*मन की बात---------:*
हमारा मन एक अनंत स्रोत की तरह है जिसमें से अनवरत विचारों की गंध फैलती रहती है। मन में सहज ही संकल्प उठते हैं, उनमें से कुछ दिशाविहीन होते हैं जिससे वे शुभ कर्मों में नहीं बदल पाते। यदि हम मन की इस ऊर्जा को एक सार्थक मोड़ दे सकें तो जीवन उस वृक्ष की तरह पल्लवित होता है जो हर रूप में जगत के काम आता है।मन की इस ऊर्जा का दोहन करने से ही कोई आंतरिक सन्तोष का अनुभव भी सहज ही करने लगता है।इस जीवन में हम सब का यह प्रयास हो, हमारी सोंच एवं विचार सकारात्मक हो।
*जय श्री राधे*✍
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