भगवान् ( शिशु रूप ) श्रीकृष्ण द्वारा शकट-भंजन प्रसंग
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दशक ४२
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कदापि जन्मर्क्षदिने तव प्रभो निमन्त्रितज्ञातिवधूमहीसुरा ।
महानसस्त्वां सविधे निधाय सा महानसादौ ववृते व्रजेश्वरी ॥१॥
महानसस्त्वां सविधे निधाय सा महानसादौ ववृते व्रजेश्वरी ॥१॥
हे प्रभो! एक बार आपके जन्म नक्षत्र के दिन परिवार जन, गोपिकाएं और ब्राह्मण आमन्त्रित थे। उस समय आपको एक बडे छकडे के पास रख कर व्रजेश्वरी यशोदा महाभोज की तैयारी में व्यस्त हो गई।
ततो भवत्त्राणनियुक्तबालकप्रभीतिसङ्क्रन्दनसङ्कुलारवै: ।
विमिश्रमश्रावि भवत्समीपत: परिस्फुटद्दारुचटच्चटारव: ॥२॥
विमिश्रमश्रावि भवत्समीपत: परिस्फुटद्दारुचटच्चटारव: ॥२॥
तदनन्तर, आपकी रक्षा के लिए नियुक्त बालकों का भयपूर्ण क्रन्दन सुनाई दिया जो चकित कोलाहल से युक्त था, और आपके समीप से लकडी के फटने की और चट चटा कर चटखने की आवाज भी सुनाई दी।
ततस्तदाकर्णनसम्भ्रमश्रमप्रकम्पिवक्षोजभरा व्रजाङ्गना: ।
भवन्तमन्तर्ददृशुस्समन्ततो विनिष्पतद्दारुणदारुमध्यगम् ॥३॥
भवन्तमन्तर्ददृशुस्समन्ततो विनिष्पतद्दारुणदारुमध्यगम् ॥३॥
तब उस भयानक कोलाहल को सुन कर विस्मय और परिश्रम से कांपती हुई, भारी स्तनों वाली गोपिकाओं ने तब बाहर जा कर देखा कि आप चारों ओर से गिर कर बिखरे हुए लकडी के बडे बडे दारुण टुकडों के बीच स्थित हैं।
शिशोरहो किं किमभूदिति द्रुतं प्रधाव्य नन्द: पशुपाश्च भूसुरा: ।
भवन्तमालोक्य यशोदया धृतं समाश्वसन्नश्रुजलार्द्रलोचना: ॥४॥
भवन्तमालोक्य यशोदया धृतं समाश्वसन्नश्रुजलार्द्रलोचना: ॥४॥
अहो! बच्चे को क्या हो गया, क्या हुआ!' इस प्रकार कहते हुए नन्द, गोप जन और ब्राह्मण जल्दी से दौड कर गए। यशोदा ने आपको गोद में उठा लिया है देख कर वे लोग आश्वस्त हुए। आनन्द अश्रुओं से उनके नेत्र गीले हो गए।
कस्को नु कौतस्कुत एष विस्मयो विशङ्कटं यच्छकटं विपाटितम् ।
न कारणं किञ्चिदिहेति ते स्थिता: स्वनासिकादत्तकरास्त्वदीक्षका: ॥५॥
न कारणं किञ्चिदिहेति ते स्थिता: स्वनासिकादत्तकरास्त्वदीक्षका: ॥५॥
'कौन, यह कौन है, कहां से आया है, कहां है, जिसने इस विशाल छकडे को तोड दिया है। आश्चर्य है! यहां तो इसका कोई भी कारण दृष्टिगत नहीं होता।' इस प्रकार आपको देखते हुए लोग अपनी नाक पर हाथ रख कर स्तम्भित से खडे रह गए।
कुमारकस्यास्य पयोधरार्थिन: प्ररोदने लोलपदाम्बुजाहतम् ।
मया मया दृष्टमनो विपर्यगादितीश ते पालकबालका जगु: ॥६॥
मया मया दृष्टमनो विपर्यगादितीश ते पालकबालका जगु: ॥६॥
हे ईश्वर! आपकी रक्षा के लिए नियुक्त बालक इस प्रकार बोले, 'कुमार ने स्तनपान के लिए विचलित हो कर रुदन करते हुए अपने पदकमलों को चलाया। इससे आहत हो कर छकडा उलट गया। मैने देखा है। मैने देखा है।'
भिया तदा किञ्चिदजानतामिदं कुमारकाणामतिदुर्घटं वच: ।
भवत्प्रभावाविदुरैरितीरितं मनागिवाशङ्क्यत दृष्टपूतनै: ॥७॥
भवत्प्रभावाविदुरैरितीरितं मनागिवाशङ्क्यत दृष्टपूतनै: ॥७॥
जो लोग कुछ भी नहीं जानते थे वे सोचने लगे कि गोपकुमार भयभीत हो कर ऐसा कह रहे हैं। अन्य कुछ लोग जो आपके प्रभाव को तो नहीं जानते थे, किन्तु पूतना की घटना के साक्षी थे, वे इस बात से अवश्य ही थोडा आशङ्कित हो गए।
प्रवालताम्रं किमिदं पदं क्षतं सरोजरम्यौ नु करौ विरोजितौ।
इति प्रसर्पत्करुणातरङ्गितास्त्वदङ्गमापस्पृशुरङ्गनाजना: ॥८॥
इति प्रसर्पत्करुणातरङ्गितास्त्वदङ्गमापस्पृशुरङ्गनाजना: ॥८॥
नव पल्लव के समान कोमल ये पैर क्या चोट खा गए हैं? कमल के समान सुन्दर ये हाथ क्या छिल गए हैं?' इस प्रकार दया से द्रवित गोपिकाएं आपके अङ्गों को सहलाती रहीं।
अये सुतं देहि जगत्पते: कृपातरङ्गपातात्परिपातमद्य मे ।
इति स्म सङ्गृह्य पिता त्वदङ्गकं मुहुर्मुहु: श्लिष्यति जातकण्टक: ॥९॥
इति स्म सङ्गृह्य पिता त्वदङ्गकं मुहुर्मुहु: श्लिष्यति जातकण्टक: ॥९॥
'अयि (यशोदा) पुत्र को मुझे दो। जगत्पति की कृपा के तरंगापात से ही आज मेरा पुत्र बच गया।' इस प्रकार कहते हुए पिता ने आपको गोद में ले लिया और बारम्बार आलिङ्गन करके रोमाञ्चित हो गए।
अनोनिलीन: किल हन्तुमागत: सुरारिरेवं भवता विहिंसित: ।
रजोऽपि नो दृष्टममुष्य तत्कथं स शुद्धसत्त्वे त्वयि लीनवान् ध्रुवम् ॥१०॥
रजोऽपि नो दृष्टममुष्य तत्कथं स शुद्धसत्त्वे त्वयि लीनवान् ध्रुवम् ॥१०॥
निस्सन्देह छकडे के वेष में यह दैत्य आपकी हत्या करने के लिए ही आया था। उसको आपने इस प्रकार मार डाला। यह कैसे सम्भव है कि उसकी धूल तक भी दिखाई नहीं दी। अवश्य ही वह निर्मल सत्व स्वरूप आपमें लीन हो गया।
प्रपूजितैस्तत्र ततो द्विजातिभिर्विशेषतो लम्भितमङ्गलाशिष: ।
व्रजं निजैर्बाल्यरसैर्विमोहयन् मरुत्पुराधीश रुजां जहीहि मे ॥११॥
व्रजं निजैर्बाल्यरसैर्विमोहयन् मरुत्पुराधीश रुजां जहीहि मे ॥११॥
तब वहां सम्पूजित हुए ब्राह्मणों ने आपके ऊपर मङ्गल आशीर्वाद न्योछावर किये। अपने बाल रूप की मधुरता से व्रज को रस सिक्त करने वाले, हे मरुत्पुराधीश! मेरे कष्टों को हर लीजिए।
–जय श्रीमन्नारायण।
पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
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