Thursday, March 23, 2017

हवनात्मक चण्डी महायज्ञ २०१७_ १८ मार्च से ५ अप्रैल तक

करिष्यामि करिष्यामि करिष्यामीति चिन्तया |

करिष्यामि करिष्यामि करिष्यामीति चिन्तया  |
मरिष्यामि मरिष्यामि मरिष्यामीति विस्मृतं   ||

महासुभषितसंग्रह(८७८७)

🌹🌷✍ *भावार्थ:*🌷🙏👇🏼

मैं यह  कार्य करूंगा , वह कार्य करूंगा  या मुझे वह कार्य  करना
है , इस प्रकार की चिन्तायें करते करते मनुष्य यह भी भूल जाता है कि उसकी 
मृत्यु किसी भी क्षण हो सकती है |

(इस सुभाषित के माध्यम से मनुष्य को यह  चेतया गया है कि उसका शरीर
नश्वर है और कभी भी उसकी मृत्यु हो सकती है |  अतः उसे  अपने दैनन्दिन
व्यहार में  इतना लिप्त नहीं  होना चाहिये  कि वह परमार्थ  ( धर्माचरण तथा
प्राणिमात्र के प्रति दया भाव आदि कर्तव्यों ) को  भूल जाय | )

।।जय माता दी।।

।।जय माता दी।।
मित्रों विगत १० वर्षों से मां भगवती की असीम कृपा से "हवनात्मक चण्डी महायज्ञ"का भव्य आयोजन मुख्य आचार्य  श्रीमान सुशील शास्त्री जी एवं उपाचार्य श्रीमान दीना नाथ तिवारी जी के संरक्षण मे होता रहा है।इस वर्ष भी चैत्र नव रात्रि के पावन अवसर पर यज्ञ का आयोजन होना सुनिश्चित हुआ है।२८ मार्च से यज्ञ आरम्भ होगी एवं ५ अपैल तक यज्ञ संपन्न होगी।अत: आप सभी श्रद्धालु भक्तजन सपरिवार सादर आमंत्रित हैं।माता रानी की कृपा आप सब के ऊपर सदैव बनी रहे।जय माता दी।

यज्ञ स्थल--:गांव देवी मंदिर नेरूल सेक्टर १२ तेरणा. स्कूल के समीप।
संपर्क सूत्र-:९८२१४४१७३०-८८२८३४७८३०-९८२०६७०४४०!

।।जय माता दी।।

।।जय माता दी।।
मित्रों विगत १० वर्षों से मां भगवती की असीम कृपा से "हवनात्मक चण्डी महायज्ञ"का भव्य आयोजन मुख्य आचार्य  श्रीमान सुशील शास्त्री जी एवं उपाचार्य श्रीमान दीना नाथ तिवारी जी के संरक्षण मे होता रहा है।इस वर्ष भी चैत्र नव रात्रि के पावन अवसर पर यज्ञ का आयोजन होना सुनिश्चित हुआ है।२८ मार्च से यज्ञ आरम्भ होगी एवं ५ अपैल तक यज्ञ संपन्न होगी।अत: आप सभी श्रद्धालु भक्तजन सपरिवार सादर आमंत्रित हैं।माता रानी की कृपा आप सब के ऊपर सदैव बनी रहे।जय माता दी।

यज्ञ स्थल--:गांव देवी मंदिर नेरूल सेक्टर १२ तेरणा. स्कूल के समीप।
संपर्क सूत्र-:९८२१४४१७३०-८८२८३४७८३०-९८२०६७०४४०!

Wednesday, March 22, 2017

*मन की बात---------:*

*मन की बात---------:*
अक्सर लोगों को ऐसा कहते हुए सुना जाता है कि भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है किसी को नहीं पता, अगले पल क्या घटने वाला है कौन जानता है, यह बात बाह्य परिस्थिति के लिए जितनी  सत्य है, उतनी ही असत्य भीतर की स्थिति के लिए है। यदि कोई स्वयं को जानता  है तो उसे मनःस्थिति पर नियंत्रण करना उसी तरह सहज हो जाता है जैसे मीन के लिए पानी में तैरना। भीतर सदा एकरस सहज शांत अवस्था को बनाये रखना उतना कठिन नहीं है जितना हम मान लेते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि हमारा मन एक विशाल मन का हिस्सा है और वह विशाल मन परमात्मा का, साधना को अपने जीवन का अंग बना लेने पर भीतर जाना उतना ही सहज है जैसे श्वास लेना और छोड़ना। 
*जय श्री राधे*✍

Thursday, March 16, 2017

*मन की बात---------:*

*मन की बात---------:*
हमारा मन एक अनंत स्रोत की तरह है जिसमें से अनवरत विचारों की गंध फैलती रहती है। मन में सहज ही संकल्प उठते हैं, उनमें से कुछ दिशाविहीन होते हैं जिससे वे शुभ कर्मों में नहीं बदल पाते। यदि हम मन की इस ऊर्जा को एक सार्थक मोड़ दे सकें तो जीवन उस वृक्ष की तरह पल्लवित होता है जो हर रूप में जगत के काम आता है।मन की इस ऊर्जा का दोहन करने से ही कोई आंतरिक सन्तोष का अनुभव भी सहज ही करने लगता है।इस जीवन में हम सब का यह प्रयास हो, हमारी सोंच एवं विचार सकारात्मक हो।
*जय श्री राधे*✍

Tuesday, March 7, 2017

स्वागत गीत


स्वागतम्
        🌹🙏🌹
           सुस्वागतम्
                      🌹🙏🌹

स्वागत करें कैसे नीरज नयन।
आपको है मेरा सत सत नमन।।
            
पुष्पों की माला है, रोली और चन्दन।
करे हम यही मन से आपश्री को अर्पण।।

करलो स्वीकार आप, मेरा सुस्वागतम्।
स्वागत करें कैसे नीरज नयन..…...

धन्य-धन्य भाग्य हैं, जो यहां आप आईं।
खुशियों की कलिया आप ने खिलाई।।

लगी हैं उम्मीदें अब तो,महके गा अंगन।
स्वागत करें कैसे नीरज नयन........

है ये धर्मार्थ वार्ता समाधान प्यारा।
सभी गुरूजनों का मिलता सहारा।।

अतिथि को करें हम सब,सत सत नमन।
स्वागत करें कैसे नीरज नयन........
                🌹🙏🌹
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
                सुस्वागतम्
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

५-३-२०१७

[3/5, 07:31] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूलश्लोकः 🔔*
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥ २.२३ ॥
*🏹पदच्छेदः........*
न एनम्, छिन्दन्ति, शस्त्राणि, न, एनम्, दहति, पावकः । न, च, एनम्, क्लेदयन्ति, आपः, न, शोषयति, मारुतः ॥
*🌹पदपरिचयः......🌹*
शस्त्राणि — अ.नपुं.प्र.बहु.
एनम् — एतद्.द.सर्व.पुं.द्वि.एक.
न — अव्ययम्
छिन्दन्ति — छिदिर् द्वैधीकरणे-पर.कर्तरि, लट्.प्रपु.बहु.
पावकः — अ.पुं.प्र.एक.
एनम् — एतद्.द.सर्व.पुं.द्वि.एक.
न — अव्ययम्
दहति — दह दहने-पर.कर्तरि, लट्.प्रपु.एक.
आपः — अप्-प.स्त्री.प्र.बहु.
एनम् — एतद्.द.सर्व.पुं.द्वि.एक.
न — अव्ययम्
क्लेदयन्ति — क्लिद्(णिच्)-पर.कर्तरि, लट्.प्रपु.बहु.
मारुतः — अ.पुं.प्र.एक.
च — अव्ययम्
न — अव्ययम्
शोषयति — शुष्(णिच्)-पर.कर्तरि, लट्.प्रपु.एक.
*🌷पदार्थः...... 🌷*
शस्त्राणि — आयुधानि
एनम् —
इमम् आत्मानम्
न — न
छिन्दन्ति — खण्डयन्ति
पावकः — अग्निः
एनम् — अमुम्
न — न
दहति — भस्मीकरोति
आपः — उदकानि
एनम् — अमुम्
न — न
क्लेदयन्ति — आर्द्रीकुर्वन्ति
मारुतः — वायुः
च — च
न — न
शोषयति — शुष्कं करोति ।
*🌻अन्वयः 🌻*
शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति । पावकः एनं न दहति । आपः एनं न क्लेदयन्ति । मारुतः च न शोषयति ।
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_एषः कीदृशः?_
*न छिन्दन्ति ।*
कानि न छिन्दन्ति?
*शस्त्राणि न छिन्दन्ति ।*
शस्त्राणि कं न छिन्दन्ति?
*शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति ।*
शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पुनश्च कीदृशः?
*शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,न दहति ।*
शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,क: न दहति?
*शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः न दहति ।*
शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः कं न दहति?
*शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः एनं न दहति।*
शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः एनं न दहति,पुनश्च कीदृशः?
*शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः एनं न दहति,न क्लेदयन्ति ।*
शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः एनं न दहति,काः न क्लेदयन्ति?
*शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः एनं न दहति,आपः न क्लेदयन्ति ।*
शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः एनं न दहति,आपः कं न क्लेदयन्ति?
*शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः एनं न दहति,आपः एनं न क्लेदयन्ति ।*
शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः एनं न दहति,आपः एनं न क्लेदयन्ति,पुनश्च कीदृशः?
*शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः एनं न दहति,आपः एनं न क्लेदयन्ति,न च शोषयति ।*
शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः एनं न दहति,आपः एनं न क्लेदयन्ति,क: न च शोषयति?
*शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः एनं न दहति,आपः एनं न क्लेदयन्ति,मारुतः न च शोषयति ।*
शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः एनं न दहति,आपः एनं न क्लेदयन्ति,मारुतः कं न च शोषयति?
*शस्त्राणि एनं न छिन्दन्ति,पावकः एनं न दहति,आपः एनं न क्लेदयन्ति,मारुतः एनं न च शोषयति ।*
*📢 तात्पर्यम्......*
एनम् आत्मानं शस्त्राणि छेत्तुं न प्रभवन्ति । अग्निः एनं दग्धुं न प्रभवति । जलम् एनं नैव आर्द्रीकर्तुं शक्नोति । वायु: अपि एनं शोषयितुं न प्रभवति ।
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
नैनम् = न + एनम् - वृद्धिसन्धिः।
क्लेदयन्त्यापः = क्लेदयन्ति + आपः — यण् सन्धिः ।
आपो न = आपः + न – विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः ।
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                              *गीताप्रवेशात्*
[3/5, 07:37] ‪+91 70375 76900‬: ✍�✍� *श्लोक:* ✍�✍�

सुराणां सौभाग्याच्चलति जनतन्त्रो न गगने
न्यथा चन्द्रो नाथ: कथमिह निशाया:किल भवेत्।
कथं वा प्राचीदिक् दिनकरकरस्वागतविधिं
विदध्यात् प्रद्युम्नं कथमिह वसन्तोप्यनुसरेत्।।

✍�✍� *अर्थ:* ✍�✍�

   देवताओं के सौभाग्य से ही आकाश में जनतन्त्र नहीं चलता है वर्ना चन्द्रमा निशानाथ कैसे होता। पूर्व दिशा हरवक्त सूर्य किरणौं का स्वागत कैसे कर पाती और सर्वदा कामदेव का अनुसरण वसन्त कैसे करता? वहाँ भी बहूमत आरक्षण और प्रमोशन लागू हो गया होता।

🌷🌹 *संकलित* .......
[3/5, 07:54] ‪+91 89616 84846‬: 🌰🌹🌰 🙏🏻  🌰🌹🌰

  🔔 *आज  का  विचार* 🔔

🌰 *ईश्वर टूटी हुई चीजों का*
       *ईस्तेमाल कितनी खूबसूरती*
       *से करता है जैसे.........*
🌰 *बादल टूटने पर पानी की*
       *फुहार आती है,*
🌰 *मिट्टी टूटने पर खेत का*
       *रूप ले लेती है और*
🌰 *बीज टूटने पर एक नये पौधे*
       *की संरचना होती है*
🌰 *इसलिये जब आप खुद को*
       *टूटा हुआ महसूस करो तो*
       *समझ लीजिये.......*
🌰 *ईश्वर आपका इस्तेमाल*
       *किसी बड़ी उपयोगिता के*
       *लिये करना चाहता है..!!*
     
       🙏 *शुभ:  प्रभात्* 🙏
🌹 *आज  का  दिन*
       *आपका  शुभ  हो………*

🌰🌹🌰  🙏🏻  🌰🌹🌰
[3/5, 09:04] P Alok Ji: ग्यान पंथ कृपान कैधारा।परत खगेस होइ नहि पारा ।।जो निर्विघ्न पंथ निर्बहइ । सो कैवल्य परम पद लहइ ।। ग्यान का मार्ग कृपाण दुधारी तलवार के समान है हे गरूण जी इस मार्ग से गिरते देर नही लगती । जो,इस मार्ग को निर्विघ्न निबाह ले जाता है वही कैवल्य मोक्ष को पाता है ।
अति दुर्लभ कैवल्य परम पद ।संत पुरान निगम आगम बद।।राम भजत सोइ मुकुति गोसाइ अन इच्छित आवइ बरिआइ।।संत पुराण वेद और शास्त्र यह कहते हैं कि कैवल्य परम पद अत्यंत दुर्लभ है किन्तु हे गोसाइ वही कैवल्य मोक्ष श्रीराम को भजने से बिनाइच्छा किये भी जबरदस्ती आ जाती है । पिबत् राम चरित मानस रसम् श्रद्धेय आलोक जी शास्त्री इन्दौर मप्र
[3/5, 09:09] ‪+91 98670 61250‬: राधे राधे , आज का भगवद चिन्तन,   
                05-03-2017
🌸   आदमी पूरे जीवन सत्य की अपने हिसाब से व्याख्या करता रहता है। सत-संत, शास्त्र-सत्संग का अस्वीकार कर देने वाला तताकथित नास्तिक इसी वजह से सत्संग और कथा से दूर रहना चाहता है कहीं जीवन के प्रति बनाई हुई उसकी सोच खंडित- विखंडित ना हो जाये।
🌺   आदमी जैसा भी जीवन जीना चाहता है , उसके पक्ष में बहुत तर्क जुटा लेता है। तुम झूठे हो तो मन कहेगा कि सारी दुनिया झूठी है, सब झूठ से ही काम चला लेते हो। तुम बेईमान हो, तो मन कहेगा कि सारा संसार ही बेईमान है । यहाँ ईमानदार तो भूखे मर जाते हैं।
🌼    मन रास्ता निकालने में बड़ा कुशल है। ये दुनिया के लोग तो तुम्हारा कुछ ना बिगाड़ पाएंगे। यह मन तो जन्मों-जन्मों से तुम्हें धोखा दे रहा है। जीवन की गलत व्याख्या कर-करके बार-बार उन्हीं गड्डों में गिरा रहा है। तुम बड़े हैरान होओगे कि इस मन ने गलत आचरण के पक्ष में तर्क देकर तुम्हें जितना बर्बाद किया है, किसी ने नहीं किया।
🌸     इन चार का आश्रय किये बिना जीवन का उद्देश्य और सही गलत का निर्णय कभी ना कर पाओगे। "" सत्य, संत, शास्त्र और सत्संग।
[3/5, 10:36] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *धर्मार्थ रूपी उपवन में उपस्थित आप सभी भूदेवों एवं देवीयों को सादर नमन।*🌸🙏🏻🌸
*मन जीता तो जग जीता*
मन बड़ा बलवान् शत्रु है। इससे युद्ध करना भी अत्यंत दुष्कर कृत्य है। इससे युद्ध में एक विचित्रता है। यदि युद्ध करने वाला दृढ़ता से युद्ध में संलग्न रहे, निज इच्छाशक्ति को मन के व्यापारों पर लगाए रहे, तो युद्ध में संलग्न सैनिक की शक्ति अधिकाधिक बढ़ती है और एक दिन वह इस पर पूर्ण विजय प्राप्त कर लेता है।
[3/5, 11:10] राम भवनमणि त्रिपाठी: *महिलाओं के बालों पर न डालें हाथ, हो जाएगा वंश का नाश: पुराणों से*

हिंदू शास्त्रों में महिलाओं के बालों से संबंधित बहुत से वृतांत मिलते हैं।

केश महिलाओं का श्रृंगार होते हैं जो उनकी खूबसूरती को बयां करते हैं।

किसी खास अवसर पर ही महिलाएं बाल खोलती थीं, अधिकतर उन्हें बांध कर रखा जाता था क्योंकि खुले बाल शोक की निशानी माने जाते थे।

आज भी हिंदू धर्म में कोई भी शुभ काम होने जा रहा हो तो महिलाएं अपने बाल व्यवस्थित रूप से बांध कर रखती हैंं।

मंदिर में भी खुले बाल रखना अशुभ माना जाता है।

जो लड़कियां फैशन की आड़ में बालों को खुला रखती है उन पर नकारात्मक शक्तियां अपना प्रभाव शीघ्र डालती हैं।

खासतौर पर जब चन्द्रमा की कलाएं घटती हैं, उस दौरान मन अत्यधिक भावुक होता है तो ऊपरी बाधाएं आसानी से अपना बसेरा बना लेती हैं।

रात को बिस्तर पर लेटते ही बहुत सी महिलाओं की आदत होती है बंधे बालों को खोल देती हैं।

फिर सोती हैं। पुराणों के अनुसार इससे व्यक्तित्व पर द्वेषपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

निगेटिव ऊर्जा सक्रिय हो जाती है। अत: प्रतिदिन सोने से पूर्व बालों को बांध लें।

रामायण में बताया गया है, जब देवी सीता का श्रीराम से विवाह होने वाला था, उस समय उनकी माता सुनयना ने उनके बाल बांधते हुए उनसे कहा था, विवाह उपरांत सदा अपने केश बांध कर रखना।

बंधे बाल बंधन में रहना सिखाते हैं।

केवल एकांत में अपने पति के लिए इन्हें खोलना।

जब रावण देवी सीता का हरण करता है तो उन्हें केशों से पकड़ कर अपने पुष्पक विमान में पटकता है।

अत: उसका और उसके वंश का नाश हो गया।

महाभारत युद्ध से पूर्व कौरवों ने द्रौपदी के बालों पर हाथ डाला था, उनका कोई भी अंश जीवित न रहा।

कंस ने देवकी की आठवीं संतान को जब बालों से पटक कर मारना चाहा तो वह उसके हाथों से निकल कर महामाया के रूप में अवतरित हुई।

कंस ने भी अबला के बालों पर हाथ डाला तो उसके भी संपूर्ण राज-कुल का नाश हो गया।
*🙏🏻🚩जय परशुराम*
[3/5, 11:31] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: सत्संग के समय हृदय में कितने पवित्र भाव उठते हैं।हमारे जीवन में तेज हो, भगवद् तेज और आध्यात्मिक तेज. जो तभी आता है जब अंतर में क्षमा हो, धैर्य हो और पवित्रता हो. पवित्रता विचारों में, वाणी में, कर्म में. भोजन सात्विक हो, शुद्ध हो, सुपाच्य हो। स्नेह से बनाया गया हो. परोसते समय हृदय में निर्दोष प्रसन्नता हो. बनाते समय हृदय शांत हो।आँख देखने योग्य ही देखे और कान भी सद्विचारों को ग्रहण करें. इस जगत में जब राम व कृष्ण की निंदा करने वाले मौजूद हैं तो हमारी निंदा हो इसमें आश्चर्य क्या, उसे व्यर्थ की बात जानकर छोड़ देना ही ठीक होगा।संयम, नियम और दृढ़ इच्छा शक्ति हमारे मन को मांजती है, वह चमक उठता है और तब उसमें परम झलकता है. जिस सत्संग में ऐसे सुंदर विचार मिलें उसकी जितनी कद्र की जाये कम है।सदगुरु हृदय को अंधकार से प्रकाश में ले आते हैं. आत्मा का सूरज तो सबके हृदय में है पर बादलों से ढका है, संत वाणी की शीतल लहर इन  बादलों को उड़ा ले जाती है सब कुछ कितना स्पष्ट हो जाता है, अंतर में एक ऐसा आनंद का, कृतज्ञता का, प्रेम का भाव उठता है कि उसके सम्मुख कुछ भी नहीं ठहरता।
[3/5, 12:07] ‪+91 81093 29976‬: रिश्तों में वैसा ही.संबंध होना चाहिए.जैसे.हाथ और आँख
का होता है।..हाथ पर चोट लगती है,
        तो आँखों से आँसू
        निकलते है....और
        आँसू आने पर हाथ ही
       उनको साफ करता है.....श्री राधे
[3/5, 12:16] ‪+91 99267 22827‬: 🌷🌹जय सियाराम🌹🌷
न मिटै भव संकट दुर्घट है,
तप तीरथ जन्म अनेक अटो !
कलिमें न विराग, न ग्यान कहूं,
सब लागत फोकट झूठ-जटो !!
नटु ज्यों जनि पेट-कुपटक कोटिक-
चेटक-कोटिक कौतुक ठाट डटो !
तुलसी जो सदा सुख चाहिअ तौ,
रसना निसिबासर राम रटो !!
🌷🌹जय सियाराम🌹🌷
[3/5, 12:32] ‪+91 99267 22827‬: 🌷🌹जय राधे🌹🌷

चौरासी लाख योनियां

स्थावरं विंशतिर्लक्षं जलजं नवलक्षकम् !
कृमिश्च रुद्रलक्षं च दशलक्षं च पंक्षिणाम् !!

त्रिंशल्लक्षं पशूनां च चतुर्लक्षं च वानरा: !
ततो मनुष्यताप्रप्तिस्तत:. कर्माणि साधयेत् !!
[3/5, 14:06] ‪+91 99267 22827‬: श्रीमद्भागवत भगवान का समाज विषयक स्पष्ट क्रांतिकारी उद्घोष 🌷🌷
.
यस्य यल्लक्षणं प्रोक्तं पुंसो वर्णाभिव्यंजकम् !
यदन्यत्रापि दृश्येत तत्तेनैव विनिर्दिशेत् !!
             भाग. 7.11.35
अर्थात्- ब्राह्मणादि जिस पुरुष के वर्ण को बतानेवाला जो लक्षण कहा गया है, वह यदि अन्य वर्णवाले में मिले तो उसी वर्णका समझना चाहिये !!
[3/5, 16:32] ‪+91 94301 19031‬: एक पद का अर्थ पांव होता है और एक पद का अर्थ अधिकार होता है।पर एक बात ध्यान दे अगर कोई पद लेकर काम करता है तो उसके नाम के आगे भूत लग जाता है। जैसे भूतपूर्व मंत्री,भूतपूर्व बड़ा बाबु,भूत पूर्व शिक्षक,भूतपूर्व संसद आदि आदी। पर आजतक आपने ये नही सुना होगा की भूतपूर्व रामजी,भूतपूर्वश्यामजी,भूतपूर्व शिवजी,भूतपूर्व कबीर,तुलसीदास। आदि। सन्तो के नाम के आगे भूत नही लगता।आखिर क्यों? क्योकि इनके पास कोई पद नही है। और यदि पद है भी तो प्रभु श्री राम का पद है,भक्ति का पद है।और मेरे प्रभु राम कैसे है? ( बिनु पद चलई सुनई बिनु काना, कर बिनु करम करई विधि नाना।)भगवान बिना पद के बिना कान के,बिना हाथ के चलते,फिरते,सुनते है कार्य करते है। दूसरी बात अगर आप सत्ता में है,शासन में है तो खूब आवभगत,मान,बड़ाई मिलेगी पर जैसे ही 60 वर्ष के हुए बेदखल कर दिए जाएंगे रिटायर्ड कर दिए जिएंगे।फिर कोई सभा में जब जायेंगे तो कुर्सी आपको खोजनी पड़ जाएगी। सत्ता में लोग कुर्सी देते है पर रिटायर्ड के बाद कुर्सी आपको खोजनी पड़ जाएगी बैठने के लिए। पर मेरे प्रभु की नाम की येसी महिमा है श्री राम का,भक्ति का यैसा पद है जहां आपको निकाला नही जायेगा जीवन प्रयन्त बने रहेंगे। जैसे जैसे जीवन बढ़ेगा,भक्ति बढ़ेगी,भजन तेज होगा वैसे वैसे पद की गरिमा बढ़ती जायेगी।यहां उनको कुर्सी नही ढूंढनी पड़ेगी,वरन कुर्सी उनको खुद ढूंढेगी। ये है भक्ति की महिमा महाराज। ध्यान दे मैं ये नही कहता हूं कि आप कोई पद न ले,नौकरी न करे। परन्तु एक बात का ध्यान रखे। यदि आपकी योग्यता के आधार पर सरकार के द्वारा,समाज के द्वारा यदि आपको कोई पद मिल जाये तो स्वीकार करे पर उस पद का आसक्त न बने,घमण्ड न करे,किसी का तिरस्कार न करे। उस पद की तरफ ध्यान न दे। सदैव समाज का,सरकार का,गरीब का जनता का निःस्वार्थ भाव से सेवा करे,देश की सेवा करे।फिर देखिए महाराज आपके लिए भी ध्रुव के जैसा विमान आएगा लेने के लिए। 🙏जय श्री राम 🙏
[3/5, 16:47] ‪+91 99267 22827‬: 🌹श्रीमद्भागवतप्रसाद🌹
    🌷काल विभाग🌷

👉 पृथ्वी आदि कार्यवर्ग का वो सूक्ष्मांश जिसका विभाजन संभव नही है, तथा जो अब तक कार्य रूप मे परिणति नहीं हुआ है. तथा जो सर्वथा असंयुक्त है, उसे "परमाणु" कहते हैं !

👉 2 परमाणु मिलकर एक "अणु" होता है !

👉 3 अणुओं के मिलने से एक "त्रसरेणु" होता है !
इसे खिडकी से आ रही सूर्य की किरणों मे उडते हुये देखा जा सकता है !

👉 3 त्रसरेणुओं को पार करने में सूर्य को जितना समय लगता है, उसे "त्रुटि" कहते हैं !
(भारतीय वैदिक मानक के आधार पर सूर्यकी गति 24024km/ क्षण है)

👉 त्रुटि का सौ गुना समय "वेध" कहलाता है !

👉 3 वेध का एक "लव" होता है !

👉 3 लव का एक "निमेष" होता है !

👉 3 निमेष का एक "क्षण" होता है !

👉 5 क्षण की एक "काष्ठा" होती है!

👉 15 काष्ठा का एक "लघु" होता है !

👉 15 लघु की एक "नाडिका" होती है ! जिसे "दण्ड" भी कहा जाता है !

👉 2 नाडिका का एक "मुहूर्त" होता है !

👉 6 या 7 नाडिका का (दिन के घटने बढने के अनुसार) 1 "प्रहर" होता है, जिसे "याम" भी कहते हैं, यह मनुष्य के दिन या रात का चौथा भाग होता है!

👉 4-4  प्रहर के मनुष्य के "दिन-रात" होते हैं!

👉 15 दिन-रात का मनुष्य का 1 "पक्ष" होता है, तथा "शुक्ल" एवं "कृष्ण" भेद से दो प्रकार का माना गया है!

👉 इन दोनों पक्षों को मिलाकर 1"मास" होता है !
(मनुष्य का 1 मास पितरों का 1 दिन-रात होता है !

👉 2 मास का 1 "ऋतु" होता है !

👉 3 ऋतुओं का 1 "अयन" होता है, जो "दक्षिणायन" और "उत्तरायण" भेद से दो प्रकार का होता है !

👉 2 अयन मिलकर देवताओं के 1 दिन-रात होते हैं !

👉 देवताओं के 1 दिन-रात मनुष्यलोक में "वर्ष" या 12 मास कहे जाते हैं !

👉 ऐसे 100 वर्ष मनुष्य की परम आयु कही गयी है !

👉 इस प्रकार मनुष्य के 432000 (चार लाख बत्तीस हजार) वर्ष का "कलियुग" होता है !
864000 वर्ष का "द्वापरयुग" होता है !
1296000 वर्ष का "त्रेतायुग" होता है !
1728000 वर्ष का "सत्ययुग" होता है !
प्रत्येक युग के 4 चरण होते हैं !

👉 इन चारो युगों के काल का "चतुर्युगी" कहा जाता है !

👉 जब ये चारो युग 71 बार बीत जाते हैं तब 1 "मन्वन्तर" होता है, जो कि एक मनु का कार्यकाल होता है !

👉14 मन्वन्तर का 1 "कल्प" होता है !

👉यह 1 कल्प ब्रह्मा का 1 दिन होता है, तथा इतने ही समय की ब्रह्मा की रात्रि होती है, इसी गणनानुसार ब्रह्मा की परम आयु मानी गयी है, जिसे "पर" कहा जाता है, जिसे दो भागों में विभक्त किया गया  हैैै ! इस वक्त वर्तमानता ब्रह्मा अपनी आधी आयु का भोग कर चुके हैं, तथा दूसरे अर्द्ध भाग का भोग कर रहे हैं, इसीलिये संकल्पादि में "द्वितीये परार्द्धे" शब्द का उच्चारण किया जाता है !
इस बात को संम्यक् रूप से समझने के लिये शास्त्रोक्त संकल्पावलोकन करें तथा इस लेख में हुई त्रुटि के लिये पूज्य विद्वज्जन इस दासानुदास पर क्षमापूर्ण रखें ! जय राधे !!
      -आचार्य कृष्णकान्त शुक्ल
[3/5, 17:51] ‪+91 98896 25094‬: *एक विवाहित बेटी का पत्र उसकी माँ के नाम*✍🤦‍♀
"माँ तुम बहुत याद आती हो"
अब मेरी सुबह 6 बजे होती है और रात 12 बज जाती है,
तब "माँ तुम बहुत याद आती हो"
सबको गरम गरम परोसती हूँ, और खुद ठंढा ही खा लेती हूँ, तब "माँ तुम बहुत याद आती हो"
जब कोई बीमार पड़ता है तो एक पैर पर उसकी सेवा में लग जाती हूँ,
और जब मैं बीमार पड़ती हूँ तो खुद ही अपनी सेवा कर लेती हूँ,
तब "माँ तुम बहुत याद आती हो"
जब रात में सब सोते हैं,
बच्चों और पति को चादर ओढ़ाना नहीं भूलती,
और खुद को कोई चादर ओढाने वाला नहीं,
तब "माँ तुम बहुत याद आती हो"
सबकी जरुरत पूरी करते करते खुद को भूल जाती हूँ,
खुद से मिलने वाला कोई नहीं, तब
"माँ तुम बहुत याद आती हो"
यही कहानी हर लड़की की शायद शादी के बाद हो जाती है
कहने को तो हर आदमी शादी से पहले कहता है
"माँ की याद तुम्हें आने न दूँगा"
पर, फिर भी क्यों? "माँ तुम बहुत याद आती हो।
[3/5, 17:52] राम भवनमणि त्रिपाठी: II श्रीहरिः II

(गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित प्रातःस्मरणीय गोस्वामी तुलसीदासजी रचित ‘श्रीकृष्णगीतावली’ पुस्तकसे)
गोपी-उपालम्भ – ५

कबहुँ न जात पराए धामहि ।
खेलत ही देखौं निज आँगन सदा सहित बलरामहि ।। १ ।।
मेरे कहाँ थाकु गोरस को, नव निधि मन्दिर या महिं ।
ठाढी ग्वालि ओरहना के मिस आइ बकहिं बेकामहिं ।। २ ।।
हौं बलि जाउँ जाहु कितहूँ जनि, मातु सिखावति स्यामहि ।
बिनु कारन हठि दोष लगावति तट गएँ गृह ता महिं ।। ३ ।।
हरि मुख निरखि, परुष बानी सुनि, अधिक-अधिक अभिरामहिं ।
तुलसीदास प्रभु देख्योइ चाहति श्रीउर ललित ललामहिं ।। ४ ।।

(यशोदा मैया ग्वालिनोंसे कहती हैं – मेरा कन्हैया तो) कभी दूसरेके घर जाता ही नहीं । मैं तो इसको सदा बलरामके साथ अपने आँगनमें ही खेलता देखती हूँ ।१। मेरे यहाँ दूध-दही-माखनकी थाह (सीमा) थोड़े ही है (जो यह दूसरे घर जाय); मेरे इस घरमें नवों निधियाँ भरी हैं । ये ग्वालिनें, बिना ही प्रयोजन उलाहना देनेके बहाने आकर यहाँ खड़ी बक रही हैं ।२। (फिर) माता अपने श्यामसुन्दरको सीख देती है – (मेरे लाल !) मैं बलिहारी जाती हूँ, तुम कहीं मत जाया कर । बेटा ! (देखो) इनके घर जानेसे ये रुष्ट होती हैं और बिना ही कारण जबरदस्ती तुम पर दोष लगा रही हैं ।३। ग्वालिनें श्रीहरिके मुखको निरखकर और (यशोदाजीके) कठोर वचन सुनकर अधिक-अधिक सुख पा रही हैं । तुलसीदासजी कहते हैं कि वे तो श्रीलक्ष्मीजीके हृदयके इस ललित रत्न प्रभु श्रीकृष्णको देखते ही रहना चाहती हैं । (इसीलिए तो वे उलाहनेके बहाने आया करती हैं ।४।
[3/5, 18:12] P Omish Ji: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

वेदान्तदर्शने परब्रह्म इत्येकम्
----------------------------------

ईश्वर एव सम्पूर्णस्य जगतः सृष्टेः कारणरूपो भवति । तेनैव निर्मितं भवति इदं जगत् । यथा –लोके कुलालः घटस्य निर्माता भवति, घटनिर्माणात् पूर्वं तद्विषयकचिन्तां मनसि कृत्वा तज्ज्ञानं बुद्धौ सम्यगवधार्य अनन्तरं घटं निर्मास्यति एव परमात्मा प्राणिनां धर्माधर्मपुरस्सरं वेदोक्तरीत्या सृष्टिं करोति । यद्यपि वेदस्यापौरुषेयत्वमेव सिध्यति तथापि साक्षाद्वेदेनैव सृष्टयादयः न जायन्ते । अतः वेदस्य स्वतः अपौरुषेयत्वं ब्रह्मणा श्वासोच्छ्वासमुखेन प्रणीतत्वात् पौरुषेयत्वं च सिध्यतः । वेदस्य पौरुषयत्वमपि ब्रह्मणः नित्यत्वात् अपौषेयत्वं च सिध्यतः वेदस्य पौरुषतत्वमपि ब्रह्मणः नित्यत्वात् अपौरुषेयत्वमेव भजते जन्मनाशराहित्यात् । सत्वप्राणिनां धर्माधर्माः बुध्यादयश्च परमात्मनि वर्तन्ते ।

अयमीश्वरः तेषां धर्माधर्मानुसारेण चराचरप्राणिनां सृष्टिं करोति । तेषां भरणार्थं वेदानां निर्माणं करोति । यथा लोके पिता पुत्रमुत्पादयति, अनन्तरं तस्मै हिताय ज्ञानं बोधयति, तेन ज्ञानेन अहितानां कर्मणां परिहारं कर्तुं तस्य् शिक्षां ददाति तथा परमेश्वरः जीवानामिष्टप्राप्तेः अनिष्टपरिहारार्थं च वेदानां सृष्टिं करोति । किं च जीवानां सुकृत-दुष्कृतकर्मणां फलमीश्वरः ददाति ।

पूर्वमीमांसायां तु कर्म स्वतः अपूर्वोत्पादनद्वारा स्वस्य फलं ददाति इत्यभ्युपगम्यते । ईश्वरः इत्येको वर्तते वा न वा इत्यत्र एतेषां मीमांसा नास्ति । वेदान्तदर्शने परब्रह्म इत्येकम् अनन्तमनादि अस्तीत्यभ्युपगम्यते, तद वेदस्य् निर्मातृ भवति इति च पूर्वोत्तरमीमांसयोः
अभेदः ।

                –जय श्रीमन्नारायण।
                     संकलित ✍
[3/5, 19:32] पं विजय जी: 🙏शुभ संध्या वंदन नमन🙏
अवश्यम्भाविनो भावा भवन्ति महतामपि।
नग्नत्वं नीलकण्ठस्य महाहिशयनं हरेः।।
अर्थात् : किसी भी प्रतापी, वैभवशाली और महान पुरुषों व चरित्रों को भी कई तरह के सांसारिक सुख व दुःख का सामना करना ही पड़ता है। उसी तरह जैसे खुद महादेव को भी बिना वस्त्र के दिगम्बर रूप में रहना पड़ता है और जगतपालक भगवान विष्णु को शय्या के बिना शेषनाग जैसे भुजंग पर सोना पड़ता है, इसलिए सांसारिक जीवन में व्यर्थ के संताप व चिंताओं को नहीं पालना चाहिए।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
[3/5, 19:53] पं विजय जी: श्रद्धा और विश्वास
      श्रेष्ठता के प्रति अटूट आस्था का नाम है श्रद्धा -जब आस्था सिद्धांत और व्यवहार में उतरती है या अवतरित होती है तब उसे निष्ठां कहा जाता है ,जब निष्ठां आत्मा के लक्ष्य जीवन दर्शन और भक्ति के क्षेत्र में प्रवेश होती है तो श्रद्धा कहलाती है। यही श्रद्धा वरिष्ठजनों के प्रति कर्तव्य है और बराबरी वालों के प्रति विनय है। श्रेष्ठजनों के प्रति श्रद्धा भाव उनके सदगुणों की विशिष्टताओं के कारन उन्नति के शिखर पर पहुचनें कि सीढ़ी जैसा प्रेणा श्रोत है।श्रद्धा जब विश्वास से जुड़ जाती है तब पाषाण में भी चेतना जाग्रत कर देती है। आज के भौतिकवादी युग में श्रद्धा और विश्वास कि अतयंत आवश्यकता है आध्यात्म के क्षेत्र में तो श्रद्धा और विश्वास दोनों ही अनिवार्य होते हैं. इनके प्रभाव से आध्यात्म -जगत में अर्जित ऊर्जा के परिणाम अत्यंत विलक्षण और चमत्कारी होते है। श्रद्धा और विश्वास के बलपर पाषाण -ह्रदय भी द्रवित होकर स्रवित हो उठता है। श्रद्धा ही पारस्पारिक स्नेहोदर और सहयोग कि सुदृढ़ रज्जु से हमें बांधे रखती है श्रद्धा कि कड़ी टूटते ही हमारे जीवन में विघटन का समावेश हो जाता है और हम बिखरने लगते हैं. श्रद्धा और विश्वास में  एकत्व की अपार सामर्थ्यता है।
[3/5, 21:33] ‪+91 98975 65893‬: 🌺🌺🙏🙏🌺🌺🙏🙏🌺🌺
*********|| जय श्री राधे ||*********
🌺🙏 *महर्षि पाराशर पंचांग* 🙏🌺
🙏🌺🙏 *अथ  पंचांगम्* 🙏🌺🙏

*दिनाँक -: 06/03/2017*
नवमी, शुक्ल पक्ष
फाल्गुन
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""'(समाप्ति काल)

तिथि------- नवमी26:01:47  तक
पक्ष--------------शुक्ल
नक्षत्र----- मृगशिरा19:42:01
योग-------- प्रीति16:21:02
करण-------बालव14:58:58
करण-------कौलव26:01:47
वार------------- सोमवार
माह------------- फाल्गुन
चन्द्र राशि---- वृषभ 08:19:50
चन्द्र राशि---  मिथुन 08:19:50
सूर्य राशि----------- कुम्भ
रितु निरयन--------- वसन्त
रितु सायन---------- ग्रीष्म
आयन----------  उत्तरायण
संवत्सर------------दुर्मुख
संवत्सर (उत्तर)---------------सौम्य
विक्रम संवत---------2073
विक्रम संवत (कर्तक)------- 2073
शाका संवत--------- 1938

वृन्दावन
सूर्योदय--------- 06:39:44
सूर्यास्त--------- 18:21:26
दिन काल-------- 11:41:42
रात्री काल--------12:17:14
चंद्रोदय---------  12:27:22
चंद्रास्त---------  26:20:45

लग्न---कुम्भ  21°33' , 321°33'

सूर्य नक्षत्र------  पूर्वाभाद्रपदा
चन्द्र नक्षत्र-------- मृगशिरा
नक्षत्र पाया---------- लोहा

*🚩💮🚩पद, चरण🚩💮🚩*

वो  मृगशीर्षा  08:19:503

का  मृगशीर्षा  14:00:334

की  मृगशीर्षा  19:42:011

कु  आद्रा  25:24:17

*💮🚩💮ग्रह गोचर💮🚩💮*

ग्रह =राशी   , अंश  ,नक्षत्र,  पद
=======================
सूर्य=कुम्भ 21° 33 ' पू oभा o,  1से
चन्द्र=वृषभ 29° 01' मृगशिरा ' 2 वो
बुध=कुम्भ 20 ° 49'  पू o भा o,1 से
शुक्र=मीन 19 ° 03'   रेवती  ,  1 दे
मंगल=मेष  02° 19'  अश्विनी ' 1 चु
गुरु=कन्या  27 ° 59'   चित्रा ,   2 पो
शनि=धनु 02 ° 53'      मूल '   1 ये
राहू=सिंह   08 ° 59'    मघा  ,  3  मू
केतु=कुम्भ 08°59 ' शतभिषा, 1 गो

*🚩💮🚩शुभा$शुभ मुहूर्त🚩💮🚩*

राहू काल 08:07 - 09:35अशुभ
यम घंटा 11:03 - 12:31अशुभ
गुली काल 13:58 - 15:26अशुभ
अभिजित 12:07 -12:54शुभ
दूर मुहूर्त 12:54 - 13:41अशुभ
दूर मुहूर्त 15:14 - 16:01अशुभ

💮चोघडिया, दिन
अमृत 06:40 - 08:07शुभ
काल 08:07 - 09:35अशुभ
शुभ 09:35 - 11:03शुभ
रोग 11:03 - 12:31अशुभ
उद्वेग 12:31 - 13:58अशुभ
चाल 13:58 - 15:26शुभ
लाभ 15:26 - 16:54शुभ
अमृत 16:54 - 18:21शुभ

🚩चोघडिया, रात
चाल 18:21 - 19:54शुभ
रोग 19:54 - 21:26अशुभ
काल 21:26 - 22:58अशुभ
लाभ 22:58 - 24:30*शुभ
उद्वेग 24:30* - 26:02*अशुभ
शुभ 26:02* - 27:34*शुभ
अमृत 27:34* - 29:07*शुभ
चाल 29:07* - 30:39*शुभ

*नोट*-- दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।

*💮दिशा शूल ज्ञान-----------पूर्व*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा काजू खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l
भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll

*🚩अग्नि वास ज्ञान  -:*

9 + 1 + 1 = 11 ÷ 4 = 3 शेष
पृथ्वी पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक है l

*💮 शिव वास एवं फल -:*

9 + 9 + 5 = 23 ÷ 7 = 2 शेष

गौरि सन्निधौ = शुभ कारक

*💮🚩 विशेष जानकारी 🚩💮*

*सर्वार्थ सिद्धि एवं अमृत सिद्धि योग 19:41 तक

* लट्ठमार होली ,श्री जी मन्दिर रंगीली गली बरसाना

*💮🚩💮शुभ विचार💮🚩💮*

सानन्दं सदनं सुतास्तु सधियः कांता प्रियालापिनी
इच्छापूर्तिधनं स्वयोषितिरतिः स्वाज्ञापराः सेवकाः
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्टान्नपानं गृहे
साधोः सुड्गमुपासते च सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः ।।
।।चा o नी o।।

  वह गृहस्थ भगवान् की कृपा को पा चुका है जिसके घर में आनंददायी वातावरण है. जिसके बच्चे गुणी है. जिसकी पत्नी मधुर वाणी बोलती है. जिसके पास अपनी जरूरते पूरा करने के लिए पर्याप्त धन है. जो अपनी पत्नी से सुखपूर्ण सम्बन्ध रखता है. जिसके नौकर उसका कहा मानते है. जिसके घर में मेहमान का स्वागत किया जाता है. जिसके घर में मंगल दायी भगवान की पूजा रोज की जाती है. जहा स्वाद भरा भोजन और पान किया जाता है. जिसे भगवान् के भक्तो की संगती में आनंद आता है.

*🚩💮🚩सुभाषितानि🚩💮🚩*

गीता -: विश्वरूप दर्शन योग अo-11

किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तमिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव।,
तेनैव रूपेण चतुर्भुजेनसहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते॥,

मैं वैसे ही आपको मुकुट धारण किए हुए तथा गदा और चक्र हाथ में लिए हुए देखना चाहता हूँ।, इसलिए हे विश्वस्वरूप! हे सहस्रबाहो! आप उसी चतुर्भुज रूप से प्रकट होइए॥,46॥,

*💮🚩दैनिक राशिफल🚩💮*

देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत्।।

🐑मेष
मान-प्रतिष्ठा में कमी होगी। वाहन-मशीनरी, चोरी-हानि इत्यादि से बचेंगे। शत्रु परेशान करेंगे। व्ययभार बढ़ेगा। व्यापार-व्यवसाय धीमा चलेगा।

🐂वृष
रुका हुआ धन वापस आने के प्रयास करें। शत्रु शांत रहेंगे। यात्रा लाभकारी रहेगी। नौकरी, इंटरव्यू में सफलता मिलेगी। भागदौड़ रहेगी।

👫मिथुन
पुरानी योजनाएं कार्यान्वित होंगी। निवेश लाभ देगा। व्यापार-नौकरी से लाभ होगा। शत्रु पराजित होंगे। संतान पक्ष की चिंता रहेगी।

🦀कर्क
शासकीय कार्य लाभ देंगे। धार्मिक यात्रा में खर्च होगा। जोखिमभरे कार्यों में रुचि बढ़ेगी। शत्रु समय का इंतजार करेंगे। भागदौड़ अधिक रहेगी।

🐅सिंह
पुराने विवाद सुलझने से प्रसन्नता बढ़ेगी। रुके कार्य होंगे। व्यापार निवेश लाभदायक होंगे। इंटरव्यू में सफलता मिलेगी। पराक्रम से लाभ होगा।

💁कन्या
विरोधी शांत रहेंगे। नौकरी, निवेश, व्यापार से लाभ होगा। यात्रा लाभकारी रहेगी। जोखिमभरे कार्यों से बचें। धन प्राप्ति सुगम होगी। व्यय वृद्धि होगी।

⚖तुला
व्यापार-निवेश से लाभ, संतान पक्ष की चिंता होगी। शत्रु शांत रहेंगे। नौकरी-इंटरव्यू में सफलता मिलेगी। शरीर सुस्त रहेगा। जोखिम न लें।

🦂वृश्चिक
पार्टी-दावत का लुत्फ उठाएंगे। बुद्धि से संबंधित कार्यों में सफलता मिलेगी। शत्रु शांत रहेंगे, हानि से बचें। जोखिम-जमानत के कार्य टालें।

🏹धनु
शत्रु से हानि, प्रतिष्ठा को आघात लग सकता है। कार्यों में व्यवधान आ सकता है। विवाद टालें। अस्वस्थता रहेगी। चिंता रहेगी।

🐊मकर
जोखिमभरे कार्यों में सावधानी आवश्यक है। पराक्रम से लाभ होगा। अति उत्साह हानिकारक होगा। व्यापार ठीक चलेगा। विश्वासघात संभव है।

🍯कुंभ
विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा। यात्रा लाभकारी होगी। पराक्रम से लाभ, व्यापार निवेश से लाभ होगा। रुका हुआ धन मिलेगा, प्रयास करें।

🐠मीन
कुसंगति से हानि, व्यापार-व्यवसाय धीमा चलेगा। पराक्रम से लाभ होगा। जोखिमभरे कार्य सावधानी से करें। यात्रा व निवेश आदि मनोनुकूल रहेगा।

🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏
🌺🌺🌺🌺🙏🌺🌺🌺🌺
*आचार्य  नीरज  पाराशर (वृन्दावन)*
(व्याकरण,ज्योतिष,एवं पुराणाचार्य)
09897565893 , 09412618599
[3/5, 23:35] ‪+91 98239 16297‬: *सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे दैनिक पंचांग-- ०६
मार्च २०१७*

***!!श्री मयूरेश्वर प्रसन्न!!***
☀धर्मशास्त्रसंमत प्राचीन शास्त्रशुद्ध सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग (पुणे) नुसार
दिनांक ०६ मार्च २०१७
*राष्ट्रीय भारतीय सौर दिनांक* १५ फाल्गुन,शके १९३८
पृथ्वीवर अग्निवास दिवसभर.
शुक्र मुखात आहुती आहे.
शिववास गौरीसन्निध,काम्य शिवोपासनेसाठी शुभ दिवस आहे.
☀ *सूर्योदय* -०६:५४
☀ *सूर्यास्त* -१८:३८
*शालिवाहन शके* -१९३८
*संवत्सर* -दुर्मुख
*अयन* -उत्तरायण
*ऋतु* -शिशिर (सौर)
*मास* -फाल्गुन
*पक्ष* -शुक्ल
*तिथी* -नवमी
*वार* -सोमवार
*नक्षत्र* -मृग
*योग* -प्रीती
*करण* -बालव (१६:२३ नंतर कौलव)
*चंद्र रास* -वृषभ (०९:५१ नंतर मिथुन)
*सूर्य रास* -कुंभ
*गुरु रास* -कन्या
*राहु काळ* -०७:३० ते ०९:००
*पंचांगकर्ते*:सिद्धांती ज्योतिषरत्न गणकप्रवर
*पं.गौरवशास्त्री देशपांडे-०९८२३९१६२९७*
*विशेष*-आनंदनवमी-अन्नदाननवमी व्रत,सर्वार्थामृतसिद्धियोग २१:०५ पर्यंत नंतर रवियोग,या दिवशी पाण्यात शंखोदक (शंखातील पाणी) घालून स्नान करावे.शिव मानसपूजा या स्तोत्राचे पठण करावे."सों सोमाय नमः" या मंत्राचा किमान १०८ जप करावा.सत्पात्री व्यक्तिस तांदूळ दान करावे.शंकराला दहिभाताचा नैवेद्य दाखवावा.यात्रेसाठी घरातून बाहेर पडताना दूध प्राशन करुन बाहेर पडल्यास प्रवासात ग्रहांची अनुकूलता प्राप्त होईल.
*विशेष टीप* - *आगामी नूतन संवत्सरारंभी येणारा गुढीपाडवा सूर्यसिद्धांतीय पंचांगानुसार म्हणजेच मुख्यतः धर्मशास्त्रानुसार या वेळी मंगळवार दि.२८ मार्च २०१७ रोजी नसून फक्त बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजी आहे.कारण सूर्यसिद्धांतानुसार दि.२८ मार्च रोजी सूर्योदयास अमावस्या तिथी आहे व दि.२९ मार्च रोजी सूर्योदयास प्रतिपदा तिथी आहे.याची विशेष नोंद हिंदूंनी घ्यावी व सर्वांनी गुढी-ब्रम्हध्वज पूजन हे चैत्र शु.प्रतिपदेला बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजी करावे.*
www.facebook.com/DeshpandePanchang
*टीप*-->>सर्व कामांसाठी चांगला दिवस आहे.
**या दिवशी दुधीभोपळा खावू नये.
**या दिवशी पांढरे वस्त्र परिधान करावे.
*आगामी नूतन संवत्सराचे सर्वांना उपयुक्त व फायदेशीर असे धर्मशास्त्रसंमत सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग सर्वत्र उपलब्ध आहे.*
♦ *लाभदायक वेळा*-->>
लाभ मुहूर्त--  दुपारी ३.४५ ते सायंकाळी ५.१५
अमृत मुहूर्त--  सायंकाळी ५.१५ ते सायंकाळी ६.४५
|| *यशस्वी जीवनाचे प्रमुख अंग* ||
|| *सूर्यसिध्दांतीय देशपांडे पंचांग* ||
आपला दिवस सुखाचा जावो,मन प्रसन्न राहो.
(कृपया वरील पंचांग हे पंचांगकर्त्यांच्या नावासहच व अजिबात नाव न बदलता शेअर करावे.या लहानश्या कृतीने तात्त्विक आनंद व नैतिक समाधान मिळते.@copyright)
[3/5, 23:50] पं रोहित: *😀 किञ्चित् हसामः 😀*
माता - पुत्र ! शीघ्रम् आगच्छ। मम
       पुत्रवधूः पक्षाघातग्रस्ता जाता ।
       तस्याः मुखं वक्रीभूतम् जातम् ,
       नेत्रे उर्ध्वं स्तः , ग्रीवा अपि
       स्कन्धाश्रिता अस्ति। तस्याः
       पक्षाघातः एव अभवत्। शीघ्रं 
       आगच्छ  पुत्र !
पुत्रः - चिन्ता मास्तु , मातः । तस्याः
       किमपि न जातम् । सा ' सेल्फी '
       स्वीकुर्वती अस्ति !!!!😃😜😝😆
[3/5, 23:52] पं अनिल ब: धर्मार्थ परिवार में सभी गुरुजनों को एवं सभी बड़ी बहन एवं देवियों को अनिल पांडे का प्रणाम स्वीकार हो 🙏🏼🙏🏼🙏🏼
जय साकी दीदी जी के द्वारा आए हुए फोटो पोस्ट पर क्षमा मांगने के बाद भी अनुज मंगलेश्वर त्रिपाठी जी ने रिमूव कर दिया सत्य है कि उनके द्वारा किया हुआ कार्य गलत हुआ परंतु दीदी जी को पुनः जोड़ने के बाद मंगलेश्वर ने उनसे अपनी सद्भावना व्यक्त की और मैं उषा दीदी जी से करबद्ध निवेदन प्रार्थना करता हूं की बहन जी को मंगलेश्वर जी ने रिमूव किया क्या हम सब उनके अनुज नहीं है छोटे भाई नहीं है हम सबसे तो गलती हो सकती है यही समझ कर दीदी जी आप हम सबको क्षमा करने की कृपा हो और धर्मार्थ में सभी अनुजो की तरफ से मैं निवेदन करता हूं कि आप दीदी जी को पुनह इस धर्मार्थ में लाएं और हम सबको उनका आशीर्वाद और प्यार मिलता रहे ऐसा निवेदन है हम चाहते हैं कि हमारे इस परिवार से कोई भी ऐसा व्यक्ति जो कि इस परिवार के एक अभिन्न अंग है वह हम सब से दूर न जाए नहीं बहुत ही कष्ट होगा और जो नियम जी महोदय जी ने बताया है आप सभी के विचारों का सम्मान करते हुए प्रशासनिक में इस विषय पर चर्चा होगी और इसको जो है प्रशासनिक में स्थान दिया जाएगा अनुज मंगलेश्वर की तरफ से मैं बार-बार हाथ जोड़कर के निवेदन करते हुए प्रार्थना करना चाहता हूं कि हमारी बड़ी बहन को इस परिवार में लाया जाए और हम सभी भाइयों को उनका आशीर्वाद मिले ऐसी कामना है उषा दीदी जी से जो कि यह कार्य वह पूर्ण रुप से कर सकती हैं
🙏🏼💐🙏🏼जय महाकाल🙏🏼💐🙏🏼
[3/5, 23:53] पं रोहित: ✈✈✈✈✈✈✈✈✈
अमेरिकादेशे विमानः एकः दुष्करवातावरणेन दुष्प्रभावितः सन् नियन्त्रणात् च्युतः जातः, पर्वताणां समीपे आगतः।

किन्तु अनुभवी, कुशलः विमानचालकः विमानं पर्वताणां वलित्वा, यथा पर्वतान् न घट्टयेत् तथा वक्रं मार्गक्रमणं कृत्वा सुरक्षितस्थितौ विमानपत्तने अवतारितवान्, अपघातं च परिहृतवान्।

विमानपत्तने सर्वैः अभिनन्दितः सत्कृतः सः केनापि कौतुहलवशात् पृष्टः, "एतादृशः कौशलः भवता कुतः प्राप्त? "

तेनोक्तम्, "इतः पूर्वम् अहं हैदराबादे आटोयानचालकः आसम्"।
🤔😆😜😅😎😄😂😇
[3/6, 07:13] ‪+91 78602 64878‬: #ब्रह्म_संहिता

पन्थास्तु    कोटिशतवत्सरसम्प्रगम्यो।
           वायोरथापि मनसो मुनिपुङ्गवानाम्।
सोऽप्यस्ति यत्प्रपदसीम्न्यविचिन्त्यतत्तवे।
           गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।।३४।।

पन्थाः = मार्ग
तु = किन्तु
कोटि-शत = हजारों - लाखों
वत्सर = वर्ष
सम्प्रगम्यः = तक व्याप्त
वायोः = वायु के
अथापि = या
मनसः = मन के
मुनि-पुंगवानाम् = अग्रगण्य ज्ञानियों के
सः = वह (मार्ग)
अपि = केवलमात्र
अस्ति = है
यत् = जिनके
प्रपद = अंगूठे
सीम्नि = के अग्र भाग तक
अविचिन्त्य तत्त्वे = भौतिक विचार से परे
गोविन्दम् = गोविन्द को
आदिपुरूषम् = आदि पुरुष
तम् = उनको
अहम् = मैं
भजामि = भजन करता हूँ

चिन्मयता को प्राप्त करने के इच्छुक योगियों के प्राणायामादि वायु-निरोधात्मक योगपथ से अथवा निर्भेद ब्रह्मानुसंधान करने वाले श्रेष्ठ ज्ञानियों के भौतिक त्याग द्वारा ज्ञानपथ से, शत-कोटि वर्षों के साधन करने पर भी जिनके चरणारविन्द के अग्रभाग तक ही पहुंच हो पाती है, उन आदिपुरूष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूँ।

सुप्रभात
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
  नमोनमः सर्वेभ्योः
[3/6, 07:14] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूलश्लोकः 🔔*
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥ २.२४ ॥
*🏹पदच्छेदः.........*
अच्छेद्यः, अयम्, अदाह्यः, अयम्, अक्लेद्यः, अशोष्यः, एव, च । नित्यः, सर्वगतः, स्थाणुः, अचलः, अयम्, सनातनः ॥
*🌷पदपरिचयः...... 🌷*
अयम् — इदम्-म.सर्व.पुं.प्र.एक.
अच्छेद्यः — अ.पुं.प्र.एक.
अयम् — इदम्-म.सर्व.पुं.प्र.एक.
अदाह्यः — अ.पुं.प्र.एक.
अयम् — इदम्-म.सर्व.पुं.प्र.एक.
अक्लेद्यः — अ.पुं.प्र.एक.
अशोष्यः — अ.पुं.प्र.एक.
एव — अव्ययम्
च — अव्ययम्
अयम् —  इदम्-म.सर्व.पुं.प्र.एक.
नित्यः — अ.पुं.प्र.एक.
सर्वगतः — अ.पुं.प्र.एक.
स्थाणुः — उ.पुं.प्र.एक.
अचलः — अ.पुं.प्र.एक.
सनातनः — अ.पुं.प्र.एक.
*🌹पदार्थः......🌹*
अयम् — एषः आत्मा
अच्छेद्यः — छेत्तुम् अयोग्यः
अयम् — एषः आत्मा
अदाह्यः — दग्धुम् अयोग्यः
अयम् — एषः
अक्लेद्यः — क्लेदयितुम् अशक्यः
अशोष्यः — शोषयितुम् अशक्यः
एव — एव
च — च
अयम् — एष:
नित्यः — शाश्वतः
सर्वगतः — सर्वव्यापी
स्थाणुः — स्थिरः
अचलः — कम्परहितः
सनातनः — सदावर्ती
*🌻अन्वयः 🌻*
अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः । अयम् अक्लेद्यः अशोष्यः एव च । अयं नित्यः सर्वगतः स्थाणुः अचलः सनातनः (च) ।
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_अयं कीदृशः?_
*अयम् अच्छेद्यः ।*
अयम् अच्छेद्यः। अयं पुनश्च कीदृशः?
*अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः ।*
अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः ।अयं पुनश्च कीदृशः?
*अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः । अयम् अक्लेद्यः ।*
अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः । अयम् अक्लेद्यः पुनश्च कीदृशः?
*अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः । अयम् अक्लेद्यः अशोष्यः एव च ।*
अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः । अयम् अक्लेद्यः अशोष्यः एव च ।अयं पुनश्च कीदृशः?
*अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः । अयम् अक्लेद्यः अशोष्यः एव च । अयम् नित्यः ।*
अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः । अयम् अक्लेद्यः अशोष्यः एव च । अयम् नित्यः पुनश्च कीदृशः?
अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः । अयम् अक्लेद्यः अशोष्यः एव च । अयम् नित्यः,सर्वगतः ।
अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः । अयम् अक्लेद्यः अशोष्यः एव च । अयम् नित्यः,सर्वगतः पुनश्च कीदृशः?
अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः । अयम् अक्लेद्यः अशोष्यः एव च । अयम् नित्यः सर्वगतः स्थाणुः ।
अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः । अयम् अक्लेद्यः अशोष्यः एव च । अयम् नित्यः सर्वगतः स्थाणुः पुनश्च कीदृशः?
*अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः । अयम् अक्लेद्यः अशोष्यः एव च । अयम् नित्यः सर्वगतः ,स्थाणुः,अचलश्च ।*
अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः । अयम् अक्लेद्यः अशोष्यः एव च । अयम् नित्यः सर्वगतः ,स्थाणुः,अचल:  पुनश्च कीदृशः?
*अयम् अच्छेद्यः । अयम् अदाह्यः । अयम् अक्लेद्यः अशोष्यः एव च । अयम् नित्यः सर्वगतः ,स्थाणुः,अचल: सनातनः च ।*
*📢 तात्पर्यम्......*
अयम् आत्मा शस्त्रेण केनापि छेत्तुम् अशक्यः । अग्निना भस्मीकर्तुम् अपि न शक्यः । अस्य जलादिना क्लेदनम् आतपादिना शोषणं वा न शक्यम् । अयं सर्वदा भवति । सर्वत्रापि भवति । अयं निश्चलः स्थिरः सनातनश्च वर्तते ।
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
अच्छेद्योऽयम् = अच्छेद्यः + अयम् – विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः, पूर्वरूपं च ।
अदाह्योऽयम् = अदाह्यः + अयम् – विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः, पूर्वरूपं च ।
अक्लेद्योऽशोष्यः = अक्लेद्यः + अशोष्यः – विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः, पूर्वरूपं च ।
अचलोऽयम् = अचलः + अयम् – विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः, पूर्वरूपं च ।
अशोष्य एव = अशोष्यः + एव – विसर्गसन्धिः (लोपः)।
स्थाणुरचलः = स्थाणुः + अचलः – विसर्गसन्धिः (रेफः)।
▶ समासः
अच्छेद्यः = न च्छेद्यः — नञ्तत्पुरुषः ।
अदाह्यः = न दाह्यः — नञ्तत्पुरुषः ।
अक्लेद्यः = न क्लेद्यः — नञ्तत्पुरुषः ।
अशोष्यः = न शोष्यः – नञ्तत्पुरुषः ।
अचलः = न चलः – नञ्तत्पुरुषः ।
सर्वगतः = सर्वं गतः – द्वितीयातत्पुरुषः ।
▶ कृदन्तः
छेद्यः = छिद् + ण्यत् (कर्मणि) एवम् दह्-दाह्यः, क्लिद्-क्लेद्यः, शुष्-शोष्यः इति बोध्यम् ।
गतः = गम्लृ + क्त (कर्तरि) ।
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                              *गीताप्रवेशात्*
[3/6, 07:33] ‪+91 98895 15124‬: .       ।। 🕉 ।।
  🚩 🌞 *सुप्रभातम्* 🌞 🚩
««« *आज का पंचांग* »»»
कलियुगाब्द.............5118
विक्रम संवत्...........2073
शक संवत्..............1938
मास...................फाल्गुन
पक्ष.......................शुक्ल
तिथी.....................नवमी
रात्रि 02.01 पर्यंत पश्चात दशमी
तिथिस्वामी................सर्प
नित्यदेवी............शिवदूती
रवि.................उत्तरायण
सूर्योदय.......06.44.04 पर
सूर्यास्त.......06.32.33 पर
नक्षत्र.................मृगशिरा
संध्या 07.42 पर्यंत पश्चात आर्द्रा
योग.......................प्रीती
दोप 04.21 पर्यंत पश्चात आयुष्यमान
करण....................बालव
दुसरे दिन दोप 02.59 पर्यन्त पश्चात कौलव
ऋतु.......................बसंत
दिन....................सोमवार

🇬🇧 *आंग्ल मतानुसार* :-
06 मार्च सन 2017 ईस्वी ।

👁‍🗨 *राहुकाल* :-
प्रात: 08.14 से 09.42 तक ।

🚦 *दिशाशूल* :-
पूर्व दिशा- यदि आवश्यक हो तो दर्पण देखकर यात्रा प्रारंभ करें।

☸ शुभ अंक..............6
🔯 शुभ रंग..............लाल

✡ *चौघडिया* :-
प्रात: 06.47 से 08.14 तक अमृत
प्रात: 09.42 से 11.09 तक शुभ
दोप. 02.05 से 03.32 तक चंचल
अप. 03.32 से 05.00 तक लाभ
सायं 05.00 से 06.28 तक अमृत
सायं 06.28 से 08.00 तक चंचल ।

💮 *आज का मंत्र* :-
|| ॐ उत्तर्येय नमः ||

 *संस्कृत सुभाषितानि* :-
*अष्टावक्र गीता - तृतीय अध्याय :-* 
स्वभावाद् एव जानानो
दृश्यमेतन्न किंचन।
इदं ग्राह्यमिदं त्याज्यं
स किं पश्यति धीरधीः॥३- १३॥
अर्थात :-
स्वभाव से ही विश्व को दृश्यमान जानो, इसका कुछ भी अस्तित्व नहीं है। यह ग्रहण करने योग्य है और यह त्यागने योग्य, देखने वाला स्थिर प्रज्ञायुक्त व्यक्ति क्या देखता है?॥१३॥

🍃 *आरोग्यं* :-
लो ब्लड प्रेशर के लिए घरेलू नुस्खे :-

1. 50 ग्राम देशी चने व 10 ग्राम किशमिश को रात में 100 ग्राम पानी में
किसी भी कांच के बर्तन में रख दें। सुबह चनों को किशमिश के साथ अच्छी तरह से
चबा-चबाकर खाएं और पानी को पी लें। यदि देशी चने न मिल पाएं तो सिर्फ किशमिश
ही लें। इस विधि से कुछ ही सप्ताह में ब्लेड प्रेशर सामान्य हो सकता है।

2. रात को बादाम की 3-4 गिरी पानी में भिगों दें और सुबह
उनका छिलका उतारकर कर 15 ग्राम मक्खन और
मिश्री के साथ मिलाकर बादाम - गिरी को खाने से लो ब्लड प्रेशर नष्ट होता है।

3. प्रतिदिन आंवले या सेब के मुरब्बे का सेवन लो ब्लेड प्रेशर में बहुत उपयोगी होता है।
आंवले के 2 ग्राम रस में 10 ग्राम शहद मिलाकर कुछ दिन प्रातःकाल सेवन करने से लो ब्लड प्रेशर दूर करने में मदद
मिलती है।

⚜ *आज का राशिफल* :-

*राशि फलादेश मेष* :-
हानि-दुर्घटना से बचें। शुभ समाचार प्राप्त होंगे। व्यापार-व्यवसाय ठीक चलेगा। निवेश, इंटरव्यू में सफलता मिलेगी। शत्रु शांत रहेंगे।
                        
🐂 *राशि फलादेश वृष* :-
यात्रा लाभकारी होगी। शुभ संयोग उपस्थित होंगे। व्यापार-निवेश से लाभ होगा। शत्रु परास्त होंगे। कार्यपद्धति में सुधार से लाभ का प्रतिशत बढ़ेगा।
                             
*राशि फलादेश मिथुन* :-
दुष्ट व्यक्ति का साथ हानिकारक होगा। पुराना रोग उभर सकता है। व्यय की अधिकता से मन खिन्न होगा। राजकीय बाधा खड़ी होगी।
                         
🦀 *राशि फलादेश कर्क* :-
विरोधी परेशान करेंगे। मातृपक्ष की चिंता बढ़ेगी। आवश्यक वस्तु गुम-चोरी हो सकती है। रुका हुआ धन तकादा करने पर वापस आ सकता है।
                    
🦁 *राशि फलादेश सिंह* :-
नई योजनाएं बनेंगी। प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। निवेश लाभदायक होगा। जोखिमभरे कार्य में सावधानी रखें। शत्रु शांत रहेंगे। धर्म-कर्म में रुचि रहेगी।
       
🏻 *राशि फलादेश कन्या* :-
चोरी-दुर्घटना से हानि संभव है। धर्म-कर्म में रुचि बढ़ेगी। शासकीय कार्यों में सफलता मिलेगी। निवेश लाभकारी होगा। यात्रा व निवेश लाभ देंगे।
 
⚖ *राशि फलादेश तुला* :-
हानि-दुर्घटना, चोरी आदि से बचें। विवाद हो सकता है। समय अनुकूल नहीं है। धीरज धरना ही ठीक होगा। जोखिम-जमानत के कार्य टालें।
                        
🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक* :-
जीवनसाथी से सहयोग मिलेगा। शासकीय कार्य पूर्ण होंगे। निवेश लाभकारी होगा। जो‍खिम वाले कार्य टालें। अजनबियों पर विश्वास न करें।
                      
🏹 *राशि फलादेश धनु* :-
व्यापार-निवेश से लाभ होगा। संपत्ति के सौदों में लाभ होगा। शत्रु भी आपके कार्य की प्रशंसा करेंगे। कार्यों को गति मिलेगी। धनार्जन होगा।
                          
🐊 *राशि फलादेश मकर* :-
पार्टी-दावत का आनंद मिलेगा। विद्यार्थी वर्ग के कार्य की प्रशंसा होगी। व्यापार-निवेश लाभकारी होंगे। मूल्यवान वस्तुएं संभालकर रखें।
                       
🏺 *राशि फलादेश कुंभ* :-
दुष्ट व्यक्ति का साथ हानि देगा। विवाद से मन खिन्न रहेगा। अस्वस्थता होगी। यात्रा में हानि संभव है। उत्तेजना पर नियंत्रण रखें। प्रतिद्वंद्वी शांत रहेंगे।
                   
*राशि फलादेश मीन* :-
पुराना रोग उभर सकता है। कुसंगति से हानि होगी। शत्रु परेशान करेंगे। पराक्रम से लाभ होगा। प्रतिष्ठा बढ़ेगी। प्रेम-प्रसंग में अनुकूलता रहेगी।
                 
☯ आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो ।

।। 🐚 *शुभम भवतु* 🐚 ।।

🇮🇳🇮🇳 *भारत माता की जय* 🚩🚩
[3/6, 07:36] ‪+91 89616 84846‬: 🔔🔔मंदिरों में पहुँचो🔔🔔

सभी हिन्दू भाइयों और बहनों से निवेदन है कि हमे सुबह और सायंकाल आरती के वक्त जो भी मंदिर पास हो वहाँ पहुंचना चाहिए. कुछ मंदिर हैं देश में जहां लोग घण्टों दर्शन के लिए खड़े रहते हैं, पर हमारे आस पास के मंदिरों की बात करें तो हालात बहुत बुरे है. वहाँ आरती के वक्त झालर, शंख, नगाड़ा बजाने को लोग नहीं होते है. कुछ लोगों ने इसका तोड़ निकाला है, इलेक्ट्रिक मशीनें ले आये हैं.
यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है ?

कोई इसपर विचार नहीं करता. कहने को हम करोड़ों हैं, पर मंदिरों में आरती के वक्त 4 लोग नहीं पहुँच पाते. इसी कारण मोहल्ले वाले भी एक दूसरे को पहचान नहीं पाते और हिंदुओं में एकता नहीं हो पाती है.
इस पर विचार होना चाहिए.

मंदिर ही हैं जो हमें एक दूसरे से जोड़ने में सहायक हो सकते हैं. अपने बच्चों को मंदिर अवश्य साथ ले जायें। यदि उचित लगे तो अपने सभी भाइयों तक इस विचार को साँझा करने की विनती करता हूँ ।      
                                                🙏🏻🙏🏻रविकान्त तिवारी ललितपुर🙏🏻🙏🏻
[3/6, 07:46] ‪+91 98670 61250‬: चन्दनं शीतलं लोके ,चन्दनादपि चन्द्रमाः |

चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ||

अर्थात् : संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है | अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और

चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है |
🙏🙏हरे कृष्णा🙏🙏🙏
[3/6, 07:50] P ss: एक पिता की प्रार्थना अपनी बेटी की शादी में अपने दामाद से.. ♥
__________________________
माँ की ममता का सागर ये,
मेरी आँखों का तारा है !

कैसे बतलाऊँ तुमको ,
किस लाड प्यार से पाला है !!

तुम द्वारे मेरे आए हो,
मैं क्या सेवा कर सकता हूँ !

ये कन्या रूपी नवरत्न तुम्हें,
मैं आज समर्पित करता हूँ !!

मेरे ह्रदय के नील गगन का,
ये चाँद सितारा है ! ♥

मैं अब तक जान ना पाया था,
इस पर अधिकार तुम्हारा है !!

ये आज अमानत लो अपनी,
करबद्धनिवेदन करता हूँ !

ये कन्या रूपी नवरत्न तुम्हें,
मैं आज समर्पित करता हूँ !!

इससे कोई भूल होगी,
ये सरला है , सुकुमारी है !

इसकी हर भूल क्षमा करना ,
ये मेरे घर की राजदुलारी है !!

मेरी कुटिया की शोभा है,
जो तुमको अर्पण करता हूँ !

ये कन्या रूपी नवरत्न तुम्हें ,
मैं आज समर्पित करता हूँ !!

भाई से आज बहन बिछ्ड़ी ,
माँ से बिछ्ड़ी उसकी ममता !

बहनों से आज बहन बिछ्ड़ी ,
लो तुम्हीं इसके आज सखा !!

मैं आज पिता कहलाने का,
अधीकर समर्पित करता हूँ !

ये कन्या रूपी नवरत्न तुम्हें,
मैं आज समर्पित करता हूँ !!

जिस दिन था इसका जन्म हुआ,
ना गीत हुए ना बजी शहनाई !

पर आज विदाई के अवसर पर,
मेरे घर बजती खूब शहनाई !!

यह बात समझकर मैं,
मन ही मन रोयाकरता हूँ !

ये गौकन्या रूपी नवरत्न तुम्हें,
मैं आज समर्पित करता हूँ !!

ये गौकन्या रूपी नवरत्न तुम्हें,
मैं आज समर्पित करता हूं..
पिता की प्यारी बेटी
[3/6, 08:26] पं अर्चना जी: *परखो तो*
*कोई अपना नही*
*समझो तो कोई*
*पराया नहीं*
🌞
*ज़िन्दगी के इस रण में*
*खुद ही कृष्ण और*
*खुद ही अर्जुन बनना पड़ता है*
*रोज़ अपना ही सारथी*
*बनकर जीवन की*
*महाभारत को लड़ना पड़ता है!*
🙏🏻💐  सुप्रभात 💐🙏🏻
[3/6, 08:50] P Alok Ji: ततोऽन्यथा किंचन यद्विवक्षतः पृथग्दृस्तकृतरूपनामभि:।
न कुत्रचित्वक्वापि च दुःस्थिता मतिर्लेभेत वाताहतनौरिवास्पदम्।।

सारी सृष्टि ही गुण-दोष से भरी हुई है। वर्तमान में ही व्यक्ति लाखों व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है, और उनमें से अधिकांश हमारे मन पर कोई न कोई छाप छोड़ जाते हैं। गुण के द्वारा राग और दोष दर्शन के द्वारा द्वेष हमारे मन पर छाये रहते हैं। वर्तमान में हमारा जिन लोगों से सम्पर्क होता है, उनसे कुछ-न- कुछ लाभ-हानि की समस्या भी जुड़ी रहती है। अतः एक सीमा तक उस प्रभाव से अछूता रहना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। किन्तु इतिहास तो हमें उन लोगों से जोड़ देता है, जिनसे हमें आज कुछ भी लेना-देना नहीं है। उन पात्रों के प्रति हमारे अन्तर्मन में राग-रोष उत्पन्न कर देता है। इस तरह वह हमारा बोझ हल्का करने के स्थान पर ऐसा अनावश्यक बोझ लाद देता है, जिसे केवल ढोना ही ढोना है
[3/6, 09:14] ‪+91 99673 46057‬: राधे राधे -आज का भगवद चिन्तन ॥
           06-03-2017
🌸     परमात्मा तो प्रत्येक पल मौजूद हैं, तुम अपनी बात करो कि प्रार्थना करते समय तुम मौजूद हो कि नहीं। प्रार्थना सच्ची और दिल से होती है तो प्रभु खम्भे से भी प्रगट हो जाते हैं।
🌺      प्रभु को खोजने की जरूरत नहीं है अपने को खोने की जरूरत है। खोजी जिस दिन स्वयं खो जाता है उस दिन परमात्मा स्वयं आ जाते हैं।
🌼      परमात्मा तो मिले हुए हैं तुम्हें खबर नहीं है। वो तो नित्य हैं, कण-कण में हैं पर अज्ञान के कारण तुम्हें दूरी प्रतीत होती है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुछ दिया नहीं था केवल स्मरण कराया था।

पानी में मीन प्यासी सखी मोहे सुन-सुन आवे हांसी।
[3/6, 09:19] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूल श्लोकः 🔔*
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोsपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।२.२२।।
*🏹पदच्छेदः........*
वासांसि, जीर्णानि, यथा, विहाय, नवानि, गृह्णाति, नरः, अपराणि।
तथा, शरीराणि, विहाय, जीर्णानि, अन्यानि, संयाति, नवानि, देही।।
*🌹पदपरिचयः......🌹*
वासांसि —वासस्-स. नपुं. द्वि. बहु.
जीर्णानि —अ. नपुं. द्वि. बहु.
यथा —अव्ययम्
विहाय —ल्यबन्तम् अव्ययम्
नवानि —अ. नपुं. द्वि. बहु.
गृह्णाति —ग्रह्-पर. कर्तरि लट्.प्रपु.एक.
नरः —अ. पुं. प्र. एक.
अपराणि —अ. नपुं. द्वि. बहु.
तथा —अव्ययम्
शरीराणि —अ. नपुं. द्वि. बहु.
जीर्णानि —अ. नपुं. द्वि. बहु.
अन्यानि —अ. नपुं. द्वि. बहु.
संयाति —सम्+या-पर.कर्तरि लट्. प्रपु. एक.
देही —देहिन् -न. पुं. प्र. एक.
*🌷पदार्थः...... 🌷*
नरः —मानवः
जीर्णानि —शिथिलानि
वासांसि —वस्त्राणि
विहाय —त्यक्त्वा
अपराणि —इतराणि
नवानि —नूतनानि
यथा —येन प्रकारेण
गृह्णाति —धरति
तथा —तेन प्रकारेण
देही —आत्मा
जीर्णानि —शिथिलानि
शरीराणि —वपूंषि
विहाय —विसृज्य
अन्यानि —इतराणि
नवानि —नवीनानि
संयाति —प्राप्नोति।
*🌻अन्वयः 🌻*
नरः जीर्णानि वासांसि विहाय अपराणि नवानि यथा गृह्णाति तथा देही जीर्णानि शरीराणि विहाय अन्यानि नवानि संयाति।
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_गृह्णाति।_
कः गृह्णाति?
*नरः गृह्णाति।*
नरः कानि गृह्णाति?
*नरः वासांसि गृह्णाति।*
नरः कीदृशानि वासांसि गृह्णाति?
*नरः नवानि वासांसि गृह्णाति।*
नरः कानि नवानि वासांसि गृह्णाति?
*नरः अपराणि नवानि वासांसि गृह्णाति।*
नरः किं कृत्वा अपराणि नवानि वासांसि गृह्णाति?
*नरः विहाय अपराणि नवानि वासांसि गृह्णाति।*
नरः कानि विहाय अपराणि नवानि वासांसि गृह्णाति?
*नरः वासांसि विहाय अपराणि नवानि वासांसि गृह्णाति।*
नरः कीदृशानि वासांसि विहाय अपराणि नवानि वासांसि गृह्णाति?
*नरः जीर्णानि वासांसि विहाय अपराणि नवानि वासांसि गृह्णाति।*
यथा नरः जीर्णानि वासांसि विहाय अपराणि नवानि वासांसि गृह्णाति तथा किं भवति?
*यथा नरः जीर्णानि वासांसि विहाय अपराणि नवानि वासांसि गृह्णाति तथा संयाति।*
तथा कः संयाति?
*तथा देही संयाति।*
तथा देही कानि संयाति?
*तथा देही नवानि (शरीराणि) संयाति।*
तथा देही कीदृशानि नवानि (शरीराणि) संयाति?
*तथा देही अन्यानि नवानि (शरीराणि) संयाति।*
तथा देही किं कृत्वा अन्यानि नवानि शरीराणि संयाति?
*तथा देही विहाय अन्यानि नवानि शरीराणि संयाति।*
तथा देही कानि विहाय अन्यानि नवानि शरीराणि संयाति?
*तथा देही शरीराणि विहाय अन्यानि नवानि शरीराणि संयाति।*
तथा देही कीदृशानि शरीराणि विहाय अन्यानि नवानि शरीराणि संयाति?
*तथा देही जीर्णानि शरीराणि विहाय अन्यानि नवानि शरीराणि संयाति।*
*📢 तात्पर्यम्......*
मनुष्यः वस्त्राणि धरति। परन्तु सः सर्वदा समानमेव वस्त्रं न धरति। धृतानि वस्त्राणि यदा जीर्णानि भवन्ति तदा तानि विहाय नूतनानि अन्यानि वस्त्राणि धरति। एवम् आत्मा अपि जीर्णानि शरीराणि परित्यज्य अभिनवानि अन्यानि शरीराणि आश्रयते।
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
नरोsपराणि = नरः + अपराणि - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः पूर्वरूपं च।
जीर्णान्यन्यानि = जीर्णानि + अन्यानि - यण् सन्धिः।
▶ कृदन्तः
जीर्णानि = जृृ + क्त (कर्तरि)।
विहाय = वि + हा + ल्यप्।
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                              *गीताप्रवेशात्*
[3/6, 09:23] ‪+91 97530 19651‬: रुद्राभिषेक पाठ एवं उसके भेद:-
××××××××××××××××××××

पूरा संसार अपितु पाताल से लेकर मोक्ष तक जिस अक्षर की सीमा नही ! ब्रम्हा आदि देवता भी जिस अक्षर का सार न पा सके उस आदि अनादी से रहित निर्गुण स्वरुप ॐ के स्वरुप में विराजमान जो अदितीय शक्ति भूतभावन कालो के भी काल गंगाधर भगवान महादेव को प्रणाम करते है ।

अपितु शास्त्रों और पुरानो में पूजन के कई प्रकार बताये गए है लेकिन जब हम शिव लिंग स्वरुप महादेव का अभिषेक करते है तो उस जैसा पुण्य अश्वमेघ जैसेयाग्यों से भी प्राप्त नही होता !

स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करने लगते है । संसार में ऐसी कोई वस्तु , कोई भी वैभव , कोई भी सुख , ऐसी कोई भी वास्तु या पदार्थ नही है जो हमें अभिषेक से प्राप्त न हो सके! वैसे तो अभिषेक कई प्रकार से बताये गये है । लेकिन मुख्या पांच ही प्रकार है !

(1) रूपक या षडड पाठ - रूद्र के छः अंग कहे गये है इन छह अंग का यथा विधि पाठ षडंग पाठ खा गया है ।

शिव कल्प शुक्त --------1. प्रथम हृदय रूपी अंग है

पुरुष शुक्त ---------------2. द्वितीय सर रूपी अंग है ।

अप्रतिरथ सूक्त ---------3. कवचरूप चतुर्थ अंग है ।

मैत्सुक्त -----------------4. नेत्र रूप पंचम अंग कहा गया है ।

शतरुद्रिय ---------------5. अस्तरूप षष्ठ अंग खा गया है ।

इस प्रकार - सम्पूर्ण रुद्रश्त्ध्ययि के दस अध्यायों का षडडंग रूपक पाठ कहलाता है षडडंग पाठ में विशेष बात है की इसमें आठवें अध्याय के साथ पांचवे अध्याय की आवृति नही होती है ।

(2) रुद्री या एकादिशिनि - रुद्राध्याय की गयी ग्यारह आवृति को रुद्री या एकादिशिनी कहते है रुद्रो की संख्या ग्यारह होने के कारण ग्यारह अनुवाद में विभक्त किया गया है ।

(3) लघुरुद्र- एकादिशिनी रुद्री की ग्यारह अव्रितियों के पाठ के लघुरुद्रा पाठ खा गया है ।

यह लघु रूद्र अनुष्ठान एक दिन में ग्यारह ब्राह्मणों का वरण करके एक साथ संपन्न किया जा सकता है । तथा एक ब्राह्मण द्वारा अथवा स्वयं ग्यारह दिनों तक एक एकादिशिनी पाठ नित्य करने पर भी लघु रूद्र संपन्न होती है ।

(4) महारुद्र-- लघु रूद्र की ग्यारह आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 121 आवृति पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान होता है । यह पाठ ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा 11 दिन तक कराया जाता है ।

(5) अतिरुद्र ---- महारुद्र की 11 आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 1331 आवृति पथ होने से अतिरुद्र अनुष्ठान संपन्न होता है

ये (1)अनुष्ठात्मक (2) अभिषेकात्मक (3) हवनात्मक , तीनो प्रकार से किये जा सकते है शास्त्रों में इन अनुष्ठानो की अत्यधिक फल है व तीनो का फल समान है।

रुद्राभिषेक प्रयुक्त होने वाले प्रशस्त द्रव्य व उनका फल

1. जलसे रुद्राभिषेक ---------- वृष्टि होती है

2. कुशोदक जल से ----------समस्त प्रकार की व्याधि की शांति

3. दही से अभिषेक ----------पशु प्राप्ति होती है

4. इक्षु रस ------------------ लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए

5. मधु (शहद)----------------धन प्राप्ति के लिए यक्ष्मारोग (तपेदिक)

6. घृत से अभिषेक व तीर्थ जल से भी ----------मोक्ष प्राप्ति के लिए

7. दूध से अभिषेक ----------प्रमेह रोग के विनाश के लिए -पुत्र प्राप्त होता है ।

8. जल की की धारा भगवान शिव को अति प्रिय है अत: ज्वर के कोपो को शांत करने के लिए जल धरा से अभिषेक करना चाहिए .

9. सरसों के तेल से अभिषेक करने से शत्रु का विनाश होता है ।यह अभिषेक विवाद मकदमे सम्पति विवाद न्यालय में विवाद को दूर करते है ।

10.शक्कर मिले जल से पुत्र की प्राप्ति होती है ।

11. इतर मिले जल से अभिषेक करने से शारीर की बीमारी नष्ट होती है ।

12. दूध से मिले काले तिल से अभिषेक करने से भगवन शिव का आधार इष्णन करने से सा रोग व शत्रु पर विजय प्राप्त होती है ।

13.समस्त प्रकार के प्रकृतिक रसो से अभिषेक हो सकता है ।

सार --उप्प्युक्त द्रव्यों से महालिंग का अभिषेक पर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होकर भक्तो की तदन्तर कामनाओं का पूर्ति करते है ।

अत: भक्तो को यजुर्वेद विधान से रुद्रो का अभिषेक करना चाहिए ।

विशेष बात :-
---------------

रुद्राध्याय के केवल पाठ अथवा जप से ही सभी कम्नावो की पूर्ति होती है

रूद्र का पाठ या अभिषेक करने या कराने वाला महापातक रूपी पंजर से मुक्त होकर सम्यक ज्ञान प्राप्त होता है और अंत विशुद्ध ज्ञान प्राप्त करता है ।

पार्थिव पूजन की विधि

भगवान आशुतोष महादेव का एक स्वरुप पार्थिव लिंग भी है । संसार की ऐसी कोई मनोकामना या यु कहे संसार में ऐसा कुछ भी नही है जो हमें पार्थिव पूजन से प्राप्त हो सके ।

पुराणों मे कइ जगह समय समय पर ब्रह्मा आदि देवताओं ने पार्थिव पूजन करके अपने विप्तियों को दूर करने की कई कथा आती है ।स्वयं माँ पार्वती जी ने शिव को प्राप्त करने के लिए पार्थिव (मिटटी का शिवलिंग) बनाकर उनकी आराधना की थी ।
*संकलनकर्ता*
*एस्ट्रो दिनेश कुमार शास्त्री*
9928030738, 8559901883
[3/6, 09:37] पं विजय जी: 🙏🌷ॐ नमः शिवाय सुप्रभातम🌷🙏
प्रात: स्मरामि भव भीति हरम सुरेशं
गंगाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम I
खट्वांगशूल वरदा भय हस्तमीशम
संसार रोग हर मौषधमद्वितियम I

संसार के भय को नष्ट करने वाले, देवेश, गंगाधर, वृषभ वाहन, पार्वतीपति, हाथ में भक्तों कि रक्षा के लिए त्रिशूल आदि को धारण करने वाले, संसार रूपी रोग का नाश करने के लिए अद्वितीय औषध स्वरुप अभय एवं वरद मुद्रायुक्त हाथों वाले भगवान शिव का मैं अच्छी सुबह के लिए स्मरण करता हूँ ।
🌺सुप्रभातम🌺
[3/6, 09:50] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: 🌻सुप्रभातम्🌻🌸🙏🏻🌸

शब्दों में कैसे ढल पाए 
मधुर रागिनी तू जो गाए,
होने से बनने के मध्य 
गागर दूर छिटक ही जाए !

एक छुअन है अनजानी सी 
प्राणों को जो सहला जाती,
एक मिलन है अति अनूठा 
हर लेता हर व्यथा विरह की !

मदिर चांदनी टप-टप टपके
कोमलतम है उसका गात,
 तके श्याम बाट राधा की 
 भूली कैसे वह यह बात !

जिस पल तकती वही वही है 
मौन रचे जाता है गीत,
ज्यों प्रकाश ही ओढ़ आवरण 
बहता चहूँ  दिशि बनकर प्रीत !

जाने कितने करे इशारे 
अपनी ओर लिए जाता है,
पल भर काल न तिल भर दूरी 
अपनी खबर दिए जाता है ! 
संकलित।
[3/6, 10:09] ‪+91 98896 25094‬: ** भोगो के आश्रय से दुःख -२- **
।। श्रीहरिः ।।
............... जैसे जगत के प्राणी-पदार्थ-परिस्थितियों से उसकी आशा बनी है, जबतक वह अपनी इन आशाओं की पूर्ती के लिए प्रयत्न करता है तो कहीं-कहीं प्रयत्न में सफलता भी दिखायी पडती है, पर वह नई-नई उलझन पैदा करने के लिए हुआ करती है । जगत का अभाव कभी मिटता नही; क्यों नही मिटता ? क्योकि भगवान् के बिना यह जगत अभावमय ही है, अभावरूप ही है-ऐसा कहा है । दुखो से आत्यंतिक छुटकारा मिलेगा तो तब मिलेगा, जब संसार से छुटकारा मिल जाय और संसार से छुटकारा तभी मिलेगा, जब इसे हम छोड़ देना चाहे ।
इसे पकडे रहेंगे और इससे छुटकारा चाहेंगे-नही मिलेगा । इसे पकडे रहेंगे और सुख-शान्ति चाहेंगे-नही मिलेगी । मेरा बहुत काम पड़ा है अब तक बहुत से लोगों से मिलने का, बहुत तरह के लोगों से । पर जब उनसे अनके अन्तर की बात खुलती है तो शायद ही दो-चार ही ऐसे मिले हो, जो वास्तव में संसार से उपरत है ।
पर प्राय: सभी जिनको लोग बहुत सुखी मानते है, बहुत संपन्न मानते है, बाहर से जिनको किसी प्रकार का अभाव नही दीख पड़ता, किसी प्रकार की चिंता का कोई कारण नही दीख पड़ता, हमारी अपेक्षा वे सभी विषयों से बहुत समन्वित और संपन्न दीखते है, ऐसे लोग भी अन्दर से जलते रहते है; क्योकि यहाँ पर जलन के सिवा कुछ है ही नही तो संसार की समस्याओं को, संसार की उलझनों को सुलझाने में ही जीवन उलझा रहता है और वे उलझने नित्य नयी बढती रहती है ।

संकलित✍
[3/6, 10:09] P Omish Ji: * निर्माण करना जानता हूँ *

तुम    भले   ही   राह   में दीवार कितनी ही उठा लो
किन्तु   मैं  नव  पंथ   का निर्माण करना जानता हूँ

लक्ष्य  ही  क्या  वह यहाँ जो चाहते ही पास  आये
वह  तो ऐसा  है कि  जैसे शिशु कोई माँ को बुलाये
चल पड़े जब लीक पर सब मैं  सदा  हट  कर  चला हूँ
जानता   हूँ   मैं   यहाँ   पर आपदाओं    में    पला   हूँ
आप तो अपने पसीने, को नहीं     दुनिया    दिखाते
किन्तु मैं श्रम का यहाँ सम्मान करना जानता हूँ

मेघ बनने के लिए हर बूँद को तपना पड़ा है
देश की ख़ातिर शहीदों को यहाँ खपना पड़ा है
पर्वतों ने कब भला निज शीश को यूँ ही झुकाया
शूरवीरों ने ही जी उस भाल पर चंदन लगाया
मैं पथिक हूँ और बाधाओं से है रिश्ता पुराना
शौर्य का मैं तो यहाँ गुणगान करना जानता हूँ

कृषकों ने ख़ून बोकर खेत में फ़सलें उगाई
माँग धरती की सजाकर चूनरी धानी उढाई
छैनियों, की चोट खाकर पत्थरों ने गीत गाया
उम्र भर अपमान पी मीरा ने मन का मीत पाया
आपसे सांसे उधारी माँग कर माँग कर मैं क्या जिऊँगा
मैं सदा अभिमान पर अहसान करना जानता हूँ

हर पसीने का यहाँ मस्तक सदा ऊँचा रहा है
श्रम सनी इन रोटियों से ही सदा अमृत बहा है
जो स्वयं को बेचकर ही हो गये धनवान तो क्या!
आस्था से दूर हो कर बन गये भगवान तो क्या!
मैं कभी दरबार की ख़ातिर नहीं हूँ गीत लिखता
क्योंकि मैं सुकरात बन विषपान करना जानता हूँ। 🙏🙏🙏
[3/6, 10:12] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *चार कदम पर है होली।*
होली के उपलक्ष पर  आप सब को बहुत बहुत शुभ कामनाओं के साथ चंद पंक्तियाँ-----------:
मधु टपके बौराया उपवन
जाने कहाँ से रस  भरता है,
गदरायीं मंजरियाँ महकें
संग समीरण के बहता है !

हुई नशीली फिजां चहकती
फगुनाई सिर चढ़ कर बोली,
रंग-बिरंगी बगिया पुलके
चार कदम पर ही है होली !

नन्ही चिड़िया हरी दूब पर
नई फुनगियाँ  हर डाली पर,
कोई भेज रहा  है शायद
पाती  गाता  पंछी सुस्वर !

हर पल जीवन उमग रहा है
कभी धरा से कभी गगन से,
अंतर में यूँ भाव उमड़ते
धुंधलाया हर दृश्य नयन से !

धूप और छाँव हर पल हैं
दिवस-रात्रि, सुख-दुःख का मेला,
हास्य-रुदन दोनों घटते हैं
प्रीत बहाए दुई का रेला !

एक से ही उपजे हैं दोनों
पतझड़ और बसंत अनूठे,
विस्मय से भर जाता अंतर
दोनों के ही ढंग अनोखे !
[3/6, 10:14] ‪+91 94301 19031‬: परमात्मा में सुख नही सुख तो संसार में है। --- सुख और आनन्द दोनों दो चीज है दोनों में अंतर है। जिसे भोगने के बाद दुःख आता ही है उसे सुख कहते है। और आनन्द उसे कहते है जिसका अनुभव करने के बाद कोई दुःख रहता ही नही। संसार में आनन्द नही है सुख है। आनन्द तो परमात्मा में है।जिसे पाने के बाद कुछ शेष नही रह जाता। जरा विचर करें । संसार में सुख है आनन्द नही। अब हमें चुनना है कि हमे सुख चाहिए या आनन्द। सुख के बाद दुःख निश्चित और आनन्द के बाद परमानन्द,ब्रह्मानन्द निश्चित प्राप्त होगा।
[3/6, 10:15] पं ऊषा जी: !! कृतघ्नता एकमहापाप !!

शास्त्रों में यदि किसी पाप के प्रायश्चित का विधान नहीं है तो वो एक मात्र पाप है कृतघ्नता । किसी के किये बड़े से बड़े उपकार को न मानना उसके साथ विश्वास घात करना इसे ही कृतघ्नता कहा जाता है ' कृतं परोपकारं हन्तीति कृतघ्न:' । प्रत्येक मनुष्य को कृतज्ञ होना चाहिए यही मनुष्य का आभूषण है । कृतज्ञ का लक्षण करते हुए श्रीगोविन्दराज स्वामी कहते हैं -

'कृतमुपकारं स्वल्पं प्रासंगिकमपि बहुतया जानातीति कृतज्ञ: /अपकारास्मरणम् '

अर्थात् समय पर किये थोड़े भी उपकार को बहुत किया ऐसा जानकार उसके किये अपकार को भी भूल जाने वाले को कृतज्ञ कहते हैं ।
कृतघ्न का कोई प्रायश्चित नहीं होता । महाभारत के शान्ति पर्व में आया है -

        ' ब्रह्मघ्ने च सुरापे च चौरे भग्नव्रते तथा ।
        निष्कृतिर्विहिता राजन् कृतघ्ने नास्ति निष्कृति ।।१७२/२५
        मित्रद्रोही नृशंसश्च कृतघ्नश्च नराधमः ।
       क्रव्यादै:कृमिभिश्चैव न भुज्यन्ते हि तादृशाः'।।१७२/२६

ब्राह्मण के हत्यारे , सुरा पान करने वाले , चोरी करने वाले तथा खंडित व्रत वाले प्राणी के लिए शास्त्रों में प्रायश्चित का विधान है किन्तु कृतघ्न के लिए कदापि नहीं । मित्र से द्रोह करने वाले , क्रूर प्राणी और कृतघ्न इन नीच मनुष्यों का मांस भक्षण भी मांसभक्षी जीव और कृमि नहीं करते हैं । अर्थात् ये इतने पापी होते हैं कि ये मांसभक्षी भी इनको खाना नहीं चाहते हैं । आगे कहते हैं-

      'कुतः कृतघ्नस्य यशः कुतः स्थानं कुतः सुखम्।
      अश्रद्धेय: कृतघ्नो हि कृतघ्ने नास्ति निष्कृतिः '।।१७३/२०
   
कृतघ्न प्राणी के लिए कहाँ यश है ,कहाँ सुख है , कहाँ स्थान है एवं कहाँ उसके लिए श्रद्धा है अर्थात् कहीं भी उसे कुछ भी प्राप्त नहीं है यहाँ तक कि शास्त्रों द्वारा बताया गया प्रायश्चित भी उसके लिए नहीं है । कृतघ्न की बहुत निंदा शास्त्रों में की गयी है । इसी लिए कभी भी किसी के अनजाने में भी किये गए उपकार को भूलना नहीं चाहिए ।लेकिन  आज समाज की दुर्दशा देखिये किे जो व्यक्ति आपको आगे बढ़ाता है , समाज में सम्मान दिलाता है हम जरूरत पड़ने पर स्वार्थ वशात उसको भी धोखा देने में पीछे नहीं हटते । जब तक हमारी हाँ में हाँ तब तक बहुत अच्छा ज़रा सी न तो बड़े से बड़ा उपकार भी भूल कर उसके लिए गड्ढा खोदने लग जाते हैं । इससे बड़ी कृतघ्नता क्या होगी ? आज बड़े बड़े स्वयंभूओं के भाग्य विधाता जिनकी कृपा से आज वो समाज में कुछ कहने लायक हुए वो बेचारे गुरु जन किसी तरह अपना समय काटते हैं लेकिन वो स्वयंभू एक बार भी अपने उन गुरुओं की सुध नहीं लेते क्या ये कृतघ्नता नहीं है ? आज बड़े बड़े मठ मंदिरों की दुर्गति क्यों हो रही है जरा विचार करिये इसके पीछे भी ये कृतघ्न ही हैं । इन लोगों को उस गद्दी पर बैठाने वाले उनके आचार्य में सोचा होगा कि ये इसकी रक्षा करेंगें इसका वर्धन करेंगें लेकिन आज के कितने ही कृतघ्नों ने अपने आचार्यों तक को नहीं छोड़ा उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया । एक ही संप्रदाय में भेद कर कर के अलग थलग कर दिया क्या इस महापाप से इनको श्री रामानुज स्वामी जी बचायेंगें कदापि नहीं । इसकी भरपाई ये स्वयं करेंगें और गोस्वामी जी की चौपाई को चरितार्थ करेंगें -
             ' उभय लोक निज हाथ गवावहिं '
संसार में सच बोलने से लोग बुरे बन जाते हैं । लेकिन क्या करूँ चापलूसी न तो कर पाता हूँ न ही करना चाहता हूँ ।

                      ।।  जय श्री स्वामिनारायण ।।
(गणान्तर से प्राप्त)
[3/6, 11:13] ‪+91 98896 25094‬: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।
धर्मः स्वनुष्ठितः पुंसां विष्वक्सेनकथासु यः।
नोत्पादयेद्यदि रतिं श्रम एव हि केवलम्।।
–श्रीमद्भा0 1/2/8

"धर्म का ठीक-ठीक अनुष्ठान करने पर भी यदि मनुष्य के हृदय मे भगवान की लीला-कथाओं के प्रति अनुराग उदय न हो तो वह निरा श्रम-ही-श्रम है।"
भावार्थ –
अर्थात, यदि सम्पूर्ण श्रौत-स्मार्त धर्म का अनुष्ठान करने पर भी भगवत्-कथा-सुधा में रति नहीं हुई तो सम्पूर्ण श्रम ही व्यर्थ है। प्राणी की बृद्धि को विशुद्ध कर देने में ही कर्म-काण्डपरक श्रुतियों की सार्थकता है उपासना-काण्डपरक श्रुतियों की भी सार्थकता इसी में है कि उपासना-रत प्राणी को उपास्यस्वरूप का साक्षात्कार हो जाय।निरंतर भगवत् स्मरण बना रहे तभी जीवन की सार्थकता है।
[3/6, 11:14] ‪+91 98896 25094‬: गुरु का आशीर्वाद चार तरीके से मिलता हे है ।
1।स्मरण से
2।दृष्टि से
3। शब्द से
4।स्पर्श से
1 जैसे कछुवी रेत के भीतर अंडा देती है पर खुद पानी के भीतर रहती हुई उस अंडे को याद करती रहती है तो उसके स्मरण से अंडा पक जाता है ।ऐसे ही गुरु की याद करने मात्र से शिष्य को ज्ञान हो जाता है
यह है स्मरण दीक्षा ।।

2 दूसरा जैसे मछली जल में अपने अंडे को थोड़ी थोड़ी देर में देखती रहती है तो देखने मात्र से अंडा पक जाता है ऐसे ही गुरु की कृपा दृष्टि से शिष्य को ज्ञान हो जाता है ।
यह दृष्टि दीक्षा है ।।

3 तीसरा जैसे कुररी पृथ्वी पर अंडा देती है ,
और आकाश में शब्द करती हुई घूमती है तो उसके शब्द से अंडा पक जाता है । ऐसे ही गुरु अपने शब्दों से शिष्य को ज्ञान करा देता है ।
यह शब्द दीक्षा है ।।

4 चौथा जैसे मयूरी अपने अंडे पर बैठी रहती है तो उसके स्पर्श से अंडा पक जाता है ।
ऐसे ही गुरु के हाथ के स्पर्श से शिष्य को ज्ञान हो जाता है
यह स्पर्श दीक्षा है ।

संकलित✍
[3/6, 11:30] ‪+91 98670 61250‬: राधे राधे -आज का भगवद चिन्तन ॥
           06-03-2017
🌸     परमात्मा तो प्रत्येक पल मौजूद हैं, तुम अपनी बात करो कि प्रार्थना करते समय तुम मौजूद हो कि नहीं। प्रार्थना सच्ची और दिल से होती है तो प्रभु खम्भे से भी प्रगट हो जाते हैं।
🌺      प्रभु को खोजने की जरूरत नहीं है अपने को खोने की जरूरत है। खोजी जिस दिन स्वयं खो जाता है उस दिन परमात्मा स्वयं आ जाते हैं।
🌼      परमात्मा तो मिले हुए हैं तुम्हें खबर नहीं है। वो तो नित्य हैं, कण-कण में हैं पर अज्ञान के कारण तुम्हें दूरी प्रतीत होती है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुछ दिया नहीं था केवल स्मरण कराया था।

पानी में मीन प्यासी सखी मोहे सुन-सुन आवे हांसी।
[3/6, 11:42] पं ऊषा जी: 🙏🌺😊🌺🙏
धर्मार्थपरिवार में रहकर मुझे सामान्यतः भी बहुत अच्छा लगता है। आज उस आनन्द के साथ गर्व भी अुनभूत हो रहा है, अपनी संस्कृतबहन कामिनी जी को पुनः इस सदस् में जोड़ते हुए। 🌷🎉
मंगलेश्वर भैया, ओमीश भैया, अनिल भैया एवं शिवा भैया को सादर अभिवन्दन। इस सदस् के निर्वाहकों को हृदयपूर्वक अभिनन्दन।🎊🌾
छोटी त्रुटि वश, और जल्दबाजी के कारण दोनों ओर से जो कुछ घटा, उसका अपाकरण करने में हम समर्थ रहें। बहन भी दुःखी है परिवार से निकलकर-- पीडित सी, व्यथित सी। छोटी बात को छोटे में ही निकालदेना, और क्षमापूर्ण सरल हृदय से आगे बढना उत्तम जन का लक्षण है। इतना ही नहीं, यह हर धर्मयोद्धा का सर्वप्रमुख कर्वव्य है। ऐसा आचरण करना नहीं भी आता हो- तो हमें इसे तुरन्त सीखलेना चाहिए। कर्मपंथ पर हृदयपीडा व आघातों का जितना कम महत्त्व हो उतना श्रेष्ठतम कार्य करपाएंगे, वरना धरा का धरा रह जाएगा सारा उत्तम कार्य। 👏😊💐🌺🎀🌹🌷
चलिए, पुनः सब सँभलजाए, यथापूर्व सब चले, इसी मनोकामना के साथ आज्ञा लेती हूँ। नमस्कार।
[3/6, 12:06] पं अनिल ब: *किसी की "सलाह" से रास्ते जरूर*
*मिलते हैं,*
*पर मंजिल तो खुद की "मेहनत" से*
*ही मिलती है !*
*"प्रशंसक" हमें बेशक पहचानते*
*होंगे.. मगर*
*" शुभचिन्तकों "  की पहचान खुद*
*को करनी पड़ती है*

   ☘ *शुभदिन* ☘
[3/6, 12:23] P Omish Ji: ✅🙏🙏
मान-अपमान को न देखते हुए हम सब कार्य करें, क्योंकि रूकावटें (कांटे) बहुत आती हैं अच्छे रास्ते में चलने के लिए जिसके कारण भी अपने ही होते हैं। अतः *अपनों की भूल को भूल समझकर भूल जाना चाहिए*  यही महापुरुषों का परिचायक होता है, जो कि आज प्रत्यक्ष रूप से सामने भी है।
गर्व तो हम भी महसूस कर रहे हैं। शायद हम लोगों ने पत्थर समझकर हीरा खो दिया था, जिसको पुनः प्राप्त कराने आपका सहयोग रहा जिसका अनुज आभारी है। 🙏🙏

मनोविनोद 😊
वरना धरा का, धरा में, धरा रह जाएगा - नटखट🙏😊🙏
[3/6, 13:05] P Omish Ji: 🙏श्री मात्रे नमः🙏
🌷सदुक्ति संचयः🌷
       इन्द्र इच्चरतः सखा!!
                          ऐतरेय उपनिषद्
इन्द्र भी गतिशील का ही मित्र होता है।

🌹प्रवक्ता, धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ🌹
              आचार्य ओमीश ✍
[3/6, 13:27] P Omish Ji: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

तम आसीत्तमसा गुठठ्हमग्रेऽप्रकेतं
सलिलं सर्वमा इदम्।
तुच्छयेनाभ्यपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिनाजायतैकम्।।

          –ऋग्वेद 8/7/17/3

सृष्टि के पहले यह जगत् अन्धकारमय था। उस तम के बीच में और उससे परे केवल एक ज्ञानस्वरूप स्वयम्भू भगवान् विराजमान थे,  और उन्होंने उस अन्धकार में अपने को आप प्रकट किया,  और अपने तप से, अर्थात् अपनी ज्ञानमयी शक्ति के संचालन से,  सृष्टि को रचा।

भागवत में व्यास जी कहते हैं –

अहमेवासमेवाग्रे नान्यद् यत् सदसत परम्।
पश्चादहं यदेतच्च योSवशिष्येत सोSस्म्यहम् ॥

             –भाग0 2/9/32

सृष्टि से पूर्व केवल मैं ही था। सत्, असत् या उससे परे मुझसे भिन्न कुछ नहीं था। सृष्टि न रहने पर (प्रलयकाल में) भी मैं ही रहता हूँ। यह सब सृष्टि रूप भी मैं ही हूँ और जो कुछ इस सृष्टि, स्थिति तथा प्रलय से बचा रहता है, वह भी मैं ही हूँ।

इसी  को मनु भगवान् ने लिखा है कि सृष्टि के पहले यह जगत् अन्धकारमय था। सब प्रकार से सोता हुआ-सा दिखाई पड़ता था। जिनका किसी दूसरी शक्ति के द्वारा जन्म नहीं हुआ, जो आप अपनी शक्ति से अपनी महिमा में सदा से वर्तमान हैं और रहेंगे,  उन ज्ञानमय, प्रकाशमय, स्वयम्भू ने उस समय अपने को आप प्रकट किया और उनके प्रकट होते ही अन्धकार मिट गया। मनुस्मृति में लिखा है –

            
आसीदिदं तमोभूतमप्रज्ञातमलक्षणम्।
अप्रतर्क्यमविज्ञेयं प्रसुप्तमिव सर्वत:।।

तत: स्वयम्भूर्भगवानव्यक्तो व्यञ्जयन्निदम्।
महाभूतादिवृत्तौजा: प्रादुरासीत्तमोनुद:।।

योऽसावतीन्द्रियग्राह्य: सूक्ष्मोऽव्यक्त: सनातन:।
सर्वभूतमयोऽचिन्त्य: स एव स्वयमुद्वभौ।।

               –मनु0 १/ ५-७

               –रमेशप्रसाद शुक्ल

               –जय श्रीमन्नारायण।
[3/6, 14:20] ‪+91 99267 22827‬: क्षम्यन्तां विद्दवज्जना: किंचित्सत्करणार्थमायासमस्ति प्रिय ओमीश..
[3/6, 14:23] पं ऊषा जी: नए सदस्यों का हार्दिक स्वागत है। 🎊💐🎉🔆🌅🌷🌺🙏
[3/6, 14:35] ‪+91 99267 22827‬: 🌷🌹जय राधे🌹🌷

विद्युच्चौराग्निशस्त्राहिगजसिंहादिभित्तितः !
विषादिर्हेतुंभूतैः मृतो न लभते गतिम् !!

अर्थात् विजलीसे, चोरोंसे, अग्निसे, शस्त्रसे, सर्पसे, हाथीे, सिंह आदि जानवरोंसे, दीवारसे, तथा विष आदि के द्वारा जिनकी मृत्यु होती है उनकी गति (सद्गति) नहीं होती !
[3/6, 17:54] P Omish Ji: होती है मुझ पर रोज् तेरी रहमतो के रंगो की बारिश
     
                       "ऐ मेरे गुरुवर "

मै कैसे कह दूँ, होली साल में एक बार आती है!! जय गुरुदेव !!
[3/6, 18:19] राम भवनमणि त्रिपाठी: II श्रीहरिः II

(गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित प्रातःस्मरणीय गोस्वामी तुलसीदासजी रचित ‘श्रीकृष्णगीतावली’ पुस्तकसे)
गोपी-उपालम्भ – ६

अब सब साँची कान्ह तिहारी ।
जो हम तजे, पाइ गौं मोहन गृह आए दै गारी ।। १ ।।
सुसुकि सभीत सकुचि रूखे मुख बातें सकल सँवारी ।
साधु जानि हँसि हृदयँ लगाए, परम प्रीति महतारी ।। २ ।।
कोटि जातां करि सपथ कहैं हम, मानै कौन हमारी ।
तुमहि बिलोकि, आन को ऐसी क्यों कहिहैं बर नारी ।। ३ ।।
जैसे हौ तैसे सुखदायक ब्रजनायक बलिहारी ।
तुलसिदास प्रभु मुख छबि निरखत मन सब जुगुति बिसारी ।। ४ ।।

(ग्वालिनी व्यंगभरी वाणीमें श्रीकृष्णसे कहती हैं -) कन्हैया ! अब तो तुम्हारी सभी बातें सत्य हैं । मोहन ! हमने जब तुम्हे छोड़ दिया, तब मौका पाकर तुम गाली देते हुए घर भाग आये ।१। और अब सिसकियाँ भरकर, भयभीत एवं लज्जित हो तथा रूखा मुख बनाकर (माताके सामने) सारी बातें सँवार-बना लीं । माता यशोदाने भी तुम्हे साधु समझकर परम स्नेहसे हँसकर हृदयसे लगा लिया ।२। अब तो हम करोड़ों युक्तियोंका आश्रय लेकर शपथपूर्वक भी कहें तो भी हमारी कौन मानेगा । तुम्हारी इस (बनावटी साधु) सूरतको देखकर क्यों कोई भला स्त्री (तुम्हारी बात न मानकर) दूसरेकी तरह कहेगी ।३। व्रजनायक ! मैं तुमपर बलिहारी जाती हूँ । तुम जैसे हो, वैसे ही सुख देनेवाले हो । तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभुकी मुखछबिको निरखकर ग्वालिनीको मंकी सारी युक्तियाँ भूल गयीं ।४।
[3/6, 18:24] ‪+91 98895 15124‬: क्या स्त्री को व्यासपीठ पर बैठकर कथा कहने
का अधिकार है ? क्या स्त्री प्रणव
या गायत्री मंत्र का जाप कर सकती है ?
क्या यह शास्त्रसम्मत् है ? इस सम्बंध में आया है ,"
स्त्री शूद्र द्विजबन्धूनां स्रुति गोचरः।।" अर्थात
स्त्री , शूद्र और द्विजबन्धु
को स्रुतियो का उच्चारण , परायण और वाचन
नहीं करना चाहिये । इसी आधार पर धर्मसम्राट्
स्वामी करपात्रीजी महाराज एवं अन्यान्य
महापुरुष और संतगण इसका विरोध करते आये हैं ।
कौशिकी संहिता मे भी आया है - " अवैष्णव
मुखाद् गाथा न श्रोतव्या कदाचन्।शुक शास्त्र
विशेषेण न श्रोतव्य वैष्णवात्।।वैष्णवोऽत्र स
विज्ञेयो यौ विष्णोर्मुखमुच्यते।ब्राह्मणोऽस्य
मुखमासीत श्रुतेः ब्राह्मण एव सः।।(कौ:सं0
6/19-30)। मुख्यतः पुराणो की कथा भागवत्
की कथा किसी वैष्णव संत या ब्राहमण मुख से
ही सुनना चाहिए।वे वैष्णव जो भगवान् विष्णु के
मुख है, भगवान् विष्णु के मुख केवल ब्राह्मण ही है।"
ब्राह्मणो मुखमासीत्।" भगवान् भोगको केवल
स्वीकार करते हैं - भोजन तो ब्राह्मण के मुख के
द्वारा ही करते हैं । अतः सभी पुराणो एवं
श्री मद् भागवत की कथा किसी विरक्त संत्
या ब्राहमण मुख से ही सुनना चाहिए
अन्यथा आपका अनुष्ठान व्यर्थ ही है । माताओ
को महीने में पांच दिनों के लिए अशुद्ध
होना निश्चित है । मान लो कोई
स्त्री व्यासपीठ पर बैठकर कथा सुना रही हो ,
अनुष्ठान में हो और उसी समय वह अशुद्ध हो जाय
तो तुम्हारा अनुष्ठान कैसे पूरा होगा । इसलिए
कथा कभी भी ब्राह्मण मुखसे श्रवण करना चाहिए
।स्त्रीयो को प्रण्व और गायत्री का उच्चारण
निषेध है, किंतु आजकल माताये खूब जप रही है,
सभी जगह समानता की बात हो रही है ।
इसका आध्यात्मिक पक्ष जो है सो है किन्तु
इसका वैज्ञानिक पक्ष भी है । सनातन धर्म शुद्ध
विज्ञान पर आधारित धर्म है ।हमारे ऋषियों ने हर
विषय को विज्ञान की कसौटी पर कसा है,
जांचा है फिर लिखा है।सर्वप्रथम , स्त्री एवं पुरुष
के शरीर की बनावट एक समान नहीं होती है ।
जितने भी वेदमंत्र है, उनका उच्चारण नाभि से
होता है । प्रण्व् और गायत्री तो वेदके मूल ही है
और इनका भी उच्चारण नाभि से ही होता है ।
माताओ के शरीर की बनावट पुरूषों से अलग है ।
माताये जननी है, नाभि के पास ही माताओ
का गर्भाशय स्थित होता है ।इन मंत्रो के
उच्चारण से माताओ के गर्भाशय पर विपरीत
प्रभाव पडता है और भविष्य में उन्हें
संतानोत्पत्ति में बाधाये होती है ।
गायत्री वेदमाता है, इनका दुरुपयोग उचित नहीं। 🌹🌹🙏🏻.
[3/6, 19:28] पं विजय जी: 🙏🌹शुभ संध्या🌹🙏
                  यह बड़े मजे की बात है की हम एक जमीन का टुकड़ा खरीद कर उस जगह पर अपने नाम का बोर्ड लगा देते हैं की इस जमीन का मालिक मैं हूँ।  इस बोर्ड को देखकर जमीन का टुकड़ा हँसता होगा , क्योंकि उसने कई ऐसे बोर्ड लगते और उतरते देखें हैं।  जब हम नहीं थे , तब भी वह जमीन का टुकड़ा था और जब हम नहीं रहेगें तब भी वह जमीन का टुकड़ा रहेगा  फिर भी हम इस गलत फहमी में रहते हैं की हम इस जमीन के मालिक हैं।
[3/6, 20:25] कामिनी जी: 🙏*धर्मार्थसभा के सभी सदस्यों को मेरा सादर प्रणाम*🙏
मैं पुनः स्वयं को आप सबके बीच पाकर पुलकित हूँ। आप सबके स्नेह से वंचित होकर मैं भी खुश नही थी। एक उद्देश्य को साथ लेकर साथ चलने के शुभ संकल्प के साथ प्रथम बार मैंने सभा में प्रवेश किया था। इस तरह जाने का मेरा निर्णय मुझे स्वयं ही पीढ़ित कर रहा था। सच है कि मुझे भी अधीर नही होना था। मेरी वजह से मेरे ज्येष्ठ व कनिष्ठ भाईयो की भावनाएं को पीढ़ा पहुंची। इसके लिए मैं आप सबसे क्षमाप्रार्थिनी हूं। कभी-कभी अन्तरद्वन्द्व और संवेदनाए  इतनी तीव्र हो जाती हैं की शीघ्रता में बुद्धि और हृदय के मार्ग का अनुगमन करने में विवेक चूक जाता है,और निर्णय अविनीत हो जाता है। इसके लिए कौन उत्तरदायी है ये कह नही सकते क्योकि एक ही परिवेश में अनेक घटक कार्य करते हैं। आप सब धर्ममार्ग के पथिक हैं भगिनी की भूल को अवश्य क्षमा करेंगे मुझे इसका पूर्ण विश्वास है। पूर्व की भांति आप सबका स्नेह वात्सल्य की अभिलाषा के साथ मैं पुनः धर्मार्थसभा की सदस्यता स्वीकार करती हूं। साथ ही ओमीश भाई के स्नेह वंदन की विशेष रूप से आभारी हूँ जिनकी आदरभावनाओं और स्नेह से मैं द्रवित हो उठी। ऊषा दीदी को हार्दिक धन्यवाद देती हूं की उनका मार्गदर्शन मिला। धन्यवाद।🙏