतिक समाधान मिळते.@copyright)
[10/1, 00:11] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *सर्वेभ्यो नमो नमः शुभ रात्रि*
*जय माता दी*🌹🙏🌹😊
जीवन कितना अनमोल है इसका ज्ञान उसी को होता है जो या तो अपनी अंतिम श्वासें गिन रहा हो अथवा जिसने मीरा की तरह अपने भीतर उस अनमोल रतन को पा लिया हो।नवरात्रि के ये नौ दिन इसी का स्मरण कराने आते हैं।शक्ति की पूजा का अर्थ है स्वयं के भीतर सुप्त शक्तियों को जगाना, हर मानव के भीतर देव और दानव दोनों का वास है। हममें से अधिकतर तो दोनों से ही अपरिचित रह जाते हैं। कुछ क्रोधी और अहंकारी स्वभाव वाले दानवों की भाषा बोलने लगते हैं, उनके भीतर देवी का जागरण नहीं होता।साधना के द्वारा जब शक्ति जगती है तो ही इन दानवों का विनाश होता है और एक नई चेतना से हमारा परिचय होता है. जीवन का सही अर्थ तभी दृष्टिगत होता है और तब लगता है इतना अनमोल जीवन व्यर्थ ही जा रहा था। उत्सवों का निहितार्थ कितना उद्देश्यपूर्ण है।उन्हें मात्र दिखावे या मौज-मस्ती के लिए ही न मानकर, भक्ति और ज्ञान की गहराई में जाना होगा। यही  पूजा के मर्म को सही अर्थों में ग्रहण करना होगा।
*जय श्री राधे*✍
[10/1, 09:09] मार्कण्डेय जी: 🙏🏼💐🌹                                           *इसे पढ़िए*.....
*ये पोस्ट उनको समर्पित है* *जिनके अंदर कल दसहरे के* *दिन रावण भक्ति अतीव हिलोरे *मार* *रही थी*....
कल तक सोशल मिडिया पर एक ट्रेंड बहुत तेजी से चल रहा था , रावण के बखान का..!! वो एक प्रकांड पंडित था जी....उसने माता सीता को कभी छुआ नहीं जी....अपनी बहन के अपमान के लिये पूरा कुल दाव पर लगा दिया जी आदि आदि.....!!!
अर्रे भाई...माता सीता को ना छूने का कारण उसकी भलमनसाहत नहीं बल्कि कुबेर के पुत्र “नलकुबेर” द्वारा दिया गया श्राप था..!!!
कभी लोग ये कहानी सुनाने बैठ जाते हैं कि एक मां अपनी बेटी से ये पूछती है कि तुम्हें कैसा भाई चाहिये..बेटी का जवाब होता है..रावण जैसा... जो अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिये सर्वस्व न्योंछावर कर दे...
भद्रजनो..ऐसा नहीं है....
रावण की बहन सूर्पणंखा के पति का नाम “विधुतजिव्ह” था..जो राजा कालकेय का सेनापति था..जब रावण तीनो लोको पर विजय प्राप्त करने निकला तो उसका युद्ध कालकेय से भी हुआ..जिसमे उसने विधुतजिव्ह का वध कर दिया...तब सूर्पणंखा ने अपने ही भाई को श्राप दिया कि, तेरे सर्वनाश का कारण मै बनूंगी..!!
कोई कहता है कि रावण अजेय था...
जी नहीं.. प्रभु श्री राम के अलावा उसे राजा बलि, वानरराज बाली , महिष्मति के राजा कार्तविर्य अर्जुन और स्वयं भगवान शिव ने भी हराया था..!!
रावण विद्वान अवश्य था, लेकिन जो व्यक्ति अपने ज्ञान को यथार्थ जीवन मे लागू ना करे, वो ज्ञान विनाश-कारी होता है...रावण ने अनेक ऋषिमुनियों का वध किया, अनेक यज्ञ ध्वंस किये, ना जाने कितनी स्त्रियों का अपहरण किया..यहां तक कि स्वर्ग लोक की अप्सरा “रंभा” को भी नहीं छोड़ा..!!
एक गरीब ब्राह्मणी, “वेदवती” के रूप से प्रभावित होकर जब वो उसे बालों से घसीट कर ले जाने लगा तो वेदवती ने आत्मदाह कर लिया..और वो उसे श्राप दे गई कि तेरा विनाश एक स्त्री के कारण ही होगा..!!!
“जरुरी है स्वयं मे राम को जिन्दा रखना,
क्यूंकी सिर्फ कल की तरह पुतले जलाने से रावण नही मरा करते”।🙏🏼💐🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[10/1, 10:47] ‪+91 80970 57677‬: 🌹☘☘☘☘☘☘☘🌹
      *इज्जत और तारीफ*
       *मांगी नही जाती है*
         *कमाई जाती है*

    *नेत्र केवल दृष्टि प्रदान*
              *करते है*
*परंतु हम कहाँ क्या देखते है*
  *यह हमारे मन की भावना*
            *पर निर्भर है*

*🌹🌼 सुप्रभात🌼🌹*
🙏🏻आपका दिन शुभ हो🙏🏻
     💐💐   जय श्री राम 💐💐
[10/1, 13:01] कख: *💐🌷जय श्रीमन्नारायण🌷💐*
        *श्रीमते रामानुजाय नमः*
*कन्या श्रवण संजातं शेषाचल निवासिनं।*
*सर्वेषां प्रथमाचार्यं श्रीनिवास महंभजे।।*

*श्रवणे दिव्य‌ नक्षत्रे कृताव तरणं विभुं।*
*विष्णुमादि गुरुं लक्ष्म्याः मंत्र‌ रत्नप्रदंभजे।।*
*श्रियः कांताय कल्याण निधये निधयेर्धिनाम्।*
*श्रीवेंकट निवासाय श्रीनिवासाय मंगलम्।।*

*प्रिय भगवत बंधुओं को कलियुग प्रत्यक्ष* *श्री श्रीनिवास भगवान के* *तिरुनक्षत्र महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं*
👏👏👏
[10/1, 13:12] ‪+91 84259 90587‬: " आख़िरी ख़त"

मेरे दिल के क़रीब एक  दास्तान है। एक अधूरी दास्तान।।
उस दिन की बात है जब मैं उनके शहर से गुज़रा तो आँखों में ऑसू आ गये। दरसल बात काफी पुरानी है जिंन्दगी कुछ पाने की ख़्वाहिस करके जब दर-व-दर भटक रही थी इसी बीच एक मुसाफ़िर से मुख़ातिब हुए, ज़नाब को रंग मंच का बहोत बड़ा श़ौक था और ईश्वर ने उन्हें कमाल की आवाज़ दी थी, एक कार्य क्रम के दौरान उन्हें देखा था जहाँ उन्होंने एक खूब सूरत मुख़ड़ा गाया और सबका दिल जीत लिया उन्हें ख़ूब सराहना मिली कई दिन तक उनकी चर्चा हमारे मित्रों की टोली में चलती रही फिर उन्हें कई जगह देखा, उनकी आवाज़ में वो दम था कि ऐसा लगता था उनके होठों के छूने से गीत अमर हो गया हो। जी उनका नाम उन्होंने बताया तो था पर मुझे याद नहीं
कृष्ण की महिमा गाया करती थी उनके गानों में राधा,कृष्ण,और मीरा का जिक्र ज्यादा हुआ करता था। तीन महीनें बाद उनका नाम पता चला जब उनहोनें फोन किया। उनकी आवाज़ कानों में सुवह-शाम गूज़ती थी, उनका नाम मेरे लब्ज़ों में कभी नहीं आया। मैं नहाकर निकला ही था,  कि मेरे फोन की वेल बजी। रोज़ की तरह फोन उठाया और कान से लगाया, मेरी तो ज़ान निकल गयी यार , हैलो मैं कृति बोल रही हूँ
उसनें कहा, मेरे शरीर में रक्त का संचार इतनी तेज़ी से हुआ मानों मैं बिख़रा जा रहा हूँ मैंने पहचान लिया था ये वही आवाज़ है जिसने मेरे चहरे पर छिपी  स्माइल तो मुझे दे दी थी लेकिन मेरा सोना और खाना मुझसे ले लिया था, दिन भर उसको सोचता रहता था न रात को नींद आती न ज़ल्दी भूख़ लगती थी।
उनने कहा मैं कृति हूँ कृती। तुम मुझे भूल गये क्या। भूल तो तुम मुझे गयी इतने दिन से खै़र न ख़बर, मैं कहना चाहता था।
नहीं ऐसी बात नहीं मैं तुम्हें भूला नहीं मैंने कहा। थोड़ी देर बात होती रही फिर उसनें मिलने की बात रखी, मैंने कहा माँ से राय लेनी पडे़गी,ठीक है उसने कहा।
फिर उससे मिलने के लिए गये, उसके शहर में पहुँच गया था वहाँ हमने स्टेशन पर ही स्नान किया और कपड़े पहनें जीन्स का कलर ब्राउन था और उसके ऊपर सफेद कुर्ता पहना उस वक्त एक टीवी स्टार को उस लुक में देखा था।
जितना सजना चाहिए था उससे कई ज्यादा हमनें अपनी चीजों को देखा, और जहाँ भी आइना मिल जाता थी वहाँ फिर ख़ुद को संवार लेते थे। कभी चश्मा लगाते थे तो कभी हटाते थे मेरा हेयर स्टाईंल अक्षय कुमार कि पुरानी फिल्मों की तरह था।
हम मिलनें के लिए प्रेम मंन्दिर गये थे  उसको देखते ही मेरी धड़कनें तेज़ी से बढ़ रही थी जैसे जैसे उसकी तरफ क़दम बढ़ रहे थे लग रहा था अब जान निकली अब मैं गिरा, वो ठहरी पड़ी लिखी और हम दसमी पास देसी ग्रेजुएट, उसकी अग्रेंजी अच्छी थी मेरी न, एक दम बेकार टूटी टाटी उसमें भी शब्दों को बोल पाना मुश्क़िल था उसने हाथ मेरी तरफ बढ़या और हैलो कहा। झटसे हाथ बढ़ाकर हमने उसका हाथ दोनों हाथों से पकड़ लिया हलो मैंने कहा, उसके हाथों में एक सोने जैसी घड़ी थी ज़ीन्स टाप पहन रखा था माथे पे टीका लगा रखा था न, ज़्यादा मार्डन नहीं थी साधारण सी थी रंग गेहुँआ और शरीर में दुबली पतली एक दम सूखी लकड़ी की तरह लेकिन उसकी बातें राजधानी एक्सप्रेस से भी तेज़ थी मैं इतना खोया था उसके ख़्यालों में कि वो बोले जा रही थी मैं सिर्फ हा बोल रहा था कुछ बातें भी पल्ले नहीं पड़ रही थी फिर भी हा किये जा रहा था,  क्या हा...?? उसने कहा .. मैं कहा तुमनें जो कहाँ उसके लिए ।
मैंनें कहा तुम अपने बारे में कुछ बताओ, अच्छा अपने बारे में..
मैंने मुस्कराकर कहा। वो भी मुस्करादी.. उसकी मुस्कराहट देख कर मैं अपने बारे में सब भूल गया । उस वक्त उसके ख़ूबसूरत होठ और वो प्यारी सी अॉखें
देखकर जी चाहता था । उसे अपनी बाहों में जकड़ लूँ और उसके होठों को ख़ामोश कर दूँ ।
उसकी सहेलिया सामने थी और वहाँ के सुरक्षा कर्मी इर्द गिर्द घूम रहे थे।  उसके शहर का सबसे प्रसिद्ध मंन्दिर था उसके बाद हम साथ २ चन्द्र मंन्दिर गये फिर शाम हो चली थी हम फिर प्रेम मंन्दिर चलें गये लगभग आठ बजें   कृति अपनें घर चली गयी। और हम अपने घर लौट आए फिर तो फोन हमारा हम दर्द बन गया था सुबह-शाम हर समय उसकी कहानी उसकी बातें उसकी यादें, हर जगह बस वो ही वो थी,
कुछ काम न, धंन्धा हालात ख़राब हो गये थे कोई काम करता न, था ऊपर से इतने खर्चे, फिर मैंने दिल्ली जाने को तैयार हुआ स्टेशन से वापस आ गया हिम्मत ही न हुई। लेकिन फिर हलात काबू में न थे। और आख़िर हम दिल्ली के पहुँच ही गये।
दिल्ली में काम ढ़ूढ़ते दो महीनें निकल गये थे । पर काम का अता पता न था, दिल्ली में गुज़ारा करना मुश्क़िल था नया सिम ख़रीदा वो चालू नहीं हो पाया इसी कारण बात भी बहोत कम हो पाती थी, पर वो आदत सी बन गयी थी न खाना अच्छा लगता और न काम मिल पा रहा था। खान पान ठीक न, होने की बज़ह से ज्वार आने लगा ऊपर से उनकी याद दिल पर बोझ सी हो गयी थी सोचता अगर बात नहीं करूँगा तो जान निकल जाएगी। फिर बड़े भाई ने देख रेख की और टाइम पर खाने पीने का भी ख़्याल रखा और हम दो हप्ते में स्वस्थ हो गये थे। कृति का क्या हाल होगा, वो मेरे बिना कैसे रहती होगी, पता नहीं वो खाना खाती भी है या नहीं। उससे बात किए तीन महीनें हो गये थे। जिस तरह मैं बेताब़ था वो भी होगी.. देखना जैसे ही मैं फोन करूँगा वो रो पड़ेगी उसकी ये बेताब़ी मैं देख न पाऊँगा ...ऐसा मेरा मन कहता था, मैंने फोन उठाया और उसका नम्बर डायल किया अब मेरी धड़कनें और बढ़ रही थी पहली बार उसनें फोन नहीं उठाया। मेरी बेताब़ी और बढ़ गयी थी।।
फिर फोन किया, जैसे ही उसनें फोन उठाया, मैं और मेरी तन्हाई अक्सर आपस में बात किया करते हैं ....................... कुछ इस तरह की शायरी थी जो मुझे मेरे  अज़ीज मित्र ने मुझे भेजी थी
जो मैंने उसे फोन पर बोली,.. उसका जो जब़ाब मुझे मिला वो किसी तीर से कम न था मुझे  ऐसा लगा कि मैं जीते जी मर गया। मुझे उम्मीद न थी ऐसा बोलेगी वो, न मेरा हाल पूछा, इतने दिन दूर रहने की बज़ह पूछी , और फिर उ़सनें मुझसे सारे रिस्ते पल भर में खत्म दिए। एक बार उसे ख़्याल नहीं आया कि मैं उसके बिना कैसे जियूगा, पूरी तरह टूट गया था उस वक्त मैं, ज़िन्दगी में अँधेरे के सिवा कुछ नहीं था, मर जाना चाहता, खत्म कर देना चाहता था उसी वक्त सब कुछ, उसके सिवा और था ही कौन मेरी दुनिया में..मुझे याद है अब भी मेरा कमरा पाँचवी फ्लोर पर था.. मैं ख़ूब रोया,उस दिन ऐसा लग रहा था कि चार दीवारे एक छत और एक दरवाज़ा, वो साथ रो रहे हो, मुझसे मेरा सब कुछ छीना जा रहा था और मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा था,  उसने कभी फिर पलट कर नहीं देखा.. मेंने भी कभी उससे कभी बात न की।
    

तब जाकर मैंनें जाना, सिर्फ पाना प्यार नहीं है..मिल जाए वो प्यार नहीं, अधूरे शब्द कभी पूरे नहीं होते.. फिर ये तो प्यार है प्यार... और प्यार तो मैंनें किया था और मरते दम तक करता रहूगा...!!
पर आज भी दिल से सिर्फ एक ही आवाज़ आती है...

"भले ही मेरी कोशिश नाकाम रही.. तुम्हें पाने की..!

पर देख अब भी.. अदा न गयी मुस्कराने की"..!!

    

  

मुझे उम्मीद है कि आपको मेरी कहानी ज़रूर पसंद आयी होगी..   हर किसी जिंन्दगी में एक बार ऐसा मंजर ज़रूर आता है.. किसी ना किसी का.. किसी ना किसी ने.. बिना सच्चाई जाने साथ छोड़ा हो.  आगे क्या हुआ आपको अगली कहनी में जाननें को मिलेगा.. हा तो मुझे कमेंन्ट में आपकी राय का इंतजा़र रहेगा.

                                           आपका अपना
      
                 *रमाकान्त राइटर*
[10/1, 16:05] ओमीश: व्यक्ति का आचार - व्यवहार ही उसे अनुकरणीय बनाता है ।
न ऐश्वर्य , न धन , न शारीरिक बल ,न शास्त्र बल,  न सशक्त अस्त्र-शस्त्र, नाही कुछ अन्य  प्रभाव ......
सत्यचारी ,धर्म - निष्ठ, न्यायप्रिय , विद्वान सभी जगह अनुकरणीय व पूज्य हैं।

💐जय महामाया 💐
[10/1, 16:27] पं विजय जी: '      *॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥*

जब तक पुण्य प्रबल रहते हैं, तब तक उग्र पाप का फल भी तत्काल नहीं मिलता। जब पुराने पुण्य खत्म होते हैं, तब उस पाप की बारी आती है। पाप का फल *(दण्ड )* भोगना ही पड़ता है,  चाहे इस जन्म में भोगना पड़े या जन्मान्तर में।

                       *परमश्रद्धेय*
     *स्वामी श्रीरामसुख दास जी महाराज*
[10/1, 18:10] पं विजय जी: वाह  रे इंसान!
एक आदमी बोट से कहीं जा रहा था ,अचानक जोर से हवा चली और उसकी बोट पलट गयी , उसे तैरना नहीं आता था। वो  प्रार्थना करने लगा , हे भगवान्  ! अगर मुझे बचा लिया तो में आपको २१ किलो लड्डू का प्रसाद चढ़ाऊंगा।  उसी क्षण जोर से हवा चली और  एक बड़ी सी लहर उसे जमीं पर ले आई। वो इंसान खड़ा हुआ और हंसते -हंसते  ऊपर देख कर बोला - " हा  हा  हा ------कैसे लड्डू , कोन  से लड्डू ----? उसी क्षण फिर जोर से हवा चली और  एक बड़ी सी लहर ने उसे वापिस पानी में खींच लिया , वो इंसान फिर चिल्लाकर बोला " मतलब में पूंछ रहा था कि लड्डू बेसन के  या बूंदी के वाह  रे इंसान—
[10/1, 22:16] ओमीश: 🌺🌺🙏🙏🌺🌺🙏🙏🌺🌺
*********|| जय श्री राधे ||*********
🌺🙏 *महर्षि पाराशर पंचांग* 🙏🌺
🙏🌺🙏 *अथ  पंचांगम्* 🙏🌺🙏

*दिनाँक -: 02/10/2017,सोमवार*
द्वादशी, शुक्ल पक्ष
आश्विन
""""""""""""""""""""""""""""""""(समाप्ति काल)

तिथि------------द्वादशी27:08:54  तक
पक्ष-----------------------------शुक्ल
नक्षत्र------------धनिष्ठा21:22:04
योग-----------------धृति11:43:16
करण---------------भाव15:02:04
करण-------------बालव27:08:54
वार--------------------------सोमवार
माह--------------------------आश्विन
चन्द्र राशि------- मकर 08:50:59
चन्द्र राशि--------कुम्भ08:50:59
सूर्य राशि---------------------- कन्या
रितु------------------------------शरद
आयन-------------------दक्षिणायण
संवत्सर---------------------हेम्लम्बी
संवत्सर (उत्तर)-----------साधारण
विक्रम संवत-----------------2074
विक्रम संवत (कर्तक)------2073
शाका संवत-----------------1939

वृन्दावन
सूर्योदय-----------------06:13:29
सूर्यास्त------------------18:03:05
दिन काल---------------11:49:36
रात्री काल--------------12:10:53
चंद्रोदय------------------16:01:33
चंद्रास्त------------------27:34:16

लग्न-- कन्या 14°55' , 164°55'

सूर्य नक्षत्र-----------------------हस्त
चन्द्र नक्षत्र--------------------धनिष्ठा
नक्षत्र पाया ---------------------ताम्र

*🚩💮🚩  पद, चरण  🚩💮🚩*

गी----धनिष्ठा 08:50:59

गु----धनिष्ठा 15:07:53

गे----धनिष्ठा 21:22:04

गो----शतभिष 27:33:31

*💮🚩💮  ग्रह गोचर  💮🚩💮*

ग्रह =राशी   , अंश  ,नक्षत्र,  पद
=======================
सूर्य=कन्या   14 ° 55 ' हस्त  , 2 ष
चन्द=मकर   28 ° 38 'धनिष्ठा ' 2  गी
बुध=कन्या ,09°33' उoफाo   '4 पी
शुक्र=सिंह '20 ° 32' पूoफाo,  3 टी
मंगल=सिंह 22°10 'पूoफाo  ' 3 टी
गुरु=तुला 03 ° 55'   चित्रा  , 4 री
शनि=वृश्चिक 28°13' ज्येष्ठा '4 यू
राहू=कर्क  27 ° 45 'आश्लेषा ,  4 डो
केतु=मकर 27 ° 45 ' धनिष्ठा, 2  गी

*🚩💮🚩शुभा$शुभ मुहूर्त🚩💮🚩*

राहू काल 07:42 - 09:11अशुभ
यम घंटा 10:40 - 12:08अशुभ
गुली काल 13:37 - 15:06अशुभ
अभिजित 11:45 -12:32शुभ
दूर मुहूर्त 12:32 - 13:19अशुभ
दूर मुहूर्त 14:54 - 15:41अशुभ

🚩पंचक 08:51 - अहोरात्रअशुभ

💮चोघडिया, दिन
अमृत 06:13 - 07:42शुभ
काल 07:42 - 09:11अशुभ
शुभ 09:11 - 10:40शुभ
रोग 10:40 - 12:08अशुभ
उद्वेग 12:08 - 13:37अशुभ
चाल 13:37 - 15:06शुभ
लाभ 15:06 - 16:34शुभ
अमृत 16:34 - 18:03शुभ

🚩चोघडिया, रात
चाल 18:03 - 19:34शुभ
रोग 19:34 - 21:06अशुभ
काल 21:06 - 22:37अशुभ
लाभ 22:37 - 24:09*शुभ
उद्वेग 24:09* - 25:40*अशुभ
शुभ 25:40* - 27:11*शुभ
अमृत 27:11* - 28:43*शुभ
चाल 28:43* - 30:14*शुभ

💮होरा, दिन
चन्द्र 06:13 - 07:13
शनि 07:13 - 08:12
बृहस्पति 08:12 - 09:11
मंगल 09:11 - 10:10
सूर्य 10:10 - 11:09
शुक्र 11:09 - 12:08
बुध 12:08 - 13:07
चन्द्र 13:07 - 14:07
शनि 14:07 - 15:06
बृहस्पति 15:06 - 16:05
मंगल 16:05 - 17:04
सूर्य 17:04 - 18:03

🚩होरा, रात
शुक्र 18:03 - 19:04
बुध 19:04 - 20:05
चन्द्र 20:05 - 21:06
शनि 21:06 - 22:07
बृहस्पति 22:07 - 23:08
मंगल 23:08 - 24:09
सूर्य 24:09* - 25:09
शुक्र 25:09* - 26:10
बुध 26:10* - 27:11
चन्द्र 27:11* - 28:12
शनि 28:12* - 29:13
बृहस्पति 29:13* - 30:14

*नोट*-- दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।

*💮दिशा शूल ज्ञान------पूर्व*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी   अथवा दही खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l
भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll

*🚩अग्नि वास ज्ञान  -:*

12 + 2 + 1= 15 ÷ 4 =  3शेष
पृथ्वी पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक है l

*💮 शिव वास एवं फल -:*

12 + 12 + 5 = 29 ÷ 7 = 1 शेष

कैलाश वास = शुभ कारक

*💮🚩 विशेष जानकारी 🚩💮*

*एकादशी व्रत निम्बार्क

*💮🚩💮शुभ विचार💮🚩💮*

अन्यथा वेदपाण्डित्यं शास्त्रमाचारमन्यथा ।
अन्यथा वदता शांतंलोकाःक्लिश्यन्ति चाऽन्यथा ।।
।।चा o नी o।।

वासना के समान दुष्कर कोई रोग नहीं. मोह के समान कोई शत्रु नहीं. क्रोध के समान अग्नि नहीं. स्वरुप ज्ञान के समान कोई बोध नहीं.

*🚩💮🚩सुभाषितानि🚩💮🚩*

गीता -: मोक्षसन्यास योगअo-18

शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।,
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्‌ ॥,

अंतःकरण का निग्रह करना, इंद्रियों का दमन करना, धर्मपालन के लिए कष्ट सहना, बाहर-भीतर से शुद्ध (गीता अध्याय 13 श्लोक 7 की टिप्पणी में देखना चाहिए) रहना, दूसरों के अपराधों को क्षमा करना, मन, इंद्रिय और शरीर को सरल रखना, वेद, शास्त्र, ईश्वर और परलोक आदि में श्रद्धा रखना, वेद-शास्त्रों का अध्ययन-अध्यापन करना और परमात्मा के तत्त्व का अनुभव करना- ये सब-के-सब ही ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म हैं॥,42॥,

*💮🚩दैनिक राशिफल🚩💮*

देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत्।।

🐑मेष
नई योजना बनेगी। कार्यस्थल पर परिवर्तन संभव है। समय अनुकूल है। विवाद से बचें। शत्रु परास्त होंगे। अपने परिश्रम से लाभ प्राप्त करेंगे।

🐂वृष
संतान पक्ष की चिंता रहेगी। दौड़धूप अधिक होगी। धर्म-कर्म में आस्था बढ़ेगी। राजकीय सहयोग मिलेगा। व्यापारिक गोपनीयता बनाए रखें।

👫मिथुन
वाहन व मशीनरी के प्रयोग में सावधानी रखें। प्रतिद्वंद्वी शांत रहेंगे। वस्तुएं संभालकर रखें। झंझटों में न पड़ें। पारिवारिक सुख मिलेगा।

🦀कर्क
घर-बाहर तनाव रह सकता है। प्रेम-प्रसंग में जोखिम न लें। कानूनी सलाह प्राप्त होगी। धनार्जन होगा। व्यापार में उन्नति के अवसर मिलेंगे।

🐅सिंह
प्रेम-प्रसंग में अनुकूलता रहेगी। भय व कष्ट संभव है। भूमि व भवन संबंधी योजना बनेगी। उन्नति होगी। मांगलिक कार्यों की चर्चा होगी।

🙍🏻कन्या
नेत्रों में चोट लग सकती है। वाणी पर नियंत्रण रखें। पार्टी व पिकनिक का आनंद मिलेगा। धनलाभ होगा। अधिकारियों का विश्वास हासिल करेंगे।

⚖तुला
लेन-देन में सावधानी रखें। झंझटों से दूर रहें। दु:खद समाचार मिल सकता है। भागदौड़ रहेगी। विवाद न करें।

🦂वृश्चिक
पुराना रोग उभर सकता है। प्रयास सफल रहेंगे। प्रतिष्ठा बढ़ेगी। धनलाभ होगा। बुद्धि से कार्य करें। लाभदायी योजनाएं हाथ में आएंगी।

🏹धनु
शुभ सूचना मिलेगी। सम्मान बना रहेगा। पुराने मित्र व संबंधियों से मुलाकात होगी। धनार्जन होगा। कमियों को दूर कर अच्छा लाभ ले पाएंगे।

🐊मकर
अप्रत्याशित लाभ हो सकता है। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। निवेश व नौकरी मनोनुकूल रहेंगे। लाभ होगा। समस्याएं दूर होगी।

🍯कुंभ
विवाद से क्लेश होगा। लेन-देन में सावधानी रखें। पुराना रोग उभर सकता है। जोखिम न लें। चिंता रहेगी। वाहनादि चलाते समय सावधानी रखें।

🐠मीन
बकाया वसूली होगी। यात्रा, निवेश व नौकरी मनोनुकूल रहेंगे। तनाव रहेगा। व्यवसाय ठीक चलेगा। कोई रुका काम बनने से प्रसन्नता होगी।

🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏
🌺🌺🌺🌺🙏🌺🌺🌺🌺
[10/2, 07:11] ‪+91 98294 24183‬: 🙏🏻🕉🕉🕉🕉🕉🕉🙏🏻
💐   वेराग्य का प्रहार   💐
हनुमानजी कौन हैं और उनके प्रहार का क्या अर्थ है, यह बताते हुए गोस्वामीजी कहते हैं कि हनुमानजी प्रबल वैराग्य हैं । इसका अर्थ है कि जब व्यक्ति राग और आसक्ति के कारण सत्याचरण से वंचित हो जाता है, उस समय संत के रूप में, वैराग्य के रूप में हनुमानजी-जैसा कोई भक्त आता है जो उसकी मान्यता पर प्रहार करता है जिससे वह व्यक्ति व्याकुल हो जाता है । और यदि उसे इस व्याकुलता से सत्य का ज्ञान हो जाता है तो वह धन्य हो जाता है पर बहुधा यही देखा जाता  है बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जो प्रहार से व्याकुल होते हैं 💐💐💐💐💐💐💐
अशोकवाटिका को उजाड़ने के बाद हनुमानजी जब रावण की सभा में लाए गए तो रावण से उनका प्रश्नोत्तर हुआ । उनसे रावण ने जब पूछा कि तुमने किसके बल से वाटिका उजाड़ी  तो उन्होंने अपना भाषण प्रारंभ किया जिसे सुनकर रावण को लगा कि यह तो बड़ा विचित्र वक्ता है । मैं सीधा-सीधा प्रश्न कर रहा हूँ और यह इतने विस्तार से, इतना लम्बा-चौड़ा उत्तर दे रहा है । हनुमानजी भी सीधे-सीधे भगवान राम का नाम ले सकते थे पर उन्होंने लम्बी भूमिका के साथ अपना वक्तव्य प्रारंभ कर दिया । वे कहने लगे - "सृष्टि के मूल में जो विद्यमान है, जिनका ही बल सर्वत्र व्याप्त है, जिनका बल मेरे भीतर है और तुम्हारे अन्दर भी उन्हीं का बल है, मैं उन्हीं प्रभु का दूत हूँ ।" हनुमानजी रावण के भीतर ईश्वर की अनुभूति जागृत कर उसे प्रभु का भक्त बनाना चाहते हैं । भगवत्कथा का भी यही उद्देश्य है कि सत्संग के माध्यम से व्यक्ति को उसके स्वरूप का स्मरण हो जाय
लंकिनी ने पहले हनुमानजी को चोर कहा पर बाद में वह कहने लगी कि पहले मैं सोचती थी कि लंका का स्वामी, राजा रावण है पर अब मैं समझ गई कि इसके असली स्वामी तो भगवान राम हैं  लंकिनी सत्य को समझ लेती है जिनके सत्संग के प्रभाव से, ऐसे महान धर्मज्ञ हनुमानजी ने जब अशोकवाटिका के फल बिना रावण की आज्ञा के खा लिए, तो इसके पीछे उनका यही तत्वज्ञान था । रावण ने भी उनसे यही कहा था कि मेरी आज्ञा के बिना मेरे बाग के फल खाना तो चोरी है । तो मानो विस्तार से उत्तर देते हुए उन्होंने यही स्पष्ट किया कि यह बाग तुम्हारा नहीं है और जिनकी आज्ञा लेनी चाहिए, उनकी अनुमति से ही मैंने फल खाए हैं
रधुपति चरण ह्रदय धरि
तात मधुर फल खाउ
हनुमानजी जानते हैं कि श्रीसीताजी प्रभु की आदिशक्ति हैं, जिन्होंने सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण किया है । वे जगत् जननी हैं । माँ की आज्ञा लेकर फल खाने के पीछे उनका यही दर्शन और ज्ञान है खाने से पहले भगवान को अर्पण करे ।
पँ हरभजन शर्मा कोटा राज०
💐💐💐💐💐💐💐💐
[10/2, 07:14] कख: *💐🌷जय श्रीमन्नारायण🌷💐*
       *श्रीमते रामानुजाय नमः*
*विद्वान् प्रशस्यते लोके विद्वान् गच्छति गौरवम्।*
*विद्यया लभ्यते सर्वं विद्या सर्वत्र पूज्यते।।*

*भावार्थः*
विद्या की महत्ता को स्पष्ट करते हुए आचार्य कहते हैं कि संसार में केवल विद्वानों की सर्वत्र प्रशंसा होती है, सभी स्थानों पर उन्हें मान सम्मान मिलता है। ये सभी सुख उन्हें विद्या द्वारा प्राप्त होते हैं। वस्तुतः संसार में विद्या की ही पूजा की जाती है, उसके समान बहुमूल्य कुछ और नहीं है। इसलिए उसका आश्रय लेनेवाला व्यक्ति भी समाज में सम्मान का अधिकारी बन जाता है। अतः मनुष्य को विद्यार्जन अवश्य करना चाहिए। इससे उसकी प्रगति का मार्ग प्रशस्त होगा।

             *🌺 विष्णु वर्धनाचार्यः🌺*
              🌸 *शुभोदयम्🌞🌸*
[10/2, 07:20] ‪+91 94554 91582‬: स्वस्ति पन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव।
पुनर्ददताघ्नता जानता सं गमेमहि।।ऋ०सं०५/५१/१५

हम अविनाशी एवं कल्याणप्रद मार्गपर चलें।जिसप्रकार सूर्य और चंद्रमा चिरकाल से निःसंदेह होकर बिना किसीका आश्रय लिए राक्षस आदि दुष्टोंसे रहित पंथ का अनुसरण कर अभिमत मार्ग पर चल रहे हैं,उसी प्रकार हम भी परस्पर स्नेह के साथ शास्त्रोपदिष्ट अभिमत मार्ग पर चलें।

नमो नमः👏👏👏

||जय श्री राम||
          🚩जय महाकाल🚩
[10/2, 07:56] मार्कण्डेय जी: 🙏🏼💐🌹                                        *धर्मार्थदः प्रभवति* *धर्मात्प्रभवते सुखम्*।
*धर्मेण लभते सर्वं* *धर्मप्रसारमिदं जगत्*॥
भावार्थ :-
धर्म से ही धन, सुख तथा सब कुछ प्राप्त होता है ।
       इस संसार में धर्म ही सार वस्तु है ।
*सत्यमेवेश्वरो लोके* *सत्ये धर्मः सदाश्रितः*।
*सत्यमूलनि सर्वाणि* *सत्यान्नास्ति परं पदम्*॥
भावार्थ :-
सत्य ही संसार में ईश्वर है; धर्म भी सत्य के ही
आश्रित है; सत्य ही समस्त भव -विभव का मूल है;
       सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं है।
*उत्साहो बलवानार्य* *नास्त्युत्साहात्परं बलम्*।
*सोत्साहस्य हि लोकेषु न* *किञ्चदपि दुर्लभम्*॥
भावार्थ :-
उत्साह बड़ा बलवान होता है; उत्साह से बढ़कर
कोई बल नहीं है । उत्साही पुरुष के लिए संसार
          में कुछ भी दुर्लभ नहीं है ।
*वाच्यावाच्यं प्रकुपितो न* *विजानाति कर्हिचित्*।
*नाकार्यमस्ति क्रुद्धस्य* *नवाच्यं विद्यते क्वचित्*॥
भावार्थ :-
क्रोध की दशा में मनुष्य को कहने और न कहने
योग्य बातों का विवेक नहीं रहता। क्रुद्ध मनुष्य
कुछ भी कह सकता है और कुछ भी बक सकता है ।
    उसके लिए कुछ भी अकार्य और अवाच्य नहीं है।🙏🏼💐🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[10/2, 09:39] ‪+91 97530 19651‬: नैंननि  कौ  सुख  देखौ  माई  ।
नितॅत  दम्पत्ति  अति  रँगभीने, ताथेई-ताथेई  कहिय  न  जाई  ।।
नुपुर-किंकिनि-धुनि  मृदंग  सौं  मिलि  चली ,
तैसिय  सरस  सुर  रागिनी  गाई  ।
जै श्री कमलनैंन हित  सखी  सचु  पावत ,
रतिपति  कोटि  यह  देखि  लजाई  ।।

   - गो. श्रीहित कमलनैंन जी
[10/2, 10:22] ‪+91 98294 24183‬: 🙏🏻🕉🕉🕉🕉🕉🕉🙏🏻
     श्री राम जी ने अपने पास बेठे
सुग्रीव बिभीक्षण अँगदव हनुमान जी  से पूछा
चन्द्रमा म(े निसान)कालिमा क्योँ हे
जिनके जेसी मनोवृती थी उसी प्रकार उत्तर दिया
सुग्रीव की वृती का भाव कामना परक होने से वही भाव बताया
बिभीषण प्रताडित होने से उन्होने उसी भाव मे उत्तर दिया
अँगद भयभीत थे राजा सुग्रीव है
भय भाव को दर्शाती भावना से उत्तर दिया
हनुमानजी भक्त हे
उन्होने भक्त भावना से निवेदन किया प्रभू चन्द्रमा आपका दास है
आपकी प्रतिछाया (परिछाही) ही
चन्द्रमा मे दिखती है
यह प्रश्न भावनामय है
??जिसकी रही भावना जेसी??.
प्रभू भाव की परिक्षा ले रहे हे
ध्यान रखे परिक्षा मे जीव हमेसा असफल रहता है
मे तो फेल ही रहता हूँ
भक्त भाव से पास हो जाता है
हमे कृपाँक की लालसा रहती है
लोकिक परिक्षा मे कृपाँक की मात्रा निश्चित रहती हे
परन्तु हमे पूर्णरुपेण कृपा पर ही आधारित रहना हे
आगे कभी फिर इस पर राम कृपा से लिखेगेँ
[10/2, 10:58] ‪+1 (562) 965-8399‬: *💐💐शुभोदयम्💐💐*
*क्रोध - वाच्यावाच्यं प्रकुपितो न विजानाति कर्हिचित् ।*
*नाकार्यमस्ति क्रुद्धस्य नवाच्यं विद्यते क्वचित् ॥*

क्रोध की दशा में मनुष्य को कहने और न कहने योग्य बातों का विवेक नहीं रहता । क्रुद्ध मनुष्य कुछ भी कह सकता है । उसके लिए कुछ भी अकार्य और अवाच्य नहीं है ।
🙏 *सुप्रभातम* 🙏
🌷सुदिनम कल्याणमस्तु🌷 इंदुवासरे आश्विन शुक्ल द्वादशी
लोकाः समस्ता सुखिनः भवन्तु
🌷🌷🌷🌷🌷
[10/2, 11:00] ओमीश: 🌺श्री मात्रे 🌺
परोक्षे कार्यहंतारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनं ।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुंभं पयोमुखम् ॥

सीधे शब्दों में इसका अर्थ है कि जो मित्र सम्मुख मधुरभाषण करते हैं किंतु पीठ-पीछे आपका कार्य बिगाड़ते हैं, उनसे नाता नहीं रखना चाहिए क्योंकि वह ऐसे घड़े के समान हैं जिसमें विष भरा है लेकिन ऊपरी सतह दूध की है।
[10/2, 18:12] पं अनुरागी जी: धर्मार्थ प्रांगण में विराजमान ऋषि समूह को नमन
प्रभु श्री राम ने अकारण प्रश्न किया । क्यों ?
   वहां की झांकी एक बार निहारते हैं

प्रभु कृत सीस कपीस उछंगा ।
  बाम दहीं दिसि चाप निषंगा ।।
दुंहुँ कर कमल सुधारत बाना ।
   कह लंकेस मन्त्र लगि काना
बड़भागी अंगद हनुमाना ।
   चरण कमल चापत बिधि नाना ।
कछुक दूरि सजि बाण सरासन ।
  बैठे लछिमन करि बीरासन

लखन लाल जी का चिंतन की प्रभु तो शत्रु से घिरे हैं सुग्रीव की गोद में सिर है (वह बालि का भाई है )
विभीषण कान में मंत्रणा दे रहे है ( वह रावण के भाई हैं )
अंगद पांव दबा रहे हैं वह (बालि के पुत्र हैं )
     एक हनुमंत है पर वह सबसे पीछे हैं
इसलिए लक्ष्मण जी बीरासन पर विराजमान होते हैं
   प्रभु को लखन लाल जी का संदेह मिटाना था । अतः एक प्रश्न कर देते हैं कि उस प्रश्न का उत्तर यदि सब एक सा देंगे तो लक्ष्मण आप सावधान हो जाओ सब के मन में एक ही बिचार है पर यदि उत्तर पृथक हुए तो इनके विचार भी अलग अलग होंगे लक्ष्मण आप निश्चिन्त रहिये
   सब के उत्तर भिन्न थे

कोउ कह जब बिधि रति मुख कीन्हा ।
सार भाग ससि कर् हरि लीन्हा

इस प्रकार का   गुप्त उपदेश परिलक्षित है

  अति शीघ्रता में लिखित
     स्टेशन आ गया है भाई उतारना है

   त्रुटि क्षमा
[10/2, 18:29] ‪+91 80970 57677‬: इस राष्ट्र में जन्मा कोई भी व्यक्ति राष्ट्र का पुत्र ही हो सकता है, पिता नहीं|
-
अथर्ववेद लिखने वालों ने इस भूमि को माँ और स्वयं को इसका पुत्र कहा, स्वयं प्रभु श्रीराम ने इस जन्मभूमि को जननी और स्वयं को इसका पुत्र कहा|
-
मोहनदास करमचंद वेदों से और राम से बड़े नहीं हैं,,, वे राष्ट्र के पुत्र हो सकते है, राष्ट्रपिता नहीं.......
[10/3, 09:31] ‪+91 88274 29111‬: 🌻 जीवन दर्शन 🌻
      सेवा क्रियात्मक ही नहीं
     भावनात्मक होनी चाहिए 
             ☀☀☀
सेवा वा पूजा में भेद है।जहाँ प्रेम का प्राधान्य है वहाँ सेवा है और जहाँ वेद मन्त्रों की प्रधानता है वहाँ पूजा है। सद्भाव पूर्वक सेवा करोगे तो वह सेवा सफल होगी। सेवा करते समय आंखों में अश्रुधारा आ जाए तो समझो वह सच्ची सेवा है। सेवा केवल क्रियात्मक ही नहीं भावनात्मक होनी चाहिए। सेवा करते समय आनन्द मिले वही सेवा है। जो भी करो, प्रेम से करो। भगवान के लिए भोजन बनाओ और प्रेम से उन्हें अर्पित करो। जो ईश्वर का है वही अर्पित करना है।
वे तो भावनाओं के भूखे हैं। जो उनको अर्पित करोगे उससे कई गुना देंगे।

            🌀 राधे-राधे 🌀

💥पं. श्रीधर शास्त्री श्रीधाम वृन्दावन 💥
[10/3, 09:56] ओमीश: *मीराबाई कृष्णप्रेम में डूबी, पद गा रही थी , एक संगीतज्ञ को लगा कि वह सही राग में नहीं गा रही है!*
*वह टोकते हुये बोले: "मीरा, तुम राग में नहीं गा रही हो।*
*मीरा ने बहुत सुन्दर उत्तर दिया: "मैं राग में नहीं, अनुराग में गा रही हूँ।*
*राग में गाउंगी तो दुनियां मुझे सुनेगी*
*अनुराग में गाउंगी तो मेरा कान्हा मुझे सुनेगा।*
*मैं दुनियां को नही, अपने श्याम को रिझाने के लिये गाती हूँ।*

*रिश्ता होने से रिश्ता नहीं बनता,*
*रिश्ता निभाने से रिश्ता बनता है।*
*"दिमाग" से बनाये हुए "रिश्ते"*
*बाजार तक चलते है,,,!*
*"और "दिल" से बनाये "रिश्ते"*
*आखरी सांस तक चलते है,*.

  *सुप्रभात*

         🌷🌷🌷
[10/3, 10:10] मार्कण्डेय जी: 🙏🏼💐🌹                                                                                       *5 अक्टूबर 2017 दिन-गुरूवार शरद पूर्णिमा पर विशेष*
🌷1. नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा को देखकर त्राटक करें।
🌷2 . जो भी इन्द्रियां शिथिल हो गई हैं उन्हें पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चांदनी में खुले आसमान के नीचे खीर रात भर रखना चाहिए और इस खीर को सुबह चंद्र देव,लक्ष्मी मां को भोग लगाकर वैद्यराज अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना चाहिए कि 'हमारी इन्द्रियों का तेज-ओज बढ़ाएं।' तत्पश्चात् खीर का सेवन करना चाहिए।
🌷3. शरद पूर्णिमा अस्थमा के लिए वरदान की रात होती है। रात को सोना नहीं चाहिए। रात भर रखी खीर का सेवन उपरोक्त विधि से करने पर निश्चित ही धीरे-धीरे दमे का दम निकल जाएगा।
🌷4 . पूर्णिमा और अमावस्या पर चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। जब चन्द्रमा इतने बड़े समुद्र में उथल-पुथल कर उसे कंपायमान कर देता है तो जरा सोचिए कि हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएं हैं, सप्त रंग हैं, उन पर चन्द्रमा का कितना गहरा प्रभाव पड़ता होगा।इसलिए यदि  शरद पूर्णिमा पर कोई भी व्यक्ति  जो कामवासना में लिप्त होते हैं  तो उनके यहाॅ विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारियां उत्पन्न होती है।
🌷5 . शरद पूर्णिमा पर पूजा, मंत्र, भक्ति, उपवास, व्रत आदि करने से शरीर तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि आलोकित होती है।
इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है।🙏🏼💐🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[10/3, 10:10] मार्कण्डेय जी: 🙏🏼💐🌹
*हिंदू धर्म ग्रंथों में लिखी अनेक* *कथाओं में स्वर्ग और नर्क के* *बारे में बताया गया है। पुराणों* *के अनुसार स्वर्ग वह स्थान* *होता है जहां देवता रहते हैं *और* *अच्छे कर्म करने वाले* *इंसान की आत्मा को भी वहां* *स्थान मिलता है, इसके विपरीत* *बुरे काम करने वाले* *लोगों को नर्क भेजा जाता है*, *जहां उन्हें सजा के तौर पर गर्म* *तेल में तला जाता है और* *अंगारों पर सुलाया जाता है।*
*हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में* *36 तरह के मुख्य नर्कों का* *वर्णन किया गया है, जिसे* *प्रत्येक जीव  11माह 15 दिन* *में 16 पड़ाव से गुजरता* *हुआ,कर्मो का दण्ड भोगता* *हुआ धर्म राज के दरबार में* *पहुंचता है।जहांअलग-अलग* *कर्मों के लिए इन नर्कों में सजा* *का प्रावधान भी माना गया है।* *गरूड़पुराण,अग्निपुराण,कठोप*निषद* *जैसे प्रामाणिक ग्रंथों में* *इसका उल्लेख मिलता है।*
*1. महावीचि*- यह नर्क पूरी तरह रक्त यानी खून से भरा है और इसमें लोहे के बड़े-बड़े कांटे हैं। जो लोग गाय की हत्या करते हैं, उन्हें इस नर्क में यातना भुगतनी पड़ती है।
*2. कुंभीपाक*- इस नर्क की जमीन गरम बालू और अंगारों से भरी है। जो लोग किसी की भूमि हड़पते हैं या ब्राह्मण की हत्या करते हैं। उन्हें इस नर्क में आना पड़ता है।
*3. रौरव*- यहां लोहे के जलते हुए तीर होते हैं। जो लोग झूठी गवाही देते हैं उन्हें इन तीरों से बींधा जाता है।
*4. मंजूष*- यह जलते हुए लोहे जैसी धरती वाला नर्क है। यहां उनको सजा मिलती है, जो दूसरों को निरपराध बंदी बनाते हैं या कैद में रखते हैं।
*5. अप्रतिष्ठ*- यह पीब, मूत्र और उल्टी से भरा नर्क है। यहां वे लोग यातना पाते हैं, जो ब्राह्मणों को पीड़ा देते हैं या सताते हैं।
*6. विलेपक*- यह लाख की आग से जलने वाला नर्क है। यहां उन ब्राह्मणों को जलाया जाता है, जो शराब पीते हैं।
*7. महाप्रभ*- इस नर्क में एक बहुत बड़ा लोहे का नुकीला तीर है। जो लोग पति-पत्नी में फूट डालते हैं, पति-पत्नी के रिश्ते तुड़वाते हैं वे यहां इस तीर में पिरोए जाते हैं।
*8. जयंती*- यहां जीवात्माओं को लोहे की बड़ी चट्टान के नीचे दबाकर सजा दी जाती है। जो लोग पराई औरतों के साथ संभोग करते हैं, वे यहां लाए जाते हैं।
*9. शाल्मलि*- यह जलते हुए कांटों से भरा नर्क है। जो औरत कई पुरुषों से संभोग करती है व जो व्यक्ति हमेशा झूठ व कड़वा बोलता है, दूसरों के धन और स्त्री पर नजर डालता है। पुत्रवधू, पुत्री, बहन आदि से शारीरिक संबंध बनाता है व वृद्ध की हत्या करता है, ऐसे लोगों को यहां लाया जाता है।
*10. महारौरव*- इस नर्क में चारों तरफ आग ही आग होती है। जैसे किसी भट्टी में होती है। जो लोग दूसरों के घर, खेत, खलिहान या गोदाम में आग लगाते हैं, उन्हें यहां जलाया जाता है।
*11. तामिस्र*- इस नर्क में लोहे की पट्टियों और मुग्दरों से पिटाई की जाती है। यहां चोरों को यातना मिलती है।
*12. महातामिस्र*- इस नर्क में जौंके भरी हुई हैं, जो इंसान का रक्त चूसती हैं। माता, पिता और मित्र की हत्या करने वाले को इस नर्क में जाना पड़ता है।
*13. असिपत्रवन*- यह नर्क एक जंगल की तरह है, जिसके पेड़ों पर पत्तों की जगह तीखी तलवारें और खड्ग हैं। मित्रों से दगा करने वाला इंसान इस नर्क में गिराया जाता है।
*14. करम्भ बालुका*- यह नर्क एक कुएं की तरह है, जिसमें गर्म बालू रेत और अंगारे भरे हुए हैं। जो लोग दूसरे जीवों को जलाते हैं, वे इस कुएं में गिराए जाते हैं।
*15. काकोल*- यह पीब और कीड़ों से भरा नर्क है। जो लोग छुप-छुप कर अकेले ही मिठाई खाते हैं, दूसरों को नहीं देते, वे इस नर्क में लाए जाते हैं।
*16. कुड्मल*- यह मूत्र, पीब और विष्ठा (उल्टी) से भरा है। जो लोग दैनिक जीवन में पंचयज्ञों ( ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ, पितृयज्ञ, मनुष्य यज्ञ) का अनुष्ठान नहीं करते वे इस नर्क में आते हैं।
*17. महाभीम*- यह नर्क बदबूदार मांस और रक्त से भरा है। जो लोग ऐसी चीजें खाते हैं, जिनका शास्त्रों ने निषेध बताया है, वो लोग इस नर्क में गिरते हैं।
*18. महावट*- इस नर्क में मुर्दे और कीड़े भरे हैं, जो लोग अपनी लड़कियों को बेचते हैं, वे यहां लाए जाते हैं।
*19. तिलपाक*- यहां दूसरों को सताने, पीड़ा देने वाले लोगों को तिल की तरह पेरा जाता है। जैसे तिल का तेल निकाला जाता है, ठीक उसी तरह।
*20. तैलपाक*- इस नर्क में खौलता हुआ तेल भरा है। जो लोग मित्रों या शरणागतों की हत्या करते हैं, वे यहां इस तेल में तले जाते हैं।
*21. वज्रकपाट*- यहां वज्रों की पूरी श्रंखला बनी है। जो लोग दूध बेचने का व्यवसाय करते है, वे यहां प्रताड़ना पाते हैं।
*22. निरुच्छवास*- इस नर्क में अंधेरा है, यहां वायु नहीं होती। जो लोग दिए जा रहे दान में विघ्न डालते हैं वे यहां फेंके जाते हैं।
*23. अंगारोपच्य*- यह नर्क अंगारों से भरा है। जो लोग दान देने का वादा करके भी दान देने से मुकर जाते हैं। वे यहां जलाए जाते हैं।
*24. महापायी*- यह नर्क हर तरह की गंदगी से भरा है। हमेशा असत्य बोलने वाले यहां औंधे मुंह गिराए जाते हैं।
*25. महाज्वाल*- इस नर्क में हर तरफ आग है। जो लोग हमेशा ही पाप में लगे रहते हैं वे इसमें जलाए जाते हैं।
*26. गुड़पाक*- यहां चारों ओर गरम गुड़ के कुंड हैं। जो लोग समाज में वर्ण संकरता फैलाते हैं, वे इस गुड़ में पकाए जाते हैं।
*27. क्रकच*- इस नर्क में तीखे आरे लगे हैं। जो लोग ऐसी महिलाओं से संभोग करते हैं, जिसके लिए शास्त्रों ने निषेध किया है, वे लोग इन्हीं आरों से चीरे जाते हैं।
*28. क्षुरधार*- यह नर्क तीखे उस्तरों से भरा है। ब्राह्मणों की भूमि हड़पने वाले यहां काटे जाते हैं।
*29. अम्बरीष*- यहां प्रलय अग्रि के समान आग जलती है। जो लोग सोने की चोरी करते हैं, वे इस आग में जलाए जाते हैं।
*30. वज्रकुठार*- यह नर्क वज्रों से भरा है। जो लोग पेड़ काटते हैं वे यहां लंबे समय तक वज्रों से पीटे जाते हैं।
*31. परिताप*- यह नर्क भी आग से जल रहा है। जो लोग दूसरों को जहर देते हैं या मधु (शहद) की चोरी करते हैं, वे यहां जलाए जाते हैं।
*32. काल सूत्र*- यह वज्र के समान सूत से बना है। जो लोग दूसरों की खेती नष्ट करते हैं। वे यहां सजा पाते हैं।
*33. कश्मल*- यह नर्क नाक और मुंह की गंदगी से भरा होता है। जो लोग मांसाहार में ज्यादा रुचि रखते हैं, वे यहां गिराए जाते हैं।
*34. उग्रगंध*- यह लार, मूत्र, विष्ठा और अन्य गंदगियों से भरा नर्क है। जो लोग पितरों को पिंडदान नहीं करते, वे यहां लाए जाते हैं।
*35. दुर्धर*- यह नर्क जौक और बिच्छुओं से भरा है। सूदखोर और ब्याज का धंधा करने वाले इस नर्क में भेजे जाते हैं।
*36. वज्रमहापीड*- यहां लोहे के भारी वज्र से मारा जाता है। जो लोग सोने की चोरी करते हैं, किसी प्राणी की हत्या कर उसे खाते हैं, दूसरों के आसन, शय्या और वस्त्र चुराते हैं, जो दूसरों के फल चुराते हैं, धर्म को नहीं मानते ऐसे सारे लोग यहां लाए जाते हैं।🙏🏼💐🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[10/3, 10:45] ‪+91 97530 19651‬: अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्‌ । यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥8.5॥

भावार्थ :
जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है ।
नाश्चर्यमिदं विश्वं न किंचिदिति निश्चयी। निर्वासनः स्फूर्तिमात्रो न किंचिदिव शाम्यति ॥11-8॥

भावार्थ :
अनेक आश्चर्यों से युक्त यह विश्व अस्तित्वहीन है, ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला, इच्छा रहित और शुद्ध अस्तित्व हो जाता है। वह अपार शांति को प्राप्त करता है ।
नाहं देहो न मे देहो बोधोऽहमिति निश्चयी। कैवल्यं इव संप्राप्तो न स्मरत्यकृतं कृतम् ॥11-6॥

भावार्थ :
न मैं यह शरीर हूँ और न यह शरीर मेरा है, मैं ज्ञानस्वरुप हूँ, ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला जीवन मुक्ति को प्राप्त करता है। वह किये हुए (भूतकाल) और न किये हुए (भविष्य के) कर्मों का स्मरण नहीं करता है ।
एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर । द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम ॥11.3॥

भावार्थ :
हे परमेश्वर! आप अपने को जैसा कहते हैं, यह ठीक ऐसा ही है, परन्तु हे पुरुषोत्तम! आपके ज्ञान, ऐश्वर्य, शक्ति, बल, वीर्य और तेज से युक्त ऐश्वर्य-रूप को मैं प्रत्यक्ष देखना चाहता हूँ ।
चिन्तया जायते दुःखं नान्यथेहेति निश्चयी। तया हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गलितस्पृहः॥

भावार्थ :
चिंता से ही दुःख उत्पन्न होते हैं किसी अन्य कारण से नहीं, ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला, चिंता से रहित होकर सुखी, शांत और सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाता है ।
आपदः संपदः काले दैवादेवेति निश्चयी। तृप्तः स्वस्थेन्द्रियो नित्यं न वान्छति न शोचति॥

भावार्थ :
संपत्ति (सुख) और विपत्ति (दुःख) का समय प्रारब्धवश (पूर्व कृत कर्मों के अनुसार) है, ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला संतोष और निरंतर संयमित इन्द्रियों से युक्त हो जाता है। वह न इच्छा करता है और न शोक ।
[10/3, 10:45] ‪+91 97530 19651‬: ::::::::::~:::::::::×:::::::::~::::::::::
आइये  आपको
     *"धरती पर भगवान हैं*
प्रमाणिकता सिद्ध किये गये लोगो के अनुभव  देखे व परखे  :-
::::::::::~:::::::::×:::::::::~::::::::::

१. *"अमरनाथजी"* में शिवलिंग अपने आप बनता है।

२. *"माँ ज्वालामुखी"* में
हमेशा ज्वाला निकलती है।

३. *"मैहर माता मंदिर"* में रात को आल्हा अब भी आते हैं।

४. सीमा पर स्थित *"तनोट माता मंदिर"* में 3000 बम में से एक का भी ना फूटना।

५. इतने बड़े हादसे के बाद भी *"केदारनाथ मंदिर"* का बाल ना बांका होना।

६. पूरी दुनियां मैं आज भी सिर्फ *"रामसेतु के पत्थर"* पानी में तैरते हैं।

७. *"रामेश्वरम धाम"* में सागर का कभी उफान न मारना।

८. *"पुरी के मंदिर"* के ऊपर से किसी पक्षी या विमान का न निकलना।

९. *"पुरी मंदिर" की पताका हमेशा हवा के विपरीत* दिशा में उड़ना।

१०. *उज्जैन में "भैरोंनाथ" का मदिरा पीना।*

११. *गंगा और नर्मदा माँ (नदी) के पानी का कभी खराब* न होना।

१२,  *श्री राम नाम धन संग्रह बैंक में संग्रहीत इकतालीस अरब राम नाम मंत्र पूरित ग्रंथों को (कागज होने पर भी) चूहों द्वारा नहीं काटा जान। जबकि अनेक चूहे अंदर घुमते रहते हॆं।*

13, *चितोडगढ मे बाणमाताजी के मंदिर मे आरती के समय* त्रिशूल का हिलना।।

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9 लोगों को जरूर भेजे,   2 दिन में बहुत बडी खुशखबरी मिलेगी।।
अन्यथा 2 साल तक कोई काम नहीं होगा ।
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[10/3, 16:16] व्यास u p: *"मेरा यार... ही मेरा प्यार..."*

     *।।यार की लाठी।।*

एक *साधु वर्षा के जल में प्रेम और मस्ती से भरा चला जा रहा था* कि...
अपनी ही धुन में रहने वाले इस साधु ने एक मिठाई की दुकान को देखा जहां एक कढ़ाई में गरम दूध उबला जा रहा था, तो मौसम के हिसाब से दूसरी कढ़ाई में गरमा गरम जलेबियां तैयार हो रही थी।
साधु कुछ क्षणों के लिए वहाँ रुक गया.....
शायद *भूख का एहसास* हो रहा था या मौसम का असर था....
साधु हलवाई की भट्ठी को बड़े गौर से देखने लगा साधु कुछ खाना चाहता था *अपनी मस्ती के बीच इस भूख को जान वह प्रभु को स्मरण कर मन ही मन कहा कि क्या क्या लीला करते हो,* क्योंकि *साधु की जेब ही नहीं थी तो पैसे भला कहां से होते....*
साधु कुछ पल भट्ठी से हाथ  सेंकने के बाद चला ही  जाना चाहता था.....  कि....
नेक दिल हलवाई से रहा न गया और एक प्याला गरम दूध और कुछ जलेबियां साधु को दें दी...
अपनी धुन का मस्त वो साधु प्रभु की मर्जी समझ गरम जलेबियां गरम दूध के साथ खाई और फिर हाथों को ऊपर की ओर उठाकर हलवाई के लिऐ प्रार्थना की.....
फिर आगे चल दिया..... *साधु बाबा का पेट भर चुका था दुनिया के दु:खों से बेपरवाह वे फिर इक नए जोश से बारिश के गंदले पानी के छींटे उड़ाता चला जा रहा था.......*
वह इस बात से बेखबर था कि एक युवा नव विवाहिता जोड़ा भी वर्षा के जल से बचता बचाता उसके पीछे चला आ रहें है ......
एक बार इस मस्त साधु ने बारिश के गंदले पानी में जोर से लात मारी..... बारिश का पानी उड़ता हुआ सीधा पीछे आने वाली युवती के कपड़ों को भिगो गया उस औरत के कीमती कपड़े कीचड़ से लथपथ हो गये.....
*उसके युवा पति से यह बात बर्दाश्त नहीं हुई.....*
इसलिए वह आस्तीन चढ़ाकर आगे बढ़ा और साधु के कपड़ो से पकड़ कर कहने लगा अंधा है......
तुमको नज़र नहीं आता तेरी हरकत की वजह से मेरी पत्नी के कपड़े गीले हो गऐ हैं और कीचड़ से भर गऐ हैं.....
साधु हक्का-बक्का सा खड़ा था....
जबकि इस युवा को साधु का चुप रहना नाखुशगवार गुजर रहा था.....
महिला ने आगे बढ़कर युवा के हाथों से साधु को छुड़ाना भी चाहा....
लेकिन युवा की आंखों से निकलती नफरत की चिंगारी देख वह भी फिर पीछे खिसकने पर मजबूर हो गई.....
राह चलते राहगीर भी उदासीनता से यह सब दृश्य देख रहे थे लेकिन युवा के गुस्से को देखकर किसी में इतनी हिम्मत नहीं हुई कि उसे रोक पाते और आख़िर *जवानी के नशे मे चूर इस युवक ने एक जोरदार थप्पड़ साधु के चेहरे पर जड़ दिया बूढ़ा मलंग थप्पड़ की ताब ना झेलता हुआ लड़खड़ाता हुऐ कीचड़ में जा पड़ा.....*
युवक ने जब साधु को नीचे गिरता देखा तो मुस्कुराते हुए वहां से चल दिया.....
बूढे साधु ने आकाश की ओर देखा और उसके होठों से निकला *वाह मेरे भगवान कभी गरम दूध जलेबियां और कभी गरम थप्पड़.... लेकिन जो तू चाहे मुझे भी वही पसंद है........*
यह कहता हुआ वह एक बार फिर अपने रास्ते पर चल दिया....
दूसरी ओर वह युवा जोड़ा अपनी मस्ती को समर्पित अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो गया.....
थोड़ी ही दूर चलने के बाद वे एक मकान के सामने पहुंचकर रुक गए......
वह अपने घर पहुंच गए थे, वे युवा अपनी जेब से चाबी निकाल कर अपनी पत्नी से हंसी मजाक करते हुए ऊपर घर की सीढ़ियों तय कर रहा था....बारिश के कारण सीढ़ियों पर फिसलन हो गई थी अचानक युवा का पैर फिसल गया और वह सीढ़ियों से नीचे गिरने लगा....
महिला ने बहुत जोर से शोर मचा कर लोगों का ध्यान अपने पति की ओर आकर्षित करने लगी जिसकी वजह से काफी लोग तुरंत सहायता के लिये युवा की ओर लपके..... लेकिन देर हो चुकी थी युवक का सिर फट गया था और कुछ ही देर मे ज्यादा खून बह जाने के कारण इस नौजवान युवक की मौत हो चुकी थी कुछ लोगों ने दूर से आते साधु बाबा को देखा तो आपस में कानाफुसी होने लगीं कि निश्चित रूप से इस साधु बाबा ने थप्पड़ खाकर युवा को श्राप दिया है....
अन्यथा ऐसे नौजवान युवक का केवल सीढ़ियों से गिर कर मर जाना बड़े अचम्भे की बात लगती है.....
कुछ मनचले युवकों ने यह बात सुनकर साधु बाबा को घेर लिया एक युवा कहने लगा कि आप कैसे भगवान के भक्त हैं जो केवल एक थप्पड़ के कारण युवा को श्राप दे बैठे......
*भगवान के भक्त मे रोष व गुसा हरगिज़ नहीं होता* ....आप तो जरा सी असुविधा पर भी धैर्य न कर सकें.....
साधु बाबा कहने लगा *भगवान की क़सम मैंने इस युवा को श्राप नहीं दिया....*

अगर आप ने श्राप नहीं दिया तो ऐसा नौजवान युवा सीढ़ियों से गिरकर कैसे मर गया?
तब साधु बाबा ने दर्शकों से एक अनोखा सवाल किया कि आप में से कोई इस सब घटना का चश्मदीद गवाह मौजूद है?
एक युवक ने आगे बढ़कर कहा.....
हाँ मैं इस सब घटना का चश्मदीद गवाह हूँ ।
साधु ने अगला सवाल किया- *मेरे क़दमों से जो कीचड़ उछला था क्या उसने युवा के कपड़े को दागी किया था?*
*युवा बोला- नहीं...!! लेकिन महिला के कपड़े जरूर खराब हुए थे...*
उस मस्ताने साधु ने युवक की बाँहों को थामते हुए पूछा....,
फिर युवक ने मुझे क्यों मारा?
युवा कहने लगा-
*क्योंकि वह युवा इस महिला का प्रेमी था और यह बर्दाश्त नहीं कर सका कि कोई उसके प्रेमी के कपड़ों को गंदा करे..... इसलिए उस युवक ने आपको मारा....*

युवा बात सुनकर साधु बाबा ने एक जोरदार ठहाका बुलंद किया और यह कहता हुआ वहाँ से विदा हो गया.....
*तो भगवान की क़सम मैंने श्राप कभी किसी को नहीं दिया लेकिन कोई है जो मुझ से प्रेम रखता है....* *अगर उसका यार सहन नहीं कर सका तो मेरे यार को कैसे बर्दाश्त होगा कि कोई मुझसे मारे और वह इतना शक्तिशाली है कि दुनिया का बड़े से बड़ा राजा भी उसकी लाठी से डरता है ....*
*मेरा यार..*
*मेरा प्यार...*
*वो परमात्मा ही है*
उस परमात्मा की लाठी दीख़ती नही और आवाज भी नही करती लेकिन पडती हैं तों बहुत दर्द देती है।
हमारे कर्म ही हमें उसकी लाठी से बचातें हैं बस कर्म अच्छे होने चाहिये...

[10/3, 17:02] ‪+91 96856 20761‬: सत्य प्रकाश भ्राता
मैंने पटल पर रखे गये मेरे प्रश्न पर विस्तृत विचार अभिमत रखें जाने हेतु रख गया है।
आपने गौर किया इसके लिए हृदय से आभारी हूँ।
मैं चाहता हूँ कि इस प्रसंग पर थोड़ी ज्ञान वृष्टि हो।
🎻🎻🙏🏻🎻🎻
[10/3, 18:40] पं विजय जी: || ॐ जय श्री सीताराम ||
पवन तनय संकट हरण , मंगल मूर्ति रूप I
राम लखन सीता सहीत , ह्रदय बसहु सुर भूप II
|| ॐ मारुति नंदन नमो नमः ||
[10/3, 18:45] पं अनुरागी जी: नमो नमः
   प्रभु जी  अति विस्तार मरण परिचर्चा हेतु समय निकालिये ।
    स्थान एवं समय आप सुनिश्चित करें । सेवक समुपस्थित होगा ।
              अनुरागी जी
[10/3, 18:54] पं विजय जी: अपनी कमियों को केवल हम ही दूर कर सकते है और कोई नहीं, बाकी सब तो इसका फायदा उठाना जानते है..।।
[10/3, 21:28] पं विजय जी: *जरुरी नही कि राम का नाम बुढ़ापे मे ही लिया जाए,*

*हो सकता है* *जिंदगी मे बुढ़ापा ही न आए*
*अर्थात निरंतर राम राम जपते रहिये*
#जयश्रीराम
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[10/3, 21:55] पं अनिल ब: बका हंसा भूत्वा कथमपि गता मानसजलं
समे हंसा ज्ञात्वा कपटमपि मूका: समभवन्।
विरोधाभावात्ते द्विजपतिविलासे विलसिता:
फलेनैते हंसा नयनजलपानव्यसनिन:।।

  कभी किसी तरह बगुले हंस बनकर मानसरोवर के जल में चले गये। सभी हंसों ने इसका कपट समझकर भी इसका विरोध नहीं किया। विरोध के अभाव में बगुलों ने हंस की तरह रहने का अधिकार पा लिया और हंस जैसा विलास करने लगे। कालान्तर में परिणाम यह हुआ कि सभी हंस अपना आँसू पीने को मजबूर हो गये।।
           💐हरि:💐 जय महाँकाल
[10/4, 08:20] ओमीश: मृगा मृगैः संगमुपव्रजन्ति गावश्च गोभिस्तुरगास्तुरंगैः।
मूर्खाश्च मूर्खैः सुधयः सुधीभिः समानशीलव्यसनेषु सख्यं॥

*मृग मृगों के साथ, गाय गायों के साथ, घोड़े घोड़ों के साथ, मूर्ख मूर्खों के साथ और बुद्धिमान बुद्धिमानों के साथ रहते हैं; समान आचरण और आदतों वालों में ही मित्रता होती हॆ*!

जय श्री कृष्ण
*सुप्रभात*🌹🙏🏻
[10/4, 09:12] पं विजय जी: !!! सुप्रभात।!!! सुप्रभात।!! !!! सुप्रभात।!!
पुनः प्रभातं पुनरेव शर्वरीपुनः शशांकः पुनरुद्यते रविः ।
कालस्य किं गच्छति याति यौवनंतथापि लोकः कथितं न बुध्यते ॥
फिर से प्रभात, फिर से रात्रि, फिर से चंद्र, और फिर से सूरज का उगना ! काल का क्या जाता है ? कुछ नहीं; यह तो यौवन जाता है, (पर) लोग कहाँ समझते हैं ?

________सुप्रभात
[10/4, 09:19] पं विजय जी: पूरी जिन्दगी हम इसी बात को सोच कर गुजार देते है कि 'चार लोग क्या कहेंगे'
और अंत मे चार लोग बस यही कहते है 'राम नाम सत्य है- 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[10/4, 09:30] ‪+91 74159 69132‬: *भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥

जयश्रीराम जयश्रीराम जयश्रीराम
[10/4, 09:57] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *सर्वेभ्यो नमो नमः सुप्रभातम्*
*मन की बात--:*🌹🙏🌹😊
प्रेम में हम इतने हल्के हो जाते हैं कि नभ तक पहुँच जाते हैं। कृतज्ञता के भाव प्रकट होते हैं और प्रकट होता है एक ऐसा आनंद जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।ईश्वर से हर पल एक डोर बंधी हुई महसूस होती है।इसके प्रमाण भी मिलने लगते हैं। वह अस्तित्त्व भी स्वयं को प्रकट करना चाहता है।दर्द में भी मुस्काने की कला मिल जाती है। क्रोध आने से पूर्व ही शांत होने लग जाता है। जाने कौन आकर समझा जाता है कि जो कहना चाहते हैं वह न कहकर कुछ ऐसा कहते हैं जो प्रेम को दर्शाता है। अर्थात प्रेम की पकड़ क्रोध से ज्यादा हो जाती है। सभी के प्रति मन सद्भावना से भर जाता है। कभी-कभी अश्रु भी बहते हैं पर इनमें भी कैसी प्रसन्नता है। ईश्वर भी हमारा साथ पसंद करता हुआ लगता है।हमारा साधारण मन उसके दिव्य मन के साथ एक हो जाता है।
*जय श्री राधे*✍