Tuesday, October 13, 2015

|| हरिः ॐ तत्सत्! सुप्रभातम् ||


     

हरिः ॐ तत्सत्!  सुप्रभातम्।
सर्वेभ्यो भक्तेभ्यो नमो नमः।
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१- मुनिः
२- ऋषिः
मुनिः --- मनुते जानाति यः स मुनिः।
मनन करने वाला, जानने वाला या मौनी।
"मुनि" की सहज प्रकृति के लक्षणों को श्रीमद्भगवद्गीता में अभिव्यक्त किया गया है-
"दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते।"
(२/५६)
अर्थात् दुःख के कारणों के समुपस्थित होने पर भी जिस के चित्त में समुद्वेग नहीं होता; प्रिय पदार्थों के सन्निकट रहने पर भी जिसके मन में कोई इच्छा जाग्रत नहीं होती; जो राग भय और क्रोध इन त्रिदोष से रहित है---ऐसे साधक को मुनि कहते हैं।
ऋषिः -----
१-ऋषीति प्राप्नोति संसारपारमिति ऋषिः।
अर्थात् जो इस संसाररूपी भवसागर को पार कर ले वह ऋषि है।
२- ऋषति ज्ञानस्य पारं गच्छतीति ऋषिः।
अर्थात् ज्ञानी।
३- ऋषति सर्वान् मन्त्रान् ज्ञानेन पश्यति इति ऋषिः।
अर्थात् मन्त्र द्रष्टा।
शास्त्रों में ऋषियों के सप्तभेद कहे गये हैं--
सप्त ब्रह्मर्षिदेवर्षिमहर्षिपरमर्षयः।
काण्डर्षिश्च श्रुतर्षिश्च राजर्षिश्च क्रमवराः॥
१- सप्तर्षिः २- ब्रह्मर्षिः  ३- देवर्षिः  ४- महर्षिः  ५- काण्डर्षिः ६- श्रुतर्षिः ७- राजर्षिः।
"तहाँ होइ मुनि रिषय समाजा।
जाहिं जे मज्जन तीरथ राजा॥"
(मानस-बा०का०४३-७)
अमरवाणी विजयताम्
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पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

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