Saturday, October 31, 2015

जी  अनुज मंगलेश्वर जी
          संकेत  पर  हमारा  ध्यान  नहीं  गया  था  क्षमा प्रार्थी  हूँ ।
   मेरे  मत  से  किसी  भी  प्रश्न  का  हल  वर्तमान  से  लिया  जाना  चाहिए ।
    समस्या  वर्तमान  से  ही  हल  होती  है । जितने  हमारे  पास  संसाधन  हैं  उन्हीं  में  हम  अपना  कार्य  करते  हैं ।  तात्पर्य  यह  कि पितामह नें  अपने  अनेक  जन्मों  में  पाप  नहीं  किये  थे  तो  कष्ट  कैसे  ? 
   ठाकुर  जी  कह  रहे  हैं  ●●
      सच  पितामह आपनें  कोई  पाप  नहीं  किया  है  पर  अपने  वर्तमान  के  जन्म  में  ही  आपनें  एक  पाप  होते  देखा  था ।
    शास्त्र  कहते  हैं  की  सबल  को  पाप  होते  देखना  भी  पाप  की  श्रेणी  में  आता  है  ।
    हम  यह  नहीं  कह  रहे  हैं  की  मेरे  मत  को  सच  मानें  विद्वत  समुदाय  में  एक  स्वस्थ्य  मत  रखा  अस्वीकृति  की  स्थिति  में  हम  दासानुदास  को  कुछ  नूतन  ज्ञान  अवश्य  प्राप्त  होगा ।
       अनुरागी जी

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