Thursday, October 15, 2015

|| या तिथिऋक्षसंयुक्ता या च योगेन नारद ||


     
या तिथिऋक्षसंयुक्ता या च योगेन नारद ।
मुहूर्त्तत्रयमात्रापि सापि सर्वा प्रशस्यते ॥ (गोभिल)
पारणे मरणे नृणां तिथिस्तात्कालिकी स्मृता ॥ (नारदीय)
यां तिथिम समनुप्राप्य उदयं याति भास्करः ।
सा तिथिः सकला ज्ञेया स्नानदानजपादिषु ॥ (देवल)
पूर्वाह्णो वै देवानां मध्याह्नो मनुष्याणामपराह्णः पितृणाम् ॥ (श्रुति)
सरल भावार्थ - जो तिथि व्रतके लिये आवश्यक नक्षत्र और योगसे युक्त हो, वह यदि तीन मुहूर्त हो तो वह भी श्रेष्ठ होती है ।
जन्म और मरणमें तथा व्रतादिकी पारणामें तात्कालिक तिथि ग्राह्य है; किंतु बहुत-से व्रतोंकी पारणामें विशेष निर्णय किया जाता
है, वह यथास्थान दिया है । जिस तितिमें सूर्य उदय या अस्त हो, वह तिथि स्नान-दान जपादिमें सम्पूर्ण उपयोगी होती है ।
पूर्वाह्ण देवोंका, मध्याह्न मनुष्योंका और अपराह्ण पितरोंका समय है । जिसका जो समय हो, उसका पूजनादि कर्म उसी समयमें
करना चाहिये ।

पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830 

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