Monday, May 2, 2016

पुराणोक्ति

पुराणों में कहा गया है - 
     विप्राणां यत्र पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता ।
  जिस स्थान पर ब्राह्मणों का पूजन हो
 वंहा देवता भी निवास करते हैं अन्यथा
 ब्राह्मणों के सम्मान के बिना देवालय भी
 शून्य हो जाते हैं । इसलिए
   ब्राह्मणातिक्रमो नास्ति विप्रा वेद विवर्जिताः ।।
  श्री कृष्ण ने कहा - ब्राह्मण यदि वेद
 से हीन भी तब पर भी उसका अपमान 
नही करना चाहिए । क्योंकि तुलसी का 
पत्ता क्या छोटा क्या बड़ा वह हर 
अवस्था में कल्याण ही करता है ।
  ब्राह्मणोंस्य मुखमासिद्......
   वेदों ने कहा है की ब्राह्मण विराट
 पुरुष भगवान के मुख में निवास
 करते हैं इनके मुख से निकले हर
 शब्द भगवान का ही शब्द है, जैसा 
की स्वयं भगवान् ने कहा है की
   विप्र प्रसादात् धरणी धरोहम 
   विप्र प्रसादात् कमला वरोहम
   विप्र प्रसादात्अजिताऽजितोहम
   विप्र प्रसादात् मम् राम नामम् ।।
   ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही 
मैंने धरती को धारण कर रखा 
है अन्यथा इतना भार कोई अन्य 
पुरुष कैसे उठा सकता है, इन्ही 
के आशीर्वाद से नारायण हो कर 
मैंने लक्ष्मी को वरदान में प्राप्त किया है,
 इन्ही के आशीर्वाद से मैं हर युद्ध भी
 जीत गया और ब्राह्मणों के आशीर्वाद
 से ही मेरा नाम "राम" अमर हुआ है,
 अतः ब्राह्मण सर्व पूज्यनीय है । और ब्राह्मणों का अपमान ही कलियुग 
में पाप की वृद्धि का मुख्य कारण है ।
  - किसी में कमी निकालने की 
अपेक्षा किसी में से कमी निकालना 
ही ब्राह्मण का धर्म है, 
        (समस्त धर्मार्थ परिवार)
 | सर्व ब्राह्मणानां जयते |
पं.मंगलेश्वर त्रिपाठी

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