[10/4, 11:13] +91 98896 25094: ज़िंदगी ज़बरदस्त है, इसे ज़बरदस्ती ना जिएँ,
बल्कि ज़बरदस्त तरीक़े से जिएँ।
।।। जय श्री सीताराम ।।।
[10/4, 11:46] कख: *💐🌷जय श्रीमन्नारायण🌷💐*
*श्रीमते रामानुजाय नमः*
*मांसभक्षैः सुरापानैर्मूर्खैश्चाक्षरवर्जितैः।*
*पशुभिः पुरुषाकारैर्भाराSSक्रान्ता च मेदिनी।।*
*भावार्थः*
आचार्यों ने ऐसे मनुष्यों को पशु तुल्य कहा है, जो मांस का भक्षण करते हों, मदिरापान करते हों, मूर्ख या अनपढ़ हों। वे कहते हैं कि ऐसे मनुष्य पशुओं के समान आचरण करते हैं। समाज और राज्य को केवल अवगुणों के अतिरिक्त ये कुछ प्रदान नहीं करते। इनसे न तो परोपकार की उम्मीद की जा सकती है और न ही सज्जनता की। इसलिए ये पृथ्वी पर बोझ के समान हैं। ऐसे पशु तुल्य मनुष्यों का जीवन व्यर्थ है।
*🌺 विष्णु वर्धनाचार्यः🌺*
*🌸शुभोदयम्🌞🌸*
[10/4, 11:50] घनस्याम तिवारी जी: 🙏❤दिल की बात❤🙏मुझको यारो माफ करना मैं नशे में हूँ । जी हां आज मैं बोलूंगा, पर एक बात है -- मैं उनके अनल हक का शराब पीता हु ।🌹गरीब जरूर हु,पर महंगी शराब पीता हु ।।🌹( कोई एरो गेरो शराब नही ब्रांडेड । श्री कृष्ण ब्रांड ) वो भी कैसे? मेरे पीने का अंदाज ही कुछ और है,इस ढंग से -- 🌹की नजरें मिला के मोहब्बत जता के पिता हु । 🌹मैं शाकी को अपना बना के पिता हु ।। 🌹(क्योकि जब वही अपना हो गया तो फिर मुझे कौन रोकेगा ) किसी ने कहा-- तुम्हे डर नही लगता ,ये क्या बहकी बहकी बाते करते हो? उत्तर-- 🌹दिन ओ दिन नही,रात वो रात नही,पल वो पल नही,जिस पल तेरी याद नही ।। 🌹की तेरी यादों को मौत मुझे अलग कर सके,इतनी तो मौत की भी औकात नही ।🌹( और जब मौत की भी औकात नही तो कोई मेरा क्या बिगाड़ लेगा ) क्षमा करें आप सब देव नवरात्र का थका हारा हु तो थोड़ी सी कृष्ण भक्ति पी लिया,इस लिए मुख से कुछ निकल गया ।🙏सभी देव को दास का जय माता दी 🙏🙏🙏
[10/4, 13:59] +1 (562) 965-8399: 🌱मृगा मृगैः संगमुपव्रजन्ति गावश्च गोभिस्तुरगास्तुरंगैः।
मूर्खाश्च मूर्खैः सुधयः सुधीभिः समानशीलव्यसनेषु सख्यं॥
*मृग मृगों के साथ, गाय गायों के साथ, घोड़े घोड़ों के साथ, मूर्ख मूर्खों के साथ और बुद्धिमान बुद्धिमानों के साथ रहते हैं; समान आचरण और आदतों वालों में ही मित्रता होती हॆ*!
*सुप्रभात*🌹🙏🏻
[10/4, 18:11] मार्कण्डेय जी: 🙏🏼💐🌹
*अपने कर्मों के द्वारा भगवान् का पूजन*.....
मनुस्मृति में ब्राह्मणों के लिये छः कर्म बताये गये हैं‒स्वयं पढ़ना और दूसरों को पढ़ाना, यज्ञ करना और दूसरों से यज्ञ कराना तथा स्वयं दान लेना और दूसरोंको दान देना (1 )-अध्यापनमध्ययनं यजन याजनं तथा ।दानं प्रतिग्रहं चैव ब्रह्मणानामकल्पयत्।। (इनमें पढ़ाना, यज्ञ कराना और दान लेना‒ये तीन कर्म जीविका के हैं और पढ़ना, यज्ञ करना और दान देना‒ये तीन कर्तव्य-कर्म हैं) । उपर्युक्त शास्त्रनियत छः कर्म और शम-दम आदि नौ स्वभावज कर्म तथा इनके अतिरिक्त खाना-पीना, उठना-बैठना आदि जितने भी कर्म हैं, उन कर्मों के द्वारा ब्राह्मण चारों वर्णों में व्याप्त परमात्मा का पूजन करें । तात्पर्य है कि परमात्मा की आज्ञा से, उनकी प्रसन्नताके लिये ही भगवद्बुद्धि से निष्कामभावपूर्वक सब की सेवा करें ।
ऐसे ही क्षत्रियोंके लिये पाँच कर्म बताये गये हैं‒प्रजाकी रक्षा करना, दान देना, यज्ञ करना, अध्ययन करना और विषयोंमें आसक्त न होना (2)-प्रजानां रक्षणं दानमिज्याध्ययनमेव च।विषयेष्वप्रसक्तिश्च क्षत्रियस्य समासतः।। इन पाँच कर्मों तथा शौर्य, तेज आदि सात स्वभावज कर्मोंके द्वारा और खाना-पीना आदि सभी कर्मोंके द्वारा क्षत्रिय सर्वत्र व्यापक परमात्माका पूजन करें ।
वैश्य यज्ञ करना, अध्ययन करना, दान देना और ब्याज लेना तथा कृषि,गौरक्ष्य और वाणिज्य (3)- पशूनां रक्षणं दानमिज्याध्ययनमेव च।वणिक्पथं कुसीदं च वैश्यस्य कृषिमेव च ॥ … … …. ( मनु ॰ १ । ९० ) इन शास्त्रनियत और स्वभावज कर्मोंके द्वारा सर्वत्र व्यापक परमात्मा का पूजन करें । शूद्र शास्त्रविहित तथा स्वभावज कर्म सेवाके द्वारा सर्वत्र व्यापक परमात्माका पूजन करें(4)-एवमेव तु शूद्रस्य प्रभुः कर्म समादिशत् । एतेषामेव वर्णानां शुश्रूषामनसूयया ॥. ..... (मनु ॰ १ । ९१ ) अर्थात् शूद्र शास्त्रविहित, स्वभावज और खाना-पीना, सोना-जागना आदि सभी कर्मोंके द्वारा भगवान्की आज्ञासे, भगवान्की प्रसन्नता के लिये भगवद्बुद्धि से निष्कामभाव पूर्वक सबकी सेवा करें ।
शास्त्रों में मनुष्य के लिये अपने वर्ण और आश्रम के अनुसार जो-जो कर्तव्य-कर्म बताये गये हैं, वे सब संसाररूप परमात्माकी पूजाके लिये ही हैं । अगर साधक अपने कर्मोंके द्वारा भावसे उस परमात्माका पूजन करता है तो उसकी मात्र क्रियाएँ परमात्माकी पूजा हो जाती हैं । जैसे, पितामह भीष्मने (अर्जुनके साथ युद्ध करते हुए) अर्जुनके सारथि बने हुए भगवान्की अपने युद्धरूप कर्मके द्वारा (बाणोंसे) पूजा की । भीष्मके बाणोंसे भगवान्का कवच टूट गया, जिससे भगवान्के शरीरमें घाव हो गये और हाथकी अंगुलियोंमें छोटे-छोटे बाण लगनेसे अंगुलियोंसे लगाम पकड़ना कठिन हो गया । ऐसी पूजा करके अन्त समयमें शरशथ्यापर पड़े हुए पितामह भीष्म अपने बाणोंद्वारा पूजित भगवान्का ध्यान करते हैं‒ (5)युधि तुरगरजोविधूम्रविष्वक्कचलुलितश्रमवार्यलङ्कृतास्ये। मम निशितशरैर्विभिद्यमानत्वचि विलसत्कवचेऽस्तु कृष्ण आत्मा ॥...... ( श्रीमद्भा ॰ १ । ९ । ३४ ) ‘युद्धमें मेरे तीखे बाणोंसे
जिनका कवच टूट गया है, जिनकी त्वचा विच्छिन्न हो गयी है, परिश्रमके कारण जिनके मुखपर स्वेदकण सुशोभित हो रहे हैं, घोड़ोंकी टापोंसे उड़ी हुई रज जिनकी सुन्दर अलकावलि में लगी हुई है, इस प्रकार बाणों से अलंकृत भगवान् कृष्ण में मेरे मन-बुद्धि लग जायँ ।
लौकिक और पारमार्थिक कर्मों के द्वारा उस परमात्माका पूजन तो करना चाहिये, पर उन कर्मों में और उनको करने के करणों-उपकरणों में ममता नहीं रखनी चाहिये । कारण कि जिन वस्तुओं, क्रियाओं आदि में ममता हो जाती है वे सभी चीजें अपवित्र हो जानेसे (6)-ममता मल जरि जाइ ।...... (मानस ७ । ११७ क ) पूजा-सामग्री नहीं रहतीं (अपवित्र फल, फूल आदि भगवान्पर नहीं चढ़ते) । इसलिये ‘मेरे पास जो कुछ है, वह सब उस सर्वव्यापक परमात्माका ही है, मुझे तो केवल निमित्त बनकर उनकी दी हुई शक्तिसे उनका पूजन करना है’‒इस भावसे जो कुछ किया जाय, वह सब-का-सब परमात्माका पूजन हो जाता है । इसके विपरीत उन क्रियाओं, वस्तुओं आदिको मनुष्य जितनी अपनी मान लेता है, उतनी ही वे (अपनी मानी हुई) क्रियाएँ वस्तुएँ (अपवित्र होनेसे) परमात्माके पूजनसे वंचित रह जाती हैं ।🙏🏼💐🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[10/4, 18:18] पं विजय जी: हे राम पुरुषोत्तम नर हरे , नारायण केशव। गोविन्द गरुड़ध्वज ,गुणनिधे दामोदर माधव।।
हे कृष्ण कमलापते यदुपते ,सीतापते श्रीपते , बैकुंठाधिपते चराचरपते,लक्ष्मीपते पाहिमाम।।
[10/4, 21:45] +91 98490 91808: 😂😄
आर्य, भवतः पुत्रः अभियन्ता भवति, तथापि गेहे स्थितः।
तथा नास्ति। सायं समयो भवतु। तदा एषः कुक्कुटाण्डानां सञ्चारपणं चालयति।
😂😅
अंकल-आपका लड़का इंजीनियरिंग करके भी घर में बैठा है ??
ऐसी बात नही है, शाम होने दो, शाम को ये अंण्डे का ठेला लगाता है..
😂😄
[10/5, 08:44] +91 74159 69132: सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा ।
शान्ति: पत्नी क्षमा पुत्र: षडेते मम बान्धवा: ॥
ये है हमारा परिवार,
[10/5, 09:21] +91 97586 40209: न ह वै सशरीरस्य सतः प्रियाप्रिययोरपहतिरस्ति ।।
- निश्चयपूर्वक जबतक यह शरीर बना हुआ है तबतक सुख और दुखका निवारण नही हो सकता ।।
[10/5, 09:26] पं विजय जी: 🙏ॐ नमः शिवाय सुप्रभातम🙏
शरद पूर्णिमा की निश्छल निर्मल स्वच्छ चांदनी सा अमरत्व से भीगा मन आपके जीवन मे सदा आनन्द की अनुभूति करवाता रहे..।।
[10/5, 10:22] सुधा जी: चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥
राष्ट्र कवी मैथिलि शरण गुप्त की इन अनुपम पंक्तियों में शरद ऋतुू का आगाज ।
आप को शरद पूनम की हार्दिक शुभकामनायें l :)
[10/5, 10:33] हरिमोहन: 🌹गुरु के दर्शन🌹
🌲🌼🌲🌼🌲🌼🌲
एक बार गुरु नानक देव जी से किसी ने पूछा कि गुरु के दर्शन करने से क्या लाभ होता है ?
गुरु जी ने कहा कि इस रास्ते पर चला जा, जो भी सब से पहले मिले उस से पूछ लेना |
वह व्यक्ति उस रास्ते पर गया तो उसे सब से पहले एक कौवा मिला, उसने कौवे से पूछा कि गुरु के दर्शन करने से क्या होता है ?
उसके यह पूछते ही वह कौवा मर गया....
वह व्यक्ति वापिस गुरु जी के पास आया और सब हाल बताया...
अब गुरु ने कहा कि फलाने घर में एक गाय ने एक बछड़ा दिया है, उससे जाकर यह सवाल पूछो,
वह आदमी वहां पहुंचा और बछड़े के आगे यही सवाल किया तो वह भी मर गया.....
वह आदमी भागा भागा गुरु जी के पास आया और सब बताया...
अब गुरु जी ने कहा कि फलाने घर में जा, वहां एक बच्चा पैदा हुआ है, उस से यही सवाल करना...
वह आदमी बोला के वह बच्चा भी मर गया तो ?
गुरु जी ने कहा कि तेरे सवाल का जवाब वही देगा...
अब वह आदमी उस घर में गया और जब बच्चे के पास कोई ना था तो उसने पूछा कि गुरु के दर्शन करने से क्या लाभ होता है ?
वह बच्चा बोला कि मैंने खुद तो नहीं किये लेकिन तू जब पहली बार गुरु जी के दर्शन करके मेरे पास आया तो मुझे कौवे की योनी से मुक्ति मिली और बछड़े का जन्म मिला....
तू दूसरी बार गुरु के दर्शन करके मेरे पास आया तो मुझे बछड़े से इंसान का जन्म मिला....
👏सो इतना बड़ा हो सकता है गुरु के दर्शन करने का फल, फिर चाहे वो दर्शन आंतरिक हो या बाहरी.....
👏ऐ सतगुरू मेरे...
नज़रों को कुछ ऐसी खुदाई दे...
जिधर देखूँ उधर तू ही दिखाई दे...
कर दे ऐसी कृपा आज इस दास पे कि...
जब भी बैठूँ सिमरन में...
सतगुरू तू ही दिखाई दे..
🙏🌷🙏🌷🙏🌷🙏🌷🙏
[10/5, 11:22] ओमीश: [ *!! शरद पूर्णिमा !!*
आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा को कोजोगार पूर्णिमा व्रत और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
इस दिन श्रीसूक्त, लक्ष्मीस्तोत्र का पाठ करके हवन करना चाहिए. इस विधि से कोजागर व्रत करने से माता लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं तथा धन-धान्य, मान-प्रतिष्ठा आदि सभी सुख प्रदान करती हैं।
*!!शरद पूर्णिमा व्रत विधि !!*
- पूर्णिमा के दिन सुबह में इष्ट देव का पूजन करना चाहिए।
- इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए।
- ब्राह्माणों को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए।
- लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है।
- रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए।
- मंदिर में खीर आदि दान करने का विधि-विधान है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है।
*!! शरद पूर्णिमा का महत्व !!*
शास्त्रों के अनुसार इस दिन अगर अनुष्ठान किया जाए तो यह अवश्य सफल होता है। तीसरे पहर इस दिन व्रत कर हाथियों की आरती करने पर उतम फल मिलते है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृ्ष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था। इस दिन चन्द्रमा कि किरणों से अमृत वर्षा होने की किवदंती प्रसिद्ध है। इसी कारण इस दिन खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखकर अगले दिन प्रात: काल में खाने का विधि-विधान है।
*!! शरद पूर्णिमा व्रत कथा !!*
कथानुसार एक साहूकार की दो बेटियां थी और दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थी। बड़ी बेटी ने विधिपूर्वक व्रत को पूर्ण किया और छोटी ने व्रत को अधूरा ही छोड़ दिया। फलस्वरूप छोटी लड़की के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। एक बार बड़ी लड़की के पुण्य स्पर्श से उसका बालक जीवित हो गया और उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक पूर्ण रूप से मनाया जाने लगा। इस दिन माता महालक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
क्यों लगाया जाता है खीर का भोग?
इस दिन व्रत रख कर विधिविधान से लक्ष्मीनारायण का पूजन करें और रात में खीर बनाकर उसे रात में आसमान के नीचे रख दें ताकि चंद्रमा की चांदनी का प्रकाश खीर पर पड़े। दूसरे दिन सुबह स्नान करके खीर का भोग अपने घर के मंदिर में लगाएं कम से कम 3 ब्राह्मणों को खीर प्रसाद के रूप में दें और फिर अपने परिवार में खीर का प्रसाद बांटें। इस प्रसाद को ग्रहण करने से अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है।
*!! क्या कहता है विज्ञान !!*
शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा हमारी धरती के बहुत करीब होता है। इसलिए चंद्रमा के प्रकाश में मौजूद रासायनिक तत्व सीधे-सीधे धरती पर गिरते हैं। खाने-पीने की चीजें खुले आसमान के नीचे रखने से चंद्रमा की किरणे सीधे उन पर पड़ती है जिससे विशेष पोषक तत्व खाद्य पदार्थों में मिल जाते हैं जो हमारी सेहत के लिए अनुकूल होते हैं। !!
*जय जगदंब*🌹🎋🙏🏻
[ *पूर्णिमा प्रयोग:-*
सबसे बड़ी पूर्णिमा कल आ रही है। पूर्णिमा का व्रत भी कल है। जिनके चंद्रमा 6, 8, 12वें भाव में हो या जिनके चंद्रमा अस्त हो या शत्रु राशि में नीच का हो या सूर्य शनि राहु केतु के साथ हो ऐसे सभी जातकों को कल चंद्रमा की रोशनी में बैठकर चंद्र स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
कल ऐसे सभी जातकों को जिनका भाग्य कम हो रहा है , दाम्पत्य जीवन में कडवाहट हो पति-पत्नी में नहीं बन रही है, मानसिक अशांति हो वह पानी में चंद्र दर्शन करें चंद्रमा को दूध का अर्ध्य देवें।
कल चंद्रमा की रोशनी में खीर बनाकर रखने से चंद्र के सभी गुण और अमृत कणः उसमें आते हैं।
जिनका भाग्य बार-बार साथ नहीं दे रहा है वे कल 2 - दो मोती लेकर चंद्रमा की रोशनी में रखिए एक मोती को अपने पास और दूसरे को तिजोरी में रखें। ऐसा करने से तरक्की होती जाएगी ।।
*जय श्री जी की*🌹🎋🙏🏻
[10/5, 11:45] मार्कण्डेय जी: 🙏🏼💐🌹 *कोजागरी पौर्णिमा की हार्दिक* *बधाई*....... *चारुचंद्र की चंचल किरणें*, *खेल रहीं हैं जल थल में*,
*स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है* *अवनि और अम्बरतल में।*
*पुलक प्रकट करती है धरती,* *हरित तृणों की नोकों से*,
*मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द* *पवन के झोंकों से॥*
*राष्ट्र कवि मैथिलि शरण गुप्त *की इन अनुपम पंक्तियों में* *शरद ऋतु का ही आगाज है।*
*आप को एवं आपके समस्त* *परिवार को शरद पूनम की* *हार्दिक शुभकामनायें* *l🙏🏼💐🌹आचार्य* *पं.मार्कण्डेय तिवारी -* *9819030199 . मुम्बई ।*
[10/5, 11:58] +1 (562) 965-8399: *💐💐शुभोदयम्💐💐*
अच्युतानन्त गोविन्द नामोच्चारण भेषजात नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यम सत्यम वदाम्यहम।।
आपको शरद् पूर्णिमा की अनंत शुभकामनाएं
🙏 *सुप्रभातम* 🙏
🌷सुदिनम कल्याणमस्तु🌷
गुरुवासरे आश्विन पूर्णिमा
लोकाः समस्ता सुखिनः भवन्तु
🌷🌷🌷🌷🌷
[10/5, 12:17] ओमीश: भंवरा की गुंजन सौं,कोयल की कूहक मिलै,
चारू-चन्द्र चन्द्रिका सौं,प्रीत बरसाई है।
देव-सुर,ऋषि-मुनि,धारि रहे ‘नारि-रूप‘,
रसिकन-रसराज बने, बाँके कन्हाई है।
अद्भुत प्रवास भयौ,आज “महारास” भयौ,
नख-शिख सिंगार किए,’शरद-ऋतु‘आई है।
शरद पूर्णिमा के पावन पर्व की हार्दिक शुभ कामनायें
[10/5, 13:37] मार्कण्डेय जी: 🙏🏼💐🌹 *शरद पूर्णिमा(कोजागरी या रास पूर्णिमा )*.........
आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा को कोजोगार -कोजागरी-कोजागर पूर्णिमा व्रत और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
इस दिन श्रीसूक्त, लक्ष्मीस्तोत्र का पाठ करके हवन करना चाहिए. इस विधि से कोजागर व्रत करने से माता लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं तथा धन-धान्य, मान-प्रतिष्ठा आदि सभी सुख प्रदान करती हैं। *शरद पूर्णिमा व्रत विधि*:---
पूर्णिमा के दिन सुबह में शास्त्रोक्त विधि से इष्ट देव का पूजन करना चाहिए।
इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए।
ब्राह्माणों को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है।
रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए। मंदिर में खीर आदि दान करने का विधि-विधान है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है।
*शरद पूर्णिमा का शास्त्रीय* *महत्व*:---
शास्त्रों के अनुसार इस दिन अगर अनुष्ठान किया जाए तो यह अवश्य सफल होता है। तीसरे पहर इस दिन व्रत कर हाथियों की आरती करने पर उतम फल मिलते है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृ्ष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था। इस दिन चन्द्रमा कि किरणों से अमृत वर्षा होने की किवदंती प्रसिद्ध है। इसी कारण इस दिन खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखकर अगले दिन प्रात: काल में खाने का विधि-विधान है।
*शरद पूर्णिमा व्रत कथा*:---
कथानुसार एक साहूकार की दो बेटियां थी और दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थी। बड़ी बेटी ने विधिपूर्वक व्रत को पूर्ण किया और छोटी ने व्रत को अधूरा ही छोड़ दिया। फलस्वरूप छोटी लड़की के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। एक बार बड़ी लड़की के पुण्य स्पर्श से उसका बालक जीवित हो गया और उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक पूर्ण रूप से मनाया जाने लगा। इस दिन माता महालक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
क्यों लगाया जाता है खीर का भोग?
इस दिन व्रत रख कर विधिविधान से लक्ष्मीनारायण का पूजन करें और रात में खीर बनाकर उसे रात में आसमान के नीचे रख दें ताकि चंद्रमा की चांदनी का प्रकाश खीर पर पड़े। दूसरे दिन सुबह स्नान करके खीर का भोग अपने घर के मंदिर में लगाएं कम से कम 3 ब्राह्मणों को खीर प्रसाद के रूप में दें और फिर अपने परिवार में खीर का प्रसाद बांटें। इस प्रसाद को ग्रहण करने से अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है।
*क्या कहता है शरद पूर्णिमा के* *बारे में ज्योतिष विज्ञान*:---
शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा हमारी धरती के बहुत करीब होता है। इसलिए चंद्रमा के प्रकाश में मौजूद रासायनिक तत्व सीधे-सीधे धरती पर गिरते हैं। खाने-पीने की चीजें खुले आसमान के नीचे रखने से चंद्रमा की किरणे सीधे उन पर पड़ती है जिससे विशेष पोषक तत्व खाद्य पदार्थों में मिल जाते हैं जो हमारी सेहत के लिए अनुकूल होते हैं। !!
*पूर्णिमा को शास्त्रोपदिष्ट* *प्रयोग:-*
जिन जातकों के चंद्रमा 6, 8, 12वें भाव में हो या जिनके चंद्रमा अस्त हो या शत्रु राशि में नीच का हो या सूर्य शनि राहु केतु के साथ हो ऐसे सभी जातकों को चंद्रमा की रोशनी में बैठकर चंद्र स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
ऐसे सभी जातकों को जिनका भाग्य कमजोर हो रहा है , दाम्पत्य जीवन में कडवाहट हो रही है पति-पत्नी में नहीं बन रही है, मानसिक अशांति हो रही हो वह पानी में चंद्र दर्शन करें चंद्रमा को दूध का अर्ध्य देवें।
चंद्रमा की रोशनी में खीर बनाकर रखने से चंद्र के सभी गुण और अमृत कण उसमें आते हैं।
जिनका भाग्य बार-बार साथ नहीं दे रहा है वे दो मोती लेकर चंद्रमा की रोशनी में रखें फिर सुबह शास्त्रोक्त विधि से पूजन करके एक मोती को अपने पास और दूसरे को तिजोरी में रखें। ऐसा करने से कार्य क्षेत्र में तरक्की होती जाएगी।। 🌹💐🙏🏼आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199 . मुम्बई ।
[10/5, 16:31] अर्चना जी: *।।मातृ देवो भव:,पितृ देवो भव:।।*
🌹🌞🌹🌞🌹🌞🌹🌞🌹🌞🌹
पितुरप्यधिका माता
गर्भधारणपोषणात् ।
अतो हि त्रिषु लोकेषु
नास्ति मातृसमो गुरुः॥
*गर्भ को धारण करने और पालनपोषण करने के कारण माता का स्थान पिता से भी बढकर है। इसलिए तीनों लोकों में माता के समान कोई गुरु नहीं अर्थात् माता परमगुरु है!*
नास्ति गङ्गासमं तीर्थं
नास्ति विष्णुसमः प्रभुः।
नास्ति शम्भुसमः पूज्यो
नास्ति मातृसमो गुरुः॥
*गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं, विष्णु के समान प्रभु नहीं और शिव के समान कोई पूज्य नहीं और माता के समान कोई गुरु नहीं।*
नास्ति चैकादशीतुल्यं
व्रतं त्रैलोक्यविश्रुतम्।
तपो नाशनात् तुल्यं
नास्ति मातृसमो गुरुः॥
*एकादशी के समान त्रिलोक में प्रसिद्ध कोई व्रत नहीं, अनशन से बढकर कोई तप नहीं और माता के समान गुरु नहीं!*
नास्ति भार्यासमं मित्रं
नास्ति पुत्रसमः प्रियः।
नास्ति भगिनीसमा मान्या
नास्ति मातृसमो गुरुः॥
*पत्नी के समान कोई मित्र नहीं, पुत्र के समान कोई प्रिय नहीं, बहन के समान कोई माननीय नहीं और माता के समान गुरु नही!*
न जामातृसमं पात्रं
न दानं कन्यया समम्।
न भ्रातृसदृशो बन्धुः
न च मातृसमो गुरुः ॥
*दामाद के समान कोई दान का पात्र नहीं, कन्यादान के समान कोई दान नहीं, भाई के जैसा कोई बन्धु नहीं और माता जैसा गुरु नहीं!*
देशो गङ्गान्तिकः श्रेष्ठो
दलेषु तुलसीदलम्।
वर्णेषु ब्राह्मणः श्रेष्ठो
गुरुर्माता गुरुष्वपि ॥
*गंगा के किनारे का प्रदेश अत्यन्त श्रेष्ठ होता है, पत्रों में तुलसीपत्र, वर्णों में ब्राह्मण और माता तो गुरुओं की भी गुरु है!*
पुरुषः पुत्ररूपेण
भार्यामाश्रित्य जायते।
पूर्वभावाश्रया माता
तेन सैव गुरुः परः ॥
*पत्नी का आश्रय लेकर पुरुष ही पुत्र रूप में उत्पन्न होता है, इस दृष्टि से अपने पूर्वज पिता का भी आश्रय माता होती है और इसीलिए वह परमगुरु है!*
मातरं पितरं चोभौ
दृष्ट्वा पुत्रस्तु धर्मवित्।
प्रणम्य मातरं पश्चात्
प्रणमेत् पितरं गुरुम् ॥
*धर्म को जानने वाला पुत्र माता पिता को साथ देखकर पहले माता को प्रणाम करे फिर पिता और गुरु को!*
माता धरित्री जननी
दयार्द्रहृदया शिवा ।
देवी त्रिभुवनश्रेष्ठा
निर्दोषा सर्वदुःखहा॥
*माता, धरित्री , जननी , दयार्द्रहृदया, शिवा, देवी , त्रिभुवनश्रेष्ठा, निर्दोषा, सभी दुःखों का नाश करने वाली है!*
आराधनीया परमा
दया शान्तिः क्षमा धृतिः ।
स्वाहा स्वधा च गौरी च
पद्मा च विजया जया ॥
*आराधनीया, परमा, दया , शान्ति , क्षमा, धृति, स्वाहा , स्वधा, गौरी , पद्मा, विजया , जया,*
दुःखहन्त्रीति नामानि
मातुरेवैकविंशतिम् ।
शृणुयाच्छ्रावयेन्मर्त्यः
सर्वदुःखाद् विमुच्यते ॥
*और दुःखहन्त्री -ये माता के इक्कीस नाम हैं। इन्हें सुनने सुनाने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है!*
दुःखैर्महद्भिः दूनोऽपि
दृष्ट्वा मातरमीश्वरीम्।
यमानन्दं लभेन्मर्त्यः
स किं वाचोपपद्यते ॥
*बड़े बड़े दुःखों से पीडित होने पर भी भगवती माता को देखकर मनुष्य जो आनन्द प्राप्त करता है उसे वाणी द्वारा नहीं कहा जा सकता!*
इति ते कथितं विप्र
मातृस्तोत्रं महागुणम्।
पराशरमुखात् पूर्वम्
अश्रौषं मातृसंस्तवम्॥
*हे ब्रह्मन् ! इस प्रकार मैंने तुमसे महान् गुण वाले मातृस्तोत्र को कहा , इसे मैंने अपने पिता पराशर के मुख से पहले सुना था!*
सेवित्वा पितरौ कश्चित्
व्याधः परमधर्मवित्।
लेभे सर्वज्ञतां या तु
साध्यते न तपस्विभिः॥
*अपने माता पिता की सेवा करके ही किसी परम धर्मज्ञ व्याध ने उस सर्वज्ञता को पा लिया था जो बडे बडे तपस्वी भी नहीं पाते!*
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन
भक्तिः कार्या तु मातरि।
पितर्यपीति चोक्तं वै
पित्रा शक्तिसुतेन मे ॥
*इसलिए सब प्रयत्न करके माता और पिता की भक्ति करनी चाहिए, मेरे पिता शक्तिपुत्र पराशर जी ने भी मुझसे यही कहा था!*
🌹🌞🌹🌞🌹🌞🌹🌞🌹🌞🌹
*🌹भगवान-वेदव्यास जी🌞*
🌹🌞🌹🌞🌹🌞🌹🌞🌹🌞🌹
[10/5, 20:15] विरेन्द्र पाण्डेय जी: बरषा बिगत सरद ऋतु आई
लछिमन देखहु परम् सुहाई
फूले कास सकल महि छाई
जनु बरषा कृत प्रकट बुढ़ाई
उदित अगस्त पंथ जल सोखा जिमि लोभहिं सोखइ संतोषा
सरिता सर निर्मल जल सोहा
सन्त हृदय जस गत मद मोहा
रस रस सूख सरित सर पानी
ममता त्याग करहि जिमि ज्ञानी
जानि सरद ऋतु खंजन आए
पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए
पंक न रेनु सोह असि धरनी
नीति निपुन नृप कै जस करनी
जल संकोच बिकल भइ मीना
अबुध कुटुंबी जिमि धनहीना
बिनु घन निर्मल सोह अकासा
हरिजन इव परिहरि सब आसा
कहुँ कहुँ बृष्टि सारदी थोरी
कोउ एक पाव भगति जिमि मोरी
🌷🙏हरे कृष्णा 🙏🌷
[10/5, 21:33] पं विजय जी: 🌹आज का चिंतन🌹
आप कितने भी बड़े आदमी बन जाओ।लेकिन समाज से नहीं कटना चाहिए। छोटे लोगों को भी अपने जीवन में जरूर अपनाओ। क्योंकि अंतिम समय वही कन्धा लगाते है। बड़े लोग तो कार से सीधे श्मशान घाट पहुँच जाते हैं।
🌹आपका दिन मंगलमय हो🌹
[10/5, 22:13] +91 98294 24183: 🙏🏻🕉🕉🕉🕉🕉🕉🙏🏻 ?सपनेहुँ नहि देखहि परदोषा जो?
💐💐💐💐💐💐💐💐 दूसरों के दोष नहीं देखता, वह भक्त है, अतः दूसरों के दोष नहीं देखने चाहिए । इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते पण्डितजी ने मुझसे कहा 'पण्डितो दोषज्ञः' । इसका अर्थ होता है कि पण्डित वही है जो दोष को जानने वाला है । उनका संकेत यही था कि तुम कह रहे हो कि दोष नहीं देखना चाहिए पर शास्त्र कहता है कि जो दोष को जानता है वह पण्डित है । मैंने उनसे यही निवेदन किया कि यह ठीक है कि 'पण्डितो दोषज्ञः' यह शास्त्रों में लिखा है पर यह तो नहीं लिखा है कि 'अपना दोष देखनेवाले को पण्डित माना जाय कि दूसरों के दोष देखनेवाले को पण्डित माना जाय' 🕉स्व दोष को जानने वाला (देखने वाला) भी बुद्दीमान व पण्डित है🕉
गोस्वामीजी अपनी प्रशंसा और विरोध दोनों को समत्व में स्थिर रहकर तटस्थ भाव से देखते हैं वे बड़ी सजगता से आत्मनिरीक्षण करते हैं और सूक्ष्मता से, गहराई से अपने आपको कसते रहते हैं । इस सन्दर्भ में महर्षि पतंजलि ने योगदर्शन में अहिंसा की जो परिभाषा की है, वही सूत्र, वही कसौटी गोस्वामीजी अपने संबंध में प्रयोग करते हुए दिखाई देते हैं । सामान्यतया यही कहा जाता है कि जो मन, वचन और कर्म से किसी को कष्ट न दे, वह अहिंसक है । पर महर्षि पतंजलि अहिंसा को एक नया अर्थ देते हुए कहते हैं कि किसी व्यक्ति के जीवन में अहिंसा सिद्ध हो गई है इसका एक ही प्रमाणपत्र कि उसके पास जाने पर दूसरे व्यक्ति के मन के क्रोध आदि वैर-भाव पूरी तरह मिट जायँ । हम क्रोध न करें यह बात तो समझ में आती है, पर हमारे सामने आनेवाला व्यक्ति भी क्रोध न करे तब हमारी अहिंसावृत्ति पूरी है अन्यथा नहीं, यह तो अत्यंत कठिन कसौटी है
कि हमारे समीप हिसँक पश भी वैर त्याग कर अहिँसकहो जावे इसका तात्पर्य यही है कि हमारे जीवन में थोड़ा-सी अहिंसा की वृत्ति आ जाय तो हमें अपने अहिंसक होने का अभिमान हो जाता है । साधारणतया व्यक्ति इस कसौटी पर अपने आपको कस नहीं सकता । पर ऊँचे लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए ऐसी दृष्टि आवश्यक है ।
'विनयपत्रिका' में गोस्वामीजी अपने दोषों का वर्णन करते हैं तो उसे पढ़कर लगता है कि जैसे एक रोगी किसी डॉक्टर के पास जाता है और रोग के निदान के लिए डाक्टर उसके रक्त का परीक्षण करता है । अब साधारण आँखों से रक्त के कीटाणु दिखाई नहीं देते पर डाॅक्टर एक ऐसा यन्त्र सामने रख लेता है कि जिससे वह न दिखनेवाला कीटाणु कई हजार गुना बढ़े रूप में दिखाई देने लगता है । गोस्वामीजी भी इसी पद्धति से अपने दोषों को देखते हैं । और सचमुच इसी ढंग से देखने पर ही, यदि हम रोगी हैं तो, हमारे रोग के कीटाणु हमें दिखाई देंगे अन्यथा उन्हें देख पाना सम्भव नहीं है । गोस्वामीजी 'मानस-रोगों' के सन्दर्भ में एक विलक्षण बात कहते हैं कि 'मानस रोग' के कीटाणु तो हम सबके भीतर होते ही हैं । गोस्वामीजी ने इस सत्य को जीवन में समझा और उन्होंने रामायण के माध्यम से हम सबको बहुत बड़ा सन्देश दिया । इसलिए उन्होंने रामायण का समापन रामकथा से नहीं किया । उन्होंने रामायण के अन्त में 'मानस रोगों' का वर्णन किया 💐क्रमशः💐
पँ हरभजन शर्मा कोटा राज०
जासु नाम भव भेषज
हरण धोर त्रय शूल
सो कृपाल मो तोहि पर
रहहि सदाँ अनुकूल ।
💐💐💐💐💐💐💐💐
[10/6, 08:40] मार्कण्डेय जी: *🙏🏼💐🌹 आज का सुविचार* *सरलता और भोलापन संसार* *के लिये भले ही कमजोरियां हों,परन्तु एक बुद्धिमान व् ज्ञानी के लिये अपनी मूल्यवान आत्मिक ऊर्जा को* *बचाने का सूक्ष्म साधन है।* *इसलिये साधारण बने रहिये*, *इससे कोई फर्क नहीं पड़ता* *कि लोग आपके बारे में क्या* *कहते हैं।*🌹💐🙏🏼आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[10/6, 11:36] विरेन्द्र पाण्डेय जी: *दुग्धेन धेनुः कुसुमेन वल्ली, शीलेन भार्याकमलेन तोयम्।*
*गुरुं विना भाति न चैव शिष्यः, शमेन विद्या नगरी जनेन॥*
भावार्थ-- *जैसे दूध बगैर गाय, फूल बगैर लता, शील बगैर भार्या, कमल बगैर जल, शम बगैर विद्या, और लोग बगैर नगर शोभा नहीं देते, वैसे हि गुरु के बिना शिष्य शोभा नहीं देता।*
🙏🌹हरे कृष्णा🌹🙏
[10/6, 19:43] पं विजय जी: पुनरपि मरणं पुनरपि जन्मं गोविन्दम् भज मूढमते..
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पुनर्जन्म संबंधी प्रश्नोत्तर-
(1) प्रश्न :- पुनर्जन्म किसको कहते हैं ?
उत्तर :- जब जीवात्मा एक शरीर का त्याग करके किसी दूसरे शरीर में जाती है तो इस बार बार जन्म लेने की क्रिया को पुनर्जन्म कहते हैं ।
(2) प्रश्न :- पुनर्जन्म क्यों होता है ?
उत्तर :- जब एक जन्म के अच्छे बुरे कर्मों के फल अधुरे रह जाते हैं तो उनको भोगने के लिए दूसरे जन्म आवश्यक हैं ।
(3) प्रश्न :- अच्छे बुरे कर्मों का फल एक ही जन्म में क्यों नहीं मिल जाता ? एक में ही सब निपट जाये तो कितना अच्छा हो ?
उत्तर :- नहीं जब एक जन्म में कर्मों का फल शेष रह जाए तो उसे भोगने के लिए दूसरे जन्म अपेक्षित होते हैं ।
(4) प्रश्न :- पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है ?
उत्तर :- पुनर्जन्म को समझने के लिए जीवन और मृत्यु को समझना आवश्यक है । और जीवन मृत्यु को समझने के लिए शरीर को समझना आवश्यक है ।
(5) प्रश्न :- शरीर के बारे में समझाएँ ?
उत्तर :- हमारे शरीर को निर्माण प्रकृति से हुआ है ।
जिसमें मूल प्रकृति ( सत्व रजस और तमस ) से प्रथम बुद्धि तत्व का निर्माण हुआ है ।
बुद्धि से अहंकार ( बुद्धि का आभामण्डल ) ।
अहंकार से पांच ज्ञानेन्द्रियाँ ( चक्षु, जिह्वा, नासिका, त्वचा, श्रोत्र ), मन ।
पांच कर्मेन्द्रियाँ ( हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक् ) ।
शरीर की रचना को दो भागों में बाँटा जाता है ( सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर ) ।
(6) प्रश्न :- सूक्ष्म शरीर किसको बोलते हैं ?
उत्तर :- सूक्ष्म शरीर में बुद्धि, अहंकार, मन, ज्ञानेन्द्रियाँ । ये सूक्ष्म शरीर आत्मा को सृष्टि के आरम्भ में जो मिलता है वही एक ही सूक्ष्म शरीर सृष्टि के अंत तक उस आत्मा के साथ पूरे एक सृष्टि काल ( ४३२००००००० वर्ष ) तक चलता है । और यदि बीच में ही किसी जन्म में कहीं आत्मा का मोक्ष हो जाए तो ये सूक्ष्म शरीर भी प्रकृति में वहीं लीन हो जायेगा ।
(7) प्रश्न :- स्थूल शरीर किसको कहते हैं ?
उत्तर :- पंच कर्मेन्द्रियाँ ( हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक् ) , ये समस्त पंचभौतिक बाहरी शरीर ।
(8) प्रश्न :- जन्म क्या होता है ?
उत्तर :- जीवात्मा का अपने करणों ( सूक्ष्म शरीर ) के साथ किसी पंचभौतिक शरीर में आ जाना ही जन्म कहलाता है ।
(9) प्रश्न :- मृत्यु क्या होती है ?
उत्तर :- जब जीवात्मा का अपने पंचभौतिक स्थूल शरीर से वियोग हो जाता है, तो उसे ही मृत्यु कहा जाता है । परन्तु मृत्यु केवल सथूल शरीर की होती है , सूक्ष्म शरीर की नहीं । सूक्ष्म शरीर भी छूट गया तो वह मोक्ष कहलाएगा मृत्यु नहीं । मृत्यु केवल शरीर बदलने की प्रक्रिया है, जैसे मनुष्य कपड़े बदलता है । वैसे ही आत्मा शरीर भी बदलता है ।
(10) प्रश्न :- मृत्यु होती ही क्यों है ?
उत्तर :- जैसे किसी एक वस्तु का निरन्तर प्रयोग करते रहने से उस वस्तु का सामर्थ्य घट जाता है, और उस वस्तु को बदलना आवश्यक हो जाता है, ठीक वैसे ही एक शरीर का सामर्थ्य भी घट जाता है और इन्द्रियाँ निर्बल हो जाती हैं । जिस कारण उस शरीर को बदलने की प्रक्रिया का नाम ही मृत्यु है।
(11) प्रश्न :- मृत्यु न होती तो क्या होता ?
उत्तर :- तो बहुत अव्यवस्था होती । पृथ्वी की जनसंख्या बहुत बढ़ जाती । और यहाँ पैर धरने का भी स्थान न होता ।
(12) प्रश्न :- क्या मृत्यु होना बुरी बात है ?
उत्तर :- नहीं, मृत्यु होना कोई बुरी बात नहीं ये तो एक प्रक्रिया है शरीर परिवर्तन की ।
(13) प्रश्न :- यदि मृत्यु होना बुरी बात नहीं है तो लोग इससे इतना डरते क्यों हैं ?
उत्तर :- क्योंकि उनको मृत्यु के वैज्ञानिक स्वरूप की जानकारी नहीं है । वे अज्ञानी हैं । वे समझते हैं कि मृत्यु के समय बहुत कष्ट होता है । उन्होंने वेद, उपनिषद, या दर्शन को कभी पढ़ा नहीं वे ही अंधकार में पड़ते हैं और मृत्यु से पहले कई बार मरते हैं ।
(14) प्रश्न :- तो मृत्यु के समय कैसा लगता है ? थोड़ा सा तो बतायें ?
उत्तर :- जब आप बिस्तर में लेटे लेटे नींद में जाने लगते हैं तो आपको कैसा लगता है ?? ठीक वैसा ही मृत्यु की अवस्था में जाने में लगता है उसके बाद कुछ अनुभव नहीं होता । जब आपकी मृत्यु किसी हादसे से होती है तो उस समय आमको मूर्छा आने लगती है, आप ज्ञान शून्य होने लगते हैं जिससे की आपको कोई पीड़ा न हो । तो यही ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा है कि मृत्यु के समय मनुष्य ज्ञान शून्य होने लगता है और सुषुुप्तावस्था में जाने लगता है ।
(15) प्रश्न :- मृत्यु के डर को दूर करने के लिए क्या करें ?
उत्तर :- जब आप वैदिक आर्ष ग्रन्थ ( उपनिषद, दर्शन आदि ) का गम्भीरता से अध्ययन करके जीवन,मृत्यु, शरीर, आदि के विज्ञान को जानेंगे तो आपके अन्दर का, मृत्यु के प्रति भय मिटता चला जायेगा और दूसरा ये की योग मार्ग पर चलें तो स्वंय ही आपका अज्ञान कमतर होता जायेगा और मृत्यु भय दूर हो जायेगा । आप निडर हो जायेंगे । जैसे हमारे बलिदानियों की गाथायें आपने सुनी होंगी जो राष्ट्र की रक्षा के लिये बलिदान हो गये । तो आपको क्या लगता है कि क्या वो ऐसे ही एक दिन में बलिदान देने को तैय्यार हो गये थे ? नहीं उन्होने भी योगदर्शन, गीता, साँख्य, उपनिषद, वेद आदि पढ़कर ही निर्भयता को प्राप्त किया था । योग मार्ग को जीया था, अज्ञानता का नाश किया था । महाभारत के युद्ध में भी जब अर्जुन भीष्म, द्रोणादिकों की मृत्यु के भय से युद्ध की मंशा को त्याग बैठा था तो योगेश्वर कृष्ण ने भी तो अर्जुन को इसी सांख्य, योग, निष्काम कर्मों के सिद्धान्त के माध्यम से जीवन मृत्यु का ही तो रहस्य समझाया था और यह बताया कि शरीर तो मरणधर्मा है ही तो उसी शरीर विज्ञान को जानकर ही अर्जुन भयमुक्त हुआ । तो इसी कारण तो वेदादि ग्रन्थों का स्वाध्याय करने वाल मनुष्य ही राष्ट्र के लिए अपना शीश कटा सकता है, वह मृत्यु से भयभीत नहीं होता , प्रसन्नता पूर्वक मृत्यु को आलिंगन करता है ।
(16) प्रश्न :- किन किन कारणों से पुनर्जन्म होता है ?
उत्तर :- आत्मा का स्वभाव है कर्म करना, किसी भी क्षण आत्मा कर्म किए बिना रह ही नहीं सकता । वे कर्म अच्छे करे या फिर बुरे, ये उसपर निर्भर है, पर कर्म करेगा अवश्य । तो ये कर्मों के कारण ही आत्मा का पुनर्जन्म होता है । पुनर्जन्म के लिए आत्मा सर्वथा ईश्वराधीन है ।
(17) प्रश्न :- पुनर्जन्म कब कब नहीं होता ?
उत्तर :- जब आत्मा का मोक्ष हो जाता है तब पुनर्जन्म नहीं होता है ।
(18) प्रश्न :- मोक्ष होने पर पुनर्जन्म क्यों नहीं होता ?
उत्तर :- क्योंकि मोक्ष होने पर स्थूल शरीर तो पंचतत्वों में लीन हो ही जाता है, पर सूक्ष्म शरीर जो आत्मा के सबसे निकट होता है, वह भी अपने मूल कारण प्रकृति में लीन हो जाता है ।
(19) प्रश्न :- मोक्ष के बाद क्या कभी भी आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता ?
उत्तर :- मोक्ष की अवधि तक आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता । उसके बाद होता है ।
(20) प्रश्न :- लेकिन मोक्ष तो सदा के लिए होता है, तो फिर मोक्ष की एक निश्चित अवधि कैसे हो सकती है ?
उत्तर :- सीमित कर्मों का कभी असीमित फल नहीं होता । यौगिक दिव्य कर्मों का फल हमें ईश्वरीय आनन्द के रूप में मिलता है, और जब ये मोक्ष की अवधि समाप्त होती है तो दुबारा से ये आत्मा शरीर धारण करती है ।
(21) प्रश्न :- मोक्ष की अवधि कब तक होती है ?
उत्तर :- मोक्ष का समय ३१ नील १० खरब ४० अरब वर्ष है, जब तक आत्मा मुक्त अवस्था में रहती है ।
(22) प्रश्न :- मोक्ष की अवस्था में स्थूल शरीर या सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ रहता है या नहीं ?
उत्तर :- नहीं मोक्ष की अवस्था में आत्मा पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाता रहता है और ईश्वर के आनन्द में रहता है, बिलकुल ठीक वैसे ही जैसे कि मछली पूरे समुद्र में रहती है । और जीव को किसी भी शरीर की आवश्यक्ता ही नहीं होती।
(23) प्रश्न :- मोक्ष के बाद आत्मा को शरीर कैसे प्राप्त होता है ?
उत्तर :- सबसे पहला तो आत्मा को कल्प के आरम्भ ( सृष्टि आरम्भ ) में सूक्ष्म शरीर मिलता है फिर ईश्वरीय मार्ग और औषधियों की सहायता से प्रथम रूप में अमैथुनी जीव शरीर मिलता है, वो शरीर सर्वश्रेष्ठ मनुष्य या विद्वान का होता है जो कि मोक्ष रूपी पुण्य को भोगने के बाद आत्मा को मिला है । जैसे इस वाली सृष्टि के आरम्भ में चारों ऋषि विद्वान ( वायु , आदित्य, अग्नि , अंगिरा ) को मिला जिनको वेद के ज्ञान से ईश्वर ने अलंकारित किया । क्योंकि ये ही वो पुण्य आत्मायें थीं जो मोक्ष की अवधि पूरी करके आई थीं ।
(24) प्रश्न :- मोक्ष की अवधि पूरी करके आत्मा को मनुष्य शरीर ही मिलता है या जानवर का ?
उत्तर :- मनुष्य शरीर ही मिलता है ।
(25) प्रश्न :- क्यों केवल मनुष्य का ही शरीर क्यों मिलता है ? जानवर का क्यों नहीं ?
उत्तर :- क्योंकि मोक्ष को भोगने के बाद पुण्य कर्मों को तो भोग लिया , और इस मोक्ष की अवधि में पाप कोई किया ही नहीं तो फिर जानवर बनना सम्भव ही नहीं , तो रहा केवल मनुष्य जन्म जो कि कर्म शून्य आत्मा को मिल जाता है ।
(26) प्रश्न :- मोक्ष होने से पुनर्जन्म क्यों बन्द हो जाता है ?
उत्तर :- क्योंकि योगाभ्यास आदि साधनों से जितने भी पूर्व कर्म होते हैं ( अच्छे या बुरे ) वे सब कट जाते हैं । तो ये कर्म ही तो पुनर्जन्म का कारण हैं, कर्म ही न रहे तो पुनर्जन्म क्यों होगा ??
(27) प्रश्न :- पुनर्जन्म से छूटने का उपाय क्या है ?
उत्तर :- पुनर्जन्म से छूटने का उपाय है योग मार्ग से मुक्ति या मोक्ष का प्राप्त करना ।
(28) प्रश्न :- पुनर्जन्म में शरीर किस आधार पर मिलता है ?
उत्तर :- जिस प्रकार के कर्म आपने एक जन्म में किए हैं उन कर्मों के आधार पर ही आपको पुनर्जन्म में शरीर मिलेगा ।
(29) प्रश्न :- कर्म कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :- मुख्य रूप से कर्मों को तीन भागों में बाँटा गया है :- सात्विक कर्म , राजसिक कर्म , तामसिक कर्म ।
(१) सात्विक कर्म :- सत्यभाषण, विद्याध्ययन, परोपकार, दान, दया, सेवा आदि ।
(२) राजसिक कर्म :- मिथ्याभाषण, क्रीडा, स्वाद लोलुपता, स्त्रीआकर्षण, चलचित्र आदि ।
(३) तामसिक कर्म :- चोरी, जारी, जूआ, ठग्गी, लूट मार, अधिकार हनन आदि ।
और जो कर्म इन तीनों से बाहर हैं वे दिव्य कर्म कलाते हैं, जो कि ऋषियों और योगियों द्वारा किए जाते हैं । इसी कारण उनको हम तीनों गुणों से परे मानते हैं । जो कि ईश्वर के निकट होते हैं और दिव्य कर्म ही करते हैं ।
(30) प्रश्न :- किस प्रकार के कर्म करने से मनुष्य योनि प्राप्त होती है ?
उत्तर :- सात्विक और राजसिक कर्मों के मिलेजुले प्रभाव से मानव देह मिलती है , यदि सात्विक कर्म बहुत कम है और राजसिक अधिक तो मानव शरीर तो प्राप्त होगा परन्तु किसी नीच कुल में , यदि सात्विक गुणों का अनुपात बढ़ता जाएगा तो मानव कुल उच्च ही होता जायेगा । जिसने अत्यधिक सात्विक कर्म किए होंगे वो विद्वान मनुष्य के घर ही जन्म लेगा ।
(31) प्रश्न :- किस प्रकार के कर्म करने से आत्मा जीव जन्तुओं के शरीर को प्राप्त होता है ?
उत्तर :- तामसिक और राजसिक कर्मों के फलरूप जानवर शरीर आत्मा को मिलता है । जितना तामसिक कर्म अधिक किए होंगे उतनी ही नीच योनि उस आत्मा को प्राप्त होती चली जाती है । जैसे लड़ाई स्वभाव वाले , माँस खाने वाले को कुत्ता, गीदड़, सिंह, सियार आदि का शरीर मिल सकता है , और घोर तामसिक कर्म किए हुए को साँप, नेवला, बिच्छू, कीड़ा, काकरोच, छिपकली आदि । तो ऐसे ही कर्मों से नीच शरीर मिलते हैं और ये जानवरों के शरीर आत्मा की भोग योनियाँ हैं ।
(32) प्रश्न :- तो क्या हमें यह पता लग सकता है कि हम पिछले जन्म में क्या थे ? या आगे क्या होंग
उत्तर :- नहीं, सामान्य मनुष्य को यह पता नहीं लग सकता । क्योंकि वो ना तो कभी इस दीशा के बारे में सोचता है और ना कभी प्रयास करता है। वो अपने पूणॅ अस्तित्व को बिना जाने ही कमॅ करता है उन्हें भोगता है और मृत्यु को प्राप्त करता है ।
(33) प्रश्न :- तो फिर यह कीसे पता चल सकता है ?
उत्तर :- ज्ञान प्राप्ति की तीव्र इच्छा रखने वाला आध्यात्मिक व्यक्ति एवं योग, ध्यान और सम्मोहन का जानकार व्यक्ति ही यह जान सकता है। अभ्यास से उसकी बुद्धि अत्यन्त तीव्र हो जाती है कि वह ब्रह्माण्ड एवं प्रकृति के महत्वपूर्ण रहस्य़ अपनी सहज शक्ति से जान सकता है । उस को बाह्य इन्द्रियों से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रहती है
वह अन्तः मन और बुद्धि से सब जान लेता है । उसके सामने भूत और भविष्य दोनों सामने आ खड़े होते हैं ।
(34) प्रश्न :- यह बतायें की योगी यह सब कैसे जान लेता है ?
उत्तर :- अभी यह लेख पुनर्जन्म पर है, यहीं से प्रश्न उत्तर का ये क्रम चला देंगे तो लेख का बहुत ही विस्तार हो जायेगा । इसीलिये हम अगले लेख में यह विषय विस्तार से समझायेंगे कि योगी कैसे अपनी विकसित शक्तियों से सब कुछ जान लेता है ? और वे शक्तियाँ कौन सी हैं ? कैसे प्राप्त होती हैं ? इसके लिए अगले लेख की प्रतीक्षा करें ।
(35) प्रश्न :- क्या पुनर्जन्म के कोई प्रमाण हैं ?
उत्तर :- हाँ हैं, जब किसी छोटे बच्चे को देखो तो वह अपनी माता के स्तन से सीधा ही दूध पीने लगता है जो कि उसको बिना सिखाए आ जाता है क्योंकि ये उसका अनुभव पिछले जन्म में दूध पीने का रहा है, वर्ना बिना किसी कारण के ऐसा हो नहीं सकता । दूसरा यह कि कभी आप उसको कमरे में अकेला लेटा दो तो वो कभी कभी हँसता भी है , ये सब पुराने शरीर की बातों को याद करके वो हँसता है पर जैसे जैसे वो बड़ा होने लगता है तो धीरे धीरे सब भूल जाता है ।
(36) प्रश्न :- क्या इस पुनर्जन्म को सिद्ध करने के लिए कोई उदाहरण हैं ?
उत्तर :- हाँ, जैसे अनेकों समाचार पत्रों में, या TV में भी आप सुनते हैं कि एक छोटा सा बालक अपने पिछले जन्म की घटनाओं को याद रखे हुए है, और सारी बातें बताता है जहाँ जिस गाँव में वो पैदा हुआ, जहाँ उसका घर था, जहाँ पर वो मरा था । और इस जन्म में वह अपने उस गाँव में कभी गया तक नहीं था लेकिन फिर भी अपने उस गाँव की सारी बातें याद रखे हुए है , किसी ने उसको कुछ बताया नहीं, सिखाया नहीं, दूर दूर तक उसका उस गाँव से इस जन्म में कोई नाता नहीं है । फिर भी उसकी गुप्त बुद्धि जो कि सूक्ष्म शरीर का भाग है वह घटनाएँ संजोए हुए है जाग्रत हो गई और बालक पुराने जन्म की बातें बताने लग पड़ा ।
(37) प्रश्न :- लेकिन ये सब मनघड़ंत बातें हैं, हम विज्ञान के युग में इसको नहीं मान सकते क्योंकि वैज्ञानिक रूप से ये बातें बेकार सिद्ध होती हैं, क्या कोई तार्किक और वैज्ञानिक आधार है इन बातों को सिद्ध करने का ?
उत्तर :- आपको किसने कहा कि हम विज्ञान के विरुद्ध इस पुनर्जन्म के सिद्धान्त का दावा करेंगे । ये वैज्ञानिक रूप से सत्य है , और आपको ये हम अभी सिद्ध करके दिखाते हैं ।
(38) प्रश्न :- तो सिद्ध कीजीए ?
उत्तर :- जैसा कि आपको पहले बताया गया है कि मृत्यु केवल स्थूल शरीर की होती है, पर सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ वैसे ही आगे चलता है , तो हर जन्म के कर्मों के संस्कार उस बुद्धि में समाहित होते रहते हैं । और कभी किसी जन्म में वो कर्म अपनी वैसी ही परिस्थिती पाने के बाद जाग्रत हो जाते हैं ।
इसे उदहारण से समझें :- एक बार एक छोटा सा ६ वर्ष का बालक था, यह घटना हरियाणा के सिरसा के एक गाँव की है । जिसमें उसके माता पिता उसे एक स्कूल में घुमाने लेकर गये जिसमें उसका दाखिला करवाना था और वो बच्चा केवल हरियाणवी या हिन्दी भाषा ही जानता था कोई तीसरी भाषा वो समझ तक नहीं सकता था । लेकिन हुआ कुछ यूँ था कि उसे स्कूल की Chemistry Lab में ले जाया गया और वहाँ जाते ही उस बच्चे का मूँह लाल हो गया !! चेहरे के हावभाव बदल गये !! और उसने एकदम फर्राटेदार French भाषा बोलनी शुरू कर दी !! उसके माता पिता बहुत डर गये और घबरा गये , तुरंत ही बच्चे को अस्पताल ले जाया गया । जहाँ पर उसकी बातें सुनकर डाकटर ने एक दुभाषिये का प्रबन्ध किया । जो कि French और हिन्दी जानता था , तो उस दुभाषिए ने सारा वृतान्त उस बालक से पूछा तो उस बालक ने बताया कि " मेरा नाम Simon Glaskey है और मैं French Chemist हूँ । मेरी मौत मेरी प्रयोगशाला में एक हादसे के कारण ( Lab. ) में हुई थी । "
तो यहाँ देखने की बात यह है कि इस जन्म में उसे पुरानी घटना के अनुकूल मिलती जुलती परिस्थिति से अपना वह सब याद आया जो कि उसकी गुप्त बुद्धि में दबा हुआ था । यानि की वही पुराने जन्म में उसके साथ जो प्रयोगशाला में हुआ, वैसी ही प्रयोगशाला उस दूसरे जन्म में देखने पर उसे सब याद आया । तो ऐसे ही बहुत सी उदहारणों से आप पुनर्जन्म को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध कर सकते हो ।
(39) प्रश्न :- तो ये घटनाएँ भारत में ही क्यों होती हैं ? पूरा विश्व इसको मान्यता क्यों नहीं देता ?
उत्तर :- ये घटनायें पूरे विश्व भर में होती रहती हैं और विश्व इसको मान्यता इसलिए नहीं देता क्योंकि उनको वेदानुसार यौगिक दृष्टि से शरीर का कुछ भी ज्ञान नहीं है । वे केवल माँस और हड्डियों के समूह को ही शरीर समझते हैं , और उनके लिए आत्मा नाम की कोई वस्तु नहीं है । तो ऐसे में उनको न जीवन का ज्ञान है, न मृत्यु का ज्ञान है, न आत्मा का ज्ञान है, न कर्मों का ज्ञान है, न ईश्वरीय व्यवस्था का ज्ञान है । और अगर कोई पुनर्जन्म की कोई घटना उनके सामने आती भी है तो वो इसे मानसिक रोग जानकर उसकका नाम देकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं और उसके कथनानुसार जाँच नहीं करवाते हैं ।
(40) प्रश्न :- क्या पुनर्जन्म केवल पृथिवी पर ही होता है या किसी और ग्रह पर भी ?
उत्तर :- ये पुनर्जन्म पूरे ब्रह्माण्ड में यत्र तत्र होता है, किसने असंख्य सौरमण्डल हैं, कितनी ही पृथीवियाँ हैं । तो एक पृथीवी के जीव मरकर ब्रह्माण्ड में किसी दूसरी पृथीवी के उपर किसी न किसी शरीर में भी जन्म ले सकते हैं । ये ईश्वरीय व्यवस्था के अधीन है ।
(41) प्रश्न :- परन्तु यह बड़ा ही अजीब लगता है कि मान लो कोई हाथी मरकर मच्छर बनता है तो इतने बड़े हाथी की आत्मा मच्छर के शरीर में कैसे घुसेगी ?
उत्तर :- यही तो भ्रम है आपका कि आत्मा जो है वो पूरे शरीर में नहीं फैली होती । वो तो हृदय के पास छोटे अणुरूप में होती है । सब जीवों की आत्मा एक सी है । चाहे वो व्हेल मछली हो, चाहे वो एक कीड़ी हो ।
{ नोट :- यह पुनर्जन्म पर संक्षिप्त लेख था, इसको विस्तार से जानने के लिए वेद, दर्शन, उपनिषद,
*Copy pest*
[10/6, 21:37] +91 98294 24183: 🙏🏻🕉🕉✡✡🕉🕉🙏🏻
💐मानस के सप्त प्रश्न💐
✡🕉✡🕉✡🕉✡🕉
नाथ मोहि निज सेवक जानी
सप्त प्रश्न मम कहहुँ बखानी।।
💐 💐 💐 💐
सात चोपाई मे गरुड ने सात प्रश्न पूछे यह विशाल विषय है
प्रथम प्रश्न
सबसे दुर्लभ कवन सरीरा ।।
अन्तिम प्रश्न है
मानस रोग कहहिँ समुझाई ।।
प्रथम प्रश्न का उत्तर भुसुण्डि बाबा ने ?? पाँच चोपाई मे दिया??
बडा ही आध्यात्मिक विष् य है
सात ही प्रश्न क्योँ पूछै छैः या आठ क्यो नही पूछै।
प्रथम का उत्तर पाँच चोपाई मे दिया चार या छैः मै क्योँ नही दिया ।
प्रश्न पूछने की विधि क्या है
इन सात प्रश्न के उत्तर व पाँच चोपाई मनुष्य अपने जीवन मे उतार ले तो सम्पूर्ण मानस का रस पान कर सकता है एँव जीव के सभी विकार हट सकते है
💐सम्पूर्णता से कहतै है 💐
जीव जीवन मुक्त हो जाता है
इसमे कदापि सँसय नही है
रामकथा का वर्णन करने के बाद भुशुण्डिजी ने गरुड़जी से पूछा कि बताएँ ! आप और क्या सुनना चाहते हैं ? गरुड़जी ने सात प्रश्न किए जिसमें उनका अन्तिम प्रश्न मानस रोग को लेकर था । बड़ा विचित्र-सा लगता है । कहाँ रामकथा की मधुरता और कहाँ मानस रोगों का वर्णन । पर इसमें यही सामंजस्य है कि यदि हम रामकथा सही ढंग से सुनेंगे तो अपने मन के रोग बहुत बड़े रूप में दिखाई देने लगेंगे और तब उन्हें दूर करने के लिए हम यत्न करेंगे ही । हम अपने आपको जिस सरलता से ऊँची स्थिति में होने का प्रमाणपत्र देते रहते हैं, हमारा वह भ्रम टूट जायेगा । अपने आप में रोग देखने के बाद कई लोग आतंकित हो जाते हैं, निराश होते देखे जाते हैं । पर यह ज्ञात होने पर कि अमुक-अमुक नियमों का पालन करने से तथा अमुक दवा लेने पर स्वास्थ्य लाभ किया जा सकता है, रोग का जानना व्यक्ति के लिए वरदान बन सकता है । इस तरह रोग न जानना यदि अभिशाप है तो रोग को जानकर निराश हो जाना या आत्महत्या कर लेना भी उतना ही बड़ा अभिशाप है । निराश होने के स्थान पर उसे दूर करने का यत्न करना आवश्यक है । मानस-रोगों को दूर करने के लिए गोस्वामीजी ने उपाय भी बताए हैं गरुडृ भुसुण्डी सँवाद मै 💐
पँ हरभजन शर्मा कोटा राज०
जासुनाम भव भेषज
हरण घोर त्रय सूल ।।
सो कृपाल मो तोहि पर
रहहिँ सदाँ अनूकूल।।
[10/6, 23:52] +91 74159 69132: सबसे सुंदर पुस्तक ,इस दुनिया मे है इंसान ।
अगर समझ ले खुद को, हो जाए समाधान ।।
[10/7, 11:26] ओमीश: जिज्ञासा 06/10/17
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विस्तृतो$यं संसारो निर्मितः केन न ज्ञायते।
कः रचयति पालयति को वा संहरते केन च वै।।
किमस्ति को$पि रचनाकारः किमर्थं रचयति हि सः।
रचनाकारं विना किं वा समुद्भूतं जगदिदम्।।
कः जीवः कश्च आत्मा वै क आयाति याति च।
किं नित्यमनित्यं वा सर्वं गुप्तं वर्तते।।
सृष्टेरादिकालादेव जिज्ञासा आसीन्मनसि हि वै।
समाधाने हि साहित्यं पूर्वे ऋषिभिः रचितं सदा।।
जिज्ञासया प्रवृत्तिर्हि जिज्ञासया अन्वेषणं सदा।
जिज्ञासां विना न मन्दो$पि कदापि पदमेकं हि गच्छति।।
ज्ञातुमिच्छा हि जिज्ञासा ज्ञानं जिज्ञासया भवति।
ऋते ज्ञानान् न मुक्तिः जिज्ञासया मुक्तिरवाप्यते।।
डा गदाधर त्रिपाठी
[10/7, 11:26] ओमीश: आश्रयो हि अपरिहार्यः सर्वे इच्छन्ति जीवने।
गृहस्य कल्पना तेनैव प्राक् काले कृता हि वै।।
कुटीरमट्टालिका चैव सौधानां परिकल्पना।
आदिकालाद्धि जाता वै पूर्णता अद्य दृश्यते।।
विविधैरुपकरणैश्च सज्जां कुर्वन्ति मानवा:।
सैव गृहशोभेति हि सर्वदा कथ्यते बुधै:।।
अतिथीनां स्वागतं यत्र मन्त्राणामुच्चारणं तथा।
सौहार्दञ्च परिवारे वै सा शोभा हि सुखदा सदा।।
दम्पत्योर्मध्ये च निष्ठा या पुत्राणाञ्च कौशलम्।
वृद्धानां सेवा यत्र सा शोभा सुखदा सदा।।
इयमेव गृहशोभा हि गृह्णाति सर्वान् जनान्।
गृहस्थो बद्धो$नया सुखं शेते सर्वदा।।
डा गदाधर त्रिपाठी
गृहशोभा 07/10/17
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[10/7, 12:08] विरेन्द्र पाण्डेय जी: संध्या का महत्व
*विप्रो वृक्षस्तस्य मूलं च सन्ध्या वेदाः शाखा धर्मकर्माणि पत्रम्।*
*तस्मान्मूलं यत्नतो रक्षणीयं छिन्ने मूले नैव शाखा न पत्रम्॥*
*भावार्थ -*
ब्राह्मण रूपी वृक्ष की जड़ तो सन्ध्या है, और ब्राह्मण रूपी वृक्ष की डालियाँ वेद हैं, धर्म कर्म आदि उस वृक्ष के पत्ते हैं, इसलिए जड़ की बड़े यत्नो से रक्षा करनी चाहिए क्योंकि जड़ के नष्ट हो जाने से न तो पत्ते रहते हैं और नाहीं डालियाँ आदि। ब्राह्मण रूपी वृक्ष की जड़ सन्ध्या है धर्म के लिए उसकी रक्षा करें!
*सन्ध्या येन न विज्ञाता सन्ध्या येनानुपासिता।*
*जीवन्नेव भवेच्छूद्रो मृतः श्वा चाभिजायते ॥*
(देवीभागवत १ । १६ ।६)
*भावार्थ -*
जो द्विज सन्ध्या नहीं जानता और सन्ध्योपासन नहीं करता वह जीता हुआ ही शूद्र हो जाता है और मरनेपर कुत्तेकी योनिको प्राप्त होता है।
*सन्ध्याहीनोऽशुचिर्नित्यमनर्हः सर्वकर्मसु ।*
*यदन्यत् कुरुते कर्म न तस्य फलभाग्भवेत्॥*
(दक्षस्मृति २ । २०)
*भावार्थ -*
संध्याहीन द्विज नित्य ही अपवित्र है और सम्पूर्ण धर्मकार्य करने में अयोग्य है। वह जो कुछ अन्य कर्म करता है उसका फल उसे नहीं मिलता ।
*न तिष्ठति तु यः पूर्वां नोपास्ते यश्च पश्चिमाम्।*
*स शूद्रवद्बहिष्कार्यः सर्वस्माद् द्विजकर्मणः ॥*
(मनु० २ । १०३)
*भावार्थ -*
जो द्विज प्रातःकाल और सांयकालकी सन्ध्या नहीं करता, उसे शूद्रकी भाँति द्विजातियोंके करनेयोग्य सभी कर्मोंसे अलग कर देना चाहिए।
*सन्ध्यामुपासते ये तु सततं शंसितव्रताः।*
*विधूतपासते यान्ति ब्रह्मलकं सनातनम्॥*
(अत्रि)
*भावार्थ -*
जो प्रशंसितव्रती सदा संध्योपासन करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं और वे सनातन ब्रह्मलोकको प्राप्त करते हैं।
*यावन्तोऽस्यां पृथिव्यां हि विकर्मस्थास्तु वै द्विजाः।*
*तेषां वै पावनार्थाय सन्ध्या सृष्टा स्वयंभुवा ॥*
(याज्ञवल्क्य)
*भावार्थ -*
इस पृथ्वीपर निषिद्ध कर्म करनेवाले जितने भी द्विज हैं, उन सबको पवित्र करने के लिए स्वयं ब्रह्माजीने सन्ध्या का निर्माण किया ।
*निशायां वा दिवा वापि यदज्ञानकृतं भवेत्।*
*त्रिकालसन्ध्याकरणात् तत्सर्वं हि प्रणश्यति॥*
(याज्ञवल्क्य)
*भावार्थ -*
रातमें या दिनमें जिस किसी समय अज्ञानके कारण जो भी अनुचित कर्म घटित हो जाते हैं, वे सब त्रिकाल - सन्ध्या करनेसे नष्ट हो जाते हैं ।
*सन्ध्यालोपस्य चाकर्ता स्नानशीलश्च यः सदा।*
*तं दोषा नोपसर्पन्ति गरुत्मन्तमिवोरगाः॥*
(कात्यायन)
*भावार्थ -*
जो कभी सन्ध्याका लोप नहीं करता अर्थात् नित्य सन्ध्या करता है और जो सदा स्नानशील है, उसके पास दोष उसी तरह नहीं रहते जैसे गरुणके सान्निध्यमें साँप॥
🌷🙏हरे कृष्णा🙏🌷
[10/7, 12:44] पं अनिल ब: अथ शनिस्तोत्रम् ॥
श्री: ॥ अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रस्य दशरथ ऋषि: शनैश्चरो देवत त्रिष्टुपछंद: शनैश्चरप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥
दशरथ उवाच ॥
कोणाऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रु: कृष्ण: शनि: पिंगलमंद सौरि: ॥ नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय ॥ १ ॥
सुरासुर: किंपुरूषा गणेंद्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च ॥ पीड्यंति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नाम: श्रीरविनंदनाय ॥ २ ॥
नरा नरेंद्रा: पशवो मृगेंद्रा वन्याश्च ये कीटपतंगभृंगा ॥ पीड्यंति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय ॥ ३ ॥
देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशा: पुरपत्तनाति ॥ पीड्यंति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय ॥ ४ ॥
तिलैर्यवैर्माषगुडन्नदानैर्लोहेन नीलांबरदानतो वा ॥ प्रीणाति मंत्रैर्निजवासरे च तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय ॥ ५ ॥
प्रयाकूले यमुनातटे च सरस्वती पुण्यजले गुहायाम् ॥ यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय ॥ ६ ॥
अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नर: सूखी स्यात् ॥ गृहाद् गतो यो न पुन: प्रयाति तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय नम: ॥ ७ ॥
स्रष्टा स्यंभूर्भुवनतरस्य त्राता हरि: संहरते पिनाकी ॥ एकस्त्रिधा ऋग्यजु:साममूर्तितस्मै नम: श्रीरविनंदनाय नम: ॥ ८ ॥
शन्यष्टकं य: प्रयत: प्रभाते नित्यं सुपुत्रै: पशुबांधवैश्च ॥ पठेच्च सौख्यं भुवि भोगयुक्तं प्राप्नोति निर्वाणपदं परं स: ॥ ९ ॥
कोणस्थ: पिंगलो बभ्र: कृष्णा रौद्राऽन्तको यम: ॥ सौरि:शनेश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत: ॥ १० ॥
एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाप य: पठेत् ॥ शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति ॥ ११ ॥
इति श्रीदशरथप्रोक्तं शनैश्चरस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
जय महाँकाल💐🙏🏼💐
[10/7, 16:07] पं अनिल ब: ॐ जय श्रीहरि
*श्रीरामचरितमानस "षष्ट सौपान" लंकाकाण्ड -( 19 )*
॥ रावणका शर्मसार होना एवं पुत्र मरण दुःख॥
। श्री सियावर रामचन्द्रजी की जय भक्तो ।
०००००००००००००००००००००
*इंद्रजीत आदिक बलवाना । हरषि उठे जहँ तहँ भट नाना ॥*
*झपटहि करीं बल बिपुल उपाई।पद न टरइ बैठहि सिरु नाई॥*
इंद्रजीत ( मेघनाथ ) आदि अनेको बलवान् योद्धा जहाँ तहाँ हर्षित होकर उठे । वे पूरे बल से बहुत से उपाय करके झपटते है । पर पैर टलता नही है, तब सिर नीचा करके फिर अपने अपने स्थान पर जा बैठ जाते है ।
*पुनि उठि झपटहिं सुरआराती ।टरइ न कीस चरन एहिभाँति॥*
*पुरुष कुजोरी जिमि उरगारी ।मोह बिटप नहींसकहिं उपारी ॥*
(काक भुशुण्डिजी कहते है -) वे देवताओं के शत्रु ( राक्षस ) फिर उठके झपटते है । परन्तु हे सर्पो के शत्रु गरुड़जी ! अंगद का चरण उनसे वैसे ही नहीं टलता जैसे कुयोगों ( विषयी ) पुरुष मोह रूपी वृक्ष को नहीं उखाड़ सकते ।
दो० - *कोटिन्ह मेघनाथ सम सुभट उठे हरषाइ ।*
*झपटहिं टरै न कपि चरन पुनि बैठहिं सिर नाइ ॥*
करोड़ो वीर योद्धा जो बलमे मेघनाथ के समान थे, हर्षित होकर उठे । वे बार बार झपटते है, पर वानर का चरण नही उठता, तब लज्जा के मारे सिर नवाकर बैठ जाते है ।
दो० - *भूमि न छाँड़त कपि चरन देखत रिपु मद् भाग ।*
*कोटि बिघ्न ते कर मन जिमि नीति न त्याग ॥*
जैसे करोड़ो विघ्न आने पर भी संत मन नीति को नहीं छोड़ता, वैसे ही वानर ( अंगद ) का चरण प्र्रथ्वी को नहीं छोड़ता । यह देखकर शत्रु (रावण) का मद् ( अभिमान ) दूर हो गया ।
*कपि बल देखि सकल हियँ हारे । उठा आपु कपि केँ प्रचारे ॥*
*गहत चरन कह बालिकुमारा । मम् पद गहें न तोर उबारा ॥*
अंगद का बल देखकर सब ह्रदय में हार गये । तब अंगद के ललकारने पर स्वयं उठा । जब वह अंगद का चरण पकडंने लगा, तब बालि कुमार अंगद ने कहा - मेरा चरण पकडंने लगा, तेरा बचाव नहीं होगा ।
*गहसी न राम चरन सठ जाई ।सुनत फिरा मन अतिसकुचाई॥*
*भयउ तेजहत श्री सब गई । मध्य दिवस जिमि ससि सोहई ॥*
अरे मुर्ख ! तू जाकर श्रीरामजी के चरण क्यों नहीं पकड़ता ? यह सुनकर वह मन में बहुत ही सकुचाकर लौट गया । उसकी सारी श्री (आभा) जाती रही । वह ऐसा तेजहीन हो गया जैसे मध्यान में चन्द्रमा दिखाई देता है ।
*सिंघासन बैठेउ सिर नाई । मानहुँ संपति सकल गंवाई ॥*
*जगदातमा प्रानपति रामा । तासु बिमुख किमी लह बिश्रामा ॥*
वह् सिर नीचा करके सिंहासन पर जा बैठा । मानो सारी सम्पति गंवाकर बैठा हो । श्रीरामचन्द्रजी जगतभर के आत्मा और प्राणों के स्वामी है । उनसे विमुख रहने वाला शान्ति कैसे पा सकता है ।
*उमा राम की भृकुटि बिलासा । होइ बिस्व पुनि पावई नासा ॥*
*तृनते कुलसि कुलिस तृन करइ।तासु दूत पन कहुकिमि टरइ॥*
(शिवजी कहते है)- हे उमा ! जिन श्रीरामचन्द्रजी के भ्रुबिलास ( भौंहों के इशारे ) से विश्व उत्प्नन होता है और फिर नाश को प्राप्त होता है ; जो तृण को ब्रज और ब्रज को तृण बना देते है ( अत्यंत प्रबल को को निर्बल और अत्यंत निबर्ल को महान् प्रबल कर देते है ), उनके दूत का प्रण, कहौ कैसे टल सकता है? ।
*पुनि कपि कही नीति बिधि नाना ।*
*मान नताहि कालूनिअराना॥*
*रिपु मद्मथि प्रभु सुजसु सुनायो ।*
*यह कपि कहि चल्यो नृप जायो॥*
फिर अंगद ने अनेको प्रकार से नीति कही । पर रावण ने नहीं मानी ; क्योकि उसका काल निकट आ गया था । शत्रु के गर्व को चूर करके अंगद ने प्रभु श्रीरामचन्द्रजी का सुयश सुनाया और वह राजा बालि का पुत्र यह कहकर चल दिया ।
*हतौं न खेत खेलाइ खेलाइ । तोहि अबहिं का करौं बड़ाई ॥*
*प्रथमहिं तासु तनय कपिमारा ।सो सुनि रावन भयउ दुखारा॥*
रण भूमि में तुझे खेला खेलाकर न मारू; तब अभी ( पहले से ) क्या बड़ाई करु । अंगद ने पहले ही,( सभा में आने पूर्व ही ) उसके पुत्र को मार डाला था । यह संवाद् सुनकर रावण दुखी हो गया ।
॥ जय महाँकाल ॥
क्रमशः - भाग - 20
[10/7, 16:45] +91 88274 29111: 🌞🌞🌹🌹🌞🌞
प्रेम को फैलाओ!
कैसे प्रेम फैलेगा? झुकने से फैलता है। अहंकारी आदमी प्रेम नहीं कर सकता है। जीवन का साधारण प्रेम भी अहंकारी आदमी नहीं कर सकता, क्योंकि प्रेम के लिए झुकना अनिवार्य शर्त है। तुम तो प्रेम में भी दूसरे को झुकाने की कोशिश लगे रहते हो। यही पति—पत्नी का संघर्ष है सारी दुनिया में, दोनों एक दूसरे को झुकाने की कोशिश में लगे होते हैं। पति चाहता है पत्नी को झुका ले, पत्नी चाहती है पति को झुका ले। उनकी सारी कूटनीति, प्रत्यक्ष—परोक्ष में एक ही होती है, कैसे दूसरे को झुका लें। अच्छे— अच्छे बहाने खोजे जाते हैं दूसरे को झुकाने के लिए। पत्नी अपने ढंग से खोजती है; उसके ढंग स्त्रैण होते हैं। लेकिन वह भी झुकाने की तरकीबें खोजती रहती है। स्त्रैण होने के कारण उसके ढंग बड़े परोक्ष होते हैं, प्रत्यक्ष नहीं होते।
पति को अगर पत्नी को झुकाना है तो वह कभी—कभी पत्नी को सीधा मार देता है। पत्नी को अगर पति को झुकाना है तो वह अपने को पीट लेती है। फर्क जरा भी नहीं है। प्रयोजन एक ही है। और निश्चित ही पत्नी ज्यादा जीतती है, क्योंकि परोक्ष, उसके मार्ग सूक्ष्म हैं। पति के जरा आदिम हैं, ज्यादा सुसंस्कृत नहीं हैं, स्त्री का मार्ग ज्यादा सुसंस्कृत है। इसलिए वह जीतती है। उसका मार्ग ज्यादा कोमल है। उसको अगर पति को जीतना है तो वह रोने लगती है। पति को अगर पत्नी पर कोई विरोध हुआ है, तो वह क्रोधित होता है। पत्नी उदास होती है। उदासी क्रोध का छिपा हुआ ढंग है।
यह तुम चकित होओगे जानकर कि उदास आदमी क्रोध को दबा रहा है, इसलिए उदास है। वह दबा हुआ क्रोध है, वह पी गया क्रोध है। लेकिन जब कोई उदास होता है तो दया ज्यादा आती है। कोई क्रोध कर रहा हो तो उससे तो लड़ने की भी सुविधा है, लेकिन कोई क्रोध न कर रहा हो, सिर्फ रो रहा हो, तो उससे कैसे लड़ोगे? इसलिए सौ में निन्यानबे पुरुष हार जाते हैं। जो एकाध जीतता है, वह एकदम बिलकुल ही हिंस प्रकृति का हो तो ही जीत पाता है, एकदम पाशविक वृत्ति का हो तो ही जीत पाता है। नहीं तो सभी हारते हैं।
तुमने वह प्रसिद्ध कहानी सुनी न कि अकबर ने एक दिन अपने दरबारियों से कहा कि बीरबल मुझसे कहता है कि तुम्हारे दरबार में सब अपनी औरतों के गुलाम हैं। यह बात मुझे जंचती नहीं; यह मैं मान नहीं सकता; मेरे बहादुर सिपाही, मेरे बहादुर सेनापति, मेरे बहादुर वजीर, ये सब औरतों के गुलाम हैं, यह मैं मान नहीं सकता। तो आज मैंने परीक्षा लेनी है। जो—जो अपनी पत्नी के गुलाम हों,एक तरफ खड़े हो जाएं। और कोई झूठ न बोले, क्योंकि इसका पता लगाया जाएगा, तुम्हारी स्त्रियों को भी बुलवाया जाएगा, फिर पीछे फजीहत होगी; इसलिए जो—जो अपनी स्त्रियों के गुलाम हों,चुपचाप एक लाइन में खड़े हो जाएं। और जो अपनी स्त्रियों के मालिक हों, वे एक लाइन में खड़े हो जाएं।
सिर्फ एक आदमी उस लाइन में खड़ा हुआ जो अपनी स्त्रियों का मालिक था और बाकी सब उस लाइन में खड़े हो गये जहा स्त्रियों के गुलामों को खड़ा होना था। बादशाह हैरान हुआ। फिर भी उसने कहा कि चलो, यह भी क्या कम है। क्योंकि बीरबल तो कहता था, सौ प्रतिशत, मगर एक आदमी तो कम से कम है। मैं तुमसे पूछता हूं कि तुम उस लाइन में क्यों खड़े हो? तुम्हें पक्का भरोसा है? उस आदमी ने कहा, भरोसा इत्यादि कुछ नहीं है, जब मैं घर से चलने लगा, मेरी औरत ने कहा— भीड़— भाड़ में खड़े मत होना। मुझे कुछ पता नहीं है, मैं तो सिर्फ उसकी आज्ञा का पालन कर रहा हूं।
सदा ही कोमल जीत जाएगा कठोर पर। पानी जीत जाता है चट्टान पर। मगर जीत की चेष्टा चल रही है, संघर्ष चल रहा है। पति—पत्नी के बीच जो शाश्वत कलह है, वह यही है। प्रेम में यह कलह? फिर प्रेम कैसे फलेगा? इसलिए प्रेम कहां फलता है! पति—पत्नी लड़ते रहते हैं और मर जाते हैं; प्रेम कहां फलता है! बाप—बेटे में संघर्ष चलता है, भाई— भाई में संघर्ष चलता है, प्रेम कहां फल पाता है! प्रेम वहीं फलता है जहा कोई अपने अहंकार को स्वेच्छा से विसर्जित करता है। हार कर नहीं, स्वेच्छा से; स्वयं अपने से। कहता है, मुझे तुमसे प्रेम है तो तुमसे लड़ना क्या? तुमसे मुझे प्रेम है तो तुम्हारे लिए मैंने अपना अहंकार छोड़ा। तुमसे मेरा कोई संघर्ष नहीं है।
साधारण प्रेम में भी झुकने से ही प्रेम फलता है, तो फिर उस परम प्रेम में, परमात्मा के सामने तो पूरी तरह झुक जाना होगा। इस झुकने की कला का नाम है, नमस्कार, नाम—कीर्तन उसकी याद, उसका गुणगान।
अथातो भक्ति जिज्ञासा
🇲🇰 प्रेरणादायी कहानियाँ 🇲🇰
WhatsAAp▶ *+919893236423*
ओशो
🌞🌞🙏🙏🌞🌞
[10/7, 20:21] +91 98896 25094: 💐🙏 *ॐ नमः शिवाय्* 🙏💐
कितनों ने खरीदा सोना
मैने एक 'सुई' खरीद ली
सपनों को बुन सकूं
उतनी 'डोरी' खरीद ली
सबने बदले नोट
मैंने अपनी ख्वाहिशे बदल ली
शौक- ए- जिन्दगी' कम करके
सुकून-ए-जिन्दगी' खरीद ली...
[10/7, 20:38] +91 90017 81435: एक अमीर आदमी था। उसने समुद्र मेँ अकेले घूमने के लिए एक नाव बनवाई।
छुट्टी के दिन वह नाव लेकर समुद्र की सैर करने निकला। आधे समुद्र तक पहुंचा ही था कि अचानक एक जोरदार तूफान आया। उसकी नाव पुरी तरह से तहस-नहस हो गई लेकिन वह लाईफ जैकेट की मदद से समुद्र मेँ कुद गया। जब तूफान शांत हुआ तब वह तैरता तैरता एक टापू पर पहुंचा लेकिन वहाँ भी कोई नही था। टापू के चारोँ ओर समुद्र के अलावा कुछ भी नजर नही आ रहा था। उस आदमी ने सोचा कि जब मैंने पूरी जिदंगी मेँ किसी का कभी भी बुरा नही किया तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ..???
उस आदमी को लगा कि भगवान ने मौत से बचाया तो आगे का रास्ता भी भगवान ही बताएगा। धीरे धीरे वह वहाँ पर उगे झाड-पत्ते खाकर दिन बिताने लगा। अब धीरे-धीरे उसकी श्रध्दा टूटने लगी,भगवान पर से उसका विश्वास उठ गया। उसको लगा कि इस दुनिया मेँ भगवान है ही नही। फिर उसने सोचा कि अब पूरी जिंदगी यही इस टापू पर ही बितानी है तो क्यूँ ना एक झोपडी बना लूँ ……??
फिर उसने झाड की डालियो और पत्तो से एक छोटी सी झोपडी बनाई। उसने मन ही मन कहा कि आज से झोपडी मेँ सोने को मिलेगा आज से बाहर नही सोना पडेगा। रात हुई ही थी कि अचानक मौसम बदला बिजलियाँ जोर जोर से कड़कने लगी.! तभी अचानक एक बिजली उस झोपडी पर आ गिरी और झोपडी धधकते हुए जलने लगी। यह देखकर वह आदमी टूट गया आसमान की तरफ देखकर बोला तू भगवान नही, राक्षस है।
तुझमे दया जैसा कुछ है ही नही तू बहुत क्रूर है! वह व्यक्ति हताश होकर सर पर हाथ रखकर रो रहा था। कि अचानक एक नाव टापू के पास आई। नाव से उतरकर दो आदमी बाहर आये और बोले कि हम तुम्हेँ बचाने आये हैं। दूर से इस वीरान टापू मे जलता हुआ झोपडा देखा तो लगा कि कोई उस टापू पर मुसीबत मेँ है।
अगर तुम अपनी झोपडी नही जलाते तो हमे पता नही चलता कि टापू पर कोई है।
उस आदमी की आँखो से आँसू गिरने लगे। उसने ईश्वर से माफी माँगी और बोला कि मुझे क्या पता कि आपने मुझे बचाने के लिए मेरी झोपडी जलाई थी।
...................
Moral – दिन चाहे सुख के हों या दुख के, भगवान अपने भक्तों के साथ हमेशा रहते हैं।
।। जय माताजी ।।
[10/8, 00:26] +91 98896 25094: जय श्री कृष्णा
एक ब्राह्मण को विवाह के बहुत सालों बाद पुत्र हुआ लेकिन कुछ वर्षों बाद बालक की असमय मृत्यु हो गई।
ब्राह्मण शव लेकर श्मशान पहुँचा। वह मोहवश उसे दफना नहीं पा रहा था। उसे पुत्र प्राप्ति के लिए किए जप-तप और पुत्र का जन्मोत्सव याद आ रहा था।
श्मशान में एक गिद्ध और एक सियार रहते थे। दोनों शव देखकर बड़े खुश हुए। दोनों ने प्रचलित व्यवस्था बना रखी थी - दिन में सियार माँस नहीं खाएगा और रात में गिद्ध।
सियार ने सोचा - यदि ब्राह्मण दिन में ही शव रखकर चला गया तो उस पर गिद्ध का अधिकार होगा। इसलिए क्यों न अंधेरा होने तक ब्राह्मण को बातों में फँसाकर रखा जाए।
वहीं गिद्ध ताक में था कि शव के साथ आए कुटुंब के लोग जल्द से जल्द जाएँ और वह उसे खा सके।
गिद्ध ब्राह्मण के पास गया और उससे वैराग्य की बातें शुरू की।
गिद्ध ने कहा - मनुष्यों, आपके दुख का कारण यही मोहमाया ही है। संसार में आने से पहले हर प्राणी का आयु तय हो जाती है। संयोग और वियोग प्रकृति के नियम हैं।
आप अपने पुत्र को वापस नहीं ला सकते। इसलिए शोक त्यागकर प्रस्थान करें। संध्या होने वाली है। संध्याकाल में श्मशान प्राणियों के लिए भयदायक होता है इसलिए शीघ्र प्रस्थान करना उचित है।
गिद्ध की बातें ब्राह्मण के साथ आए रिश्तेदारों को बहुत प्रिय लगीं। वे ब्राह्मण से बोले - बालक के जीवित होने की आशा नहीं है। इसलिए यहाँ रुकने का क्या लाभ?
सियार सब सुन रहा था। उसे गिद्ध की चाल सफल होती दिखी तो भागकर ब्राह्मण के पास आया।
सियार कहने लगा - बड़े निर्दयी हो। जिससे प्रेम करते थे, उसके मृत-देह के साथ थोड़ा वक्त नहीं बिता सकते!! फिर कभी इसका मुख नहीं देख पाओगे। कम से कम संध्या तक रुककर जी भर के देख लो!
उन्हें रोके रखने के लिए सियार ने नीति की बातें छेड़ दीं - जो रोगी हो, जिस पर अभियोग लगा हो और जो श्मशान की ओर जा रहा हो उसे बंधु-बांधवों के सहारे की ज़रूरत होती है।
सियार की बातों से परिजनों को कुछ तसल्ली हुई और उन्होंने तुरंत वापस लौटने का विचार छोड़ा।
अब गिद्ध को परेशानी होने लगी। उसने कहना शुरू किया - तुम ज्ञानी होने के बावजूद एक कपटी सियार की बातों में आ गए। एक दिन हर प्राणी की यही दशा होनी है। शोक त्यागकर अपने-अपने घर को जाओ।
जो बना है वह नष्ट होकर रहता है। तुम्हारा शोक मृतक को दूसरे लोक में कष्ट देगा। जो मृत्यु के अधीन हो चुका क्यों रोकर उसे व्यर्थ कष्ट देते हो ?
लोग चलने को हुए तो सियार फिर शुरू हो गया - यह बालक जीवित होता तो क्या तुम्हारा वंश न बढ़ाता? कुल का सूर्य अस्त हुआ है कम से कम सूर्यास्त तक तो रुको!
अब गिद्ध को चिंता हुई। गिद्ध ने कहा - मेरी आयु सौ वर्ष की है। मैंने आज तक किसी को जीवित होते नहीं देखा। तुम्हें शीघ्र जाकर इसके मोक्ष का कार्य आरंभ करना चाहिए।
सियार ने कहना शुरू किया - जब तक सूर्य आकाश में विराजमान हैं, दैवीय चमत्कार हो सकते हैं। रात्रि में आसुरी शक्तियाँ प्रबल होती हैं। मेरा सुझाव है थोड़ी प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए।
सियार और गिद्ध की चालाकी में फँसा ब्राह्मण परिवार तय नहीं कर पा रहा था कि क्या करना चाहिए। अंततः पिता ने बेटे का सिर में गोद में रखा और ज़ोर-ज़ोर से विलाप करने लगा। उसके विलाप से श्मशान काँपने लगा।
तभी संध्या-भ्रमण पर निकले महादेव-पार्वती वहाँ पहुँचे। पार्वती जी ने बिलखते परिजनों को देखा तो दुखी हो गईं। उन्होंने महादेव से बालक को जीवित करने का अनुरोध किया।
महादेव प्रकट हुए और उन्होंने बालक को सौ वर्ष की आयु दे दी। गिद्ध और सियार दोनों ठगे रह गए।
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गिद्ध और सियार के लिए आकाशवाणी हुई - तुमने प्राणियों को उपदेश तो दिया उसमें सांत्वना की बजाय तुम्हारा स्वार्थ निहीत था। इसलिए तुम्हें इस निकृष्ट योनि से शीघ्र मुक्ति नहीं मिलेगी।
दूसरों के कष्ट पर सच्चे मन से शोक करना चाहिए। शोक का आडंबर करके प्रकट की गई संवेदना से गिद्ध और सियार की गति प्राप्त होती।
✍संकलन
[10/8, 08:39] कख: *💐🌷जय श्रीमन्नारायण🌷💐*
*श्रीमते रामानुजाय नमः*
*अन्नहीनो दहेद् राष्ट्रं मन्त्रहीनश्च ऋत्विजः।*
*यजमानं दानहीनो नास्ति यज्ञसमो रिपुः।।*
*भावार्थः*
हिंदू शास्त्रों में शुभ मांगलिक कार्यों के अवसर पर यज्ञ हवन को अत्यंत महत्वपूर्ण कहा गया है। स्वयं ब्रह्माजी ने इसकी तुलना कल्पवृक्ष से की है, जिससे मनुष्य की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस कथन को आचार्यों ने भी स्वीकार किया है। लेकिन साथ ही इस विषय पर वे अपना तर्क प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि यज्ञ करते समय यदि उसके विधि विधान में किसी प्रकार की कमी रह जाए तो यज्ञ फलप्रदायक की अपेक्षा कष्टप्रदायक बन जाता है। इसलिए यज्ञ करते समय अन्न का दान अवश्य करना चाहिए, यथाविधि मंत्रोच्चारण होना चाहिए तथा पुरोहितों को उचित दान दक्षिणा दी जानी चाहिए। ऐसा न होने की स्थिति में यज्ञ विनाशकारी हो जाता है। इसलिए यज्ञ तभी करें, जब उसे यथाविधि करने का सामर्थ्य हो।
*🌺 विष्णु वर्धनाचार्यः🌺*
*🌸शुभोदयम्🌞🌸*
[10/8, 10:07] विरेन्द्र पाण्डेय जी: समस्त नारी शक्ति को नमन एवं *करवा_चौथ* की हार्दिक शुभकामनाएं।
मनुष्य सदैव आपका *ऋणी* रहेगा।
आपने *जन्म दिया,शिक्षा दी*प्रथम *गुरु* हैं आप।।
कभी *माँ बनकर जन्म* कभी *बहन* बनकर राखी तो कभी *सुहागन* बन के लंबी आयु की कामना तो *पुत्री* बन के गौरवान्वित करवाया।।
हम या समाज आपका यह *ऋण* कभी उतार नही पाएंगे।
*हे_नारीशक्ति_सहस्रों_नमन*
*यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:*
🌷🙏हरे कृष्णा🙏🌷
[10/8, 11:51] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *धन्य वो देवी जो पति सुख के लिए व्रत पावे।*
*धन्य वो पति जो देवी रूप पत्नी पावे।*
*धन्य वो स्वरुप जो मनुष्यता का दीप जलावे।*
*आप सभी नारी शक्ति को पुण्य करवा चौथ व्रत की हार्दिक शुभकामनाएं।*🌺🎁🌺
करवा चौथ का व्रत खास तौर से चन्द्रमा देव का पर्व होता है। महिलाएं चांद को देखकर अर्घ्य देकर व पूजन करके ही अपना व्रत जो खोलती हैं। यही कारण है कि दिनभर के व्रत के बाद जैसे-जैसे पूजन का समय नजदीक आता है, वैसे-वैसे चांद निकलने का इंतजार बड़ी बेसब्री से किया जाता है और यह चांद भी ना....
रोज भले ही जल्दी निकल आता हो, लेकिन इस दिन बादलों में छिपकर, निकलने में हमेशा देरी करता है। यही तो सबसे अहम परीक्षा भी होती है। खैर आप परेशान बिल्कुल न हों, क्योंकि हम आपको बता रहे हैं चन्द्रोदय का सही समय। ताकि आपको अपने समयानुसार पूजन में सुविधा हो और ज्यादा इंतजार भी आपको न करना पड़े। *तो इस बार करवा चौथ के दिन चन्द्र देव के दर्शन का समय 👇👇👇*
*करवा चौथ पूजा मुहूर्त = १८:०३ से १९:१७*
*अवधि = १ घण्टा १४ मिनट*
*करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय = २०:२७*
*चतुर्थी तिथि प्रारम्भ = ८/अक्टूबर/२०१७ को १६:५८ बजे*
*चतुर्थी तिथि समाप्त = ९/अक्टूबर/२०१७ को १४:१६ बजे तक*
*जय श्री राधे*✍
[10/8, 12:23] +1 (562) 965-8399: 🌙*करवां चौथ :-*
शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। वर्तमान समय में करवाचौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं।
यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन करें।
*करवां चौथ की कथा :-*
एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रोपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा- बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था।
पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है। सोने, चाँदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं।
तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी। प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी।
एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी।
भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया।
भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहाँ से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला।
अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं
|| ॐ केशवाय नमः*
वस्तुश्रवणमात्रेण
शुद्धबुद्धिर्निराकुलः।
नैवाचारमनाचार-
मौदास्यं वा प्रपश्यति॥१८- ४८॥
अर्थात :
शुद्ध-बुद्धि पुरुष वस्तु-तत्त्व के केवल सुनने मात्र से आकुलता रहित हो जाता है, फिर आचार-अनाचार या उदासीनता पर उसकी दृष्टि नहीं जाती॥४८॥
💫 अमेरीका डाउनी से स्वामी चंद़प़काशदासजी का करवाचौथ पे जय श्री स्वामिनारायण!
[10/8, 12:28] पं विजय जी: *अचल होउ अहिवातु तुम्हारा।*
*जब लगि गंग जमुन जल धारा॥*
भावार्थ:- जब तक गंगाजी और यमुनाजी में जल की धारा बहे, तब तक तुम्हारा सुहाग अचल रहे..!
*नारी शक्ति को करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं*
[10/8, 13:51] पं उमाकांत तिवारी: संध्या का महत्व
*विप्रो वृक्षस्तस्य मूलं च सन्ध्या वेदाः शाखा धर्मकर्माणि पत्रम्।*
*तस्मान्मूलं यत्नतो रक्षणीयं छिन्ने मूले नैव शाखा न पत्रम्॥*
*भावार्थ -*
ब्राह्मण रूपी वृक्ष की जड़ तो सन्ध्या है, और ब्राह्मण रूपी वृक्ष की डालियाँ वेद हैं, धर्म कर्म आदि उस वृक्ष के पत्ते हैं, इसलिए जड़ की बड़े यत्नो से रक्षा करनी चाहिए क्योंकि जड़ के नष्ट हो जाने से न तो पत्ते रहते हैं और नाहीं डालियाँ आदि। ब्राह्मण रूपी वृक्ष की जड़ सन्ध्या है धर्म के लिए उसकी रक्षा करें!
*सन्ध्या येन न विज्ञाता सन्ध्या येनानुपासिता।*
*जीवन्नेव भवेच्छूद्रो मृतः श्वा चाभिजायते ॥*
(देवीभागवत १ । १६ ।६)
*भावार्थ -*
जो द्विज सन्ध्या नहीं जानता और सन्ध्योपासन नहीं करता वह जीता हुआ ही शूद्र हो जाता है और मरनेपर कुत्तेकी योनिको प्राप्त होता है।
*सन्ध्याहीनोऽशुचिर्नित्यमनर्हः सर्वकर्मसु ।*
*यदन्यत् कुरुते कर्म न तस्य फलभाग्भवेत्॥*
(दक्षस्मृति २ । २०)
*भावार्थ -*
संध्याहीन द्विज नित्य ही अपवित्र है और सम्पूर्ण धर्मकार्य करने में अयोग्य है। वह जो कुछ अन्य कर्म करता है उसका फल उसे नहीं मिलता ।
*न तिष्ठति तु यः पूर्वां नोपास्ते यश्च पश्चिमाम्।*
*स शूद्रवद्बहिष्कार्यः सर्वस्माद् द्विजकर्मणः ॥*
(मनु० २ । १०३)
*भावार्थ -*
जो द्विज प्रातःकाल और सांयकालकी सन्ध्या नहीं करता, उसे शूद्रकी भाँति द्विजातियोंके करनेयोग्य सभी कर्मोंसे अलग कर देना चाहिए।
*सन्ध्यामुपासते ये तु सततं शंसितव्रताः।*
*विधूतपासते यान्ति ब्रह्मलकं सनातनम्॥*
(अत्रि)
*भावार्थ -*
जो प्रशंसितव्रती सदा संध्योपासन करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं और वे सनातन ब्रह्मलोकको प्राप्त करते हैं।
*यावन्तोऽस्यां पृथिव्यां हि विकर्मस्थास्तु वै द्विजाः।*
*तेषां वै पावनार्थाय सन्ध्या सृष्टा स्वयंभुवा ॥*
(याज्ञवल्क्य)
*भावार्थ -*
इस पृथ्वीपर निषिद्ध कर्म करनेवाले जितने भी द्विज हैं, उन सबको पवित्र करने के लिए स्वयं ब्रह्माजीने सन्ध्या का निर्माण किया ।
*निशायां वा दिवा वापि यदज्ञानकृतं भवेत्।*
*त्रिकालसन्ध्याकरणात् तत्सर्वं हि प्रणश्यति॥*
(याज्ञवल्क्य)
*भावार्थ -*
रातमें या दिनमें जिस किसी समय अज्ञानके कारण जो भी अनुचित कर्म घटित हो जाते हैं, वे सब त्रिकाल - सन्ध्या करनेसे नष्ट हो जाते हैं ।
*सन्ध्यालोपस्य चाकर्ता स्नानशीलश्च यः सदा।*
*तं दोषा नोपसर्पन्ति गरुत्मन्तमिवोरगाः॥*
(कात्यायन)
*भावार्थ -*
जो कभी सन्ध्याका लोप नहीं करता अर्थात् नित्य सन्ध्या करता है और जो सदा स्नानशील है, उसके पास दोष उसी तरह नहीं रहते जैसे गरुणके सान्निध्यमें साँप॥
[10/8, 16:14] ओमीश: बालचेष्टाः 08/10/17
%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%
ईशेन कृताश्चेष्टा वै अव्यक्तो व्यक्तो$भवत्।
चेष्टायुक्तास्तेनैव जीवाः सर्वे भवन्ति वै।।
मनुष्याणाञ्च चेष्टा वै स्वार्थाय दृष्टा जगति हि।
स्वार्थं विहाय न कुर्वन्ति परार्थाय नैव वदन्ति च।।
बालानां मनोरमाश्चेष्टा: चित्ताकर्षिकास्तथा।।
तेषां स्वाभाविकं सर्वं रोदनं हसनं तथा।।
किं कार्यमकार्यञ्च अकथ्यं कथ्यं तथा।
संकोचरहितं सर्वं कुर्वन्ति च वदन्ति च।।
का क्रिया कश्च कर्ता वै कर्मणा रहितं पदम्।
शृणोति हि यदा को$पि ब्रह्मानन्दमवाप्नोति ।।
पुत्रहीनं गृहं शून्यं चेष्टारहितञ्च जीवनम्।
बालचेष्टां विना सर्वं वै शुष्कं भवति चिन्तनम्।।
डा गदाधर त्रिपाठी
[10/8, 20:23] पं विजय जी: *रिश्ते*
*प्यार*
*और मित्रता*
*हर जगह*
*पाये जाते हैं,*
*परन्तु*
*ये ठहरते वहीं हैं -*
*जहां पर इन्हें*
*आदर मिलता है ।।*
[10/8, 21:14] +1 (562) 965-8399: 🌙 ॐ श्री उमाशंकराय नम: - आज का भगवद चिंतन॥08-10-2017
करवा चौथ की बहुत बहुत बधाई
🌙 करवा चौथ (करक चतुर्थी) अर्थात भारतीय नारी के समर्पण, शीलता, सहजता, त्याग, महानता एवं पति परायणा को व्यक्त करता एक पर्व। दिन भर स्वयं भूखा प्यासा रहकर रात्रि को जब मांगने का अवसर आया तो अपने पति देव के मंगलमय, सुखमय और दीर्घायु जीवन की ही याचना करना यह नारी का त्याग और समर्पण नही तो और क्या है ?
🌙 करवा चौथ का वास्तविक संदेश दिन भर भूखे रहना ही नहीं अपितु यह है नारी अपने पति की प्रसन्नता के लिए, सलामती के लिए इस हद तक जा सकती है कि पूरा दिन भूखी - प्यासी भी रह सकती है। करवा चौथ नारी के लिए एक व्रत है और पुरुष के लिए एक शर्त।
🌙 शर्त केवल इतनी कि जो नारी आपके लिए इतना कष्ट सहती है उसे कष्ट न दिया जाए। जो नारी आपके लिए समर्पित है उसको और संतप्त न किया जाए। जो नारी प्राणों से बढ़कर आपका सम्मान करती है जीवन भर उसके सम्मान की रक्षा का प्रण आप भी लो। उसे उपहार नहीं आपका प्यार चाहिए।
🌙 अमेरीका डाउनी से स्वामी चंद़प़काशदासजी का जय श्री स्वामिनारायण!
[10/8, 21:15] पं अनिल ब: बदलो बदलो कह फिरै, बदलन की लगि हाए ।
सोइ संसद सोइ सदन, बदला तो किछु नाए । २०४७ ।
भावार्थ : -- बदलो बदलो कहते फिरे, बदलने की ऐसी हाय लगी कि लेन लगा लगा के बदले ॥ किन्तु भाई मेरे वही संसद है,वही दो सदन हैं, न्यूनाधिक वही सदस्य हैं, वही भाषण है,वही वचन है,वही भ्रष्टाचरण है । बोलो क्या बदला.....बोलोओओओओ.....कुछ नहीं बदला.....ऐसे नहीं बदलेंगे ये लोग..... 🙏🏼🙏🏼जय महाँकाल
[10/9, 11:12] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *सर्वेभ्यो नमो नमः*🌹🙏🌹😊
हमें जीवन में पानी की तरह बनना चाहिये, जो अपना रास्ता खुद बनाता है ।
पत्थर की तरह नहीं बनना चाहिये , जो दूसरों का भी रास्ता रोक लेता है ।
बहता पानी ही सबकी प्यास बुझाता है, रुका हुआ पानी तो सड़ जाता है ।
न रुको जीवन में कभी काँटों के भयः से, चलते रहो जीवन के रास्ते पर ।
न घबराओं काँटों की चुभन से , फूल भी मिलेगे इन्हीं रास्तो पर ।
यह रास्ते है मंजिल नहीं चलने से तुम रुकना नहीं, वक्त हमेशा एक सा रहता नहीं ।
बीते वक्त में उलझना नहीं रुके रहना अच्छा नहीं, वक्त का कोई भरोसा नहीं ।
आज को न जाने दो जो करना आज ही करो, कल –कल में न बीत जायें वर्षों ।
जीवन में कहीं काश न रह जाये , क्या मालुम जीना है कितने वर्षों ।
हर पल बदलता है यहाँ का मौसम न जाने, कल क्या होगा आने बाला पल कैसा होगा ।
जीवन की गाड़ी में किस का, सफर कैसा होगा कहाँ शुरु कहाँ खत्म होगा ।
जीवन के इस सफर में कुछ छूँट जाते, कुछ मिल जाते है ।
यहाँ कोई न रुकने वाला है सभी तो जाने वाले है, फिर क्यों हम घबरा जाते है ।
जीवन की गाड़ी फिर भी चलती रहती, वक्त के साथ जिन्दगानी भी बदलती रहती है ।
मन मेरा कितना चंचल है पल- पल बदलता रहता है ।
दुख- सुख के भँवर जाल में , हर पल फंसता रहता है ।
जीवन भर हम भ्रम में जीते है, पानी पर लकीरें खीचते रहते है ।
एक लहर आती है सब बहा ले जाती है, हम देखते ही रहते है।
जिस दिन भ्रम टूँट जायेंगे, मन के दर्पण साफ हो जायेंगे ।
प्रभों का जब मन में वास होगा, उस दिन हम दुखों से छूँट जायेंगे।
उस दिन जीवन सफल हो जायेगा, जीवन की गाड़ी मंजिल पर पहुँच जायेगी ।
उस दिन का इन्तजार कर प्रयास कर, वक्त के साथ चल मंजिल की तलाश मिल जायेगी।
अपने जीवन को नये जोश और उत्साह के साथ, उस से मिलने का अनुभव कर ।
यही है जीने की कला आज में जी, बीते कल और आने बाले कल की चिन्ता न कर।
जो न मिला उसकी चिन्ता में तिल- तिल न मर, जो मिल गया उसे स्वीकार कर ।
वह हर पल तेरे साथ है, था, और रहेगा, पकड़ कर उसका हाथ ऐसा चल कि पानी सा बहता चले।
जीवन को सरल सरस और भक्तिमय बनाओ, हल्का इतना कि हवा के साथ बहता चले ।
कापी पेस्ट।
[10/9, 12:10] +91 74159 69132: * जनम मरन सब दुख सुख भोगा। हानि लाभु प्रिय मिलन बियोगा॥
काल करम बस होहिं गोसाईं। बरबस राति दिवस की नाईं॥
श्रीराम जयराम जयजय राम
[10/9, 18:03] पं विजय जी: यहि तन कर फल विषय न भाई ।
स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई।।
......................... हे भाई ! इस शरीर के मिलने का लाभ विषय - भोग नही है । स्वर्ग भी अल्प ही है , वह भी दुःख देने वाला है । जब स्वर्ग से गिराया जाता है है तो बड़ा दुख होता है । असली सुख तो परमात्मा के मिलने से होता है । ज्ञानमार्ग में परमात्मा में एकीभाव होने से जो सुख होता है , वही असली सुख है ।........
मनुष्य -शरीर उस वास्तविक सुख के लिए मिला है ऐसे अमूल्य समय को विषय मे विताना है वह पशुओं से भी गिरा हुआ है । पशुओं को तो ज्ञान नही है , जिस तरह पशुओं का रमण है उसी तरह मनुष्यो का रमण है अतः वह पशु जीवन ही है । दूसरे के सुख को देखकर हम जलते रहते हैं , वह संताप है । हमारे रुपये बढ़े , किन्तु पड़ोसियों के ज्यादा बढ़ गए तो सहन नही होता । इस प्रकार मनुष्य संताप से जलता रहता है ।
[10/9, 19:46] विरेन्द्र पाण्डेय जी: 🌱💕🌱💕🌱💕👣💕🌱💕🌱💕
ग्वाले को छोरा सो एसो कछु धनी नाय ।
रंग कौ है साँवरे सवन कौ दिखात है।।
प्रात काल गउए ले जावे मधुवन की ओर।
दिन भर चरावै तब साँझ घरै आत है।।
कुंन्जन में गोपिन सौं मांगत है दही को दान।
सखियन कौ माखन चुरा चुरा खात है।।
तासौ तैं प्रेम करैं बनी फिरे बाबरी सी।
अरी कारी काँमरी बारे पे मै तो मरी जात है।।
🌷🌷🙏हरे कृष्णा🙏🌷🌷
[10/9, 21:32] मार्कण्डेय जी: *🙏🏼💐🌹दो मिनट मंदिरों के* *लिए ।*........ निवेदन है कि हमे सुबह और सायंकाल आरती के वक्त जो भी मंदिर पास हो वहाँ पहुंचना चाहिए। कुछ मंदिर हैं देश में जहां लोग घण्टों दर्शन के लिए खड़े रहते हैं, पर हमारे आस- पास के मंदिरों की बात करें तो हालात बहुत बुरे है। वहाँ आरती के वक्त झालर, शंख, नगाड़ा बजाने को लोग नहीं होते है।कुछ लोगों ने इसका तोड़ निकाला है, इलेक्ट्रिक मशीनें ले आये हैं।
यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है ?
कोई इसपर विचार नहीं करता। कहने को हम करोड़ों हैं, पर मंदिरों में आरती के वक्त 4 लोग नहीं पहुँच पाते।इसी कारण मोहल्ले वाले भी एक दूसरे को पहचान नहीं पाते और हिंदुओं में एकता नहीं हो पाती है।
इस पर विचार होना चाहिए।
मंदिर ही हैं जो हमें एक दूसरे से जोड़ने में सहायक हो सकते हैं ।
आओ प्रयत्न करें अपने व्यस्त समय में से कुछ समय धर्म की रक्षा, राष्ट्र की एकता, अखंडता एवं अपने संस्कारों हेतु निकाले ।🙏🏼💐🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[10/10, 08:54] कख: *💐🌷जय श्रीमन्नारायण🌷💐*
*श्रीमते रामानुजाय नमः*
*शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे।*
*साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने।।*
*भावार्थः*
यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक पर्वत हीरे जवाहरात से युक्त हों।
समस्त हाथियों के मस्तक पर मुक्तामणि सुशोभित हो, प्रत्येक स्थान पर सज्जन मनुष्य का वास हो तथा प्रत्येक वन में चंदन वृक्ष हों। अर्थात् संसार में भिन्न भिन्न प्रवृत्तियों के अनेक मनुष्य वास करते हैं। ऐसी स्थिति में हमें केवल सज्जन और श्रेष्ठ मनुष्य से ही संपर्क बढ़ाने चाहिए। इससे अभीष्ट कार्य अवश्य संपन्न होगा।
*🌺 विष्णु वर्धनाचार्यः🌺*
*🌸शुभोदयम्🌞🌸*
[10/10, 09:03] पं विजय जी: सद्भिस्तु सह संसर्ग: शोभते धर्मदर्शिभि:।
नित्यं सर्वास्ववस्थासु नासद्भिरिति मे मति:।।
-महाभारत,शांतिपर्व,२९३/३
अर्थात्-धर्म पर दृष्टि रखने वाले सत्पुरुषों के संसर्ग में रहना सदा ही श्रेष्ठ है; परन्तु किसी भी दशा में कभी दुष्ट पुरुषों का संग अच्छा नहीं है,यह मेरा दृढ़ निश्चय है।
[10/10, 09:10] मार्कण्डेय जी: 🙏🏼💐🌹
*स्वदेशं पतितं कष्टं,*
*दूरस्थः लोकयन्ति ये,*
*नैव च प्रतिकुर्वन्ति,*
*ते नरा: शत्रुनन्दनाः।*
*भावार्थ- देश पर संकट के समय, जो मनुष्य दूर खड़े रहते हैं, राष्ट्र के सहयोग हेतु कोई प्रतिक्रिया अथवा योगदान नहीं करते, वे लोग शत्रु को आनन्द देने वाले होते हैं, अर्थात देश के शत्रु ही होते हैं। ऐसे व्यक्ति घृणा के पात्र हैं । 🙏🏼💐🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[10/10, 09:10] मार्कण्डेय जी: *🙏🏼💐🌹आदमी की औकात*!!!!.
एक माचिस की तीली,
एक घी का लोटा,
लकड़ियों के ढेर पे,
कुछ घण्टे में राख.....
बस इतनी-सी है
*आदमी की औकात !!!!*
एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया , अपनी सारी ज़िन्दगी ,
परिवार के नाम कर गया,
कहीं रोने की सुगबुगाहट ,
तो कहीं फुसफुसाहट ....
अरे जल्दी ले जाओ
कौन रखेगा सारी रात...
बस इतनी-सी है
*आदमी की औकात!!!!*
मरने के बाद नीचे देखा , नज़ारे नज़र आ रहे थे,
मेरी मौत पे .....
कुछ लोग ज़बरदस्त,
तो कुछ ज़बरदस्ती
रो रहे थे।
नहीं रहा.. ........चला गया...
चार दिन करेंगे बात.........
बस इतनी-सी है
*आदमी की औकात!!!!!*
बेटा अच्छी तस्वीर बनवायेगा,
सामने अगरबत्ती जलायेगा ,
खुश्बुदार फूलों की माला होगी...
अखबार में अश्रुपूरित श्रद्धांजली होगी.........
बाद में उस तस्वीर पे,
जाले भी कौन करेगा साफ़...
बस इतनी-सी है
*आदमी की औकात !!!!!!*
जिन्दगी भर,
मेरा- मेरा- मेरा किया....
अपने लिए कम ,
अपनों के लिए ज्यादा जीया...
कोई न देगा साथ...
जायेगा खाली हाथ....
*ये है हमारी औकात*🙏🏼💐🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[10/10, 09:19] अर्चना जी: 🌞सुबह का सुविचार🌞
🌿🌿🌿🌿🌹🌹🌿🌿🌿🌿
✍.. कभी हँसते हुए छोड़ देती है ये जिंदगी
कभी रोते हुए छोड़ देती है ये जिंदगी।
न पूर्ण विराम सुख में,
न पूर्ण विराम दुःख में,
बस जहाँ देखो वहाँ अल्पविराम छोड़ देती है ये जिंदगी।
प्यार की डोर सजाये रखो,
दिल को दिल से मिलाये रखो,
क्या लेकर जाना है साथ मे इस दुनिया से,
मीठे बोल और अच्छे व्यवहार से
रिश्तों को बनाए रखो...........✍🏻
🌸 शुभ प्रभात 🌸
[10/10, 09:25] विरेन्द्र पाण्डेय जी: जिसके पास कुछ भी नहीं है ,
उस पर दुनियाँ हँसती है
जिसके पास सबकुछ है ,
उसपर दुनियाँ जलती है
मेरे पास आप जैसे अनमोल
रिश्ते हैं , जिनके लिये दुनियाँ
तरसती है
🙏🌷हरे कृष्णा🌷🙏
[10/10, 09:33] +91 74159 69132: मंगलवार विशेष रामचरितमानस के सात कांडों में से सर्वाधिक सुंदरकांड महत्वपूर्ण क्यो?
* सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान॥
भावार्थ:-श्री रघुनाथजी का गुणगान संपूर्ण सुंदर मंगलों का देने वाला है। जो इसे आदर सहित सुनेंगे, वे बिना किसी जहाज (अन्य साधन) के ही भवसागर को तर जाएँगे॥
तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में कुल सातकाण्ड (अध्याय) है लेकिन इन सातों काण्ड में से सर्वाधिक महत्तव सुन्दर काण्ड का है। लेकिन ऐसा क्यों है आज हम इसका कारण जानेंगे।
श्रीरामचरित मानस में सात काण्ड (अध्याय) हैं। सुंदरकाण्ड के अतिरिक्त सभी अध्यायों के नाम स्थान या स्थितियों के आधार पर रखे गए हैं।
बाललीला का बालकाण्ड, अयोध्या की घटनाओं का अयोध्या काण्ड, जंगल के जीवन का अरण्य काण्ड, किष्किंधा राज्य के कारण किष्किंधा काण्ड, लंका के युद्ध का लंका काण्ड और जीवन से जुड़े प्रश्नों के उत्तर उत्तरकाण्ड में दिए गए हैं।सुंदरकाण्ड का नाम सुंदरकाण्ड क्यों रखा गया?
हनुमानजी, सीताजी की खोज में लंका गए थे और लंका त्रिकुटाचल पर्वत पर बसी हुई थी। त्रिकुटाचल पर्वत यानी यहां 3 पर्वत थे। पहला सुबैल पर्वत, जहां के मैदान में युद्ध हुआ था। दूसरा नील पर्वत, जहां राक्षसों के महल बसे हुए थे और तीसरे पर्वत का नाम है सुंदर पर्वत, जहां अशोक वाटिका निर्मित थी।
इसी अशोक वाटिका में हनुमानजी और सीताजी की भेंट हुई थी। इस काण्ड की यही सबसे प्रमुख घटना थी, इसलिए इसका नाम सुंदरकाण्ड रखा गया है।सुंदरकाण्ड का है विशेष महत्तवअक्सर शुभ अवसरों पर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड का पाठ किया जाता है। शुभ कार्यों की शुरुआत से पहले सुंदरकांड का पाठ करने का विशेष महत्व माना गया है।
जब भी किसी व्यक्ति के जीवन में ज्यादा परेशानियां हों, कोई काम नहीं बन रहा हो, आत्मविश्वास की कमी हो या कोई और समस्या हो, सुंदरकांड के पाठ से शुभ फल प्राप्त होने लग जाते हैं। कई ज्योतिषी और संत भी विपरीत परिस्थितियों में सुंदरकांड का पाठ करने की सलाह देते हैं। यहां जानिए सुंदरकांड का पाठ विशेष रूप से क्यों किया जाता है?
सुंदरकाण्ड के पाठ से प्रसन्न होते हैं हनुमानजी माना जाता है कि सुंदरकाण्ड के पाठ से बजरंग बली की कृपा बहुत ही जल्द प्राप्त हो जाती है। जो लोग नियमित रूप से इसका पाठ करते हैं, उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं। इस काण्ड में हनुमानजी ने अपनी बुद्धि और बल से सीता की खोज की है।
इसी वजह से सुंदरकाण्ड को हनुमानजी की सफलता के लिए याद किया जाता है।सुंदरकांड के पाठ से मिलता है मनोवैज्ञानिक लाभवास्तव में श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है। संपूर्ण श्रीरामचरितमानस भगवान श्रीराम के गुणों और उनके पुरुषार्थ को दर्शाती है।
सुंदरकांड एकमात्र ऐसा अध्याय है जो श्रीराम के भक्त हनुमान की विजय का कांड है। मनोवैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो यह आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला कांड है। सुंदरकांड के पाठ से व्यक्ति को मानसिक शक्ति प्राप्त होती है।
किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए आत्मविश्वास मिलता है।हनुमानजी जो कि वानर थे, वे समुद्र को लांघकर लंका पहुंच गए और वहां सीता की खोज की। लंका को जलाया और सीता का संदेश लेकर श्रीराम के पास लौट आए। यह एक भक्त की जीत का कांड है, जो अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इतना बड़ा चमत्कार कर सकता है।
सुंदरकांड में जीवन की सफलता के महत्वपूर्ण सूत्र भी दिए गए हैं। इसलिए पूरी रामायण में सुंदरकांड को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि यह व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ाता है। इसी वजह से सुंदरकांड का पाठ विशेष रूप से किया जाता है।
सुंदरकांड के पाठ से मिलता है धार्मिक लाभहनुमानजी की पूजा सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली मानी गई है। बजरंग बली बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता हैं। शास्त्रों में इनकी कृपा पाने के कई उपाय बताए गए हैं, इन्हीं उपायों में से एक उपाय सुंदरकांड का पाठ करना है।
सुंदरकांड के पाठ से हनुमानजी के साथ ही श्रीराम की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है। किसी भी प्रकार की परेशानी हो, सुंदरकांड के पाठ से दूर हो जाती है। यह एक श्रेष्ठ और सबसे सरल उपाय है। इसी वजह से काफी लोग सुंदरकांड का पाठ नियमित रूप करते हैं।
[10/10, 10:54] +91 98896 25094: जो अच्छा लगता है उसे गौर से मत देखो,
ऐसा न हो उसमें कोई बुराई निकल आए!
जो बुरा लगता है उसे गौर से देखो..
मुमकिन है कोई अच्छाई नजर आ जाये
🙏🏻🌺जय श्री सीताराम जी 🌺🙏🏻
[10/10, 10:57] +91 98896 25094: कितना आश्चर्यजनक है ना
मनुष्य के शरीर में 70% पानी है,
लेकिन जब कभी चोट लगे
तो खून निकलता है
और
मनुष्य का हृदय खून से बना होने पर भी,
जब हृदय को चोट लगती है
तो आंख से पानी निकलता है..
प्रभू की लीला अपरम्पार है..!!
हे ईश्वर-
आईना साफ किया तो "मैं"
नजर आया,
और "मैं"
को साफ किया तो
'तू' नजर आया !!
[10/10, 11:01] +91 97586 40209: राष्ट्रहित का गला घोंट कर
छेद न करना थाली में।
मिट्टी वाले दीये जलाना
..
अबकी बार दीवाली में।
देश के धन को देश में रखना,
नहीं बहाना नाली में
मिट्टी वाले दीये जलाना
अबकी बार दीवाली में।
बने जो अपनी मिट्टी से,
वो दीये बिके बाजारों में,
छिपी है वैज्ञानिकता
अपने सभी तीज-त्योहारों में।
चायनीज झालर से आकर्षित
कीट पतंगे आते हैं,
जबकि दीये में जलकर
बरसाती कीड़े मर जाते हैं।
कार्तिक और अमावस वाली,
रात न सबकी काली हो।
दीये बनाने वालों की अब
खुशियों भरी दीवाली हो।
अपने देश का पैसा जाए,
अपने भाई की झोली में।
गया जो पैसा दुश्मन देश,
तो लगेगा राइफल की गोली में।
देश की सीमा रहे सुरक्षित
चूक न हो रखवाली में।
मिट्टी वाले दीये जलाना
अबकी बार दीवाली में।
[10/10, 14:18] ओमीश: ।अध्यक्षः 09/10/17
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स्वेच्छाचारस्य वृत्तिर्वै मनुष्याणां हि जीवने।
प्रतिबन्धो नैव स्वीकार्यः अरुचिर्भवति तेन वै।।
भवितुमर्हत्यध्यक्षो विशिष्टा दृष्टिर्यस्य हि वै।
नियन्ता प्रेरकश्चैव हि यो वै अस्ति विचारकः।।
ये सन्ति जनप्रतिनिधयश्चैव तेषां भवति नियन्त्रणम्।
लोकसभायां राज्यसभायामध्यक्षस्य च भूमिका।।
संयोजिता सभा काचिद् यदा वै भवति कुत्रचित्।
नियुक्तो भवति अध्यक्षो दिशानिर्देशनाय च।।
संस्थानां हि कार्याणि प्रशंसनीयानि तदा हि वै।
निस्पृह उदारचेताअध्यक्षो भवति यदा च वै।।
डा गदाधर त्रिपाठी
[10/10, 20:47] हरिमोहन: पाण्डव पाँच भाई थे जिनके नाम हैं -
1. युधिष्ठिर 2. भीम 3. अर्जुन
4. नकुल। 5. सहदेव
( इन पांचों के अलावा , महाबली कर्ण भी कुंती के ही पुत्र थे , परन्तु उनकी गिनती पांडवों में नहीं की जाती है )
यहाँ ध्यान रखें कि… पाण्डु के उपरोक्त पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन
की माता कुन्ती थीं ……तथा , नकुल और सहदेव की माता माद्री थी ।
वहीँ …. धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र…..
कौरव कहलाए जिनके नाम हैं -
1. दुर्योधन 2. दुःशासन 3. दुःसह
4. दुःशल 5. जलसंघ 6. सम
7. सह 8. विंद 9. अनुविंद
10. दुर्धर्ष 11. सुबाहु। 12. दुषप्रधर्षण
13. दुर्मर्षण। 14. दुर्मुख 15. दुष्कर्ण
16. विकर्ण 17. शल 18. सत्वान
19. सुलोचन 20. चित्र 21. उपचित्र
22. चित्राक्ष 23. चारुचित्र 24. शरासन
25. दुर्मद। 26. दुर्विगाह 27. विवित्सु
28. विकटानन्द 29. ऊर्णनाभ 30. सुनाभ
31. नन्द। 32. उपनन्द 33. चित्रबाण
34. चित्रवर्मा 35. सुवर्मा 36. दुर्विमोचन
37. अयोबाहु 38. महाबाहु 39. चित्रांग 40. चित्रकुण्डल41. भीमवेग 42. भीमबल
43. बालाकि 44. बलवर्धन 45. उग्रायुध
46. सुषेण 47. कुण्डधर 48. महोदर
49. चित्रायुध 50. निषंगी 51. पाशी
52. वृन्दारक 53. दृढ़वर्मा 54. दृढ़क्षत्र
55. सोमकीर्ति 56. अनूदर 57. दढ़संघ 58. जरासंघ 59. सत्यसंघ 60. सद्सुवाक
61. उग्रश्रवा 62. उग्रसेन 63. सेनानी
64. दुष्पराजय 65. अपराजित
66. कुण्डशायी 67. विशालाक्ष
68. दुराधर 69. दृढ़हस्त 70. सुहस्त
71. वातवेग 72. सुवर्च 73. आदित्यकेतु
74. बह्वाशी 75. नागदत्त 76. उग्रशायी
77. कवचि 78. क्रथन। 79. कुण्डी
80. भीमविक्र 81. धनुर्धर 82. वीरबाहु
83. अलोलुप 84. अभय 85. दृढ़कर्मा
86. दृढ़रथाश्रय 87. अनाधृष्य
88. कुण्डभेदी। 89. विरवि
90. चित्रकुण्डल 91. प्रधम
92. अमाप्रमाथि 93. दीर्घरोमा
94. सुवीर्यवान 95. दीर्घबाहु
96. सुजात। 97. कनकध्वज
98. कुण्डाशी 99. विरज
100. युयुत्सु
( इन 100 भाइयों के अलावा कौरवों की एक बहनभी थी… जिसका नाम""दुशाला""था,
जिसका विवाह"जयद्रथ"सेहुआ था )
"श्री मद्-भगवत गीता"के बारे में-
ॐ . किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।
ॐ . कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।
ॐ. भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।
ॐ. कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी
ॐ. कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।
ॐ. कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में
ॐ. क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।
ॐ. कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय
ॐ. कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक
ॐ. गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।
ॐ. गीता को अर्जुन के अलावा
और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने
ॐ. अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को
ॐ. गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में
ॐ. गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।
ॐ. गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद
ॐ. गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना
ॐ. गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण जी ने- 574
अर्जुन ने- 85
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.
अपनी युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे। धन्यवाद
अधूरा ज्ञान खतरना होता है।
33 करोड नहीँ 33 कोटी देवी देवता हैँ हिँदू
धर्म मेँ।
कोटि = प्रकार।
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते है,
कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता।
हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं...
कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मे :-
12 प्रकार हैँ
आदित्य , धाता, मित, आर्यमा,
शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष,
सविता, तवास्था, और विष्णु...!
8 प्रकार हे :-
वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।
11 प्रकार है :-
रुद्र: ,हर,बहुरुप, त्रयँबक,
अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,
रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।
एवँ
दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार।
कुल :- 12+8+11+2=33 कोटी
अगर कभी भगवान् के आगे हाथ जोड़ा है
तो इस जानकारी को अधिक से अधिक
लोगो तक पहुचाएं। ।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
१ हिन्दु हाेने के नाते जानना ज़रूरी है
This is very good information for all of us ... जय श्रीकृष्ण ...
अब आपकी बारी है कि इस जानकारी को आगे बढ़ाएँ ......
अपनी भारत की संस्कृति
को पहचाने.
ज्यादा से ज्यादा
लोगो तक पहुचाये.
खासकर अपने बच्चो को बताए
क्योकि ये बात उन्हें कोई नहीं बताएगा...
📜😇 दो पक्ष-
कृष्ण पक्ष ,
शुक्ल पक्ष !
📜😇 तीन ऋण -
देव ऋण ,
पितृ ऋण ,
ऋषि ऋण !
📜😇 चार युग -
सतयुग ,
त्रेतायुग ,
द्वापरयुग ,
कलियुग !
📜😇 चार धाम -
द्वारिका ,
बद्रीनाथ ,
जगन्नाथ पुरी ,
रामेश्वरम धाम !
📜😇 चारपीठ -
शारदा पीठ ( द्वारिका )
ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम )
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) ,
शृंगेरीपीठ !
📜😇 चार वेद-
ऋग्वेद ,
अथर्वेद ,
यजुर्वेद ,
सामवेद !
📜😇 चार आश्रम -
ब्रह्मचर्य ,
गृहस्थ ,
वानप्रस्थ ,
संन्यास !
📜😇 चार अंतःकरण -
मन ,
बुद्धि ,
चित्त ,
अहंकार !
📜😇 पञ्च गव्य -
गाय का घी ,
दूध ,
दही ,
गोमूत्र ,
गोबर !
📜😇 पञ्च देव -
गणेश ,
विष्णु ,
शिव ,
देवी ,
सूर्य !
📜😇 पंच तत्त्व -
पृथ्वी ,
जल ,
अग्नि ,
वायु ,
आकाश !
📜😇 छह दर्शन -
वैशेषिक ,
न्याय ,
सांख्य ,
योग ,
पूर्व मिसांसा ,
दक्षिण मिसांसा !
📜😇 सप्त ऋषि -
विश्वामित्र ,
जमदाग्नि ,
भरद्वाज ,
गौतम ,
अत्री ,
वशिष्ठ और कश्यप!
📜😇 सप्त पुरी -
अयोध्या पुरी ,
मथुरा पुरी ,
माया पुरी ( हरिद्वार ) ,
काशी ,
कांची
( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,
अवंतिका और
द्वारिका पुरी !
📜😊 आठ योग -
यम ,
नियम ,
आसन ,
प्राणायाम ,
प्रत्याहार ,
धारणा ,
ध्यान एवं
समािध !
📜😇 आठ लक्ष्मी -
आग्घ ,
विद्या ,
सौभाग्य ,
अमृत ,
काम ,
सत्य ,
भोग ,एवं
योग लक्ष्मी !
📜😇 नव दुर्गा --
शैल पुत्री ,
ब्रह्मचारिणी ,
चंद्रघंटा ,
कुष्मांडा ,
स्कंदमाता ,
कात्यायिनी ,
कालरात्रि ,
महागौरी एवं
सिद्धिदात्री !
📜😇 दस दिशाएं -
पूर्व ,
पश्चिम ,
उत्तर ,
दक्षिण ,
ईशान ,
नैऋत्य ,
वायव्य ,
अग्नि
आकाश एवं
पाताल !
📜😇 मुख्य ११ अवतार -
मत्स्य ,
कच्छप ,
वराह ,
नरसिंह ,
वामन ,
परशुराम ,
श्री राम ,
कृष्ण ,
बलराम ,
बुद्ध ,
एवं कल्कि !
📜😇 बारह मास -
चैत्र ,
वैशाख ,
ज्येष्ठ ,
अषाढ ,
श्रावण ,
भाद्रपद ,
अश्विन ,
कार्तिक ,
मार्गशीर्ष ,
पौष ,
माघ ,
फागुन !
📜😇 बारह राशी -
मेष ,
वृषभ ,
मिथुन ,
कर्क ,
सिंह ,
कन्या ,
तुला ,
वृश्चिक ,
धनु ,
मकर ,
कुंभ ,
कन्या !
📜😇 बारह ज्योतिर्लिंग -
सोमनाथ ,
मल्लिकार्जुन ,
महाकाल ,
ओमकारेश्वर ,
बैजनाथ ,
रामेश्वरम ,
विश्वनाथ ,
त्र्यंबकेश्वर ,
केदारनाथ ,
घुष्नेश्वर ,
भीमाशंकर ,
नागेश्वर !
📜😇 पंद्रह तिथियाँ -
प्रतिपदा ,
द्वितीय ,
तृतीय ,
चतुर्थी ,
पंचमी ,
षष्ठी ,
सप्तमी ,
अष्टमी ,
नवमी ,
दशमी ,
एकादशी ,
द्वादशी ,
त्रयोदशी ,
चतुर्दशी ,
पूर्णिमा ,
अमावास्या !
📜😇 स्मृतियां -
मनु ,
विष्णु ,
अत्री ,
हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,
उशना ,
अंगीरा ,
यम ,
आपस्तम्ब ,
सर्वत ,
कात्यायन ,
ब्रहस्पति ,
पराशर ,
व्यास ,
शांख्य ,
लिखित ,
दक्ष ,
शातातप ,
वशिष्ठ
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