Thursday, April 20, 2017

।।सत्यनारायण पूजन सामग्री।।

*|| श्री सत्यनारायण पूजन सामग्री ||*
*हल्दी,कुमकुम,अबीर,गुलाल,कपूर५०ग्राम,माचिस,अगरबत्ती,लौंग,इलायची,गंगाजल,अत्तर,* *पान२०पत्ते,सोपारी ३०,लाल कपड़ा १,नारियल २,दीपक १,तामे का कलश १,५ कटोरी,३ चम्मच,३ थाली,२ बैठने का आसन ,दूध-दही-घी-*
*सक्कर,पंचमेवा,सहद,जनेऊ* *५,मौली* *धागा,छुट्टे फूल*
*,दुर्वा,विल्वपत्र,तुलसी*
*,२ छोटे हार,कापूस ,चौरंगपाट* *१,लक्ष्मी गणेश प्रतिमा,सत्यनारायण *भगवान की फोटो,*
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*हवन सामग्री-:हवनपूड़ा*
*,नवग्रह संविधा,अगर तगर*
*,जटामासी,भोजपत्र,गुगल*
*,पीली सरसो,काला* *तिल,कमलगट्टा,भोजपत्र,*
*,जौ,घी १ पाव,आम की लकड़ी १*
*किलो,केले के खम्बे ४*
*,हवनकुण्ड !!*
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*आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी*
*८८२८ ३४७८३०*

Saturday, April 15, 2017

*मन की बात---------:*

*मन की बात---------:*
आत्मा सागर है और मन उसमें उठने वाली तरंगें, आत्मा आकाश है, मन उसमें उमड़ने वाले बादल। आत्मा कच्चा माल है और मन उसका उत्पादन..हम किसी भी तरह से सोचें अस्तित्त्व और हमारे मध्य कोई न कोई संबंध देख ही सकते हैं।ऐसा संबंध जो हमने नहीं बनाया है जो सदा से है। हम इस बात के लिए पूर्ण स्वतंत्र हैं कि मन को कैसा मानें, तरंगों की भांति जिस पर हमारा कोई नियन्त्रण नहीं, बादलों की भांति जो आते हैं और चले जाते हैं, अथवा तो स्वयं के पूर्ण नियन्त्रण में बनने वाले उत्पाद के रूप में,स्वयं को आत्मा जानकर जब  हम अपने विचारों को गढ़ते हैं, उन्हें सजाना-संवारना हमारे हाथ में होता है। हर विचार एक बीज है और हर बीज  कर्म रूप में वृक्ष  बनेगा जिस पर फल भी लगेंगे और नये बीज भी बनेंगे, जो बिलकुल वैसे ही होंगे जैसा बीज था। इसका अर्थ हुआ हमारा भाग्य हमारे विचारों का ही प्रतिफल है।
*जय श्री राधे*✍
*आप सभी का दिन मंगलमय हो शुभ रविवार*

*मन की बात---------:*

*मन की बात---------:*
यदिआकाश ढका हो बादलों से, पर बादलों के पार भी जो झांक सकता है, उसके लिए नीला शुभ्र आकाश उतना ही सत्य है जितना यह बदली भरा आकाश, बल्कि इससे भी अधिक सत्य क्योंकि यह बादल तो आज नहीं कल बरस कर रीते हो जायेंगे। इसी तरह जो देह के पीछे छिपे चिन्मय तत्व को देख सकता है उसके लिए देह का रहना  या न रहना अर्थहीन हो जाता है, क्योंकि जो सदा है वह उसकी दृष्टि से कभी ओझल ही नहीं होता,  जगत का कार्य-व्यवहार उसे क्रीड़ा मात्र ही प्रतीत होता है, और उसके पीछे छिपा निरंजन ही सत्य जान पड़ता है।बादल कितने भी घने हों एक न एक दिन समाप्त हो जायेंगे, इसी तरह भीतर का चैतन्य मन की धारणाओं, वासनाओं और कामनाओं से कितना भी क्यों न छिप गया हो, कभी मिटता नहीं। इस सत्य को स्वीकार करके उसे अपना अनुभव बनाना ही साधक का लक्ष्य है।
*जय श्री राधे*✍
*आप सभी को शनि प्रदोष की हार्दिक शुभ कामनायें।*😊

Sunday, April 9, 2017

*मन की बात---------:*

*मन की बात---------:*
आत्मा सागर है और मन उसमें उठने वाली तरंगें, आत्मा आकाश है, मन उसमें उमड़ने वाले बादल। आत्मा कच्चा माल है और मन उसका उत्पादन..हम किसी भी तरह से सोचें अस्तित्त्व और हमारे मध्य कोई न कोई संबंध देख ही सकते हैं।ऐसा संबंध जो हमने नहीं बनाया है जो सदा से है। हम इस बात के लिए पूर्ण स्वतंत्र हैं कि मन को कैसा मानें, तरंगों की भांति जिस पर हमारा कोई नियन्त्रण नहीं, बादलों की भांति जो आते हैं और चले जाते हैं, अथवा तो स्वयं के पूर्ण नियन्त्रण में बनने वाले उत्पाद के रूप में,स्वयं को आत्मा जानकर जब  हम अपने विचारों को गढ़ते हैं, उन्हें सजाना-संवारना हमारे हाथ में होता है। हर विचार एक बीज है और हर बीज  कर्म रूप में वृक्ष  बनेगा जिस पर फल भी लगेंगे और नये बीज भी बनेंगे, जो बिलकुल वैसे ही होंगे जैसा बीज था। इसका अर्थ हुआ हमारा भाग्य हमारे विचारों का ही प्रतिफल है।
*जय श्री राधे*✍
*आप सभी का दिन मंगलमय हो शुभ रविवार*

*मन की बात---------:*

*मन की बात---------:*
यदिआकाश ढका हो बादलों से, पर बादलों के पार भी जो झांक सकता है, उसके लिए नीला शुभ्र आकाश उतना ही सत्य है जितना यह बदली भरा आकाश, बल्कि इससे भी अधिक सत्य क्योंकि यह बादल तो आज नहीं कल बरस कर रीते हो जायेंगे। इसी तरह जो देह के पीछे छिपे चिन्मय तत्व को देख सकता है उसके लिए देह का रहना  या न रहना अर्थहीन हो जाता है, क्योंकि जो सदा है वह उसकी दृष्टि से कभी ओझल ही नहीं होता,  जगत का कार्य-व्यवहार उसे क्रीड़ा मात्र ही प्रतीत होता है, और उसके पीछे छिपा निरंजन ही सत्य जान पड़ता है।बादल कितने भी घने हों एक न एक दिन समाप्त हो जायेंगे, इसी तरह भीतर का चैतन्य मन की धारणाओं, वासनाओं और कामनाओं से कितना भी क्यों न छिप गया हो, कभी मिटता नहीं। इस सत्य को स्वीकार करके उसे अपना अनुभव बनाना ही साधक का लक्ष्य है।
*जय श्री राधे*✍
*आप सभी को शनि प्रदोष की हार्दिक शुभ कामनायें।*😊

Friday, April 7, 2017

।।वास्तु पूजन सामग्री।।

*[वास्तु पूजन सामग्री]*
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*कलश ५, २ ताम्र कलश, अखंड दीपक१, नारियल ९, ५ कपड़े लाल,हरा, पीला ,सफेद, काला ,कुमकुम ,हल्दी ,सिंदूर, रोली, अबीर, गुलाल, अगरबत्ती, कपूर, धूपबत्ती, माचिस, मउली, जनेऊ १५,सुपारी १किलो ,गंगाजल, सेंट, लोंग, इलायची, मिट्टी का दीपक८ कापूस ,घी १ किलो ग्राम,  चावल ८ किलो ,सूखा गरी का गोला१ पंचामृत के लिए दूध, दही ,घी, शक्कर, मिठाई ,पांच प्रकार के फल, श्रृंगार सामग्री साड़ी सेट सहित, ब्राम्हण वरण सामग्री धोती ,कुर्ता ,गमछा ,छुट्टे फूल, छोटे ७हार ,दुर्वा ,बिल्वपत्र, तुलसी ,आम्र पल्लव ,पान का पत्ता २५,चौरंग पाट ५,आसन ब्रह्म पात्र के लिए नया टोप१, ५थाली, ५ कटोरी ,५चम्मच, ५गिलास,वास्तु प्रतिमा,पंचरत्न,केले का खंबा ४*

*हवन सामग्री--: ,अगर, तगर, जटामांसी ,सतावर,५ ००ग्राम हवन पूड़ा,२००ग्राम जौ, नवग्रह संविधा, कमलगट्टे, गूगल, चंदनचुरा, काला तिल, पीली सरसों, आम की लकड़ी २ किलो, हवनकुण्ड।*✍

*आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी*
*८८२८३४७८३०*