Tuesday, March 7, 2017

६-३-२०१७ से ७-३-२०१७ तक की वार्ता

[3/6, 20:29] ‪+91 80558 62703‬: ज्ञान घटे ठग चोर की सँगति ,मान घटे पर गेह के जाये ।

पाप घटे कछु पुन्य किये, अरु रोग घटे कछु औषध खाये ।

प्रीति घटे कछु माँगन तें ,अरु नीर घटे रितु ग्रीषम आये ।

नारि प्रसंग ते जोर घटे ,जम त्रास घटे हरि के गुन गाये ।
[3/6, 21:04] ‪+91 97530 19651‬: 🖕🏼भारत के चार धामो में एक रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग धाम की की विस्तृत कथा।

परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी॥

                रामेश्वरम ज्योतिर्लिग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिगों में से एक है. इस ज्योतिर्लिग के विषय में यह मान्यता है, कि इस ज्योतिर्लिग की स्थापना स्वयं हनुमान प्रिय भगवान श्रीराम ने की थी. भगवान राम के द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को भगवान राम का नाम रामेश्वरम दिया गया है. रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग स्थापित करने का संबन्ध उस पौराणिक घटना से बताया जाता है, जिसमें भगवान श्रीराम ने अपनी पत्नी देवी सीता को राक्षसराज रावण की कैद से मुक्त कराने के लिए जिस समय लंका पर चढाई की थी. उस समय चढाई करने से पहले श्रीविजय का आशिर्वाद प्राप्त करने के लिए इस स्थान पर रेत से शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा की गई थी. उसी समय से यह ज्योतिर्लिंग सदैव के लिए यहां स्थापित हो गया था. रामेश्वरं स्थान भगवान शिव के प्रमुख धामों मे से एक है. यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडू राज्य के रामनाथपुरं नामक स्थान में स्थित है. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ साथ यह स्थान हिन्दूओं के चार धामों में से एक भी है. जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग है, वह स्थान समुद्र के निकट है, तथा यह स्थान बंगाल की खाडी और हिंद महासागर से घिरा हुआ है. यह धार्मिक स्थल के साथ साथ सौन्दर्य स्थल भी है. कहा जाता है, कि भगवान राम ने यहां तक एक बांध बनाया था. जो बाद में तोड दिया गया था. आज भी देखने से रामसेतु का कुछ भाग देखा जा सकता है.

रामेश्वरं ज्योतिर्लिंग की स्थापना कथा |

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के विषय में एक अन्य पौराणिक कथा प्रचलित है. कि जब भगवान श्री राम माता सीता को रावण की कैद से छुडाकर अयोध्या जा रहे थे़ उस समय उन्होने  मार्ग में गन्धमदान पर्वत पर रुक कर विश्वाम किया था. विश्वाम करने के बाद उन्हें ज्ञात हुआ कि यहां पर ऋषि पुलस्त्य कुल का नाश करने का पाप लगा हुआ है. इस श्राप से बचने के लिए उन्हें इस स्थान पर भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग स्थापित कर पूजन करना चाहिए.   यह जानने के बाद भगवान श्रीराम ने हनुमान से अनुरोध किया कि वे कैलाश पर्वत पर जाकर शिवलिंग लेकर आयें.  भगवान राम के आदेश पाकर हनुमान कैलाश पर्वत पर गए, परन्तु उन्हें वहां भगवान शिव के दर्शन नहीं हो पाए. इस पर उन्होने भगवान श्विव का ध्यानपूर्वक जाप किया. जिसके बाद भगवान श्विव ने प्रसन्न होकर उन्हे दर्शन दिए. और हनुमान जी का उद्देश्य पूरा किया.  इधर हनुमान जी को तप करने और भगवान शिव को  प्रसन्न करने के कारण देरी हो गई. और उधर भगवान राम और देवी सीता शिवलिंग की स्थापना का शुभ मुहूर्त लिए प्रतिक्षा करते रहें. शुभ मुहूर्त निकल जाने के डर से देवी जानकीने विधिपूर्वक बालू का ही लिंग बनाकर उसकी स्थापना कर दी.   शिवलिंग की स्थापना होने के कुछ पलों के बाद हनुमान जी शंकर जी से लिंग लेकर पहुंचे तो उन्हें दुख और आश्चर्य दोनों हुआ. हनुमान जी जिद करने लगे की उनके द्वारा लाए गये शिवलिंग को ही स्थापित किया जाएं. इसपर भगवान राम ने कहा की तुम पहले से स्थापित बालू का शिवलिंग पहले हटा दो, इसके बाद तुम्हारे द्वारा लाये गये शिवलिंग को स्थापित कर दिया जायेगा.   हनुमान जी ने अपने पूरे सामर्थ्य से शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया, परन्तु वे असफल रहें. बालू का शिवलिंग अपने स्थान से हिलने के स्थान पर, हनुमान जी ही लहूलुहान हो गए़. हनुमान जी की यह स्थिति देख कर माता सीता रोने लगी. और हनुमान जी को भगवान राम ने समझाया की शिवलिंग को उसके स्थान से हटाने का जो पाप तुमने किया उसी के कारण उन्हें  यह शारीरिक कष्ट झेलना पडा.   अपनी गलती के लिए हनुमान जी ने भगवान राम से क्षमा मांगी और जिस शिवलिंग को हनुमान जी कैलाश पर्वत से लेकर आये थे. उसे भी समीप ही स्थापित कर दिया गया. इस लिंग का नाम भगवान राम ने हनुमदीश्वर रखा.  इन दोनो शिवलिंगों की प्रशंसा भगवान श्री राम ने स्वयं अनेक शास्त्रों के माध्यम से की है. 

रामेश्वरम शिवलिंग दर्शन महिमा |

जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्वा और विश्वास के साथ रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग और हनुमदीश्वर लिंग का दर्शन करता है, उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है. यहां के दर्शनों का मह्त्व सभी प्रकार के यज्ञ और तप से अधिक कहा गया है. इसके अतिरिक्त यह भी कहा जाता है, कि यहां के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. यह स्थान ज्योतिर्लिंग और चार धाम यात्रा दोनों के फल देता है. 

श्री रामेश्वरम 24 कुएं |

श्री रामेश्वरम में 24 कुएं है, जिन्हें "तीर्थ" कहकर सम्बोधित किया जाता है. इन कुंओं के जल से स्नान करने पर व्यक्ति को विशेष पुन्य की प्राप्ति होती है. यहां का जल मीठा है. इन कुंओं में आकर स्नान करने से व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है. कहा जाता है, कि ये कुंए भगवान राम के बाण चलाने से बने है. इस सम्बन्ध में एक अन्य मान्यता भी प्रसिद्ध है, जिसके अनुसार इन कुंओं मे सभी तीर्थों का जल लाकर छोडा गया है, इसलिए इन कुंओं के जल से स्नान करने पर व्यक्ति को सभी तीर्थों में स्नान करने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है.

श्री रामेश्वरम पितरों तर्पण स्थल |

रामेश्वरम को पित्तरों के तर्पण का स्थल भी कहा गया है. यह स्थान दो ओर से सागरों से घिरा हुआ है. इस स्थान पर आकर श्रद्वालु अपने पित्तरों के लिए कार्य करते है. तथा समुद्र के जल में स्नान करते है. इसके अतिरिक्त यहां पर एक लक्ष्मणतीर्थ नाम से स्थान है, इस स्थान पर श्रद्वालु मुण्डन और श्राद्व कार्य दोनों करते है.   रामेश्वरम मंदिर के विषय में कहा जाता है कि जिन पत्थरों से यह मंदिर बना है, वे पत्थर श्रीलंका से लाये गए थे, क्योकि यहां आसपास क्या दूर दूर तक कोई पहाड नहीं है.
[3/6, 21:54] पं रोहित: त्वाम् अधिकारोस्ति .........स्व जीवने प्रसन्नतायाः........... 😭😭😭 मम किं?........👉👨  ❤  😊  मम जीवनम् तु .......त्वमेवास्ति

चेद् त्वं प्रसन्ना👩🏻 ......तर्ह्यहमपि प्रसन्नः ।।
.👉👨 तुझे हक है अपनी ही दुनिया ❤ में 😊 खुश रेहने का............😢😢
👱👱 मेरा क्या है ............मेरी तो दुनिया ❤  ही 👉 तु ही 👨 हैं ...........
तू खूश तो मै खूश ...
[3/6, 22:45] P Omish Ji: अत्यंत भूखा व्यक्ति क्यों भोजन करना चाहता है , भूख की चपेट में आकर कही मृत्यु का ग्रास न बन जाए ......भोजन में भूखे व्यक्ति की प्रवत्ति क्यों होती है , उसका नियामक मौत का भय है......मृत्यु का भय अमृतत्व की प्राप्ति , भरपेट भोजन कर लेने पर भोजन से उपरांतता क्यों आती है ? निवृत्ति क्यों आती है ? उसका रहस्य क्या है ?

मृत्यु का भय अमृतत्व की भावना .......प्रत्येक स्थावर या जंगम प्राणी की प्रवत्ति या निवृत्ति का वैदिक विधा से सूक्ष्म आकलन करें तो निष्कर्ष होता है ,मृत्यु का भय अमृतत्व की भावना ......इसको और आगे लेकर चलें तो मुर्खता या अज्ञता का भय और विज्ञानं की भावना और उत्तम ढंग से प्रतिपादित करें तो दुःख का भय और आनंद की भावना ....इसका अर्थ क्या है l

हम वेदों के आधार पर जीवन को कैसे सार्थक कर सकते है जो कुछ अनित्य है , जड़ है , दुःखप्रद है .....आप हम उससे पिंड छुड़ाकर सत चित्त आनंदस्वरूप होकर अवशिष्ट रहना चाहते है इसका अर्थ है कि हमारी आपकी चाह का सचमुच में विषय सचिदानंद है l

मै डंके की चोट से एक तथ्य ख्यापित करना उचित समझता हूँ ......बहुत से व्यक्ति भौतिकता की धारा में बहकर कहते है ईश्वर कौन है ? वस्तुस्थिति यह है कि विश्व में ऐसा कोई प्राणी नहीं जो ईश्वर के आस्तित्व को स्वीकार न करता हो ........l
इसका उत्तर >>>> हमारी आपकी चाह का सचमुच में जो विषय है उसी को वेदों ने ईश्वर माना है ....हम चाहते है म्रत्युन्जय होकर शेष रहें , ऐसा जीवन जहा मौत की छाया भी न पहुँच सके , उसी का नाम  "सत मृत्युञ्जय"  है , हम चाहते है..
कि मुर्खता या अज्ञता के चपेट से विनिर्मुक्त अखंड विज्ञानस्वरूप होकर हम शेष रहना चाहे , उसी का नाम  "चित"  विज्ञानं है , हम चाहते है दैहिक , दैविक , भौतिक त्रिविध तापो के चपेट से विनिर्मुक्त होकर आनंदस्वरूप होकर हम रहना चाहे उसी का नाम  "आनंद"  है l

ll हर हर महादेव ll
[3/6, 23:30] जियो अनिल जी: जय महाँकाल🙏🏼💐🙏🏼

कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।

कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं।
कटा एक सीन पिक्चर का तो सारे बोल जाते हैं।।

नयी नस्लों के ये बच्चे जमाने भर की सुनते हैं।
मगर माँ बाप कुछ बोले तो बच्चे बोल जाते हैं।।

बहुत ऊँची दुकानों में कटाते जेब सब अपनी।
मगर मज़दूर माँगेगा तो सिक्के बोल जाते हैं।।

अगर मखमल करे गलती तो कोई कुछ नहीँ कहता।
फटी चादर की गलती हो तो सारे बोल जाते हैं।।

हवाओं की तबाही को सभी चुपचाप सहते हैं।
च़रागों से हुई गलती तो सारे बोल जाते हैं।।

बनाते फिरते हैं रिश्ते जमाने भर से अक्सर।
मगर जब घर में हो जरूरत तो रिश्ते भूल जाते हैं।।🌹🌹🌹

      संकलित
[3/6, 23:45] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: यू हमदर्द बनते बनते किसी के दर्द की वजह बन गए सायद🤔
दीदी कामिनी जी आपके पुन: आगमन से मन कितना प्रसन्न है।यह बालक शब्दों से बया करने में असमर्थ है।कल से मन बहुत व्यथित था लेकिन आज मन अत्यन्त प्रसन्न है।
कौन सा छंद लिंखू ए बहन तेरे लिए।
कौन सा गीत लिंखू ए बहन तेरे लिए।
तू मेरे छन्दों की ,गीतो की शब्दसः बोली है।
मेरी हर खुशियो की तू ही तो रंगोली है।
तू न होती तो सायद मै अधूरा होता।
तेरे बिना तो मै कभी पूरा न होता।
तेरे आने से  मन की कली खिल गयी। इस भाई को जहा की खुशी मिल गयी।
स्वागतम् 🌸🙏🏻🌸😊
[3/7, 01:04] ‪+91 98239 16297‬: *सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे दैनिक पंचांग-- ०७
मार्च २०१७*

***!!श्री मयूरेश्वर प्रसन्न!!***
☀धर्मशास्त्रसंमत प्राचीन शास्त्रशुद्ध सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग (पुणे) नुसार
दिनांक ०७ मार्च २०१७
*राष्ट्रीय भारतीय सौर दिनांक* १६ फाल्गुन,शके १९३८
पृथ्वीवर अग्निवास नाही.
शुक्र मुखात आहुती आहे.
शिववास सभेत,काम्य शिवोपासनेसाठी अशुभ दिवस आहे.
☀ *सूर्योदय* -०६:५४
☀ *सूर्यास्त* -१८:३८
*शालिवाहन शके* -१९३८
*संवत्सर* -दुर्मुख
*अयन* -उत्तरायण
*ऋतु* -शिशिर (सौर)
*मास* -फाल्गुन
*पक्ष* -शुक्ल
*तिथी* -दशमी
*वार* -मंगळवार
*नक्षत्र* -आर्द्रा
*योग* -आयुष्मान (१४:५३ नंतर सौभाग्य)
*करण* -तैतिल (१४:१२ नंतर गरज)
*चंद्र रास* -मिथुन
*सूर्य रास* -कुंभ
*गुरु रास* -कन्या
*राहु काळ* -१५:०० ते १६:३०
*पंचांगकर्ते*:सिद्धांती ज्योतिषरत्न गणकप्रवर
*पं.गौरवशास्त्री देशपांडे-०९८२३९१६२९७*
*विशेष*-यमघंट १९:३८ पर्यंत,रवियोग (अहोरात्र),या दिवशी पाण्यात रक्तचंदन चूर्ण घालून स्नान करावे.मंगलचंडिका कवच व ऋणमोचक मंगळ स्तोत्राचे पठण करावे."अं अंगारकाय नमः" या मंत्राचा किमान १०८ जप करावा.सत्पात्री व्यक्तिस मसूर व डाळिंब दान करावे.गणपतीला गुळ-खोब-याचा नैवेद्य दाखवावा.यात्रेसाठी घरातून बाहेर पडताना गूळ प्राशन करुन बाहेर पडल्यास प्रवासात ग्रहांची अनुकूलता प्राप्त होईल.
*विशेष टीप* - *आगामी नूतन संवत्सरारंभी येणारा गुढीपाडवा सूर्यसिद्धांतीय पंचांगानुसार म्हणजेच मुख्यतः धर्मशास्त्रानुसार या वेळी मंगळवार दि.२८ मार्च २०१७ रोजी नसून बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजी आहे.कारण सूर्यसिद्धांत गणितानुसार दि.२८ मार्च रोजी सूर्योदयास अमावस्या तिथी आहे व दि.२९ मार्च रोजी सूर्योदयास प्रतिपदा तिथी आहे.याची विशेष नोंद हिंदूंनी घ्यावी व सर्वांनी गुढी-ब्रह्मध्वज पूजन हे चैत्र शु.प्रतिपदेला बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजी करावे.*
www.facebook.com/DeshpandePanchang
*टीप*-->>सर्व कामांसाठी चांगला दिवस आहे.
**या दिवशी पडवळ खावू नये.
**या दिवशी लाल वस्त्र परिधान करावे.
*आगामी नूतन संवत्सराचे सर्वांना उपयुक्त व फायदेशीर असे धर्मशास्त्रसंमत सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग सर्वत्र उपलब्ध आहे.*
♦ *लाभदायक वेळा*-->>
लाभ मुहूर्त--  सकाळी ११.१५ ते दुपारी १२.४५
अमृत मुहूर्त--  दुपारी १२.४५ ते दुपारी २.१५
|| *यशस्वी जीवनाचे प्रमुख अंग* ||
|| *सूर्यसिध्दांतीय देशपांडे पंचांग* ||
आपला दिवस सुखाचा जावो,मन प्रसन्न राहो.
(कृपया वरील पंचांग हे पंचांगकर्त्यांच्या नावासहच व अजिबात नाव न बदलता शेअर करावे.या लहानश्या कृतीने तात्त्विक आनंद व नैतिक समाधान मिळते.@copyright)
[3/7, 05:31] राम भवनमणि त्रिपाठी: मा त्वा रुद्र चुक्रुधामा नमोभिर मा दुष्टुती वृषभ मा सहूती।
उन्नो वीरां अर्पय भेषजेभिर् भिषकतमं त्वा भिषजां श्रंणोमि॥
रुद्र के अधृष्म, द्रुतगामी, प्रचेतस् इणाश, विश्वनियंता, भिषसमम् मीढ़वान नीलोदर, नीलकंठ, लोहितपृष्ठ, चेकितान आदि विशेषण हैं।
[3/7, 06:51] ‪+91 89616 84846‬: भगवान श्री मन्नारायण हमारे परम सुहृद् हैं, निकट-से-निकटतम स्वजन हैं। हमारा क्लेश सुनकर वे स्थिर नहीं रह सकेंगे। सच्चे मनसे (श्रीगोदाम्बाजी की भाँति) उन्हें अपना प्राणप्रिय समझकर पुकारें,तत्काल हमारी सुनवाई होगी और उन्हीं की कृपासे हमारा क्लेश दूर हो जायेगा।

🙏जय श्री मन्नारायण🙏
[3/7, 07:29] P Omish Ji: 🙏सर्वेभ्यो नमो नमः🙏
    🌷सुप्रभातम् 🌷
मोह दु:ख का कारण
👇👇👇
यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दु:खस्य भाजनम्।
स्नेहमूलानि दु:खानि तानि त्यक्त्वा वसेत्सुखम।।
भावार्थ : जिसे किसी से लगाव है, वह उतना ही भयभीत होता है। लगाव दुख का कारण है। दुखों की जड़ लगाव है। अत: लगाव को छोड़कर  सुख से रहना सीखो।। 🙏
[3/7, 07:33] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूल श्लोकः 🔔*
अव्यक्तोsयमचिन्त्योsयमविकार्योsयमुच्यते।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि।।२.२५।।
*🏹पदच्छेदः........*
अव्यक्तः, अयम्,  अचिन्त्यः, अयम्, अविकार्यः, अयम्, उच्यते।
तस्मात्, एवम्, विदित्वा, एनम्, न, अनुशोचितुम्, अर्हसि।।
*🌹पदपरिचयः......🌹*
अव्यक्तः — अ.पुं.प्र.एक.
अयम् — इदम्- म. सर्व. पुं. प्र. एक.
अचिन्त्यः — अ. पुं. प्र. एक.
अविकार्यः — अ. पुं. प्र. एक.
उच्यते — वच्-पर. कर्मणि लट्.प्र.पु.एक.
तस्मात् — तद्- द. सर्व. पुं. पं. एक.
एवम् — अव्ययम्
विदित्वा — क्त्वान्तम् अव्ययम्
एनम् — एतद्- द. सर्व. पुं. द्वि. एक.
अनुशोचितुम् — तुमुन्नन्तम् अव्ययम्
अर्हसि — अर्ह- पर. कर्तरि. लट्. म.पु.एक.
*🌷पदार्थः...... 🌷*
अयम् — एषः देही
अव्यक्तः — अप्रकटः
अचिन्त्यः — निराकारः
अविकार्यः — अपरिणामी
उच्यते — कथ्यते
तस्मात् — अतः
एवम् — इत्थम्
एनम् (देहिनम्) — अमुम्
विदित्वा — विज्ञाय
अनुशोचितुम् — दुःखितम्
न अर्हसि — न योग्यो भवसि।
*🌻अन्वयः 🌻*
अयम् अव्यक्तः। अयम् अचिन्त्यः। अयम् अविकार्यः उच्यते। तस्मात् एवम् एनं देहिनं विदित्वा अनुशोचितुं न अर्हसि।
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_उच्यते।_
कः उच्यते?
*अयम् उच्यते।*
अयं कीदृशः उच्यते?
*अयम् अव्यक्तः उच्यते।*
अयम् अव्यक्तः। अयं कीदृशः उच्यते?
*अयम् अव्यक्तः। अयम् अचिन्त्यः उच्यते।*
अयम् अव्यक्तः। अयम् अचिन्त्यः। अयं पुनः कीदृशः उच्यते?
*अयम् अव्यक्तः। अयम् अचिन्त्यः। अयम् अविकार्यः उच्यते।*
अयम् अव्यक्तः। अयम् अचिन्त्यः। अयम् अविकार्यः उच्यते। तस्मात् त्वं न अर्हसि।
त्वं किं कर्तुं न अर्हसि?
*त्वं अनुशोचितुं न अर्हसि।*
कथं त्वं अनुशोचितुं न अर्हसि?
*एवं त्वं अनुशोचितुं न अर्हसि।*
एवं किं कृत्वा त्वम् अनुशोचितुं न अर्हसि?
*एवं विदित्वा त्वं अनुशोचितुं न अर्हसि।*
एवं कं विदित्वा त्वं अनुशोचितुं न अर्हसि?
*एवम् एनं विदित्वा त्वं अनुशोचितुं न अर्हसि।*
*📢 तात्पर्यम्......*
एषः आत्मा इन्द्रियाणाम् अगोचरः, इति हेतोः अचिन्त्यः अस्ति। अस्य कोsपि विकारः न भवति। अस्य आत्मनः एतादृशं स्वरूपं ज्ञात्वा त्वं दुःखम् अनुभवितुं नार्हसि।
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
अव्यक्तोsयम् = अव्यक्तः + अयम् - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः, पूर्वरूपं च।
अचिन्त्योsयम् = अचिन्त्यः + अयम् - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः, पूर्वरूपं च।
अविकार्योsयम् = अविकार्यः + अयम् - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः, पूर्वरूपं च।
तस्मादेवम् = तस्मात् + एवम् - जश्त्वसन्धिः।
विदित्वैनम् = विदित्वा + एनम् - वृद्धिसन्धिः।
नानुशोचितुम् = न + अनुशोचितुम् - सवर्णदीर्घसन्धिः।
▶ समासः
अव्यक्तः = न व्यक्तः - नञ् तत्पुरुषः।
अचिन्त्यः = न + चिन्त्यः - नञ् तत्पुरुषः।
अविकार्यः = न विकार्यः - नञ् तत्पुरुषः।
▶ कृदन्तः
व्यक्तः = वि + अञ्ज् + क्त (कर्मणि)।
चिन्त्यः = चिन्त् + ण्यत् (कर्मणि)।
विकार्यः = वि + कृञ् + ण्यत् (कर्मणि)।
विदित्वा = विद् + क्त्वा।
अनुशोचितुम् = अनु + शुच् + तुमुन्।
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                              *गीताप्रवेशात्*
[3/7, 07:58] ‪+91 98895 15124‬: .     ।। 🕉 ।।
   🌞 *सुप्रभातम्* 🌞
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कलियुगाब्द................5118
विक्रम संवत्..............2073
शक संवत्.................1938
रवि....................उत्तरायण
मास......................फाल्गुन
पक्ष..........................शुक्ल
तिथी........................दशमी
रात्रि 12.17 पर्यंत पश्चात एकादशी
तिथि स्वामी.................धर्मं
नित्यदेवी...........महावज्रेश्वरी
सूर्योदय..........06.43.25 पर
सूर्यास्त..........06.33.08 पर
नक्षत्र.........................आर्द्रा
संध्या 06.36 पर्यंत पश्चात पुनर्वसु
योग..................आयुष्यमान
दोप 01.41 पर्यंत पश्चात सौभाग्य
करण......................तैतिल
दुसरे दिन दोप 02.08 पर्यंत पश्चात गरज
ऋतु.........................बसंत
दिन....................मंगलवार

🇧 *आंग्ल मतानुसार* :-
07 मार्च सन 2017 ईस्वी |

☸ शुभ अंक............7
🔯 शुभ रंग............लाल

👁‍🗨 *राहुकाल* :
दोप 03.33 से 05.01 तक ।

🚦 *दिशाशूल* :-
उत्तरदिशा -
यदि आवश्यक हो तो गुड़ का सेवन कर यात्रा प्रारंभ करें।

✡ *चौघडिया* :-
प्रात: 09.41 से 11.09 तक चंचल
प्रात: 11.09 से 12.37 तक लाभ
दोप. 12.37 से 02.05 तक अमृत
दोप. 03.33 से 05.01 तक शुभ
रात्रि 08.01 से 09.33 तक लाभ ।

💮 *आज का मंत्र* :-
|| ॐ तेजाय नमः ||

*संस्कृत सुभाषितानि* :-
*अष्टावक्र गीता - तृतीय अध्याय :-* 
अंतस्त्यक्तकषायस्य
निर्द्वन्द्वस्य निराशिषः।
यदृच्छयागतो भोगो
न दुःखाय न तुष्टये॥३- १४॥
अर्थात :-
विषयों की आतंरिक आसक्ति का त्याग करने वाले, संदेह से परे, बिना किसी इच्छा वाले व्यक्ति को  स्वतः आने वाले भोग न दुखी कर सकते है और न सुखी॥१४॥ 

*#‎ आरोग्यं :-*
राई के औषधीय गुण :-
1. हृदय की शिथिलता-
घबराहत, व्याकुल हृदय में कम्पन अथवा बेदना की स्थिति में हाथ व पैरों पर राई को मलें। ऐसा करने से रक्त परिभ्रमण की गति तीव्र हो जायेगी हृदय की गति मे उत्तेजना आ जायेगी और मानसिक उत्साह भी बढ़ेगा।

2. हिचकी आना-
10 ग्राम राई पाव भर जल में उबालें फिर उसे छान ले एवं उसे गुनगुना रहने पर जल को पिलायें।

3. बवासीर अर्श-
अर्श रोग में कफ प्रधान मस्से हों अर्थात खुजली चलती हो देखने में मोटे हो और स्पर्श करने पर दुख न होकर अच्छा प्रतीत होता हो तो ऐसे मस्सो पर राई का तेल लगाते रहने से मस्से मुरझाने ल्रगते है।

4. गंजापन-
राई के हिम या फाट से सिर धोते रहने से फिर से बाल उगने आरम्भ हो जाते है।

5. मासिक धर्म विकार-
मासिक स्त्राव कम होने की स्थिति में टब में भरे गुनगुने गरम जल में पिसी राई मिलाकर रोगिणी को एक घन्टे कमर तक डुबोकर उस टब में बैठाकर हिप बाथ कराये। ऐसा करने से आवश्यक परिमाण में स्त्राव बिना कष्ट के हो जायेगा।

⚜ *आज का राशिफल* :-

🐑 *राशि फलादेश मेष* :-
वाहन-मशीनरी का प्रयोग सावधानी से करें। व्यापार से लाभ, निवेश-नौकरी में लाभ, शत्रु शांत रहेंगे। जीवनसाथी की चिंता रहेगी। यात्रा होगी।
          
🐂 *राशि फलादेश वृष* :-
यात्रा से लाभ, लाभ के अवसर अचानक उपस्थित होंगे। व्यापार-निवेश, नौकरी लाभ देंगे। विद्यार्थी वर्ग सफलता के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करेगा।
                                
👫 *राशि फलादेश मिथुन* :-
कुसंगति हानिकारक होगी। शरीर अस्वस्थ होगा। व्यय बढ़ने से कर्ज लेना पड़ सकता है। व्यापार ठीक चलेगा। स्वादिष्ट भोजन का आनंद मिलेगा।
                        
🦀 *राशि फलादेश कर्क* :-
शत्रु सक्रिय होंगे। माता का स्वास्थ्य बिगड़ेगा। चोरी-दुर्घटना से हानि संभव है। रुका हुआ धन वापस आ सकता है। अत्यधिक परिश्रम व लाभ कम होगा।
                           
🦁 *राशि फलादेश सिंह* :-
पुरानी योजनाएं फलीभूत होंगी। नई योजनाएं बनेंगी। मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी। शत्रु भी आपके कार्य की प्रशंसा करेंगे। घर-परिवार की चिंता रहेगी।
                         
👸🏻  *राशि फलादेश कन्या* :-
चोरी-दुर्घटना आदि से हानि संभव है। धार्मिक यात्रा हो सकती है। तंत्र-मंत्र में रुचि बढ़ेगी। व्यापार ठीक चलेगा। वाणी पर नियंत्रण रखें। धन प्राप्ति होगी।
                    
⚖ *राशि फलादेश तुला* :-
वाहन-मशीनरी का प्रयोग सावधानी से करें। जोखिमभरे कार्यों से दूर रहें। समय अनुकूल नहीं है, धैर्य रखें। शरीर कष्ट रहेगा।
                      
🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक* :-
शुभ समाचार मिलेंगे। गृहस्‍थी प्रसन्नता से चलेगी। राजकीय कार्यों में अनुकूलता मिलेगी। निवेश-व्यापार से लाभ होगा। धनार्जन होगा।
              
🏹 *राशि फलादेश धनु* :-
संपत्ति के कार्य मनोनुकूल होंगे। निवेश लाभ देगा। नौकरी-इंटरव्यू में सफलता मिलेगी। शत्रु शांत रहेंगे। धार्मिक यात्रा हो सकती है।
                         
🐊 *राशि फलादेश मकर* :-
मौज-मस्ती से दिन बीतेगा। विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा। व्यापार-निवेश, नौकरी से लाभ होगा। शत्रु शांत रहेंगे। प्रसन्नता रहेगी।
           
🏺 *राशि फलादेश कुंभ* :-
कुसंगति व विवाद से बचें। शरीर पीड़ा होगी। यात्रा में चोरी-दुर्घटना संभव है। शत्रु सक्रिय रहेंगे। अतिविश्वास हानि देगा। धीरज रखें।
                  
🐬 *राशि फलादेश मीन* :-
पुराना रोग उभर सकता है। विरोध होगा। पराक्रम से लाभ तथा विजय मिलेगी। व्यापार धीमा चलेगा। बुद्धि का प्रयोग लाभ का प्रतिशत बढ़ाएगा।
              
☯ आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो ।

☯ आज मंगलवार है अपने नजदीक के मंदिर में संध्या 7 बजे सामूहिक हनुमान चालीसा पाठ में अवश्य सम्मिलित होवें |

।। 🐚 *शुभम भवतु* 🐚 ।।

🇮🇳🇮🇳 *भारत माता की जय* 🚩🚩
[3/7, 08:06] ‪+91 70375 76900‬: ✍🌷 *श्लोक:* 👇🏼👇🏼🌷🌹

यामालोकयितुं भ्रमन्ति गगने नक्षत्रमालास्तथा
सेवन्ते द्विरदाधिराजजननीं रम्भादिभिस्सेविता:।
सा त्वन्नेत्रमुपेत्य लोचनसुधाधारां किरन्ती स्थिता
तस्या रक्षणपोषणे धर रतिं या जीवनं दास्यति।।

✍🌷 *अर्थ:* 👇🏼👇🏼🌷🌹
    जिसको देखने के लिये आकाश में नक्षत्रमालायें आज तक घूम रही हैं औऱ रम्भा आदि से सेवित देवगण गणेश की माता पार्वती की सेवा किया करते हैँ। वह(नारी) तुम्हारे समक्ष आकर आँखों के लिये अमृत की धारा वहाती हुई स्थित है। उसके रक्षण पोषण मे स्नेह रखो। वही तुम्हें जीवन (पुत्र रूप में) प्रदान करेगी

गणान्तरात्.....✍
[3/7, 08:31] P Alok Ji: बिषय करन सुर जीव समेता।
सकल एक ते एक सचेता।।
सबकर परम प्रकासक जोइ।
राम अनादि अवधपति सोइ।।
बिषय इन्द्रियां इन्द्रियों के देवता और जीवात्मा ये सब एक की सहायता से एक चेतन होते हैं अर्थात बिषयों का प्रकास इन्द्रियो से इन्द्रियोके देवताओं से और इन्द्रियदेवताओं का चेतन जीवात्मा से प्रकाश होता है इन सबका प्रकाशकजो परम प्रकाशक है वही अनादि ब्रम्ह अयोध्यानरेश श्रीरामचन्द्रजी हैं । पिबत् रामचरिचमानस रसम् ,,श्रद्धेय आलोकजी शास्त्री इन्दौर मप्र
[3/7, 08:56] पं विजय जी: 🙏🌹ॐ नमः शिवाय सुप्रभातम 🌹🙏
करने में सावधान होनेमें प्रसन्न ------------
                 मनुष्यकी उन्नतिमें महत्वपूर्ण बात यह है कि वह करनेमें सावधान रहे और होनेमें प्रसन्न। एक " करना "होता है और एक "होना " होता है। दोनों विभाग  अलग -अलग हैं। करनेकी चीज  है कर्तव्य और होनेकी चीज है फल। मनुष्य का कर्म करनेमें अधिकार है ,फल में नहीं।
[3/7, 09:28] ‪+91 98670 61250‬: राधे राधे- आज का भगवद चिन्तन ॥
               07-03-2017
  🌺    भक्ति भय से नहीं श्रद्धा और प्रेम से होती है। भय से की गई भक्ति में भाव तो कभी जन्म ले ही नहीं सकता और बिना भाव के भक्ति का पुष्प नहीं खिलता।
  🌸      श्रद्धा के बिना ज्ञान प्राप्त हो ही ना पायेगा। श्रद्धा ना हो तो व्यक्ति धर्मभीरु बन जाता है। उसे हर समय यही डर लगा रहता है कि फलां देवता नाराज हो गया तो कुछ हो तो नहीं जायेगा।
🌼     प्रारब्ध में जितना लिखा है उतना तो तुम्हें प्राप्त होकर ही रहेगा, उसे कोई रोक ना पायेगा। भगवान तो सब पर अकारण कृपा करते रहते हैं, कोई उन्हें माने या ना माने तो भी। उसने हमें जन्म दिया, जीवन दिया और हर कदम पर संभाला। क्या यह सब पर्याप्त नहीँ है प्रभु से प्रेम करने के लिए ?

🌝 भाव और प्रेम से मंदिर जाओगे तो खिले- खिले लौटोगे।

         🙏कल 8-3-2017  बुधवार को एकादशी  है 🙏
[3/7, 09:32] P Omish Ji: देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः।
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ।। गीता 3/11
हे अर्जुन! इस यज्ञ से तुम देवताओं को प्रसन्न करो और वे देवता तुमको प्रसन्न रखेंगे। इस प्रकार एक-दूसरे को प्रसन्न करते हुए तुम्हारा परम कल्याण होगा।

संसार में सब एक-दूसरे से मिलजुल कर ही काम कर सकते हैं। आपकी भावनाएं दूसरों के लिए साफ होनी चाहिए क्योंकि जैसी भावना आप दूसरे के लिए रखते हैं, वैसी ही वह आपके लिए रखता है। आप किसी को प्यार करते हैं तो वह आपको प्यार करता है। आप किसी को प्रसन्न करते हैं तो वह भी आपको प्रसन्न करता है। ऐसे ही अगर आप किसी से नफरत करते हैं तो वह भी आपसे नफरत ही करेगा। अगर आप किसी पर गुस्सा करते हैं तो वह भी आप पर गुस्सा ही करेगा। संसार में जैसा दूसरे के साथ व्यवहार करते हैं, वैसा ही वापस मिलता है।

जब तक आप खुद के कामों को अनासक्त भाव से नहीं करेंगे, तब तक मन की सफाई नहीं होगी। क्योंकि साफ मन ही सबकी भलाई का भाव रख सकता है इसलिए भगवान कृष्ण कहते हैं कि तुम सभी के लिए प्रसन्नता का भाव रखो, बदले में वह भी तुम्हारे लिए प्रसन्नता का भाव ही रखेंगे और इस प्रकार एक-दूसरे को प्रसन्न रखते हुए तुम अपने लक्ष्य को पा सकोगे!! आचार्य ✍
[3/7, 09:37] ‪+91 70375 76900‬: ✍🌷 *श्लोक:* 👇🏼👇🏼🌷🌹

अशक्तेस्साम्राज्ये नयनजलमापीय विवशा
नृपादेशाद्बद्धा विदलितशरीरेव कविता।
यदा मंचे नृत्ये स्खलितपदबन्धै: स्फुरति रे!
तदा तद्दौर्भाग्यं हसति कविसृष्टेरुपवनम्।।

✍🌷 *अर्थ:* 👇🏼👇🏼🌷🌹

   अशक्ति(कविता करने की शक्ति का अभाव) के साम्राज्य में राजा के आदेश से विदलित हो शरीर जिसका ऐसी कविता विवश होकर अपने अश्रुजल को पीती हुई जब मंच पर नृत्य के बहाने पद बन्धनों से स्खलित होकर स्फुरित होती है तो वास्तव में उसका दुर्भाग्य कवि के सृष्टि रूप उपवन का मजाक उडाता है।

*संकलित*...✍
[3/7, 09:42] जियो अनिल जी: नमो नमः🙏🏼💐🙏🏼सुप्रभातम
"मेरे कान्हा ......
"कभी आकर देख लो मेरी आँखों मे भी!
"तेरी तस्वीर के आगे कोई नजारा ही नहीं!
"खो गये है तेरे इश्क मे हम इस कदर कि!
"तेरे नाम के बिना कही गुजारा ही नहीं!!
🌹👏राधेकृष्णा जी👏🌹
*जय महाकाल*

🌹🌹🌹❤❤🌹🌹🌹
[3/7, 09:55] पं अर्चना जी: लोग फिरतें हैं दर्द को दिल में लिए हुये,
मुस्कुरातें हैं बहुत खूब, होंठो को सिये हुए!!

पूछे कोई तो हजार, बहाने बना दिये,
फिरतें हैं अपने दिल में तन्हांइयाँ लिये हुये!!

ये दर्द  इतना कीमती सा हो गया ज़नाब,
लोग खुश हैं अपनी परछाईयां लिए हुये!!

न खुद हैं ना खुदी ही बची रह गई हुजूर,
लोग खुद ही अब खुदा हैं खुदाइयाँ लिए हुये !!!
           स्वरचित अर्चना त्रिपाठी "भावुक"
                ( 13/2/2017)
[3/7, 10:01] P Omish Ji: 🙏श्री मात्रे नमः🙏
🌷सदुक्ति सञ्चयः🌷
       केवलाघो केवलादी
                             ऋग्वेद
जो अकेले खाता है वह पाप खाता है!!

🌹प्रवक्ता, धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ🌹
              आचार्य ओमीश ✍
[3/7, 10:21] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *आप सभी को प्रातःकालीन नमन।*
*मन की बात---------:*🌸🙏🏻🌸
स्वयं पर संशय, समाज पर संशय और परमात्मा पर संशय, ये तीनों हमें प्रयत्नपूर्वक छोड़ने हैं।इनमें से सभी हमारे प्रगति में बाधक है इसके लिये मन की वृत्ति बिखरी हुई न हो एक ओर टिकी हो।ध्यान सूक्ष्म, सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम होता जाय, तभी शक्ति व सामर्थ्य उभरता है और अंततः सारे संशयों का नाश होता है।ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप है, भौतिक जगत में उसका सत् स्वरूप प्रकट होता है, जीवों में उसका चैतन्य स्वरूप प्रकट होता है और भक्तों में उसका आनंद स्वरूप प्रकट होता है।दुःख का निमित्त बाहर है, दुःख मिलने पर मन में दुखाकार वृत्ति होती है उस वृत्ति से यदि हम एकाकार हों तभी दुःख गहरा होता है, यदि साक्षीभाव से देखना आ जाये तो हम उसके  भागी नहीं  होंगे। साधना के पथ पर जब एक बार कदम रख दें तो मन में उठने वाले प्रश्नों का जवाब किसी न किसी माध्यम से मिल ही जाता है, उस परम सत्ता पर पूर्ण विश्वास हो तो वह हमारी हर पल खबर लेता रहता है।✍
आप सब का दिन मंगलमय हो।😊
[3/7, 10:59] P Omish Ji: कोई बात नहीं बहन, मेरा क्या प्रेम क्या स्नेह।
परम पूज्य श्री गुरूदेव का आशीर्वाद, भगवती की कृपा तथा आप सबका स्नेह पाकर ही कुछ सीख गया हूँ नही मुझमें इतनी सामर्थ्य कहां है।
आपका इतना वात्सल्य पाकर कुछ शब्द प्रस्फुटित हुए हैं जो कि सामने रख रहा हूँ।
*अपने बीच की खट्टी-मीठी यादें, इस रिश्ते में और मिठास घोल जाती हैं*
👇👇👇👇👇
भाई-बहन के प्यार का बंधन होता है बड़ा अनूठा,
चाहे लाख मुसीबतें आएँ, ये रिश्ता कभी न टूटा।।
कभी छोटी-छोटी चीजों के लिए लड़ते थे जो,
एक-दूसरे के लिए बड़ी-बड़ी कुर्बानियाँ दे जाते हैं वो।।
भाई-बहन दोनों बिन कहे एक-दूसरे की बात समझ जाते हैं,
बहन के हाथों के बने पकवान, हमेशा भाई को लुभाते हैं।।
हर गुजरते दिन के साथ इस रिश्ते की अहमियत बढ़ती जाती है,
बचपन की खट्टी-मीठी यादें, इस रिश्ते में और मिठास घोल जाती है!! अनुज ओमीश ✍
[3/7, 11:10] राम भवनमणि त्रिपाठी: ~ वेदों के मंत्रद्रष्टा महर्षि  अगस्त्य की कथा ~~
      ~ अपने तपोबल के तेज से आदित्य ( सूर्य ) के समान प्रकाशित  ,महर्षि अगस्त्य , मंत्रद्रष्टा ऋषि है  और अमर माने जाते है ~ मंत्रद्रष्टा माने जिन्होंने  श्री  ब्रम्हा जी द्वारा गाये जा रहे वेद के मंत्रो को  ,तपोबल से जानकार उन्हें   प्रकाशित किया ~इनके अवतरित होने के सम्बन्ध में दो तरह की कथाएं मिलती है ।
    1~ मित्रावरुण द्वारा  श्री वशिष्ठ जी के साथ , कुम्भ ( घड़े )से जन्म लेने की बात आती है , कुम्भ योनि या आधुनिक शब्दों में  TEST   TUBE  BABY ~~ही है ।
    2~महर्षि पुलस्त्य की पत्नी "हविर्भू " के गर्भ से  (महर्षि ) विसश्वा  ( जो कुबेर ,रावण ,कुम्भकरण ,विभीषण के पिता थे ) के साथ इनकी उत्पत्ति का वर्णन मिलता है।इस प्रकार ये रावण के चाचा हुए
      इनके कुछ  चरित्र बहुत प्रसिद्द है ~
     1~उस समय विंध्याचल पर्वत बहुत ऊँचा और दुर्गम था ~दक्षिण के कुछ मुनियो ने  काशी में श्री अगस्त्य जी के पास आकर ,वहा  राक्षसो द्वारा सताये जाने व अति कठिन मार्ग होने की बात बतायी तब उनके अनुरोध पर श्री अगस्त्य जी विंध्याचल पंहुचे ।विंध्याचल ने मुनि को  साष्ट्रांग दंडवत की , मुनि ने पर्वत को आदेश दिया कि जब तक वे वापस न आये वह इसी प्रकार झुका रहे । अगस्त्य जी -जन हित में दक्षिण दिशा से कभी वापस नही आये ,इस लिए पर्वत हमेशा के लिए नीचा हो गया ,रास्ता सुगम हो गया । मुनि ने पर्वत के दक्षिण प्रदेश के  , राक्षसो  का विनाश कर  इसे मुनियो व् आम जनता के रहने योग्य सुऱक्षित बनाया ।
       पर्वत में भी जीवन है ,इसलिए कथा शाब्दिक रूप में भी सच ही होगी ~एक दुसरे अर्थ में इसका तात्पर्य ~विंध्याचल पर्वत में सुगम मार्गो का निर्माण करवाना भी हो सकता है ।
     2~ देवासुर संग्राम के समय ~असुर हमला करने के बाद समुद्र में  छिप जाते थे , जब भगवान् विष्णु जी देवताओ की और से युद्ध कर रहे थे ,ऐसा ही हुआ तब श्री अगस्त्य जी ने समुद्र को पी लिया था ~जिससे श्री विष्णु जी व्   देवताओ ने असुरो को हराते हुए पाताल तक खदेड़ दिया । दूसरे शब्दों में  यह भी हो सकता है कि तपोबल से या  अत्यधिक  शक्तिशाली नौसेना का निर्माण कर असुरो को समुद्र व् उसके पार  उनके निवास करने की जगह ( वर्तमान में अफ्रीका और अरब )से बहुत दूर पाताल (अमेरिका ) तक भागने को मजबूर कर दिया था ।
    वर्तमान में आतंकवादी  छद्म युद्ध हमलो से अत्यधिक ग्रसित  अपने देश के शाशको को इस कथा से प्रेरणा लेते हुए ,हमलावरों सेअपनी भूमि पर युद्ध करने  के स्थान पर ,( समुद्र का पान करने के समान रास्ते की तमाम दुष्टर कठिनाइयो पर विजय पाते हुए )  हमलावरों को    बहुत दूर तक खदेड़ने  का प्रयास करना चाहिए ~
[3/7, 11:20] ‪+91 99267 22827‬: गुरुजनों के श्रीचरणों अभ्यर्थना है, इस श्लोकका अन्वय, शब्दार्थ एवं व्याख्या प्रेषित कर अनुग्रहीत करें..
1.
धर्मस्य ह्यापवर्ग्यस्य नार्थोsर्थायोपकल्पते !
नार्थस्य धर्मैकान्तस्य कामो लाभाय हि स्मृतः !!
[3/7, 12:25] ‪+91 94301 19031‬: भूख और प्यास रोग है। अन्न और जल दवा है।दवा मीठी हो तो कदाचित कोई ज्यादा खा ले पर दवा कड़वी हो तो मानव कितना खायेगा। इसलिए भोजन,दवा विवेक से करें।भजन के समय बाहर न देखें,अंदर हृदय कमलमे नारायण विराजमान है। अंदर दृष्टि रख करके भजन और भोजन करें। अंदर दृष्टि का भाव की पेट को किसकी जरूरत है वह दें,पेट मांगे वह खाना चाहिए।जीभ मांगे सो नही। जीभ को सुधारें तभी जीवन सुधरेगा। और जीभ सुधरेगा तब जब जीभ जप करेगा तब।अजामिल ने जीभ को सुधारा फलतः उसके लिए विमान आया।अजामिल कौन?आज का अर्थ ईश्वर ।और अजा का अर्थ माया ।और मिल का अर्थ मिलना,फसना । जो माया में फंसा है मिल गया है वह अजामिल । जिह्वा न वक्ति भगवद्गुनामधेयम चेतश्च न स्मरति तच्चरणारविन्दम ।
[3/7, 12:37] ‪+91 94259 88411‬: परप वरेण्या मातृसाद्र्शा: बाल्यादप्रभृति व्याकरणं पिपठिषाय प्रयतते यत्राहं जनिमलभत को$पि व्याकरणं शिक्षक: न वर्त्तते।एतदर्थ:गृहे उषित्वा स्वकीय प्रयत्नेनसयथा शक्यमध्ययनं कुर्वन्नस्मि। आंङ्ल चिकित्सको$हं।साम्प्रतहं पञ्चषष्टी वर्ष देशीयो।सर्वदा हृदि पीड़ा बाध्यते रिक्ततानुभूये।मार्गदर्शनमिहे
[3/7, 12:56] जियो अनिल जी: *नमो नमः*
आचार्य जी
जहाँ तक मै जान पाया हूँ ।
यह श्लोक श्री भागवत महा पुराण का है
अपने जानकारी के अनुसार
आप को उत्तर देकर सन्तुष्ट करने का प्रयास है मेरा
जब की इस बिषय में मुझे जानकारी नहीं है।
महादेव

*यथा सूर्यवपुर्भूत्वा प्रकाशाय चरेद्धरि:*।
*सर्वेषां जगतामेव हरिरालोकहेतवे॥ तथैवान्त:प्रकाशाय पुराणावयवो हरि:*।
*विचरेदिह भूतेषु पुराणं पावनं परम्‌*॥
जिस प्रकार भगवान्‌ श्रीहरि सम्पूर्ण जगत्‌ को प्रकाश प्रदान करने के लिए सूर्य का विग्रह धारण करके जगत्‌ मेँ विचर रहे हैँ, उसी प्रकार वे सबके हृदय मेँ प्रकाश करने के लिए इस जगत्‌ मेँ पुराणोँ का रूप धारण करके मनुष्योँ के हृदय मेँ विचर रहे हैँ। अत: पुराण परम पवित्र हैँ। श्रीमद्भागवत मेँ लिखा है-
*धर्मस्य ह्यापवर्ग्यस्य नार्थोऽर्थायोपकल्पते*।
*नार्थस्य धर्मैकान्तस्य कामो लाभाय हि स्मृत:*॥
*कामस्य नेन्द्रियप्रीतिर्लाभो जीवेत यावता*।
*जीवस्य तत्त्वजिज्ञासा नार्थो यश्चेह कर्मभि:*॥

धर्म तो मोक्ष या भगवत्प्राप्ति का साधन है। धन प्राप्त कर लेना ही उसका प्रयोजन नहीँ है। धन का भी अन्तिम साध्य धर्म है, न कि भोगोँ का संग्रह। यदि धन से लौकिक भोग की प्राप्ति हुई तो यह लाभ की बात नहीँ मानी गई है। भोगसंग्रह का भी प्रयोजन सदा इन्दियोँ को तृप्त करते रहना ही नहीँ है, अपितु जितने से जीवन-निर्वाह हो सके, उतना ही आवश्यक है। जीव के जीवन का भी मुख्य प्रयोजन भगवत्तत्त्व को जानने की सच्ची अभिलाषा ही है , न कि यज्ञादि कर्मोँ द्वारा प्राप्त होनेवाले स्वर्गादि सुखोँ की प्राप्ति।
*जय महाँकाल*
🙏🏼💐🙏🏼💐
[3/7, 13:34] P anuragi. ji: अतीव  सुमनोहर  वर्णन  देव

पुलक बाटिका बाग़ बन
          सुख  सुविहंग बिहारु ।
माली सुमन सनेह जल
          सींचत लोचन   चारु ।।
        🌺🌺🌻🌺🌺
[3/7, 13:39] ‪+91 98670 61250‬: मनुष्यता -मैथिलीशरण गुप्त
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
💐श्री गणेशाय नमः 💐

विचार लो कि मत्र्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸
मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी।
हुई न यों सु–मृत्यु तो वृथा मरे¸ वृथा जिये¸
मरा नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए।
यही पशु–प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

उसी उदार की कथा सरस्वती बखानवी¸
उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती।
उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती;
तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती।
अखण्ड आत्मभाव जो असीम विश्व में भरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिये मरे।।

सहानुभूति चाहिए¸ महाविभूति है वही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरूद्धवाद बुद्ध का दया–प्रवाह में बहा¸
विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहे?
अहा! वही उदार है परोपकार जो करे¸
वहीं मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े¸
समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े–बड़े।
परस्परावलम्ब से उठो तथा बढ़ो सभी¸
अभी अमत्र्य–अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।
रहो न यों कि एक से न काम और का सरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

"मनुष्य मात्र बन्धु है" यही बड़ा विवेक है¸
पुराणपुरूष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है।
फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद है¸
परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।
अनर्थ है कि बंधु हो न बंधु की व्यथा हरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए¸
विपत्ति विप्र जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेल मेल हाँ¸ बढ़े न भिन्नता कभी¸
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में
सन्त जन आपको करो न गर्व चित्त में
अन्त को हैं यहाँ त्रिलोकनाथ साथ में
दयालु दीन बन्धु के बडे विशाल हाथ हैं
अतीव भाग्यहीन हैं अंधेर भाव जो भरे
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे
🙏🙏🙏🙏🙏
[3/7, 17:04] राम भवनमणि त्रिपाठी: *'शरीर' और 'मैं'*

सभी अनेक शरीरों का 'मैं' एक है,,,
कैसे?  
जैसे,,,,किसी तालाब में सूर्य की किरणों से प्रकाशित पानी के बुलबुले तो अनेक हैं पर उसमे प्रतिबिंबित होने वाला सूर्य एक है।  वैसे ही असंख्य शरीरों को पानी के बुलबुले की तरह समझना चाहिए,,,और उनमें दिखने वाले असंख्य सुर्य प्रतिबिंब 'जीव' हैं,,,,,  और बिंब 'सूर्य' उन सभी प्रतिबिंबो की आत्मा है,, जो कि सभी बुलबुलों के लिए एक है।

॥१३- ३३॥ जैसे एक ही सूर्य इस संपूर्ण संसार को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार हे भारत, 'क्षेत्री' आत्मा भी शरीर रूपी क्षेत्र को प्रकाशित करती है।

॥१३- ३१॥ हे कौन्तेय, जीव की आत्मा अनादि और निर्गुण होने के कारण विकारहीन परमात्मा तत्व ही है। यह शरीर में स्थित होते हुये भी न कुछ करती है और न ही उससे लिप्त है।

॥१३- ३०॥ जब कोई इन सभी जीवों के विविध आत्माओं को एक ही जगह स्थित देखता है और उसी एक कारण से यह सारा विस्तार देखता है, तब वह अपने 'मैं' के वास्तविक स्वरूप ब्रह्म पद को प्राप्त हो जाता है।

॥१३- २८॥ जो हर प्राणी में इश्वर को एक सुर्य की तरह सबमें प्रतिबिंबित होता हुआ देखता है, वह अपने द्वारा स्वयं के आत्मा की हिंसा नहीं करता, इसलिये वह परम गति को पाता है।

॥१३- २७॥ परमात्मा सभी जीवों में एक सा स्थित हैं। प्रतिबिंबो की तरह विनाश को प्राप्त होते इन जीवों में जो  सुर्य बिंब की तरह उस एक अविनाशी परमात्मा को  शरीरों की आत्मा समझता है, वास्तव में वही ठीक देखता है।

॥१०- २०॥ मैं आत्मा हूँ, हे गुडाकेश, सभी जीवों के अन्तकरण में स्थित। मैं ही सभी जीवों का आदि, मध्य और अन्त भी 'मैं' हूँ।

*(भगवद्गीता)*
[3/7, 17:34] P Alok Ji: पेट का रोग ज्योतिष में एक दृष्टि,,,,,,,,,,,
उदर विकार उत्पत्र करने में भी शनि एक महत्वपुर्ण भुमिका निभाता हैं। सूर्य एवं चन्द्र को बदहजमी का कारक मानते हैं, जब सूर्य या चंद्र पर शनि का प्रभाव हो, चंद्र व बृहस्पति को यकृत का कारक भी माना जाता है। इस पर शनि का प्रभाव यकृत को कमजोर एवं निष्क्रिय प्रभावी बनाता हैं। बुध पर शनि के दुष्प्रभाव से आंतों में खराबी उत्पत्र होती हैं। वर्तमान में एक कष्ट कारक रोग एपेण्डीसाइटिस भी बृहस्पति पर शनि के अशुभ प्रभाव से देखा गया है। शुक्र को धातु एवं गुप्तांगों का प्रतिनिधि माना जाता हैं। जब शुक्र शनि द्वारा पीडि़त हो तो जातक को धातु सम्बंधी कष्ट होता है। जब शुक्र पेट का कारक होकर स्थित होगा तो पेट की धातुओं का क्षय शनि के प्रभाव से होगा। शनिकृत कुछ विशेष उदर रोग योगः-

1 कर्क, वृश्चिक, कुंभ नवांश में शनिचंद्र से योग करें तो यकृत विकार के कारण पेट में गुल्म रोग होता है।
2 द्वितीय भाव में शनि होने पर संग्रहणी रोग होता हैं। इस रोग में उदरस्थ वायु के अनियंत्रित होने से भोजन बिना पचे ही शरीर से बाहर मल के रुप में निकल जाता हैं।
3 सप्तम में शनि मंगल से युति करे एवं लग्रस्थ राहू बुध पर दृष्टि करे तब अतिसार रोग होता है।
4 मीन या मेष लग्र में शनि तृतीय स्थान में उदर मंे दर्द होता है।
5 सिंह राशि में शनि चंद्र की यूति या षष्ठ या द्वादश स्थान में शनि मंगल से युति करे या अष्टम में शनि व लग्र में चंद्र हो या मकर या कुंभ लग्रस्थ शनि पर पापग्रहों की दृष्टि उदर रोग कारक है।
6 कुंभ लग्र में शनि चंद्र के साथ युति करे या षष्ठेश एवं चंद्र लग्रेश पर शनि का प्रभाव या पंचम स्थान में शनि की चंद्र से युति प्लीहा रोग कारक है।श्रद्धेय आलोकजी शास्त्रीइन्दौर मप्र
[3/7, 17:57] पं विजय जी: जिदंगी का सार बताते हुए संतो ने कहा कि सोते में धन, जागते में धन, घर में धन, बाजार में धन। आखिर में रिजल्ट निकलता है निधन।इसलिए हमें ऐसे कर्म करने चाहिए, जिससे किसी और को हमारी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना नहीं करनी पड़े। हम ही आत्म कल्याण करें।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[3/7, 18:05] पं विजय जी: कुछ लोग होते हैं जो छोटी-छोटी बातों पर किसी से भी विवाद कर लेते हैं। वह ऐसा जान-बूझकर नहीं करते बल्कि उनका स्वभाव ही ऐसा होता है। मनु स्मृति के अनुसार 15 लोग ऐसे बताए गए हैं, जिनसे कभी विवाद नहीं करना चाहिए। ये 15 लोग इस प्रकार हैं---श्लोक
ऋत्विक्पुरोहिताचार्यैर्मातुलातिथिसंश्रितैः।
बालवृद्धातुरैर्वैधैर्ज्ञातिसम्बन्धिबांन्धवैः।।
मातापितृभ्यां यामीभिर्भ्रात्रा पुत्रेण भार्यया।
दुहित्रा दासवर्गेण विवादं न समाचरेत्।।

अथार्त- 1. यज्ञ करने वाले, 2. पुरोहित, 3. आचार्य, 4. अतिथियों, 5. माता, 6. पिता, 7. मामा आदि संबंधियों, 8. भाई, 9. बहन, 10. पुत्र, 11. पुत्री, 12. पत्नी, 13. पुत्रवधू, 14. दामाद तथा 15. गृह सेवकों यानी नौकरों से वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।

1. यज्ञ करने वाला
यज्ञ करने वाला ब्राह्मण सदैव सम्मान करने योग्य होता है। यदि उससे किसी प्रकार की कोई चूक हो जाए तो भी उसके साथ कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। यदि आप ऐसा करेंगे तो इससे आपकी प्रतिष्ठा ही धूमिल होगी। अतः यज्ञ करने वाले वाले ब्राह्मण से वाद-विवाद न करने में ही भलाई है।

2. पुरोहित
यज्ञ, पूजन आदि धार्मिक कार्यों को संपन्न करने के लिए एक योग्य व विद्वान ब्राह्मण को नियुक्त किया जाता है, जिसे पुरोहित कहा जाता है। भूल कर भी कभी पुरोहित से विवाद नहीं करना चाहिए। पुरोहित के माध्यम से ही पूजन आदि शुभ कार्य संपन्न होते हैं, जिसका पुण्य यजमान (यज्ञ करवाने वाला) को प्राप्त होता है। पुरोहित से वाद-विवाद करने पर वह आपका काम बिगाड़ सकता है, जिसका दुष्परिणाम यजमान को भुगतना पड़ सकता है। इसलिए पुरोहित से कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।

3. आचार्य
प्राचीनकाल में उपनयन संस्कार के बाद बच्चों को शिक्षा के लिए गुरुकुल भेजा जाता था, जहां आचार्य उन्हें पढ़ाते थे। वर्तमान में उन आचार्यों का स्थान स्कूल टीचर्स ने ले लिया है। मनु स्मृति के अनुसार आचार्य यानी स्कूल टीचर्स से भी कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। वह यदि दंड भी दें तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। आचार्य (टीचर्स) हमेशा अपने छात्रों का भला ही सोचते हैं। इनसे वाद-विवाद करने पर विद्यार्थी का भविष्य भी खतरे में पड़ सकता है।

4. अतिथि
हिंदू धर्म में अतिथि यानी मेहमान को भगवान की संज्ञा दी गई है इसलिए कहा जाता है मेहमान भगवान के समान होता है। उसका आवभगत ठीक तरीके से करनी चाहिए। भूल से भी कभी अतिथि के साथ वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। अगर कोई अनजान व्यक्ति भी भूले-भटके हमारे घर आ जाए तो उसे भी मेहमान ही समझना चाहिए और यथासंभव उसका सत्कार करना चाहिए। अतिथि से वाद-विवाद करने पर आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस लग सकती है।

5. माता
माता ही शिशु की सबसे प्रथम शिक्षक होती है। माता 9 महीने शिशु को अपने गर्भ में धारण करती है और जीवन का प्रथम पाठ पढ़ाती है। यदि वृद्धावस्था या इसके अतिरिक्त भी कभी माता से कोई भूल-चूक हो जाए तो उसे प्यार से समझा देना चाहिए न कि उसके साथ वाद-विवाद करना चाहिए। माता का स्थान गुरु व भगवान से ही ऊपर माना गया है। इसलिए माता सदैव पूजनीय होती हैं। अतः माता के साथ कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।

6. पिता
पिता ही जन्म से लेकर युवावस्था तक हमारा पालन-पोषण करते हैं। इसलिए मनु स्मृति के अनुसार पिता के साथ कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। पिता भी माता के ही समान पूज्यनीय होते हैं। हम जब भी किसी मुसीबत में फंसते हैं, तो सबसे पहले पिता को ही याद करते हैं और पिता हमें उस समस्या का समाधान भी सूझाते हैं। वृद्धावस्था में भी पिता अपने अनुभव के आधार पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं। इसलिए पिता के साथ वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।

7. मामा आदि संबंधी
मामा आदि संबंधी जैसे- काका-काकी, ताऊ-ताईजी, बुआ-फूफाजी, ये सभी वो लोग होते हैं, जो बचपन से ही हम पर स्नेह रखते हैं। बचपन में कभी न कभी ये भी हमारी जरूरतें पूरी करते हैं। इसलिए ये सभी सम्मान करने योग्य हैं। इनसे वाद-विवाद करने पर समाज में हमें सभ्य नहीं समझा जाएगा और हमारी प्रतिष्ठा को भी ठेस लग सकती है। इसलिए भूल कर भी कभी मामा आदि सगे-संबंधियों से वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। यदि ऐसी स्थिति बने तो भी समझा-बूझाकर इस मामले को सुलझा लेना चाहिए।

8. भाई
हिंदू धर्म के अनुसार बड़ा भाई पिता के समान तथा छोटा भाई पुत्र के समान होता है। बड़ा भाई सदैव मार्गदर्शक बन कर हमें सही रास्ते पर चलने के प्रेरित करता है और यदि भाई छोटा है तो उसकी गलतियां माफ कर देने में ही बड़प्पन है। विपत्ति आने पर भाई ही भाई की मदद करता है। बड़ा भाई अगर परिवार रूपी वटवृक्ष का तना है तो छोटा भाई उस वृक्ष की शाखाएं। इसलिए भाई छोटा हो या बड़ा उससे किसी भी प्रकार का वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।
9. बहन
भारतीय सभ्यता में बड़ी बहन को माता तथा छोटी बहन को पुत्री माना गया है। बड़ी बहन अपने छोटे भाई-बहनों को माता के समान ही स्नेह करती है। संकट के समय सही रास्ता बताती है। छोटे भाई-बहनों पर जब भी विपत्ति आती है, बड़ी बहन हर कदम पर उनका साथ देती है।
छोटी बहन पुत्री के समान होती है। परिवार में जब भी कोई शुभ प्रसंग आता है, छोटी बहन ही उसे खास बनाती है। छोटी बहन जब घर में होती है तो घर का वातावरण सुखमय हो जाता है। इसलिए मनु स्मृति में कहा गया है कि बहन के साथ कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।

10. पुत्र
हिंदू धर्म ग्रंथों में पुत्र को पिता का स्वरूप माना गया है यानी पुत्र ही पिता के रूप में पुनः जन्म लेता है। शास्त्रों के अनुसार पुत्र ही पिता को पुं नामक नरक से मुक्ति दिलाता है। इसलिए उसे पुत्र कहते हैं-
पुं नाम नरक त्रायेताति इति पुत्रः
पुत्र द्वारा पिंडदान, तर्पण आदि करने पर ही पिता की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। पुत्र यदि धर्म के मार्ग पर चलने वाला हो तो वृद्धावस्था में माता-पिता का सहारा बनता है और पूरे परिवार का मार्गदर्शन करता है। इसलिए मनु स्मृति के अनुसार पुत्र से कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।

11. पुत्री
भारतीय संस्कृति में पुत्री को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। कहते हैं कि भगवान जिस पर प्रसन्न होता है, उसे ही पुत्री प्रदान करता है। संभव है कि पुत्र वृद्धावस्था में माता-पिता का पालन-पोषण न करे, लेकिन पुत्री सदैव अपने माता-पिता का साथ निभाती है। परिवार में होने वाले हर मांगलिक कार्यक्रम की रौनक पुत्रियों से ही होती है। विवाह के बाद भी पुत्री अपने माता-पिता के करीब ही होती है। इसलिए पुत्री से कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।

12. पत्नी
हिंदू धर्म में पत्नी को अर्धांगिनी कहा जाता है, जिसका अर्थ है पति के शरीर का आधा अंग। किसी भी शुभ कार्य व पूजन आदि में पत्नी का साथ में होना अनिवार्य माना गया है, उसके बिना पूजा अधूरी ही मानी जाती है। पत्नी ही हर सुख-दुख में पति का साथ निभाती है। वृद्धावस्था में यदि पुत्र आदि रिश्तेदार साथ न हो तो भी पत्नी कदम-कदम पर साथ चलती है। इसलिए मनु स्मृति के अनुसार पत्नी से भी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।

13. पुत्रवधू
पुत्र की पत्नी को पुत्रवधू कहते हैं। भारतीय संस्कृति के अनुसार पुत्रवधू को भी पुत्री के समान ही समझना चाहिए। पुत्रियों के अभाव में पुत्रवधू से ही घर में रौनक रहती है। कुल की मान-मर्यादा भी पुत्रवधू के ही हाथों में होती है। परिवार के सदस्यों व अतिथियों की सेवा भी पुत्रवधू ही करती है। पुत्रवधू से ही वंश आगे बढ़ता है। इसलिए यदि पुत्रवधू से कभी कोई चूक भी हो जाए तो भी उसके साथ वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।

14. गृह सेवक यानी नौकर
मनु स्मृति के अनुसार गृह सेवक यानी नौकर से भी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए क्योंकि पुराने सेवक आपकी व आपके परिवार की कई गुप्त बातें जानता है। वाद-विवाद करने पर वह गुप्त बातें सार्वजनिक कर सकता है। जिससे आपके परिवार की प्रतिष्ठा खराब हो सकती है। इसलिए नौकर से भी कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।

15. दामाद
पुत्री के पति को दामाद यानी जमाई कहते हैं। धर्म ग्रंथों में दामाद को भी पुत्र के समान माना गया है। पुत्र के न होने पर दामाद ही उससे संबंधित सभी जिम्मेदारी निभाता है तथा ससुर के उत्तर कार्य (पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध आदि) करने का अधिकारी भी होता है। दामाद से इसलिए भी विवाद नहीं करना चाहिए क्योंकि इसका असर आपकी पुत्री के दांपत्य जीवन पर भी पढ़ सकता है।
🖕🖕🖕🖕🖕🖕🖕संकलित
[3/7, 20:12] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *मन की बात---------:*🌺🙏🏻🌺
प्रेम से जागृत भाव दिव्य होते हैं।
मिथ्या अहंकार के कारण हम स्वयं को एक लघु इकाई मान बैठते हैं, पर जब हृदय प्रेम से परिचित होता है तो अहंकार गल जाता है। सभी अपने लगते हैं, सभी के भीतर वही एक चैतन्य दिखने लगता है।हम स्वयं को विशाल अनुभव करते हैं, यह भाव अनोखा है,कोई सुंदर दृश्य देखकर एक क्षण के लिये श्वास भी थम जाती है, कभी किसी के आँसू देखकर जो सूक्ष्म भाव मन में उठते हैं, उस कान्हा की कोई कथा याद आने पर कभी मुस्कान तो कभी आँखों से जल बहता है।ये सभी प्रेम के ही रूप हैं,यह संसार उसकी लीला है, यह सोचकर जो कौतूहल होता है, इस विशाल ब्रह्मांड को अरबों, नक्षत्रों, और नाना जीवों को धरा पर चलते-फिरते देखकर कितना अचरज होता है।फिर हमारा स्वयं का मन एक क्षण में कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है,आत्मा की सुंदरता, जो ध्यान में दिखाई पड़ती है।हमारे भीतर का संगीतमय सुंदर संसार यह सब कितना विचित्र है,और कितने भाग्यशाली हैं हम कि यह सब देख पा रहे हैं।
[3/7, 20:42] P anuragi. ji: 🌺 सर्वेभ्यो शुभ संध्या🌺

संघ के सम्माननीय  ऋषि समूह को अभिवादनं

          🌹मानस मोती 🌹

भक्त द्वारा भावलोक में भगवान से एक प्रश्न :;
   भगवन क्या कभी आप भी दुखी होते हैं  ?  हम तो मनोनुकूल न होने पर दुखी हो जाते हैं
भगवान् :;
       हां भक्त एक बार मुझे भी दुःख हुआ था ?

भक्त :;
    कब सरकार ? क्या श्री किशोरी जी के हरण के समय ?
भगवान :;
        नहीं भक्त वहां तो लीला थी । वो हमसे पृथक नहीं हैं
गिरा अरथ जल बीचि सम
     कहियत भिन्न       न। भिन्न

फिर प्रभु आप ही बताएं ।

भगवान् :;

     भक्त ! प्रसंग तो रामावतार का ही है । भक्तो  को विदित भी है कि श्री किशोरी  जी के हरण जे लिए रावण मारीच का सहारा लेते हैं । मारीच को कांचन मृग बनने के लिए कहते हैं । मारीच समझाते हैं पर रावण नहीं मानते । रावण के हाथों अपनी मृत्यु देखकर मारीच विचार करते हैं
🍀कस न मरौं रघुपति सर लागे🍀

       मारीच हरिण बनकर आते हैं  जानकी जी के कहने पर राघव हरिण के पीछे दौड़ते हैं । मारीच की जन्म जन्म की इक्षा पूर्ण हो रही है
🍀मम पाछे धरे धावत
             लिए सरासन बान
     फिरि फिरि प्रभुहिं बिलोकिहौं
               धन्य न मो  सम आन🍀

मारीच भागते हुए सुदूर सघन अरण्य में पहुंचते हैं तो सहसा ही करील प्रदेश  के पास खड़े हो जाते हैं
प्रभु :;
    मारीच और भागो
मारीच :;
       अब नहीं भागा जाता प्रभु । अब तक जगत से भागता रहा अब जगदीश से भी भागूँ । अब शर संधान करिये । सच्चिदानंदघन स्वयं पधारे हो इस कल्पित हरिण देह से मुक्ति प्रदान करने के लिए । मारीच अपनी डबडबाई बडरी अँखियों से निहारे जा रहे हैं उस नील नीरद आभा को   उस कमनीय कांति को     उस श्याम कलेवर को     उस दसरथ के प्यारे को और  मानों  बिंदु  आज सिंधु में समाहित होने को है
      प्रभु कहते हैं मारीच आज भाग जाओ ।इस रावण के उद्धार के लिए कोई दूसरा उपाय सोचूंगा । पर  मारीच आप शरणागत हो गए हो और शरणागत पर बाण चलाना रघुबंश की परंपरा में नहीं है ।
मारीच :;
         प्रभु आज  यदि मुझमें शरणागति के भाव होंगे और आप में भक्त वत्सलता होगी तो आप  के तूणीर से नाराच आाकर स्वयं मेरा उद्धार करेंगे ।

        और आश्चर्य !  मारीच को निर्वाण प्राप्त होता है

भगवान् :;
        भक्त !!आज  भी हमें शरणागत की लीलागत रक्षा न कर सकने का अपार दुःख होता है ।
         जय सीताराम

भाव लोक की बातें है । आप सब प्रबुद्ध जन सहमत ही हों ऐसा मेरा आशय नहीं ।  टंकड दोष को भाविक जन सुधार केंगे । ऐसी कामना ।

🌹जौ बालक कह तोतरि बाता🌹
🌹सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता🌹
             अनुरागी जी
[3/7, 21:02] ‪+91 98975 65893‬: 🌺🌺🙏🙏🌺🌺🙏🙏🌺🌺
*********|| जय श्री राधे ||*********
🌺🙏 *महर्षि पाराशर पंचांग* 🙏🌺
🙏🌺🙏 *अथ  पंचांगम्* 🙏🌺🙏

*दिनाँक -: 08/03/2017*
एकादशी, शुक्ल पक्ष
फाल्गुन
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""(समाप्ति काल)

तिथि----- एकादशी22:49:34  तक
पक्ष-------------- शुक्ल
नक्षत्र------ पुनर्वसु17:45:22
योग------ सौभाग्य11:13:11
करण------ वाणिज11:31:33
करण-----विष्टि भद्र22:49:34
वार------------- बुधवार
माह-------------फाल्गुन
चन्द्र राशि---  मिथुन 11:56:32
चन्द्र राशि---- कर्क  11:56:32
सूर्य राशि----------- कुम्भ
रितु निरयन---------वसन्त
रितु सायन---------- ग्रीष्म
आयन----------  उत्तरायण
संवत्सर------------दुर्मुख
संवत्सर (उत्तर)----------------सौम्य
विक्रम संवत--------- 2073
विक्रम संवत (कर्तक)--------2073
शाका संवत---------1938

वृन्दावन
सूर्योदय--------- 06:37:37
सूर्यास्त--------- 18:22:35
दिन काल-------- 11:44:58
रात्री काल--------12:13:57
चंद्रोदय--------- 14:22:47
चंद्रास्त---------  28:08:21

लग्न--  कुम्भ 23°33' , 323°33'

सूर्य नक्षत्र------  पूर्वाभाद्रपदा
चन्द्र नक्षत्र--------- पुनर्वसु
नक्षत्र पाया----------रजत

*🚩💮🚩पद, चरण🚩💮🚩*

हा  पुनर्वसु  11:56:324

ही  पुनर्वसु  17:45:221

हु  पुष्य  23:35:172

हे  पुष्य  29:26:20

*💮🚩💮ग्रह गोचर💮🚩💮*

ग्रह =राशी   , अंश  ,नक्षत्र,  पद
=======================
सूर्य=कुम्भ 22° 33 ' पू oभा o,  2सो
चन्द=मिथुन 26° 57' पुनर्वसु ' 3 हा
बुध=कुम्भ 24 ° 31'  पू o भा o,2 सो
शुक्र=मीन 18 ° 47'   रेवती  ,  1 दे
मंगल=मेष  04° 26'  अश्विनी ' 2 चे
गुरु=कन्या  27 ° 49'   चित्रा ,   2 पो
शनि=धनु 02 ° 59'      मूल '   1 ये
राहू=सिंह   08 ° 59'    मघा  ,  3  मू
केतु=कुम्भ 08°59 ' शतभिषा, 1 गो

*🚩💮🚩शुभा$शुभ मुहूर्त🚩💮🚩*

राहू काल 12:30 - 13:58अशुभ
यम घंटा 08:06 - 09:34अशुभ
गुली काल 11:02 - 12:30अशुभ
अभिजित 12:07 -12:54अशुभ
दूर मुहूर्त 12:07 - 12:54अशुभ

💮चोघडिया, दिन
लाभ 06:38 - 08:06शुभ
अमृत 08:06 - 09:34शुभ
काल 09:34 - 11:02अशुभ
शुभ 11:02 - 12:30शुभ
रोग 12:30 - 13:58अशुभ
उद्वेग 13:58 - 15:26अशुभ
चाल 15:26 - 16:54शुभ
लाभ 16:54 - 18:23शुभ

🚩चोघडिया, रात
उद्वेग 18:23 - 19:54अशुभ
शुभ 19:54 - 21:26शुभ
अमृत 21:26 - 22:58शुभ
चाल 22:58 - 24:30*शुभ
रोग 24:30* - 26:01*अशुभ
काल 26:01* - 27:33*अशुभ
लाभ 27:33* - 29:05*शुभ
उद्वेग 29:05* - 30:37*अशुभ

*नोट*-- दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।

*💮दिशा शूल ज्ञान-----------उत्तर*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो इलायची अथवा पान खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l
भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll

*🚩अग्नि वास ज्ञान  -:*

11 + 4 + 1 =16 ÷ 4 = 0 शेष
पृथ्वी पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक है l

*💮 शिव वास एवं फल -:*

11 + 11 + 5 = 27 ÷ 7 = 6 शेष

क्रीड़ायां  = शोक , दुःख कारक

*🚩भद्रा वास एवं फल -:*

प्रातः  11:33 से 22:49 तक समाप्त

स्वर्ग लोक = शुभ कारक 11:58 तक

*💮🚩 विशेष जानकारी 🚩💮*

* आँवला एकादशी व्रत (सर्वेषां)

* लट्ठमार होली जन्म भूमि मथुरा जी

* वृन्दावन की रंग होली प्रारम्भ

*💮🚩💮शुभ विचार💮🚩💮*

दाक्षिण्यं स्वजने दया परजने शाठ्यं सदा दुर्जने
प्रीतिःसाधुजने स्मयः खलजने विद्वज्जने चार्जवम् ।
शौर्यं शत्रुजने क्षमा गुरुजने नारीजने धूर्तता
इत्थं ये पुरुषा कलासु कुशलास्तेष्वे लोकस्थितिः ।।चा o नी o।।

    वे लोग जो इस दुनिया में सुखी है. जो अपने संबंधियों के प्रति उदार है. अनजाने लोगो के प्रति सह्रदय है. अच्छे लोगो के प्रति प्रेम भाव रखते है. नीच लोगो से धूर्तता पूर्ण व्यवहार करते है. विद्वानों से कुछ नहीं छुपाते. दुश्मनों के सामने साहस दिखाते है. बड़ो के प्रति विनम्र और पत्नी के प्रति सख्त है.

*🚩💮🚩सुभाषितानि🚩💮🚩*

गीता -: विश्वरूप दर्शन योग अo-11

न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानैर्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रैः।,
एवं रूपः शक्य अहं नृलोके द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर ॥,

हे अर्जुन! मनुष्य लोक में इस प्रकार विश्व रूप वाला मैं न वेद और यज्ञों के अध्ययन से, न दान से, न क्रियाओं से और न उग्र तपों से ही तेरे अतिरिक्त दूसरे द्वारा देखा जा सकता हूँ।,48॥,

*💮🚩दैनिक राशिफल🚩💮*

देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत्।।

🐑मेष
वाहन-मशीनरी का प्रयोग सावधानी से करें। व्यापार से लाभ, निवेश-नौकरी में लाभ, शत्रु शांत रहेंगे। जीवनसाथी की चिंता रहेगी। यात्रा होगी।

🐂वृष
यात्रा से लाभ, लाभ के अवसर अचानक उपस्थित होंगे। व्यापार-निवेश, नौकरी लाभ देंगे। विद्यार्थी वर्ग सफलता के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करेगा।

👫मिथुन
कुसंगति हानिकारक होगी। शरीर अस्वस्थ होगा। व्यय बढ़ने से कर्ज लेना पड़ सकता है। व्यापार ठीक चलेगा। स्वादिष्ट भोजन का आनंद मिलेगा।

🦀कर्क
शत्रु सक्रिय होंगे। माता का स्वास्थ्य बिगड़ेगा। चोरी-दुर्घटना से हानि संभव है। रुका हुआ धन वापस आ सकता है। अत्यधिक परिश्रम व लाभ कम होगा।

🐅सिंह
पुरानी योजनाएं फलीभूत होंगी। नई योजनाएं बनेंगी। मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी। शत्रु भी आपके कार्य की प्रशंसा करेंगे। घर-परिवार की चिंता रहेगी।

💁कन्या
चोरी-दुर्घटना आदि से हानि संभव है। धार्मिक यात्रा हो सकती है। तंत्र-मंत्र में रुचि बढ़ेगी। व्यापार ठीक चलेगा। वाणी पर नियंत्रण रखें। धन प्राप्ति होगी।

⚖तुला
वाहन-मशीनरी का प्रयोग सावधानी से करें। जोखिमभरे कार्यों से दूर रहें। समय अनुकूल नहीं है, धैर्य रखें। शरीर कष्ट रहेगा।

🦂वृश्चिक
शुभ समाचार मिलेंगे। गृहस्थी प्रसन्नता से चलेगी। राजकीय कार्यों में अनुकूलता मिलेगी। निवेश-व्यापार से लाभ होगा। धनार्जन होगा।

🏹धनु
संपत्ति के कार्य मनोनुकूल होंगे। निवेश लाभ देगा। नौकरी-इंटरव्यू में सफलता मिलेगी। शत्रु शांत रहेंगे। धार्मिक यात्रा हो सकती है।

🐊मकर
मौज-मस्ती से दिन बीतेगा। विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा। व्यापार-निवेश, नौकरी से लाभ होगा। शत्रु शांत रहेंगे। प्रसन्नता रहेगी।

🍯कुंभ
कुसंगति व विवाद से बचें। शरीर पीड़ा होगी। यात्रा में चोरी-दुर्घटना संभव है। शत्रु सक्रिय रहेंगे। अतिविश्वास हानि देगा। धीरज रखें।

🐠मीन
पुराना रोग उभर सकता है। विरोध होगा। पराक्रम से लाभ तथा विजय मिलेगी। व्यापार धीमा चलेगा। बुद्धि का प्रयोग लाभ का प्रतिशत बढ़ाएगा।

🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏
🌺🌺🌺🌺🙏🌺🌺🌺🌺
*आचार्य  नीरज  पाराशर (वृन्दावन)*
(व्याकरण,ज्योतिष,एवं पुराणाचार्य)
09897565893 , 09412618599
[3/7, 21:04] रजनीस: परमादरणीया, महनीया, वंदनीया ज्योतिष विषय की परम विदुषी सुश्री प्रतिभा माता जी का इस धर्मार्थ परिवार में हृदय से हार्दिक स्वागत, वंदन तथा अभिनन्दन करता हूं।एवं आप श्री से आशा करता हूं कि आप अपने सद्विचारों से एवं  ज्ञानपुंज की किरणों से सदैव इस परिवार को एक अलौकिक प्रतिभा प्रदान करेंगी यह मुझे पूर्ण विश्वास है।
आपके आगमन पर बालक टूटे फूटे शब्दों में छोटा सा स्वागत गीत प्रस्तुत कर रहा है इसमे जो त्रुटियां होगी आप सभी क्षमा करने की महती कृपा करें।
स्वागतम्
        🌹🙏🌹
           सुस्वागतम्
                      🌹🙏🌹

स्वागत करें कैसे नीरज नयन।
आपको है मेरा सत सत नमन।।
            
पुष्पों की माला है, रोली और चन्दन।
करे हम यही मन से आपश्री को अर्पण।।

करलो स्वीकार आप, मेरा सुस्वागतम्।
स्वागत करें कैसे नीरज नयन..…...

धन्य-धन्य भाग्य हैं, जो यहां आप आईं।
खुशियों की कलिया आप ने खिलाई।।

लगी हैं उम्मीदें अब तो,महके गा अंगन।
स्वागत करें कैसे नीरज नयन........

है ये धर्मार्थ वार्ता समाधान प्यारा।
सभी गुरूजनों का मिलता सहारा।।

अतिथि को करें हम सब,सत सत नमन।
स्वागत करें कैसे नीरज नयन........
                🌹🙏🌹
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
                सुस्वागतम्
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
[3/7, 21:04] पं रोहित: ।
भारतसम्प्रशासनेन नियुक्तया गाेपालस्वामिनः अध्यक्षत्वे घटितया समित्या प्रस्तुतायां  दशानां वर्षाणां कृते संस्कृतविकासाय याेजनायाम् अस्माभिर् दृष्टं यत् तस्या एव श्रेण्याः अन्यविषयाणां शिक्षकाः यं वेतनमानं प्राप्नुवन्ति तस्यार्धमेव संस्कृतशिक्षका प्राप्नुवन्ति इति। सर्वकार एव संस्कृतस्य एवम् अपहेलनं कराेति तर्हि कथं जनानां संस्कृतपठने प्रवृत्तिर् भवेत्? । तया सनित्या प्रस्तुते प्रतिवेदने अस्माभिर् विस्तृता टिप्पणी कृता अस्ति। सा अत्रैव अस्माकं प्रस्तुताै(पाेष्टके) उपलभ्या अस्ति । अस्माकं संस्कृतप्रेमिभिर् मित्रैस् तस्याः समितेर् याेजनायां रुचिः प्रदर्शिता न दृष्टा । उक्तप्रकारके अन्याये सर्वकारेण क्रियमाणेपि संकृतप्रेमिणः संस्कृताधिकारिणः संस्कृतशिक्षकाश्च अन्यायं साेढ्वा तूष्णीम् अासते तर्हि कथं जनानां संस्कृतपठने प्रवृत्तिर् भवेत् ? संस्कृतप्रेमिणः सर्वे जागरिता भवन्तु, स्वस्वस्थानात् यथाेचितं कर्म कुर्वन्तु, अान्दाेलनं कुर्वन्तु, तूष्णीं न तिष्ठन्तु।
[3/7, 21:16] Prtibha Modi: हरि:ॐ तत्सत् !
श्री गुरुदेवाय नमोनम:!
सर्वेभ्यो भक्तेभ्यो नम:!
🌺🙏🌺

लक्ष्मीर्वसति जिह्वाग्रे जह्वाग्रे मित्रशत्रव: ।
जिह्वाग्रे बन्धमोक्षौ च जिह्वाग्रे मरणं ध्रुवम् ।।

जिह्वा के अग्र भाग पर लक्ष्मी वसती
है।मित्र अौर शत्रु भी वही बसते है।
अरे,बन्धन अौर मोक्ष भी जिह्वा के
अग्र भाग में ही वसते है अौर ये भी
नक्की है की मृत्यु भी जिह्वा पर बसती
है । अर्थात जिह्वा का उपयोग बहुत
सोच समजकर करना चाहिये ।
भोजनमें अौर बोलने में।
🌺🙏जय श्री राम 🙏🌺
[3/7, 21:22] पं रोहित: 🔔🔔मंदिरों में पहुँचो🔔🔔

सभी हिन्दू भाइयों और बहनों से निवेदन है कि हमे सुबह और सायंकाल आरती के वक्त जो भी मंदिर पास हो वहाँ पहुंचना चाहिए. कुछ मंदिर हैं देश में जहां लोग घण्टों दर्शन के लिए खड़े रहते हैं, पर हमारे आस पास के मंदिरों की बात करें तो हालात बहुत बुरे है. वहाँ आरती के वक्त झालर, शंख, नगाड़ा बजाने को लोग नहीं होते है. कुछ लोगों ने इसका तोड़ निकाला है, इलेक्ट्रिक मशीनें ले आये हैं.
यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है ?

कोई इसपर विचार नहीं करता. कहने को हम करोड़ों हैं, पर मंदिरों में आरती के वक्त 4 लोग नहीं पहुँच पाते. इसी कारण मोहल्ले वाले भी एक दूसरे को पहचान नहीं पाते और हिंदुओं में एकता नहीं हो पाती है.
इस पर विचार होना चाहिए.

मंदिर ही हैं जो हमें एक दूसरे से जोड़ने में सहायक हो सकते हैं. अपने बच्चों को मंदिर अवश्य साथ ले जायें। यदि उचित लगे तो अपने सभी भाइयों तक इस विचार को साँझा करने की विनती करता हूँ ।      
                                                🙏🏻🙏🏻
[3/7, 21:26] राम भवनमणि त्रिपाठी: ।। योग की महत्ता।।

योगसाधना में विचार जो बाधक बन कर आये।
चंचलता बढ़ स्थिरता पर बदली ज्यों छा जाये।।
साधक को चाहिए सकारात्मक विचार शुभ लाये।
छाये प्रतिपक्षी विचार को क्षण में मार भगाये।।

लोहा होता शुद्ध अग्नि में तप जाने पर जैसे।
तन, मन, इन्द्रिय शोधित होतीं तप के द्वारा वैसे।।
काया होती शुद्ध सिद्धियाँ अणिमादिक हैं आती।
बहुत दूर तक श्रवण और दर्शन क्षमता जग जाती।।

स्वाध्याय का नियम सिद्ध जब पूर्ण रूप से हो जाता।
साधक इष्ट देव, सिद्धों का साक्षात् दर्शन पाता।।
योग-साधना में यह दर्शन परम लाभ है पहुंचाता।
पा करके उनकी सहायता योग सुगम है बन जाता।।

धारणा-ध्यान-समाधि-सिद्ध संयम का जब होता सुविकास।
तब साधक में उस निर्मल प्रज्ञा का होता पूर्ण प्रकाश।।
उस प्रज्ञा-प्रकाश में कुछ अदृश्य नहीं रह जाता है।
जो अज्ञात, असम्भव उसका भी दर्शन वह पाता है।।
[3/7, 21:27] ‪+91 97530 19651‬: *आत्मा-परमात्मा*
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
*जैसे नदी का सम्बन्ध सागर से है,इसी प्रकार आत्मा का सम्बन्ध परमात्मा से है।*

*आत्मा का सखा, आत्मा का मित्र,आत्मा का आनन्द परमात्मा है।ईश्वर-प्रेम ही आत्मा का जीवन है।*

*आत्मा परमात्मा से दूर होकर कदापि शान्ति उपलब्ध नहीं कर सकता।इनका सम्बन्ध वैसा है जैसे सुगन्धि का पुष्प के साथ।*

*आत्मा को सरस रखने के लिए ईश्वर-प्रेम और ईश्वर-भक्ति की आवश्यकता है और ईश्वर-भक्ति के लिए सबसे पहली अनिवार्यता 'ब्रह्म सम्बन्ध' का स्थापित होना है।*
°°°°°°°°°’°°°°°°°°°°°°°°
*👏🏽जय जय राम जी।*
   👏🏽👏🏽👏🏽👏🏽👏🏽👏🏽
       🌞🌞 शुभ प्रभात 🌞🌞
🌹🙏 जय माता दी   🙏🌹
🍁👏 जय श्री राम.    👏🍁
🌺🌹हर हर महादेव   🌹🌺
🌷🙏जय श्री राधे कृष्णा 🌺🌷
[3/7, 22:24] प सुभम्: "संत समाज और सत्संग महिमा"
         ***************
बिधि निषेधमय कलि मल हरनी,
  करम कथा रविनंदनि बरनी।
  हरि हर कथा बिराजति बेनी,
सुनत सकल मुद मंगल देनी।

    बिधि और निषेध-
         ********
(यह करो और यह न करो) रूपी कर्मों की कथा, कलियुग के पापों को हरने वाली सूर्य तनया
यमुना जी हैं, और भगवान विष्णु तथा शंकर जी की कथाएँ त्रिवेणी रूप से सुशोभित हैं, जो सुनते ही सब आनंद और कल्याणों की देने वाली हैं।

अब इस चौपाई में स्पष्ट किया है कि संतों के सत्संग
की इस त्रिवेणी में क्या करना चाहिए और हमें क्या
नहीं करना चाहिए यह जो विवेक दृष्टि प्राप्त होती है
वही कलियुग के पापों का शमन कर हमारे मन अंतःकरण को निर्मल करने वाली, सूर्य पुत्री
यमुना जी हैं। और इस त्रिवेणी में भगवान विष्णु
और शंकर जी की कथाएँ ही वह निर्मल जल है
जिसे ग्रहण कर हम तृप्ति और आनंद का अनुभव
करते हैं और जो मानव मात्र के लिये कल्याणप्रद है।

यदि संसार मे विद्वान संतों के मुख से धर्मग्रंथों के
प्रसंगों में क्या उचित और क्या अनुचित है उसे
कथा के माध्यम से भली भांति समझ लेते हैं और 
सन्मार्ग पर चलते हुए जीवन में आने वाले अनेकों दुःख,कष्ट परेशानियों से बच जाते हैं। यहि-

बिधि निषेध मय कलि मल हरनी,
करम कथा रविनंदिनी बरनी।
        का अभिप्राय है।

ऐसे संतों का संग तो दुर्लभ है जो हमें समग्र रूप से अध्यात्म जीवन जीने की कला, का ज्ञान दे सकें,
ऐसे में इस कलिकाल में रामचरित मानस '
ही एक ऐसा त्रिवेणी संगम की कसौटी पर
खरा उतरने वाला मार्ग दर्शक ग्रंथ है जो
हम सब के लिए सहज,सरल, सुलभ है।
इसके लिए निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है--

सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा,
  सेवत सादर समन कलेसा।।

इसलिए एकनिष्ठ भाव से इस महान ग्रन्थ
रामचरितमानस की त्रिवेणी संगम में
         स्नान करते रहिए।

         ।।जय सियाराम ।।
           ।।प0शुभम तिवारी ।।
[3/7, 23:33] ‪+91 98239 16297‬: *सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे दैनिक पंचांग-- ०८
मार्च २०१७*

***!!श्री मयूरेश्वर प्रसन्न!!***
☀धर्मशास्त्रसंमत प्राचीन शास्त्रशुद्ध सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग (पुणे) नुसार
दिनांक ०८ मार्च २०१७
*राष्ट्रीय भारतीय सौर दिनांक* १७ फाल्गुन,शके १९३८
पृथ्वीवर अग्निवास दिवसभर.
शनि मुखात आहुती आहे.
शिववास क्रीडेत,काम्य शिवोपासनेसाठी अशुभ दिवस आहे.
☀ *सूर्योदय* -०६:५३
☀ *सूर्यास्त* -१८:३९
*शालिवाहन शके* -१९३८
*संवत्सर* -दुर्मुख
*अयन* -उत्तरायण
*ऋतु* -शिशिर (सौर)
*मास* -फाल्गुन
*पक्ष* -शुक्ल
*तिथी* -एकादशी
*वार* -बुधवार 
*नक्षत्र* -पुनर्वसू (१८:२७ नंतर पुष्य)
*योग* -सौभाग्य (१२:०७ नंतर शोभन)
*करण* -वणिज (१२:१४ नंतर भद्रा)
*चंद्र रास* -मिथुन (१२:४२ नंतर कर्क)
*सूर्य रास* -कुंभ
*गुरु रास* -कन्या
*राहु काळ* -१२:०० ते १३:३०
*पंचांगकर्ते*:सिद्धांती ज्योतिषरत्न गणकप्रवर
*पं.गौरवशास्त्री देशपांडे-०९८२३९१६२९७*
*विशेष*-श्रुंगारी-आमलकी एकादशी (उपवास),भद्रा १२:१४ ते २३:१९,आमर्दकीव्रत,सुवर्णनृसिंह मूर्तीचे पूजन,रवियोग १८:२७ पर्यंत,अमृतयोग २३:१९ पर्यंत नंतर सिद्धियोग,या दिवशी पाण्यात वेलदोडा चूर्ण घालून स्नान करावे.विष्णु कवच या स्तोत्राचे पठण करावे."बुं बुधाय नमः" या मंत्राचा किमान १०८ जप करावा.सत्पात्री व्यक्तिस हिरवे वस्त्र दान करावे.विष्णुंना पिस्ताबर्फीचा नैवेद्य दाखवावा.यात्रेसाठी घरातून बाहेर पडताना पिस्ता सेवन करुन बाहेर पडल्यास प्रवासात ग्रहांची अनुकूलता प्राप्त होईल.
*विशेष टीप* - *आगामी नूतन संवत्सरारंभी येणारा गुढीपाडवा सूर्यसिद्धांतीय पंचांगानुसार म्हणजेच मुख्यतः धर्मशास्त्रानुसार या वेळी मंगळवार दि.२८ मार्च २०१७ रोजी नसून बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजी आहे.कारण, सूर्यसिद्धांत गणितानुसार दि.२८ मार्च रोजी सूर्योदयास अमावस्या तिथी आहे व दि.२९ मार्च रोजी सूर्योदयास प्रतिपदा तिथी आहे.याची विशेष नोंद हिंदूंनी घ्यावी व सर्वांनी गुढी-ब्रम्हध्वज पूजन हे चैत्र शु.प्रतिपदेला बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजी करावे.*
www.facebook.com/DeshpandePanchang
*टीप*-->> दुपारी १२ पर्यंत शुभ दिवस आहे.
**या दिवशी भात खावू नये.
**या दिवशी हिरवे वस्त्र परिधान करावे.
*आगामी नूतन संवत्सराचे सर्वांना उपयुक्त व फायदेशीर असे धर्मशास्त्रसंमत सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग सर्वत्र उपलब्ध आहे.*
♦ *लाभदायक वेळा*-->>
लाभ मुहूर्त--  सायं.५ ते सायं.६.३०
अमृत मुहूर्त-- सकाळी ८ ते सकाळी ९.३०
|| *यशस्वी जीवनाचे प्रमुख अंग* ||
|| *सूर्यसिध्दांतीय देशपांडे पंचांग* ||
आपला दिवस सुखाचा जावो,मन प्रसन्न राहो.
(कृपया वरील पंचांग हे पंचांगकर्त्यांच्या नावासहच व अजिबात नाव न बदलता शेअर करावे.या लहानश्या कृतीने तात्त्विक आनंद व नैतिक समाधान मिळते.@copyright)
[3/8, 05:10] राम भवनमणि त्रिपाठी: रूद्र-सूक्त का महत्त्व

जिस प्रकार सभी पापों का नाश करने में ‘पुरूष-सूक्त’ बेमिशाल है, उसी प्रकार सभी दुखों एवं शत्रुओं का नाश करने में ‘रूद्र-सूक्त’ बेमिशाल है। ‘रूद्र-सूक्त’ जहाँ सभी दुखों का नाश करता है, और शत्रुओं का नाश करता है, वहीं यह अपने साधक कि सम्पूर्ण रूप से रक्षा भी करता है। ‘रूद्र-सूक्त’ का पाठ करने वाला साधक सम्पूर्ण पापों, दुखों और भयों से छुटकारा पाकर अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है। शास्त्रों में ‘रूद्र-सूक्त को ‘अमृत’ प्राप्ति का ‘साधन’ बताया गया है।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ रूद्र-सूक्तम् ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

नमस्ते रुद्र मन्यवऽ उतो तऽ इषवे नमः।
बाहुभ्याम् उत ते नमः॥1॥
या ते रुद्र शिवा तनूर-घोरा ऽपाप-काशिनी।
तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशंताभि चाकशीहि ॥2॥
यामिषुं गिरिशंत हस्ते बिभर्ष्यस्तवे ।
शिवां गिरित्र तां कुरु मा हिन्सीः पुरुषं जगत् ॥3॥
शिवेन वचसा त्वा गिरिशाच्छा वदामसि ।
यथा नः सर्वमिज् जगद-यक्ष्मम् सुमनाऽ असत् ॥4॥
अध्य वोचद-धिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक् ।
अहींश्च सर्वान जम्भयन्त् सर्वांश्च यातु-धान्यो ऽधराचीः परा सुव ॥5॥
असौ यस्ताम्रोऽ अरुणऽ उत बभ्रुः सुमंगलः।
ये चैनम् रुद्राऽ अभितो दिक्षु श्रिताः सहस्रशो ऽवैषाम् हेड ऽईमहे ॥6॥
असौ यो ऽवसर्पति नीलग्रीवो विलोहितः।
उतैनं गोपाऽ अदृश्रन्न् दृश्रन्नु-दहारयः स दृष्टो मृडयाति नः ॥7॥
नमोऽस्तु नीलग्रीवाय सहस्राक्षाय मीढुषे।
अथो येऽ अस्य सत्वानो ऽहं तेभ्यो ऽकरम् नमः ॥8॥
प्रमुंच धन्वनः त्वम् उभयोर आरत्न्योर ज्याम्।
याश्च ते हस्तऽ इषवः परा ता भगवो वप ॥9॥
विज्यं धनुः कपर्द्दिनो विशल्यो बाणवान्ऽ उत।
अनेशन्नस्य याऽ इषवऽ आभुरस्य निषंगधिः॥10॥
या ते हेतिर मीढुष्टम हस्ते बभूव ते धनुः ।
तया अस्मान् विश्वतः त्वम् अयक्ष्मया परि भुज ॥11॥
परि ते धन्वनो हेतिर अस्मान् वृणक्तु विश्वतः।
अथो यऽ इषुधिः तवारेऽ अस्मन् नि-धेहि तम् ॥12॥
अवतत्य धनुष्ट्वम् सहस्राक्ष शतेषुधे।
निशीर्य्य शल्यानां मुखा शिवो नः सुमना भव ॥13॥
नमस्तऽ आयुधाय अनातताय धृष्णवे।
उभाभ्याम् उत ते नमो बाहुभ्यां तव धन्वने ॥14॥
मा नो महान्तम् उत मा नोऽ अर्भकं मा नऽ उक्षन्तम् उत मा नऽ उक्षितम्।
मा नो वधीः पितरं मोत मातरं मा नः प्रियास् तन्वो रूद्र रीरिषः॥15॥
मा नस्तोके तनये मा नऽ आयुषि मा नो गोषु मा नोऽ अश्वेषु रीरिषः।
मा नो वीरान् रूद्र भामिनो वधिर हविष्मन्तः सदमित् त्वा हवामहे॥16॥
[3/8, 07:47] ‪+91 99673 46057‬: भक्ति प्रेम के वश होकर,प्रभु उल्टी रीति चलाते है |अग्नी शीतल हो जाती है,दुनिया को सबक सिखाते है ||
वरदान दिया था ढुण्डी को,यह साड़ी तेरी रक्षक है |जब प्रह्लाद को कष्ट हुआ,वरदान बना तब भक्षक है ||
कुपथ मार्ग के चलने पर, ब्रह्मा का वर मिट जाता है | सदाचार पर चले सदा, यह इतिहास हमे बतलाता है ||
विश्वास अडिग हो भक्तो का, तब खम्भ फाड़ प्रभु आते है | निज भक्तो के कारण प्रभु, पल मे नरहरि वन जाते है ||
नारायण कि ममता के रस मे, ऋषि गंधर्व देव सब मग्न हुए | अबीर गुलाल और फूल बरस के, आनन्द युक्त हो सारा भव, उत्साह पर्व संलग्न हुए ||
इसलिए जगत मे हम सब मिलकर, मनाते होली का त्योहार | वना रहे इस श्रष्टी क्रम मे ,सदा श्रद्धा भक्ति व्यवहार ||
🙏🏻🌹सभी भक्तो के श्रीचरणो मे मेरा कोटि कोटि प्रणाम 🌹🙏🏻दिनॉक ०७/०३/२०१७
🙏🏻🌹जय माता जी🌹🙏🏻
[3/8, 07:48] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूलश्लोकः 🔔*
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् ।तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि ॥ २.२६ ॥
*🏹पदच्छेदः.........*
अथ, च, एनम्, नित्यजातम्, नित्यम्, वा, मन्यसे, मृतम् । तथा, अपि, त्वम्, महाबाहो, न, एवम्, शोचितुम्, अर्हसि ॥
*🌹पदपरिचयः......🌹*
अथ — अव्ययम्
च — अव्ययम्
एनम् — एतद्-द.सर्व.पुं.द्वि.एक.
नित्यजातम् — अ.पुं.द्वि.एक.
नित्यम् — अ.पुं.द्वि.एक
वा — अव्ययम्
मन्यसे — मन ज्ञाने-आत्म.कर्तरि,लट्.मपु.एक.
मृतम् — अ.पुं.द्वि.एक.
तथा — अव्ययम्
अपि — अव्ययम्
त्वम् — युष्मद्-द.सर्व.प्र.एक.
महाबाहो — उ.पुं.सम्बो.एक.
न — अव्ययम्
एवम् — अव्ययम्
शोचितुम् — तुमुन्नन्तम् अव्ययम्
अर्हसि — अर्ह् पूजायाम्-पर.कर्तरि, लट्.मपु.एक.
*🌷पदार्थः...... 🌷*
अथ च — यदि पुनः
एनम् — अमुम् देहिनम्
नित्यजातम् — सर्वदा जायमानम्
नित्यम् — सदा
वा — वा
मन्यसे — चिन्तयसि
मृतम् — नष्टम्
तथापि — एवमपि
त्वम् — त्वम्
महाबाहो — दीर्घबाहो (अर्जुन)
न — न
एवम् — इत्थम्
शोचितुम् — खेदितुम्
अर्हसि — योग्यः असि
*🌻अन्वयः 🌻*
महाबाहो ! अथ च एनं नित्यजातं नित्यं वा मृतं मन्यसे तथापि त्वम् एवं शोचितुं न अर्हसि ।
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_मन्यसे_
कं मन्यसे?
*एनं मन्यसे ।*
एनं कीदृशं मन्यसे?
*एनं नित्यजातं मन्यसे ।*
एनं नित्यजातं पुनश्च कीदृशं मन्यसे?
*एनं नित्यजातं नित्यं वा मृतं मन्यसे ।*
अथ च एनं नित्यजातं नित्यं वा मृतं मन्यसे तथापि एवं न अर्हसि ।
तथापि एवं किं कर्तुं न अर्हसि?
*तथापि एवं शोचितुं न अर्हसि ।*
अस्मिन् श्लोके सम्बोधनपदं किम्?
*महाबाहो*
*📢 तात्पर्यम्......*
हे अर्जुन ! यदि पुनः त्वम् अयम् आत्मा सर्वदा जायते इति सर्वदा म्रियते इति वा मन्यसे तथापि एवं शोकम् अनुभवितुं नार्हसि ।
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
चैनम् = च + एनम् - वृद्धिसन्धिः
तथापि = तथा + अपि - सवर्णदीर्घसन्धिः
▶ समासः
नित्यजातं = नित्यं जातः, तम् - सुप्समासः
▶ कृदन्तः
जातम् = जन् + क्त (कर्तरि)
मृतम् = मृ + क्त (कर्तरि)
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                      *गीताप्रवेशात्*
[3/8, 08:15] ‪+91 96856 20761‬: *//श्लोक://*
नमस्ते सते ते जगत्कारणाय नमस्ते चिते सर्वलोकाश्रयाय।
नमोऽद्वैतत्त्वाय मुक्तिप्रदाय नमो ब्रह्मणे व्यापिने शाश्वताय।।
*//भावार्थ//*
हे प्रभु !
जगतके कारणरूप और सत्स्वरूप आपको नमस्कार है।सर्वलोकोके आश्रयभूत ज्ञानस्वरूप आपको नमस्कार है मोक्षप्रद अद्वैततत्त्वरूप आपको नमस्कार है शाश्वत और सर्वव्यापी ब्रह्म को नमस्कार है।
🌺🌺🙏🏻🌺🌺
    पं.प्रदीप शर्मा
दुल्लापुर (रानीसागर)
        कवर्धा
         (छ.ग)
🌺🌺🙏🏻🌺🌺
[3/8, 08:27] ‪+91 98895 15124‬: 🙏 *अथ  पंचांगम्* 🙏

*दिनाँक -: 08/03/2017*
एकादशी, शुक्ल पक्ष
फाल्गुन
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""(समाप्ति काल)

तिथि----- एकादशी22:49:34  तक
पक्ष-------------- शुक्ल
नक्षत्र------ पुनर्वसु17:45:22
योग------ सौभाग्य11:13:11
करण------ वाणिज11:31:33
करण-----विष्टि भद्र22:49:34
वार------------- बुधवार
माह-------------फाल्गुन
चन्द्र राशि---  मिथुन 11:56:32
चन्द्र राशि---- कर्क  11:56:32
सूर्य राशि----------- कुम्भ
रितु निरयन---------वसन्त
रितु सायन---------- ग्रीष्म
आयन----------  उत्तरायण
संवत्सर------------दुर्मुख
संवत्सर (उत्तर)----------------सौम्य
विक्रम संवत--------- 2073
विक्रम संवत (कर्तक)--------2073
शाका संवत---------1938

नाभा पटियाला
सूर्योदय--------- 06:37:37
सूर्यास्त--------- 18:22:35
दिन काल-------- 11:44:58
रात्री काल--------12:13:57
चंद्रोदय--------- 14:22:47
चंद्रास्त---------  28:08:21

लग्न--  कुम्भ 23°33' , 323°33'

सूर्य नक्षत्र------  पूर्वाभाद्रपदा
चन्द्र नक्षत्र--------- पुनर्वसु
नक्षत्र पाया----------रजत

*🚩💮🚩पद, चरण🚩💮🚩*

हा  पुनर्वसु  11:56:324

ही  पुनर्वसु  17:45:221

हु  पुष्य  23:35:172

हे  पुष्य  29:26:20

*💮🚩💮ग्रह गोचर💮🚩💮*

ग्रह =राशी   , अंश  ,नक्षत्र,  पद
=======================
सूर्य=कुम्भ 22° 33 ' पू oभा o,  2सो
चन्द=मिथुन 26° 57' पुनर्वसु ' 3 हा
बुध=कुम्भ 24 ° 31'  पू o भा o,2 सो
शुक्र=मीन 18 ° 47'   रेवती  ,  1 दे
मंगल=मेष  04° 26'  अश्विनी ' 2 चे
गुरु=कन्या  27 ° 49'   चित्रा ,   2 पो
शनि=धनु 02 ° 59'      मूल '   1 ये
राहू=सिंह   08 ° 59'    मघा  ,  3  मू
केतु=कुम्भ 08°59 ' शतभिषा, 1 गो

*🚩💮🚩शुभा$शुभ मुहूर्त🚩💮🚩*

राहू काल 12:30 - 13:58अशुभ
यम घंटा 08:06 - 09:34अशुभ
गुली काल 11:02 - 12:30अशुभ
अभिजित 12:07 -12:54अशुभ
दूर मुहूर्त 12:07 - 12:54अशुभ

💮चोघडिया, दिन
लाभ 06:38 - 08:06शुभ
अमृत 08:06 - 09:34शुभ
काल 09:34 - 11:02अशुभ
शुभ 11:02 - 12:30शुभ
रोग 12:30 - 13:58अशुभ
उद्वेग 13:58 - 15:26अशुभ
चाल 15:26 - 16:54शुभ
लाभ 16:54 - 18:23शुभ

🚩चोघडिया, रात
उद्वेग 18:23 - 19:54अशुभ
शुभ 19:54 - 21:26शुभ
अमृत 21:26 - 22:58शुभ
चाल 22:58 - 24:30*शुभ
रोग 24:30* - 26:01*अशुभ
काल 26:01* - 27:33*अशुभ
लाभ 27:33* - 29:05*शुभ
उद्वेग 29:05* - 30:37*अशुभ

*नोट*-- दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।

*💮दिशा शूल ज्ञान-----------उत्तर*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो इलायची अथवा पान खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l
भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll

*🚩अग्नि वास ज्ञान  -:*

11 + 4 + 1 =16 ÷ 4 = 0 शेष
पृथ्वी पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक है l

*💮 शिव वास एवं फल -:*

11 + 11 + 5 = 27 ÷ 7 = 6 शेष

क्रीड़ायां  = शोक , दुःख कारक

*🚩भद्रा वास एवं फल -:*

प्रातः  11:33 से 22:49 तक समाप्त

स्वर्ग लोक = शुभ कारक 11:58 तक

*💮🚩 विशेष जानकारी 🚩💮*

* आँवला एकादशी व्रत (सर्वेषां)

* लट्ठमार होली जन्म भूमि मथुरा जी

* वृन्दावन की रंग होली प्रारम्भ

*💮🚩💮शुभ विचार💮🚩💮*

दाक्षिण्यं स्वजने दया परजने शाठ्यं सदा दुर्जने
प्रीतिःसाधुजने स्मयः खलजने विद्वज्जने चार्जवम् ।
शौर्यं शत्रुजने क्षमा गुरुजने नारीजने धूर्तता
इत्थं ये पुरुषा कलासु कुशलास्तेष्वे लोकस्थितिः ।।चा o नी o।।

    वे लोग जो इस दुनिया में सुखी है. जो अपने संबंधियों के प्रति उदार है. अनजाने लोगो के प्रति सह्रदय है. अच्छे लोगो के प्रति प्रेम भाव रखते है. नीच लोगो से धूर्तता पूर्ण व्यवहार करते है. विद्वानों से कुछ नहीं छुपाते. दुश्मनों के सामने साहस दिखाते है. बड़ो के प्रति विनम्र और पत्नी के प्रति सख्त है.

*🚩💮🚩सुभाषितानि🚩💮🚩*

गीता -: विश्वरूप दर्शन योग अo-11

न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानैर्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रैः।,
एवं रूपः शक्य अहं नृलोके द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर ॥,

हे अर्जुन! मनुष्य लोक में इस प्रकार विश्व रूप वाला मैं न वेद और यज्ञों के अध्ययन से, न दान से, न क्रियाओं से और न उग्र तपों से ही तेरे अतिरिक्त दूसरे द्वारा देखा जा सकता हूँ।,48॥,

*💮🚩दैनिक राशिफल🚩💮*

देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत्।।

🐑मेष
वाहन-मशीनरी का प्रयोग सावधानी से करें। व्यापार से लाभ, निवेश-नौकरी में लाभ, शत्रु शांत रहेंगे। जीवनसाथी की चिंता रहेगी। यात्रा होगी।

🐂वृष
यात्रा से लाभ, लाभ के अवसर अचानक उपस्थित होंगे। व्यापार-निवेश, नौकरी लाभ देंगे। विद्यार्थी वर्ग सफलता के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करेगा।

👫मिथुन
कुसंगति हानिकारक होगी। शरीर अस्वस्थ होगा। व्यय बढ़ने से कर्ज लेना पड़ सकता है। व्यापार ठीक चलेगा। स्वादिष्ट भोजन का आनंद मिलेगा।

🦀कर्क
शत्रु सक्रिय होंगे। माता का स्वास्थ्य बिगड़ेगा। चोरी-दुर्घटना से हानि संभव है। रुका हुआ धन वापस आ सकता है। अत्यधिक परिश्रम व लाभ कम होगा।

🐅सिंह
पुरानी योजनाएं फलीभूत होंगी। नई योजनाएं बनेंगी। मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी। शत्रु भी आपके कार्य की प्रशंसा करेंगे। घर-परिवार की चिंता रहेगी।

💁कन्या
चोरी-दुर्घटना आदि से हानि संभव है। धार्मिक यात्रा हो सकती है। तंत्र-मंत्र में रुचि बढ़ेगी। व्यापार ठीक चलेगा। वाणी पर नियंत्रण रखें। धन प्राप्ति होगी।

⚖तुला
वाहन-मशीनरी का प्रयोग सावधानी से करें। जोखिमभरे कार्यों से दूर रहें। समय अनुकूल नहीं है, धैर्य रखें। शरीर कष्ट रहेगा।

🦂वृश्चिक
शुभ समाचार मिलेंगे। गृहस्थी प्रसन्नता से चलेगी। राजकीय कार्यों में अनुकूलता मिलेगी। निवेश-व्यापार से लाभ होगा। धनार्जन होगा।

🏹धनु
संपत्ति के कार्य मनोनुकूल होंगे। निवेश लाभ देगा। नौकरी-इंटरव्यू में सफलता मिलेगी। शत्रु शांत रहेंगे। धार्मिक यात्रा हो सकती है।

🐊मकर
मौज-मस्ती से दिन बीतेगा। विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा। व्यापार-निवेश, नौकरी से लाभ होगा। शत्रु शांत रहेंगे। प्रसन्नता रहेगी।

🍯कुंभ
कुसंगति व विवाद से बचें। शरीर पीड़ा होगी। यात्रा में चोरी-दुर्घटना संभव है। शत्रु सक्रिय रहेंगे। अतिविश्वास हानि देगा। धीरज रखें।

🐠मीन
पुराना रोग उभर सकता है। विरोध होगा। पराक्रम से लाभ तथा विजय मिलेगी। व्यापार धीमा चलेगा। बुद्धि का प्रयोग लाभ का प्रतिशत बढ़ाएगा।

🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏
[3/8, 08:44] P Alok Ji: जिमि सरिता सागर महु जाइ।
जदपि ताहि कामना नाहीं ।।
तिमि सुख संपति बिनहि बुलाये।
धरम शील पहि जाइ लुभाये।।
जैसे नदियां समुद्र मे बिना उसकी कामना के भी जाती हैं उसी प्रकार सुख संपत्ति बिना बुलाये हि धर्मात्मा पुरुष के पास आ जाती है ।पिबत् रामचरित मानस रसम् श्रद्धेय आलोक जी शास्त्री इन्दौर मप्र
[3/8, 08:49] पं विजय जी: 🙏🌹ॐ नमः शिवाय सुप्रभातम 🌹🙏
'चरित्र, मनुष्य का वस्त्र होता है, जो नंगे इंसान को भी, अपने गुणों से ढक देता है,! और ढके इंसान को भी, दुर्गुणों से नंगा कर देता है।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[3/8, 09:09] P anuragi. ji: प्रणमामि   देव

साधु चरित सुभ चरित कपासू ।
निरस विसद गुणमय फल जासू ।।

        🌺सुप्रभातम🌺
[3/8, 09:30] Prtibha Modi: हरि:ॐ तत्सत्!
श्री गुरुदेवाय नम:।
सर्वेभ्यो नमो नम:।
🌺🙏🌺
💥🍃🌸🌿*✍...
."'खुशी'"
उड़ती हुई तितली के जैसी है,*
*जिसे पकड़ने के लिए आप
जितना दौड़ेंगे ये उतना ही
आपसे दूर चली जायेगी*....

*यदि आप शान्त मुद्रा मे एक
जगह स्थिर हो जायेंगे तो ये
खुद पे खुद आपके कंधे के
पास बैठ जायेगी*.........

*खुशी के पीछे मत भागो*,
*महसुस करो*... ।।
*हँसते रहो हँसाते रहो सदा
खुश रहो*
*आप का दिन शुभ हो
    💐_*सुप्रभात*_ 💐
🌺🙏जय श्री राम 🙏🌺
[3/8, 09:42] P Omish Ji: 🙏श्री मात्रे नमः🙏
🌷सदुक्तिसञ्चयः🌷
स्वनुष्ठितस्य धर्मस्य संसिद्धिर्हरितोषणम्!!
                                     श्रीमद्भागवतम्
अच्छी तरह से अनुष्ठित धर्म की पूर्ण सिद्धि श्रीहरि की प्रसन्नता है !!

🌹प्रवक्ता, धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ🌹
              आचार्य ओमीश ✍
[3/8, 10:03] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *आप सभी को प्रात:कालीन नमन*
*मन की बात---------:*🌸🙏🏻🌸😊
साधना के आरम्भ में एक भक्त अथवा साधक के लिये उसका इष्ट ही एकमात्र आराध्य होता है, उसी में उसे सभी देवी-देवताओं के दर्शन होते हैं। जैसे वृक्ष की जड़ों को सींचने से उसके हर अंग तक जल पहुँच जाता  है वैसे ही एक की पूजा करने से सबकी पूजा हो जाती है।आगे जाकर वह सबमें उस एक को देखने लगता है, वह जान जाता है कि कहीं भी बंधना नहीं है, मुक्ति के पथ पर चलना शुरू किया है। तो  जंजीर सोने की भी हो तो उसे कटवा देना चाहिए,सतोगुण तक जाकर उससे भी पार जाना होता है, अस्तित्त्व हमारी हर छोटी बड़ी इच्छा को पूर्ण करना चाहता है, पर हम उसका प्रतिदान नहीं दे पाते हैं। प्रेम हमें संसार की हर जड़-चेतन वस्तु के प्रति सजग बनाता है,परम को प्रेम करें तो वही प्रेम उसकी सृष्टि की ओर प्रवाहित होने लगता है।✍
[3/8, 10:04] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूलश्लोकः 🔔*
धर्मस्य ह्यापवर्ग्यस्य नार्थोऽर्थायोपकल्पते ।
नार्थस्य धर्मैकान्तस्य कामो लाभाय हि स्मृतः ॥ 
*🏹पदच्छेदः.........*
धर्मस्य हि आपवर्ग्यस्य न अर्थ: अर्थाय उपकल्पते ।
न अर्थस्य धर्मैकान्तस्य काम: लाभाय हि स्मृतः ॥ 
*🌹पदपरिचयः......🌹*
धर्मस्य — अ.पु.ष.एक.
हि — अव्ययम्
आपवर्ग्यस्य— अ.पु.ष.एक.
न — अव्ययम्
अर्थ:—  अ.पु.प्र.एक.
अर्थाय — अ.पु.च.एक.
उपकल्पते — उप + कृपूँ लट् - कर्तरि आत्मने प्रपु.एक.
न — अव्ययम्
अर्थस्य — अ.पु.ष.एक.
धर्मैकान्तस्य — अ.पु.ष.एक.
काम: — अ.पु.प्र.एक.
लाभाय — अ.पु.च.एक.
हि — अव्ययम्
स्मृतः — अ.पु.प्र.एक
*🌷पदार्थः...... 🌷*
धर्मस्य — वेदविहितकर्मस्य
हि — ननु
आपवर्ग्यस्य —मोक्षस्य
न— न
अर्थ: —धनम्
अर्थाय — धनाय
न उपकल्पते — न मन्ये यत्
अर्थस्य — धनस्य
धर्मैकान्तस्य — धर्मस्य फलाशा
काम:  — मनोरथ:
लाभाय —फलाय ,संग्रहाय
हि — तु
स्मृतः  — स्मृतविषय:
*🌻अन्वयः 🌻*
आपवर्ग्यस्य  धर्मस्य अर्थाय अर्थः न उपकल्पते धर्मैकांतस्य अर्थस्य लाभाय कामः न हि स्मृतः ।
*📢 तात्पर्यम्......*
धर्म तो मोक्ष या भगवत्प्राप्ति का साधन है। धन प्राप्त कर लेना ही उसका प्रयोजन नहीँ है। धन का भी अन्तिम साध्य धर्म है, न कि भोगोँ का संग्रह।
*भावार्थ*
सम्पूर्ण धर्म कर्म का अवान्तर तात्पर्य स्वर्गादि में होते हुए भी महातात्पर्य भगवत्-साक्षात्कार में ही है। धर्म का फल अर्थ एवं काम भी है तथापि वह गौण है; धर्म से अर्थ की प्राप्ति भी होती है, अर्थ का मुख्य फल दानादि परोपकारयुक्त कर्म एवं गौण फल लौकिक सुख-प्राप्ति भी है; अर्थ से काम की प्राप्ति होती है; काम का मुख्य फल जीवन, प्राण-धारण और गौण फल इन्द्रिय-प्रीति है। धर्म, अर्थ एवं काम तीनों का ही महातात्पर्य मोक्ष, भगवत्-साक्षात्कार है जैसे माता बालक को रोग-निवृत्ति की दृष्टि से नीम-गिलोय, मोदक के प्रलोभन से पिला देती है; बालक तो नीम-गिलोय पीने का फल मोदक-प्राप्ति ही समझता है। इसी तरह, भगवती श्रुति भी स्वर्गादि दिव्य परम फलों का प्रलोभन देकर, धर्म-कर्म में आकर्षित कर अन्ततोगत्वा भगवत्-साक्षात्कार करा देती है। धर्म ही मानव की विशेषता है। ‘आहार निद्राभयमैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम्। धर्म, वर्णधर्म, आश्रमधर्म, स्त्रीधर्म सबका अन्तिम परम फल भगवत्पद-प्राप्ति ही है। भगवदनुग्रहवशात् भगवदुन्मुखी प्रवृत्ति हो जाने पर भी अन्नयता अनिवार्यतः आवश्यक है। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि उस जीभ को ही काट डालो जो अपने इष्ट से अन्य किसी का गुण-वर्णन करें। इतनी अनन्यता रखते हुए भी गोस्वामी जी ने ‘गाइये गणपति जगवन्दन’ तथा ‘बावरो रावरी नाह भवानी’ आदि स्तुतियाँ की हैं; ‘मानस’ में भगवती जनक-नन्दिनी जानकी द्वारा ‘जय जय गिरिवरराज किसोरी। जय महेश मुखचन्द्र चकोरी। जय गजवदन षडाननमाता । जगत् जननी दामिनी द्युति गाता।। भवभव विभव पराभव कारिणी, विश्व विमोहिनि स्ववस विहारिणी।। देवि पूजि पद कमल तुम्हारे, सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।आदि स्तुति की है।

इनके कारण अनन्यता में विघ्न नहीं पड़ता, वे अपने सिद्धान्त से प्रच्युत नहीं होते क्योंकि वे जानते हैं कि वस्तुतः तत्त्व एक है।

*यथामति*🙏🏻🙏🏻
[3/8, 10:16] P Omish Ji: प्रणमामि गुरुदेवः🙏🙏
अल्प बुद्धि के अनुसार मै इसका अन्वय तथा व्याख्या करने में असमर्थ हूँ। फिर भी आपकी कृपा आशीर्वाद से जो प्राप्त हुआ है। वो सुमनाञ्जलि समर्पण करना चाहता हूं, अतः जो कमी हो पूर्ण करिएगा🙏🙏

धर्मस्य ह्यापवर्ग्यस्य नार्थोऽथायोपकल्पते ।
नार्थस्य धर्मैकान्तस्य कामो लाभाय हि स्मृत: ॥

           –श्रीमद्भागवत ,1/2/9

धर्म से जो उपार्जन होता है वो कामोलाभायते नही है। वह "अपवर्ग" के लिए है।अपवर्ग यानी कि भगवत प्रेम जाग्रत करने के लिए। भगवत धाम जाने के लिए, भगवत भक्ति में पारंगत, निपुण होने के लिए. धन का उपयोग अपवर्ग के लिए होना चाहिए , न कि इन्द्रियतृप्ति के लिए। धर्मैकान्तस्य कामो लाभाय हि स्मृत: तो धन से जो भी उपार्जन हुआ उसका उपयोग कृष्ण भक्ति के लिए होना चाहिए। दुर्भाग्यवश लोग इसका उपयोग भगवत्प्राप्ति के लिए नही करके इन्द्रियतृप्ति के लिए करते हैं। सही देखा जाए तो जीवस्य तत्वजिज्ञासा हमें तत्त्व की जिज्ञासा करनी चाहिए।धन का प्रयोग तत्व की जिज्ञासा में होना चाहिए, भक्ति के लिए होना चाहिए!! गुरू सेवा में समर्पित!! 🙏
[3/8, 10:17] ‪+91 99673 46057‬: राधे राधे-आज का भगवद चिन्तन,
               08-03-2017
🌸       जीवन वोध में जीना सीखो विरोध में नहीं, एक सुखप्रद जीवन के लिए इससे श्रेष्ठ कोई दूसरा उपाय नहीं हो सकता। जीवन अनिश्चित है और  जीवन की अनिश्चितता का मतलब यह है कि यहाँ कहीं भी और कभी भी कुछ हो सकता है।
🌼        यहाँ पर आया प्रत्येक जीव बस कुछ दिनों का मेंहमान से ज्यादा कुछ नहीं है, इसीलिए जीवन को हंसी में जिओ, हिंसा में नहीं। चार दिन के इस जीवन को प्यार से जिओ, अत्याचार से नहीं।
🌺     जीवन जरुर आनंद के लिए ही है इसीलिए इसे मजाक बनाकर नहीं मजे से जिओ। इस दुनियां में बाँटकर जीना सीखो बंटकर नहीं। जीवन वीणा की तरह है, ढंग से बजाना आ जाए तो आनंद ही आनंद है।

1 comment:

  1. क्या पौष के महा में श्रीमद्भागवत सप्ताह का आयोजन किया जा सकता है ? कृपया समाधान जरूर करें 🙏

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