Saturday, October 31, 2015

सत्चर्चा 💥🙏💥
🌷🌹💐🌹ब्राह्मण🌷💐विप्राणां यत्र पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता ।
जिस स्थान पर ब्राह्मणों का पूजन
हो वंहा देवता भी निवास करते हैं
अन्यथा ब्राह्मणों के सम्मान के
बिना देवालय भी शून्य हो जाते हैं ।
इसलिए
ब्राह्मणातिक्रमो नास्ति विप्रा वेद
विवर्जिताः ।।
श्री कृष्ण ने कहा - ब्राह्मण यदि वेद से हीन
भी तब पर भी उसका अपमान
नही करना चाहिए ।
क्योंकि तुलसी का पत्ता क्या छोटा क्या बड़ा वह
हर अवस्था में कल्याण ही करता है ।
ब्राह्मणोंस्य मुखमासिद्......
वेदों ने कहा है की ब्राह्मण विराट पुरुष
भगवान के मुख में निवास करते हैं इनके मुख से
निकले हर शब्द भगवान का ही शब्द है,
जैसा की स्वयं भगवान् ने कहा है की
विप्र प्रसादात् धरणी धरोहम
विप्र प्रसादात् कमला वरोहम
विप्र प्रसादात्अजिता$जितोहम
विप्र प्रसादात् मम् राम नामम् ।।
ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही मैंने
धरती को धारण कर रखा है
अन्यथा इतना भार कोई अन्य पुरुष कैसे
उठा सकता है, इन्ही के आशीर्वाद से
नारायण हो कर मैंने लक्ष्मी को वरदान में
प्राप्त किया है, इन्ही के आशीर्वाद से मैं हर
युद्ध भी जीत गया और ब्राह्मणों के
आशीर्वाद से ही मेरा नाम "राम" अमर हुआ
है, अतः ब्राह्मण सर्व पूज्यनीय है । और
ब्राह्मणों का अपमान ही कलियुग में पाप
की वृद्धि का मुख्य कारण है ।
- किसी में कमी निकालने
की अपेक्षा किसी में से
कमी निकालना ही ब्राह्मण का धर्म है,🌷💐🙏🌹🌷💐
पं सत्य प्रकाश तिवारी
धर्मार्थ वार्ता समाधनसंघ

जय श्री राधे कृष्ण
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
रविवार, नवम्बर ०१, २०१५ का पञ्चाङ्ग मुम्बई, इण्डिया के लिए
💥💥💥💥💥💥💥
सूर्योदय:
👇
०६:४२

सूर्यास्त:
👇
१८:०१

चन्द्रोदय:
👇
२२:४६

चन्द्रास्त:
👇
११:११

सूर्य राशि:
👇
तुला

चन्द्र राशि:
👇
मिथुन

सूर्य नक्षत्र:
👇
स्वाती

द्रिक अयन:
👇
दक्षिणायण

द्रिक ऋतु:
👇
हेमन्त

वैदिक अयन:
👇
दक्षिणायण

वैदिक ऋतु:
👇
शरद

शक सम्वत:
👇
१९३७ मन्मथ

चन्द्रमास:
👇
आश्विन - अमांत

विक्रम सम्वत:
👇
२०७२ कीलक

कार्तिक - पूर्णिमांत

गुजराती सम्वत:
👇
२०७१

पक्ष:
👇
कृष्ण पक्ष

तिथि:
👇
षष्ठी - २८:५०+तक

नक्षत्र:
👇
आर्द्रा - १५:४६ तक

योग:
👇
सिद्ध - २४:५८+तक

प्रथम करण:
👇
गर - १६:५४ तक

द्वितीय करण:
👇
वणिज -२८:५०+ तक

अशुभ समय💥👇

दूमुहूर्त:
👇
१६:३१ - १७:१६

वर्ज्य:
👇
२८:०५+ -२९:४४+

राहुकाल:
👇
१६:३६ - १८:०१

गुलिक काल:
👇
१५:११ - १६:३६

यमगण्ड:
👇
12:22 -13:46
शुभ समय

अभिजीत मुहूर्त:
👇
११:५९ - १२:४४

अमृत काल:
👇
कोई नहीं

आनन्दादि योग:💥
👇
ध्वांक्ष - १५:४६ तक

तमिल योग:💥
👇
मरण - १५:४६ तक

केतु
👇
सिद्ध

होमाहुति:
👇
गुरु

अग्निवास:
👇
पृथ्वी

दिशा शूल:
👇
पश्चिम में

राहु काल वास:
👇
उत्तर में

नक्षत्र शूल:
👇
कोई नहीं

चन्द्र वास:
👇
पश्चिम में

चन्द्रबलम और ताराबलम
👇👇👇👇
निम्न राशि के लिए उत्तम चन्द्रबलम अगले दिन सूर्योदय तक:

मेष, मिथुन, सिंह, 
कन्या, धनु, मकर
👇
*वृश्चिक राशि में जन्में लोगो के लिए अष्टम चन्द्र

निम्न नक्षत्र के लिए उत्तम ताराबलम १५:४६ तक:
👇
अश्विनी, कृत्तिका, मॄगशिरा,
पुनर्वसु, पुष्य, मघा, 
उत्तराफाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, 
अनुराधा, मूल, उत्तराषाढा, 
धनिष्ठा, पूर्व भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद

उसके पश्चात - 💥
निम्न नक्षत्र के लिए उत्तम ताराबलम अगले दिन सूर्योदय तक:

भरणी, रोहिणी, आर्द्रा, 
पुष्य, अश्लेशा, पूर्वाफाल्गुनी, 
हस्त, स्वाती, अनुराधा, 
ज्येष्ठा, पूर्वाषाढा, श्रवण, 
शतभिषा, उत्तर भाद्रपद, रेवती
💥💥💥💥💥
आज के दिन के लिए पञ्चक रहित मुहूर्त:
👇👇
०६:४२ - ०७:५१ रोग पञ्चक
०७:५१ - १०:०५ शुभ मुहूर्त
१०:०५ - १२:११ मृत्यु पञ्चक
१२:११ - १४:०१ अग्नि पञ्चक
१४:०१ - १५:३७ शुभ मुहूर्त
१५:३७ - १५:४६ रज पञ्चक
१५:४६ - १७:१२ शुभ मुहूर्त
१७:१२ - १८:५५ शुभ मुहूर्त
१८:५५ - २०:५५ रज पञ्चक
२०:५५ - २३:०८ शुभ मुहूर्त
२३:०८ - २५:२१+ चोर पञ्चक
२५:२१+ - २७:२९+ शुभ मुहूर्त
२७:२९+ - २८:५०+ रोग पञ्चक
२८:५०+ - २९:३६+ शुभ मुहूर्त
२९:३६+ - ३०:४२+ मृत्यु पञ्चक

आज के दिन के लिए उदय-लग्न मुहूर्त:
👇👇
०६:४२ - ०७:५१ तुला
०७:५१ - १०:०५ वृश्चिक
१०:०५ - १२:११ धनु
१२:११ - १४:०१ मकर
१४:०१ - १५:३७ कुम्भ
१५:३७ - १७:१२ मीन
१७:१२ - १८:५५ मेष
१८:५५ - २०:५५ वृषभ
२०:५५ - २३:०८ मिथुन
२३:०८ - २५:२१+ कर्क
२५:२१+ - २७:२९+ सिंह
२७:२९+ - २९:३६+ कन्या
२९:३६+ - ३०:४२+ तुला
💥💥💥💥💥💥💥
पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ
जयतु गुरुदेवः जयतु भारतम्🌷🙏🌷
राशिफल (1 नवम्बर 2015)
💥💥💥💥💥💥💥
मेष ( Aries) : 💥उगाही एवं प्रवास के लिए आज का दिन अच्छा है, ऐसा गणेशजी कहते हैं। व्यापार से सम्बंधित कार्यों के लिए लाभदायी दिवस है। घर में शुभ प्रसंग का आयोजन होगा। शेयर-सट्टे में आर्थिक लाभ होगा। पत्नी के आरोग्य को लेकर चिंता रहेगी।
वृष ( Taurus) : 💥आज का दिन अनुकूलता और प्रतिकूलता से मिला-जुला रहेगा, ऐसा गणेशजी कहते हैं। व्यावसायिक रूप से आप नई विचारधारा अमल में लाएंगे। आलस्य और व्यग्रता बने रहेंगे, इसलिए स्वास्थ्य के प्रति ध्यान दीजिएगा। प्रतिस्पर्धियों के साथ वाद-विवाद में न उतरिएगा। व्यवसाय में पदोन्नति होगी।
मिथुन ( Gemini) :💥 नकारात्मक विचारों को मन से दूर रखें। खान-पान में ध्यान रखिएगा। वाहन चलाते समय अनिष्ट घटना न हो इसका ध्यान रखिएगा। आकस्मिक धन का खर्च होगा। किसी कारण से बाहर जाने का प्रसंग उपस्थित होगा। संतानों के प्रश्नों से मानसिक व्यग्रता बढ़ेगी। धन का खर्च अधिक न हो, ध्यान रखें।
कर्क ( Cancer) :💥 स्वादिष्ट एवं उत्तम भोजन, सुंदर वस्त्रों और विपरीत लिंगीय व्यक्तियों का साथ पाकर आप प्रसन्न रहेंगे। आपकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बनने के प्रबल योग हैं। विचारों में अनिर्णायकता रहेगी। अचानक धन खर्च होगा। भागीदारों के साथ आंतरिक मतभेद बढ़ेगा। नए काम की शुरुआत न करें।
सिंह ( Leo) :💥 आपके व्यापार का विस्तार होगा, व्यवसाय में धन सम्बंधित आयोजन भी कर सकेंगे। उचित वजहों से धन का खर्च होगा। विदेश स्थित व्यवसायीजनों से लाभ होने की संभावना है। आपकी वृद्धि होने से धन के मामलों में हाथ खुला रहेगा। प्रबल लाभ के भी योग हैं, नए कार्य का प्रारंभ आज न करिएगा।
कन्या ( Virgo) : 💥आज का आपका दिन सुख-शांतिपूर्वक बीतेगा, ऐसा गणेशजी कहते हैं। आभूषणों की खरीदी करेंगे और साथ-साथ कला के प्रति भी अभिरुचि रहेगी। व्यापार के लिए आज का दिन बहुत अच्छा दिन है। धन सम्बंधित विषयों में सरलता रहेगी। घर में शांति और आनंद बने रहेंगे। आरोग्य अच्छा रहेगा।
तुला ( Libra) : 💥आपका दिन मध्यम फलदायी रहेगा, ऐसा गणेशजी कहते हैं। शारीरिक स्फूर्ति और मानसिक प्रसन्नता का अभाव रहेगा। परिवार में उग्र वातावरण रहेगा। व्यावहारिक जीवन में मानहानि का प्रसंग न बने, इसका ध्यान रखिएगा। मध्याह्न के बाद आपकी शारीरिक और मानसिक स्थिति में सुधार होगा।
वृश्चिक ( Scorpio) :💥 आज संपत्ति सम्बंधित कार्यों एवं गृहस्थ जीवन के प्रश्नों का निराकरण हो जाएगा। व्यवसायीजनों के लिए आज का दिन अनुकूल है। भाई-बंधुओं का व्यवहार सहकारपूर्ण रहेगा। प्रतिस्पर्धी परास्त होंगे, परंतु मध्याह्न के बाद शारीरिक और मानसिक प्रतिकूलताएं रहेंगी। अपयश मिलने की संभावना है।
धनु ( Sagittarius) :💥 निजी सम्बंधियों के साथ मन दुखी न हो, इसका ध्यान रखने के लिए गणेशजी सलाह देते हैं। आरोग्य अच्छा रहेगा। आज का दिन आध्यात्मिक प्रवृत्तियों के लिए बहुत अच्छा है। आर्थिक लाभ भी होगा। विद्यार्थियों को अभ्यास में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। मध्याह्न के बाद स्थिति अनुकूल है।
मकर ( Capricorn) :💥 आपकी धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्तियों में आज वृद्धि हो जाएगी। व्यवसाय और व्यापार में भी वातावरण अनुकूल रहेगा। आपके हर कार्य सरलता से पूर्ण होंगे। जीवन में भी आनंद की मात्रा बढ़ जाएगी। फिर भी मध्याह्न के बाद आपके विचारों में नकारात्मक भावों में वृद्धि होगी। हताशा भी बढ़ सकती है।
कुंभ ( Aquarius) :💥 धार्मिक और सामाजिक कार्यों के पीछे धन का खर्च अधिक होगा। सम्बंधियों और मित्रों के साथ तू-तू मैं-मैं होगी। आज कुछ अधिक ही आध्यात्मिकता आपके व्यवहार में देखने को मिलेगी। दुर्घटना एवं शल्य चिकित्सा से संभलिएगा। मध्याह्न के बाद आज का प्रत्येक कार्य सरलतापूर्वक संपन्न होता दिखेगा।
मीन ( Pisces) :💥 व्यावसायिक तथा अन्य क्षेत्रों में आज का दिन आपके लिए लाभप्रद है। विवाहोत्सुकों के विवाह के प्रश्न का निराकरण हो जाएगा। प्रवास-पर्यटन होगा तथा मित्रों से उपहार आदि मिलेगा। मध्याह्न के बाद हर कार्य में कुछ सावधानी बरतनी आवश्यक है। व्यावसायिक कार्यों में सरकारी प्रभाव आप पर बढ़ सकता है।

🙏🏻🌺🙏🏻चाणक्य नीति🙏🏻🌺🙏🏻

चाणक्य की तर्क शक्ति
एक दिन चाणक्य का एक परिचित उनके पास आया और उत्साह से कहने लगा, 'आप जानते हैं, अभी-अभी मैंने आपके मित्र के बारे में क्या सुना है?'
चाणक्य अपनी तर्क-शक्ति, ज्ञान और व्यवहार-कुशलता के लिए विख्यात थे।
उन्होंने अपने परिचित से कहा, 'आपकी बात मैं सुनूं, इसके पहले मैं चाहूंगा कि आप त्रिगुण परीक्षण से गुजरें।'
उस परिचित ने पूछा - 'यह त्रिगुण परीक्षण क्या है?'
चाणक्य ने समझाया- 'आप मुझे मेरे मित्र के बारे में बताएं, इससे पहले अच्छा यह होगा कि जो कहें, उसे थोड़ा परख लें, थोड़ा छान लें। इसीलिए मैं इस प्रक्रिया को त्रिगुण परीक्षण कहता हूं।
इसकी पहली कसौटी है सत्य।
इस कसौटी के अनुसार जानना जरूरी है कि जो आप कहने वाले हैं, वह सत्य है। आप खुद उसके बारे में अच्छी तरह जानते हैं?'
'नहीं,' - वह आदमी बोला, 'वास्तव में मैंने इसे कहीं सुना था। खुद देखा या अनुभव नहीं किया था।'
'ठीक है,' - चाणक्य ने कहा, 'आपको पता नहीं है कि यह बात सत्य है या असत्य।
दूसरी कसौटी है -'अच्छाई। क्या आप मुझे मेरे मित्र की कोई अच्छाई बताने वाले हैं?'
'नहीं,' - उस व्यक्ति ने कहा।
इस पर चाणक्य बोले,' जो आप कहने वाले हैं, वह न तो सत्य है, न ही अच्छा। चलिए, तीसरा परीक्षण कर ही डालते हैं।'
'तीसरी कसौटी है - उपयोगिता। जो आप कहने वाले हैं, वह क्या मेरे लिए उपयोगी है?'
'नहीं, ऐसा तो नहीं है।' सुनकर चाणक्य ने आखिरी बात कह दी।'
आप मुझे जो बताने वाले हैं, वह न सत्य है, न अच्छा और न ही उपयोगी, फिर आप मुझे बताना क्यों चाहते हैं?'
धर्मार्थ वार्ता समाधान विद्वत्  समूह
में समर्पित।🙏🏻🌷🙏🏻

जानिए पौराणिक काल के 24 चर्चित श्राप और उनके पीछे की कहानी

हिन्दू पौराणिक ग्रंथो में अनेको अनेक श्रापों का वर्णन मिलता है। हर श्राप के पीछे कोई न कोई कहानी जरूर मिलती है। आज हम आपको हिन्दू धर्म ग्रंथो में उल्लेखित 24 ऐसे ही प्रसिद्ध श्राप और उनके पीछे की कहानी बताएँगे।

1. युधिष्ठिर का स्त्री जाति को श्राप
महाभारत के शांति पर्व के अनुसार युद्ध समाप्त होने के बाद जब कुंती ने युधिष्ठिर को बताया कि कर्ण तुम्हारा बड़ा भाई था तो पांडवों को बहुत दुख हुआ। तब युधिष्ठिर ने विधि-विधान पूर्वक कर्ण का भी अंतिम संस्कार किया। माता कुंती ने जब पांडवों को कर्ण के जन्म का रहस्य बताया तो शोक में आकर युधिष्ठिर ने संपूर्ण स्त्री जाति को श्राप दिया कि - आज से कोई भी स्त्री गुप्त बात छिपा कर नहीं रख सकेगी।

2. ऋषि किंदम का राजा पांडु को श्राप
महाभारत के अनुसार एक बार राजा पांडु शिकार खेलने वन में गए। उन्होंने वहां हिरण के जोड़े को मैथुन करते देखा और उन पर बाण चला दिया। वास्तव में वो हिरण व हिरणी ऋषि किंदम व उनकी पत्नी थी। तब ऋषि किंदम ने राजा पांडु को श्राप दिया कि जब भी आप किसी स्त्री से मिलन करेंगे। उसी समय आपकी मृत्यु हो जाएगी। इसी श्राप के चलते जब राजा पांडु अपनी पत्नी माद्री के साथ मिलन कर रहे थे, उसी समय उनकी मृत्यु हो गई।

3. माण्डव्य ऋषि का यमराज को श्राप
महाभारत के अनुसार माण्डव्य नाम के एक ऋषि थे। राजा ने भूलवश उन्हें चोरी का दोषी मानकर सूली पर चढ़ाने की सजा दी। सूली पर कुछ दिनों तक चढ़े रहने के बाद भी जब उनके प्राण नहीं निकले, तो राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने ऋषि माण्डव्य से क्षमा मांगकर उन्हें छोड़ दिया।
तब ऋषि यमराज के पास पहुंचे और उनसे पूछा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा कौन सा अपराध किया था कि मुझे इस प्रकार झूठे आरोप की सजा मिली। तब यमराज ने बताया कि जब आप 12 वर्ष के थे, तब आपने एक फतींगे की पूंछ में सींक चुभाई थी, उसी के फलस्वरूप आपको यह कष्ट सहना पड़ा।
तब ऋषि माण्डव्य ने यमराज से कहा कि 12 वर्ष की उम्र में किसी को भी धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता। तुमने छोटे अपराध का बड़ा दण्ड दिया है। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें शुद्र योनि में एक दासी पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ेगा। ऋषि माण्डव्य के इसी श्राप के कारण यमराज ने महात्मा विदुर के रूप में जन्म लिया।

4. नंदी का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।

5. कद्रू का अपने पुत्रों को श्राप
महाभारत के अनुसार ऋषि कश्यप की कद्रू व विनता नाम की दो पत्नियां थीं। कद्रू सर्पों की माता थी व विनता गरुड़ की। एक बार कद्रू व विनता ने एक सफेद रंग का घोड़ा देखा और शर्त लगाई। विनता ने कहा कि ये घोड़ा पूरी तरह सफेद है और कद्रू ने कहा कि घोड़ा तो सफेद हैं, लेकिन इसकी पूंछ काली है।
कद्रू ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए अपने सर्प पुत्रों से कहा कि तुम सभी सूक्ष्म रूप में जाकर घोड़े की पूंछ से चिपक जाओ, जिससे उसकी पूंछ काली दिखाई दे और मैं शर्त जीत जाऊं। कुछ सर्पों ने कद्रू की बात नहीं मानी। तब कद्रू ने अपने उन पुत्रों को श्राप दिया कि तुम सभी जनमजेय के सर्प यज्ञ में भस्म हो जाओगे।

6. उर्वशी का अर्जुन को श्राप
महाभारत के युद्ध से पहले जब अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने स्वर्ग गए, तो वहां उर्वशी नाम की अप्सरा उन पर मोहित हो गई। यह देख अर्जुन ने उन्हें अपनी माता के समान बताया। यह सुनकर क्रोधित उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दिया कि तुम नपुंसक की भांति बात कर रहे हो। इसलिए तुम नपुंसक हो जाओगे, तुम्हें स्त्रियों में नर्तक बनकर रहना पड़ेगा। यह बात जब अर्जुन ने देवराज इंद्र को बताई तो उन्होंने कहा कि अज्ञातवास के दौरान यह श्राप तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें कोई पहचान नहीं पाएगा।

7. तुलसी का भगवान विष्णु को श्राप
शिवपुराण के अनुसार शंखचूड़ नाम का एक राक्षस था। उसकी पत्नी का नाम तुलसी था। तुलसी पतिव्रता थी, जिसके कारण देवता भी शंखचूड़ का वध करने में असमर्थ थे। देवताओं के उद्धार के लिए भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप लेकर तुलसी का शील भंग कर दिया। तब भगवान शंकर ने शंखचूड़ का वध कर दिया। यह बात जब तुलसी को पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर हो जाने का श्राप दिया। इसी श्राप के कारण भगवान विष्णु की पूजा शालीग्राम शिला के रूप में की जाती है।

8. श्रृंगी ऋषि का परीक्षित को श्राप
पाण्डवों के स्वर्गारोहण के बाद अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित ने शासन किया। उसके राज्य में सभी सुखी और संपन्न थे। एक बार राजा परीक्षित शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर निकल गए। तब उन्हें वहां शमीक नाम के ऋषि दिखाई दिए, जो मौन अवस्था में थे। राजा परीक्षित ने उनसे बात करनी चाहिए, लेकिन ध्यान में होने के कारण ऋषि ने कोई जबाव नहीं दिया।
ये देखकर परीक्षित बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने एक मरा हुआ सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। यह बात जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चली तो उन्होंने श्राप दिया कि आज से सात दिन बात तक्षक नाग राजा परीक्षित को डंस लेगा, जिससे उनकी मृत्यु हो जाएगी।

9. राजा अनरण्य का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रघुवंश में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुई। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई। मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। इन्हीं के वंश में आगे जाकर भगवान श्रीराम ने जन्म लिया और रावण का वध किया।

10. परशुराम का कर्ण को श्राप
महाभारत के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के ही अंशावतार थे। सूर्यपुत्र कर्ण उन्हीं का शिष्य था। कर्ण ने परशुराम को अपना परिचय एक सूतपुत्र के रूप में दिया था। एक बार जब परशुराम कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे, उसी समय कर्ण को एक भयंकर कीड़े ने काट लिया। गुरु की नींद में विघ्न न आए, ये सोचकर कर्ण दर्द सहते रहे, लेकिन उन्होंने परशुराम को नींद से नहीं उठाया।
नींद से उठने पर जब परशुराम ने ये देखा तो वे समझ गए कि कर्ण सूतपुत्र नहीं बल्कि क्षत्रिय है। तब क्रोधित होकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि मेरी सिखाई हुई शस्त्र विद्या की जब तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता होगी, उस समय तुम वह विद्या भूल जाओगे।

11. तपस्विनी का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था। तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, जो भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी।

12. गांधारी का श्रीकृष्ण को श्राप
महाभारत के युद्ध के बाद जब भगवान श्रीकृष्ण गांधारी को सांत्वना देने पहुंचे तो अपने पुत्रों का विनाश देखकर गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार पांडव और कौरव आपसी फूट के कारण नष्ट हुए हैं, उसी प्रकार तुम भी अपने बंधु-बांधवों का वध करोगे। आज से छत्तीसवें वर्ष तुम अपने बंधु-बांधवों व पुत्रों का नाश हो जाने पर एक साधारण कारण से अनाथ की तरह मारे जाओगे। गांधारी के श्राप के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण के परिवार का अंत हुआ।

13. महर्षि वशिष्ठ का वसुओं को श्राप
महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह पूर्व जन्म में अष्ट वसुओं में से एक थे। एक बार इन अष्ट वसुओं ने ऋषि वशिष्ठ की गाय का बलपूर्वक अपहरण कर लिया। जब ऋषि को इस बात का पता चला तो उन्होंने अष्ट वसुओं को श्राप दिया कि तुम आठों वसुओं को मृत्यु लोक में मानव रूप में जन्म लेना होगा और आठवें वसु को राज, स्त्री आदि सुखों की प्राप्ति नहीं होगी। यही आठवें वसु भीष्म पितामह थे।

14. शूर्पणखा का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।

15. ऋषियों का साम्ब को श्राप
महाभारत के मौसल पर्व के अनुसार एक बार महर्षि विश्वामित्र, कण्व आदि ऋषि द्वारका गए। तब उन ऋषियों का परिहास करने के उद्देश्य से सारण आदि वीर कृष्ण पुत्र साम्ब को स्त्री वेष में उनके पास ले गए और पूछा कि इस स्त्री के गर्भ से क्या उत्पन्न होगा। क्रोधित होकर ऋषियों ने श्राप दिया कि श्रीकृष्ण का ये पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए लोहे का एक भयंकर मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा समस्त यादव कुल का नाश हो जाएगा।

16. दक्ष का चंद्रमा को श्राप
शिवपुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से करवाया था। उन सभी पत्नियों में रोहिणी नाम की पत्नी चंद्रमा को सबसे अधिक प्रिय थी। यह बात अन्य पत्नियों को अच्छी नहीं लगती थी। ये बात उन्होंने अपने पिता दक्ष को बताई तो वे बहुत क्रोधित हुए और चंद्रमा को सभी के प्रति समान भाव रखने को कहा, लेकिन चंद्रमा नहीं माने। तब क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दिया।

17. माया का रावण को श्राप
रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया।
इस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासना युक्त होकर मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया। इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।

18. शुक्राचार्य का राजा ययाति को श्राप
महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार राजा ययाति का विवाह शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के साथ हुआ था। देवयानी की शर्मिष्ठा नाम की एक दासी थी। एक बार जब ययाति और देवयानी बगीचे में घूम रहे थे, तब उसे पता चला कि शर्मिष्ठा के पुत्रों के पिता भी राजा ययाति ही हैं, तो वह क्रोधित होकर अपने पिता शुक्राचार्य के पास चली गई और उन्हें पूरी बात बता दी। तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने ययाति को बूढ़े होने का श्राप दे दिया था।

19. ब्राह्मण दंपत्ति का राजा दशरथ को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार जब राजा दशरथ शिकार करने वन में गए तो गलती से उन्होंने एक ब्राह्मण पुत्र का वध कर दिया। उस ब्राह्मण पुत्र के माता-पिता अंधे थे। जब उन्हें अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया कि जिस प्रकार हम पुत्र वियोग में अपने प्राणों का त्याग कर रहे हैं, उसी प्रकार तुम्हारी मृत्यु भी पुत्र वियोग के कारण ही होगी।

20. नंदी का ब्राह्मण कुल को श्राप
शिवपुराण के अनुसार एक बार जब सभी ऋषिगण, देवता, प्रजापति, महात्मा आदि प्रयाग में एकत्रित हुए तब वहां दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर का तिरस्कार किया। यह देखकर बहुत से ऋषियों ने भी दक्ष का साथ दिया। तब नंदी ने श्राप दिया कि दुष्ट ब्राह्मण स्वर्ग को ही सबसे श्रेष्ठ मानेंगे तथा क्रोध, मोह, लोभ से युक्त हो निर्लज्ज ब्राह्मण बने रहेंगे। शूद्रों का यज्ञ करवाने वाले व दरिद्र होंगे।

21. नलकुबेर का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया। तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं। इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं।
लेकिन रावण ने उसकी बात नहीं मानी और रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसको स्पर्श करेगा तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा।

22. श्रीकृष्ण का अश्वत्थामा को श्राप
महाभारत युद्ध के अंत समय में जब अश्वत्थामा ने धोखे से पाण्डव पुत्रों का वध कर दिया, तब पाण्डव भगवान श्रीकृष्ण के साथ अश्वत्थामा का पीछा करते हुए महर्षि वेदव्यास के आश्रम तक पहुंच गए। तब अश्वत्थामा ने पाण्डवों पर ब्रह्मास्त्र का वार किया। ये देख अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा।
महर्षि व्यास ने दोनों अस्त्रों को टकराने से रोक लिया और अश्वत्थामा और अर्जुन से अपने-अपने ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा। तब अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा ये विद्या नहीं जानता था। इसलिए उसने अपने अस्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी।
यह देख भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम तीन हजार वर्ष तक इस पृथ्वी पर भटकते रहोगे और किसी भी जगह, किसी पुरुष के साथ तुम्हारी बातचीत नहीं हो सकेगी। तुम्हारे शरीर से पीब और लहू की गंध निकलेगी। इसलिए तुम मनुष्यों के बीच नहीं रह सकोगे। दुर्गम वन में ही पड़े रहोगे।

23. तुलसी का श्रीगणेश को श्राप
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार तुलसीदेवी गंगा तट से गुजर रही थीं, उस समय वहां श्रीगणेश तप कर रहे थे। श्रीगणेश को देखकर तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। तब तुलसी ने श्रीगणेश से कहा कि आप मेरे स्वामी हो जाइए, लेकिन श्रीगणेश ने तुलसी से विवाह करने से इंकार कर दिया। क्रोधवश तुलसी ने श्रीगणेश को विवाह करने का श्राप दे दिया और श्रीगणेश ने तुलसी को वृक्ष बनने का।

24. नारद का भगवान विष्णु को श्राप
शिवपुराण के अनुसार एक बार देवऋषि नारद एक युवती पर मोहित हो गए। उस कन्या के स्वयंवर में वे भगवान विष्णु के रूप में पहुंचे, लेकिन भगवान की माया से उनका मुंह वानर के समान हो गया। भगवान विष्णु भी स्वयंवर में पहुंचे। उन्हें देखकर उस युवती ने भगवान का वरण कर लिया। यह देखकर नारद मुनि बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस प्रकार तुमने मुझे स्त्री के लिए व्याकुल किया है। उसी प्रकार तुम भी स्त्री विरह का दु:ख भोगोगे। भगवान विष्णु ने राम अवतार में नारद मुनि के इस श्राप को पूरा किया ।
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भुदेवो को 👏🏻 प्रणाम 👏🏻 जय महाकाल
अनिल पाण्डेय 👉 संकलित
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