Saturday, September 23, 2017

सितंबर

[9/17, 12:51] ‪+1 (562) 965-8399‬: 🌹ॐ श्री मदनमोहनाय नम: - आज का भगवद चिन्तन ॥
                   17-09-2017
  🌺      जहाँ पर दूसरों के साथ छल-कपट का व्यवहार किया जाता हो। जहाँ पर दूसरों को गिराने की योजनायें बनाई जाती हों और जहाँ पर दूसरों की उन्नति से ईर्ष्या की जाती हो, वह स्थान नरक नहीं तो और क्या है ?
🌺       नरक अर्थात वह वातावरण जिसका निर्माण हमारी दुष्प्रवृत्तियों व हमारे दुर्गुणों द्वारा होता है। स्वर्ग अर्थात वह स्थान जिसका निर्माण हमारी सत्प्रवृत्तियों व हमारे सद आचरण द्वारा किया जाता है।
🌺       मरने के बाद हम कहाँ जायेंगे यह महत्वपूर्ण नहीं है अपितु हम जीते जी कहाँ जा रहे हैं ये महत्वपूर्ण है। मरने के बाद स्वर्ग की प्राप्ति जीवन की उपलब्धि हो ना हो मगर जीते जी स्वर्ग जैसे वातावरण का निर्माण कर लेना अवश्य जीवन की उपलब्धि है।
🌺   अमेरीका डाउनी से स्वामी चंद़प़काशदासजी का जय श्री स्वामिनारायण!             
          🙏कल सोमवार 18-09-17 को तेरस कि श्राद्ध है 🙏
[9/17, 20:17] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *सर्वेभ्यो नमो नमः शुभ संध्या*🌹🙏🌹😊
आप सभी को विश्वकर्मा पूजन की हार्दिक शुभकामनाएं।
आज विश्वकर्मा पूजा है। पुराणों में विश्वकर्मा देव का उल्लेख कई स्थानों पर अत्यंत श्रद्धा के साथ किया गया है।इन्हें आदिशिल्पी कहा जाता है।रावण की स्वर्णलंका और कृष्ण जी की द्वारिका का निर्माण इन्होंने ही किया था। इनके वशंजों ने ही विश्व की विभिन्न हस्तकलाओं जैसे सुनार, लोहार, बढ़ई, मूर्तिकार आदि की कलाओं को जन्म दिया।वास्तु शास्त्र के ज्ञाता इन देव की युगों-युगों से अर्चना की जाती रही है। भारत के पूर्वी प्रदेशों में, बंगाल तथा उत्तर-पूर्व भारत में विशेष तौर से हर वर्ष १७ सितम्बर को सभी अभियांत्रिकी संस्थानों में विश्वकर्मा देव की पूजा होती है। सभी औजारों तथा मशीनों की भी साफ-सफाई करके पूजा की जाती है।यहाँ तक कि साइकिलों, कारों, ट्रकों के मालिक अपने वाहनों को अच्छी तरह से स्वच्छ करके उनकी पूजा करते हैं। बदलते हुए समय के साथ उत्सवों का रूप बदल जाता है, वे अपने शुद्ध रूप में नहीं रह जाते, फिर भी उत्सव रोजमर्रा के जीवन में एक नया उत्साह भर देते हैं।
*जय श्री राधे*✍
[9/17, 21:46] ‪+91 98294 24183‬: 🙏🏻🕉🕉🕉🕉🕉🕉🙏🏻$अमित रुप प्रकटे तहिँ काला$
💐💐💐💐💐💐💐💐
प्रभु लंका-विजय के पश्चात अयोध्या पधारे । स्वागत के लिए सारा जनसमूह उमड़ पड़ा । समाज में भी यह दृश्य दिखाई देता है । कोई विशिष्ट व्यक्ति आता है तो भीड़ उमड़ पड़ती है । पर उसमें से कुछ व्यक्ति ही निकट आ पाते हैं । कुछ लोग दूर से फूल बरसा देते हैं, जय-जयकार कर देते हैं पर अधिकांश लोगों को दूर से ही देखकर संतोष कर लेना पड़ता है । अब जिसको सामीप्य मिलता है उसे थोड़ा गर्व-सा होता है और दूर रहने वाले के मन में उलाहना का भाव आ जाता है । पर ईश्वर से मिलने में यह दृश्य सर्वथा भिन्न रूप में सामने आता है । भगवान राम ने सभी💐💐 अयोध्यावासियों के समक्ष अपने आपको अमित रूप में प्रगट कर दिया । जितने अयोध्यावासी थे प्रभु ने उतने ही रूप बना लिए । और सबको पूरे-पूरे ही मिले ।ब्रह्म पूर्ण है जिसे प्राप्त होते हे पूरे ही मिलते हैँ जो बड़े थे उनके चरणों में प्रणाम किया, छोटों के सिर पर हाथ रखा और मित्रों को ह्रदय से लगा लिया । प्रत्येक अयोध्यावासी यही सोचकर आनन्दित हो रहा है कि प्रभु मुझसे कितना प्रेम करते हैं कि लंका से लौटकर सीधे मुझसे ही मिले । सभी व्यक्ति प्रभु-प्रेम में इतने निमग्न हो गए कि अगल-बगल देखने की उन्हें सुध ही नहीं रही । यह अच्छा ही हुआ अन्यथा वहाँ जो दृश्य था उसे देखकर वे संकट में पड़ जाते । सचमुच प्रभु ही पूर्ण प्रेम दे सकते हैं
🙏🏻पारस के स्पर्स से
            कनक भई तलवार ।।
फिर भी तीनो न गये
            धार मार और वार ।।🙏🏻
प्रभू प्रेम पारस है लेकिन उन्हे पाकर भक्त स्वँय पारस बन जाता है अतः सेवनीय भी प्रभू स्मरणीय भी वही है
खरदूषण वध मे सभी राक्षसोँ को अपना स्वरूप बना दिया।
श्री रामजी से पूछा आपने सबको अपना स्वरूप क्योँ बनाया ।तो हँसकर.कहा ये मेरे स्वरुप पर ही तो मोहित हो रहे थे ।
।बेर भाव सुमरत मोहि निशचर।
प्रभू के कृपा शास्त्र मे यह भाव है अन्य शास्त्रोँ मे यह भाव नही मिलता है ।।
💐जासु नाम भव भेषज
             हरण घोर त्रय शूल 💐
💐सो कृपाल मो तोहि पर
              रहहिँ सदाँ अनुकूल💐
पँ हरभजन शर्मा कोटा राज०
💐💐💐💐💐💐💐💐
[9/17, 21:47] गदाधर जी: प्रातःकालः                              17/9/17
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सूर्योदयात् प्राग्वै उषा आयाति मण्डले।
पशवः पक्षिणश्चैव निद्रां त्यक्त्वा चरन्ति हि।।
कालो$यममृतकालः भ्रमणाय गच्छन्ति मानवः।
स्वस्था वसन्ति ते सर्वे वायुसंस्पर्शनेन च।।
स्नानं ध्यानं भवति ईश्वराराधनं तथैव च।
मन्दिरेषु क्रियते पूजा पूजकैः समये शुभे।।
कुर्वन्ति सन्ध्यावन्दनञ्चैव विद्वान्सः पण्डितास्तथा।
सूर्याय जलाञ्जलिं दत्वा कार्यारम्भं कुर्वन्ति वै।।
छात्राः प्रातरुत्थाय अध्ययनं कुर्वन्ति सर्वदा।
ज्ञानं पुष्टं भवति तेषां हि सफला निजजीवने।।
सर्वे जीवाः क्रियाशीलाः प्रातःकाले भवन्ति च।
देवेषु प्रेरको देवः सूर्यः कथितो$नेनैव हि।।
                         डा गदाधर त्रिपाठी
[9/18, 05:52] ‪+91 73093 41009‬: *🌞विचारों का दोहन🌞*

एक एक करके दिन प्रतिदिन बढ़ता गया
उसकी रफ्तार न कम हुई।
मैं कुछ नम जरूर पड़ गया। कई बार विचारों के दोहन ने डूबता तो सोचता था कि मुझे यह मानव देह मिली तो प्रयोजन क्या था क्या कोई विशेष लक्ष्य निर्धारित था मेरे लिए या फिर कोई विशेष अनुसंधान हेतु जन्मा शिवेंद्र।इसी ओहा-पोह में रातें गुजर जाती दिन गुजर जाते।
फिर समझ आया जीवन का वास्तविक लक्ष्य वो लक्ष्य था कर्तव्यनिष्ठ होना अपने कर्तव्य को जानना,अपने किरदार को समझना,गीता में भगवान ने पूरे 18 अध्यायों में जो व्याख्या दी उसका सिर्फ एक ही लक्ष्य था उसे कर्तव्यबोध कराना। उसके सामरिक कौशल को जगाना।
उसमे सामरिक नीतियों को भरना उसे तत्व बोध कराया कि हे अर्जुन तू कर्तव्यनिष्ठ बन यही तेरा लक्ष्य है।
आज भगवत कृपा से अपनी उम्र के 8035वां दिन पूरा हो गया। कोटि नमन जननी को और पूज्यपाद पिताश्री को जिन्होंने मुझे इस मनुष्य देह का अधिकार दिया।
कोटि बार पद वंदन उन गुरुजनों का जिन्होंने मुझे इस श्रेष्ठता पर पहुंचाया मुझमे वो योग्यता भरी जिसके प्रभाव से मैंने देश देशांतर में अपना प्रभुत्व स्थापित किया। कोई अस्तित्व न था शिवेंद्र का इस छोटे से ग्रह पर ये गुरुजनों का शुभाशीष की मुझ मिट्टी के टुकड़े को भी स्वर्ण सम कर दिया
चिंतन करता हूँ तो चक्षु के भीतर कुछ गीलापन महसूस होता है।
उनको कोटिशः धन्यवाद मेरे उन मित्रों का जिन्होंने मेरे हर सम विषम परिस्थिति में मेरा साथ दिया,मेरे अंदर विजातीय तत्वों से लड़ने का अदम्य साहस दिया।
आप सभी से मेरी करजोड़ के विनती है कि मुझे शुभाशीष प्रदान करें की मेरे जीवन मे मुझे कभी असन्तोष न हो। जल पीकर ही जीवन गुजर जाए पर उसमे भी सन्तुष्टि बनी रहे।।

विद्वतचरणानुरागी
स्वामी शिवेंद्र
+917309341009
[9/18, 10:05] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: नारायण!अति सुन्दर जानकारी के लिए साधुवाद।वाकई हम सब के जीवन में वृक्षों​ की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।वृक्ष  जड़ नहीं होते अपितु उनमें जीवन होता है। वे चेतन जीव की तरह सर्दी-गर्मी के प्रति संवेदनशील रहते हैं, उन्हें भी हर्ष और शोक होता है। वे मूल से पानी पीते हैं, उन्हें भी रोग होता है इत्यादि तथ्य हजारों वर्षों से हमारे यहां ज्ञात थे तथा अनेक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।महाभारत के शांतिपर्व के १८४वें अध्याय में महर्षि भारद्वाज व भृगु का संवाद है। उसमें महर्षि भारद्वाज पूछते हैं कि वृक्ष चूंकि न देखते हैं, न सुनते हैं, न गन्ध व रस का अनुभव करते हैं, न ही उन्हें स्पर्श का ज्ञान होता है, फिर वे पंच भौतिक व चेतन कैसे हैं? इसका उत्तर देते हुए महर्षि भृगु कहते हैं- हे मुने, यद्यपि वृक्ष ठोस जान पड़ते हैं तो भी उनमें जीवन है, इसमें संशय नहीं है, इसी से इनमें नित्य प्रति फल-फूल आदि की उत्पत्ति संभव है।वृक्षों में जो ऊष्मा या गर्मी है, उसी से उनके पत्ते, छाल, फल, फूल कुम्हलाते हैं, मुरझाकर झड़ जाते हैं। इससे उनमें स्पर्श ज्ञान का होना भी सिद्ध है।
सुखदु:खयोश्च ग्रहणाच्छिन्नस्य च विरोहणात्‌।जीवं पश्यामि वृक्षाणां चैतन्यं न विद्यते॥ 
वृक्ष कट जाने पर उनमें नया अंकुर उत्पन्न हो जाता है और वे सुख, दु:ख को ग्रहण करते हैं। इससे मैं देखता हूं कि कि वृक्षों में भी जीवन है। वे अचेतन नहीं हैं।
🌹🙏🌹😊
[9/18, 10:41] व्यासup u p: *राम राम क्यों कहा जाता है?*👌
क्या कभी सोचा है कि बहुत से लोग जब एक दूसरे से मिलते हैं तो आपस में एक दूसरे को दो बार ही *“राम राम"* क्यों बोलते हैं ?
*एक बार या तीन बार क्यों नही बोलते ?*
दो बार *“राम राम"* बोलने के पीछे बड़ा गूढ़ रहस्य है
क्योंकि यह आदि काल से ही चला आ रहा है...
हिन्दी की शब्दावली में *‘र'* सत्ताइसवां शब्द है,
*‘आ’* की मात्रा दूसरा और *‘म'* पच्चीसवां शब्द है...
अब तीनो अंको का योग करें तो
27 + 2 + 25 = *54*,
*अर्थात एक “राम”* का योग 54 हुआ-
*इसी प्रकार दो “राम राम”* का कुल *योग 108* होगा।
हम जब कोई जाप करते हैं तो 108 मनके की माला गिनकर करते हैं।
सिर्फ *'राम राम'* कह देने से ही पूरी *माला का जाप* हो जाता है।आपको सभी को. 

              *राम राम*
[9/18, 11:08] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: संस्कृत विद्यालयों में "प्रतिपदा" में पाठ नहीं किया जाता, क्यों?

सा प्रकृत्यैव तन्वङ्गी तद्वियोगाच्च कर्षिता।
प्रतिपदपाठशीलस्य
विद्येव तानुतां गता।
-वाल्मीकीय रामायणम्

मुद्रिका देकर लौटे हनुमान जी से प्रभु राम ने पूछा कि मेरी सीता कैसी हैं?
हनुमान जी का उत्तर--
"हे प्रभो! माँ तो पहले से ही दुबली पतली थीं, आपके वियोग के कारण अत्यन्त दुबली पतली हो गयी हैं, जैसे प्रतिपदा के दिन पाठ करने वालों की विद्या कमजोर हो जाती है।"
हनुमानजी के गुरु भगवान सूर्यदेव ने अवश्य ही कोई गम्भीर रहस्य बताये होंगे।
डा०राजेश्वराचार्य मिश्र✍
[9/18, 21:09] ‪+91 98294 24183‬: 🙏🏻🕉🕉🕉🕉🕉🕉🙏
        अहँ / मम / जीव
एक विद्वान प्राध्यापक ने अपने विचार व्यक्त किए हैं । तुलसीदासजी पर उन्होंने जो ग्रन्थ लिखा है उसमें वे कहते हैं कि तुलसीदास की पत्नी बड़ी कर्कशा स्वभाव की थी इसीलिए तुलसीदासजी के जीवन में उनके प्रति विरोध की भावना उत्पन्न हो गई थी । और इसीलिए उनके ग्रन्थों में भी स्त्रियों की निन्दा और विरोध की जो बात दिखाई देती है, इसके मूल में उनकी पत्नी का स्वभाव ही एकमात्र कारण है । पर ऐसा कहना तो गोस्वामीजी के साथ न्याय नहीं है । ऐसी बात तो गोस्वामीजी को नहीं समझ पाने के कारण ही कही जा सकती है । 💐गोस्वामीजी न तो नारी-निन्दक हैं और न ही उन्हें नारी जाति के प्रति कोई विरोध ही है  उनके ग्रन्थों में जहाँ एक ओर नारी-निन्दा के शब्द मिलेंगे, वहीं दूसरी ओर नारी के संबंध में ऊँचे से ऊँचे भावपूर्ण शब्द भी मिलेंगे  सत्य तो यह है कि पुरुष हो अथवा नारी हो, दोनों में गुण और दोष दोनों ही विद्यमान होते हैं💐
गुण और दोष के विषय में मानस में बड़ा ही तथ्यपूर्ण विश्लेषण किया गया है । पुरुष की समस्या है उसका '💐 मैं' और नारी की समस्या है उसकी 'ममता'💐 पुरुष शब्द से ही ऐसा ध्वनित होता है कि जैसे वह पुरुषार्थ और शक्ति से संबद्ध है । नारी 'गर्भ' में सन्तान को रखती है, जन्म देती है, उसके लिए अनेक कष्ट उठाती है, उसका लालन-पालन करती है, अतः स्वाभाविक रूप से उसके जीवन में ममता बहुत है । पर यदि हम 'अहं' और 'मम' इन दोनों का उपयोग सही अर्थों में करें तो ये समस्या के स्थान पर  पूर्ण कल्याणकारी भी हो सकते हैं ।
यदि आपकी महिमा के शब्द कोई और सुनावे तब तो उसकी कोई सार्थकता भी है, पर आप ही अपने गुणों के गीत गाने लगें, अपने आपको श्रेष्ठ बताकर अपना अभिमान बढ़ाने लगें, तब तो अपने धर्म और कर्तव्य को भुलाकर स्वयं अपना ही तिरस्कार कर दिया । ब्राह्मणत्व को लेकर यदि व्यक्ति में विचार का उदय हो, अपने धर्म की दिशा में चलकर दूसरों को ज्ञान दें, ज्ञान का वितरण करें, इस रूप में ब्राह्मणत्व का अभिमान सार्थक हो सकता है । अब चाहे ब्राह्मण हो या कोई भी वर्ण हो, यदि उसका अभिमान हमें बुराई से बचाता है और अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देता है तो वह अभिमान भी अच्छा है । इसी प्रकार से बालक के गर्भ-धारण से लेकर उसके लालन-पालन में तपस्या, त्याग और सहनशीलता की वृत्ति ही मूल में विद्यमान है । अब यदि यह सद्वृत्ति किसी एक व्यक्ति या अपने ही पुत्र-पुत्रियों से 'ममता' बनकर जुड़ी रह जाय, तब तो वह संसार में भेद और संघर्ष की सृष्टि करेगी । पर यदि यह वृत्ति अपने और पराए में भेद न कर, सबमें अपने वात्सल्य-वितरण करने की प्रेरणा दे तो यह ममता भी सार्थक हो जाएगी 
वास्तव मे जीव के लियै अहमता
व ममता&&रूपी माया && से पार पाना बाहर निकलना कठिन है इनका उपयोग परिवर्तन करना
हितकर हे।।
नालोँ के पानी को नदियों मै डालकर  गँधगी करने से उसे मोडकर खेती के उपयोग मे लेना हितकर हे 💐💐💐💐💐
छोटा मच्छर भी अनन्ताकाश मे उडे व गरुड भी उडै जो शक्तिशाली है 💐💐💐
दोनो का एक ही उत्तर हैगा की आकाश अनन्त है अपार है
पँ हरभजनज शर्मा कोटा राज०
💐💐💐💐💐💐💐💐
[9/18, 22:15] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *सर्वेभ्यो नमो नमः*🌹🙏🌹😊
*बड़े लोगों की छोटी सोंच*
तेरह साल का रमेश रंगमंच के हॉल की सफाई किया करता था।वहाँ रोज़ कोई ना कोई साहित्य से जुड़ा बड़े नाम का व्यक्ति आता ही रहता था।
इसी के चलते रमेश के दिमाग में नित-नई कहानी-कविता जन्म लेती ही रहती थी तो वो सब अपनी डायरी में लिखता रहता था।उसने एक दो बार कोशिश की कि नाटक रचने वाले उसकी कहानी भी पढ़ें पर,हर किसी ने उसे छोटा समझ कर नजरंदाज कर दिया।वो मायूस होकर फिर से अपने काम में लग जाता था।पर उसे पक्का विश्वास था कि कामयाबी का एक दिन उसके हिस्से में भी लिखा होगा जो सिर्फ उसके लिए होगा।
ऐसे ही दो साल और बीत गए।एक दिन उस रंगमंच की रौनक देख कर वो समझ गया की आज कोई बड़ी हस्ती यहाँ आने वाली है।सामने लगे बैनर पर मशहूर कथाकारा लेखिका ऋतु जी का नाम देख कर वो बेहद खुश हो गया।भले ही वो उन्हे नहीं जानता था पर वो भी लिखती हैं ये ही बात उसके लिए बहुत बड़ी थी।सही वक़्त पर कार्यक्रम शुरू हो गया वहीं ऋतु जी ने अपने भाषण में नए बच्चों को लेखन सीखने के लिए मुफ्त की शिक्षा देने की बात कही, जिसके चलते उन्होने अपने नाम के पर्चे भी पूरे हॉल में बँटवा दिए और वही पर्चा रमेश को जब मिला तो उसने भी उसे संभाल कर रख लिया।
   और एक दिन इसी के चलते वो ऋतु जी के घर जा पहुंचा और अपनी लिखी कहानियाँ उनके चरणों में रख दी और कहा ‘’मैंने कुछ कहानियां इस डायरी में लिखी हैं,अब इस से आगे मैं आपसे सीखना चाहता हूँ। रमेश से डायरी लेते हुए वो बोली ''देखो बच्चे ! मैं इस डायरी को रख रही हूँ आराम से पढ़ कर तुम्हें बताती हूँ। मैं फोन करूंगी, बस तब ही तुम मुझ से मिलने आना।
दिन,महीना और फिर दो महीने बीत गए रमेश को ऋतु जी का कोई फोन नहीं आया। रमेश ने कुछ वक़्त के बाद उनसे संपर्क बनाने की बहुत कोशिश की पर हर बार नाकाम हो गया,तभी उसे किसी से पता चला की ऋतु मैडम जी की एक नई कहानियों की किताब आई है जो बाज़ार में बहुत धूम मचा रही है,उसने वो किताब खरीदी और जैसे जैसे उसने कहानियाँ पढ़ी उसकी समझ में आ गया कि क्यों ऋतु जी उस से मिलने का मन नहीं बना सकी।आज वो समझ गया कि उसके जीवन की अब तक की सारी पूँजी लुट चुकी है।वो जान चुका था कि इन बड़े नाम वालों के भी नकली चहरे होते हैं।
*जय श्री राधे*✍
[9/18, 22:33] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: ॐ श्री गुरुभ्यो नमः।
I वन्दे संस्कृतमातरम् I

सदाचारः

सताम् आचारः सदाचारः कथ्यते ।
सज्जनाः यानि कर्माणि कुर्वन्ति तानी एव अस्माभिः कर्तव्यानि ।
ऋषयश्च वदन्ति यानि अनिन्द्यानि कर्माणि तानि सेवितव्यानि नेतराणि ।

गुरुजनानां सेवा, सरलता सत्यभाषणम्, इन्द्रियनिग्रहः अद्रोहः, अपैशून्यम् आदि गुणानां गणना सदाचारे भवति । सदाचारवान् जनः दीर्घसूत्री न भवति।

स हि अतन्द्रितः स्वकर्मानुष्ठानम् समयेन करोति । सदा मधुरं भाषणं करोति । स हि न कस्मैचिदपि द्रुह्यते । पुरा भारते सर्वेजनाः सदाचारवन्तः आसन् । इदानीं रामचन्द्रस्य मर्यादापुरुषोत्तमस्य जीवनं सदाचारस्य उत्कृष्टम् उदाहरणम् अस्ति । अस्माभिः तस्यैव जीवनम् अनुकरणीयम् ।
*जयतु संस्कृतम्*✍
[9/18, 22:53] ‪+1 (562) 965-8399‬: 🌱ॐ श्री सहजानंदाय नम: - आज का भगवद चिन्तन ॥
                18-09-2017
  🌻      जिस प्रकार आप किसी वस्तु को लेने बाजार जाते हो तो उसका एक उचित मूल्य अदा करने पर ही उसे प्राप्त करते हो। इसी प्रकार जीवन में भी हम जो प्राप्त करते हैं सबका कुछ ना कुछ मूल्य चुकाना ही पड़ता है।
  🌻       श्री सहजानंद स्वामि कहा करते थे कि महान त्याग के बिना महान लक्ष्य को पाना संभव नहीं। अगर आपके जीवन का लक्ष्य महान है तो यह ख्याल तो भूल जाओ कि  बिना त्याग और समर्पण के उसे प्राप्त कर लेंगे।
🌻         बड़ा लक्ष्य बड़े त्याग के बिना नहीं मिलता। कई प्रहार सहने के बाद पत्थर के भीतर छिपा हुआ ईश्वर का रूप प्रगट होता है। अगर चोटी तक पहुँचना है तो रास्ते के कंकड़ पत्थरों से होने वाले कष्ट को भूलना ही होगा।
     
🌻    अमेरीका डाउनी से स्वामी चंद़प़काशदासजी का जय श्री स्वामिनारायण!
           🙏कल मंगलवार 19-09-2017 चौदस श्राद्ध है। 12:00 बजे के अमावस्या का श्राद्ध है ।🙏
[9/18, 22:55] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: जंगल के सभी जानवर चिन्ता ग्रस्त अवस्था में एक दिन सभा बुलाई जिसमें कुछ बहरी पशु भी सम्मिलित हुए।
जंगली जानवरों की बैठक
शाम का समय .......
सारे जानवर एक सामूहिक बैठक के लिए जंगल में एकत्र। बैठक के मुख्य मुद्दे👇
- लगातार घटते जंगल
- लगातार घटते नदी स्तर और सूखते जल स्रोत
- बढ़ती चिलचिलाती गर्मी
- पशुओं पर हो रहे अत्याचार
- लुप्त होने के कगार पर खड़ी कई प्रजाति
इसमें शहर और महानगरों से आये कुछ पशुओं ने भी अपना पक्ष रखा और बताया कि शहर के हालात और भी ज्यादा खराब हैं। जानवरों को बहुत ज्यादा परेशानी हो रही है।
जब सारे जानवरों की बैठक एक निष्कर्ष तक पहुँची तो रिपोर्ट कुछ इस प्रकार थी 👇
१-:इंसान पागल हो गया है। कालिदास जी तो सुधर गये थे क्योंकि उनमें ज्ञान प्रविष्ट हो चुका था परंतु मानव गज़ब का अंधादास बन गया है और उसी शाखा को रोज काट रहा है जिस पर उसका पूरा मानव समाज बैठा है।
२-:मानव में राक्षसी पृव्रित्ति दिनों दिन बढ़ रही है। संस्कार विहीन होकर पूरा समाज कबाड़ हो चुका है।
३-:ये जानवरों को दोष देते हैं लेकिन इनके कर्म देखो तो हमें शर्म आती है। इनके समाज में छोटे-२अबोध बच्चे सुरक्षित नहीं हैं वो हवस का शिकार बनते हैं। ३ महीने से लेके....आगे तक ...इनके कर्मो पर छिछि.... हमें शर्म आती है बोलते हुवे भी।
४-:ये इतने गिर गए हैं कि बच्चों का गला काट रहे हैं खुलेआम। कभी रुपये के लिए कभी राजनीतिवश और कभी और घिनौने कारणों से।
५-: मानसिक बीमारी इतनी है कि समलैंगिक विवाह पर उतर आए हैं ये। छिछि.... हमें शर्म आती है बोलते हुवे भी।
६-:एक नंबर के निकम्मे हो गए ये, पैदा कुछ नही करना चाहते, और वैसे चाहिये इनको सब कुछ।पालेंगे कुत्ता लेकिन दूध सबसे ज्यादा चाहिये। गाय को कचड़ा खिलाते हैं ये कचड़ा।
७-:सब अपनी अपनी तरफ से समाज को जहर खिला रहे हैं। सब्जी, चावल, आटा, दाल, फल, मिठाई आदि सबमें जहर।
८-:कुल मिला के ये लोग हमारे लिए तो काल बन ही गए हैं। जिस प्रकार ये हमें काटते हैं, ये भी खुद भी वैसे ही कट रहे हैं। जो जैसा करता है वैसा ही भरता है। ये ऐसे विध्वंसक हथियार बना बैठे हैं कि अब मरे या तब मरे।
९-:इनके तथाकथित असंतों के कर्म देखो, छिछि.... हमें शर्म आती है बोलते हुवे भी।
१०-: इनसे कोई उम्मीद रखना हमारी बेवकूफी होगी अतः समय आ गया है जब हमें इनपर जल्दी धावा बोलना पड़ेगा।
११-:इनकी भाषा देखो, सामाजिक व्यवहार देखो, इनकी लियाकत और संस्कार खुद चीख चीख के इनके महा असभ्य होने का दावा करते हैं।
१२-:सब घूस पर टिकी संस्कृति है इनकी। वेतन के अलावा जब तक इनको ऊपर का कुछ ना मिले तब तक ये नीची हरकत पर ही रहते हैं।
१३-:इनके यहां न्याय... बस पूछो मत। सारे चोर बैमान मजे ले रहे हें। चौपट व्यवस्था है। आज तक ये लोग मिलके पता नहीं लगा पाये वो हिरण के बारे में।🤔
१४-: ये दोपाया जानवर धोखे से हमें मार देते हैं, इन🕺के पुचकारे में ना आये।
१५-:अपने माता पिता को, पत्नी को जरूरत के वक़्त छोड़ दे रहे हैं ये। पूरे स्वार्थ के पुतले हैं ये।
१६-:इसीलिए आज मर भी खुद रहे हैं ये लोग। भुगत रहे हैं कर्मों को। इनसे लाख गुना तो हमारे जंगल हैं जहां कभी कोई उपरोक्त घृणित घटना नही हुई।
१७-:कुछ अच्छे लोग हैं जिनकी वजह से अभी तक ये टीके हैं वरना ये अकर्मण्य लोग आपस में भी एक दूसरे को कब खाना शुरू कर दें पता नहीं।
इसीलिये दुष्परिणाम के रूप में आजकल कभी तूफान, कभी बारिश, कभी सैलाब, कभी सूखा, कभी बादल फटना, कभी आग, कभी रोड दुर्घटना, कभी गम्भीर बीमारी, कभी संक्रमित रोग, कभी सुनामी आदि आदि ये सब इन लोगों की दुखद अकाल मृत्यु का कारण बन रहे हैं।
नहीं सुधरे तो इनका विनाश निश्चित है।निश्चित है और निश्चित है।
"यही मनुज पृव्रित्त है।
*प्रो०-तारा चन्द्र जी*✍
[9/19, 07:24] ‪+91 70603 15143‬: दग्धं दग्धं त्यजति न पुनः काञ्चनं कान्तिवर्णं।
छिन्नं छिन्नं त्यजति न पुनः स्वादुतामिक्षुदण्डम्।
धृष्टं धृष्टं त्यजति न पुनश्चन्दनं चारुगन्धं।
प्राणान्तेऽपि प्रकृति विकृतिर्नायते नोत्तमानाम्।।

अर्थात्- बार बार आग में जलाने पर भी सोना अपनी चमक और रंग नहीं छोड़ता है, बार बार काटे जाने पर भी इक्षुदण्ड (गन्ना) अपनी मिठास नहीं छोड़ता है। चन्दन भी बार बार घिसे जाने पर भी अपनी सुगन्ध नहीं छोड़ता है। इसी प्रकार महान व्यक्ति अपने आचरण और स्वभाव में विकृति (गिरावट) नहीं आने देते, चाहे उनके प्राण ही क्यों न चले जायें।

🙏🌺🌻💐 *radhe radhe ji* 💐🌻🌺🙏
[9/19, 19:45] ‪+91 98294 24183‬: 🙏🏻🕉🕉🕉🕉🕉🕉🙏🏻
      --  ;    भक्ति मणि;--
✡गोस्वामीजी से पूछा गया कि
ज्ञान, वैराग्य और भक्ति में श्रेष्ठ कौन है ? उन्होंने कहा - भक्ति श्रेष्ठ है ! - क्यों श्रेष्ठ है ? उन्होंने एक बड़ी सुन्दर आध्यात्मिक व्याख्या करते हुए कहा कि माया और भक्ति दोनों ही नारी वर्ग में हैं, नारियाँ हैं । जब वे भक्ति को नारी कहते हैं, तो क्या उन्हें नारी-निन्दक मानने वाले यह मान लेंगे कि वे भक्ति के निन्दक हैं । वे कहते हैं कि ज्ञान और वैराग्य पुरुष होने के कारण माया के प्रलोभन में फँस सकते हैं, लेकिन भक्ति को प्राप्त कर लेने वाला कभी माया के मोह में नहीं फँस सकता, उस पर माया का रंचमात्र भी कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता भक्ति मार्ग वाले से माया दूर रहती है&?माया खल नर्तकि बिचारी&?
एक ओर तो गोस्वामीजी ममता की निन्दा करते हैं और दूसरी ओर वे यह भी कहते हैं कि 'भगवान राम में ममता बहुत है' । वे कहते हैं कि अयोध्यावासियों पर प्रभु की बड़ी ममता है । पूछा जा सकता है कि ममता निन्दनीय है या प्रशंसनीय है ? इसका उत्तर यही है कि संसार की ममता हमें बाँधती है पर भगवान की ममता से हम बन्धन से छूट जाते हैं और भगवान बन्धन में बँध जाते हैं । ऐसी विलक्षण ममता भगवान से पाकर जीव धन्य हो जाता है । गोस्वामीजी ने इस ममता का अनुभव किया, इसलिए वे कहते हैं कि संसार के ममता के स्थान पर राम से &परोपकार से & ममता जीवन को धन्य बना देती
गोस्वामीजी जब यह कहते हैं कि नारी का सौंदर्य एक दीपशिखा की भाँति है & घर को प्रकाशित तो करती है & यह नारी की निन्दा नहीं है । किस घर में अँधेरे को दूर करने के लिए दिया नहीं जलाया जाता ? क्या 'दिए' के बिना किसी घर का कार्य चल सकता है ? निन्दनीय तो वह पतंगा है जो दीपक से प्रकाश न लेकर, उस पर गिरकर स्वयं जल जाता है और कभी-कभी तो दिए को भी बुझा देता है क्योँ पतँगा अधँ प्रेमी है।
पँ हरभजन शर्मा कोटा.राज०
💐💐💐💐💐💐💐💐
[9/20, 08:34] ‪+91 70603 15143‬: ।।मातृ देवो भव।।

पितुरप्यधिका माता  
गर्भधारणपोषणात्  ।
अतो हि त्रिषु लोकेषु
नास्ति मातृसमो गुरुः॥

नास्ति गङ्गासमं तीर्थं
नास्ति विष्णुसमः प्रभुः।
नास्ति शम्भुसमः पूज्यो
नास्ति मातृसमो गुरुः॥

नास्ति चैकादशीतुल्यं
व्रतं त्रैलोक्यविश्रुतम्।
तपो नाशनात् तुल्यं
नास्ति मातृसमो गुरुः॥

नास्ति भार्यासमं मित्रं
नास्ति पुत्रसमः प्रियः।
नास्ति भगिनीसमा मान्या
नास्ति मातृसमो गुरुः॥

न   जामातृसमं   पात्रं
न दानं कन्यया समम्।
न भ्रातृसदृशो बन्धुः
न च मातृसमो गुरुः ॥

देशो गङ्गान्तिकः श्रेष्ठो
दलेषु       तुलसीदलम्।
वर्णेषु   ब्राह्मणः   श्रेष्ठो
गुरुर्माता      गुरुष्वपि ॥

पुरुषः       पुत्ररूपेण
भार्यामाश्रित्य जायते।
पूर्वभावाश्रया   माता
तेन  सैव  गुरुः  परः|

मातरं   पितरं   चोभौ
दृष्ट्वा पुत्रस्तु धर्मवित्।
प्रणम्य  मातरं  पश्चात्
प्रणमेत्   पितरं  गुरुम् ॥

माता  धरित्री जननी
दयार्द्रहृदया  शिवा ।
देवी    त्रिभुवनश्रेष्ठा
निर्दोषा सर्वदुःखहा॥

आराधनीया         परमा
दया शान्तिः क्षमा धृतिः ।
स्वाहा  स्वधा च गौरी च
पद्मा  च  विजया   जया,

दुःखहन्त्रीति नामानि
मातुरेवैकविंशतिम्   ।
शृणुयाच्छ्रावयेन्मर्त्यः
सर्वदुःखाद् विमुच्यते ॥

दुःखैर्महद्भिः दूनोऽपि
दृष्ट्वा मातरमीश्वरीम्।
यमानन्दं लभेन्मर्त्यः
स  किं  वाचोपपद्यते|

इति ते  कथितं  विप्र
मातृस्तोत्रं महागुणम्।
पराशरमुखात् पूर्वम्
अश्रौषं मातृसंस्तवम्॥

सेवित्वा पितरौ कश्चित्
व्याधः     परमधर्मवित्।
लेभे   सर्वज्ञतां  या  तु
साध्यते  न तपस्विभिः॥

तस्मात्    सर्वप्रयत्नेन
भक्तिः कार्या तु मातरि।
पितर्यपीति   चोक्तं   वै
पित्रा   शक्तिसुतेन  मे ॥
[9/20, 09:44] ‪+91 74159 69132‬: *कर्म करो तो फल मिलता है,*
       *आज नहीं तो कल* *मिलता है।*
*जितना गहरा अधिक हो कुँआ,*
        *उतना मीठा जल मिलता है ।*
*जीवन के हर कठिन प्रश्न का,*
        *जीवन से ही हल मिलता है।*
 
      *""सदा मुस्कुराते रहिये""*
                😃😁😄
               *सुप्रभातम्*
    *आजका दिन मंगलमय रहे*
                👍🙏💐
[9/20, 12:03] ‪+91 70397 80394‬: *नवरात्री पूजा सामग्री*
1 *अगरबत्ती:* अगरबत्ती या धुप दोनों में से एक भी वस्तु पूजन के समय जलाना बेहद आवश्यक होता है | कहते हैं इससे घर में विद्धमान सभी नकरात्मक उर्जा समाप्त हो जाती है |
2) *इलायची और लौंग:* ऐसी मान्यता है की लौंग को यदि लेटी हुई इलायची पर सीधे रखें तो वह शिवलिंग का रूप धारण कर लेती है | लौंग को शिव और इलायची को सती का प्रतीक माना जाता है |

3) *चुनरी :* देवी के श्रृंगार का एक अहम् हिस्सा चुनरी उनके सर को ढकने के लिए इस्तेमाल की जाती है |

4) *नारियल:* नारियल यानि श्रीफल को इन्सान के मुख का प्रतीक माना जाता है | जब हम देवी माँ को नारियल अर्पित करते हैं तो हम उन्हें अपना पूरा अस्तित्व सौंप रहे हैं | इसका एक और अर्थ ऐसे भी लिया जा सकता है  की नारियल जब टूटेगा तो हमारे भी सारे घमंड और त्रिश्नाएं पूर्ण रूप से समाप्त हो जायेंगी |

5) *दही:* पंचामृत का एक अहम् हिस्सा दही को उसकी शुद्धता की वजह से किसी भी पूजा में इस्तेमाल किया जाता है |

6) *दुर्गा सप्तशती पुस्तक:* पुस्तक में लिखित हर अध्याय का विशेष महत्त्व है और उसे तिथि के अनुसार पढ़ना चाहिए |

7) *फूल माला:* अक्सर देवी की पूजा के लिए लाल फूलों का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन उनके अभाव में अन्य पुष्पों को भी चढ़ाया जा सकता है | ऐसा कहते हैं की देवी को फूलों से बेहद प्रेम है और इनकी सुगंध से वह खींची हुई आपके घर में प्रवेश कर लेंगी |

8) *घास:* घास का महत्त्व गणेश जी के पूजन में ज्यादा होता है लेकिन देवी की पूजा में इसका इस्तेमाल इसलिए होता है क्यूंकि देवी को स्थापित करने से पहले गणेश जी का आह्वान करना आवश्यक होता है |

9) *पांच प्रकार के फल :* फलों को हम भोग के तौर पर देवी माँ को अर्पित करते हैं |

10) *गंगा जल :* गंगा स्वयं आसमान से धरती पर उतरी हैं इसलिए उनका महात्मय तो अलग ही है | इसके इलावा उनकी शुद्धता और पवित्रता के कारण उन्हें हर धार्मिक कार्य का हिस्सा बनाया जाता है |

11) *घी:* देवी की पूजन में हवन का विशेष महत्त्व है और घी उस हवन की आग को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है |

12) *हरी चूड़ी*

13) *गुलाल:* गुलाल की सुगंध देवी को अपनी और आकर्षित करती है | इसके इलावा ऐसा भी मानते हैं की गुलाल के कण दिव्य शक्ति की चेतना को जागृत करते हैं |

14) *शहद:* शहद भी पंचामृत का हिस्सा है और ऐसा माना जाता है की शहद की तरह हमारी वाणी में भी सदा मिठास होनी चाहिए |

15) *देवी दुर्गा की मूर्ती:*  दुर्गा माँ की तस्वीर नयी भी खरीदी जा सकती है या फिर आप घर में स्थापित तस्वीर या मूर्ति की भी पूजा कर सकते हैं | प्रयास करे की मूर्ति को नए वस्त्र पहनाएं |
16) *कपूर:*  ऐसा माना जाता है की कपूर के जलने से सारे जीवाणु समाप्त हो जाते हैं |

17) *कुमकुम:* कुमकुम हमारी बुद्धिमानी और भावनाओं का प्रतीक है | कुमकुम चढ़ा हम अपनी बुद्धिमानी का इस्तेमाल कर भावनाओं पर नियंत्रण कर पाएं ऐसी कामना करते हैं |

18) *दूध:* ढूध सम्पन्नता का प्रतिक है | दूध वो पहला आहार होता है जो एक माँ अपने बच्चे को देती है इसी मान्यता के साथ उसे देवी को अर्पित किया जाता है |

19) *लाल धागा:* लाल धागा या कलावा रक्षा सूत्र का काम करता है | इसे बाँधने से त्रिदेव तथा तीनों देवीयों की कृपा प्राप्त होती है |

20) *पान के पत्ते:* पान को हम अक्सर मेहमानन वाज़ी के लिए इस्तेमाल में लाते हैं |इसके इलावा पान में कई स्वास्थ्य गुण भी हैं | पान को चढ़ा हम देवी को न्योता दे एक स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं |

21) *चावल:* पूजा का चावल या अक्षत लम्बी उम्र का प्रतीक होता है | इसको चढ़ा भक्त अपने और अपने परिवार के लिए लम्बी उम्र की कामना करते हैं |

22) *रोली:* रोली या तिलक माथे के बीच में लगाया जाता है | इस स्थान को आज्ञाचक्र भी कहते हैं | ऐसा मानते हैं की ये स्थान वैसे तो निष्क्रिय होता है लेकिन तिलक लगाते ही मन और दिमाग को नियंत्रित करने लगता है |

23) *चन्दन :* चन्दन अपनी सुगंध और शीतलता के लिए प्रसिद्द है | केसर और चन्दन का लेप अक्सर देवी देवताओं के तिलक के लिए इस्तेमाल किया जाता है |

24) *सुपारी:* सुपारी ताकत का प्रतीक होती है | सुपारी और पान का इस्तेमाल कर हम देवी से स्वस्थ लम्बी आयु की कामना करते हैं |

25) *चीनी:* चीनी का इस्तेमाल पंचामृत को मिठास प्रदान करने के लिए किया जाता है | इस प्रकार की मिठास हमारे जीवन में भी बनी रहे ऐसी कामना की जाती है |
आशा है इस लेख को पढने के बाद आपको समझ में आ गया होगा की कौन सी ऐसी वस्तु है जिसका इस्तेमाल आप नवरात्रे पूजन में नहीं कर रहे थे | देवी माँ आपके जीवन में सारी खुशियाँ बनाये रखें इसी कामना के साथ नवरात्रों की शुभकामनाएं |
||जय सनातन ||
[9/20, 14:51] ‪+91 74159 69132‬: भोजन सम्बन्धी कुछ नियम ...

१ - पांच अंगो ( दो हाथ , २ पैर , मुख ) को अच्छी तरह से धो कर ही भोजन करे !

२. गीले पैरों खाने से आयु में वृद्धि होती है !

३. प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है !

४. पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुह करके ही खाना चाहिए !

५. दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है !

६ . पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है !

७. शैय्या पर , हाथ पर रख कर , टूटे फूटे वर्तनो में भोजन नहीं करना चाहिए !

८. मल मूत्र का वेग होने पर , कलह के माहौल में , अधिक शोर में , पीपल ,वट वृक्ष के नीचे , भोजन नहीं करना चाहिए !

९ परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए !

१०. खाने से पूर्व अन्न देवता , अन्नपूर्णा माता की स्तुति कर के ,उनका धन्यवाद देते हुए , तथा सभी भूखो को भोजन प्राप्त हो इस्वर से ऐसी प्राथना करके भोजन करना चाहिए !

११. भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से , मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले ३ रोटिया अलग निकाल कर ( गाय , कुत्ता , और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर
वालो को खिलाये !

१२. इर्षा , भय , क्रोध , लोभ , रोग , दीन भाव , द्वेष भाव , के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है !

१३. आधा खाया हुआ फल , मिठाईया आदि पुनः नहीं खानी चाहिए !

१४. खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए !

१५. भोजन के समय मौन रहे !

१६. भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए !
१७. रात्री में भरपेट न खाए !

१८. गृहस्थ को ३२ ग्रास से ज्यादा न खाना चाहिए !

१९. सबसे पहले मीठा , फिर नमकीन ,अंत में कडुवा खाना चाहिए !

२०. सबसे पहले रस दार , बीच में गरिस्थ , अंत में द्राव्य पदार्थ ग्रहण करे !

२१. थोडा खाने वाले को --आरोग्य ,आयु , बल , सुख, सुन्दर संतान , और सौंदर्य प्राप्त होता है !

२२. जिसने ढिढोरा पीट कर खिलाया हो वहा कभी न खाए !

२३. कुत्ते का छुवा ,रजस्वला स्त्री का परोसा , श्राध का निकाला , बासी , मुह से फूक मरकर ठंडा किया , बाल गिरा हुवा भोजन ,अनादर युक्त , अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करे !

२४. कंजूस का , राजा का , वेश्या के हाथ का , शराब बेचने वाले का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिए !...
[9/20, 16:43] ओमीश Omish Ji: 🙏🏻श्री मात्रे नमः 🙏🏻
अनेक बार कहा , पुनः कहता हूँ ...
शरीर और आत्मा को पृथक पृथक मानकर व्यवहार करें । जैसे कमल पुष्प , कमलनाल और जलाशय
*आत्मा कमल है*, *शरीर कमलनाल है*। इस संसार रूपायित जलाशय में पोषित होकर भी आत्मा रूपी कमल निर्मल तथा *शरीर रूपी कमलनाल*, *संसार रूपी कीच में रहती है*। 

यह नाल  , कमल , जलाशय एक दूसरे से अभिन्न होते हुए भी अपने-अपने स्वभाव में भेद रूप से स्थित रहते हैं।
ठीक ऐसा ही जीवन हो । शरीर जिस भी कर्म को करता है ,  आत्म रूप होकर आप स्वयम के उस कर्म से भी ओर कर्ताभाव से भी निर्लिप्त रहें।
🌹जय माँ ललिताम्बा🌹
[9/21, 00:09] ‪+91 70603 15143‬: *सत्यसनातन वेदव्याकरण पुराणोपनिषद् संरक्षण  व्यकितगत वोर्ड के अध्यक्ष- प.पू.पं.श्री राजेश्वर मिश्र जी के संरक्षण में निर्मित *शास्त्रार्थ चर्चा भवन"* *का उद्घाटन इस पावन पर्व नवरात्र में दिल्ली में होने जा रहा है।*
*यहाँ शास्त्रीय जिज्ञासाओं का पूर्ण शास्त्रीय प्रमाणों से समाधान होगा।*
*यह पावन पुनीत कार्य लोप हो रही सनातन संस्कृती के पुनरूत्थान हेतु अमृतोषधी है तथा भौतिकता में फँसे मनुष्य के कुतर्क की कैची को काटने मे वज्र के समान सिद्ध होगी ।*
*संस्कृतभाषा के प्रत्येक विषयों के विद्वान् यहाँ परस्पर सर्वतोभावेन  शास्त्रचर्चा तथा ज्ञान चर्चा एवं अध्यात्म चर्चा कर सभी*
*जिज्ञासाओं का समाधान करेंगे।शास्त्रीय सिद्धान्तों कर बृहत्कार्य करेंगे।*
*यह अतिशय पुनीत कार्य है* *।और वर्तमान समय मे इसकी महती आवश्यकता भी है तथा अर्थ का अनर्थ करने वाले फेसबुकी पंडितो को #चुनौती भी।*

*इस "शास्त्रार्थ चर्चा भवन" का उद्घाटन हमारे परम पूज्य गुरूदेव राजेश्वराचार्य संस्कृतम्(राजेश्वर मिश्र जी ) #संस्कृतभाषाविकासपरिषद् द्वारा  दिल्ली में किया जायेगा।*
*जिसमें आप सभी के शास्त्रीय प्रश्नों का निराकरण किया जायेगा।*
*विनीत-रोहित कुमार पाराशर (सेवक -शास्त्रार्थ चर्चा भवन)*
[9/21, 23:38] ‪+91 98294 24183‬: 🙏🏻🕉🕉🕉🕉🕉🕉🙏🏻
  💐  काम/ लोभ 💐
गोस्वामीजी ने काम को भी भगवान से जोड़कर अपने आपको धन्य बना दिया । रामायण के अन्त में भगवान ने पूछा - तुलसीदास ! तुमने मेरा  चरित्र लिखा, बोलो क्या चाहते हो ? उन्होंने कहा - प्रभु ! अपने चरणों में प्रेम दीजिए । - कैसा प्रेम चाहते हो - भरत की तरह, लक्ष्मण की तरह, हनुमान की तरह, शत्रुघ्न की तरह, शबरी की तरह अथवा निषाद की तरह ? गोस्वामीजी ने कहा - महाराज ! इन नामों को लेने का अधिकारी मैं नहीं हूँ । इनमें से किसी के समान गुण मुझमें नहीं हैं । - नहीं हैं, तो फिर कैसा प्रेम चाहते हो ? प्रभु ने पूछा । तब गोस्वामीजी बोले - प्रभु !
कामिहि नारि पिआरि जिमि
प्रभू कामी की तरह मुझे आपका स्वरूप  प्रिय लगेँ
श्री राम जी ने कहा ठीक हे और
तो तुलसी बाबा ने विचार किया कि कामी की इतनी क्षमता नही हे वह कुछ काल बाद ऊब जाता हे व कमना शाँत हो जाती है तो फिर बोले प्रभू;--
& लोभिहि प्रिय जिमि दाम &
लोभी को जेसे धन प्रिय होता है वेसे मुझे आप प्रिय लगो
&ध्यान देने योग्य हे लोभी की ही वह क्षमता होती है कि मरते--मरते भी धन की कामना नही  तजता है। काम की सीमा है लोभ असीम है&
(तिमि रघुनाथ निरन्तर प्रिय लागहु मोहि राम )
और सचमुच उन्होंने काम और लोभ को वह दिशा दे दी जो जीवन को सार्थक और धन्य बनाने वाली है जीव कामी बना रहै रुप पियारा रामजी का लगै
लोभी बना रहै नाम की गिनती बडती रहे अभी २१ माला हुई ५१करना हे १०१करना है
है लोभी जीव देख नाम धन बडता ही रहै
पँ हरभजन शर्मा कोटा राज
$जासु नाम भव भेषज
        हरण घोर त्रय सूल $
$सो कृपाल मो तोहि पर
        रहहिँ सदाँ अनुकूल $
[9/21, 23:43] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *सर्वेभ्यो नमो नमः*
*आप सभी को नवरात्रि के पावन पर्व पर अनंत शुभकामनाएं।*🌹🙏🌹😊
शरद ऋतु के आगमन के साथ ही सारा भारत जैसे भक्ति के रस में डूब जाता है। पहले नवरात्रि के नौ दिन जिनमें देवी के नौ रूपों की आराधना की जाती है, पश्चात दशहरा और उसके बीस दिनों बाद दीपों का पर्व दीवाली। वैदिक काल से ये उत्सव हमारे मन-प्राणों को झंकृत करते आ रहे हैं तथा  भारत को एक सूत्र में बाँध रहे हैं। पुराणों के अनुसार देवासुर-संग्राम में जब देवताओं द्वारा असुरों का नाश सम्भव नहीं हुआ तब उन्होंने शक्ति की देवी की आराधना की, सब देवताओं ने उसे अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये।सद्गुणों व दुर्गुणों के रूप में देव तथा असुर हमारे भीतर ही वास करते हैं।इसका अर्थ है हमारे भीतर की दैवीय शक्तियाँ जब संयुक्त हो जाती हैं तब ही वे विकार रूपी असुरों का नाश कर सकती हैं। सात्विक दिनचर्या अपनाकर इस आत्मशक्ति को बढ़ाने का उत्सव है नवरात्रि।नौ दिनों की शक्ति की उपासना के बाद जब साधक का मन शुद्ध हो जाता है।वह आत्मबल से युक्त हो जीवन के प्रति नवीन उत्साह से भर जाता है।
*जय श्री राधे ✍जय माता दी 👁शुभ रजनी*👁
[9/22, 07:45] पं अनुरागी जी: ना पोथी पढ़, सत अगन मिले.
ना धड़-धरती पर , गगन मिले.
जब लगि ना साँची, लगन मिले.
ना भजन मिले, ना सजन मिले.
    🌹सुप्रभातम🌹
[9/22, 11:02] ‪+91 74159 69132‬: *सेवा और भलाई सभी की करना मगर आशा किसी से भी ना रखना*
*क्योंकि*
*सेवा का वास्तविक मूल्य भगवान ही दे सकते है, इंसान नहीं....!*

*💐💐सुप्रभात💐💐*
*💐💐जय श्री कृष्णा💐💐*
[9/22, 11:38] व्यासup u p: *🌹प्रभातचिंतन🌹*

*बुरौ बुराई जौ तजै तौ चितु खरौ डरातु,ज्यौं निकलंकु मयंकु लखि  गनै लोग उतपातु।*

*यदि हम किसी बुरे व्यक्ति से आशा करें कि वह सद्कर्म करेगा तो यह हमारे भ्रम के अतिरिक्त कुछ नहीं है। यदि बुरा व्यक्ति सज्जनता या दयालुता दिखाये भी तो उससे अधिक सावधान रहने की आवश्यकता होती है,क्योंकि ऐसा व्यक्ति प्रत्यक्ष प्रहार करने वाले से अधिक घातक होता है।*
*कविवर बिहारी जी का यह दोहा इसी बात को सिद्ध करता है। यदि कोई हमारी दृढ़ता, हमारी शक्ति से भयभीत हो कर हमारे सम्मुख नतमस्तक हो जाये और शुभ चिंतक बनने का अभिनय करे तो हमें उसके प्रति उदासीन होने की भूल कदापि नहीं करनी चाहिए।*
*यह बात व्यक्ति व हमारे प्रतिस्पर्धी राष्ट्रों के संदर्भ में भी सटीक बैठती है। इतिहास साक्षी है जब जब हमने लोगों को क्षमा दिया तब तब वे हमारे लिए अधिक घातक सिद्ध हुये पाकिस्तान इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।*
*इसलिए हमें न तो अपने शत्रु को निर्बल समझना चाहिए और न उनकी अच्छाइयों पर अन्धविश्वास करना चाहिए।*            

🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚
*🙏🏻🌄शुभ प्रभात🌄*
*👏ॐ महालक्षमै नमस्तुभ्यं👏*
*२२/९/२०१७*
[9/22, 16:41] गदाधर जी: माया                              22/09/17
%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%
अव्यक्तो यो नित्यो$स्ति अक्रियो द्रष्टा च वै।
मायया बद्धो जीवो जीवरूपेण रोदिति।।
कस्य माता पिता कस्य के वै सन्ति च बान्धवा:।
मायया सर्वे भ्रान्ता: सत्यं पश्यन्ति ज्ञानिनः।।
उत्पत्तिस्थितिप्रलयेषु जगद्बद्धं निरन्तरम्।
यान्ति चैव आयान्ति वै दु:खसत्यं जगति त्रयम्।।
मायया जायते सृष्टिर्मायया हरते सदा।
विलीना भवति मायायां मायाया:कौतुकमिदम्।।
देवा दानवा: गन्धर्वाश्चैव सर्वे वै मायावृताः।
धरायामवतरति यदा  ईशः मायाबद्धो भवति हि सः।।
अविद्यासदभावैश्च  मा  या  वै व्याख्यया तथा।
माया सम्बोधिताभवत् प्रपञ्चैश्च  संयोजिता।।
नमामि मायाधीशं जगदीशं मायामोचकं तथा।ब
त्रायस्व मां मोचयतु चैवअस्मान्मायाबन्धनाद्धि वै।।
                            डा गदाधर त्रिपाठी
[9/22, 18:35] पं विजय जी: नवरात्रमें अपनी राशिके अनुरूप करें मां काध्यान
अपने शरीरमें व्याप्त शक्तियों को जाग्रत करनेका अनुकूल समय है नवरात्र।नवरात्रमें हर दिन देवीके विभिन्न रूपोंकी पूजा की जाती है।इननौ दिनोंमें विविध प्रकार की पूजा से माताको प्रसन्न किया जाता है।नवरात्रमें अपनी राशिके अनुरूप माताके किस रूपकी " उपासना " करनी चाहिए।जिससे साधककी सभी मनोकामनाएं पूरी हो-

1 अगर आप " मेष " या " वृश्चिक " राशिके हैं तो आपको " मां शैलपुत्री " की अराधना करनी चाहिए।
2 अगर आप " वृषभ " या " तुला " राशिके हैं तो आपको " मां ब्रह्मचारिणी " की अराधना करनी चाहिए।
3 अगर आप " मिथुन " या " कन्या " राशिके हैं तो आपको " मां चन्द्रघंटा " की अराधना करनी चाहिए।
4 अगर आप " कर्क " राशिके है तो आपको " मां सिद्धिदात्री " की अराधना करनी चाहिए।
5 अगर आप " सिंह " राशिके है तो आपको " मां कालरात्रि " की अराधना करनी चाहिए।
6 अगर आप " धनु " या " मीन " राशिके हैं तो आपको " मां सिद्धिदात्री " की अराधना करनी चाहिए।
7 अगर आप " मकर " या " कुम्भ " राशि के हैं तो आपको " मां सिद्धिदात्री " की अराधना करनी चाहिए।
[9/22, 23:10] ओमीश Omish Ji: *सभी सदस्यों से निवेदन है एक बार पुनः अवलोकन करने की कृपा करें*
प्रमुख नियम👇
1- किसी भी तरह के वीडियो तथा फोटो न भेजें इनका प्रचलन पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है।
2- राजनीतिक पोस्टों का भेजना हमारे समूह की मर्यादा भंग करने का परिचायक है। अतः ऐसा न करें।
3- चुटकुले तथा कसम वाले मैसेज न भेजें इसमें समिति बाहर करने का निर्णय ले सकती है। तथा ऐसे निर्णय को अन्यथा न लें।
4- धार्मिक पोस्टों के आवागमन के साथ-साथ धर्मार्थ प्रश्नोत्तर में भी अपने विचार रखे जो कि शास्त्र विरूद्ध न हो तथा उस समय और पोस्ट करके विक्षेप न करें।
5- जिस सदस्य को नहीं जानते हैं उनके पर्सनल में जाकर वार्ता प्रारंभ न करें, तथा किसी का मन भी न आहत करें। 🙏🙏🙏

👆👆👆
उपरोक्त नियमों का उल्लंघन करने पर आप विद्वत परिवार से वंचित हो सकते हैं, जिसका कष्ट समिति को भी होगा। अतः नियमावली का ध्यान देने की कृपा करें 🙏🙏
[9/23, 00:08] पं अनिल ब: बहुत थोडा पानी पोखर में भरा था और उसके किनारे पर ही मृग का एक जोड़ा मृत पड़ा था ! दो महात्मा उधर से गुजरे, देखकर हैरान, पूछा-

*पानी है, प्यासे नही, न कोई मारा तीर,*
*जख्म नही दिखे कही, केसे तजे शरीर ?*
दुसरे महात्मा ने समझाया-

*पानी थोडा, नेह घना, लगा प्रेम का बाण,*
*तू पी, तू पी, कहत ही, दोनों तज दिए प्राण !*

वास्तविक प्रेम वही है जिसमे लेने की कामना नही, देने का उत्साह है ! जिसमे मोह नही त्याग है ! स्वार्थ नही समर्पण है !

ऐसा निष्काम प्रेम ही जब मालिक के लिए होता है तो मालिक अपना लेते है, इसी को इश्क हकीकी कहा है और अलोकिक व् माया प्रेम को इश्क मजाजी कहा है ! एक प्रेम तारने वाला और दूसरा मारने वाला !

*ढूंढा सब जंहा में, पाया पता तेरा नही !*

*जब पता तेरा लगा, अब पता मेरा नही !!*

*।।जय जय श्री महाँकाल।।🌷🙏🏻*
[9/23, 10:24] ‪+91 80970 57677‬: 💖 *श्री राधे 💞 कृष्णा* 💖

यूँ ना खींच अपनी तरफ मुझे बेबस कर के...

ऐसा ना हो के खुद से भी बिछड़ जाऊं

और तू भी ना मिले...

*श्री राधे राधे*
[9/23, 10:32] व्यासup u p: *✍🏻बेर कैसे थे, ये शबरी से पूछो;                                   श्रीराम से पूछोगे तो मीठे ही कहेंगे •••••••।*

*ज़हर का स्वाद शिव से पूछो...*

*मीरा से पूछोगे तो अमृत ही कहेगी...!!*

*जहाँ हमारा स्वार्थ*
          *समाप्त होता है*,
     
       *वहीं से हमारी इंसानियत*
          *का आरंभ होता है*।

   *💐🌹🙏सुप्रभात🙏🌹💐*
[9/23, 15:54] ‪+91 98294 24183‬: 🙏🏻🕉🕉🕉🕉🕉🕉🙏🏻
     💐 घाट मनोहर चार 💐
गोस्वामीजी ने चार घाटों की जो परिकल्पना की उसका अर्थ है कि ये किसी वर्ग, सम्प्रदाय या किसी मान्यता के लिए ही नहीं, वे समान रूप से सबके लिए उपादेय हैं, कल्याणकारी हैं और यही संकेत ये जो चार वृक्ष हैं और चार वृक्षों के नीचे जो साधना है, चार वृक्ष, चार घाट, चार फल, चार भाई - ये चार अंकों का जो बाहुल्य है वे सबके बड़े निहित अर्थ वाले अंक हैं । और यहाँ पर भी आप यही पायेंगे । उसको उस रूप में आप लेंगे - पीपल के नीचे ध्यान,पीपल केपत्तै कम हवा मेभी हिलते है
&पीपर पात सरिस मन डोला &
पाकर  के नीचे जप, पाकर मे शाँती है जप शाँत भाव से हो आम के नीचे मानस पूजा, आम रसीला होता है ध्यान मे रस हो वट के नीचे कथा,& वट विस्वास अटल निज धर्मा &इसका मूल उद्देश्य यही है कि हमें जीवन में जो चाहिए ध्यान के द्वारा, जप के द्वारा, मानस पूजा के द्वारा, कथा के द्वारा ये समस्त तत्व भुशुण्डि जी की साधना में विद्यमान हैं और आनन्द यही है । सम्प्रदाय और दीक्षा भी उन्होंने ली तो किसी भक्त से नहीं ली, ज्ञानी से ली । मानो संकेत यह है कि ज्ञान और भक्ति परस्पर विरोधी नहीं है और पराकाष्ठा यह है कि शंकर जी ज्ञान घाट के आचार्य होते हुए भी भुशुण्डि जी से कथा स्वयं सुनने आये पक्षी (हँस) रूप मे कथा सुनी कथा से प्रेम हो
जब व्यक्ति रोगी होता है तो वह चिकित्सक की खोज करता है, डाक्टर या वैद्य की खोज करता है और जिस व्यक्ति को जिस पद्धति से लाभ होता है, उसका विश्वास उसी पद्धति पर होता है वह दूसरों को भी आग्रहपूर्वक यह बताता है कि इन वैद्य के द्वारा या डाक्टर के द्वारा मुझे लाभ हुआ है और आपको भी इसके द्वारा लाभ हो सकता है । तो ज्ञान मार्ग, भक्ति, कर्म या शरणागति का भी वही तात्पर्य और उद्देश्य है । ज्ञानी भी यह चाहता है कि मन के रोग दूर हों, मनुष्य की समस्याओं का समाधान हो, भक्त, कर्मयोगी और शरणागत सभी तो यही चाहते हैं । इसलिए पद्धतियों में भिन्नता होते हुए भी जिस पद्धति से जिनको लाभ होता है वह उसकी प्रशंसा करेंगे । प्रवचनकर्ताओं, विद्वानों, संतों के मुख से सुना होगा - अन्तःकरण चतुष्टय । उनके कार्यों का बंटवारा इस रूप में किया गया कि जहाँ मनुष्य के मन में एक संकल्प विकल्प, यह ठीक कि वह ठीक, यह करें कि वह करें, ये जो नाना प्रकार के संकल्प विकल्प उठते हैं उसी का नाम मन है और जिसके द्वारा आप निर्णय करते हैं, उस निर्णय के अनुसार कार्य जिसके द्वारा संपन्न होता है, उसी का नाम बुद्धि है । अब वह जो व्यक्ति  बुद्दी से निर्णय करता है, वह निर्णय उसके संस्कार से ही जुड़ा हुआ है । ये जो संस्कार हैं, जहाँ संग्रहित हैं, जहाँ एकत्र है उसी का नाम है चित्त । बुद्धि वह है जो समझकर निर्णय देती है और चित्त वह है जो संस्कार के ही अनुकूल निर्णय देता है । उसके बाद जब आप कोई क्रिया करते हैं तो क्रिया करने के साथ, मैं ये करूँगा, मैंने ऐसा किया तो इन सबके मूल में एक शब्द आप जोड़ देते हैं 'मैं', ये अहंकार है । इस तरह से ये मन, बुद्धि, चित्त तथा अहंकार हमारे आपके अन्तःकरण में चार घाँट विभाजित रूप में विद्यमान हैं देखना हमे है हम किस घाट पर बेठे है
पँ हरभजन शर्मा कोटा राज ०
जासु नाम भव भेषज
          हर घोर त्रय सूल 💐
सो कृपालु मोहि तो पर
            रहहिँ सदाँ अनुकूल💐
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[9/23, 17:53] मार्कण्डेय जी: .....
*🙏🏼💐🌹नवरात्रि पर्व पर* *नवदुर्गा की अष्टशक्ति*........
भारत देश में देवी देवताओं के समूह में देवियों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । उनमें  देवी दुर्गा ब्रहम -विष्णु - शिव शक्तियों की संख्या में एक देवी है । जिन्होंने निराकार परमात्मा ब्रहम -विष्णु - शिव के सर्वोच्च प्रकाश से शक्तियां प्राप्त की । देवी दुर्गा कुमारी हैं और इन्हें अष्टभुजा धारी दिखाया जाता है इनकी अष्टभुजा ही अष्टशक्तियां है ।
*1⃣संकीर्ण करने की शक्ति*...
जैसे कछुआ अपने अंगों को जब चाहे सिकोड़ लेता है, जब चाहे उन्हें फैला लेता है ।
इस शक्ति को प्राप्त करने से हम अपने अंतर्मन की गहराई में चले जाते और असीम शांति की अनुभूति करते हैं । इससे हमारी मन बुद्धि बाहरी आकर्षणों से मुक्त रहती है और हम व्यर्थ की  वैचारिकी श्रृंखला से बचें रहते हैं और इससे हमारी मानसिक क्षमता मजबूत होती हैं ।  कर्मेंद्रियों पर नियंत्रण होने लगता है ।
*2⃣समेटने की शक्ति*....
अर्थात हमेशा तैयार रहना । परमात्मा से इस शक्ति को प्राप्त कर लेने के बाद हम अपनी बुद्धि को इस विशाल दुनिया में न फैला कर एक परमपिता परमात्मा की तथा आत्मिक सम्बन्ध की याद में ही अपनी बुद्धि को लगाये रखते है। संसार से अपनी बुद्धि और संकल्पों रूपी बिस्तर  व पेटी  समेटकर सदा अपने घर-शांतिधाम में चलने को तैयार रहते है ।
*3⃣ सहनशक्ति*....
सहन शक्ति विकसित होने से  आंतरिक बल प्राप्त होता है यह ऐसी क्षमता है जो  विकट परिस्थितियों में भी  सक्रिय रखती है । परिस्थितियां चाहे कितनी भी खराब क्यों न हो । सामने वाली आत्मा के प्रति स्नेह और क्षमा भाव रखते है । जैसे वृक्ष पर पत्थर मारने पर भी मीठे फल देता  है और अपकार करने वाले पर भी उपकार करता है । वैसे ही हम ही सदा अपकार करने वालों के प्रति भी शुभ भावना और शुभ कामना ही रखते है।
*4⃣ समाने की शक्ति*.....
"समाने की शक्ति"  योग का अभ्यास से विनम्रता का गुण विकसित होता है । जिसमें दूसरों के प्रति झुकाव होता है इससे हमारे में  लचीलापन के गुण के साथ मजबूती भी आती हैं । जैसे समुंद्र में तूफान आने के बाद थम जाने के बाद अपने वास्तविक स्थिति मैं लौट आता है । अर्थात मनुष्य की बुद्धि विशाल हो जाती  है और मनुष्य गंभीरता और मर्यादा  का गुण  धारण  करता है।  और गंभीर अवस्था में रहकर दूसरी आत्माओं के अवगुणों को न देखते हुए केवल उनसे गुण ही धारण करता है।
*5⃣ परखने की शक्ति*.....
इस शक्ति से हमारे अंदर सही और गलत,  सत्य एवं झूठ, वास्तविकता एवं भ्रम तथा लाभ एवं हानि के मध्य फर्क स्थापित करना आ जाता है ।
जैसे एक जौहरी आभूषणों को कसौटी पर परखकर उसकी असल और नक़ल को जान जाता है । ऐसे ही हम  सदा सच्चे ज्ञान-रत्नों को अपनाते है तथा अज्ञानता के झूँठे कंकड़, पत्थरों में अपनी बुद्धि नहीं फँसाते है ।
*6⃣ निर्णय शक्ति*.....
परखने की क्षमता आ जाने के बाद हम निर्णय आसानी से ले सकते हैं । तब हम सही निर्णय पर आसानी से पहुंच जाते हैं।
यह शक्ति  स्वत: प्राप्त हो जाती है  । जब हम समस्याओ को दूसरों के नजरिए से देखते एवं उसका समाधान खोजने की स्थिति में रहते है ।
*7⃣ सामना करने की शक्ति*.....
सामना करने की शक्ति से हमारी समस्याओं एवं  कठिनाइयों से परे देखने की क्षमता विकसित होतीे हैं । पूरी तरह नकारात्मक दिखलाई पड़ने वाली परिस्थिति में भी सकारात्मकता खोज  निकालना ही  सामना करने की शक्ति है ।
इससे हम कभी विचलित नहीं होते हैं ।
*8⃣ सहयोग की शक्ति*......
इस व्यक्ति को ईश्वर से प्राप्त करने के बाद हम दूसरों की विशेषता को पहचान पाते हैं और उसका अच्छी तरह प्रयोग कर पाते हैं । जिसके द्वारा आसानी से महान कार्य संपन्न कर सकते हैं और उसका आनंद भी ले सकते हैं। तन, मन, धन से  ईश्वरीय सेवा करते है । इससे अन्य आत्माओं का सहयोग स्वत: प्राप्त होता है । जिस कारण हम कलियुगी पहाड़ ( विकारी संसार) को उठाने में अपनी पवित्र जीवन रूपी अंगुली देकर स्वर्ग की स्थापना के पहाड़ सरीखे कार्य में सहयोगी बन जाते हैं।🙏🏼💐🌹  आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।

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