यज्जाग्रतो दूरमुदैति तदु, सुप्तस्य तथैवैति।
दूरं गमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे नम: शिवसंकल्पमस्तु।।
चक्षु आदि इंद्रियाँ इतनी दूर नहीं जाती जितना जागते हुए का मन दूर से दूर जाता है और लौट भी आता है, जो दैव अर्थात दिव्य-ज्ञान वाला है, आध्यात्मिक संबंधी सूक्ष्म विचार जिस मन में आसानी से आ सकते हैं, प्रगाढ़ निद्रा का सुषुप्ति अवस्था में जिसका सर्वथा नाश हो जाता है, जागते ही जो तत्क्षण फिर जी उठता है, वह मेरा मन शिव संकल्प वाला हो अर्थात सदा उसमें धर्म ही स्थान पाए, पाप मन से दूर रहे।
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