Friday, March 3, 2017

२७ फरवरी २०१७

[2/25, 07:59] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूल श्लोकः 🔔*
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।
समदुःखसुखं धीरं सोsमृतत्वाय कल्पते।२.१५।।
*🏹पदच्छेदः........*
यम्, हि, न, व्यथयन्ति, एते, पुरुषम्, पुरुषर्षभ।
समदुःखसुखम्, धीरम्, सः, अमृतत्वाय, कल्पते।।
*🌹पदपरिचयः......🌹*
यम् —यद्-द.सर्व.पुं.द्वि.एक.
हि—अव्ययम्
न —अव्ययम्
व्यथयन्ति —व्यथ्-पर.कर्तरि लट्.प्रपु.बहु.
एते—एतद्-द.सर्व.पुं.प्र.बहु.
पुरुषम्—अ.पुं.द्वि.एक.
पुरुषर्षभ—अ. पुं. सम्बो. एक.
समदुःखसुखम् —अ.पुं.द्वि.एक.
धीरम् —अ.पुं.द्वि.एक.
सः —तद्.-द. सर्व. पुं. प्र. एक.
अमृतत्वाय —अ. नपुं. च. एक.
कल्पते —क्लृप् -आत्म. कर्तरि लट्. प्रपु. एक.
*🌷पदार्थः...... 🌷*
पुरुषर्षभ—हे पुरुषश्रेष्ठ! 
एते —मात्रास्पर्शाः
यम् —यम्
समदुःखसुखम् —सुखं च दुःखं च समं मन्यमानम्
धीरम् —मनस्विनम्
न व्यथयन्ति —न पीडयन्ति
सः —सः जनः
अमृतत्वाय —मुक्तये
कल्पते —योग्यः भवति।
*🌻अन्वयः 🌻*
पुरुषर्षभ! एते यं समदुःखसुखं धीरं पुरुषं न व्यथयन्ति सः अमृतत्वाय कल्पते।
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_कल्पते।_
कः कल्पते?
*यं न व्यथयन्ति सः कल्पते।*
यं न व्यथयन्ति सः कस्मै कल्पते?
*यं न व्यथयन्ति सः अमृतत्वाय कल्पते।*
के यं न व्यथयन्ति सः अमृतत्वाय कल्पते?
*एते यं न व्यथयन्ति सः अमृतत्वाय कल्पते।*
एते तं कं न व्यथयन्ति यः अमृतत्वाय कल्पते?
*एते यं पुरुषं न व्यथयन्ति सः अमृतत्वाय कल्पते।*
एते तं कीदृशं पुरुषं न व्यथयन्ति यः अमृतत्वाय कल्पते?
*एते यं समदुःखसुखं पुरुषं न व्यथयन्ति सः अमृतत्वाय कल्पते।*
एते तं समदुःखसुखं पुनश्च कीदृशं पुरुषं न व्यथयन्ति यः अमृतत्वाय कल्पते?
*एते यं समदुःखसुखं धीरं पुरुषं न व्यथयन्ति सः अमृतत्वाय कल्पते।*
*📢 तात्पर्यम्......*
यः जनः सुखं दुःखं च समं मन्यते तं शीतोष्णसुखदुःखकराः विषयसम्बन्धाः किञ्चिदपि न व्यथयन्ति। सोsयं द्वन्द्वसहिष्णुः जनः मोक्षं प्राप्तुं योग्यः भवति।
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
व्यथयन्त्येते = व्यथयन्ति +एते -यण् सन्धिः।
सोsमृतत्वाय=सः + अमृतत्वाय -विसर्गसन्धिः (सकारः) उकारः, गुणः पूर्वरूपं च।
▶ समासः
पुरुषर्षभः = पुरुषः ऋषभः इव-कर्मधारयः।
समदुःखसुखम् =सुखं च दुःखं च सुखदुःखे- द्वन्द्वः।
# समे सुखदुःखे यस्य सः, तम् -बहुव्रीहिः।
▶ तद्धितान्तः
अमृतत्वाय = अमृत +त्व (भावे), तस्मै। मोक्षाय इत्यर्थः।
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                              *गीताप्रवेशात्*
[2/25, 08:19] ‪+91 98896 25094‬: जे वर्णधाम तेली कुम्हार ।
    स्वपच किरात कोल कलवारा ।।

आदरणीय आप सभी से उक्त चौपाई पे मत चाहता हूँ 🙏🙏🙏🙏
[2/25, 08:38] P Alok Ji: जिन्ह हरिभगति हृदय नहि आनी। जीवत सव समान तेइ प्रानी।।जो नहि करहि राम गुन गाना । जीह सो दादुर जीह समाना ।। जिसने भगवान की भक्ति को अपन् हृदय मे स्थान नही दिया वे जीते हि मुर्दे के समान हैं जो जीभ राम क् गुणों का गान नही करती वह मेढक कीजीभ के समान निरर्थक है । पिबत् रामचरित मानस रसम् श्रद्धेय आलोकजी शास्त्री इन्दौर म प्र
[2/25, 09:46] राम भवनमणि त्रिपाठी: रामभवन मणि त्रिपाठी

गोरखपुर

हंसो शुक्लः बको शुक्लः को भेदो बकहंसयो।
नीरक्षीरविवेके तु हंसो हंसः बको बकः॥३७॥

हंस भी सफेद रंग का होता है और बगुला भी सफेद रंग का ही होता है फिर दोनों में क्या भेद (अन्तर) है? जिसमें दूध और पानी अलग कर देने का विवेक होता है वही हंस होता है और विवेकहीन बगुला बगुला ही होता है।

काको कृष्णः पिको कृष्णः को भेदो पिककाकयो।
वसन्तकाले संप्राप्ते काको काकः पिको पिकः॥३८॥

कोयल भी काले रंग की होती है और कौवा भी काले रंग का ही होता है फिर दोनों में क्या भेद (अन्तर) है? वसन्त ऋतु के आगमन होते ही पता चल जाता है कि कोयल कोयल होती है और कौवा कौवा होता है।
[2/25, 10:08] बाबा जी: 🌴🌿सुप्रभातम्🌿🌴
बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारंबिभ्रद् वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् Iरन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन् गोपवृन्दै-र्वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्तिः II श्रीकृष्णजी ग्वालबालों के साथ वृन्दावन में प्रवेश कर रहे हैं, उन्होने मस्तक पर मोर पंख धारण किया हुआ है कानों पर पीले-पीले कनेर के पुष्प, शरीर पर सुन्दर मनोहारी पीताम्बर शोभायमान हो रहा है तथा गले में सुन्दर सुगन्धित पुष्पों की वैजयन्तीमाला धारण किये हैं, रंगमंच पर अभिनय करने वाले नटों से भी सुन्दर और मोहक वेष धारण किये हैं श्यामसुन्दर I बांसुरी को अपने अधरों पर रख कर उसमें अधरामृत फ़ूंक रहे हैं ग्वालबाल उनके पीछे पीछे लोकपावन करने वाली कीर्ती का गायन करते हुए चल रहे हैं, और वृन्दावन आज श्यामसुन्दर के चरणों के कारण वैकुण्ठ से भी अधिक सुन्दर और पावन हो गया है।🌺🙏�🌺
[2/25, 10:28] बाबा जी: ।। श्रीमद्भागवतान्तर्गतं वेणुगीतम् ।।

श्रीशुक उवाच:-
इत्थं शरत्स्वच्छजलं पद्माकरसुगन्धिना ।
न्यविशद्वायुना वातं स गोगोपालकोऽच्युतः ।।

श्री शुकदेवजी कहते हैं – परीक्षित ! शरद ऋतू के कारण वह वन बड़ा सुन्दर हो रहा था । जल निर्मल तह और जलाशयों में खिले हुए कमलों की सुगन्ध से सनकर वायु मन्द-मन्द चल रही थी । भगवान श्री कृष्ण ने गौवों और ग्वाल बालों के साथ उस वन में प्रवेश किया ।।

कुसुमितवनराजिशुष्मिभृङ्ग द्विजकुलघुष्टसरःसरिन्महीध्रम् ।।
मधुपतिरवगाह्य चारयन्गाः सहपशुपालबलश्चुकूज वेणुम् ।।

सुन्दर पुष्पों से परिपूर्ण हरी-हरी वृक्ष-पंक्तियों में मतवाले भौरें स्थान-स्थान पर गुनगुना रहे थे, जिससे उस वन के सरोवर, नदियाँ और पर्वत  सब के सब गूंजते रहते थे । मधुपति श्री कृष्ण ने बलरामजी और ग्वाल-बालों के साथ उसके भीतर घूंसकर गौवों को चराते हुए अपनी बाँसुरी पर बड़ी मधुर तान छेड़ी ।।

तद्व्रजस्त्रिय आश्रुत्य वेणुगीतं स्मरोदयम् ।
काश्चित्परोक्षं कृष्णस्य स्वसखीभ्योऽन्ववर्णयन् ।।
श्री कृष्ण जी की वह बंशीध्वनि भगवान के प्रति प्रेमभाव को उनके मिलन की आकाँक्षा को जगाने वाली थी । (उसे सुनकर गोपियों का हृदय प्रेम से परिपूर्ण हो गया) वे एकान्त में अपनी सखियों से उनके रूप, गुण और बंशीध्वनि के प्रभाव वर्णन करने लगीं ।।
तद्वर्णयितुमारब्धाः स्मरन्त्यः कृष्णचेष्टितम् ।
नाशकन्स्मरवेगेन विक्षिप्तमनसो नृप ।
व्रज की गोपियों ने बंशीध्वनि का माधुर्य आपस में वर्णन करना चाहा तो अवश्य परन्तु वंशी का स्मरण होते ही उन्हें श्रीकृष्ण की मधुर चेष्टाओं की, प्रेमपूर्ण चितवन, भौहों के इशारे और मधुर मुस्कान आदि की याद हो आयी । उनकी भगवान से मिलने की आकाँक्षा और भी बढ़ गयी । उनका मन हाथ से निकल गया । वे मन ही मन वहाँ पहुँच गयी, जहाँ श्रीकृष्ण थे । अब अब उनकी वाणी ब्प्ले कैसे ? वे उसके वर्णन में असमर्थ हो गयी ।।
बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं,
बिभ्रद्वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् ।
रन्ध्रान्वेणोरधरसुधयापूरयन्गोपवृन्दैर्-
वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद्गीतकीर्तिः
श्रीकृष्ण ग्वाल-बालों के साथ वृन्दावन में प्रवेश कर रहे हैं । उनके सिरपर मयूरपिच्छ है और कानों पर कनेर के पीले-पीले पुष्प शरीर पर सुनहला पीताम्बर और गले में पाँच प्रकार के सुगन्धित पुष्पों की बनी बैजयन्ती माला है । रंगमंच पर अभिनय करते हुए श्रेष्ठ नट जैसा क्या सुन्दर वेश है । बाँसुरी के छिद्रों को वे अपने अधरामृत से भर रहे हैं । उनके पीछे-पीछे ग्वालबाल उनकी लोकपावन कीर्ति का गान कर रहे हैं । इस प्रकार वैकुण्ठ से भी श्रेष्ठ वह वृन्दावन धाम उनके उनके चरण चिन्हों से और भी रमणीय बन गया है ।
🌺🌺🙏�🌺🌺
[2/25, 10:35] ‪+91 98896 25094‬: हम को जीवन से जो भी मिले
उसे पचाना सीखना है..

क्योंकि भोजन ना पचने पर चर्बी बढ़ती है.
पैसा ना पचने पर दिखावा बढ़ता है..
बात ना पचने पर चुगली बढ़ती है..
प्रशंसा ना पचने से अहंकार बढ़ता है..
निंदा ना पचने पर दुश्मनी बढ़ती है..
राज़ ना पचने पर खतरा बढ़ता है..
दुख ना पचने पर निराशा बढ़ती है..
और सुख ना पचने पर पाप बढ़ता है..

कड़वा है,
किन्तु सत्य है यह.
[2/25, 10:44] ओमीश Omish Ji: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

तत्कर्म यन्न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये।
आयासायापरं कर्म विद्यऽन्या शिल्पनैपुणम्॥

    —श्रीविष्णुपुराणे १/१९/४१

कर्म वही है, जो (सांसारिक) बन्धन में न डाले ।  विद्या वही है, जो (अज्ञानता रूपी सांसारिक-बंधनों से) मुक्त कर दे। अन्य कर्म तो श्रम मात्र ही हैं , और अन्य विद्याएँ निपुणता मात्र ही हैं। अर्थात् विद्या वह है जो हमें में अज्ञानता के बंधन से मुक्त करे या हमें आत्मनिर्भर बना दे।

             –जय श्रीमन्नारायण।
[2/25, 10:44] ओमीश Omish Ji: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट्
तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः।
तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि॥
              –भागवतम् 1/1/1

जिससे इस जगत की सृष्टि, स्थिति और प्रलय होते हैं , क्यों कि वह सभी सद्रूप पदार्थो में अनुगत है और असत पदार्थो से पृथक है जड़ नहीं चेतन है ; परतंत्र नहीं, स्वयंप्रकाश है ; जो ब्रह्मा अथवा हिरण्यगर्भ नही, प्रयुत उन्हें अपने संकल्प से ही जिसने उस वेदज्ञान का दान किया है ; जिसके संबध में बड़े-बड़े विद्वान् भी मोहित हो जाते है; जैसे तेजोमय सूर्यरश्मियो में जल का, जल में स्थल का और स्थल में जल का भ्रम होता है, वैसे ही जिसमे यह त्रिगुणमयी जाग्रत-स्वप्न-सुषुप्तिरूपा सृष्टि मिथ्या होने पर भी अधिष्ठान- सत्ता से सत्यवत प्रतीत हो रही है, उस अपनी स्वयंप्रकाश ज्योति से सर्वदा और सर्वथा माया और मायाकार्य से पूर्णतः मुक्त रहने वाले परम सत्यरूप परमात्मा का हम ध्यान करते हैं।

1. जन्मादि अस्य - जन्माद्यस्य (इको यणचि। 6.1.77)

2. यतस् अन्वयात् - यत रुँ अन्वयात् (ससजुषो रुँ:। 8.2.66)
  यत उ अन्वयात् (अतोरोरप्लुतादप्लुते। 6.1.113)
  यतो अन्वयात् (आद्गुणः। 6.1.87)
  यतोऽन्वयात् (एङः पदान्तादति। 6.1.109)

3. अन्वयात् इतरतः - अन्वयादितरतः (झलां जशोऽन्ते। 8.2.39)

4. इतरतस् च - इतरतर् च (रुत्वम् by ससजुषो रुँ:। 8.2.66, इत्-कार्यम् by उपदेशेऽजनुनासिक इत्। 1.3.2, तस्य लोपः। 1.3.9)
  इतरतर् च - इतरतः च (खरवसानयोर्विसर्जनीयः। 8.3.15)
  इतरतः च - इतरतस् च (विसर्जनीयस्य सः। 8.3.34)
  इतरतस् च - इतरतश्च (स्तोः श्चुना श्चुः। 8.4.40)

5. च अर्थेषु - चार्थेषु (अकः सवर्णे दीर्घः। 6.1.101)

6. अर्थेषु अभिज्ञः - अर्थेष्वभिज्ञः (इको यणचि। 6.1.77)

7. अभिज्ञस् स्वराट् - अभिज्ञर् स्वराट् (ससजुषो रुँ:। 8.2.66, उपदेशेऽजनुनासिक इत्। 1.3.2, तस्य लोपः। 1.3.9)
   अभिज्ञर् स्वराट् - अभिज्ञः स्वराट् (खरवसानयोर्विसर्जनीयः। 8.3.15)
   अभिज्ञः स्वराट् - अभिज्ञस्स्वराट् (विसर्जनीयस्य सः। 8.3.34)
या अभिज्ञः स्वराट् - अभिज्ञः स्वराट् (वा शरि। 8.3.36)

अभिज्ञः स्वराट् = अभिज्ञस्स्वराट्।

               –रमेशप्रसाद शुक्ल

               –जय श्रीमन्नारायण।
[2/25, 10:49] ‪+91 96859 71982‬: रात को  कान्हा जी  से मुलाकात हुई
थोडी सी ही सही पर बात हुई

मैने आप लोगो के बारे मैं ही पुछा

मेरे ये समूह वाले दोस्त कैसे हैं

कान्हा हँस कर बोले ………
रिश्ता बनाये रखना
सब मेरे जैसे हैं.
जय श्री कृष्ण🙏🏼🙏🏼
[2/25, 11:30] ‪+91 99673 46057‬: राधे राधे, आज का भगवद चिन्तन ॥
               25-02-2017
🌺       आशा दुखदायी अवश्य होती है मगर वो जो सिर्फ दूसरों से रखी जाती है। अथवा वो जो अपनी सामर्थ्य से ज्यादा रखी जाती है और इससे भी ज्यादा दुखदायी निराशा होती है जो कभी कभी स्वयं से हो जाती है।
  🌺     दूसरों से ज्यादा आश रखोगे तो जीवन पल-पल कष्टदायी हो जायेगा और अगर स्वयं से ही निराश हो जाओगे तो जीवन जीने का सारा रस चला जायेगा। याद रखना सीढियाँ तो दूसरों के सहारे भी चढ़ी जा सकती हैं मगर ऊचाईयाँ तक पहुँचाने वाली सीढियाँ स्वयं ही चढ़नी पड़ेंगी।
🌺      वहाँ आप किसी से आशा नहीं रख सकते कि कोई आपका हाथ पकड़ ले, कोई सहायता कर दे। स्वयं से कभी निराश मत होना। स्वयं पर भरोसा रखकर निरंतर समर्पण से लगे रहोगे तो एक दिन लक्ष्य को पाने में जरूर सफल हो जाओगे।

        🙏कल 26-2-2017 रविवार  को अमावस्या  है🙏
[2/25, 12:20] ओमीश Omish Ji: 🙏श्री मते रामानुजाय नमः🙏

अष्टश्लोकि

श्लोक 2

मन्त्रब्रह्मणि मध्यमेन नमसा पुंस स्वरूपं गति: 
गम्यम् शिक्षितमीक्षितेन परत: पश्चादपि स्थानत:।
स्वातंत्र्यम् निजरक्षणम् च समुचिता वृत्तिश्च नांयोचित 
तस्यैवेति हरेर्विवीच्य कथितं स्वस्यापि नारहं तत : ।।

अर्थ

तिरुमंत्र के मध्य में उपस्थित “नम:” शब्द द्वारा जीव की गति, उस गति का साधन तथा जीव का स्वरूप, इन त्रय विषयों को दर्शाया गया है। स्वतंत्रता, स्वरक्षण, और भगवान के अलावा अन्यों से अनुकूलता न रखना, उपरोक्त बताये स्वरुप गुणों को प्रकट करते हुए जोर देता है कि भगवान के शेषभूत होते हुए भी, जीवात्मा को इस आनंद अनुभव का कोई भान नहीं है।

🙏जय श्री मन्नारायण🙏
[2/25, 22:03] P anuragi. ji: विद्वतवृन्द के चरणारविन्द में सादर प्रणिपात
     
     कर्णयोः कर्णिकारं

  वैयाकरणिक दृष्टि से शब्द के अर्थ को स्पस्ट  करें

       एक स्वल्प सी जानकारी हमें है  संत के मुखारविंद से सुना था क़ि   कान दो हैं पुष्प एक है इसका तात्पर्य
   यह कि कनेर पुष्प जिस कान पर लगा हो वह यह संकेत देता था कि श्याम सुंदर उसी दिशा में मिलेंगे ।
        भागवत रसिक कृपा कर विवेचन दें
        सनम्र
       अनुरागी जी
[2/25, 22:11] पं रोहित: जय श्री राधे यहां पर रस स्वरूप रस आचार्य भगवान श्री कृष्ण के दिव्य स्वरुप का विचित्र वर्णन किया गया है रस के उपासकों का मानना है कि भगवान श्री कृष्ण अपने कान पर कनेर के फूल के द्वारा गोपी को संकेत किया करते थे कि मैं इस दिशा की ओर जा रहा हूं जिस से प्रभावित होकर के गोपी उसी दिशा में  माखन बेचने जाया करती थी
[2/25, 22:30] पं रोहित: श्रीकृष्ण के श्याम विग्रह पर पीतांबर गले में हार बाजूबंद इत्यादि बहुत अधिक सुशोभित होते थे उनके घुंघराले बालों के साथ उनके मकराकृत कुंडल उनका श्याम वर्ण का मुख उनकी बड़ी बड़ी आंखों में काजल अत्यधिक शोभायमान होते थे इसी के साथ जब भगवान वन में स्थित वन्य विहार करने वाले  भीलों को देखते थे तो अपने आप को भी वन के  पत्तों से  सजाया करते थे उनके श्याम विग्रह पर पीला कनेर का फूल बहुत ही अधिक शोभायमान होता था गोपी को दिशा निर्देशित करना केवल भाव मात्र है किंतु भागवत में और भगवान के पथ में भावकी ही श्रेष्ठता है माता यशोदा प्रति दिन भगवान श्री कृष्ण का दिव्य सिंगार करती है किंतु भगवान प्रकृति प्रेमी होने के कारण वन में आकर के स्वयं का अति विचित्र श्रृंगार करते हैं जिसको देख कर के गोपियों के साथ समस्त देवांगनाएं भी मोहित हो जाती हैं कामदेव को भी अपनी सौंदर्यता पर लाज आती है भगवान श्री कृष्ण के दिव्य सौंदर्य का अवलोकन करके रति अपने पति को कांतिहीन समझती है भगवान का यह विचित्र श्रृंगार श्री किशोरी जी के मन को बार-बार आकृष्ट करता है और किशोरी जी भगवान के इस दिव्य स्वरूप को देख कर के प्रेम की अधिकता के कारण श्री कृष्ण के सामने होने के बावजूद भी उनकी विरह की पीड़ा से व्याकुल हो जाती हैं तब भगवान श्रीकृष्ण अपनी मोहिनी बंसी बजा कर के श्री किशोरी जी के मन को पुनः शांति प्रदान करते हैं इसके पश्चात भी जब किशोरी जी का विरह नहीं मिटता तो भगवान स्वयं उनका आलिंगन करके उन्हें शांति प्रदान करते हैं और अपने कानो का फूल किशोरी जी के कानों में लगा दिया करते हैं और अपने गले की माला को निकाल कर के किशोरी जी के जुड़े में बांध देते हैं किशोरी जी भी नित्य अपने करकमलों से भगवान श्रीकृष्ण के लिए सुंदर फूलों की माला बनाती है और प्रतिदिन उस पुष्प के इशारे को समझ कर के उसी दिशा में जाती हैं और एकांत पाकर के भगवान श्रीकृष्ण को अपने कर कमलों के द्वारा बनाई हुई माला अर्पित करती हैं इसी प्रकार अन्य गोपियां भी भगवान के कान में लगे हुए कनेर के फूल से उनका गंतव्य जान लेती है और श्री कृष्ण की दिव्य लीलाओं का गुणगान करती हैं जय जय श्री राधे जय श्री श्याम कृपया अ भक्तों को यह कथाएं सेंड ना करें जय श्री राधे
[2/25, 22:41] पं रोहित: 🙏🏼🙏🏼🙏🏼विद्वतवृन्द के चरणारविन्द में सादर प्रणिपात 🙏🏼🙏🏼🙏🏼
     
     🍃🍂कर्णयोः कर्णिकारं 🍃🍂

  🌳भाव और रस दृष्टि से🌳

      🌷 एक स्वल्प सी जानकारी हमें है  संत के मुखारविंद से सुना था क़ि   कान दो हैं पुष्प एक है इसका तात्पर्य
   🌻यह कि कनेर पुष्प जिस कान पर लगा हो वह यह संकेत देता था कि श्याम सुंदर उसी दिशा में मिलेंगे ।
        🌷🌺🌹🍂भागवत रसिकों का भाव🌷🌹🌻🌺

       🌹🌺🌷🍂🙏🏼जय श्री राधे यहां पर रस स्वरूप रस आचार्य भगवान श्री कृष्ण के दिव्य स्वरुप का विचित्र वर्णन किया गया है रस के उपासकों का मानना है कि भगवान श्री कृष्ण अपने कान पर कनेर के फूल के द्वारा गोपी को संकेत किया करते थे कि मैं इस दिशा की ओर जा रहा हूं जिस से प्रभावित होकर के गोपी उसी दिशा में  माखन बेचने जाया करती थी🍂🌷🌺🌹🌻🌳

श्रीकृष्ण के श्याम विग्रह पर पीतांबर गले में हार बाजूबंद इत्यादि बहुत अधिक सुशोभित होते थे उनके घुंघराले बालों के साथ उनके मकराकृत कुंडल उनका श्याम वर्ण का मुख उनकी बड़ी बड़ी आंखों में काजल अत्यधिक शोभायमान होते थे इसी के साथ जब भगवान वन में स्थित वन्य विहार करने वाले  भीलों को देखते थे तो अपने आप को भी वन के  पत्तों से  🌺🌹🌷🍂🌻🌳🍃सजाया करते थे उनके श्याम विग्रह पर पीला कनेर का फूल बहुत ही अधिक शोभायमान होता था गोपी को दिशा निर्देशित करना केवल भाव मात्र है किंतु भागवत में और भगवान के पथ में भावकी ही श्रेष्ठता है माता यशोदा प्रति दिन भगवान श्री कृष्ण का दिव्य सिंगार करती है किंतु भगवान प्रकृति प्रेमी होने के कारण वन में आकर के स्वयं का अति विचित्र श्रृंगार करते हैं जिसको देख कर के गोपियों के साथ समस्त देवांगनाएं भी मोहित हो जाती हैं कामदेव को भी अपनी सौंदर्यता पर लाज आती है भगवान श्री कृष्ण के दिव्य सौंदर्य का अवलोकन करके रति अपने पति को कांतिहीन समझती है भगवान का यह विचित्र श्रृंगार श्री किशोरी जी के मन को बार-बार आकृष्ट करता है और किशोरी जी भगवान के इस दिव्य स्वरूप को देख कर के प्रेम की अधिकता के कारण श्री कृष्ण के सामने होने के बावजूद भी उनकी विरह की पीड़ा से व्याकुल हो जाती हैं तब भगवान श्रीकृष्ण अपनी मोहिनी बंसी बजा कर के श्री किशोरी जी के मन को पुनः शांति प्रदान करते हैं इसके पश्चात भी जब किशोरी जी का विरह नहीं मिटता तो भगवान स्वयं उनका आलिंगन करके उन्हें शांति प्रदान करते हैं और अपने कानो का फूल किशोरी जी के कानों 🌻में लगा दिया करते हैं और अपने गले की माला को निकाल कर के किशोरी जी के जुड़े में बांध देते हैं किशोरी जी भी नित्य अपने करकमलों से भगवान श्रीकृष्ण के लिए सुंदर फूलों 🌹🌷🌻🌺की माला बनाती है और प्रतिदिन उस पुष्प के इशारे को समझ कर के उसी दिशा में जाती हैं और एकांत पाकर के भगवान श्रीकृष्ण को अपने कर कमलों के द्वारा बनाई हुई माला अर्पित करती हैं इसी प्रकार अन्य गोपियां भी भगवान के कान में लगे हुए कनेर के फूल से उनका गंतव्य जान लेती है और श्री कृष्ण की दिव्य लीलाओं का गुणगान करती हैं।🙏🏼🍃🌳🍂🌹🌷🌺🌻 ।जय जय श्री राधे जय श्री श्याम कृपया अ भक्तों को यह कथाएं सेंड ना करें जय श्री राधे🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🍂🍃🍂
[2/26, 06:29] राम भवनमणि त्रिपाठी: ॥ शम्भुस्तोत्रम् ॥
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नानायोनिसहस्रकोटिषु मुहुः संभूय संभूय तद्-
गर्भावासनिरन्तदुःखनिवहं वक्तुं न शक्यं च तत् ।
भूयो भूय इहानुभूय सुतरां कष्टानि नष्टोऽस्म्यहं
त्राहि त्वं करुणातरङ्गितदृशा शंभो दयाम्भोनिधे ॥ १ ॥

बाल्ये ताडनपीडनैर्बहुविधैः पित्रादिभिर्बोधितः
तत्कालोचितरोगजालजनितैर्दुःखैरलं बाधितः ।
लीलालौल्यगुणीकृतैश्च विविधैर्दुश्चोष्टितैः क्लेशितः
सोऽहं त्वां शरणं व्रजाम्यव विभो शंभो दयाम्भोनिधे ॥ २ ॥

तारुण्ये मदनेन पीडिततनुः कामातुरः कामिनी-
सक्तस्तद्वशगः स्वधर्मविमुखः सद्भिः सदा दूषितः ।
कर्माकार्षमपारनारकफलं सौख्याशया दुर्मतिः
त्राहि त्वं करुणातरङ्गितदृशा शंभो दयाम्भोनिधे ॥ ३ ॥

वृद्धत्वे गलिताखिलेन्द्रियबलो विभ्रष्टदन्तावलिः
श्वेतीभूतशिराः सुजर्जरतनुः कम्पाश्रयोऽनाश्रयः ।
लालोच्छिष्टपुरीषमूत्रसलिलक्लिन्नोऽस्मि दीनोऽस्म्यहं
त्राहि त्वं करुणातरङ्गितदृशा शंभो दयाम्भोनिधे ॥ ४ ॥

ध्यातं ते पदाम्बुजं सकृदपि ध्यातं धनं सर्वदा
पूजा ते न कृता कृता स्ववपुषः स्त्रग्गन्धलेपार्चनैः ।
नान्नाद्यैः परितर्पिता द्विजवरा जिह्वैव संतर्पिता
पापिष्ठेन मया सदाशिव विभो शंभो दयाम्भोनिधे ॥ ५ ॥

संध्यास्नानजपादि कर्म न कृतं भक्त्या कृतं दुष्कृतं
त्वन्नामेश न कीर्तितं त्वतिमुदा दुर्भाषितं भाषितम् ।
त्वन्मूर्तिर्न विलोकिता पुनरपि स्त्रीमूर्तिरालोकिता
भोगासक्तिमता मया शिव विभो शंभो दयाम्भोनिधे ॥ ६ ॥

संध्याध्यानजपादिकर्मकरणे शक्तोऽस्मि नैव प्रभो
दातुं हन्त मतिं प्रतीपकरणे दारादिबन्धास्पदे ।
नामैकं तव तारकं मम विभो ह्यन्यन्न चास्ति क्वचित्
त्राहि त्वं करुणातरङ्गितदृशा शंभो दयाम्भोनिधे ॥ ७ ॥

कुम्भीपाकधुरंधरादिषु महाबीजादिषु प्रोद्धतं
घोरं नारकदुःखमीषदपि वा सोढुं न शक्तोऽस्म्यहम् ।
तस्मात् त्वां शरणं व्रजामि सततं जानामि न त्वां विना
त्राहि त्वं करुणातरङ्गितदृशा शंभो दयाम्भोनिधे ॥ ८ ॥

माता वापि पिता सुतोऽपि न हितो भ्रात्रादयो बान्धवाः
सर्वे स्वार्थपरा भवन्ति खलु मां त्रातुं न केऽपि क्षमाः ।
दूतेभ्यो यमचोदितेभ्य इह तु त्वामन्तरा शंकर
त्राहि त्वं करुणातरङ्गितदृशा शंभो दयाम्भोनिधे ॥ ९ ॥

॥ शंभुस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
[2/26, 06:40] अरविन्द गुरू जी: हरि ॐ तत्सत्!  सुप्रभातम्।
भगवत्कृपाप्रसादात्सर्वे सत्पुरुषाः सत्कार्यं कुर्वन्तः सानन्दं स्व-जीवनं यापयन्तु।

के सत्पुरुषाः सन्ति?

अस्मिन्संसारे ये जनाः मनसा वाचा कर्मणा च " परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् " इति श्रीभगवद्वाक्यं स्व-ध्येयं मत्वा सानन्दं जीवनं जीवन्तीति मे मतिः।
🌺🙏�🌺
॥ सत्यसनातधर्मो  विजयतेतराम् ॥
[2/26, 08:46] ‪+91 96859 71982‬: ब्रह्म_संहिता

अथ तेपे स सुचिरं प्रीणन् गोविन्दमव्ययम्।
श्वेतद्वीपपतिं कृष्णं गोलोकस्थं परात्परम्।।
प्रकृत्या गुणरूपिण्या रूपिण्या पर्युपासितम्।
सहस्त्रदलसम्पन्ने कोटिकिञ्जल्कबृंहिते।।
भूमिश्चिन्तामणिस्तत्र कर्णिकारे महासने।
समासीनं चिदानन्दं ज्योतीरूपं सनातनम्।।
शब्दब्रह्ममयं वेणुं वादयन्तं मुखाम्बुजे।
विलासिनीगणवृतं स्वैः स्वैरंशैरभिष्टुतम्।।२६।।

अथ = तब
तेपे = तप किया
सः = उस (ब्रह्मा) ने
सुचिरम् = लम्बे समय तक
प्रीणन् = संतुष्टिदायक
गोविन्दम् = गोविंद
अव्ययम् = अविनाशी
श्वेतद्वीप-पतिम् = श्वेतद्वीप के स्वामी
कृष्णम् = कृष्ण को
गोलोक-स्थम् = गोलोक में स्थित
परात्-परम = सबमें उच्चतम
प्रकृत्या = प्रकृति से
गुण-रूपिण्या = सर्व मायिक गुणमय
रूपिण्या = रूप प्राप्त किये
पर्युपासितम् = बाहर से उपासित हुए
सहस्त्र-दल-सम्पन्ने = हजार पंखुड़ियों के कमल पर
कोटि-किञ्जल्क = हजारों केशर
बृंहिते = वृद्धि हुई
भूमिः = भूमि
चिंतामणिः = चिंतामणि (जादुई मणि)
तत्र = वहाँ
कर्णिकारे = कर्णिका पर
महा-आसने = बड़े आसन पर
समासीनम् = बैठे
चित्-आनंदम् = चिन्मय आनंद के रूप में
ज्योतिःरूपम् = ज्योति का रूप
सनातनम् = नित्य
शब्द-ब्रह्म = दिव्य शब्द
मयम् = से युक्त
वेणुम् = बाँसुरी
वादयन्तम् = बजाते हुए
मुख-अम्बुजे = उनके मुखकमल पर
विलासिनी-गण = गोपियों द्वारा
वृतम् = घिरे हुए
स्वैः स्वैः = अपने अपने
अंशैः = अंशों से
अभिष्टुतम् = पूजित

गोविन्द को संतुष्टि प्रदान करने के इच्छुक ब्रह्मा ने लम्बे समय तक श्वेतद्वीपाधिपति गोलोकस्थ कृष्ण हेतु तपस्या की। उनकी स्तुति इस प्रकार थी, "गोलोक की चिन्मय भूमि में सहस्त्र-दल-सम्पन्न तथा कोटि-कोटि केशर द्वारा संवर्धित एक कमल है। उसकी कर्णिका के बीच में एक विशाल दिव्य आसन विद्यमान है जिस पर नित्य चिदानन्दमय ज्योतीरूप श्रीकृष्ण विराजमान होकर अपने मुखकमल से शब्दब्रह्ममय वंशी बजा रहे हैं। वे अपनी प्रेयसी गोपियों, उनके अपने-अपने अंशों एवं विस्तारों एवं अपनी भौतिकगुणमयी बहिरंगा शक्ति (जो बाहर रहती है)  द्वारा भी पूजित हो रहे हैं। 🙏🏼🙏🏼
[2/26, 08:47] ओमीश Omish Ji: 🌺🌺🙏🙏🌺🌺🙏🙏🌺🌺
*********|| जय श्री राधे ||*********
🌺🙏 *महर्षि पाराशर पंचांग* 🙏🌺
🙏🌺🙏 *अथ  पंचांगम्* 🙏🌺🙏

*दिनाँक -: 26/02/2017*
अमावस्या, कृष्ण पक्ष
फाल्गुन
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""(समाप्ति काल)

तिथि----अमावस्या  20:28:16   तक
पक्ष---------------कृष्ण
नक्षत्र------धनिष्ठा07:15:50
योग--------शिव  17:55:30
करण----- चतुष्पदा 08:58:32
करण------- नागव20:28:16
वार--------------रविवार
माह------------- फाल्गुन
चन्द्र राशि----------  कुम्भ
सूर्य राशि----------  कुम्भ
रितु निरयन--------  शिशिर
रितु सायन----------वसन्त
आयन----------  उत्तरायण
संवत्सर------------दुर्मुख
संवत्सर (उत्तर)----------------सौम्य
विक्रम संवत--------- 2073
विक्रम संवत (कर्तक)---------2073
शाका संवत--------- 1938

वृन्दावन
सूर्योदय--------- 06:47:50
सूर्यास्त--------- 18:16:37
दिन काल-------- 11:28:46
रात्री काल--------12:30:14
चंद्रास्त---------  18:08:19
चंद्रोदय---------  31:07:02

लग्न---कुम्भ  13°32' , 313°32'

सूर्य नक्षत्र-------- शतभिषा
चन्द्र नक्षत्र---------धनिष्ठा
नक्षत्र पाया-----------ताम्र

*🚩💮🚩पद, चरण🚩💮🚩*

गे  धनिष्ठा  07:15:501

गो  शतभिष  13:12:012

सा  शतभिष  19:06:163

सी  शतभिष  24:58:42

*💮🚩💮ग्रह गोचर💮🚩💮*

ग्रह =राशी   , अंश  ,नक्षत्र,  पद
=======================
सूर्य=कुम्भ 13° 23 ' शतभिषा,  3 सी
चन्द्र=कुम्भ 06° 25' धनिष्ठा '   4 गे
बुध=कुम्भ 06 ° 23'   धनिष्ठा, 4 गे
शुक्र=मीन 18 ° 17'   रेवती  ,  1 दे
मंगल=मीन  24° 18'  रेवती ' 3 च
गुरु=कन्या  28 ° 42'   चित्रा ,   2 पो
शनि=धनु 02 ° 17'      मूल '   1 ये
राहू=सिंह   09 ° 37'    मघा  ,  3  मू
केतु=कुम्भ 09°37 ' शतभिषा, 1 गो

*🚩💮🚩शुभा$शुभमुहूर्त🚩💮🚩*

💮चोघडिया, दिन
उद्वेग 06:48 - 08:14अशुभ
चाल 08:14 - 09:40शुभ
लाभ 09:40 - 11:06शुभ
अमृत 11:06 - 12:32शुभ
काल 12:32 - 13:58अशुभ
शुभ 13:58 - 15:24शुभ
रोग 15:24 - 16:51अशुभ
उद्वेग 16:51 - 18:17अशुभ

🚩चोघडिया, रात
शुभ 18:17 - 19:50शुभ
अमृत 19:50 - 21:24शुभ
चाल 21:24 - 22:58शुभ
रोग 22:58 - 24:32*अशुभ
काल 24:32* - 26:06*अशुभ
लाभ 26:06* - 27:39*शुभ
उद्वेग 27:39* - 29:13*अशुभ
शुभ 29:13* - 30:47*शुभ

*नोट*-- दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।

*💮दिशा शूल ज्ञान-----------पश्चिम*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा गेहूँ खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l
भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll

*🚩अग्नि वास ज्ञान  -:*

15 + 15 + 1 + 1 = 32 ÷ 4 = 0
शेष
पृथ्वी पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक है l

*💮 शिव वास एवं फल -:*

30 + 30 + 5 = 65 ÷ 7 = 2 शेष

गौरि सन्निधौ = शुभ कारक

*💮🚩 विशेष जानकारी 🚩💮*

* देवपितृकार्येमावस्या

*कंकणाकृति सूर्यग्रहण (भारत में अमान्य)

*💮🚩💮शुभ विचार💮🚩💮*

अन्तर्गतमलौ दुष्टः तीर्थस्नानशतैरपि ।
न शुध्दयति यथा भाण्डं सुरदा दाहितं च यत् ।।
।।चा o नी o।।

  आप चाहे सौ बार पवित्र जल में स्नान करे, आप अपने मन का मैल नहीं धो सकते. उसी प्रकार जिस प्रकार मदिरा का पात्र पवित्र नहीं हो सकता चाहे आप उसे गरम करके सारी मदिरा की भाप बना दे.

*🚩💮🚩सुभाषितानि🚩💮🚩*

गीता -: विश्वरूप दर्शन योग अo-11

कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्‌ गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे।,
अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्‌ ॥,

हे महात्मन्‌! ब्रह्मा के भी आदिकर्ता और सबसे बड़े आपके लिए वे कैसे नमस्कार न करें क्योंकि हे अनन्त! हे देवेश! हे जगन्निवास! जो सत्‌, असत्‌ और उनसे परे अक्षर अर्थात सच्चिदानन्दघन ब्रह्म है, वह आप ही हैं॥,37॥,

*💮🚩दैनिक राशिफल🚩💮*

देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत्।।

🐑मेष
राजनीतिक व्यक्तियों से लाभकारी योग बनेंगे। यात्रा शुभ रहेगी। व्यापार-व्यवसाय, नौकरी-निवेश से लाभ तथा चोरी, दुर्घटना से हानि हो सकती है।

🐂वृष
व्यापार-व्यवसाय निवेश आदि से लाभ, भेंट मिल सकती है। वाद-विवाद से अपमान हो सकता है। यात्रा शुभ रहेगी। जल्दबाजी में निर्णय न लें।

👫मिथुन
गृहस्थ सुख मिलेगा। राजकीय कार्यों में सहयोग मिलेगा। दुष्ट व्यक्ति कष्ट पहुंचा सकते हैं। यात्रा में सतर्कता रखें। मान-सम्मान बना रहेगा।

🦀कर्क
वाद-विवाद, कलह से हानि होगी। शत्रु शांत रहेंगे। व्यापार से लाभ तथा निवेश से हानि-लाभ हो सकता है। जीवनसाथी का सहयोग मिलेगा।

🐅सिंह
विद्यार्थियों को सफलता मिलेगी। व्यापार-निवेश में लाभ होगा। दावत-भेंट मिलने से प्रसन्नता बढ़ेगी। कार्यक्षेत्र में स्पष्टता प्रगति में सहायक होगी।

💁कन्या
स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ने से तनाव होगा। शत्रु शांत रहेंगे। अस्वस्थता रह सकती है। सामान संभालकर रखें। शीघ्रता का त्याग करके विवेक से काम लें।

⚖तुला
चोरी-दुर्घटना से हानि हो सकती है। संतान पक्ष की चिंता होगी। व्यापार-निवेश-नौकरी से लाभ होगा। व्यवसाय को बढ़ाने के अवसर मिल सकेंगे।

🦂वृश्चिक
व्यापार-व्यवसाय में निवेश से लाभ मिलेगा। व्यय बढ़ने से मनोमालिन्य रहेगा। प्रतिष्ठित व्यक्तियों से संपर्क बनेगा। रचनात्मक कार्य होंगे।

🏹धनु
घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। पुराने मित्र मिलेंगे। निवेश से लाभ, साक्षात्कार इत्यादि के परिणाम सकारात्मक होंगे। आर्थिक लाभ के योग हैं।

🐊मकर
राजकीय कोप भुगतना पड़ सकता है। व्यय बढ़ेगा। वाद-विवाद से अपमान हो सकता है। यात्रा में सतर्क रहें। मित्र, सहयोगियों का लाभ प्राप्त होगा।

🍯कुंभ
प्रमोशन, नई जवाबदारी नौकरीपेशाओं को मिल सकती है। वाहन-मशीनरी का प्रयोग सावधानीपूर्वक करें। व्यापार ठीक चलेगा। ईश्वर में आस्था बढ़ेगी।

🐠मीन
नई योजनाएं बनेंगी। व्यापार-व्यवसाय ठीक चलेगा। निवेश में विवेक से कार्य करें। यात्रा शुभ रहेगी। आजीविका के क्षेत्र में लाभदायी परिवर्तन का योग।

🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏
🌺🌺🌺🌺🙏🌺🌺🌺🌺
[2/26, 08:52] ओमीश Omish Ji: मूर्ख के लक्षण
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कहानी राजा भोज की
राजाभोज की रानी और पंडित माघ की पत्नी दोनों खड़ी-खड़ी बातें कर रही थीं। राजा भोज ने उनके नजदीक जाकर उनकी बातें सुनने के लिए अपने कान लगा दिए। यह देख माघ की पत्नी सहसा बोली- 'आओ मूर्ख! राजा भोज तत्काल वहां से चला गया। हालांकि उसके मन में रोष तो नहीं था, तथापि स्वयं के अज्ञान पर उसे तरस अवश्य आ रहा था। वह जानना चाहता था कि मैंने क्या मूर्खता की है।
राजसभा का समय हुआ। दंडी, भारवि आदि बड़े-बड़े पंडित आए राजा ने हर-एक के लिए कहा-'आओ मूर्ख! पंडित राजा की बात सुनकर हैरान हो गए, पर पूछने का साहस किसी ने नहीं किया। अंत में पंडित माघ आए। राजा ने वही बात दोहराते हुए कहा-'आओ मूर्ख! यह सुनते ही माघ बोले-

खादन्न गच्छामि हसन्न जल्पे,
गतं न शोचामि कृतं न मन्ये।
द्वाभ्यां तृतीयो न भवामि राजन्!
किं कारणं भोज! भवामि मूर्ख:।।

हे राजन्! मैं खाता हुआ नहीं चलता, हँसता हुआ नहीं बोलता, बीती बात की चिंता नहीं करता, कृतघ्न नहीं बनता और जहाँ दो व्यक्ति बात करते हों, उनके बीच में नहीं जाता। फिर मुझे मूर्ख कहने का क्या कारण है?
राजा ने अपनी मूर्खता का रहस्य समझ लिया। अब वह तत्काल बोल उठा- 'आओ विद्वान्!

इस घटना से हम समझ सकते हैं कि केवल शिक्षण या अध्ययन से विद्वत्ता नहीं आती। विद्वत्ता आती है- नैतिक मूल्यों को आत्मगत करने से। वे पुराने मूल्य, जो अच्छे हैं, खोने नहीं चाहिए। नए और पुराने मूल्यों में सामंजस्य होने से ही शिक्षा के साथ नैतिकता पनप सकेगी।संकलित 🙏
[2/26, 09:31] व्यास u p: आप सभी गुरुजनों आचार्य श्रेष्ठ को रविन्द्र मिश्र का सादर दण्डवत प्रणाम🌺🌺🙏🙏🌹👏👏🌹🙏🙏🌺

*खुशियाँ कम और*
         *अरमान बहुत हैं ।*
*जिसे भी देखो,*
         *परेशान बहुत है ।।*
*करीब से देखा तो,*
      *निकला रेत का घर ।*
*मगर दूर से इसकी,*
               *शान बहुत है ।।*
*कहते हैं सच का,*
      *कोई मुकाबला नहीं ।*
*मगर आज झूठ की,*
           *पहचान बहुत है ।।*
*मुश्किल से मिलता है,*
             *शहर में इंसान।*
*यूं तो कहने को,*
             *आदमी बहुत हैं ।।*
🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏🌺🌺
*🌺🌞शुभदिन 🌞🌺*
[2/26, 11:33] ओमीश Omish Ji: गुरुदेव भगवान् के श्री मुख से

प्राण प्राण के , जीवन जी के , सुख के सुख तुम राम
तुम तजि जिनही सुहात , गृह तिनही विधाता राम !!

यह कोष का वर्णन है .....प्राण प्राण के , प्राणों के भी प्राण आप है ....जीवनजी के का अर्थ है ...मन के भी मन आप है ....विज्ञान के भी विज्ञान आप है ....मनोमय कोष और विज्ञानमय कोष को जीवन कहकर तुलसीदास जी ने गुम्फित कर दिया – प्राण प्राण के ऊपर है ...सुख के सुख बिच में रह गया ....मन के मन ..बुद्धि के बुद्धि ...इसको ले लें !
मन के भी मन आप , विज्ञान के विज्ञान आप , सुख के सुख आप ...इसका अर्थ क्या हो गया ?
यद्वछिन्न होता है , तन नामक होता है .....सचमुच में जब कोई माइक कहता है तो उसका अर्थ क्या होता है ?...माइक के आकार में परिलक्षित परमात्मा .....इसलिए ब्रह्माकार वृत्ति टूटती नही ब्रह्माजी की .....इतना अभ्यास परिपक्व होना चाहिए – माइक कहने पर सामान्य व्यक्ति को यंत्र का ज्ञान होगा ......लेकिन यद्वछिन्न होता है , तन नामक होता है ...इस नियम को अगर क्रियान्वित कर दें ...तो अभ्यास कि घनता चाहिए ....तो माइक कहने पर किसका ज्ञान होगा ...माइक का भी जो माइक है !

!! हर हर महादेव !!
[2/26, 11:43] पं अलोपी: वृन्दावन सो वन नहीं,
                                नंदगांव सो गांव! 
बंशीवट सो वट नहीं,
                         कृष्ण नाम सो नाम
राधा मेरी स्वामिनी,
                          मैं राधे को दास।
जनम जनम मोहे दीजियो,
                          श्री वृन्दावन को वास।
वृन्दावन के वृक्ष को,
                         मरम न जाने कोय।
डाल डाल और पात में ,
                          श्री राधे राधे होय।।
  राधा राधा कहत ही,
                          सब बाधा मिट जाय।
कोटी जनम की आपदा,
                             नाम लिये सों जाय,  
🌷जय जय श्री राधे 🌷

🙏🙏 शुभप्रभात  🙏🙏

"आपका सभी का दिन शुभ हो !जीवन मे आपार खुशियों का समावेश हो !इसी मंगल कामना के साथ "

🌷 जय जय श्री राधे  🌷
[2/26, 12:28] राम भवनमणि त्रिपाठी: 'ऐसा भूतकंचुकी,विमुक्त पुरुष परम् शिवरूप हो जाता है।'
भूतकंचुकी :शब्द समझने जैसा है।अर्थ है:पांचो तत्व ,जिनसे शरीर निर्मित हुआ है;उसके लिए वस्त्रों की भांति हो गए हैं।जिसके लिए शरीर,मन-क्योंकि ये दोनों ही पञ्च भूतों से बने हुए हैं;ये स्थूल पञ्च भूतों से जो बना हुआ है वह शरीर और जो सूक्ष्म पञ्च तन्मात्राओं से बना है वह मन-ये दोनों एक ही के स्थूल और सूक्ष्म रूप हैं-ये दोनों ही वस्त्रों जैसे हो गए,और उसने अपने को जो वस्त्रो में छिपा हुआ है;पहचान लिया,ऐसा विमुक्त पुरुष परम् शिवरूप हो जाता है।
सारे शास्त्र यहीं आकर पूरे होते हैं।
फूल के खिलने पर वृक्ष की यात्रा पूर्ण हो जाती है।जिसके लिए वृक्ष जन्मा था,वह घटित हो गया।वह व्यर्थ नहीं गया,सार्थक हो गया;सुगंध और सौंदर्य फलीफ़ूत हो गए।
फूल के खिलने पर-जो ज्यादा देर नहीं टिकेगा,अभी खिला है और साँझ तक मुरझा जायेगा-इतना आनंद है,तो जब कोई चेतना का फूल खिलता है-जो कभी नहीं मुरझायेगा-कितना अनंत आनंद होगा।
इस खिलावट को ही शिवत्व कहते हैं।
[2/26, 13:26] P Alok Ji: वह सुन्दर रूप विलोकि सखी
मन हाथ से मेरो भगो सो भगो
चित सांवरी मूरत देखत ही
हरि चंद जु जाय पगो सो पगो
हमें औरन सो कछु काम नहीं
अब तो जो कलंक लगो सो लगो
रंग दूसर और चढ़ैगो नहीं सखी
सांवरो रंग रंगो सो रंगो...

*राधे राधे*
[2/26, 13:35] ‪+91 96859 71982‬: 🌿🌹 कन्हैया.....🌹🌿
                   मेरा दिल तोड़ने से पहले सोच लेना कि
                        इसमे एक कमरा तुम्हारा भी है
                         🌿🌹 जय श्री राधे  🌹🌿
                            🌿🌹 कान्हा.
             निकल जाते है आंसू कभी कभी रोने से पहले
              टूट जाते है सपने कभी - कभी सोने से पहले

           जब सामने वाला आग बने , तुम बन जाना पानी
        क्षमा सुख का सागर है, यही है मेरे कान्हा जी की वाणी।
                    🌿🌹 जय श्री राधेकृष्णा 🌹🌿
[2/26, 13:50] P anuragi. ji: आदरणीया   कृष्ण प्रमी !!

          भाव पूर्ण नमन

मेरा निषेध  उपर्युक्त लेख के लिए था

             शायद मेरे  परेशान में कुछ त्रुटि हो तो हमें   इंगित  करें ।
                इस मोबाइल  की  कार्य प्रणाली  का अत्यंत सूक्ष्म ज्ञान है हमें
                      अनुरागी जी
[2/26, 14:00] पं अर्चना जी: *किसी ने शिक्षक से पूछा* -
            क्या करते हो आप ?

*शिक्षक का सुन्दर जवाब देखिए*-

सुन्दर सुर सजाने को साज बनाता हूँ ।
नौसिखिये परिंदों को बाज बनाता हूँ ।।
चुपचाप सुनता हूँ शिकायतें सबकी ।
तब दुनिया बदलने की आवाज बनाता हूँ ।।
समंदर तो परखता है हौंसले कश्तियों के ।
और मैं
डूबती कश्तियों को जहाज बनाता हूँ ।।
बनाए चाहे चांद पे कोई बुर्ज ए खलीफा ।
अरे मैं तो कच्ची ईंटों से ही ताज बनाता हूँ ।।

*Dedicated to all Teachers*
[2/26, 17:07] पं अनिल ब: 🌺🌺📚🌳🌳📚🌺🌺

*नमो नमः*

*॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥*

*🕉गीता प्रबोधनी🕉*

*ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट.१२)*

त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं
त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता
सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे।।१८।।

आप ही जाननेयोग्य परम अक्षर (अक्षरब्रह्म) हैं, आप ही इस सम्पूर्ण विश्वके परम आश्रय हैं, आप ही सनातनधर्म के रक्षक हैं और आप ही अविनाशी सनातन पुरुष हैं -- ऐसा मैं मानता हूँ।

व्याख्या—

यहाँ ‘त्वमक्षरं परमं वेदितव्यम्‌’ पदोंसे निर्गुण-निराकार का, ‘त्वमस्य विश्‍वस्य परं निधानम्‌’ पदों से सगुण-निराकार का और ‘त्वं शाश्वतधर्मगोप्ता’ पदों से सगुण-साकारका वर्णन हुआ है ।  ये सब मिलकर भगवान्‌का समग्ररूप है, जिसे जान लेने पर फिर कुछ भी जानना शेष नहीं रहता (गीता ७ । २) । 

ॐ तत्सत् !

*जय महाँकाल*

*श्री मन्नारायण नारायण हरि हरि*
🌺🌺📚🌳🌳📚🌺🌺
[2/26, 18:10] राम भवनमणि त्रिपाठी: पुण्य कर्मों का अर्थ केवल वे कर्म नहीं जिनसे आपको लाभ होता हो अपितु वो कर्म हैं जिनसे दूसरों का भला भी होता है। पुन्य कर्मों का करने का उद्देश्य मरने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करना ही नहीं परंतु जीते जी जीवन को स्वर्ग बनाना भी है।
स्वर्ग के लिए पुन्य करना बुरा नहीं मगर परमार्थ के लिए पुण्य करना ज्यादा श्रेष्ठ है। शुभ भावना के साथ किया गया प्रत्येक कर्म ही पुण्य है और अशुभ भावना के साथ किया गया कर्म पाप है।
जो कर्म भगवान को प्रिय होते हैं, वही कर्म पुण्य भी होते हैं। हमारे किसी आचरण से, व्यवहार से, वक्तव्य से या किसी अन्य प्रकार से कोई दुखी ना हो। हमारा जीवन दूसरों के जीवन में समाधान बने समस्या नहीं, यही चिन्तन पुन्य है और परमार्थ का मार्ग भी है।
जय श्री कृष्णा.........
[2/26, 18:16] पं अनिल ब: 🌺🌺🔱🌳🙏🏼🌳🔱🌺🌺

*।।धर्मार्थ वार्ता समाधान।।*

*=====>ऊँ<=====*
*जय महाँकाल*

सबसे पहले परमेश्वर शिव (पञ्च वक्त्र शिव) के मुख से ओंकार (ॐ) प्रकट हुआ,जो उनके स्वरुप का बोध करानेवाला है।यह महामंगलकारी मन्त्र है क्योकि ओंकार वाचक है और परमेश्वर वाच्य है।यह मन्त्र उन्ही का स्वरुप ही है।प्रतिदिन ओंकार का निरंतर स्मरण करने से परमेश्वर का ही सदा स्मरण होता है।
पञ्च वक्त्र शिव के उत्तरवर्ती मुख से अकार का, पश्चिम मुख से उकार का, दक्षिण मुख से मकार का, पूर्ववर्ती मुख से बिंदु का तथा मध्यवर्ती मुख से नाद का प्राकट्य हुआ।इस प्रकार पाँच अवयवों से युक्त ओंकार का विस्तार हुआ है।इन सभी अवयवों से एकीभूत होकर वह "ॐ" नामक एक अक्षर हो गया।यह नाम- रूपात्मक सारा जगत तथा वेद उत्पन्न स्त्री- पुरुषवर्गरूप दोनों कुल इस प्रणव- मन्त्र से व्याप्त है।यह मन्त्र शिव और शक्ति दोनों का बोधक है।इसी से पंचाक्षर मन्त्र की उत्पत्ति हुयी है, जो परम शिव के सकल रूप का बोधक है।वह अकारादि क्रम से और मकारादि क्रम से क्रमशः प्रकाश में आया है। "ॐ नमः शिवाय " यह पंचाक्षर मन्त्र है ।कुछ सिर्फ नमः शिवाय को पंचाक्षर मानते है पर मेरे मतानुसार प्रणव ॐ की गिनती अक्षर के रूप में नहीं की जानी चाहिये क्योकि ये सेतु है इंसान और भगवान के बीच का। इस पंचाक्षर मन्त्र से मातृका वर्ण प्रकट हुए है, जो पाँच भेद वाले है। अ, इ, उ, ऋ, लृ - ये पाँच मूलभूत स्वर है तथा व्यंजन भी पाँच- पाँच वर्णों से युक्त पाँच वर्ग वाले है। इसी से शिरोमन्त्र सहित त्रिपदा गायत्री का प्राकट्य हुआ है।उस गायत्री से सम्पूर्ण वेद प्रकट हुए है और उन वेदों से करोङो मन्त्र निकले है।उन-उन मन्त्रो से भिन्न भिन्न कार्यों की सिद्धि होती है, परंतु इस प्रणव एवं पंचाक्षर से सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि होती है।इस मन्त्र समुदाय से भोग और मोक्ष दोनों सिद्ध होते है।परम शिव के सकल स्वरुप से सम्बन्ध रखने वाले सभी मन्त्रराज साक्षात् भोग प्रदान करने वाले और शुभकारक मोक्षप्रद है।

*जय माता की जय शिव शक्ति*
🌺🌺🔱🌳🌳🔱🌺🌺
[2/26, 19:20] ‪+91 97545 35118‬: *मकानों के भाव यूँ
ही नहीं बढ़ गए ..*
*परिवार के झगडो में
बिल्डर कमा गए
🏣🏣🙏🙏
[2/26, 20:58] ‪+91 98937 84985‬: 🌺🌺🙏🌹🙏🌺🌺
             ।। सुविचार।।

जो “प्राप्त” है वो ही “पर्याप्त” है ।
इन दो शब्दों में सुख बेहिसाब हैं।।

जो इंसान “खुद” के लिये जीता है उसका एक दिन “मरण” होता है..

पर जो इंसान”दूसरों”के लिये जीता है
उसका हमेशा “स्मरण” होता है ।।```

*💐💐 जय सियाराम💐💐*
*💐💐जय श्री श्याम 💐💐*
*💐💐जय माताजी.  💐💐*
     🙏 💐💐💐 🙏
     🙏🌹🌹🌹🙏

   🌸 *शुभ प्रभात* 🌸
[2/26, 20:58] ‪+91 98937 84985‬: 🌹👌🏻🌹👌🏻🌹👌🏻🌹👌🏻🌹

*ईश्वर कहते है*

*किसी को तकलीफ़ देकर*
*मुझसे अपनी ख़ुशी की दुआ मत करना।*
                
*लेकिन*❣

*अगर किसी को*
*एक पल की भी ख़ुशी देते हो तो*
*अपनी तकलीफ़ की फ़िक्र मत करना।* 🙏🏻😊

            🙏🏻 *जय श्री कृष्णा* 🙏🏻

🌹👌🏻🌹👌🏻🌹👌🏻🌹👌🏻🌹
[2/26, 20:58] ‪+91 98937 84985‬: 🌺🌺🏹🌳🌳🏹🌺🌺

*सिया के राम ग्रुप परिवार की स्पेशल प्रस्तुति

*श्री जानकी रामाभ्यां नमः*

*आप सभी को माँ सीता जी की जयंती (श्री सीताष्टमी) पर्व की हार्दिक शुभकामनाऐं..*

*आप सभी पर भगवती माँ सीता और परम प्रभु श्री रामचंद्र जी की कृपा बनी रहे।*

*आज भगवान श्रीराम की प्राणप्रिया आद्याशक्ति, सर्वमङ्गलदायिनी, पतिव्रताओं में शिरोमणि श्री सीता जी का प्राकट्य दिवस हैं।*

*यह दिन श्री सीताष्टमी के नाम से जगत प्रसिद्ध है, इस पर्व को जानकी जयंती भी कहते हैं।*

*इसी दिन पुण्य नक्षत्र में जब मिथिला नरेश महाराज जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञभूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे; उसी समय पृथ्वी से एक बालिका प्रकट हुईं।*

*उस बालिका का नामकरण सीता रखा गया; जोती हुई भूमि तथा हल की नोक को सीता कहा जाता है।*

*श्री वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्री राम के जन्म के सात वर्ष तथा एक माह पश्चात भगवती सीता जी का प्राकट्य हुआ।*

*गोस्वामी तुलसीदास जी बालकांड के प्रारम्भ में आदिशक्ति सीता जी की वंदना करते हुए कहते हैं :-*

*‘‘उद्भवस्थिति संहारकारिणी क्लेशहारिणीम्।*
*सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्॥’’*

*माता जानकी ही जगत की उत्पत्ति, पालन और संहार करने वाली तथा समस्त संकटों तथा क्लेशों को हरने वाली हैं।*

*वह मां भगवती सीता सभी प्रकार का कल्याण करने वाली रामवल्लभा हैं; उन भगवती सीता जी के चरणों में प्रणाम है।*

*मां सीता जी ने ही हनुमान जी को उनकी असीम सेवा भक्ति से प्रसन्न होकर अष्ट सिद्धियों तथा नव-निधियों का स्वामी बनाया।*

*‘‘अष्टसिद्धि नव-निधि के दाता। अस वर दीन जानकी माता॥’’*

*सीता-राम वस्तुत: एक ही हैं।*

*‘‘सियाराम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम् जोरि जुग पानी॥’’*

*यह सर्वजगत सीताराम मय है; जिन्हें तुलसीदास जी दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हैं।*

*राजा जनक की पुत्री होने से श्री सीता जी को जानकी जी, मिथिला की राजकुमारी होने से मैथिली तथा राजा जनक के विदेहराज होने के नाते वैदेही इत्यादि नामों से स्मरण किया जाता है।*

*भगवती सीता जी की पति-परायणता, त्याग सेवा, संयम, सहिष्णुता, लज्जा, विनयशीलता भारतीय संस्कृति में नारी भावना का चरमोत्कृष्ट उदाहरण तथा समस्त नारी जाति के लिए अनुकरणीय है।*

*जब प्रभु श्री राम तथा लक्ष्मण जी वनवास के समय वन में भटक रहे थे तथा श्री सीता जी की खोज में लगे हुए थे, तब मां पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा "ये वनवासी कौन हैं?"*

*तो भगवान शिव बोले "यह साक्षात् परब्रह्म हैं, इस समय मानव लीला में अपनी पत्नी सीता जी को ढूंढ रहे हैं जिन्हें रावण हर कर ले गया है।"*

*जब मां पार्वती भगवान श्री राम की परीक्षा लेने पहुंचीं, क्या देखती हैं कि उनके सामने से सीता राम और लक्ष्मण आ रहे हैं।*

*जहां भी उनकी दृष्टि पड़ती है वहां ही उनको सीता-राम और लक्ष्मण जी आते हुए दिखाई देते हैं।*

*यह समस्त जगत सीताराम मय है, ऐसा वेद कहते हैं।*

*श्री सीताष्टमी (जानकी जयंती) के पावन अवसर पर भगवान श्री राम संग भगवती माता सीता को कोटि कोटि प्रणाम् एवं वंदन....।*

*जय जय भगवती माता सीता*
🌺🌺🏹🌳🌳🏹🌺🌺
[2/26, 21:33] ओमीश Omish Ji: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

मांस-भक्षण-निषेध : संक्षिप्त प्रमाण
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महाभारत में कहा है-

धनेन क्रयिको हन्ति खादकश्चोपभोगतः।
घातको वधबन्धाभ्यामित्येष त्रिविधो वधः॥

आहर्ता चानुमन्ता च विशस्ता क्रयविक्रयी ।
संस्कर्ता चोपभोक्ता च खादकाः सर्व एव ते॥
       –महा० अनु० ११५/४०, ४९

’मांस खरीदनेवाला धन से प्राणी की हिंसा करता है, खानेवाला उपभोग से करता है और मारनेवाला मारकर और बाँधकर हिंसा करता है, इस पर तीन तरह से वध होता है । जो मनुष्य मांस लाता है, जो मँगाता है, जो पशु के अंग काटता है, जो खरीदता है, जो बेचता है, जो पकाता है और जो खाता है, वे सभी मांस खानेवाले (घातकी) हैं ।’

    अतएव मांस-भक्षण धर्म का हनन करनेवाला होने के कारण सर्वथा महापाप है । धर्म के पालन करनेवाले के लिये हिंसा का त्यागना पहली सीढ़ी है । जिसके हृदय में अहिंसा का भाव नहीं है वहाँ धर्म को स्थान ही कहाँ है?

भीष्मपितामह राजा युधिष्ठिर से कहते हैं-

मां स भक्षयते यस्माद्भक्षयिष्ये तमप्यहम ।
एतन्मांसस्य मांसत्वमनुबुद्ध्यस्व भारत ॥
       –महा० अनु० ११६/३५

' हे युधिष्ठिर ! वह मुझे खाता है इसलिये मैं भी उसे खाऊँगा यह मांस शब्द का मांसत्व है ऐसा समझो ।'

इसी प्रकार की बात मनु महाराज ने कही है-

मां स भक्षयितामुत्र यस्य मांसमिहाद्म्यहम् ।
एतन्मांसस्य मांसत्वं प्रवदन्तिं मनीषणः

                    –मनु0 ५/५५

’ मैं यहाँ जिसका मांस खाता हूँ, वह परलोक में मुझे (मेरा मांस) खायेगा। मांस शब्द का यही अर्थ विद्वान लोग किया करते हैं ।’

आज यहाँ जो जिस जीव के मांस खायेगा किसी समय वही जीव उसका बदला लेने के लिये उसके मांस को खानेवाला बनेगा । जो मनुष्य जिसको जितना कष्ट पहुँचाता है समयान्तर में उसको अपने किये हुए कर्म के फलस्वरुप वह कष्ट और भी अधिक मात्रा में (मय व्याज के) भोगना पड़ता है, इसके सिवा यह भी युक्तिसंगत बात है कि जैसे हमें दूसरे के द्वारा सताये और मारे जाने के समय कष्ट होता है वैसा ही सबको होता है । परपीड़ा महापातक है, पाप का फल सुख कैसे होगा?  इसलिये पितामह भीष्म कहते हैं-

कुम्भीपाके च पच्यन्ते तां तां योनिमुपागताः ।
आक्रम्य मार्यमाणाश्च भ्राम्यन्ते वै पुनः पुनः ॥
          –महा० अनु० ११६/२१

’ मांसाहारी जीव अनेक योनियों में उत्पन्न होते हुए अन्त में कुम्भीपाक नरक में यन्त्रणा भोगते हैं और दूसरे उन्हें बलात दबाकर मार डालते हैं और इस प्रकार वे बार- बार भिन्न-भिन्न योनियों में भटकते रहते हैं ।’

इमे वै मानवा लोके नृशंस मांसगृद्धिनः ।
विसृज्य विविधान भक्ष्यान महारक्षोगणा इव ॥
अपूपान विविधाकारान शाकानि विविधानि च ।
खाण्डवान रसयोगान्न तथेच्छन्ति यथामिषम ॥
      –महा० अनु० ११६/१-२

’ शोक है कि जगत में क्रूर मनुष्य नाना प्रकार के पवित्र खाद्य पदार्थों को छोड़कर महान राक्षस की भाँति मांस के लिये लालायित रहते हैं तथा भाँति-भाँति की मिठाईयों, तरह-तरह के शाकों, खाँड़ की बनी हुई वस्तुओं और सरस पदार्थों को भी वैसा पसन्द नहीं करते जैसा मांस को।’

इससे यह सिद्ध हो गया कि मांस मनुष्य का आहार कदापि नहीं है।

           –रमेशप्रसाद शुक्ल

           –जय श्रीमन्नारायण।
[2/26, 22:23] ‪+91 98239 16297‬: *सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे दैनिक पंचांग-- २७ फेब्रुवारी २०१७*

***!!श्री मयूरेश्वर प्रसन्न!!***
☀धर्मशास्त्रसंमत प्राचीन शास्त्रशुद्ध सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग (पुणे) नुसार
दिनांक २७ फेब्रुवारी २०१७
पृथ्वीवर अग्निवास १९:३७ पर्यंत.
रवि मुखात आहुती आहे.
शिववास स्मशानात,काम्य शिवोपासनेसाठी अशुभ दिवस आहे.
☀ *सूर्योदय* -०६:५९
☀ *सूर्यास्त* -१८:३५
*शालिवाहन शके* -१९३८
*संवत्सर* -दुर्मुख
*अयन* -उत्तरायण
*ऋतु* -शिशिर (सौर)
*मास* -फाल्गुन
*पक्ष* -शुक्ल
*तिथी* -प्रतिपदा
*वार* -सोमवार
*नक्षत्र* -शततारा (०७:१४ नंतर पू.भाद्र.)
*योग* -सिद्ध (१६:२२ नंतर साध्य)
*करण* -किंस्तुघ्न (०८:०१ नंतर बव)
*चंद्र रास* -कुंभ
*सूर्य रास* -कुंभ
*गुरु रास* -तुळ
*राहु काळ* -०७:३० ते ०९:००
*पंचांगकर्ते*:सिद्धांती ज्योतिषरत्न गणकप्रवर
*पं.गौरवशास्त्री देशपांडे-०९८२३९१६२९७*
*विशेष*-पंचक नक्षत्र दिवसभर,गोकर्णमहाबळेश्वर रथोत्सव,मृत्यूयोग १९:३७ नंतर,या दिवशी पाण्यात चमचाभर गाईचे दूध घालून स्नान करावे.शिव सहस्रनामावलीचे पठण करावे."सों सोमाय नमः" या मंत्राचा किमान १०८ जप करावा.सत्पात्री व्यक्तिस तांदूळ व साखर दान करावे.शंकराला सायंकाळी दहिभाताचा नैवेद्य दाखवावा.यात्रेसाठी घरातून बाहेर पडताना दूध प्राशन करुन बाहेर पडल्यास प्रवासात ग्रहांची अनुकूलता प्राप्त होईल.
*विशेष टीप* - *आगामी नूतन संवत्सरारंभी येणारा गुढीपाडवा सूर्यसिद्धांतीय पंचांगानुसार म्हणजेच मुख्यतः धर्मशास्त्रानुसार या वेळी मंगळवार दि.२८ मार्च २०१७ रोजी नसून बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजी आहे.कारण,सूर्यसिद्धांतानुसार दि.२८ मार्च रोजी सूर्योदयास अमावस्या तिथी आहे व दि.२९ मार्च रोजी सूर्योदयास प्रतिपदा तिथी आहे.याची विशेष नोंद हिंदूंनी घ्यावी व सर्वांनी गुढी-ब्रम्हध्वज पूजन हे चैत्र शु.प्रतिपदेला बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजी करावे.*
www.facebook.com/DeshpandePanchang
*टीप*-->>सर्व कामांसाठी मध्यम दिवस आहे.
**या दिवशी कोहळ्याचे पदार्थ खावू नये.
**या दिवशी पांढरे वस्त्र परिधान करावे.
*आगामी नूतन संवत्सराचे सर्वांना उपयुक्त फायदेशीर असे धर्मशास्त्रसंमत सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग सर्वत्र उपलब्ध आहे.*
♦ *लाभदायक वेळा*-->>
लाभ मुहूर्त--  दुपारी ३.४५ ते सायं.५.१५
अमृत मुहूर्त-- सायं.५.१५ ते सायंकाळी ६.४५
|| *यशस्वी जीवनाचे प्रमुख अंग* ||
|| *सूर्यसिध्दांतीय देशपांडे पंचांग* ||
आपला दिवस सुखाचा जावो,मन प्रसन्न राहो.
(कृपया वरील पंचांग हे पंचांगकर्त्यांच्या नावासहच व अजिबात नाव न बदलता शेअर करावे.या लहानश्या कृतीने तात्त्विक आनंद व नैतिक समाधान मिळते.@copyright)
[2/26, 22:40] ‪+91 96859 71982‬: मैं तोहे ना पुकारूँगी पिया
सुन कबहुँ तो कलेजो तेरो पिघलेगो ।
कबहुँ तो पतितन पर कोमल कर तू फेरेगो ।
आयेगो तू पिया जबहिं , तबहिं मोको और विरहन भरेगो
आये तो संग राखियो , दरश देय पुनि पुनि न भागियों
सुन री सखी , तू पुकारेगी ,वो आवेगों ।
निहारत निहारत छुवन लागे तब भागेगो ।
तब कलेजो तेरो फाटेगो , पाषाण हिय तब हिम सम धारा सम बहवण लागेगो
[2/27, 04:17] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूल श्लोकः 🔔*
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति।।२. १७।।
*🏹पदच्छेदः........*
अविनाशि, तु, तत्, विद्धि, येन, सर्वम्, इदम्,ततम्।
विनाशम्, अव्ययस्य, अस्य, न, कश्चित्, कर्तुम्, अर्हति।।
*🌹पदपरिचयः......🌹*
अविनाशि —अविनाशिन् -न. नपुं. प्र. एक.
तु —अव्ययम्
तत् —तद्-द. सर्व. नपुं. द्वि. एक.
विद्धि—विद् - पर. लोट्. मपु. एक.
येन —यद्-द.सर्व.पुं.तृ.एक.
सर्वम् —अ. सर्व. नपुं. प्र. एक.
इदम् —इदम्-म. सर्व. पुं. प्र. एक.
ततम् —अ. नपुं. प्र. एक.
विनाशम्—अ. पुं. द्वि. एक.
अव्ययस्य —अ. पुं. ष. एक.
अस्य —इदम्-म. सर्व. पुं. ष. एक.
न —अव्ययम्
कश्चित् —अव्ययम्
कर्तुम् —तुमुन्नन्तम् अव्ययम्
अर्हति —अर्ह-पर. कर्तरि लट्.प्रपु.एक.
*🌷पदार्थः...... 🌷*
तत् तु —तत्वं तु
अविनाशि —विनाशरहितम्
विद्धि —जानीहि
येन —येन
इदम् सर्वम् —एतत् सर्वमपि जगत्
ततम् —व्याप्तम्
अस्य अव्ययस्य —एतस्य तत्त्वस्य
विनाशं कर्तुम् —नाशं कर्तुम्
कश्चित् —कोsपि
न अर्हति —न हि शक्नोति।
*🌻अन्वयः 🌻*
येन इदं सर्वं ततं तत् तु अविनाशि विद्धि। अस्य अव्ययस्य विनाशं कर्तुं कश्चित् अपि न अर्हति।
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_विद्धि।_
किं विद्धि?
*तत् विद्धि।*
कीदृशं तत् विद्धि?
*येन सर्वम् इदं ततं तत् विद्धि।*
येन सर्वम् इदं ततं तत् कीदृशं विद्धि?
*येन सर्वम् इदं ततं तत् अविनाशि विद्धि।*
_न अर्हति।_
कः न अर्हति?
*कश्चित् अपि न अर्हति।*
कश्चित् अपि किं कर्तुं न अर्हति?
*कश्चित् अपि विनाशं कर्तुं न अर्हति।*
कश्चित् अपि कस्य विनाशं कर्तुं न अर्हति?
*कश्चित् अपि अस्य विनाशं कर्तुं न अर्हति।*
कश्चित् अपि कीदृशस्य अस्य विनाशं कर्तुं न अर्हति?
*कश्चित् अपि अव्ययस्य अस्य विनाशं कर्तुं न अर्हति।*
*📢 तात्पर्यम्......*
तत् तत्त्वं तु सर्वदा अविनाशि इति जानीहि। तेन तत्त्वेन सर्वमपि इदं जगत् व्याप्तम् अस्ति। तादृशस्य अविनाशिनः तत्त्वस्य विनाशं कर्तुं कोsपि नैव शक्नोति।
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
अव्ययस्यास्य =अव्ययस्य +अस्य -सवर्णदीर्घसन्धिः।
▶ समासः
अविनाशि =न विनाशि - नञ् तत्पुरुषः।
अव्ययस्य = न विद्यते व्ययः यस्य तत्, तस्य - नञ् बहुव्रीहिः।
▶ कृदन्तः
विनाशम् = वि + नश् +घञ् (भावे) तम्।
कर्तुम् =कृ + तुमुन्।
▶ तद्धितान्तः
विनाशि = विनाश + इनि (मतुबर्थे) विनाशः अस्य अस्मिन् वा अस्ति इति विनाशी।
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                              *गीताप्रवेशात्*
[2/27, 06:06] राम भवनमणि त्रिपाठी: 🎂💐ॐ नमः शिवाय💐🎂
॥ विश्वनाथाष्टकम् ॥

गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं
गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम् ।
नारायणप्रियमनंगमदापहारं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥

वाचामगोचरमनेकगुणस्वरूपं
वागीशविष्णुसुरसेवितपादपीठम् ।
वामेनविग्रहवरेणकलत्रवन्तं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥

भूताधिपं भुजगभूषणभूषितांगं
व्याघ्राजिनांबरधरं जटिलं त्रिनेत्रम् ।
पाशांकुशाभयवरप्रदशूलपाणिं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ।

शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं
भालेक्षणानलविशोषितपंचबाणम् ।
नागाधिपारचितभासुरकर्णपूरं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥

पंचाननं दुरितमत्तमतङ्गजानां
नागान्तकं दनुजपुंगवपन्नगानाम् ।
दावानलं मरणशोकजराटवीनां
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥

तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीयं
आनन्दकन्दमपराजितमप्रमेयम् ।
नागात्मकं सकलनिष्कलमात्मरूपं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥

रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं
वैराग्यशान्तिनिलयं गिरिजासहायम् ।
माधुर्यधैर्यसुभगं गरलाभिरामं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥

आशां विहाय परिहृत्य परस्य निन्दां
पापे रतिं च सुनिवार्य मनः समाधौ ।
आदाय हृत्कमलमध्यगतं परेशं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥

वाराणसीपुरपतेः स्तवनं शिवस्य
व्याख्यातमष्टकमिदं पठते मनुष्यः ।
विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं
सम्प्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम् ॥

विश्वनाथाष्टकमिदं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥

॥ इति श्रीमहर्षिव्यासप्रणीतं श्रीविश्वनाथाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
[2/27, 06:52] अरविन्द गुरू जी: *हरि ॐ तत्सत्!  सुप्रभातम्।*
*नमस्सर्वेभ्यः*🌺🙏�🌺

भगवदनुग्रहात्सर्वे सज्जनाः सदैव सानन्दं पुरुषार्थं परमार्थं च कुर्वन्तः स्व-जीवनं यापयन्तु।

निवेदयामि, विचारयन्तु भवन्तः। सर्वे जानन्ति, जलेनैव मुख्यरूपेण वृक्षाणां सम्पोषणं भवति, येन ते जीवनं धारयन्ति। अस्मात्कारणात्काष्ठं सदैव जलराशीनां मध्येSपि तरति, यतोहि काष्ठस्योपादानकारणं मूलरूपेण वृक्षाः सन्ति। जलसदृशः स्वभावः सत्पुरुषाणां भवतीति मे मतिः।

*॥ सत्यसनातधर्मो  विजयतेतराम् ॥*
[2/27, 08:09] P Alok Ji: बटु विस्वास अचल निज धरमा।
तीरथराज समाज सुकरमा।।सबहि सुलभ सब दिन सब देसा।सेवत सादर समन कलेशा।।उस संत समाज रूपी प्रयाग मे,अपने धर्म मे जो अटल विस्वास है वह अक्षयवट है और शुभकर्म हि उस तीर्थराज प्रयाग समाज का परिकर है वह संतसमाजरूपी प्रयाग सब देशों मे सब समय सबको सहज हि प्राप्त हो सकता है और आदर पूर्वक सेवन करने से क्लेशों को नष्ट करने वाला है। पिबत् रामचरितमानस रसम् श्रद्धेय आलोकजी शास्त्री इन्दौर
[2/27, 08:45] राम भवनमणि त्रिपाठी: रामभवन मणि त्रिपाठी
गोरखपुर

चन्द्रशेखर आज़ाद

चन्द्रशेखर नाम, सूरज का प्रखर उत्ताप हूँ मैं,
फूटते ज्वाला-मुखी-सा, क्रांति का उद्घोष हूँ मैं।
कोश जख्मों का, लगे इतिहास के जो वक्ष पर है,
चीखते प्रतिरोध का जलता हुआ आक्रोश हूँ मैं।

विवश अधरों पर सुलगता गीत हूँ विद्रोह का मैं,
नाश के मन पर नशे जैसा चढ़ा उन्माद हूँ मैं।
मैं गुलामी का कफ़न, उजला सपन स्वाधीनता का,
नाम से आजाद, हर संकल्प से फौलाद हूँ मैं।

आँसुओं को, तेज मैं तेजाब का देने चला हूँ,
जो रही कल तक पराजय, आज उस पर जीत हूँ मैं।
मैं प्रभंजन हूँ, घुटन के बादलों को चीर देने,
बिजलियों की धड़कनों का कड़कता संगीत हूँ मैं।

सिसकियों पर, अब किसी अन्याय को पलने न दूँगा,
जुल्म के सिक्के किसी के, मैं यहाँ चलने न दूँगा।
खून के दीपक जलाकर अब दिवाली ही मनेगी,
इस धरा पर, अब दिलों की होलियाँ जलने न दूँगा।

राज सत्ता में हुए मदहोश दीवानो! लुटेरों,
मैं तुम्हारे जुल्म के आघात को ललकारता हूँ।
मैं तुम्हारे दंभ को-पाखंड को, देता चुनौती,
मैं तुम्हारी जात को-औकात को ललकारता हूँ।

मैं जमाने को जगाने, आज यह आवाज देता
इन्कलाबी आग में, अन्याय की होली जलाओ।
तुम नहीं कातर स्वरों में न्याय की अब भीख माँगो,
गर्जना के घोष में विद्रोह के अब गीत गाओ।

आग भूखे पेट की, अधिकार देती है सभी को,
चूसते जो खून, उनकी बोटियाँ हम नोच खाएँ।
जिन भुजाओं में कसक-कुछ कर दिखानेकी ठसक है,
वे न भूखे पेट, दिल की आग ही अपनी दिखाएँ।

और मरना ही हमें जब, तड़प कर घुटकर मरें क्यों
छातियों में गोलियाँ खाकर शहादत से मरें हम।
मेमनों की भाँति मिमिया कर नहीं गर्दन कटाएँ,
स्वाभिमानी शीष ऊँचा रख, बगावत से मरें हम।

इसलिए, मैं देश के हर आदमी से कह रहा हूँ,
आदमीयता का तकाजा है वतन के हों सिपाही।
हड्डियों में शक्ति वह पैदा करें, तलवार मुरझे,
तोप का मुँह बंद कर, हम जुल्म पर ढाएँ तबाही।

कलम के जादूगरों से कह रही युग-चेतना यह,
लेखनी की धार से, अंधेर का वे वक्ष फाड़ें।
रक्त, मज्जा, हड्डियों के मूल्य पर जो बन रहा हो,
तोड़ दें उसके कंगूरे, उस महल को वे उजाड़ें।

बिक गई यदि कलम, तो फिर देश कैसे बच सकेगा,
सर कलम हो, कालम का सर शर्म से झुकने व पाए।
चल रही तलवार या बन्दूक हो जब देश के हित,
यह चले-चलती रहे, क्षण भर कलम स्र्कने न पाए।

यह कलम ऐसे चले, श्रम-साधना की ज्यों कुदाली,
वर्ग-भेदों की शिलाएँ तोड़ चकनाचूर कर दे।
यह चले ऐसे कि चलते खेत में हल जिस तरह हैं,
उर्वरा अपनी धरा की, मोतियों से माँग भर दे।

यह चले ऐसे कि उजड़े देश का सौभाग्य लिख दे,
यह चले ऐसे कि पतझड़ में बहारें मुस्कराएँ।
यह चले ऐसे कि फसलें झूम कर गाएँ बघावे,
यह चले तो गर्व से खलिहान अपने सर उठाएँ।

यह कलम ऐसे चले, ज्यों पुण्य की है बेल चलती,
यह कलम बन कर कटारी पाप के फाड़े कलेजे।
यह कलम ऐसे चले, चलते प्रगति के पाँव जैसे,
यह कलम चल कर हमारे देश का गौरव सहेजे।

सृष्टि नवयुग की करें हम, पुण्य-पावन इस धरा पर,
हाथ श्रम के, आज नूतन सर्जना करके दिखाएँ।
हो कला की साधना का श्रेय जन-कल्याणकारी,
हम सिपाही देश के दुर्भाग्य को जड़ से मिटाएँ।
[2/27, 10:24] ओमीश Omish Ji: ⚪आज का राम रस⚪
भूखे भजन न होई गोपाला का सिद्धांत सरासर गलत है----
आपने अक्सर सुना देखा होगा कि कई लोग एक कहावत कहते है कि--
भूखे भजन न होई गोपाला,
ले लो अपना कंठी माला।
या कहते है कि---
आगे लगे तोर पोथी म,
जीव गये हे मोर रोटी म।।
आदि आदि कहावत देखने सुनने मे आता है अर्थात इसका मतलब है कि यदि व्यक्ति को भूख लगे तो उनका मन भगवान की पूजा , भक्ति, सुमिरन आदि कार्य मे नही लग सकता है लेकिन यह सिद्धांत बिल्कुल ही गलत है।
प्रमाण➡
गोस्वामी श्री तुलसीदास जी द्वारा रचित श्री रामचरित मानस सुन्दरकांड दोहा क्रमांक---1
हनुमान तेहि परसा,
         कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु,
         मोहि कहां विश्राम।।
मतलब हनुमान जी ने पहले राम काज को प्राथमिकता दी और राम जी के  नाम का सुमिरन करते गये------
, , बार बार रघुवीर संभारी,,
और जब तक राम काज पूर्ण नही हुआ तब तक भोजन नही किया हनुमान जी ने और जैसे ही कार्य पूर्ण हुआ फिर हनुमान जी भोजन किये लंका मे-----
सुन्दरकांड दोहा क्रमांक 17 चौपाई नंबर 7
सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा।
लागि देखि सुंदर फल रूखा।।
और माता जानकी जी बोली--
देखि बुद्धि बल निपुन कपि,
        कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयॅ धरि,
        तात मधुर फल खाहु।।
ठीक है---
इसके बाद हनुमान जी लंका मे और बांकी कार्य पूर्ण किये और वानर सेना के पास वापस आने के बाद फिर भोजन किया फल खाया➡
सुन्दरकांड दोहा क्रमांक 28 चौपाई नंबर 7
तब मधुवन भीतर सब आए,
अंगद संमत मधु फल खाए।
हमारा कहने का आशय यह है कि श्री राम भक्त हनुमान जी ने हमेशा भोजन से पहले भजन और राम काज को ही प्राथमिकता दिया इसलिए भूखे भजन न होई गोपाला का सिद्धांत सरासर गलत है गलत है।
🙏🏻जय राम जी की🙏🏻
🇮🇳जय भारत माता की🇮🇳
[2/27, 10:31] ओमीश Omish Ji: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

जर्जरदेहे को॓ऽपि न गेहे
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यावद्वित्तोपार्जनसक्तस्तावन्निजपरिवारो रक्तः ।
पश्चाद्धावति जर्जरदेहे वार्तां पृच्छति को॓ऽपि न गेहे॥

(यावद् वित्त-उप-अर्जन-सक्त: तावत् निज-परिवार: रक्तः पश्चात् धावति जर्जर-देहे वार्ताम् पृच्छति क: अपि न गेहे।)

अर्थ –

जब तक धन-संपत्ति अर्जित करने में समर्थ हो तब तक उसका परिवार उसमें अनुरक्ति रखता है। बाद में वह जर्जर हो चुके शरीर के साथ इधर-उधर भटकता है और घर में उससे हालचाल भी नहीं पूछता।

भावार्थ –

मनुष्य वृद्धावस्था में प्रवेश करने पर धन-धान्य अर्जित करने की सामर्थ्य  खो बैठता है। वास्तव में जब यह स्थिति आती है तभी उसे वृद्ध कहना चाहिए, महज उम्र के आधार पर नहीं। उसके इस अवस्था में पहुंचने पर परिवार के लोगों का उसके प्रति लगाव समाप्तप्राय हो जाता है। उसे एक बोझ के तौर पर देखा जाता है। हो सकता है कि प्राचीन काल में ऐसा होता रहा होगा, क्योंकि तब सुविधाएं नहीं थीं। किंतु आज के युग में विविध प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं और कई परिवारों में उनका विशेष ख्याल रखा जाता है।  फिर भी कुछ परिवारों में ऐसा नहीं होता और बूढ़े जनों को तिरस्कार भुगतना पड़ता है।

             –जय श्रीमन्नारायण।
[2/27, 11:29] ओमीश Omish Ji: सादर वंदन 🙏🙏
मुझे ज्ञात है कि आप जैसे सहनशील जिम्मेदार व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकते हैं। यह अवश्य ही किसी के द्वारा भूल हुई होगी न कि आपके द्वारा। लेकिन एक निवेदन करूंगा कि आगे से ध्यान दीजिएगा।
पार्थिव शिवलिंग निर्माण तो अतिसुन्दर है लेकिन इस समूह में पूर्ण रूप से फोटो वीडियो चुटकुले राजनीतिक पोस्ट प्रतिबंधित हैं 🙏🙏
निवेदन को स्वीकार करिए और अपने मोबाइल का संचालन स्वतः करिए 🙏🙏
[2/27, 11:30] ‪+91 94259 88411‬: आङ्ग्ल वर्षाणां भारतीय विक्रमाब्द शके च  कथं परिवर्तेत भविता सूत्रं किम?
[2/27, 11:37] ‪+91 96859 71982‬: पर्दा ना करो पुजारी,
  दिखने दो झलक प्यारी..
मेरे पास वक्त कम है,
  'श्याम' से बातें हैं ढेर सारी..

       जय श्री श्याम..
[2/27, 11:40] ‪+91 96859 71982‬: बड़ी आरजू थी सांवरे,
   तुमको बे-नकाब देखने की..
पिताम्बर जो सरका,
   तो तेरी घुंघराली जुल्फ़ें दीवार बन गईं..

       जय श्री श्याम..
[2/27, 11:43] ‪+91 96859 71982‬: चरण शरण मिल जाये श्याम की,
    फिर ना कुछ दरकार है..
वही सुखी है इस जीवन में,
     जिसे "श्याम" से प्यार है..

       जय श्री श्याम..
[2/27, 12:11] ‪+91 99673 46057‬: राधे राधे, आज का भगवद चिन्तन ॥।   
              27-02-2017
🌺      गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से त्याग की चर्चा करते हुए कहते हैं कि जो कर्म हमें करने चाहियें जैसे दान-पुन्य, परोपकार सेवा आदि। अगर मनुष्य मोह के कारण इन कर्मों का त्याग करता है तो ये तामस त्याग है।
🌺      कर्मों को दुःख रूप समझकर उनके परिणाम से भयभीत होकर और शारीरिक व मानसिक कष्टों से बचने के लिए किया गया त्याग राजस त्याग है।
🌺      कर्मों का पूर्णतया त्याग कभी भी संभव नहीं, मगर कर्मों के फलों का त्याग अवश्य संभव है। जिस मनुष्य के द्वारा शास्त्रों की आज्ञा का निर्वहन करते हुए मात्र कर्तव्य पालन के उद्देश्य से आसक्ति और फल का त्याग करते हुए कर्म किया जाता है वही सात्विक और सच्चा त्याग माना है।
[2/27, 12:14] राम भवनमणि त्रिपाठी: रामभवन मणि त्रिपाठी
गोरखपुर

लक्ष्मी की वृद्धि

"श्रीर्मङ्गलात्प्रभवति प्रागल्भ्यात्सम्प्रवर्धते ।
दाक्ष्यात् कुरुते मूलं संयमात्प्रतितिष्ठति ॥"
(विदुर-नीतिः--०३.५१)

अर्थ :---श्री (शोभा, लक्ष्मी) माङ्गल्य से उत्तपन्न होती है, प्रगल्भता (प्रौढता) से बढती है, दक्षता (कुशलता) के कारण जड जमाती है और संयम (मितव्ययता) के कारण टीकती है ।
[2/27, 12:26] P anuragi. ji: साँवरे की आराधिका  कनिका जी!!!
        प्रति शब्द असीम स्नेह !
          आराधक और आराध्य की वार्ता!!
            पृथकता के समापन के संकेत देते शब्द!!!
              वंदन है इस पुनीत भाव को
                   अनुरागी जी
[2/27, 12:39] P anuragi. ji: सुन्दर  लेख  पर  आभार!!!

राम काज कीन्हे बिनु
     मोहिं कहां    विश्राम
         तो
विभीषण जी के पास श्री हनुमंत जी को

पावा अनिर्वाच्य विश्रामा

                कैसे

राम काज तो  श्री विभीषण जी के पास पहुँचने पर भी पूर्ण नहीं हुआ था

       राम रस से उत्पन्न प्रश्न

सत्सन्गार्थ  प्रश्न   है
     विनीत
  अनुरागी जी
[2/27, 16:31] P gangadhar Ji: भिक्षुः क्वास्ति बलेर्मखे पशुपतिः किं नास्त्यसौ गोकुले ,
मुग्धे पन्नगभूषणः सखि सदा  शेते च तस्योपरि ।
आर्ये मुञ्च विषादमाशु कमले नाहं प्रकृत्या चला,
चेत्थं वै गिरिराजसमुद्रसुतयोः संभाषणं पातु वः।।
[शार्दूलविक्रीडीतम् ]
पार्वतीलक्ष्म्योः मध्ये संवादः

लक्ष्मीः-भिक्षुः क्वास्ति ?
पार्वती- बलेर्मखे ।
लक्ष्मीः-पशुपतिः किं नास्त्यसौ पार्वती-गोकुले ।
लक्ष्मीः-मुग्धे पन्नगभूषणः?
पार्वती- सखि सदा  शेते च तस्योपरि ।
लक्ष्मीः-आर्ये ! मुञ्च विषादमाशु ।पार्वती-कमले नाहं प्रकृत्या चला,

चेत्थं वै गिरिराजसमुद्रसुतयोः संभाषणं पातु वः।
[2/27, 18:15] ‪+91 98896 25094‬: मूनि श्री क्षमासागरजी की बहुत सुँदर पंक्तियाँ

"संयुक्त परिवार"

वो पंगत में बैठ के
निवालों का तोड़ना,
वो अपनों की संगत में
रिश्तों का जोडना,

वो दादा की लाठी पकड़
गलियों में घूमना,
वो दादी का बलैया लेना
और माथे को चूमना,

सोते वक्त दादी पुराने
किस्से कहानी कहती थीं,
आंख खुलते ही माँ की
आरती सुनाई देती थी,

इंसान खुद से दूर
अब होता जा रहा है,
वो संयुक्त परिवार का दौर
अब खोता जा रहा है।

माली अपने हाथ से
हर बीज बोता था,
घर ही अपने आप में
पाठशाला होता था,

संस्कार और संस्कृति
रग रग में बसते थे,
उस दौर में हम
मुस्कुराते नहीं
खुल कर हंसते थे।

मनोरंजन के कई साधन
आज हमारे पास है,
पर ये निर्जीव है
इनमें नहीं साँस है,

आज गरमी में एसी
और जाड़े में हीटर है,
और रिश्तों को
मापने के लिये
स्वार्थ का मीटर है।

वो समृद्ध नहीं थे फिर भी
दस दस को पालते थे,
खुद ठिठुरते रहते और
कम्बल बच्चों पर डालते थे।

मंदिर में हाथ जोड़ तो
रोज सर झुकाते हैं,
पर माता-पिता के धोक खाने
होली दीवाली जाते हैं।

मैं आज की युवा पीढी को
इक बात बताना चाहूँगा,
उनके अंत:मन में एक
दीप जलाना चाहूँगा

ईश्वर ने जिसे जोड़ा है
उसे तोड़ना ठीक नहीं,
ये रिश्ते हमारी जागीर हैं
ये कोई भीख नहीं।

अपनों के बीच की दूरी
अब सारी मिटा लो,
रिश्तों की दरार अब भर लो
उन्हें फिर से गले लगा लो।

अपने आप से
सारी उम्र नज़रें चुराओगे,
अपनों के ना हुए तो
किसी के ना हो पाओगे
सब कुछ भले ही मिल जाए
पर अपना अस्तित्व गँवाओगे

बुजुर्गों की छत्र छाया में ही
महफूज रह पाओगे।
होली बेमानी होगी
दीपावली झूठी होगी,
अगर पिता दुखी होगा
और माँ रूठी होगी।।

---------------------------------
[2/27, 20:03] ‪+91 90241 11290‬: अहन्यहनि भूतानि गच्छन्ति यममन्दिरम् ।
शेषा जीवितुमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ॥
हर रोज़ कितने हि प्राणी यममंदिर जाते हैं (मर जाते हैं), वह देखने के बावजुद अन्य प्राणी जीने की इच्छा रखते हैं, इससे बडा आश्चर्य क्या हो सकता है ?
मनोजकुमारशास्त्री
[2/27, 21:40] ‪+91 98937 84985‬: 🌳
मृत्यु के बाद भी पुण्य कमाने के 7 (सात) आसान उपाय ।

.🔜 (1)= किसी को धार्मिक ग्रन्थ भैंट करे जब भी कोई उसका पाठ करेगा आप को पुण्य मिलेगा ।

🔜(2)= एक व्हीलचेयर किसी अस्पताल मे दान करे जब भी कोई मरीज उसका उपयोग करेगा पुण्य आपको मिलेगा।

श🔜(3)= किसी अन्नक्षेत्र के लिये मासिक ब्याज वाली एफ. डी बनवादे जब  भी उसकी ब्याज से कोई भोजन करेगा आपको पुण्य मिलेगा

🔜 (4)=किसी पब्लिक प्लेस पर  वाटर कूलर लगवाएँ हमेशा पुण्य मिलेगा।

🔜(5)= किसी अनाथ को शिक्षित करो वह और उसकी पीढ़ियाँ भी आपको दुआ देगी तो आपको पुण्य मिलेगा।

🔜(6)= अपनी औलाद को परोपकारी बना सके तो सदैव पुण्य मिलता रहेगा।

🔜( 7)= सबसे आसान है कि आप ये बाते औरों को बताये, किसी एक ने भी अमल किया तो आपको पुण्य मिलेगा...!

सबसे पहले सेंड करदो,  क्यूंकि जबतक कोई यह MSG पढ़ता रहेगा,
आप के नाम के पुण्य के,  🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳 पेड़ लगते रहेगे,  और आपको ...,
🍎🍏🍊🍋🍒🍇🍉🍓🍑 🍈🍌🍐🍍 फल मिलते रहेंगे इसलिये रुकिये नही निरंतर लगे रहिये ....! 🙏
[2/27, 23:01] पं अर्चना जी: 💐🙏🏼👁💗👁🙏🏼💐
🙏🏼प्रेमप्रवर्तिका राधे राधे🙏🏼
  💐💐💐💐💐💐💐
चन्द्रमुखी चंचल चितचोरी, जय श्री राधा
सुघड़ सांवरा सूरत भोरी, जय श्री कृष्ण
श्यामा श्याम एक सी जोड़ी
श्री राधा कृष्णाय नमः ..
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
पंच रंग चूनर, केसर न्यारी, जय श्री राधा
पट पीताम्बर, कामर कारी, जय श्री कृष्ण
एकरूप, अनुपम छवि प्यारी
श्री राधा कृष्णाय नमः ..
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
चन्द्र चन्द्रिका चम चम चमके, जय श्री राधा
मोर मुकुट सिर दम दम दमके, जय श्री कृष्ण
जुगल प्रेम रस झम झम झमके
श्री राधा कृष्णाय नमः ..
💐💐💐💐💐💐💐
कस्तूरी कुम्कुम जुत बिन्दा, जय श्री राधा
चन्दन चारु तिलक गति चन्दा, जय श्री कृष्ण
सुहृद लाड़ली लाल सुनन्दा
श्री राधा कृष्णाय नमः ..
💐💐💐💐💐💐💐💐
घूम घुमारो घांघर सोहे, जय श्री राधा
कटि कटिनी कमलापति सोहे, जय श्री कृष्ण
कमलासन सुर मुनि मन मोहे
श्री राधा कृष्णाय नमः ..
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
रत्न जटित आभूषण सुन्दर, जय श्री राधा
कौस्तुभमणि कमलांचित नटवर, जय श्री कृष्ण
तड़त कड़त मुरली ध्वनि मनहर
श्री राधा कृष्णाय नमः ..
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
राधा राधा कृष्ण कन्हैया जय श्री राधा
भव भय सागर पार लगैया जय श्री कृष्ण .
मंगल मूरति मोक्ष करैया
श्री राधा कृष्णाय नमः ..
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
मन्द हसन मतवारे नैना, जय श्री राधा
मनमोहन मनहारे सैना, जय श्री कृष्ण
जटु मुसकावनि मीठे बैना
श्री राधा कृष्णाय नमः ..
🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃
श्री राधा भव बाधा हारी, जय श्री राधा
संकत मोचन कृष्ण मुरारी, जय श्री कृष्ण
एक शक्ति, एकहि आधारी
श्री राधा कृष्णाय नमः ..
🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
जग ज्योति, जगजननी माता, जय श्री रा्धा
जगजीवन, जगपति, जग दाता, जय श्री कृष्ण
जगदाधार, जगत विख्याता
श्री राधा कृष्णाय नमः ..
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
राधा, राधा, कृष्ण कन्हैया, जय श्री रा्धा
भव भय सागर पार लगैया, जय श्री कृष्ण
मंगल मूरति, मोक्ष करैया
श्री राधा कृष्णाय नमः ..
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
सर्वेश्वरी सर्व दुःखदाहनि, जय श्री रा्धा
त्रिभुवनपति, त्रयताप नसावन, जय श्री कृष्ण
परमदेवि, परमेश्वर पावन
श्री राधा कृष्णाय नमः ..
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
त्रिसमय युगल चरण चित धावे, जय श्री रा्धा
सो नर जगत परमपद पावे, जय श्री कृष्ण
राधा कृष्ण 'छैल' मन भावे
श्री राधा कृष्णाय नमः ..
💐💐🌹🌹🌺🌺🌷🌷
      !! जय जय श्री राधे गोविन्द !!
🌺🙏🙏🏼👁💗👁🙏🏼🙏🏼🌺
श्री राधे राधे बोलना तो पड़ेगा जी

1 comment:

  1. आज आपका ब्लॉग पढा| बहुत ही सुंदर प्रसंग हैं | सभी विद्वत् जनों को मेरा कोटिशः अभिवादन |

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