Friday, March 3, 2017

धर्मार्थ वार्ता

[2/21, 08:19] ‪+91 94153 60939‬: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

सूर्यस्पर्धिकिरीटमूर्ध्वतिलकप्रोद्भासिफालान्तरं
कारुण्याकुलनेत्रमार्द्रहसितोल्लासं सुनासापुटम्।
गण्डोद्यन्मकराभकुण्डलयुगं कण्ठोज्वलत्कौस्तुभं त्वद्रूपं वनमाल्यहारपटलश्रीवत्सदीप्रं भजे।

हे भगवन्! मैं आपके उस रूप का ध्यान करता हूं जिसके मुकुट की प्रभा सूर्य से स्पर्धा करती है। भालप्रदेश ऊंचे लम्बे तिलक से उद्भासित है। करुणा से परिपूरित नेत्र हैं एवं मुख मधुर मन्द मुस्कान से उल्लसित हैं। नासिका अत्यन्त सुन्दर है। गण्डस्थल पर मकरकुण्डल युगल लटक रहे हैं और प्रतिबिम्बित हो रहे हैं। कण्ठप्रदेश कौस्तुभ मणि की कान्ति से चमक रहा है। वनमालाओं, हार समूहों एवं श्री वत्स से विभूषित आपके इस स्वरूप का मैं ध्यान करता हूं।

        –जय श्रीमन्नारायण।
[2/21, 10:49] व्यास u p: 🌺🌺सर्वेभ्यो शुप्रभातम🌺🌺

       🌷💐🙏🙏🙏💐🌷

प्रभु को बिसार, किसकी आराधना करूं मैं.?!
पा कल्पतरु, किसीसे क्या याचना करूं मैं.?!

मोती मिला मुझे जब मानस के मानसर में..
कंकड़ बटोरने की क्यों चाहना करूं मैं.?!

मुझको प्रकाश प्रतिपल, आनंद आंतरिक है..
जग के क्षणिक सुखों की क्या कामना करूं मैं.?!
[2/21, 10:49] ‪+91 98896 53813‬: पहले आप निश्चय कर ले आप क्या मानते है कभी आप नारी को समुन्द्र मानते है क भी स्त्री आप के लेख में स्त्री माना है जो काफी दिनों से व्हाट्सअप में चल रहा है और कौन सी रामायण में तारण सब्द है बताने का कष्ट करे।।
[2/21, 10:52] ओमीश Omish Ji: जिस प्रकार रावण का सीता के स्वयंबर में रावण का कोई प्रमाण नहीं है परंतु बाद में लंका कांड में मंदोदरी ने स्वयं कहा है रावण वहां गया था और धनुष उठाने का प्रयास भी किया था इसी प्रकार मानस जी की चौपाई एक दूसरे से जुडी है पूरी मानस जी को जबतक न देखा जाये आप उसे नहीं समझ सकते

    प्रसंग  में  संकेत हैं प्रभु जी

सुनयना जी

रावण बान छुआ नहिं चापा ।
    हारे सकल बीर करि दापा  

    सो धनु राज कुंवर कर देहीं ।
     बाल मराल कि मंदरु लेहीं ।।
☝☝☝
[2/21, 11:40] ओमीश Omish Ji: सभी गुरुजनों के चरणों में सादर नमन करते हुए एक निवेदन करना चाहूंगा कि इस पटल का नाम *धर्मार्थ वार्ता समाधान* दिया गया है। अर्थ स्पष्ट है बताने की जरूरत नहीं है।
निवेदन 🙏🙏
चलते हुए समाधान प्रसंग में किसी भी प्रकार का कोई पोस्ट प्रेषित न करें,  हो सके तो उसी विषय को अपना मानकर हम सबको अपने मत से भिज्ञ कराएं लेकिन वह भी प्रमाणित हो न कि अप्रमाणित। शास्त्रोक्त हो तथा तर्क विहीन न हो। कल के समाधान में काफी वार्ता तर्कसंगत के जगह तर्क विहीन भी हुई है। जिनका जो विषय है उस विषय को लेकर चलें उचित है लेकिन सामने वाले के विषय को भी अपना मानकर उसको समझने का प्रयास करें, अगर स्वधर्म से और शास्त्रोक्त  समाधान है। अगर मनमाने ढंग से है तो उसको कदापि मान्य न किया जाए यथा 👇👇👇
*तस्माच्छास्त्रंप्रमाणंतेकार्याकार्यव्यव्स्थितौ*
अपने विषय को श्रेष्ठ बताकर दूसरे की अवमानना करना हमारे धर्म के साथ-साथ पतन का कारण भी है। क्योंकि पुराण, ग्रन्थ, शास्त्र तो सब अपने है न कि हमारे आपके, इसलिए उनको भी शिरोधार्य करना हमारे धर्म के उत्थान का कारण होगा।
नियमावली में सभी नियम दर्शाये गए हैं उसका अवलोकन करने की कृपा करें तथा नियम के आधार पर चलने की कृपा करें तो यह परिवार धन्य होगा। जिन विद्वानों को जोडा जाता है उनको पर्सनल में नियमावली भी प्रेषित की जाती है, तो उसका चिन्तन भी जरूरी है 🙏🙏
अगर कुछ गल्ती हो तो क्षमाप्रार्थी भी हूँ 🙏🙏🙏
🌺 *धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ* 🌺
             *समिति, प्रवक्ता*
🙏🙏 *आचार्य ओमीश* 🙏🙏
[2/21, 12:56] राम भवनमणि त्रिपाठी: बुध नहिं करहिं अधम कर संगा।
गो.तुलसीदास जी का कहना है कि बुद्धिमान मनुष्य कभी दुष्टों और नीचों का संग नहीं करते।
ब्रह्माण्ड में ग्रहों का खेल होता है,उसका प्रभाव प्राणी मात्र पर पड़ता है। सरल स्वभाव युक्त प्राणी भी दुष्ट प्राणी से दूर रहते है।अब देखिये बुध ग्रह सूर्य,शुक्र के आस पास ही बना रहता है।बुध=बालक=वाणी=उर्वर मस्तिष्क का कारक है, राज्य की प्राप्ति व भौतिकता तो
बुद्धि से ही प्राप्त की जा सकती है।मंगल, शनि के साथ होतो, बुद्धि को नष्ट करती है।
बुध में सबसे बड़ा गुण यह है कि अस्त होने के बाद भी यह फल देता है,अर्थात् कठिन परिस्थिति में मनुष्य अपनी बुद्धि का प्रयोग जरूर करता है।
एक कहावत है, बुद्धिमान दूसरों की गलतियों से शिक्षा लेते हैं, मुर्ख अपनी गलतियों से। ॐ हरि ॐ।
[2/21, 13:09] ‪+91 84259 90587‬: 🍃ॐ
।।कडवा सच ।।
ईसाईयों को इंग्लिश आती है वो बाइबिल पढ लेते है,
उधर
मुस्लिम को उर्दू आती है वो कुरान शरीफ़ पढ लेते हैं,
.
सिखो को गुरबानी का पता है वो श्री गुरू ग्रन्थ साहिब पढ लेते है ।
.
हिन्दूओ को  99 % को संस्कृत नही आती
वो ना वेद पढ पाते है न उपनिषद ।
इस से बडा दुर्भाग्य क्या होगा हमारा।

👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻🤔🤔🤔

विचारणीय....???🍃
[2/21, 13:12] ‪+91 84259 90587‬: _*तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।*_
_*साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक॥*_
अर्थ : _तुलसीदास जी कहते हैं, विपत्ति में अर्थात मुश्किल वक्त में ये चीजें मनुष्य का साथ देती है. ज्ञान, विनम्रता पूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, सत्य और राम ( भगवान ) का नाम._
[2/21, 13:12] ‪+91 84259 90587‬: _*तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।*_
_*अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए॥*_
अर्थ : _तुलसीदास जी कहते हैं, भगवान् राम पर विशवास करके चैन की बांसुरी बजाओ. इस संसार में कुछ भी अनहोनी नहीं होगी और जो होना उसे कोई रोक नहीं सकता. इसलिये आप सभी आशंकाओं के तनाव से मुक्त होकर अपना काम करते रहो._
[2/21, 13:12] ‪+91 84259 90587‬: _*सहज सुहृद गुरस्वामि सिखजो न करइ सिर मानि।*_
_*सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइहित हानि॥*_
अर्थ : _स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता, वह दिल से बहुत पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है._
[2/21, 13:12] ‪+91 84259 90587‬: _*तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।*_
_*बसीकरन इक मंत्र है, परिहरू बचन कठोर॥*_
अर्थ : _तुलसीदासजी कहते हैं, मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं. किसी को भी वश में करने का ये एक मन्त्र है इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोड़कर मीठा बोलने का प्रयास करे._
[2/21, 13:12] ‪+91 84259 90587‬: _*तुलसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन।*_
_*अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन॥*_
अर्थ : _तुलसीदास जी कहते हैं, वर्षा ऋतु में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी ज्यादा हो जाती है कि, कोयल की मीठी वाणी उनके शोर में दब जाती है. इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है. अर्थात जब धूर्त और मूर्खों का बोलबाला हो जाए तब समझदार व्यक्ति की बात पर कोई ध्यान नहीं देता है, ऐसे समय में उसके चुप रहने में ही भलाई है._
[2/21, 13:12] ‪+91 84259 90587‬: _*दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।*_
_*तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण॥*_
अर्थ : _तुलसीदास जी कहते हैं, धर्म का मूल भाव ही दया हैं और अहम का भाव ही पाप का मूल (जड़) होता है. इसलिए जब तक शरीर में प्राण है कभी दया को नहीं त्यागना चाहिए._
[2/21, 13:12] ‪+91 84259 90587‬: _*काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान।*_
_*तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान॥*_
अर्थ : _तुलसीदास जी कहते हैं, जब तक व्यक्ति के मन में काम की भावना, गुस्सा, अहंकार, और लालच भरे हुए होते हैं. तब तक एक ज्ञानी व्यक्ति और मूर्ख व्यक्ति में कोई अंतर नहीं होता है, दोनों एक ही जैसे होते हैं._
[2/21, 16:14] ओमीश Omish Ji: विक्रमादित्य के नवरत्न
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राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों के विषय में बहुत कुछ पढ़ा-देखा जाता है। लेकिन बहुत ही कम लोग ये जानते हैं कि आखिर ये नवरत्न थे कौन-कौन।

राजा विक्रमादित्य के दरबार में मौजूद नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि, विद्वान, गायक और गणित के प्रकांड पंडित शामिल थे, जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था। चलिए जानते हैं कौन थे ये नवरत्न –

1–धन्वन्तरि

नवरत्नों में इनका स्थान गिनाया गया है। इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं। वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं। चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे। आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है।

2–क्षपणक

जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है, ये बौद्ध संन्यासी थे।
इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में मन्त्रित्व आजीविका का साधन नहीं था अपितु जनकल्याण की भावना से मन्त्रिपरिषद का गठन किया जाता था। यही कारण है कि संन्यासी भी मन्त्रिमण्डल के सदस्य होते थे।
इन्होंने कुछ ग्रंथ लिखे जिनमें ‘भिक्षाटन’ और ‘नानार्थकोश’ ही उपलब्ध बताये जाते हैं।

3–अमरसिंह

ये प्रकाण्ड विद्वान थे। बोध-गया के वर्तमान बुद्ध-मन्दिर से प्राप्य एक शिलालेख के आधार पर इनको उस मन्दिर का निर्माता कहा जाता है। उनके अनेक ग्रन्थों में एक मात्र ‘अमरकोश’ ग्रन्थ ऐसा है कि उसके आधार पर उनका यश अखण्ड है। संस्कृतज्ञों में एक उक्ति चरितार्थ है जिसका अर्थ है ‘अष्टाध्यायी’ पण्डितों की माता है और ‘अमरकोश’ पण्डितों का पिता। अर्थात् यदि कोई इन दोनों ग्रंथों को पढ़ ले तो वह महान् पण्डित बन जाता है।

4–शंकु

इनका पूरा नाम ‘शङ्कुक’ है। इनका एक ही काव्य-ग्रन्थ ‘भुवनाभ्युदयम्’ बहुत प्रसिद्ध रहा है। किन्तु आज वह भी पुरातत्व का विषय बना हुआ है। इनको संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान् माना गया है।

5–वेतालभट्ट

विक्रम और वेताल की कहानी जगतप्रसिद्ध है। ‘वेताल पंचविंशति’ के रचयिता यही थे, किन्तु कहीं भी इनका नाम देखने सुनने को अब नहीं मिलता। ‘वेताल-पच्चीसी’ से ही यह सिद्ध होता है कि सम्राट विक्रम के वर्चस्व से वेतालभट्ट कितने प्रभावित थे। यही इनकी एक मात्र रचना उपलब्ध है।

6–घटखर्पर

जो संस्कृत जानते हैं वे समझ सकते हैं कि ‘घटखर्पर’ किसी व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता। इनका भी वास्तविक नाम यह नहीं है। मान्यता है कि इनकी प्रतिज्ञा थी कि जो कवि अनुप्रास और यमक में इनको पराजित कर देगा उनके यहां वे फूटे घड़े से पानी भरेंगे। बस तब से ही इनका नाम ‘घटखर्पर’ प्रसिद्ध हो गया और वास्तविक नाम लुप्त हो गया।
इनकी रचना का नाम भी ‘घटखर्पर काव्यम्’ ही है। यमक और अनुप्रास का वह अनुपमेय ग्रन्थ है।
इनका एक अन्य ग्रन्थ ‘नीतिसार’ के नाम से भी प्राप्त होता है।

7–कालिदास

ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे। उन्होंने भी अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप निरूपित किया है। कालिदास की कथा विचित्र है। कहा जाता है कि उनको देवी ‘काली’ की कृपा से विद्या प्राप्त हुई थी। इसीलिए इनका नाम ‘कालिदास’ पड़ गया। संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से यह कालीदास होना चाहिए था किन्तु अपवाद रूप में कालिदास की प्रतिभा को देखकर इसमें उसी प्रकार परिवर्तन नहीं किया गया जिस प्रकार कि ‘विश्वामित्र’ को उसी रूप में रखा गया।

जो हो, कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के विषय में अब दो मत नहीं है। वे न केवल अपने समय के अप्रितम साहित्यकार थे अपितु आज तक भी कोई उन जैसा अप्रितम साहित्यकार उत्पन्न नहीं हुआ है। उनके चार काव्य और तीन नाटक प्रसिद्ध हैं। शकुन्तला उनकी अन्यतम कृति मानी जाती है।

8–वराहमिहिर

भारतीय ज्योतिष-शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है। इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। इनमें-‘बृहज्जातक‘, ‘बृहस्पति संहिता’, ‘पंचसिद्धान्ती’ मुख्य हैं। गणक तरंगिणी’, ‘लघु-जातक’, ‘समास संहिता’, ‘विवाह पटल’, ‘योग यात्रा’, आदि-आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है।

9–वररुचि

कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं। ‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’ तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’, इनकी रचनाओं में गिनी जाती हैं।
इनके नाम पर मतभेद है। क्योंकि इस नाम के तीन व्यक्ति हुए हैं उनमें से-
1.    पाणिनीय व्याकरण के वार्तिककार-वररुचि कात्यायन,
2.    ‘प्राकृत प्रकाश के प्रणेता-वररुचि और
3.    सूक्ति ग्रन्थों में प्राप्त कवि-वररुचि
यह संक्षेप में विक्रमादित्य के नवरत्नों का परिचय है।

             –रमेशप्रसाद शुक्ल

             –जय श्रीमन्नारायण।
[2/21, 16:18] ओमीश Omish Ji: मेरे नारायण कहते है.
मत सोच रे बन्दे,
इतना ज़िन्दगी के बारे में.
मैंने ये ज़िंदगी दी है मैंने भी तो,
कुछ सोचा ही होगा तेरे बारे मे.

🙏जय श्री मन्नारायण🙏
[2/21, 16:59] ‪+91 824 781 5886‬: --  पुराणों में कहा गया है -

     #विप्राणां_यत्र_पूज्यंते_रमन्ते_तत्र_देवता ।

  जिस स्थान पर ब्राह्मणों का पूजन हो वंहा देवता भी निवास करते हैं अन्यथा ब्राह्मणों के सम्मान के बिना देवालय भी शून्य हो जाते हैं । इसलिए

   #ब्राह्मणातिक्रमो_नास्ति_विप्रा_वेद_विवर्जिताः ।।

  श्री कृष्ण ने कहा - ब्राह्मण यदि वेद से हीन भी तब पर भी उसका अपमान नही करना चाहिए । क्योंकि तुलसी का पत्ता क्या छोटा क्या बड़ा वह हर अवस्था में कल्याण ही करता है ।

  #ब्राह्मणोंस्य_मुखमासिद्......

   वेदों ने कहा है की ब्राह्मण विराट पुरुष भगवान के मुख में निवास करते हैं इनके मुख से निकले हर शब्द भगवान का ही शब्द है, जैसा की स्वयं भगवान् ने कहा है की

   #विप्र_प्रसादात्_धरणी_धरोहम ,
   #विप्र_प्रसादात्_कमला_वरोहम ।
   #विप्र_प्रसादात्अजिता$जितोहम
   #विप्र_प्रसादात्_मम्_राम_नामम् ।।

   ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही मैंने धरती को धारण कर रखा है अन्यथा इतना भार कोई अन्य पुरुष कैसे उठा सकता है, इन्ही के आशीर्वाद से नारायण हो कर मैंने लक्ष्मी को वरदान में प्राप्त किया है, इन्ही के आशीर्वाद से मैं हर युद्ध भी जीत गया और ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही मेरा नाम "राम" अमर हुआ है, अतः ब्राह्मण सर्व पूज्यनीय है । और ब्राह्मणों का अपमान ही कलियुग में पाप की वृद्धि का मुख्य कारण है ।

  - किसी में कमी निकालने की अपेक्षा किसी में से कमी निकालना ही ब्राह्मण का धर्म है,   
तुलसी दास ने रामचरित मानस में कहा है,

  #पूजहु_बिप्र_सकल_गुण_हीना, #सूद्र_न_पूजहु_गुन_प्रवीना।।

             
समस्त ब्राह्मण सम्प्रदाय को समर्पित।।
[2/21, 17:05] ‪+91 824 781 5886‬: दुख सुख पाप पुन्य दिन राती।
 साधु असाधु सुजाति कुजाती॥
दानव देव ऊँच अरु नीचू।
अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू॥
माया ब्रह्म जीव जगदीसा।
लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा॥
कासी मग सुरसरि क्रमनासा।
मरु मारव महिदेव गवासा॥
सरग नरक अनुराग बिरागा।
निगमागम गुन दोष बिभागा॥

अर्थ:-दुःख-सुख, पाप-पुण्य, दिन-रात, साधु-असाधु, सुजाति-कुजाति, दानव-देवता, ऊँच-नीच, अमृत-विष, सुजीवन (सुंदर जीवन)-मृत्यु, माया-ब्रह्म, जीव-ईश्वर, सम्पत्ति-दरिद्रता, रंक-राजा, काशी-मगध, गंगा-कर्मनाशा, मारवाड़-मालवा, ब्राह्मण-कसाई, स्वर्ग-नरक, अनुराग-वैराग्य (ये सभी पदार्थ ब्रह्मा की सृष्टि में हैं।) वेद-शास्त्रों ने उनके गुण-दोषों का विभाग कर दिया है॥

रामचरित मानस
बाल काण्ड (५:३;४;५)

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी |
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः || ६९ ||

जो सब जीवों के लिए रात्रि है, वह आत्मसंयमी के जागने का समय है और जो समस्त जीवों के जागने का समय है वह आत्मनिरीक्षक मुनि के लिए रात्रि है |

श्रीमद् भगवद् गीता
गीता का सार
 (अध्याय २)

🙏 हनुमानजी महाराज प्रिय हो 🙏
🙏    सद्गुरु भगवान प्रिय हो    🙏

सद्गुरु स्मरण के साथ

🙏🌺      शुभ संध्या    🌺🙏
🙏🌺   जय सीयाराम  🌺🙏
[2/21, 17:05] ‪+91 824 781 5886‬: -: श्री रूद्रष्टकं स्तोत्रम् – अर्थ सहित :-

नमामीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासम भजेङहम्।।1।।

हे मोक्ष स्वरूप, विभू, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर व सबके स्वामी श्री शिवजी! मैं आपको नमस्कार करता हूं। निज स्वरूप में स्थित अर्थात माया से रहित, गुणो से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाश रूप एंव आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर आपको भजता हूँ ।

निराकारमोंकार मूलं तुरीयं गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।

करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोङहम्।।2।।

निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत), वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलासपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ।

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभींर मनोभूत कोटि प्रभाश्रीशरीरम्।

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारूगंगा लसद भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा।।3।।

जो हिमालय समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोडों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा हैं, जिनके सर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चंद्रमा और गले में सर्प सुशोभित हैं।

चलत्कुण्डलं भ्रुसुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।

मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।।4।।

जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुदर भकुटि व विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकण्ठ व दयालु हैं, सिंह चर्म धारण किये व मुडंमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे, सब के नाथ श्री शंकर जी को  मैं भजता हूँ ।

प्रचण्ड प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानु कोटिप्रकाशम।

त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणि भजेङहं भवानी पति भावगम्यम्।।5।।

प्रचण्ड (रूद्र रूप), श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, तीनो प्रकार के शूलों (दुःखों) को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, प्रेम के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकर को मैं भजता हूँ।

कलातित कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जानन्ददाता पुरारी।

चिदानंदसंदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।6।।

कलाओं से परे, कल्यांणस्वरूप, कल्प का अन्त (प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर के शत्रु सच्चिनानंद मन, मोह को हरने वाले, प्रसन्न हों, प्रसन्न हों।

न यावद उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।

न तावत्सुखं शान्ति संतापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ।।7।।

हे पार्वती के पति, जब तक मनुष्य आपके चरण कमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इस लोक में न परलोक में सुख शान्ति मिलती है और न ही तापों का नाश होता है।  अतः हे समस्त जीवों के अन्दर (हृदय) में निवास करने वाले प्रभो! प्रसन्न होइये।

न जानामि योगं जपं नैव पूजा नतोङहं सदा सर्वदा शम्भूतुभ्यम् ।

जरजन्मदुःखौ घतात प्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमाशीश शम्भो ।।8।।

मैं न तो जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा। हे प्रभो! मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ। हे प्रभो! बुढापा व जन्म और मृत्यु के दुःखों से जलाये हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा करें। हे इश्वर, मैं आपको नमस्कार करता हूँ ।

रूद्राष्टकमिदं प्रोक्त विपेण हरतुष्टयै।

ये पठन्ति नरा भक्तया तेषा शम्भुः प्रसीदति ।।

भगवान रूद्र का यह अष्टक उप शंकर जी की स्तुति के लिये है। जो मनुष्य इसे प्रेम स्वरूप पढते हैं, श्री शंकर उप से प्रसन्न होते हैं।
[2/21, 17:05] ‪+91 824 781 5886‬: *श्याम के मुकुट पर नाच रहा मोर है,*
*श्याम नाम डंका बजा चारों ओर है!*

*श्याम कन्हैया तो प्यारा चित्त चोर है,*
*श्याम नाम से रात है और श्याम नाम से भोर है!!*

*🙏🏻🌹 जय श्री श्याम जी 🌹🙏🏻*
[2/21, 17:06] अरविन्द गुरू जी: हरि ॐ तत्सत्! शुभसन्ध्या।
सर्वेभ्यो भक्तेभ्यो नमो नमः।

एक भाव प्रस्तुत है-

हर बात की सीमा होती है,
सीमा के बाहर मत जाअो।
मानव जीवन अनमोलक है,
चहुँ प्रेम सुधा रस बरसाअो॥

जिसने सीमा का त्याग दिया
उसने अपना ही नाश किया।
कर्त्तव्यबोध हो जीवन धन
सत्कर्म सदा ही अपनाअो॥

॥ सत्यसनातधर्मो  विजयतेतराम् ॥
[2/21, 19:32] राम भवनमणि त्रिपाठी: षोड्श मातृकाएं

सूर्य में जो तेज है वह इन्हीं का रूप है। ये शंकर भगवान को सदा शक्ति  संपन्न बनाए रखती हैं। सिद्धेश्वरी सिद्धिरूपा सिद्धिदा ईश्वरी आदि इनके सार्थक नाम हैं। ये दुख शोक भय उद्वेग को नष्ट कर देती हैं…

मंगल कार्यों में भगवान गणपति के साथ षोड्श मातृकाओं का स्मरण एवं पूजन करना चाहिए। इससे कार्य सिद्धि एवं अभ्युदय की प्राप्ति होती है। ये षोडश मातृकाएं इस प्रकार हैं-

गौर पदमा शयी मेघा सावित्री विजया जया।
देवसेना स्वधा स्वाहामातरो लोक मातरः।।

धृति पुष्टिस्तथा तुष्टिरात्मनः कुलदेवता।
गणेशेनाधिका ह्योता वृद्धौ पूज्याश्रचः षोडश।।

गौरी, पद्मा, शची, मेधा, सावित्री, विजया, जया, देवसेना, स्वधा, स्वाहा, वैधृति, धृति, पुष्टि , तुष्टी , आद्या तथा कुल देवता - लोकमाताएं हैं। इकना संक्षिप्त परिचय नीचे दिया गया है।

1. माता गौरी

अप्रतिम गौर- वर्ण होने के कारण पार्वती गौरी कही जाती है। ये नारायण, विष्णुमाया और पूर्ण ब्रह्मस्वरूप जी नाम से प्रसिद्ध हैं। ब्रह्मा आगि गेनका सनक आदि मुनिगण तथा मनु प्रभृति सभी इनकी ुपूजा करते हैं। माता गौरी सबकी देखभाल और व्यवस्था करती है। यश मंगल सुख सुविधा आदि व्यावहारिक पदार्थ तथा मोक्ष करना इनका स्वाभाविक गुण है। यह शरणागत वत्सला एवं तेज की अधिष्ठात्री देवी हैं। सूर्य में जो तेज है वह इन्हीं का रूप है। ये शंकर भगवान को सदा शक्ति  संपन्न बनाए रखती हैं। सिद्धेश्वरी सिद्धिरूपा सिद्धिदा ईश्वरी आदि इनके सार्थक नाम हैं। ये दुख शोक भय उद्वेग को नष्ट कर देती हैं। देवी के 108 नामों में गौरी नाम भी परिगणित है। यह नामावली स्वयं भगवती ने अपने पिता दक्ष को बताई थी। उनके कल्याण के लिए (मत्सय पुराण अ. 13)। यह नामावली बहुत ही प्रभावशाली है। जिस स्थान पर यह नामावली लिखकर रख दी जाती है अथवा (किसी देवता के समीप रखकर पूजित होती है। वहां शोक) और दुर्गति प्रवेश नहं हो पाता है। माता गौरी की पूर्ति कान्य कुब्ज के सिद्ध पीठ पर विराजमान है। देवी के 108 पीठों में यह अन्यतम पीठ है। (देवी भा. 7/30/58) विश्व पर जब-जब संकट आया है, तब-तब पराम्बाने उसे दरकर विश्व को बचाया है। (मार्क 68, 79)। माता गौरी ने विश्व को यह वरदान दे रखा है कि जब-जब दानवों से बाधा उपस्थित होगी, तब मैं प्रकट होकर उसका विनाश कर दिया करूंगी।गौरी गणेश की पूजा के बिना कोई कार्य सफल नहीं हो पाता। स्त्रियों के लिए प्रतिदिन पूजा करने का विधान है। आवाहन के मंत्र में माता गौरी इस तरह परिचय दिया गया है। ये हिमालय पुत्री, शंकर की प्रिया और गणेश की जननी हैं-

हमाद्रिनयां देवी वरदां शंकरप्रियाम।
लंबोदरस्य जननींगौरीमावाहयाम्यहम्।।

2. माता पद्मा

लक्ष्मी का एक नाम पद्मा भी है। (खचृक परि. श्री सूक्त श्रीमदभा. 10/46/13) श्री सूक्त में माता लक्ष्मी के लिए पद्मस्थिता, पद्मवर्णा पद्मिनी, पद्ममालिनी, पुष्करीणी, पद्मानना, मद्मोरू, पद्माक्षि, पद्मसंभवा, सरसिजनिलया, सरोजहस्ता, पद्मविद्मपत्रा, पद्मप्रिया, पद्मवलायतीक्ष्थाज्ञी आइद पदों का प्रयोग हुआ है। (त्रचृक, परि, श्री सूकत 4/26) इससे पता चलता है कि लक्ष्मी देवी का कमल से बहुत घनिष्ठ संबंध है। ये सुगंधित कमल की माला पहनती हैं।

3.  माता शची

एक बार इनके सतीत्व पर संकट की घड़ी आ गई। इंद्र की अनुपस्थिति में राजा नहुष को इंद्र के पद पर प्रतिष्ठित किया गया था। राजा नहुष धर्म पथ पर चलने वाले योग्य शासक थे। किंतु इंद्र जैसे महत्त्वपूण्र पद के लिए वह अपने को योग्य नहीं समझते थे…

वेद की अन्य ऋचाओं में माता शची का वर्णन आया है। एक ऋचा में स्वयं देवराज इंद्र ने शची की प्रशंसा में कहा है कि विश्व में जितनी सौभाग्यवती नारियां हैं, उनमें मैंने इंद्राणी को सबसे अधिक सौभाग्यवती सुना है। माता शची अंतर्यामिणी हैं। जैसे सभी अवयवों में सिर प्रधान होता है, वैसे ही माता शची सब में प्रधान हैं।  ये षोड्श शक्तियों में एक शक्ति मानी गई हैं इनकी रूप संपत्ति पर मुग्ध होकर देवताओं के राजा इंद्र ने इनसे विवाह किया था। इंद्र को ये बहुत प्रिय हैं। शची इंद्र सभा में उनके साथ सिंहावन पर विराजती हैं। शची लक्ष्मी के समान प्रतीत होती हैं। ये पतिव्रताओं में श्रेष्ठ और स्त्री जाति की आदर्श हैं ।  एक बार इनके सतीत्व पर संकट की घड़ी आ गई। इंद्र की अनुपस्थिति में राजा नहुष को इंद्र के पद पर प्रतिष्ठित किया गया था। राजा नहुष धर्म पथ पर चलने वाले योग्य शासक थे। किंतु इंद्र जैसे महत्त्वपूर्ण पद के लिए वे अपने को योग्य नहीं समझते थे। परंतु सभी देवताओं ने इन्हें अपना-अपना तेज प्रदान कर समर्थ बनाया और एक वरदान भी दिया कि जिसको तुम देख लोगे उसकी शक्ति तुम में आ जाएगी। यह वरदान बहुत ही महत्त्वपूर्ण था। अब देवों, दानवों, दैत्यों में से कोई नहुष का सामना नहीं कर सकता था। समर्थ नहुष से देवताओं का कार्य अच्छी तरह संपन्न हो रहा था। देवता प्रसन्न थे। राजा नहुष भी प्रसन्न थे, क्योंकि वे भी मनुष्य देह से दुलर्भ स्वर्ग सुख और ऐश्वर्य का भोग कर रहे थे। धीरे-धीरे भोग विलास ने इनको अपने में लिप्त कर लिया। इनकी विवेक शक्ति क्षीण होने लगी। एक बार शची देवी पर इनकी दृष्टि पड़ी। इनकी दृष्टि कलुषित होने लगी। माता शची ने इनको सावधान किया, किंतु नहुष की आंखें नहीं खुलीं। फलतः स्वर्ग से च्युत होकर नहुष को सर्प बनना पड़ा। माता शची का आवाहन मंत्र इस प्रकार है-

दिव्य रूपां विशालाक्षीं शुचिकुंडलधारिणीम्।
रत्नमुक्ताद्यलाष्टङ्। रांशचीभावाहयाम्यहम्।।

विश्व कल्याण के लिए आदि शक्ति ने अपने को उंचास रूपों में अभिव्यक्त किया था। इन्हीं में माता मेधा की भी गणना है। आदि शक्ति जैसे वाराणसी में विशालाक्षी रूप से, विंध्य पर्वत पर विन्ध्यवासिनी रूप से कान्यकुब्ज में गौरी रूप से और देवलोक में शची रूप में विराजती हैं।  यद्यपि माता मेधा सभी स्थलों में और सभी प्राणियों में अनुस्यूत हैं, इसलिए सभी स्थलों में और सभी प्राणियों में इनका प्राकट्य होता रहता है, फिर भी पीठ विशेष में इनका दर्शन प्राप्त शीघ्र फलप्रद होता है। यही आदि शक्ति प्राणी मात्र में शक्ति रूप में विद्यमान हैं। हममें जो निर्णयात्मिका बुद्धिशक्ति है या धाराणात्मिका मेधा शक्ति है, वह आदिशक्ति रूप हैं। माता मेधा के आह्वान के लिए जो मंत्र पढ़ा जाता है, उसमें बतलाया गया है कि माता मेधा बुद्धि में स्वच्छता लाती रहती हैं, इनकी आभा सूर्योदय कालीन सद्यः विकसित कमल की तरह है और ये कमल पर रहती हैं। इनका स्वरूप बहुत ही सौम्य है-

वैवस्वतकृतफुल्लाब्जतुल्याभां पद्मवासिनीम्।
बुद्धिप्रसादिनीं सौभ्यां मेधाभावाहयाम्यहम्।।

4. मेधा:

मत्स्य पुराण के अनुसार यह आदि शक्ति प्राणिमात्र में शक्ति रूप में विद्यमान है। हममें जो निर्णयत्मिका बुद्धि शक्ति है वह आदिशक्ति स्वरूप ही है। माता मेधा बुद्धि में स्वच्छता लाती है। इसलिए बुद्धि को प्रखर और तेजस्वी बनाने एवं उसकी प्राप्ति के लिए मेधा का आह्वाहन करना चाहिए।

आराधना स्त्रोत-
वैवस्तवतकृत फुल्लाब्जतुल्याभां पद्मवसिनीम्।
बुद्धि प्रसादिनी सौम्यां मेधाभावाहयाम्यहम्।।

  5. सावित्री-:

सविता सूर्य के अधिष्ठातृ देवता होने से ही इन्हें सावित्री कहा जाता है। इनका आविर्भाव भगवान श्रीकृष्ण की जिह्वा के अग्रभाग से हुआ है। सावित्री वेदों की अधिष्ठात्री देवी है। संपूर्ण वैदिक वांडम्य इन्हीं का स्वरूप है। ऋग्वेद में कहा गया है कि माता सावित्री के स्मरण मात्र से ही प्राणी के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसमें अभूतपूर्व नई ऊर्जा के संचार होने लगता है।

आराधना स्त्रोत- ऊॅ हृीं क्लीं श्री सावित्र्यै स्वाहा।

  6. विजया-:
विजया, विष्णु, रूद्र और सूर्य के श्रीविग्रहों में हमेशा निवास करती है। इसलिए जो भी प्राणी माता विजया का निरंतर स्मरण व आराधना करता है वह सदा विजयी होता है।

आराधना स्त्रोत-
विष्णु रूद्रार्कदेवानां शरीरेष्पु व्यवस्थिताम्।
त्रैलोक्यवासिनी देवी विजयाभावाहयाभ्यहम।

  7. जया-:

प्राणी को चहुं ओर से रक्षा प्रदान करने वाली माता जया का प्रादुर्भाव आदि शक्ति के रूप में हुआ है। दुर्गा सप्तशती के कवच में आदि शक्ति से प्रार्थना की गई है कि-' जया में चाग्रत: पातु विजया पातु पृष्ठत:Ó। अर्थात हे मां आप जया के रूप में आगे से और विजया के रूप में पीछे से मेरी रक्षा करें।

आवाहन स्त्रोत:
सुरारिमथिनीं देवी देवानामभयप्रदाम्।
त्रैलोक्यवदिन्तां देवी जयामावाहयाम्यहम्।।

  8. षष्ठी-:
लोक कल्याण के लिये माता भगवती ने अपना आविर्भाव ब्रह्मा के मन से किया है। अत: ये ब्रह्मा की मानस कन्या कही जाती हंै। ये जगत पर शासन करती है। इनकी सेना के प्रधान सेनापति कुमार स्कन्द है। ब्रह्मा की आज्ञा से इनका विवाह कुमार स्कन्द से हुआ। माता पष्ठी जिसे देवसेना भी कहा जाता है मूल प्रकृति के छठे अंश से प्रकट हुई है। इसलिए इनका नाम षष्ठी देवी है। माता पुत्रहीन को पुत्र, प्रियाहीन को प्रिया-पत्नी और निर्धन को धन प्रदान करती हैं। विश्व के तमाम शिशुओं पर इनकी कृपा बरसती है। प्रसव गृह में छठे दिन, 21वें दिन और अन्नप्राशन के अवसर पर षष्ठी देवी की पूजा की जाती है।

आवाहन स्त्रोत :

मयूरवाहनां देवी खड्गशक्तिधनुर्धराम्।
आवाहये देवसेनां तारकासुरमर्दिनीम्।।

  9. स्वधा-:
पुराणों के अनुसार जबतक माता स्वधा का आविर्भाव नहीं हुआ था तब तक पितरों को भूख और प्यास से पीडि़त रहना पड़ता था। ब्रह्मवैवत्र्त पुराण के अनुसार स्वधा देवी का नाम लेने मात्र से ही समस्त तीर्थ स्नान का फल प्राप्त हो जाता है, और संपूर्ण पापों से मुक्ति मिल जाती है। ब्राह्मण वायपेय यज्ञ के फल का अधिकारी हो जाता है। यदि स्वधा, स्वधा, स्वधा, तीन बार उच्चारण किया जाए तो श्राद्ध, बलिवैश्वदेव और तर्पण का फल प्राप्त हो जाता है। माता याचक को मनोवंछित वर प्रदान करती है।

आराधना स्त्रोत:
ब्रह्मणो मानसी कन्यां शश्र्वत्सुस्थिरयौवनाम्।
पूज्यां पितृणां देवानां श्राद्धानां फलदां भजे।।

  10. स्वाहा:
मनुष्य द्वारा यज्ञ या हवण के दौरान जो आहुति दी जाती है उसे संबंधित देवता तक पहुंचाने में स्वाहा देवी ही मदद करती है। इन्हीं के माध्यम से देवताओं का अंश उनके पास पहुंचता है। इनका विवाह अग्नि से हुआ है। अर्थात मनुष्य और देवताओं को जोडऩे की कड़ी का काम माता अपने पति अग्नि देव के साथ मिलकर करती हैं। इनकी पूजा से मनुष्य की समस्त अभिलाषाएं पूर्ण होती है।

आराधना स्त्रोत:
स्वाहां मन्त्राड़्गयुक्तां च मन्त्रसिद्धिस्वरूपिणीम।
सिद्धां च सिद्धिदां नृणां कर्मणां फलदां भजे।।

  11. मातर:(मातृगण:)
शुम्भ- निशुम्भ के अत्याचारों से जब समस्त जगत त्राहिमाम कर रहा था तब देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर माता जगदंबा हिमालय पर प्रकट हुई। इनके रूप- लावन्य को देखकर राक्षसी सेना मोहित हो गई और एक-एक कर घूम्रलोचन, चंड-मुंड, रक्त-वीज समेत निशुम्भ और शुम्भ माता जगदंबा के विभिन्न रूपों का ग्रास बन गये और समस्त लोको में फिर दैवीय शक्ति की स्थापना हुई। अत: माता अपने अनुयायियों की रक्षा हेतु जब भी आवश्यकता होती है तब- तब प्रकट होकर तमाम राक्षसी प्रकृति से उनकी रक्षा करती हैं।

आवाहन स्त्रोत:
आवाहयाम्यहं मातृ: सकला लोकपूजिता:।
सर्वकल्याणरूपिण्यो वरदा दिव्य भूषिता: ।।

  12. लोक माताएं-:
राक्षसराज अंधकासुर के वध के उपरांत उसके रक्त से उन्पन्न होने वालेे अनगिनत अंधक का भक्षण करने करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने अंगों से बत्तीस मातृकाओं की उत्पति की। ये सभी महान भाग्यशालिनी बलवती तथा त्रैलोक्य के सर्जन और संहार में समर्थ हंै। समस्त लोगों में विष्णु और शिव भक्तों की ये लोकमाताएं रक्षा कर उसका मनोरथ पूर्ण करती हैं।

आवाहन स्त्रोत:
आवाहये लोकमातृर्जयन्तीप्रमुखा: शुभा:।
नानाभीष्टप्रदा शान्ता: सर्वलोकहितावहा:।।

आवाहये लोक मातृर्जगत्पालन संस्थिता:।
शक्राद्यैरर्चिता देवी स्तोत्रैराराधनैरतथा।

  13. घृति-:
माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के प्रजापति पद से पदच्युत होने के पश्चात् उनके हित के लिए साठ कन्याओं के रूप में खुद को प्रकट किया। जिसकी पूजा कर राजा दक्ष पुन: प्रजापति हो गए। मत्स्य पुराण के अनुसार पिण्डारक धाम में आज भी देवी घृति रूप में विराजमान हंै। माता घृति की कृपा से ही मनुष्य धैर्य को प्राप्त करता हुआ धर्म मार्ग में प्रवेश करता है।

  14. पुष्टि-:
माता पुष्टि की कृपा से ही संसार के समस्त प्राणियों का पोषण होता है। इसके बिना सभी प्राणी क्षीण हो जाते हंै।

आवाहन स्त्रोत :
पोषयन्ती जगत्सर्व शिवां सर्वासाधिकाम ।
बहुपुष्टिकरीं देवी पुष्टिमावाहयाम्यहम।।

  15. तुष्टि-:
माता तुष्टि के कारण ही प्राणियों में संतोष की भावना बनी रहती है। माता समस्त प्राणियों का प्रयोजन सद्धि करती रहती हैं।

आवाहन स्त्रोत:
आवाहयामि संतुष्टि सूक्ष्मवस्त्रान्वितां शुभाम्।
संतोष भावयित्रीं च रक्षन्तीमध्वरंं शुभम्।

  16. कुलदेवता-:
मातृकाओं के पूजन क्रम में प्रथम भगवान गणेश तथा अंत में कुलदेवता की पूजा करनी चाहिए। इससे वंश, कुल, कुलाचार तथा मर्यादा की रक्षा होती है। इससे वंश नष्ट नहीं होता है और सुख, शांति तथा ऐश्वर्य की प्रप्ति होती है।

आवाहन स्त्रोत:
चूंकि अलग-अलग कुल के अलग-अलग देवता व देवियां होते हंै।
इसलिए सबका मंत्र अलग-अलग है।

अंबे
[2/21, 19:58] ओमीश Omish Ji: 🙏श्री मात्रे नमः 🙏
🌷शुभ संध्या 🌷
👇👇👇👇👇
बुद्धि से कुन्ठित,लोग अंदर ही अंदर जलते है।

जब कोई साथ नही देता तब गूरू, नारायण साथ निभाते है।

मेरी प्रतिभा को दूनिया की कोई ताकत नही रोक सकती। !!आचार्य!! 🙏🙏
[2/21, 20:00] ओमीश Omish Ji: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

आशीर्वचनसंयुक्ता स्तुतिर्यस्मात्प्रयुज्यते।
देवद्विजनृपादीनां तस्मान्नान्दीति संज्ञिता।।

नान्दी का तात्पर्य 
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अर्थात नान्दी उसे कहते हैं जिसके द्वारा नाटक के प्रारम्भ में देवता, ब्राह्मण या राजाओं आदि की आशीर्वाद से युक्त स्तुति की जाती है। इसमें आशीर्वाद नमस्कार या कथावस्तु का निर्देश होना चाहिए। अभिज्ञानशाकुन्तल में नान्दी के रूप में भगवान शिव की स्तुति से युक्त मंगलाचरण श्लोक क्या सृषिट: स्रष्टुराध्य है। परन्तु दूतवाक्य में नान्दी का अन्त होने के पश्चात सूत्राधर के प्रवेश का निर्देश है जो आते ही प्रारम्भ में मंगलाचरण के रूप में भगवान विष्णु के चरण की स्तुति करता है। अत: यहाँ विद्वानों द्वारा प्राय: 'नान्दी से मंगलवाधों द्वारा देव की प्रसन्नता एवं देवस्तुति का अभिप्राय लिया जाता है। भास के नाटक स्वप्नवासवदत्तम का आरम्भ भी नान्दी पाठ के बाद सूत्राधर द्वारा पढ़े गए मंगलाचरणात्मक श्लोक से हुआ है।

            –रमेशप्रसाद शुक्ल

            –जय श्रीमन्नारायण।
[2/21, 20:00] ओमीश Omish Ji: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

श्रद्धाभक्तिश्च नित्यं निःस्पृहत्वं संवित्पूज्येति
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आदौ श्रद्धा ततः साधुसंगोअय भजनक्रिया।
ततोअनर्थनिवृत्तिः स्यात्ततो निष्ठा रुचिस्ततः।।

अथासक्तिस्ततो भावस्ततः प्रेमाभ्युदंचति।
साधकानामयं प्रेम्णः प्रादुर्भावे भवेत्क्रमः।।

धन्यस्यायं नवः प्रेमा यस्योन्मीलति चेतसि।
अन्तर्वाणिभिरप्यस्य मुद्रा सुष्ठु सुदुर्गमा।।

      –भक्तिरसामृतसिन्धुः पूर्व विभागे चतुर्थी प्रेमभक्ति लहरी 6-8

ध्यान दीजियेगा – पहले श्रद्धा हो। श्रद्धा क्या है? भक्ति का ही एक रूप है। इसी तरह साधु- संग, भजन-क्रिया ये सबके सब भक्ति के ही रूप हैं। किन्तु इतना ही कहना है कि
अपरिपक्व भक्ति से ही परिपक्व भक्ति बनती है। इसलिए उससे अतिरिक्त हेतु कोई दूसरा नहीं है। अतः ‘न हेतुः कारणं विद्यते यस्यां सा अहैतुकी’ ऐसा कहना उचित ही है। भक्ति अहैतुकी और अप्रतिहता है, जो किसी भी प्रकार से प्रतिहत नहीं होती और यह अव्यवहिता (व्यवधान शून्य) होती है। जिसके बीच में क्षणभर का व्यवधान हो, अखण्ड रूप से भगवत्-परायणता, भगवन्निष्ठा हो।

             –जय श्रीमन्नारायण।
[2/21, 20:42] ‪+91 99673 46057‬: राधे राधे -आज का भगवद चिन्तन ॥
              21-02-2017
🌺       बाहरी शत्रु हमें उतना नुकसान नहीं पहुँचाते जितना भीतरी शत्रु पहुँचाते हैं। बाहर का युद्ध आवश्यक भी नहीं है। बाहर के शत्रुओं को तो जितना जल्दी आप मित्र बना लें या उनसे रिश्ते मधुर कर लें अथवा क्षमा माँग लें तो बहुत अच्छा होगा। इससे ना केवल आपको शान्ति प्राप्त होगी अपितु आपकी ऊर्जा अपने लक्ष्य पर केन्द्रित हो जाएगी।
  🌺     स्वयं से लड़ो, अपनी अकर्मण्यता से लड़ो। अपनी उस आदत से लड़ो जो हर काम को कल पर टाल देती है। अपने उस हीनभाव से लड़ो जिसने आपके भीतर निराशा भर दी है।
   🌺    सोचो ऐसा क्या है जिसे आप अपना बनाते हैं वो दूर क्यों हो जाता है ? अपने उस कड़बे स्वभाव से लड़ो जो किसी को आपका नहीं बनने देता।

🙏 कल बुधवार  22-2-2017 को एकादशी  है🙏
[2/21, 21:51] पं अनिल ब: 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
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*धर्मार्थ वार्ता समाधान*

*सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम*


*श्रीरामचरितमानस - बालकाण्ड दोहा संख्या 285 से आगे*

चौपाई :

अति गहगहे बाजने बाजे । सबहिं मनोहर मंगल साजे ॥
जूथ जूथ मिलि सुमुखि सुनयनीं । करहिं गान कल कोकिलबयनीं ॥
सुखु बिदेह कर बरनि न जाई । जन्मदरिद्र मनहुँ निधि पाई ॥
बिगत त्रास भइ सीय सुखारी । जनु बिधु उदयँ चकोरकुमारी ॥
जनक कीन्ह कौसिकहि प्रनामा । प्रभु प्रसाद धनु भंजेउ रामा ॥
मोहि कृतकृत्य कीन्ह दुहुँ भाईं । अब जो उचित सो कहिअ गोसाईं ॥
कह मुनि सुनु नरनाथ प्रबीना । रहा बिबाहु चाप आधीना ॥
टूटतहीं धनु भयउ बिबाहू । सुर नर नाग बिदित सब काहू ॥

भावार्थ:-खूब जोर से बाजे बजने लगे । सभी ने मनोहर मंगल साज साजे । सुंदर मुख और सुंदर नेत्रों वाली तथा कोयल के समान मधुर बोलने वाली स्त्रियाँ झुंड की झुंड मिलकर सुंदरगान करने लगीं ॥ जनकजी के सुख का वर्णन नहीं किया जा सकता, मानो जन्म का दरिद्री धन का खजाना पा गया हो ! सीताजी का भय जाता रहा, वे ऐसी सुखी हुईं जैसे चन्द्रमा के उदय होने से चकोर की कन्या सुखी होती है ॥ जनकजी ने विश्वामित्रजी को प्रणाम किया (और कहा-) प्रभु ही की कृपा से श्री रामचन्द्रजी ने धनुष तोड़ा है । दोनों भाइयों ने मुझे कृतार्थ कर दिया । हे स्वामी ! अब जो उचित हो सो कहिए ॥ मुनि ने कहा- हे चतुर नरेश ! सुनो यों तो विवाह धनुष के अधीन था, धनुष के टूटते ही विवाह हो गया । देवता, मनुष्य और नाग सब किसी को यह मालूम है ॥

दोहा :

तदपि जाइ तुम्ह करहु अब जथा बंस ब्यवहारु ।
बूझि बिप्र कुलबृद्ध गुर बेद बिदित आचारु ॥286॥

भावार्थ:-तथापि तुम जाकर अपने कुल का जैसा व्यवहार हो, ब्राह्मणों, कुल के बूढ़ों और गुरुओं से पूछकर और वेदों में वर्णित जैसा आचार हो वैसा करो ॥286॥

*जय महाँकाल*

*बोलिए श्री राम जय राम जय जय राम*
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[2/21, 23:00] राम भवनमणि त्रिपाठी: मनः प्रसाद सौम्यत्वं
ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङक्षति
नमो नारायण । प्रश्नों का होना स्वाभाविक है, प्रश्न हैं तो जिज्ञासा है, जिज्ञासा मे दम है तो प्रयत्न है और प्रयत्न है तो परिणाम भी है पर क्या यहीं अन्त भी है---? कदापि नहीं । मित्रो, किसी भी प्रश्न का अन्तिम उत्तर न किसी को मिला है और न कभी मिलेगा यह एक ऐसा क्रम है जो अन्तहीन है-प्रश्नों मे हम उलझते जाते हैं, एक बन्द होता होता है तो दूसरा सामने आ जाता है, जीवन प्रश्नों का पुलिन्दा बन कर रह जाता है, और हम इस चक्रव्हूह मे अन्तिम सांस तक रहते हैं, कभी कभी कुछ मिल भी जाता है--तो फिर हो क्या--? रिक्त हो जायें और इस असीम आकाश को अपने अन्दर प्रवेश करने का मौका दें, रिक्त होना अर्थात अकाश हो जाना , फिर आप मालिक हो , सब कुछ आपके अन्दर खुद ब खुद स्थित हो जाता है । प्रश्न और समस्याओं से मुक्त करें स्वयं को तभी आनन्द होगा, मन की आनन्दमयी स्थिति ही तपस्या है, इसे समझ लें । ज्ञानी बनने का प्रयास न करें-यह प्रश्न और उत्तर हासिल करना ही ज्ञानी होना है-अज्ञानी हो जायें--ज्ञान पाया है तो , उसके प्रति भी अज्ञानी हो जायें, यही बाधा है । ईश्वर की इस असीम सत्ता का आनन्द लें, अपना दिमाग न लगायें उसमे, इस सौन्दर्य का सुख लें-बस बहते रहें अन्त मे इस नदी को समुद्र की ओर ही जाना है , यही सत्य है, फिर कैसी चिन्ता और कैसे सवाल
नमो नारायण
[2/21, 23:33] ‪+91 98239 16297‬: *सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे दैनिक पंचांग-- २२ फेब्रुवारी २०१७*

***!!श्री मयूरेश्वर प्रसन्न!!***
☀धर्मशास्त्रसंमत प्राचीन शास्त्रशुद्ध सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग (पुणे) नुसार
दिनांक २२ फेब्रुवारी २०१७
पृथ्वीवर अग्निवास दिवसभर.
राहु मुखात आहुती आहे.
शिववास १८:५३ पर्यंत कैलासावर नंतर नंदीवर,काम्य शिवोपासनेसाठी शुभ दिवस आहे.
☀ *सूर्योदय* -०७:०३
☀ *सूर्यास्त* -१८:३३
*शालिवाहन शके* -१९३८
*संवत्सर* -दुर्मुख
*अयन* -उत्तरायण
*ऋतु* -शिशिर (सौर)
*मास* -माघ
*पक्ष* -कृष्ण
*तिथी* -एकादशी (१८:५३ पर्यंत)
*वार* -बुधवार
*नक्षत्र* -पू.षाढा
*योग* -सिद्धि
*करण* -बालव (१८:५३ नंतर कौलव)
*चंद्र रास* -धनु
*सूर्य रास* -कुंभ
*गुरु रास* -तुळ
*राहु काळ* -१२:०० ते १३:३०
*पंचांगकर्ते*:सिद्धांती ज्योतिषरत्न गणकप्रवर
*पं.गौरवशास्त्री देशपांडे-०९८२३९१६२९७*
*विशेष*-विजया एकादशी (उपवास),अमृतयोग १८:५३ पर्यंत नंतर सिद्धियोग,या दिवशी पाण्यात वेलदोडा चूर्ण घालून स्नान करावे.विष्णु कवच या स्तोत्राचे पठण करावे."बुं बुधाय नमः" या मंत्राचा किमान १०८ जप करावा.सत्पात्री व्यक्तिस हिरवे वस्त्र दान करावे.विष्णुंना पिस्ता बर्फीचा नैवेद्य दाखवावा.यात्रेसाठी घरातून बाहेर पडताना तीळ प्राशन करुन बाहेर पडल्यास प्रवासात ग्रहांची अनुकूलता प्राप्त होईल.
*विशेष टीप* - *आगामी नूतन संवत्सरारंभी येणारा गुढीपाडवा सूर्यसिद्धांतीय पंचांगानुसार म्हणजेच मुख्यतः धर्मशास्त्रानुसार या वेळी मंगळवार दि.२८ मार्च २०१७ रोजी नसून फक्त बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजी आहे.कारण सूर्यसिद्धांतानुसार दि.२८ मार्च रोजी सूर्योदयास अमावस्या तिथी आहे व दि.२९ मार्च रोजी सूर्योदयास प्रतिपदा तिथी आहे.याची विशेष नोंद हिंदूंनी घ्यावी व सर्वांनी गुढी-ब्रह्मध्वज पूजन हे चैत्र शु.प्रतिपदेला बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजी साजरे करावे.*
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*टीप*-->>सर्व कामांसाठी शुभ दिवस आहे.
**या दिवशी भात खावू नये.
**या दिवशी हिरवे वस्त्र परिधान करावे.
*आगामी नूतन संवत्सराचे सर्वांना उपयुक्त फायदेशीर असे धर्मशास्त्रसंमत सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग सर्वत्र उपलब्ध आहे.*
♦ *लाभदायक वेळा*-->>
लाभ मुहूर्त-- सायंकाळी ५.१५ ते सायंकाळी ६.४५
अमृत मुहूर्त--  सकाळी ८.३० ते सकाळी १०
|| *यशस्वी जीवनाचे प्रमुख अंग* ||
|| *सूर्यसिध्दांतीय देशपांडे पंचांग* ||
आपला दिवस सुखाचा जावो,मन प्रसन्न राहो.
(कृपया वरील पंचांग हे पंचांगकर्त्यांच्या नावासहच व अजिबात नाव न बदलता शेअर करावे.या लहानश्या कृतीने तात्त्विक आनंद व नैतिक समाधान मिळते.@copyright)
[2/22, 04:56] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूल श्लोकः 🔔*
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।। २. १२।।
*🏹पदच्छेदः........*
न, तु, एव, अहम्, जातु, न, आसम्, न, त्वम्, न, इमे, जनाधिपाः।
न, च, एव, न, भविष्यामः, सर्वे, वयम्, अतः, परम्।।
*🌹पदपरिचयः......🌹*
न —अव्ययम्
तु —अव्ययम्
एव —अव्ययम्
अहम् —अस्मद्-द. सर्व. प्र. एक.
जातु —अव्ययम्
आसम् —अस -पर. कर्तरि लङ्. उपु. एक.
त्वम् —युष्मद् -द. सर्व. प्र. एक.
इमे —इदम्-म. सर्व.पुं.प्र.बहु.
जनाधिपाः —अ. पुं. प्र. बहु.
च —अव्ययम्
भविष्यामः —भू -पर. कर्तरि लृट्.उपु.बहु.
सर्वे —अ. सर्व. पुं. प्र. बहु.
वयम् —अस्मद्-द. सर्व. प्र. बहु.
अतः —अव्ययम्
परम् —अ. नपुं. द्वि. एक.क्रियाविशेषणम्
*🌷पदार्थः...... 🌷*
अहम् —अहम्
जातु —कदाचिदपि
न तु एव न आसम् —अवश्यम् आसम्
त्वं न तु एव न (आसीः)—त्वमपि अवश्यम् आसीः
इमे —एते
जनाधिपाः —राजानः
न तु एव न नासन् —अवश्यम् आसन्
अतः परम् —इतः ऊर्ध्वम्
सर्वे वयम् —वयं समस्ताः
न च एव न भविष्यामः —अवश्यम् भविष्यामः।
*🌻अन्वयः 🌻*
अहं जातु न आसम्, न तु एव त्वम् (आसीः), न इमे जनाधिपाः (आसन्), न अतः परं वयं सर्वे न च एव भविष्यामः।
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_अहं आसम्।_
अहं कथं आसम्?
*अहं जातु न तु एव न आसम्।*
त्वं कथम् (आसीः) ?
*त्वं जातु न तु एव न आसीः।*
जनाधिपाः कथम् (आसन्) ?
*जनाधिपाः न तु एव न (आसन्)।*
के जनाधिपाः न तु एव न आसन्?
*इमे जनाधिपाः न तु न एव न आसन्।*
_वयं न चैव न भविष्यामः।_
कति वयं न चैव न भविष्यामः?
*सर्वे वयं न चैव न भविष्यामः।*
कदा सर्वे वयं न चैव न भविष्यामः?
*अतः परं सर्वे वयं न चैव न भविष्यामः।*
*📢 तात्पर्यम्......*
अहं सर्वदा आसम्। त्वं सर्वदा आसीः। एते राजानः अपि सर्वदा आसन्। इतःपरमपि वयं सर्वे सर्वदा भविष्यामः। आत्मा स्थिरः इति वयं सर्वे सर्वदा अवश्यं भवामः इत्यभिप्रायः।
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
त्वेवाहं = तु +एव +अहम् -यण् सन्धिः,सवर्णदीर्घसन्धिः।
नासम् = न +आसम् -सवर्णदीर्घसन्धिः।
नेमे = न +इमे -गुणसन्धिः।
चैव =च +एव -वृद्धिसन्धिः।
▶ समासः
जनाधिपाः = जनानाम् अधिपाः -षष्ठीतत्पुरुषः।
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                                       *गीताप्रवेशात्*
[2/22, 06:06] पं ज्ञानेश: कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्‌॥
इसलिए कायरता रूप दोष से उपहत हुए स्वभाव वाला तथा धर्म के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिए कहिए क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिए आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिए
॥7॥
~ अध्याय 2 - श्लोक : 7

💐💐💐सुप्रभातम्💐💐💐
[2/22, 09:59] ‪+91 99673 46057‬: राधे राधे -आज का भगवद चिन्तन ॥
              22-02-2017
🌺       जीवन को दो तरीकों से सुखद बनाया जा सकता है। पहला यह है कि जो तुम्हें पसंद है उसे प्राप्त कर लो या जो प्राप्त है उसे पसंद कर लो।
🌺    अगर आप भी उन व्यक्तिओं में से एक हैं जो प्राप्त को पसंद नहीं करते और ना ही पसंद को प्राप्त करने का सामर्थ्य रखते हैं तो आपने स्वयं ही अपने सुखों का द्वार बंद कर रखा है।
🌺     सुख प्राप्त करने की चाह में आदमी मकान बदलता है, दुकान बदलता है। कभी-कभी देश बदलता है तो कभी-कभी भेष भी बदलता है। लेकिन अपनी सोच और स्वभाव बदलने को राजी नहीं है।
🌺     भूमि नहीं अपनी भूमिका बदलो। जिस दिन आदमी ने अपना स्वभाव जीत लिया उसी दिन उसका अभाव मिट जायेगा।
[2/22, 10:06] पं अलोपी: *किसी  ने कहा*    --- *जब हर कण कण मे भगवान है तो तुम मंदिर क्यूँ जाते हैं*

*बहुत सुंदर जवाब*

*हवा तो धुप में भी चलती है पर आनंद*
*छाँव मे बैठ कर मिलता है*
*वैसे ही भगवान सब तरफ है पर*
                   *आनंद मंदिर मे ही आता है*।।

                🐚☀🐚
                    *स्नेह वंदन*         
😊🍀🙏 *शुभ प्रभात🙄🙄🙄
[2/22, 10:41] राम भवनमणि त्रिपाठी: पंचतंत्र में कहा है कि, जिन वृद्ध
पुरुषों के पास धन है, वे युवा हैं।जिसके पास धन नहीं हैं वे युवावस्था में ही वृद्ध हो जाते हैं।
श्री, कीर्ति, प्रतिष्ठा,पद पाकर व्यक्ति बड़ा कहलाता है, उसके चेहरे पर तरुणाई छा जाती हैं।तरुण लगने लगता है। यह छिनते ही बूढ़े के समान। धन, पद व प्रतिष्ठा में जितने गुण है, शायद किसी औषधि में भी नहीं।यह सर्वत्र देखने में मिल जाता हैं।
ज्योतिष में अष्टम, नवम व दशम में ग्रह होने पर धन, पद व प्रतिष्ठा तीनों ही प्राप्त होते हैं।
ॐ हरि ॐ। सुप्रभात। प्रणाम। श्री राधे।
[2/22, 10:48] ‪+91 94301 19031‬: ॐ नमः शिवाय। शिव जी ने समस्त लोको के जीवों के कल्याण के लिए सर्वप्रथम वारों की कल्पना की या यों कहें निर्माण किये। (1)सर्वप्रथम शिव जी वार बने जिसके अधिपति,स्वामी सूर्य बने--रविवार।(2)फिर मायाशक्ति को वार बनाया जिसके स्वामी सोम को। सोमवार।(3)पुनः कुमार को वार बनाया स्वामी मंगल को। मंगलवार।(4)पुनः विष्णु को वार बनाया स्वामी बुध को। बुधवार। (5)पुनः ब्रह्मा को वर बनाया,स्वामी वृहस्पति को। वृहस्पतिवार।(6)इसके बाद इंद्र को वार बनाया,स्वामी शुक्र को। शुक्रवार।(7)इसके बाद यम को वार बनाया इसके स्वामी शनैश्चर को । शनिवार।
[2/22, 11:11] ओमीश Omish Ji: 108 उपनिषदों की सूची--   संकलित
ईशादि  १०८ उपनिषदों की सूची –
१.ईश = शुक्ल यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्
२.केन उपनिषद् = साम वेद, मुख्य उपनिषद्
३.कठ उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्
४.प्रश्नि उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद्
५.मुण्डक उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद्
६.माण्डुक्य उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद्
७.तैत्तिरीय उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्
८.ऐतरेय उपनिषद् = ऋग् वेद, मुख्य उपनिषद्
९.छान्दोग्य उपनिषद् = साम वेद, मुख्य उपनिषद्
१०.बृहदारण्यक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्
११.ब्रह्म उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
१२.कैवल्य उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
१३.जाबाल उपनिषद् (यजुर्वेद) = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
१४.श्वेताश्वतर उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
१५.हंस उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपनिषद्
१६.आरुणेय उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्
१७.गर्भ उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
१८.नारायण उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, वैष्णव उपनिषद्
१९.परमहंस उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
२०.अमृत-बिन्दु उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
२१.अमृत-नाद उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
२२.अथर्व-शिर उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
२३.अथर्व-शिख उपनिषद् =अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
२४.मैत्रायणि उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्
२५.कौषीतकि उपनिषद् = ऋग् वेद, सामान्य उपनिषद्
२६.बृहज्जाबाल उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
२७.नृसिंहतापनी उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
२८.कालाग्निरुद्र उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
२९.मैत्रेयि उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्
३०.सुबाल उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३१.क्षुरिक उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
३२.मान्त्रिक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३३.सर्व-सार उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३४.निरालम्ब उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३५.शुक-रहस्य उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३६.वज्रसूचि उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्
३७.तेजो-बिन्दु उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
३८.नाद-बिन्दु उपनिषद् = ऋग् वेद, योग उपनिषद्
३९.ध्यानबिन्दु उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४०.ब्रह्मविद्या उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४१.योगतत्त्व उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४२.आत्मबोध उपनिषद् = ऋग् वेद, सामान्य उपनिषद्
४३.परिव्रात् उपनिषद् (नारदपरिव्राजक) = अथर्व वेद, संन्यास उपनिषद्
४४.त्रिषिखि उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४५.सीता उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
४६.योगचूडामणि उपनिषद् = साम वेद, योग उपनिषद्
४७.निर्वाण उपनिषद् = ऋग् वेद, संन्यास उपनिषद्
४८.मण्डलब्राह्मण उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४९.दक्षिणामूर्ति उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
५०.शरभ उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
५१.स्कन्द उपनिषद् (त्रिपाड्विभूटि) = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
५२.महानारायण उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
५३.अद्वयतारक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
५४.रामरहस्य उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
५५.रामतापणि उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
५६.वासुदेव उपनिषद् = साम वेद, वैष्णव उपनिषद्
५७.मुद्गल उपनिषद् = ऋग् वेद, सामान्य उपनिषद्
५८.शाण्डिल्य उपनिषद् = अथर्व वेद, योग उपनिषद्
५९.पैंगल उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
६०.भिक्षुक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
६१.महत् उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्
६२.शारीरक उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
६३.योगशिखा उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
६४.तुरीयातीत उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
६५.संन्यास उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्
६६.परमहंस-परिव्राजक उपनिषद् = अथर्व वेद, संन्यास उपनिषद्
६७.अक्षमालिक उपनिषद् = ऋग् वेद, शैव उपनिषद्
६८.अव्यक्त उपनिषद् = साम वेद, वैष्णव उपनिषद्
६९.एकाक्षर उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
७०.अन्नपूर्ण उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
७१.सूर्य उपनिषद् = अथर्व वेद, सामान्य उपनिषद्
७२.अक्षि उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
७३.अध्यात्मा उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
७४.कुण्डिक उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्
७५.सावित्रि उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्
७६.आत्मा उपनिषद् = अथर्व वेद, सामान्य उपनिषद्
७७.पाशुपत उपनिषद् = अथर्व वेद, योग उपनिषद्
७८.परब्रह्म उपनिषद् = अथर्व वेद, संन्यास उपनिषद्
७९.अवधूत उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
८०.त्रिपुरातपनि उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
८१.देवि उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
८२.त्रिपुर उपनिषद् = ऋग् वेद, शाक्त उपनिषद्
८३.कठरुद्र उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
८४.भावन उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
८५.रुद्र-हृदय उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
८६.योग-कुण्डलिनि उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
८७.भस्म उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
८८.रुद्राक्ष उपनिषद् = साम वेद, शैव उपनिषद्
८९.गणपति उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
९०.दर्शन उपनिषद् = साम वेद, योग उपनिषद्
९१.तारसार उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, वैष्णव उपनिषद्
९२.महावाक्य उपनिषद् = अथर्व वेद, योग उपनिषद्
९३.पञ्च-ब्रह्म उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
९४.प्राणाग्नि-होत्र उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
९५.गोपाल-तपणि उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
९६.कृष्ण उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
९७.याज्ञवल्क्य उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
९८.वराह उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
९९.शात्यायनि उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
१००.हयग्रीव उपनिषद् (१००) = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
१०१.दत्तात्रेय उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
१०२.गारुड उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
१०३.कलि-सन्तारण उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, वैष्णव उपनिषद्
१०४.जाबाल उपनिषद् (सामवेद) = साम वेद, शैव उपनिषद्
१०५.सौभाग्य उपनिषद् = ऋग् वेद, शाक्त उपनिषद्
१०६.सरस्वती-रहस्य उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शाक्त उपनिषद्
१०७.बह्वृच उपनिषद् = ऋग् वेद, शाक्त उपनिषद्
१०८.मुक्तिक उपनिषद् (१०८) = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद|
[2/22, 11:48] राम भवनमणि त्रिपाठी: रामभवन मणि त्रिपाठी
गोरखपुर

मैंने पूछा साँप से दोस्त बनेंगे आप। नहीं महाशय ज़हर में आप हमारे बाप।।
कुत्ता रोया फूटकर यह कैसा जंजाल। सेवा नमकहराम की करता नमकहलाल।
बीज बनाये पेड़ को, पेड़ बनाये बीज। परिवर्तन होता सतत, बदलेगी हर चीज।।
बारिश चाहे लाख हों, याद नहीं धुल पाय। याद करें जब याद को, दर्द बढ़ाती जाय।।
[2/22, 11:49] ओमीश Omish Ji: प्रथमावृत्तौ पुस्तक बोधः,
द्वितीयावृत्तौ किञ्चित् बोधः |
तृतीयावृत्तौ सम्यक् बोधः
पुनरावृत्तौ तत्वाबोधः ||

उत्तिष्ठत्  , जाग्रत्  , प्राप्य , वरान्  अवबोधत्  .... |🙏🙏
[2/22, 12:25] ओमीश Omish Ji: सदा स्वराज्यप्रजासेनाकोशधर्मविद्यासुशिक्षा वर्धनीयाः !
सदा (नित्यप्रति) अपना राज्य प्रजा सेना कोश धर्म विद्या और श्रेष्ठ शिक्षा बढाते रहना चाहिये...आचार्य 🙏
[2/22, 12:42] पं ऊषा जी: सभी को नमन।
उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्यवरान्निबोधत..
संस्कृत अजन्तभाषा है। हिन्दी में अन्तिम अक्षर को हल की तरह बोला जाता है। अतः अजन्तता लुप्त है। ध्यान रखें, इसका प्रभाव संस्कृत पर न पड़े। संस्कृत के शब्दों को बोलते समय अन्तिम हल् में जब तक हलन्त नहीं होता, तब तक उसको अ-के साथ बोलें।
[2/22, 13:07] ओमीश Omish Ji: विजया एकादशी व्रत 22 फरवरी: 🙏🙏
कथा पढ़ने व सुनने से मिलेगा वाजपेय यज्ञ का फल
स्कंदपुराण में फाल्गुन कृष्ण पक्ष की 'विजया एकादशी' का वर्णन इस प्रकार हुआ है। युधिष्ठिर महाराज जी के आग्रह पर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, "इस एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इस व्रत का पालन करने से नि:संदेह विजय की प्राप्ति होती है तथा साथ ही इस व्रत का पालन करने से आनुषंगिक फल से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।"

एक बार नारद जी ने ब्रह्मा जी से प्रश्न किया था, "हे देवश्रेष्ठ! फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी की महिमा हमें सुनाएं।"

नारद जी की जिज्ञासा का उत्तर देते हुए ब्रह्मा जी ने कहा नारद जी! ये प्राचीन व्रत बड़ा पवित्र तथा पाप नाशकारी है। सच तो यह है कि यह व्रत अपने नाम के अनुसार व्रत पालनकारी को विजय दिलाता है। जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचंद्र जी अपने पिताजी की आज्ञा का पालन करने हेतु चौदह वर्ष के लिए भाई लक्ष्मण एवं पत्नी सीता जी के साथ वन को गए तब उन्होंने गोदावरी नदी के तट पर पंचवटी नाम के एक सुदंर वन में निवास किया। वहीं पर राक्षसराज रावण, परम तपस्विनी सीता देवी जी को अपहरण करके ले गया था। सीता जी के विरह में भगवान श्रीरामचंद्र जी अत्यंत विरह वियाकुल हो गए अौर वन-वन में सीता जी की खोज करने लगे। इसी प्रकार मरणोंमुखी पक्षीराज जटायु का भगवान श्रीरामचंद्र जी से मिलन हुआ। जटायु ने सीता हरण की सारी घटना प्रभु श्रीराम जी को सुनाई तथा सीता हरण की सारी घटना बताकर भगवान श्रीराम जी की कृपा प्राप्त कर जटायु ने शरीर त्याग दिया अौर स्वर्ग लोक को चले गए।

इसके बाद भगवान श्रीराम सीताजी की खोज करते हुए ऋष्यमूक पर्वत पर गए। वहां उन्होंने वानरराज सुग्रीव से मित्रता की। सुग्रीव ने भगवान श्रीराम जी की मदद करने के उद्देश्य से अपनी सारी वानर सेना इकट्ठी की तथा माता सीता जी का पता लगाने के लिए दसों दिशाअों में वानरों को भेजा। उनमें से हनुमान जी पक्षीराज संपाति के निर्देशानुसार समुद्र को लांघ कर लंका में गए। वहां उन्होंने अशोक वाटिका में सीता जी से भेंट की जानकी जी को विश्वास दिलाने के लिए भगवान श्रीराम जी के द्वारा दी हुई निशानी के रूप में उन्हें अंगूठी समर्पित की। उसके पश्चात लंका दहन, अक्षयकुमार वध आदि पराक्रम दिखा कर वापिस भगवान श्रीरामचंद्र जी के पास आए अौर भगवान श्रीराम जी को संपूर्ण वृतांत कह सुनाया।

हनुमान जी से सारी घटना सुनकर भगवान श्रीराम जी ने अपने मित्र सुग्रीव जी के साथ विचार-विमर्श करके सारी वानर सेना के साथ लंका जाने का निर्णय लिया अौर विशाल वानर सेना को लेकर श्रीराम जी अपने भाई लक्ष्मणजी के साथ सागर तट पर पहुंचे। तब वहां वे अपने भाई लक्ष्मणजी से बोले, हे सुमित्रानंदन! बड़े-बड़े भयानक जल जंतुअों, तिमि तिमिंगल व मगरमच्छों से पूर्ण इस भयंकर विशाल समुद्र को कैसे पार करें? लक्ष्मण जी ने कहा, हे पुराण पुरुषोत्तम! हे देवाधिदेव! भगवान राघवेंद्र! प्रभो! इस द्वीप में बकदालभ्य नाम के ऋषि रहते हैं। यहां से लगभग आधा योजन अर्तात दो कोस की दूरी पर ही उनका आश्रम है। हे रघुनंदन! उन्होंने ब्रह्माजी का साक्षात् दर्शन प्राप्त किया हुआ है। अत: आप उन्हीं महामना महर्षि जी से समुद्र पार जाने का उपाय पूछिए।

लक्ष्मण जी की बात सुनकर भगवान श्रीरामचंद्र बकदालभ्य ऋषि के आश्रम पर गए तथा वहां जाकर उन्होंने बड़े आदर के साथ महर्षि को प्रणाम किया। बकदालभ्य ऋषि सर्वज्ञ थे। भगवान श्रीराम का दर्शन करते ही जान गए कि ये साक्षात् भगवान हैं। रावण आदि अधार्मिक लोगों का वध अौर धर्म की स्थापना हेतु ये इस मृत्युलोक में प्रकट हुए हैं। तब भी अौपचारिकतावश ऋषि ने पूछा हे सर्वेश्वर! हे धर्म संस्थापक श्री राम! मेरी कुटिया पर आपका शुभागमन किस कारण हुआ में आपकी क्या सेवा कर सकता हूं, आदेश कीजिए।

ऋषि की बात सुनकर भगवान श्रीराम जी ने कहा, हे ऋषिवर दुष्ट रावण को युद्ध में पराजित करके उसका वध करने कते लिए मैं अपनी सैन्य वाहिनी लेकर समुद्र तट पर आया हूं। लेकिन में इस दुष्पार सुमद्र को कैसे पार करूं, उसके लिए आप कोई सुगम उपाय बताएं, इसी कारण मैं आपके पास आया हूं।

भगवान श्रीराम जी की बात सुनकर ऋषि बोले, हे भगवान मैं आपको सभी व्रतों में एक उत्तम व्रत के बारे में बताऊंगा। जिसके पालन करने से आपको अवश्य ही विजय प्राप्त होगी। तथा लंका पर विजय प्राप्त करके आप विश्व में अपनी पवित्र कीर्ति स्थापित करेंगे। आप उस व्रत को बड़े प्यार अौर श्रद्धा से पालन करें। वह व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस व्रत का पालन करने से आपको समुद्र पार करने में कोई कठिनाई नहीं आएगी तथा आने वाले सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा। इस व्रत को पालन करने का विधान सुनिए। दशमी के दिन सोना, चांदी, तांबा अथवा मिट्टी के एक घड़ा पानी से भरकर रखें। उस पर आम के पत्ते सजा दें। इसके बाद सुदंर एवं पवित्र स्थान पर एक वेदी की स्थापना करें। सात प्रकार के अनाज रखकर इस कलश को उस वेदी पर रखें तथा उस कलश के ऊपर सोने से बनी भगवान नारायण की प्रतिमा रखें। एकादशी के दिन तुलसी, गंध, पुष्प, माला, धूप, दीप तथा नैनेद्य आदि सामग्रियों द्वारा बड़ी श्रद्धा के साथ भगवान नारायण की पूजा करें अौर सारा दिन व सारी रात उसी प्रतिमा के सामने बैठकर श्रीनारायण नाम का जप करते हुए जागरण करें। द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद किसी पवित्र नदी अथवा जलाशय के पास जा करके कलश की यथाविधि पूजा करके किसी निष्ठावान सदाचार संपन्न ब्राह्मण को अन्न, वस्त्र व धन आदि द्रव्यों के साथ कलश को दान करें। इससे आपको अवश्य ही विजय लाभ होगी।

भगवान श्रीरामचंद्रजी ने उन ऋषि के उपदेशानुसार एकादशी व्रत के पालन का आदर्श दिखाया अौर उसके फलस्वरूप लंका पर विजय पाई। ब्रह्माजी ने नारद जी को कहा, हे प्रभु! जो व्यक्ति विधि-विधान के साथ इस व्रत का पालन करता है, वह इस लोक में अथवा परलोक में सर्वत्र ही विजय प्राप्त कर सकता है। हे प्रभु यह व्रत विजय दिलाने के साथ-साथ व्रतकारी के सभी पापों को भी नाश कर देता है। इस कारण प्रत्येक मनुष्य को इस विजया एकादशी व्रत का पालन करना चाहिए। इस व्रत की महिमा सुनने से व पढ़ने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
[2/22, 13:07] ओमीश Omish Ji: *💫💫विजया इकादशी💫💫*
🌻🌸🌻🌸🌻🌸🌻🌸🌻🌸🌻
*विशेष ~ 22 फरवरी 2017 बुधवार  एकादशी का व्रत (उपवास) रखें ।*

🙏🏻 *युधिष्ठिर ने पूछा: हे वासुदेव! फाल्गुन (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार माघ) के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है और उसका व्रत करने की विधि क्या है? कृपा करके बताइये ।*

🙏🏻 *भगवान श्रीकृष्ण बोले: युधिष्ठिर ! एक बार नारदजी ने ब्रह्माजी से फाल्गुन के कृष्णपक्ष की ‘विजया एकादशी’ के व्रत से होनेवाले पुण्य के बारे में पूछा था तथा ब्रह्माजी ने इस व्रत के बारे में उन्हें जो कथा और विधि बतायी थी, उसे सुनो :*

🙏🏻 *ब्रह्माजी ने कहा : नारद ! यह व्रत बहुत ही प्राचीन, पवित्र और पाप नाशक है । यह एकादशी राजाओं को विजय प्रदान करती है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है ।*

🙏🏻 *त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र के किनारे पहुँचे, तब उन्हें समुद्र को पार करने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था । उन्होंने लक्ष्मणजी से पूछा : ‘सुमित्रानन्दन ! किस उपाय से इस समुद्र को पार किया जा सकता है ? यह अत्यन्त अगाध और भयंकर जल जन्तुओं से भरा हुआ है । मुझे ऐसा कोई उपाय नहीं दिखायी देता, जिससे इसको सुगमता से पार किया जा सके ।‘*

🙏🏻 *लक्ष्मणजी बोले : हे प्रभु ! आप ही आदिदेव और पुराण पुरुष पुरुषोत्तम हैं । आपसे क्या छिपा है? यहाँ से आधे योजन की दूरी पर कुमारी द्वीप में बकदाल्भ्य नामक मुनि रहते हैं । आप उन प्राचीन मुनीश्वर के पास जाकर उन्हींसे इसका उपाय पूछिये ।*

🙏🏻 *श्रीरामचन्द्रजी महामुनि बकदाल्भ्य के आश्रम पहुँचे और उन्होंने मुनि को प्रणाम किया । महर्षि ने प्रसन्न होकर श्रीरामजी के आगमन का कारण पूछा ।*

🙏🏻 *श्रीरामचन्द्रजी बोले : ब्रह्मन् ! मैं लंका पर चढ़ाई करने के उद्धेश्य से अपनी सेनासहित यहाँ आया हूँ । मुने ! अब जिस प्रकार समुद्र पार किया जा सके, कृपा करके वह उपाय बताइये ।*

🙏🏻 *बकदाल्भय मुनि ने कहा : हे श्रीरामजी ! फाल्गुन के कृष्णपक्ष में जो ‘विजया’ नाम की एकादशी होती है, उसका व्रत करने से आपकी विजय होगी । निश्चय ही आप अपनी वानर सेना के साथ समुद्र को पार कर लेंगे । राजन् ! अब इस व्रत की फलदायक विधि सुनिये :*

🙏🏻 *दशमी के दिन सोने, चाँदी, ताँबे अथवा मिट्टी का एक कलश स्थापित कर उस कलश को जल से भरकर उसमें पल्लव डाल दें । उसके ऊपर भगवान नारायण के सुवर्णमय विग्रह की स्थापना करें । फिर एकादशी के दिन प्रात: काल स्नान करें । कलश को पुन: स्थापित करें । माला, चन्दन, सुपारी तथा नारियल आदि के द्वारा विशेष रुप से उसका पूजन करें । कलश के ऊपर सप्तधान्य और जौ रखें । गन्ध, धूप, दीप और भाँति भाँति के नैवेघ से पूजन करें । कलश के सामने बैठकर उत्तम कथा वार्ता आदि के द्वारा सारा दिन व्यतीत करें और रात में भी वहाँ जागरण करें । अखण्ड व्रत की सिद्धि के लिए घी का दीपक जलायें । फिर द्वादशी के दिन सूर्योदय होने पर उस कलश को किसी जलाशय के समीप (नदी, झरने या पोखर के तट पर) स्थापित करें और उसकी विधिवत् पूजा करके देव प्रतिमासहित उस कलश को वेदवेत्ता ब्राह्मण के लिए दान कर दें । कलश के साथ ही और भी बड़े बड़े दान देने चाहिए । श्रीराम ! आप अपने सेनापतियों के साथ इसी विधि से प्रयत्नपूर्वक ‘विजया एकादशी’ का व्रत कीजिये । इससे आपकी विजय होगी ।*

🙏🏻 *ब्रह्माजी कहते हैं : नारद ! यह सुनकर श्रीरामचन्द्रजी ने मुनि के कथनानुसार उस समय ‘विजया एकादशी’ का व्रत किया । उस व्रत के करने से श्रीरामचन्द्रजी विजयी हुए । उन्होंने संग्राम में रावण को मारा, लंका पर विजय पायी और सीता को प्राप्त किया । बेटा ! जो मनुष्य इस विधि से व्रत करते हैं, उन्हें इस लोक में विजय प्राप्त होती है और उनका परलोक भी अक्षय बना रहता है ।*

🙏🏻 *भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : युधिष्ठिर ! इस कारण ‘विजया’ का व्रत करना चाहिए । इस प्रसंग को पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है ।*
🌻🌸🌻🌸🌻🌸🌻🌸🌻🌸🌻
[3/3, 10:30] ओमीश Omish Ji: ग्रुप नहीं ये परिवार है,
बसता जहाँ प्यार है।

सुख के तो साथी हजार है
यहां सब जिंदगी के आधार है🙏🏼🌺🙏
[3/3, 10:33] ओमीश Omish Ji: ग्रुप नहीं ये परिवार है,
अपनों का जहाँ प्यार है।

सुख के तो साथी हजार है,
लेकिन - - -
यहां सब जिंदगी के आधार है🙏🏼🌺🙏
[3/3, 11:02] ‪+91 91656 66823‬: ब्राह्मण कौन है?
✨✨✨✨✨✨
ब्राह्मण जप से पैदा हुई शक्ति का नाम है,
ब्राह्मण त्याग से जन्मी भक्ति का धाम है।
✨✨✨✨✨✨
ब्राह्मण ज्ञान के दीप जलाने का नाम है
ब्राह्मण विद्या का प्रकाश फैलाने का काम है।
✨✨✨✨✨✨
ब्राह्मण स्वाभिमान से जीने का ढंग है,
ब्राह्मण सृष्टि का अनुपम अमिट अंग है।
✨✨✨✨✨✨
ब्राह्मण विकराल हलाहल पीने की कला है,
ब्राह्मण कठिन संघर्षों को जीकर ही पला है।
✨✨✨✨✨✨
ब्राह्मण ज्ञान, भक्ति, त्याग, परमार्थ का प्रकाश है,
ब्राह्मण शक्ति, कौशल, पुरुषार्थ का आकाश है।
✨✨✨✨✨✨
ब्राह्मण न धर्म, न जाति में बंधा इंसान है,
ब्राह्मण मनुष्य के रूप में साक्षात भगवान है।
✨✨✨✨✨✨
ब्राह्मण कंठ में शारदा लिए ज्ञान का संवाहक है,
ब्राह्मण हाथ में शस्त्र लिए आतंक का संहारक है।
✨✨✨✨✨✨
ब्राह्मण सिर्फ मंदिर में पूजा करता हुआ पुजारी नहीं है,
ब्राह्मण घर-घर भीख मांगता भिखारी नहीं है।
✨✨✨✨✨✨
ब्राह्मण गरीबी में सुदामा-सा सरल है,
ब्राह्मण त्याग में दधीचि-सा विरल है।
✨✨✨✨✨
ब्राह्मण विषधरों के शहर में शंकर के समान है,
ब्राह्मण के हस्त में शत्रुओं के लिए परशु कीर्तिवान है।
✨✨✨✨✨✨
ब्राह्मण सूखते रिश्तों को संवेदनाओं से सजाता है,
ब्राह्मण निषिद्ध गलियों में सहमे सत्य को बचाता है।
✨✨✨✨✨✨
ब्राह्मण संकुचित विचारधारों से परे एक नाम है,
ब्राह्मण सबके अंत:स्थल में बसा अविरल राम है।
✨✨✨✨✨✨✨
[3/3, 11:14] ‪+91 91656 66823‬: ब्रज रज जाकूँ मिल गयी,
वाकी चाह न शेष।
ब्रज की चाहत मैं रहैं,
ब्रह्माँ विष्णु महेश्॥

ब्रज के रस कूँ जो चखै,
चखै न दूसर स्वाद।
एक बार राधे कहै,
तौ रहै न कछु और याद॥

ब्रज की महिमा को कहै,
को बरनै ब्रज धाम्।
जहाँ बसत हर साँस मैं,
श्री राधे और श्याम्॥

*जय श्री कृष्णा*
[3/3, 11:25] ‪+91 91656 66823‬: यदि संस्कृतं न भवति तर्हि संस्कृतिः न भवति
यदि संस्कृतं न भवति तर्हि संस्करः न भवति
यदि संस्कृतं न भवति तर्हि सदाचारः न भवति
यदि संस्कृतं न भवति तर्हि भारतं भारतं न भवति

यदि संस्कृतं न वर्धते तर्हि संस्कृतिः न वर्धते
यदि संस्कृतिः न वर्धते तर्हि संस्कारः न वर्धते
यदि संस्कारः न वर्धते तर्हि ज्ञानं न वर्धते
यदि ज्ञानं न वर्धते तर्हि भारतं न वर्धते

संस्कृतभारतं नाम समर्थभारतम्
संस्कृतभारतं नाम विज्ञानभारतम्
संस्कृतभारतं नाम जगद्गुरुभारतम्
संस्कृतभरतं नाम श्रेष्ठभारतम्                       

सत्ययुगसाधनाय संस्कृतम् आवश्यकम्
त्रेतायुगसाधनाय संस्कृतम् आवश्यकम्
द्वापरयुगसाधनाय संस्कृतम् आवश्यकम्
कलियगुभञ्जनाय संस्कृतम् आवश्यकम्

सत्यकालसाधनाय संस्कृतम् आवश्यकम्
रामकार्यसाधनाय संस्कृतम् आवश्यकम्
कृष्णकार्यसाधनाय संस्कृतम् आवश्यकम्
मुक्तिकार्यसाधनाय संस्कृतम् आवश्यकम्

धर्मकार्यसाधनाय संस्कृतम् आवश्यकम्
अर्थकार्यसाधनाय संस्कृतम् आवश्यकम्
कामकार्यसाधनाय संस्कृतम् आवश्यकम्
मोक्षकार्यसाधनाय संस्कृतम् आवश्यकम् ।।
संस्कृतम् आवश्यकं, संस्कृतम् आवश्यकम्।।
[3/3, 12:01] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूल श्लोकः 🔔*
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्।
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्।।२. २१।।
*🏹पदच्छेदः........*
वेद, अविनाशिनम्, नित्यम्, यः, एनम्, अजम्, अव्ययम्।
कथम्, सः, पुरुषः, पार्थ, कम्, घातयति, हन्ति, कम्।।
*🌹पदपरिचयः......🌹*
वेद —विद् -पर. कर्तरि लट्.प्रपु.एक.
अविनाशिनम् —अविनाशिन् - न.पुं.द्वि.एक.
नित्यम् —अ. पुुं. द्वि. एक.
यः — यद्-द. सर्व. पुं. प्र. एक.
एनम् —एतद्-द. सर्व. पुं.द्वि.एक.
अजम् —अ. पुं. द्वि. एक.
अव्ययम् —अ. पुं. द्वि. एक.
कथम् —अव्ययम्
सः —तद् -द. सर्व. पुं. प्र. एक.
पुरुषः —अ. पुं. प्र. एक.
पार्थ —अ. पुं. सम्बो. एक.
कम् —किम् -म. सर्व. पुं. द्वि. एक.
घातयति —हन् (णिच्)पर.कर्तरि लट्. प्रपु. एक.
हन्ति —हन् -पर. कर्तरि लट्. प्रपु. एक.
*🌷पदार्थः...... 🌷*
पार्थ —हे अर्जुन !
यः — यः पुरुषः
एनम् —अमुम् (आत्मानम्)
अविनाशिनम् —नाशरहितम्
नित्यम् —शाश्वतम्
अजम् —जन्मरहितम्
अव्ययम् —क्षयविहीनम्
वेद —जानाति
सः पुरुषः — सः मानवः
कम् — कं पुरुषम्
कथम् — केन प्रकारेण
घातयति —विनाशयति
कं हन्ति — कं मारयति
*🌻अन्वयः 🌻*
पार्थ, यः एनम् अविनाशिनं नित्यम् अजम् अव्ययम् च वेद सः पुरुषः कं कथं घातयति? कं हन्ति?
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_घातयति।_
कः घातयति, हन्ति?
*पुरुषः घातयति, हन्ति।*
पुरुषः कथं घातयति, हन्ति?
*पुरुषः इत्थं घातयति, हन्ति।*
पुरुषः कथं घातयति, कं हन्ति?
*पुरुषः इत्थं तं घातयति, तं हन्ति।*
कः पुरुषः इत्थं घातयति, तं हन्ति?
*यः वेद सः पुरुषः कथं घातयति,कं  हन्ति?*
सः कं वेद यः पुरुषः इत्थं तं घातयति, तं हन्ति?
*यः एनं वेद सः पुरुषः कथं कं घातयति, कं हन्ति?*
सः एनं कीदृशं वेद यः पुरुषः इत्थं तं घातयति, तं हन्ति?
*यः एनम् अविनाशिनं वेद सः पुरुषः कथं कं घातयति,कं हन्ति?*
सः एनम् अविनाशिनं पुनश्च कीदृशं वेद यः पुरुषः इत्थं तं घातयति, तं हन्ति?
*यः एनम् अविनाशिनं नित्यं वेद सः पुरुषः कथं कं घातयति,कं हन्ति?*
सः एनम् अविनाशिनं नित्यं पुनश्च कीदृशं वेद यः पुरुषः इत्थं तं घातयति,तं हन्ति?
*यः एनम् अविनाशिनम् नित्यम् अजं वेद सः पुरुषः कथं कं घातयति, कं हन्ति?*
सः एनम् अविनाशिनं नित्यम् अजं पुनश्च कीदृशं वेद यः पुरुषः इत्थं तं घातयति, तं हन्ति?
*यः एनम् अविनाशिनं नित्यं अजम् अव्ययं च वेद सः पुरुषः कथं कं घातयति,कं हन्ति?*
*📢 तात्पर्यम्......*
अयम् आत्मा विनाशरहितः, नित्यः, जन्मरहितः, अपक्षयरहितश्च इति यः जानाति सः ज्ञानी एव। तादृशज्ञानवान् पुरुषः अन्यं कथं वा हन्ति? कथं वा हनने अन्यं प्रेरयति?
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
वेदाविनाशिनम् = वेद + अविनाशिनम् - सवर्णदीर्घसन्धिः।
य एनम् = यः एनम् - विसर्गसन्धिः (लोपः)।
स पुरुषः = सः + पुरुषः -विसर्गसन्धिः (लोपः)।
पुराणो न = पुराणः + न - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः।
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                              *गीताप्रवेशात्*
[3/3, 18:53] प विजय विजयभान: श्री हनुमान जी मुद्रिका गिराने के बाद जब माता सीता जी के समक्ष जाते है तब कहते हैं।
राम दूत मैं मातु जानकी ।
सत्य सपथ करुनानिधान की।।
सुन्दर काण्ड दोहा 13।9
यह करुना निधान किसका नाम है और किसने यह नाम रखा था। जिज्ञासा
[3/3, 19:10] राम भवनमणि त्रिपाठी: करुनानिधान श्री राम का नाम है
यह नाम माता सीता ने रक्खा है
और श्री राम ने श्री सीता माता का नाम जानकी रक्खा है कोई भी
पति पत्नी की आपस में प्रेम
भाव से निजी पुकार होता है
यह शब्द केवल राम व् जानकी
के मध्य था अतः हनुमान जी ने
सीता जी को विश्वास दिलाने के
लिए करुणा निधान शब्द का प्रयोग
किया
गलतियों के लिए छमा
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[3/3, 19:18] प विजय विजयभान: आदरणीय त्रिपाठी जी करुना निधान श्री राम का नाम है यहाँ तक तो सत्य है पर किसने ये नाम दिया यह विचारणीय है।
और इसमें क्षमा मांगने की आवश्यता नहीं है।यह तो जिज्ञासा बस मेने जानना चाहा।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[3/3, 19:41] P anuragi. ji: प्रणमामि देव

  करुनानिधान शब्द  प्रथमतः  माँ भवानी की पूजा के उपरान्त श्री किशोरी जी को  माँ गिरिजा द्वारा प्रयुक्त हुआ ।

करुणानिधान सुजान सील *********

अतः  मेरे स्वल्प मत से माँ गिरिजा द्वारा प्रदत्त माना जाय ।
[3/3, 19:44] P anuragi. ji: वैसे यह शब्द  श्री मानस जी में इन दो स्थानों के अलांवां भी प्रयुक्त हुआ है
     यथा
    एक बानि करुणानिधान की ।
      सो प्रिय जाके गति न आन की ।।
[3/3, 20:09] P anuragi. ji: पुनरपि अभिवादनं  देव

       जनक सुता जग जननि जानकी
        अतिसय प्रिय करूणानिधान की
[3/3, 20:18] प विजय विजयभान: शब्दों के सृजन का विचार आते ही ओष्ठ बन्द हो गये और कहा क्या कहें फिर भी निर्मल हृदय से  वन्दन अभिनन्दन 🙏
अकाट्य सत्य आदरणीय गुरुदेव अनुरागी जी
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
[3/3, 20:29] ‪+91 98896 25094‬: निवेदन -----------

हे मेरे बिहारी जी......
"रहता हूं किराये की काया में,
रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूं...!
-
मेरी औकात है बस मिट्टी जितनी,
बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूं...!
-
जल जायेगी ये मेरी काया ऐक दिन,
फिर भी इसकी खूबसूरती पर इतराता हूं...!
-
मुझे पता हे मैं खुद के सहारे श्मशान तक भी ना जा सकूंगा,
इसीलिए जमाने को अपना बनाता हूँ ...!!"
[3/3, 22:36] पं ऊषा जी: प्रभु से मानसिक वार्तालाप -1-

1. हे नाथ! आप मुझे मुझसे अधिक जानते है । इसलिए मेरी इच्छा कभी पूर्ण न हो । आपकी इच्छा पूर्ण हो ।

2. हे नाथ! मेरे मन, वचन, कर्म से कभी भी किसी को भी किंचिन्मात्र दुःख न पहुँचे यह कृपा बनाये रखे ।

3. हे नाथ! मैं कभी न पाप देखूँ, न सुनू और न किसी के पाप का बखान करूँ ।

4. हे नाथ! शरीर के सभी इन्द्रियों से आठो पहर केवल आपके प्रेम भरी लीला का ही आस्वादन करता रहूँ ।

5. हे नाथ! प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थिति में भी आपके मंगलमय विधान देख सदैव प्रसन्न रहूँ ।

6. हे नाथ! अपने ऊपर महान से महान विपत्ति आने पर भी दूसरों को खुशी दिया करू ।

7. हे नाथ! अगर कभी किसी कारणवश मेरे वजह से किसी को दुःख पहुँचे तो उसी समय उसके चरणों में पड़कर क्षमा माँग लू ।

8. हे नाथ! आठो पहर रोम रोम से आपके नाम का जप होता रहे ।

9. हे नाथ! मेरे आचरण श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीरामचरितमानस के अनुकूल हो ।

10. हे नाथ! हरेक परिस्थिति में आपकी कृपा के दर्शन हो ।

🍃🍃🍃🍃
[3/3, 22:36] पं ऊषा जी: गणान्तर से 🙏😊
[3/3, 23:08] P anuragi. ji: प्रत्येक  शब्द  वंदन  और अभिनंदन  की सीमारेखा के आगे  ममता  और समता के प्रदेश में प्रतिस्थापित !!!
        प्रतिशब्द प्रेषित करने में अक्षम
                    अनुरागी जी
[3/3, 23:35] ‪+91 98239 16297‬: *सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे दैनिक पंचांग-- ०४
मार्च २०१७* *गुरुपालट*

***!!श्री मयूरेश्वर प्रसन्न!!***
☀धर्मशास्त्रसंमत प्राचीन शास्त्रशुद्ध सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग (पुणे) नुसार
दिनांक ०४ मार्च २०१७
*राष्ट्रीय भारतीय सौर दिनांक* १३ फाल्गुन,शके १९३८
पृथ्वीवर अग्निवास १०:१६ नंतर.
शुक्र मुखात आहुती आहे.
शिववास नंदीवर १०:१६ पर्यंत नंतर भोजनात,काम्य शिवोपासनेसाठी १०:१६ पर्यंत शुभ नंतर अशुभ दिवस आहे.
☀ *सूर्योदय* -०६:५५
☀ *सूर्यास्त* -१८:३७
*शालिवाहन शके* -१९३८
*संवत्सर* -दुर्मुख
*अयन* -उत्तरायण
*ऋतु* -शिशिर (सौर)
*मास* -फाल्गुन
*पक्ष* -शुक्ल
*तिथी* -षष्ठी (१०:१६ पर्यंत)
*वार* -शनिवार
*नक्षत्र* -कृत्तिका
*योग* -वैधृती
*करण* -तैतिल (१०:१६ नंतर गरज)
*चंद्र रास* -मेष (०७:३५ नंतर वृषभ)
*सूर्य रास* -कुंभ
*गुरु रास* -तुळ
*राहु काळ* -०९:०० ते १०:३०
*पंचांगकर्ते*:सिद्धांती ज्योतिषरत्न गणकप्रवर
*पं.गौरवशास्त्री देशपांडे-०९८२३९१६२९७*
*विशेष*-सूर्याचा पू.भा.नक्षत्र प्रवेश १९:३८,गुरुचा कन्या राशी प्रवेश २२:३८,अमृतयोग १०:१६ पर्यंत,त्रिपुष्करयोग १०:१६ ते २४:२०,रवियोग १९:३८ ते २४:२०, *गुरुपालट पुण्यकाल,दानधर्म व राशीफल यासंबंधी धर्मशास्त्रसंमत उपयुक्त माहितीसाठी सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग पान क्र.१९ पहावे.*या दिवशी पाण्यात काळेतीळ घालून स्नान करावे.शनि वज्रपंजर कवच व प्रज्ञाविवर्धन स्तोत्राचे पठण करावे."रां राहवे नमः" या मंत्राचा किमान १०८ जप करावा.सत्पात्री व्यक्तिस काळे वस्त्र दान करावे.शनिदेवांना उडीद वड्याचा नैवेद्य दाखवावा.यात्रेसाठी घरातून बाहेर पडताना उडीद प्राशन करुन बाहेर पडल्यास प्रवासात ग्रहांची अनुकूलता प्राप्त होईल.
*विशेष टीप* - *आगामी नूतन संवत्सरारंभी येणारा गुढीपाडवा सूर्यसिद्धांतीय पंचांगानुसार म्हणजेच मुख्यतः धर्मशास्त्रानुसार या वेळी मंगळवार दि.२८ मार्च २०१७ रोजी नसून बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजी आहे.कारण सूर्यसिद्धांत गणितानुसार दि.२८ मार्च रोजी सूर्योदयास अमावस्या तिथी आहे व दि.२९ मार्च रोजी सूर्योदयास प्रतिपदा तिथी आहे.याची विशेष नोंद हिंदूंनी घ्यावी व सर्वांनी गुढी-ब्रह्मध्वज पूजन हे चैत्र शु.प्रतिपदेला बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजी करावे.*
www.facebook.com/DeshpandePanchang
*टीप*-->>सर्व कामांसाठी प्रतिकूल दिवस आहे.
**या दिवशी तेल खावू नये.
**या दिवशी निळे वस्त्र परिधान करावे.
*आगामी नूतन संवत्सराचे सर्वांना उपयुक्त व फायदेशीर असे धर्मशास्त्रसंमत सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग सर्वत्र उपलब्ध आहे.*
♦ *लाभदायक वेळा*-->>
लाभ मुहूर्त--  दुपारी २.१५ ते दुपारी ३.४५
अमृत मुहूर्त--  दुपारी ३.४५ ते सायंकाळी ५.१५
|| *यशस्वी जीवनाचे प्रमुख अंग* ||
|| *सूर्यसिध्दांतीय देशपांडे पंचांग* ||
आपला दिवस सुखाचा जावो,मन प्रसन्न राहो.
(कृपया वरील पंचांग हे पंचांगकर्त्यांच्या नावासहच व अजिबात नाव न बदलता शेअर करावे.या लहानश्या कृतीने तात्त्विक आनंद व नैतिक समाधान मिळते.@copyright)

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