Wednesday, October 28, 2015

🙏 तटस्थ  नव कानन🙏
श्री यमुना जी  के  निकट  निवासी  भाव से  यमुना  अष्टक  से उद्घृत पद सूक्त "तटस्थ  नव कानन" पर सहज भाव का निवेदन है 👇कि
यमुना तटीय वृक्षों की  विशेषता  है  कि वे प्रणाम  मुद्रा में  यमुना जी की ओर  झुके रहते हैं  जहां  कदंब  और मोरछली आदि तटस्थ वृक्षों से सुवासित  समीर  के झोंके, हर्ष  पूर्वक  झूम  झूम कर प्रिया- प्रीतम  के विहार हेतु  पुष्पों  के  विछोना  विछा देते हैं । वहां  क्षण क्षण अपनी नवीन छटाऐं विकीर्ण करती हुई तरनि तनूजा तट की नेहालयी निकुंजों और  झालरों  सी झूमती  लतिका वल्लरियों से आच्छादित यमुना तटीय कानन चारिणी प्रकृति, रसवती सूर्य  सुता के रस - रहस्य  से प्रमुदित होकर  स्वयं उनका श्रंगार  करती है । जिसे अष्ट सखाओं  ने गाया है :-
प्रफुल्लित  वन विविध रंग,
झलकत यमुना तरंग,
शीतल मन्द सुगन्ध  अति
सौरभ घन सुहावनौ ।।
🙏 साहित्य चतुर्वेदी

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