हिम सागर
जब मैं जन्मा तो था एक झरना
कल कल करता उछल कूद मचाता हुआ
अशांत पर निश्चिन्त ।
फिर हुआ एक चंचल, अधीर नदी
अनवरत आगे बढ़ने की प्रवृति, उतावलापन
मुझे नियंत्रित करती रही मजबूत धाराएँ ।
और अब सागर बनने की राह पर हूँ
ऊपर ऊपर धाराएँ अब भी
नियंत्रित करने का प्रयास करती हैं
पर भीतर भीतर शांत
बनना चाहता हूँ
धीरे धीरे मैं हिम सागर
बिलकुल ठोस
जिसकी प्रकृति एक सी होगी
अंदर बाहर
सघन शांत ।
कल कल करता उछल कूद मचाता हुआ
अशांत पर निश्चिन्त ।
फिर हुआ एक चंचल, अधीर नदी
अनवरत आगे बढ़ने की प्रवृति, उतावलापन
मुझे नियंत्रित करती रही मजबूत धाराएँ ।
और अब सागर बनने की राह पर हूँ
ऊपर ऊपर धाराएँ अब भी
नियंत्रित करने का प्रयास करती हैं
पर भीतर भीतर शांत
बनना चाहता हूँ
धीरे धीरे मैं हिम सागर
बिलकुल ठोस
जिसकी प्रकृति एक सी होगी
अंदर बाहर
सघन शांत ।
पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
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8828347830
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