Saturday, May 28, 2016

वास्तु सान्ति संकल्प

प्रधान संकल्प

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:श्रीमद्भगवतो महापुरूषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे श्रीरामक्षेत्रे परशुरामाश्रमे दण्डकारण्यदेशे पुण्यप्रदेशे महाराष्ट्रमहामण्डलान्तर्गते  ........ग्रामे गोदावर्या: दक्षिणदिङ्भागे श्रीमल्लवणाब्धे सिन्धुतीरे 
श्रीसंवत् द्वयसहस्त्र त्रयोसप्तति:शालिवाहनशाकेऽस्मिन् वर्तमाने सौम्य नामसंवत्सरे श्रीसूर्ये उत्तरायणे वसन्तर्तोः महामांगल्यप्रदेवैशाखमासे शुभेशुक्लपक्षे तृतियांतिथौ श्रीचंद्रवासरान्वितायाम् मृगशिरानक्षत्रे सुकर्मायोगे गरजकरणे मिथुनराशौ स्थितेश्रीचन्द्रे मेषराशिस्थितेश्रीसूर्ये शेषेषुग्रहेषु भौम बुध गुरू शुक्र शनि राहु केत्वादि यथायथं राशिस्थितेेषु  सत्सु एवंगुणविशेषण विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ, नाना नामगोत्रोत्पन्नो शर्मा/वर्मा/गुप्तो/दासो वा  सपत्नीको यजमानोऽहम् --मम आत्मन:श्रुति स्मृति पुराणोक्त पुण्य फल प्राप्त्यर्थम् धर्माऽर्थ काम मोक्ष पुरूषार्थचतुष्टयप्राप्त्यर्थं अप्राप्तलक्ष्मीप्राप्त्यर्थं प्राप्तलक्ष्म्याः चिरकालसंरक्षणार्थम् एेश्वर्याभिः वृद्'ध्यर्थं सकल इप्सित कामना संसिद्'ध्यर्थम् लोके सभायां राजद्वारे वा सर्वत्र विजयलाभादि प्राप्त्यर्थं इह जन्मनिजन्मान्तरे वा सकल दुरितोपशमनार्थं मम सभार्यस्य सपुत्रस्य सबान्धवस्य अखिलकुटुम्बसहितस्य सपशो: समस्त भय व्याधि जरा पीड़ा मृत्यु परिहार द्वारा आयु: ऐश्वर्याभि वृद्'ध्यर्थं मम जन्मराशे: अखिलकुटुम्बस्य वा जन्मराशे: सकाशात् केचिद् विरूद्ध चतुर्थाऽष्टमद्वादशस्थानस्थित क्रूर ग्रहा: तै: सूचितम् सूचयिष्यमाणं च यत् सर्वाऽरिष्टं तद्विनाशद्वारा एकादश स्थान स्थितिवत् शुभफल प्राप्त्यर्थं पुत्रपौत्रादि सन्तते: अविच्छिन्न वृद्धि अर्थं आदित्यादि नवग्रहाणां अनुकूलता सिद्धि अर्थं इन्द्रादि दशदिक्पालानां प्रसन्नता सिद्धि अर्थं आधिदैहिक आधिभौतिक आध्यात्मिक त्रिविधतापोपशमनार्थं तथा च अस्मिन् गृहनिर्माणकाले नानाविध जीवहिंसादि जन्य सकल पातक निरसन पूर्वकं सर्वारिष्ट शांत्यर्थम् सुवर्ण रजत ताम्र त्रपु सीसक कांस्य लौह पाषाणादि अष्ट शल्य मेदिनी दोष परिहार पूर्वकम्  आयव्यादि भवनदोष परिहारार्थम् अस्मिन् गृहे सुखपूर्वक सपरिवार चिरकाल निवासार्थम् श्री वास्तुदेवता प्रीत्यर्थम् सग्रहमखं वास्तुशान्त्यख्यं कर्म करिष्ये तथा च अद्यदिवसे शुभ वेलायां मंगलवेलायां प्रातःकालेऽस्मिन् नूतनगृहे तदंगभूतं निर्विघ्नता सिध्यर्थम् गणपतिपूजनं तथा च वसोर्धारा सहित सगणेशगौर्यादि मातॄणां पूजनं तथा च ब्राह्मण वरणं च करिष्ये। तत्रादौ आसनविधि दिग्रक्षणं कलशार्चनम् स्वस्तिपुण्याहवाचनम् दीपपूजनं आकाशमण्डले सूर्यपूजनं शंख घण्टार्चनं उत्तरे हनुमत ध्यानं दक्षिणे कालभैरव ध्यानं च करिष्ये। सर्वेषां देवानां सर्वाषाम्देवीनां ध्यायामि यथालब्ध सामग्रीभि: पूजनं   शिख्यादिवास्तुमंण्डलस्थ देवानां ध्यानम् पूजनं महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वती समन्विता चतुष्षष्टियोगिनीदेवता: ध्यायामि पूजनं एकोऽनपंचाशत् अजरादि क्षेत्रपाल मण्डल देवता ध्यानम् पूजनम् असंख्यातरूद्र सहित नवग्रहाणां मण्डलस्थ देवानां ध्यानम् पूजनं  कुण्डस्थदेवतापूजन सहित अग्निस्थापनं पूजनं श्रीसर्वतोभद्रमंण्डलस्थ देवानां ध्यानम् आवाहनम् पूजनं च करिष्ये !

Saturday, May 7, 2016

२०१६ धर्मार्थ वार्ता समाधान नियमावली

ॐसच्चा नामधेयाय श्री गुरवे परमात्मने नमः

     धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ| की नियमावली 
~~~~~~~~~~~~|
जिसका पालन करना "धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ"के सभी विद्वत आचार्यसदस्यों को अनिवार्य होगा।
धर्मार्थ वा०स० संघ-नियमावली
_______________________
१.सर्व प्रथम संघ के सभी आदरणीय श्रेष्ठ विद्वत आचार्य गणों से वार्ता करते समय उनके नाम के आगे सम्मान सूचक शब्द अवश्य लगायें।
२.श्रेष्ठ आचार्य गणों द्वारा छोटों को भी उचित सम्मान से ही संबोधित किया जाये।
३.आपसी शिष्टाचार एवम्
सौम्यता बनाते हुये सब से प्रेम पूर्वक सदाचार का परिचय दें |
४.किसी भी सदस्य के प्रति हीन भावना न रखते हुये सब को अपने परिवार का अभिन्न अंग माने।
५.किसी भी विद्वत सदस्य के ऊपर कोई भी ऐसी टिप्पणी न करें जिससे किसी का मन आहत हो या किसी को दुःख पहुँचे।
६.संघ के नाम एवम् प्रोफाइल फोटो से किसी प्रकार की छेड़खानी न करें यह कार्य संस्थापक महोदय एवं संचालक समिति के अंतर्गत आता है।
७.किसी भी प्रकार के अनावश्यक मैसेज न भेजें,जैसे चुटकुले, शाइरी,कॉमेडी या 'ये मैसेज 20 लोगो को शेयर करो शाम तक अच्छी खबर मिलेगी नहीँ तो आपका अनिष्ट होगा'_ इस प्रकार के मैसेज भेजना दण्डनीय अपराध माना जायेगा।
८.संघ में मात्र केवल सनातन धर्म,आध्यात्म,पुराण,
वेदोपनिषद् ,समस्त सनातन धर्म से सम्बंधित संग्रह ही भेजें। वह भी लिखित इमेज लेख न हो |
९.किसी भी सदस्य के प्रति हास परिहास,आपत्तिजनक टिप्पणी न करें,जिससे किसी भी प्रकार का विवाद हो।
१०.किसी भी सदस्य को अपनी विद्वता से निचा दिखाने का प्रयास न करें,बल्कि अपने ज्ञान को प्रेम पूर्वक प्रस्तुत करें।
११.किसी भी प्रश्न के ऊपर चल रही वार्ता समाधान  के वक्त दूसरे पोस्ट न भेजें |
१२.कोई भी चित्र या वीडियो फोटो भेजना विशेष मुख्य रूप से वर्जित है इसका विशेष ध्यान रखें |किसी भी सदस्य द्वारा इमेज या वीडियो भेजे जाने पर,महाकाल की खण्डपीठ के जरिये धारा ७२ की तहत तत्काल ७२ घंटो के लिये निष्कासित किया जायेगा |कारण स्पष्ट होने के बाद ही पुन: जोड़ा जा सकता है |
१३.संघ में किसी भी नए अतिथि विद्वान के आने पर उनका समुचित स्वागत अभिवादन करना हम सब के अच्छे शिष्टाचार का परिचायक है |
१४.किसी भी सदस्य से किसी प्रकार की त्रुटि होने पर उनके प्रति अन्य कोई सदस्य न उलझें। उसका समाधान, प्रशासनिक श्रेष्ठ गुरुजनों द्वारा या संघ संस्थापक द्वारा किया जायेगा। यदि किसी को किसी से शिकायत है तो वे संस्थापक महोदय या प्रसाशनिक समिति के किसी भी गुरूजन सदस्यों से पर्सनल एकाउंट में वार्ता करें।
१५.अगर अपने निजी कारणों बस कोई भी सदस्य संघ से बाहर होना चाहते हैँ तो कृपया सूचना अवश्य देने की कृपा करें।
१६.संघ के नियमो को कुछ और सुदृढ़ बनाने के लिए आप सब अपनी राय दे सकते हैँ संस्थापक महोदय के पर्शनल में।
१७."आप सभी विद्वत जन अपने प्रोफाइल में अपनी फोटों व अपना नाम अवश्य लिखें |
१८.कभी कभी मनोविनोद एवं मनोरंजन की वार्ता को अन्यथा न लेकर आनन्द की अनुभूति करें क्यों कि इस भागदौड़भरे जीवन में हसना और हसाना भी बहुत आवश्यक है ! लेकिन हास्य सामाजिक मर्यादा को ध्यान में रखते हुये करें |
१९.संघ में किसी भी पोस्ट को दुबारा पोस्ट करना वर्जित है किसी सदस्य के आग्रह करने पर ही दुबारा पोस्ट भेज सकते हैँ |
२०.संघ को और मजबूत बनाने हेतु विशिष्ठ विद्वत जनोँ की आवश्यकता होती है,अतः जिन विद्वत जनोँ के सम्पर्क में अच्छे शुमधुर व्यवहार वाले ज्ञानमय ब्राम्हण हों,उन विद्वानों को जोड़ने के लिए संस्थापक महोदय या समिति के गुरू जनों से सम्पर्क कराएं तथा उन्हें संघ के नियमो से भी अवगत कराये |
२१.संघ में वार्ता करने का समय सुबह ५:३०से रात्रि ११:००तक विशेष आवश्यकता पड़ने पर १२:००तक
२२.धर्मार्थ वार्ता समाधान की प्रशासनिक अधिकारी-सूची :—
१--स्वतंत्र प्रभार--:श्रीमान् संतोष मिश्र जी
२--न्यायाधीश--:श्रीमान् जगदीश द्विवेदी (महाकाल बाबा ७७ जी)
३--उप न्यायाधीश--:व्याकर्णाचार्य श्रीमान् राजेश्वराचार्य मिश्र जी
४.मार्गदर्शक--:ब्रह्मर्षि श्रीमान् उपेन्द्र त्रिपाठी जी
५.प्रवक्ता--:श्रीमान् सत्यप्रकाश अनुरागी जी
६.अध्यक्ष--:श्रीमान् सत्यप्रकाश तिवारी जी (कोपरखैरणे)
७.उपाध्यक्ष--:आचार्य श्रीमान् ब्रजभूषण त्रिपाठी जी
८.सचिव--:श्रीमान् आलोक त्रिपाठी जी
९.उपसचिव--:श्रीमान् कुणाल पाण्डेय जी
१०.सदस्य संपर्कस्थापक--:श्रीमान् अनिल पाण्येय जी (मुम्बादेवी)
११--:प्रसंसक ÷श्रीमान् रविन्द्र मिश्र  (व्यास जी)
१२.प्रयाग शाखाप्रमुख--:पद्मधर मिश्र जी
१३.मुंबई शाखाप्रमुख--:श्रीमान् विजयभान गोस्वामी जी
१४.संपर्क सूत्र--:श्रीमान् सत्यप्रकाश शुक्ल जी
१५.(संस्थापक)पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
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जयतु गुरुदेव, जयतु भारतम्
नोट-:नये अतिथि जनों का संघ मे जुड़ने से पहले समुचित परिचय संघ को अवश्य दिया जाय जिससे अतिथि संबोधन  सत्कार में अासानी हो सके !
परिचय उदाहरण-:जैसे सदस्य जी का नाम, उनके पिता जी का नाम, गोत्र ,उम्र , शिक्षा विवरण, कार्य, ग्राम, जिला व प्रान्त ,आदि का विवरण होना आवश्यक है !धन्यवाद
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धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ समिति संपर्क स्थापक पं. अनिल पाण्डेय (मुंबादेवी धाम)🌹🙏🌹

!!गणेश पूजन सामग्री!!

|| गणेश पूजन सामग्री ||
हल्दी,कुमकुम,अबीर,गुलाल,कपूर,माचिस,अगरबत्ती,लौंग,इलायची,पान २५पत्ते,सोपारी ३०,लाल कपड़ा १,नारियल २,दीपक १,तामे का कलश १,५ कटोरी,३ चम्मच,३ थाली,२ बैठने का आसन ,दूध-दही-घी-सक्कर,पंचमेवा,सहद,जनेऊ ५,मौली धागा,छुट्टे फूल
,दुर्वा,विल्वपत्र,तुलसी
,२ छोटे हार,कापूस ,चौरंगपाट १,लक्ष्मी गणेश प्रतिमा
--------------------------
हवन सामग्री-:हवनपूड़ा
,नवग्रह संविधा,अगर तगर
,जटामासी,भोजपत्र,गुगल
,पीली सरसो,काला तिल
,जौ,घी १ पाव
,हवनकुण्ड !!
पं.मंगलेश्वर त्रिपाठी

Wednesday, May 4, 2016

प्रेरक कथा

एक ज्ञानी संत जी थे. दूसरों के दुख दूर करने में उन्हें परम आनंद प्राप्त होता था एक बार वह सरोवर के किनारे ध्यान में बैठे हुए थे तभी उन्होंने देखा एक बिच्छू पानी में डूब रहा है. उन्होंने जैसे ही बिच्छू को पानी से निकालने के लिए उठाया उसने स्वामी को डंक मारना शुरू कर दिया और वह संत के हाथों से छूट कर पुनः पानी में गिर गया स्वामी ने फिर कोशिश की परंतु वह जैसे ही उसे उठाते. बिच्छू डंक मारने लगता है ऐसा बहुत देर तक चलता रहा. परंतु संत ने भी हार नहीं मानी और अंततः उन्होंने बिच्छू के प्राण बचा लिए और उसे पानी से बाहर निकाल लिया. वही एक अन्य व्यक्ति इस पूरी घटना को ध्यान से देख रहा था | जब संत सरोवर से बाहर आए तब उस व्यक्ति ने पूछा स्वामी मैंने देखा आपने किस तरह जहरीले बिच्छू के प्राण बचाए, बिच्छू को बचाने के लिए अापने अपने प्राण खतरे में डाल दिए, जब वह बार-बार डंक मार रहा था तो फिर आपने उसे क्यों बचाया. इस प्रश्न को सुनकर स्वामी मुस्कुराए और फिर बोले बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना, और मनुष्य का धर्म है दूसरों की मदद करना जब विच्छू नासमझ हो होते हुए भी अपना डंक मारने का स्वभाव अंत समय तक नहीं छोड़ रहा है !तो मैं मनुष्य होते हुए भी दूसरों की मदद करने का मेरा स्वभाव कैसे छोड़ देता, बिच्छू के डंक मारने से मुझे पीड़ा हो रही है परंतु उसकी जान बचाकर मुझे जो परम आनंद प्राप्त हुआ उससे मैं बहुत खुश हूं बहुत ही आनंदित हूं !
इस लिये हर मनुष्य को,दूसरे का भला ही सोचना चाहिये,चाहे दूसरा आपके प्रति कितना भी बुरा सोंचे !

Monday, May 2, 2016

भारती व्यथा

!! भारती व्यथा !!
भारत की भूमि न्यारी स्वर्ग से भी ज्यादा प्यारी
देवता भी जन्म लेना चाहें मेरे देश में ।
पर्वतों का राजा यहाँ नदियों की रानी यहाँ
धरती का स्वर्ग काश्मीर मेरे देश में ।।
शिवाजी प्रताप चन्द्रशेखर भगतसिंह
लक्ष्मीबाई जैसी नई पीढ़ी मेरे देश में ।
भारत महान था ये आज भी महान है
एक सिर्फ व्यवस्था की कमी मेरे देश में ।।
दुनियाँ की पहली किताब अपने पास में है
अमृतवाणी देवभाषा संस्कृत अपने पास है ।
पातञ्जल ध्यान योग गीता ज्ञान कर्मयोग
षटरस छप्पन भोग भी अपने पास है ।
आयुर्वेद धनुर्वेद नाट्यवेद अस्त्र शस्त्र
यन्त्र तन्त्र मन्त्र का भी लम्बा इतिहास है
पढ़े लिखे ज्ञानी सब बैठे हैं अँधेरों में और
लालटेनें सभी निरे लल्लुओं के पास हैं ।।
बढ़े अपराध दिन दूने रात चौगुने हैं 
लगी है पुलिस सब चोरों की सुरक्षा में
राष्ट्रनिर्माता ज्ञाता वोटरलिस्ट बनाता
नई पीढ़ी मक्खी मारे बैठी बैठी कक्षा में ।
न्यायविद सरेआम बेच रहे संविधान
गुण्डे अपराधियों की खड़े प्रतिरक्षा में
भारत की भोली भाली जनता है आस्तिक
बैठी किसी नये अवतार की प्रतीक्षा में ।।
खेत जिसके पास में है सर्विस की तलाश में है
सर्विस वाले घूमते दूकान की तलाश में ।
ग्राहक को ठगने की ताक में दूकानदार
ग्राहक भी उधार लेके खाने के प्रयास में ।
बड़े पेट वाले बीमार हैं अधिक खा के
श्रमिक बेचारे खाली पेट उपवास में ।
डाकू चोर किन्नर आसीन राजगद्दियों पे
चन्द्रगुप्त चाणक्य गये वनवास में ।।
सींकचों के पीछे खड़े जिन्हें होना चाहिये था
ओढ़के मुखौटा आज बैठे हैं सदन में ।
गाँधी जी की जय जयकार करके करें भ्रष्टाचार
जयन्ती मनायें एयरकंडीशन भवन में ।
सत्य का तो अता नहीं त्याग का भी पता नहीं
मन में वचन में न दिखे आचरण में ।
बुद्ध फिरें मारे मारे बुद्धू सारे मजा मारें
प्रबुद्ध युवा बेचारे पड़े उलझन में ।।
पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी

पत्नि विरह

!! पत्नि विरह !!
प्रेषितं न किञ्चित् सन्देशम् 
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।
खण्डितं तु सप्तपञ्च वचनानुबन्धं
कस्यचिदागच्छति षडयन्त्रस्यगन्धं ।
दृश्यते ह्रदि अपरा प्रवेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।
रोचते न तेन बिना शुष्क शुष्क दिवसः
निशा भवति भयावहा क्रमश;क्रमशः
कष्टकरं सर्वं परिवेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।
श्रूयते तु अहर्निशं स्वासुः अपशब्दं 
दैनिकोपियोगि वस्तु अस्ति नोपलब्धं
रोचते न स्वशुरोपदेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।
वैरी प्रत्यागतो न भवति एक-मासः
आगतं न पत्रं न कृतं दूरभाषः
प्रेषितं च नैव धनादेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।
न जानेप्यहं तेन त्यक्ता किमर्थम् 
अधुनाहं थकितास्मि पथ दर्शं-दर्शं
किमर्थं ददाति ह्रदय क्लेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।

हरि स्मरण

!! हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता !!
एक बार भगवान नारायण लक्ष्मी जी से बोले, “लोगो में कितनी भक्ति बढ़ गयी है …. सब “नारायण नारायण” करते हैं !”
..तो लक्ष्मी जी बोली, “आप को पाने के लिए नहीं!, मुझे पाने के लिए भक्ति बढ़ गयी है!”
..तो भगवान बोले, “लोग “लक्ष्मी लक्ष्मी” ऐसा जाप थोड़े ही ना करते हैं !”
..तो माता लक्ष्मी बोली कि , “विश्वास ना हो तो परीक्षा हो जाए!”

..भगवान नारायण एक गाँव में ब्राम्हण का रूप लेकर गए…एक घर का दरवाजा खटखटाया…घर के यजमान ने दरवाजा खोल कर पूछा , “कहाँ के है ?”
तो …भगवान बोले, “हम तुम्हारे नगर में भगवान का कथा-कीर्तन करना चाहते है…”
..यजमान बोला, “ठीक है महाराज, जब तक कथा होगी आप मेरे घर में रहना…”
…गाँव के कुछ लोग इकठठा हो गये और सब तैय्यारी कर दी….पहले दिन कुछ लोग आये…अब भगवान स्वयं कथा कर रहे थे तो संगत बढ़ी ! दुसरे और तीसरे दिन और भी भीड़ हो गयी….भगवान खुश हो गए..की कितनी भक्ति है लोगो में….!

लक्ष्मी माता ने सोचा अब जाना जाये कि क्या चल रहा है।
..लक्ष्मी माता ने बुढ्ढी माता का रूप लिया….और उस नगर में पहुंची…. एक महिला ताला बंद कर के कथा में जा रही थी कि माता उसके द्वार पर पहुंची ! बोली, “बेटी ज़रा पानी पिला दे!”
तो वो महिला बोली,”माताजी , साढ़े 3 बजे है…मेरे को प्रवचन में जाना है!”
..लक्ष्मी माता बोली..”पिला दे बेटी थोडा पानी…बहुत प्यास लगी है..”
तो वो महिला लौटा भर के पानी लायी….माता ने पानी पिया और लौटा लौटाया तो सोने का हो गया था!!
..यह देख कर महिला अचंभित हो गयी कि लौटा दिया था तो स्टील का और वापस लिया तो सोने का ! कैसी चमत्कारिक माता जी हैं !..अब तो वो महिला हाथ-जोड़ कर कहने लगी कि, “माताजी आप को भूख भी लगी होगी ..खाना खा लीजिये..!” ये सोचा कि खाना खाएगी तो थाली, कटोरी, चम्मच, गिलास आदि भी सोने के हो जायेंगे।
माता लक्ष्मी बोली, “तुम जाओ बेटी, तुम्हारा प्रवचन का टाइम हो गया!”

..वह महिला प्रवचन में आई तो सही …लेकिन आस-पास की महिलाओं को सारी बात बतायी….
..अब महिलायें यह बात सुनकर चालु सत्संग में से उठ कर चली गयी !!

अगले दिन से कथा में लोगों की संख्या कम हो गयी….तो भगवान ने पूछा कि, “लोगो की संख्या कैसे कम हो गयी ?”
…. किसी ने कहा, ‘एक चमत्कारिक माताजी आई हैं नगर में… जिस के घर दूध पीती हैं तो गिलास सोने का हो जाता है,…. थाली में रोटी सब्जी खाती हैं तो थाली सोने की हो जाती है !… उस के कारण लोग प्रवचन में नहीं आते..”
..भगवान नारायण समझ गए कि लक्ष्मी जी का आगमन हो चुका है!
इतनी बात सुनते ही देखा कि जो यजमान सेठ जी थे, वो भी उठ खड़े हो गए….. खिसक गए!

..पहुंचे माता लक्ष्मी जी के पास ! बोले, “ माता, मैं तो भगवान की कथा का आयोजन कर रहा था और आप ने मेरे घर को ही छोड़ दिया !”
माता लक्ष्मी बोली, “तुम्हारे घर तो मैं सब से पहले आनेवाली थी ! लेकिन तुमने अपने घर में जिस कथा कार को ठहराया है ना , वो चला जाए तभी तो मैं आऊं !”
सेठ जी बोले, “बस इतनी सी बात !… अभी उनको धर्मशाला में कमरा दिलवा देता हूँ !”

..जैसे ही महाराज (भगवान्) कथा कर के घर आये तो सेठ जी बोले, “महाराज आप अपना बिस्तर बांधो ! आपकी व्यवस्था अबसे धर्मशाला में कर दी है !!”
महाराज बोले, “ अभी तो 2/3 दिन बचे है कथा के…..यहीं रहने दो”
सेठ बोले, “नहीं नहीं, जल्दी जाओ ! मैं कुछ नहीं सुनने वाला ! किसी और मेहमान को ठहराना है। ”
..इतने में लक्ष्मी जी आई , कहा कि, “सेठ जी , आप थोड़ा बाहर जाओ… मैं इन से निबट लूँ!”
माता लक्ष्मी जी भगवान् से बोली, “प्रभु , अब तो मान गए?”
भगवान नारायण बोले, “हां लक्ष्मी तुम्हारा प्रभाव तो है, लेकिन एक बात तुम को भी मेरी माननी पड़ेगी कि तुम तब आई, जब संत के रूप में मैं यहाँ आया!!
संत जहां कथा करेंगे वहाँ लक्ष्मी तुम्हारा निवास जरुर होगा…!!”

यह कह कर नारायण भगवान् ने वहां से बैकुंठ के लिए विदा ली। अब प्रभु के जाने के बाद अगले दिन सेठ के घर सभी गाँव वालों की भीड़ हो गयी। सभी चाहते थे कि यह माता सभी के घरों में बारी 2 आये। पर यह क्या ? लक्ष्मी माता ने सेठ और बाकी सभी गाँव वालों को कहा कि, अब मैं भी जा रही हूँ। सभी कहने लगे कि, माता, ऐसा क्यों, क्या हमसे कोई भूल हुई है ? माता ने कहा, मैं वंही रहती हूँ जहाँ नारायण का वास होता है। आपने नारायण को तो निकाल दिया, फिर मैं कैसे रह सकती हूँ ?’ और वे चली गयी।

शिक्षा : जो लोग केवल माता लक्ष्मी को पूजते हैं, वे भगवान् नारायण से दूर हो जाते हैं। अगर हम नारायण की पूजा करें तो लक्ष्मी तो वैसे ही पीछे 2 आ जाएँगी, क्योंकि वो उनके बिना रह ही नही सकती। समझने की बात है।

पुराणोक्ति

पुराणों में कहा गया है - 
     विप्राणां यत्र पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता ।
  जिस स्थान पर ब्राह्मणों का पूजन हो
 वंहा देवता भी निवास करते हैं अन्यथा
 ब्राह्मणों के सम्मान के बिना देवालय भी
 शून्य हो जाते हैं । इसलिए
   ब्राह्मणातिक्रमो नास्ति विप्रा वेद विवर्जिताः ।।
  श्री कृष्ण ने कहा - ब्राह्मण यदि वेद
 से हीन भी तब पर भी उसका अपमान 
नही करना चाहिए । क्योंकि तुलसी का 
पत्ता क्या छोटा क्या बड़ा वह हर 
अवस्था में कल्याण ही करता है ।
  ब्राह्मणोंस्य मुखमासिद्......
   वेदों ने कहा है की ब्राह्मण विराट
 पुरुष भगवान के मुख में निवास
 करते हैं इनके मुख से निकले हर
 शब्द भगवान का ही शब्द है, जैसा 
की स्वयं भगवान् ने कहा है की
   विप्र प्रसादात् धरणी धरोहम 
   विप्र प्रसादात् कमला वरोहम
   विप्र प्रसादात्अजिताऽजितोहम
   विप्र प्रसादात् मम् राम नामम् ।।
   ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही 
मैंने धरती को धारण कर रखा 
है अन्यथा इतना भार कोई अन्य 
पुरुष कैसे उठा सकता है, इन्ही 
के आशीर्वाद से नारायण हो कर 
मैंने लक्ष्मी को वरदान में प्राप्त किया है,
 इन्ही के आशीर्वाद से मैं हर युद्ध भी
 जीत गया और ब्राह्मणों के आशीर्वाद
 से ही मेरा नाम "राम" अमर हुआ है,
 अतः ब्राह्मण सर्व पूज्यनीय है । और ब्राह्मणों का अपमान ही कलियुग 
में पाप की वृद्धि का मुख्य कारण है ।
  - किसी में कमी निकालने की 
अपेक्षा किसी में से कमी निकालना 
ही ब्राह्मण का धर्म है, 
        (समस्त धर्मार्थ परिवार)
 | सर्व ब्राह्मणानां जयते |
पं.मंगलेश्वर त्रिपाठी

Sunday, May 1, 2016

नारायण का सहारा

!!नारायण का सहारा!!
एक आदमी था जो एक नदी के किनारे एक छोटे से घर में रहता था वह बहुत ही धार्मिक प्रवृति का आदमी था, उसे भगवान पर बहुत विश्वास था!
एक दिन उस नदी में बाढ़ आ गयी वह आदमी घर समेत बह गया काफी दूर बहने के बाद उसने बचने का प्रयास किया!
वह सीधे घर कि छत पर चढ़ गया तो देखा पानी काफी भर चुका है!
तभी दूर से एक काफी बड़ी नाव में कुछ लोग आये और कहने लगे कि उनके साथ नाव में आ जाये पर वो आदमी कहने लगा कि नहीं मुझे बचाने तो भगवान आयेंगे! ऐसा सुनकर वो नाव वाले वहां से चले गए!
पानी का स्तर बढ़ ही रहा था उस आदमी का घर पूरा डूबने वाला था तभी एक और नाव वाला वहां से आया और उसे कहा कि उसके साथ चल पड़े पर वो आदमी कहने लगा कोई बात नहीं तुम जाओ मुझे बचाने तो भगवान आयेंगे! तब वो नाव वाला भी वहां से चला गया!
अब उस आदमी का पूरा घर डूबने वाला था तभी उसे सामने एक पेड़ नजर आया उसने पेड़ को पकड़ लिया थोड़ी देर बाद पानी का स्तर और बढ़ गया वह आदमी पेड़ पर बैठ कर भगवान को याद कर रहा था!
तभी एक हेलीकाफ्टर आया और उसमें से एक सीढ़ी उस आदमी कि तरफ फेंक दी और कहा कि उसे पकड़ कर उस पर चढ़ जाये पर उस आदमी ने कहा कि कोई बात नहीं मैं ठीक हूँ! हेलीकाफ्टर वाले ने फिर कहा कि जल्दी आ जाओ, तो वो आदमी कहने लगा कि तुम जाओ मुझे बचाने तो भगवान आयेंगे! ऐसा सुनकर हेलिकाफ्टर वाला भी वहां से चला गया!
आखिरकार वो आदमी पानी के बढ़ जाने से डूब गया और मर गया मरने के बाद स्वर्ग में भगवान के सामने पहुँच गया और बड़े गुस्से में भगवान से कहने लगा तुमने मुझे कहा था कि तुम मुझे हर मुसीबत से बचाओगे पर तुम ने मुझे डूबने दिया!
तो भगवान ने कहा कि पहले मैंने तुम्हें बचाने के लिए एक नाव भेजी फिर दूसरी नाव भेजी और बाद में हेलीकाफ्टर भी भेजा इससे ज्यादा तुम और क्या चाहते थे!
Edited.पं.मंगलेश्वर त्रिपाठी