. अष्टौ तान्यव्रतघ्नानि आपो मूलं फलं पयः ।
हविर्ब्राह्मणकाम्या च गुरोर्वचनमौषधम् ॥ (पद्मपुराण)
चरुभैक्ष्यसक्तुकणयावकशाकपयोदधिघृतमूलफलादीनि
हवींष्युत्तरोत्तरं प्रशस्तानि । (गौतम)
सरल भावार्थ - जल, फल, मूल, दूध, हवि, ब्राह्मणकी इच्छा, ओषधि और गुरु (पूज्यजनों) के वचन-इन आठसे व्रत नहीं बिगड़ते
होमवशिष्ट खीर, भिक्षाका अन्न, सत्तू (सेके हुए जौका चूर्ण), कण (गोरैड़ या तृणपुष्प), यावक (जौ), शाक (तोरों, ककड़ी, मेथी आदि), गोदुग्ध, दही, घी, मूल, आम, अनार, नारंगी और कदलीफल आदि खानेयोग्य हविष्य है ।
हविर्ब्राह्मणकाम्या च गुरोर्वचनमौषधम् ॥ (पद्मपुराण)
चरुभैक्ष्यसक्तुकणयावकशाकपयोदधिघृतमूलफलादीनि
हवींष्युत्तरोत्तरं प्रशस्तानि । (गौतम)
सरल भावार्थ - जल, फल, मूल, दूध, हवि, ब्राह्मणकी इच्छा, ओषधि और गुरु (पूज्यजनों) के वचन-इन आठसे व्रत नहीं बिगड़ते
होमवशिष्ट खीर, भिक्षाका अन्न, सत्तू (सेके हुए जौका चूर्ण), कण (गोरैड़ या तृणपुष्प), यावक (जौ), शाक (तोरों, ककड़ी, मेथी आदि), गोदुग्ध, दही, घी, मूल, आम, अनार, नारंगी और कदलीफल आदि खानेयोग्य हविष्य है ।
पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830
No comments:
Post a Comment