Thursday, October 15, 2015

|| गौ व्यथा की एक कथा ||


     

गौ व्यथा की एक कथा
*******************
स्थानीय गौशाला समिति द्वारा आयोजित सभा में एक धर्माचार्य जी ने भावुक कर देने वाला भाषण दिया. गौ माता की रक्षा करना ही धर्म है बताया और साथ ही बताया कि गाय के शरीर में कितने तरह के देवी देवताओं का वास होता है. गाय को क़त्ल किये जाने से पहले उसे दी जाने वाली यातनाओं के  बारें में बता कर तो उन्होंने सभा के माहौल को मार्मिक ही कर दिया. जोशीले अंदाज में धर्म एवं शास्त्रों की दुहाई देते हुए आह्वाहन किया कि गायों को कटने से रोकने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर देने चाहिए. धर्माचार्य  जी की खूब जय -जयकार हुई. वे फूल मालाओं से लाद दिए गए. धर्म के लिए बहुत बड़ा काम करने की अनुभूति और विजयी  मुद्रा लिए धर्माचार्य जी अपने घर वापस लौटे.
घर एक कोने में पड़ी भूखी बूढ़ी गाय ने कातर नजरों से उन्हें देखा. धर्माचार्य जी के सारे जोश पर पानी फिर गया.
पूरा ब्रह्माण्ड जल उठा. बेटे को आवाज लगायी एवं जोर से चिल्ला कर कहा “ कितनी बार कहा है इस बूढ़ी गाय को बेच आओ. “
“कोई ग्राहक मिले तब ना “ बेटे ने झुँझला कर कहा ।
अरे कोई ग्राहक ना मिले तो दूर जाकर कहीं सड़क पर ही छोड़ आओ . बैठे बैठे चारा खाती है, जगह भी घेर रखा है , धर्माचार्य जी गरजे ।
“बाहर छोड़ आये तो कोई कसाई उठा कर ले जाएगा” धर्माचार्य जी की पत्नी धीरे से फुसफुसाई .
धर्माचार्य जी के तलवे का गुस्सा कपार पर चढ़ गया. पाँव पटकते हुए बोले “ ले जाता है तो ले जाए कसाई , हम कितने दिनों तक इसे बैठा कर खिलाते रहेंगे”.
दूसरे कोने मे बैठी धर्माचार्य जी की बूढ़ी माँ चुपचाप सब सुन रही थी ॥
माँ बोली बेटा बूढ़ी तो मैं भी हूं गाय के साथ मुझे भी लेकर चल |
~~~~~~~~~~~~~


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

No comments:

Post a Comment