Thursday, October 15, 2015

|| लाला जी की लाल लंगोट ||


     
लाला जी की लाल लंगोट
   (एक बाल कविता )
लाला जी की लाल लंगोट में
खटमल था एक लाल 
काट काट कर लाला जी को 
उसने किया बेहाल
गोल मटोल लाला जी 
गुस्से से हो गए लाल पीला 
चिल्ला कर पत्नी को आवाज दी 
नाम था जिसका लीला 
कहा है कोने में जो रखा 
काला मेरा सन्दूक 
उसमे मेरे पिताजी की 
रखी हुई है बंदूक 
बंदूक में  वो गोली भरना 
दिखे तुम्हें जो पीला 
मगर मत छूना गोली  
जो बैंगनी  है और नीला 
और उसको तो कभी ना छूना 
जिसका रंग है हरा 
सावधानी से काम करो 
सुनो मेरा मशवरा 
बंदूक निकाल कर  लीला 
गोली भर कर लायी 
लगा खटमल को निशाना 
एक गोली चलायी 
धम्म से गिरे लाला जी 
और लगे चिल्लाने  
नौकर चाकर ताऊ बेटा 
सबको लगे बुलाने 
कौन रंग की गोली भरी 
तुमने प्यारी लीला 
रंग था उसका काला 
बैंगनी या पीला 
कहा जो लीला ने सुनकर 
उड गए लाला जी के होश 
आंखे उल्टी जीभ बाहर और 
हो गए वो बेहोश
सुना लीला ने हैरत से 
मन उसका घबराया  
उसने लाला को नहीं था 
अब तक यह बताया 
उसे नहीं था रंगो का 
थोड़ा सा भी ज्ञान 
कौन हरा कौन गुलाबी 
थी लाली अंजान 
पीली वाली गोली 
खटमल मार भगाती थी 
नीली वाली गोली 
छिपकलियों को डराती थी 
लाल रंग की गोली से 
चूहे मारे जाते थे 
बैंगनी और गुलाबी से 
कौकरोच भगाये जाते थे 
पर खतरे वाली गोली का 
रंग था गहरा हरा  
लीला ने डाली थी गोली 
जिसमे बारूद था भरा 
एक खटमल के फेर में 
गयी लाला की जान 
है रंगों की पहचान जरूरी 
बच्चों लो तुम जान । 



पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

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