करिष्यामि करिष्यामि करिष्यामीति चिन्तया |
मरिष्यामि मरिष्यामि मरिष्यामीति विस्मृतं ||
महासुभषितसंग्रह(८७८७)
🌹🌷✍ *भावार्थ:*🌷🙏👇🏼
मैं यह कार्य करूंगा , वह कार्य करूंगा या मुझे वह कार्य करना
है , इस प्रकार की चिन्तायें करते करते मनुष्य यह भी भूल जाता है कि उसकी
मृत्यु किसी भी क्षण हो सकती है |
(इस सुभाषित के माध्यम से मनुष्य को यह चेतया गया है कि उसका शरीर
नश्वर है और कभी भी उसकी मृत्यु हो सकती है | अतः उसे अपने दैनन्दिन
व्यहार में इतना लिप्त नहीं होना चाहिये कि वह परमार्थ ( धर्माचरण तथा
प्राणिमात्र के प्रति दया भाव आदि कर्तव्यों ) को भूल जाय | )
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