Thursday, October 15, 2015

|| पूर्वं निश्च्यमाश्रित्य यथावत्कर्मकारकः ||


     

पूर्वं निश्च्यमाश्रित्य यथावत्कर्मकारकः ।
अवेदनिन्दको धीमानधिकारी व्रतादिषु ॥ (स्कन्दपुराण)
नस्ति स्त्रीणां पृथग् यज्ञो न व्रतं नाप्युपोषणम् ।
भर्तृशुश्रूषयैवैता लोकानिष्टान् व्रजन्ति हि ॥ (स्कन्दपुराण)
पत्नी पत्युरज्ञाता व्रतादिष्वधिकारिणी । (व्यास)
सरल भावार्थ - उपर्युक्त गुणसम्पन्न ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र, स्त्री और पुरुष सभी अधिकारी है । केवल सौभाग्यवती स्त्रियोंके लिये यह लिखा है कि पतिकी सेवाके सिवा उनके लिये न कोई यज्ञ है, न व्रत है और न उपासना है । वे पतिकी सेवासे ही स्वर्गादि अभीष्ट लोकोंमे जा सकती है । फिर भी वे चाहें तो पतिकी अनुमतिसे करें; क्योंकि पत्नी पतिकी आज्ञा माननेवाली होती है । अतः उसके लिये पतिका व्रत ही कल्याणकारी है । अस्त, शास्त्रकारोंकी व्रतादिके विषयमें यह आज्ञा है कि उनका आरम्भ श्रेष्ठ समयमें किया जाय ।

पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

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