Wednesday, September 30, 2015

||परमतत्त्वरहस्यम् ||

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यस्य श्रवणेन सर्वबन्धः प्रविनश्यन्ति।
यस्य ज्ञानेन सर्वरहस्यं विदितं भवति।
तत्स्वरूपं कथमिति–
कथं ब्रह्म
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कालत्रयाबाधितं ब्रह्म।
सर्वकालाबाधितं ब्रह्म।
सगुणनिर्गुणस्वरूपं ब्रह्म।
आदिमध्यान्तशून्यं ब्रह्म।
सर्वं खल्विदं ब्रह्म।
मायातीतं गुणातीतं ब्रह्म।
अनन्तमप्रमेयाखण्डपरिपूर्णं ब्रह्म।
अद्वितीयपरमानन्दशुद्धबुद्ध- मुक्तसत्यस्वरूपव्यापकाभिन्नापरिच्छिनं ब्रह्म।
सच्चिदानन्दस्वप्रकाशं ब्रह्म।
मनोवाचामगोचरं ब्रह्म।
अमितवेदान्तवेद्यं ब्रह्म।
देशतः कालतो वस्तुतः परिच्छेदरहितं ब्रह्म।
सर्वपरिपूर्णं ब्रह्म तुरीयं निराकारमेकं ब्रह्म।
अद्वैतमनिर्वाच्यं ब्रह्म।
प्रणवात्मकं ब्रह्म।
प्रणवात्मकत्वेनोक्तं ब्रह्म।
प्रणवाद्यखिलमन्त्रात्मकं ब्रह्म।
पादचतुष्टयात्मकं ब्रह्म। इति।

   –जय श्रीमन्नारायण।
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पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
  8828347830  

|| धर्मार्थ वार्ता समाधन की नियमावली ||

का अभिन्न अंग माने।
5.किसी भी विद्वत सदस्य के ऊपर कोई भी ऐसी टिप्पणी न करें जिससे किसी का मन आहत हो या किसी को दुःख पहुँचे।
6.संघ के नाम एवम् प्रोफाइल फोटो से किसी प्रकार की छेड़खानी न करें यह कार्य संस्थापक महोदय के अंतर्गत आता है।
7.किसी भी प्रकार के अनावश्यक मैसेज न भेजें,जैसे चुटकुले, शाइरी,कॉमेडी या 'ये मैसेज 20 लोगो को शेयर करो शाम तक अच्छी खबर मिलेगी नहीँ तो आपका अनिष्ट ????होगा'_ इस प्रकार के मैसेज भेजना दण्डनीय अपराध माना जायेगा।
8.संघ में मात्र केवल सनातन धर्म,आध्यात्म,पुराण,
वेदोपनिषद् ,समस्त सनातन धर्म से सम्बंधित संग्रह ही भेजें।
9.किसी भी सदस्य के प्रति हास परिहास,आपत्तिजनक टिप्पणी न करें,जिससे किसी भी प्रकार का विवाद हो।
10.किसी भी सदस्य को अपनी विद्वता से निचा दिखाने का प्रयास न करें,बल्कि अपने ज्ञान को प्रेम पूर्वक प्रस्तुत करें।
11.संघ में इमेज वीडियो दिन में भेजना बिलकुल वर्जित है,इमेज,वीडियो रात्रि में भेज सकते हैँ लेकिन उसकी भी समय सीमा निर्धारित है जो इस प्रकार है—
रात्रि 10:45 से 11:00 बजे तक ही है।
12.कोई भी चित्र बहुत आवश्यक हो तभी भेजें। उसमे किसी प्रकार की अश्लीलता न प्रदर्शित हो इसका विशेष ध्यान रखें। वीडियो सिर्फ 2 से 3 मिनट तक का ही हो वह भी धार्मिक हो।
13.देवी देवताओं की फोटो प्रायः सब के घर में होती हैँ अतः इनको भेजना वर्जित है आप अपने कर्मकाण्ड सम्बन्धी चित्र भेज सकतेहैँ।
14.किसी भी सदस्य से किसी प्रकार की त्रुटि होने पर उनके प्रति अन्य कोई सदस्य न उलझें। उसका समाधान, प्रशासनिक श्रेष्ठ गुरुजनों द्वारा या मेरे द्वारा किया जायेगा। यदि किसी को किसी से शिकायत है तो वे हमारे पर्सनल एकाउंट में वार्ता करें।
15.अगर अपने निजी कारणों बस कोई भी सदस्य संघ से बाहर होना चाहते हैँ तो कृपया सुचना अवश्य दे।
16.संघ के नियमो में कुछ और सुदृढ़ बनाने के लिए आप सब अपनी राय दे सकते हैँ हमको।
17."आप सभी विद्वत जन अपने प्रोफाइल में अपना नाम अवश्य लिखे |
18.नियमों में कुछ त्रुटि हो तो अपना सुझाव देने की कृपा करें।
19.संघ में किसी भी पोस्ट को दुबारा पोस्ट करना वर्जित है किसी सदस्य के आग्रह करने पर ही दुबारा पोस्ट भेज सकते हैँ |
20.संघ को और मजबूत बनाने हेतु विशिष्ठ विद्वत जनोँ की आवश्यकता होती है,अतः जिन विद्वत जनोँ के सम्पर्क में अच्छे मधुर व्यवहार वाले ज्ञानमय ब्राम्हण हों,उन विद्वानों को जोड़ने के लिए हमसे सम्पर्क कराएं तथा उन्हें संघ के नियमो से भी अवगत कराये |
21.संघ में वार्ता करने का समय सुबह 5:30से रात्रि 11:00तक विशेष आवश्यकता पड़ने पर 11:30
22.धर्मार्थ वार्ता समाधान की प्रशासनिक अधिकारी-सूची :—
1--श्रीमान् संतोष मिश्र जी
2--श्रीमान् राजनाथ द्विवेदी (बाबा जी)
3--श्रीमान् जगदीश द्विवेदी (77महाकाल बाबा जी)
4--श्रीमान् उपेन्द्र त्रिपाठी जी
5--श्रीमान् सत्यप्रकाश शुक्ल
6--श्रीमान् स्वामी सच्चिदानन्द जी
7--श्रीमान् सत्यप्रकाश तिवारी जी(मुम्बई कोपरखेरणे)
8--(संस्थापक)मंगलेश्वर त्रिपाठी


जयतु गुरुदेवः जयतु भारतम्

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पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
  8828347830  

|| धर्मार्थ वार्त्ता समाधान ||

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

जीवन में सबसे बड़ा कष्ट क्या है ?
१.Whatsapp का रिचार्ज
२.नहि दरिद्र सम दुख जग माही। (असन्तुष्टि)
३.कष्ट को महसूस करना
४.कह  हनुमंत  विपति प्रभु  सोई |
   जब तक सुमिरन भजन न होई || 
५.जिस काल में भगवान का भजन-स्मरण नहीं होता, वह  काल भले ही सौभाग्यपूर्ण हो या चारों ओर यश, कीर्ति, मान, पूजा होने लगे, लेकिन भगवान की ओर से उदासीनता की दृष्टि से वह विपत्ति में ही है। ऐसी विपत्ति को भगवान हरण करते है, अपने स्मरण की सम्पत्ति देकर।
६.जद्यपि जग दारुन दुःख नाना।
सबते कठिन जाति अपमाना
(अपमान तीसरे पायदान पर है= ? )
७.सर्पाःपिबन्ति पवनं न  च दुर्बलास्ते।
   शुष्कैस्तृणैवर्नगजा बलिनो भवन्ति।।
   कन्दैर्फलै मुनिवरा  गमयन्ति कालं।
   सन्तोष एव पुरुषस्य  परं निधानम्।।
८.पं. जगदीश प्रसाद द्विवेदी
   ×××           ×××            ×××
   बिना अग्नि मेते प्रदहन्ति कायः।
   गर्भ वास समे दुःखं नैव जीवो परायणे ।
   एतत्तु भगवान्प्रोक्तः स्वयं भागवती कथा
                               --कपिलोपाख्यान।
   जग में जन्मे जब बाल भये तब एक रही सुधि भोजनकी।
   तरुणाई जबै प्रकटी मन में तब आस जगी तरुणी-तनकी।
   जब बृद्ध भयो तन सूखि गयो तब लोग कहे सनकी-सनकी।
   नहिं भक्ति करी नहिं दान दियो रहि अंत समय मनमें मनकी।
   यहाँ प्रश्न दुःख का है।
   सन्तोष परेऽनुवाक्यः अस्ति
९.पं.मंगलेश्वर त्रिपाठी :
   मोदेऽहं यदवाप्तं हि तस्मिन् प्रीत्या समन्विता।
   मोदे चान्यदवाप्तुं च सद्यत्नेषु कृतेषु मे॥
१०.077150 00848‬:
कत बिधि सृजीं नारि जग माहीं।
पराधीन   सपनेहुँ   सुखु  नाहीं।।
११.089621 58268‬:
बासुदेव जरा कष्टं,कष्टं निर्धनजीवनं।
पुत्रशोक महाकष्टं,कष्टं ते अधिकं क्षुधा।।
१२.पं. जगदीश प्रसाद द्विवेदी(धर्मार्थ. ): आशारे खलु संसार दुःख रूपी विमोहकः। सुतं कस्य धनं कस्य स्नेहबद्धान्जलि ते निशम्।।
१३.पं. जगदीश प्रसाद द्विवेदी
जब माता देवहुती ने किया तो सबसे पहले दुःख ही पूछा। जन्म नरक, नारी जीवन और मृत्यु भयाटवी का पूरा वर्णन है
१४.मंगलेश्वर त्रिपाठी :
इस समय जो चारों अोर अशान्ति देखने में आ रही है, उसका मूल कारण है- अभिमान और स्वार्थ की अति वृद्धि। जहाँ स्वार्थ और अभिमान का बोल-बाला होगा वहाँ किस प्रकार प्रेम की प्रतिष्ठा हो सकेगी। जहाँ परस्पर प्रेम-सद्भाव का अभाव रहेगा, वहाँ शान्ति कैसे होगी?
मेरे विचार से सुख की इच्छा करना ही स्वार्थ है और दूसरों की अपेक्षा अपने में विशेषता देखना ही अभिमान है।
सन्त कहते हैं -
कंचन तजना सहज है, सहज त्रिया का नेह।
मान बड़ाई ईरिषा तजना मुश्किल एह॥
"जानहिं तबहिं जीव जग जागा।
जब सब बिषय बिलास बिरागा॥"
मान में अपमान का खटका।
कंजूस को मेहमान का खटका।
भोग में रोग का खटका।
भक्त को भगवान का खटका॥
मन पंछी तब लौं उड़ै बिषय वासना माहिं।
प्रेम बाज की झपट में जब लगि आवत नाहिं॥
प्रेमी ढूँढत मैं फिरुँ प्रेमी मिला न कोय।
प्रेमी को प्रेमी मिलै सब बिष अमरित होय॥
१५.पं. जगदीश प्रसाद द्विवेदी :
यहसत्य है कि पुत्र शोक महत् कष्ट है, पर यहाँ सन्योक्ति भी बनती है कि - "जाया सुतादिषु सदा ममतां विमुञ्च"।इससे यह साबित होता है की जीवन में मोह आना किसी के प्रति सबसे बड़ा कष्ट है। चाहे पुत्र हो या दरिद्रता या धन या क्षुधा - ये सब मोह के कारण ही पनपते है इस लिए मोह होना सबसे बड़ा कष्ट है।
१६.पं.मंगलेश्वर त्रिपाठी :
जीवन में एकाग्रता और संचय की ही सर्वाधिक महत्ता है और सबसे बड़ी मूर्खता है, शक्तियों को यूँही बिखेर देना। बहुचित्रता कैसी भी हो, है तो अधम ही। वही चीज स्तुत्य है जो सारे भ्रम और क्रीडा-सामग्री से हमे उचाट देती है और कर्म की ओर प्रेरित करती है। जो व्यक्ति जीवन एक ही अनन्य लक्ष्य पर चलता है तो वह सोच सकता है कि वह उस लक्ष्य को जीवन काल के भीतर ही प्राप्त कर लेगा।

सौ०  धर्मार्थ वार्त्ता समाधान" वार्ता विवरण
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पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
  8828347830  

|| (श्रीमन्) नारायणीयम् ||

🌻🌻🌻🌻(श्रीमन्) नारायणीयम्🌻🌻🌻🌻
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दशक ३२
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पुरा हयग्रीवमहासुरेण षष्ठान्तरान्तोद्यदकाण्डकल्पे ।
निद्रोन्मुखब्रह्ममुखात् हृतेषु वेदेष्वधित्स: किल मत्स्यरूपम् ॥१॥
प्राचीन काल में, छठे मन्वन्तर के अन्त में नैमित्तिक प्रलय के उदित होने के समय, हयग्रीव नामक महासुर ने निद्रोन्मुख ब्रह्मा के मुख से वेदों को चुरा लिया। निश्चय ही तब आपने मत्स्य रूप धारण करने की इच्छा की।
सत्यव्रतस्य द्रमिलाधिभर्तुर्नदीजले तर्पयतस्तदानीम् ।
कराञ्जलौ सञ्ज्वलिताकृतिस्त्वमदृश्यथा: कश्चन बालमीन: ॥२॥
द्रमिल देश के राजा सत्यव्रत कृतमाला नदी में तर्पण कर रहे थे। तब उनके हाथों की अञ्जलि में प्रकाशमान आप किसी छोटी मछली के रूप में दिखाई दिये।
क्षिप्तं जले त्वां चकितं विलोक्य निन्येऽम्बुपात्रेण मुनि: स्वगेहम् ।
स्वल्पैरहोभि: कलशीं च कूपं वापीं सरश्चानशिषे विभो त्वम् ॥३॥
जब मुनि ने आपको जल में फेक दिया तब आप अचंभित दिखाई दिये। तब मुनि आपको अपने जल के पात्र में डाल कर अपने घर ले गये। हे विभो! थोडे ही दिनों में आपकी आकृति कलश और कूप, वापी और तालाब की सीमाओं का अतिक्रमण करके बढने लगी।
योगप्रभावाद्भवदाज्ञयैव नीतस्ततस्त्वं मुनिना पयोधिम् ।
पृष्टोऽमुना कल्पदिदृक्षुमेनं सप्ताहमास्वेति वदन्नयासी: ॥४॥
योग के प्रभाव से और आपकी ही आज्ञा से मुनि आपके मत्स्य स्वरूप को सागर में ले गये। मुनि के द्वारा पूछे जाने पर और प्रलय देखने की इच्छा व्यक्त करने पर आप उन्हे सात दिनों तक प्रतीक्षा करने के लिए कह कर अन्तर्धान हो गये।
प्राप्ते त्वदुक्तेऽहनि वारिधारापरिप्लुते भूमितले मुनीन्द्र: ।
सप्तर्षिभि: सार्धमपारवारिण्युद्घूर्णमान: शरणं ययौ त्वाम् ॥५॥
आपका कहा हुआ दिन आ पहुंचा, और सारी पृथ्वी का तल वर्षा के जल से परिप्लावित हो गया। तब मुनीन्द्र सप्त ऋषियों के संग उस असीम जल में गोते लगाते हुए आपकी शरण में गये।
धरां त्वदादेशकरीमवाप्तां नौरूपिणीमारुरुहुस्तदा ते
तत्कम्पकम्प्रेषु च तेषु भूयस्त्वमम्बुधेराविरभूर्महीयान् ॥६॥
आपके आदेशों का पालन करने वाली पृथ्वी नौका के रूप में पहुंच गई, और वे सब उस पर आरूढ हो गए। नौका के डगमगाने से सब भयभीत हो गए, तब आप फिर से ऐश्वर्यशाली मत्स्य के रूप में जल राशि में प्रकट हुए।
झषाकृतिं योजनलक्षदीर्घां दधानमुच्चैस्तरतेजसं त्वाम् ।
निरीक्ष्य तुष्टा मुनयस्त्वदुक्त्या त्वत्तुङ्गशृङ्गे तरणिं बबन्धु: ॥७॥
एक लाख योजन वाले मत्स्य की आकृति में अति उत्कृष्ट तेज युक्त आपको देख कर मुनिगण अत्यन्त सन्तुष्ट हुए। फिर आपके कहने पर उन्होंने आपके उत्तुङ्ग सींग से नौका को बांध दिया।
आकृष्टनौको मुनिमण्डलाय प्रदर्शयन् विश्वजगद्विभागान् ।
संस्तूयमानो नृवरेण तेन ज्ञानं परं चोपदिशन्नचारी: ॥८॥
उस नौका को खींचते हुए आप, मुनिमण्डल को विश्व के विभिन्न विभागों को दिखाने लगे। उन नर श्रेष्ठ मुनि सत्यव्रत के द्वारा आपकी स्तुति किये जाने पर, आप उनको परम ज्ञान, ब्रह्मज्ञान का उपदेश देते हुए विचरने लगे।
कल्पावधौ सप्तमुनीन् पुरोवत् प्रस्थाप्य सत्यव्रतभूमिपं तम् ।
वैवस्वताख्यं मनुमादधान: क्रोधाद् हयग्रीवमभिद्रुतोऽभू: ॥९॥
कल्प के अन्त में आपने सप्तर्षियों को पूर्ववत उनके स्थान पर स्थापित कर दिया और राजा सत्यव्रत को वैवस्वत नाम का मनु बना दिया। फिर आप क्रोध में हयग्रीव का पीछा करते हुए भागने लगे।
स्वतुङ्गशृङ्गक्षतवक्षसं तं निपात्य दैत्यं निगमान् गृहीत्वा ।
विरिञ्चये प्रीतहृदे ददान: प्रभञ्जनागारपते प्रपाया: ॥१०॥
आपने अपने ऊंचे सींग से उस दैत्य की छाती को चीर कर उसे मार डाला, और प्रसन्नचित्त ब्रह्मा को वेदों को ला कर दे दिया। हे गुरुवायुर के स्वामी! आप मेरी रक्षा करें।
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–जय श्रीमन्नारायण:।
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पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
  8828347830