जी अनुज मंगलेश्वर जी
संकेत पर हमारा ध्यान नहीं गया था क्षमा प्रार्थी हूँ ।
मेरे मत से किसी भी प्रश्न का हल वर्तमान से लिया जाना चाहिए ।
समस्या वर्तमान से ही हल होती है । जितने हमारे पास संसाधन हैं उन्हीं में हम अपना कार्य करते हैं । तात्पर्य यह कि पितामह नें अपने अनेक जन्मों में पाप नहीं किये थे तो कष्ट कैसे ?
ठाकुर जी कह रहे हैं ●●
सच पितामह आपनें कोई पाप नहीं किया है पर अपने वर्तमान के जन्म में ही आपनें एक पाप होते देखा था ।
शास्त्र कहते हैं की सबल को पाप होते देखना भी पाप की श्रेणी में आता है ।
हम यह नहीं कह रहे हैं की मेरे मत को सच मानें विद्वत समुदाय में एक स्वस्थ्य मत रखा अस्वीकृति की स्थिति में हम दासानुदास को कुछ नूतन ज्ञान अवश्य प्राप्त होगा ।
अनुरागी जी
Saturday, October 31, 2015
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