Sunday, October 18, 2015

|| कहाँ गए वो लोग? ||

     

कहाँ गए वो लोग?
******************
आजकल देखने में आता है कि अपने भारत देश के गाँव अपनी जिन खूबियों के लिए जाने जाते थे, वहाँ वे खूबियाँ धीरे धीरे गुम होती जा रही है। वहाँ का गंवईपन , आपसी समरसता, प्रेम , भाईचारा, मेल मिलाप, गीत , संगीत, निश्छलता  आदि न जाने कहाँ गायब होते चले गए। गांवों में अब एक अजीब सी निष्ठुरता तारी होती जा रही है, भौतिकतावादी विचारों ने शहर से अपने पाँव गांवों तक पसार लिए हैं । प्रस्तुत है इसी परिदृश्य  को अभिव्यंजित करती यह कविता "कहाँ गए वो लोग" । पढ़िये और बताइये क्या आपके गाँव में भी ऐसा हो रह है .....
~~~~~~~~~~~~~
औरों के गम में रोने वाले 
संग दालान में सोने वाले। 
साँझ ढले मानस का पाठ 
सुनने और सुनाने वाले । 
होती थी जब बेटी विदा 
पड़ोस की चाची रोती थी
बेटी हो किसी के घर की 
अपनी बेटी होती थी 
फूल खिले औरों के आँगन 
मिलकर सोहर गाने वाले ॥ 
पाँव में भले दरारें थी 
पर हँसी  निश्छल निर्दोष
हर दिन उत्सव उत्सव था 
एकादशी हो या प्रदोष  
कच्चे मन के गाछ पर 
खुशियों के फूल खिलाने वाले । 
पूजा हो या कार्य प्रयोजन 
पूरा गाँव उमड़ता था
किसी के घर विपत्ति हो 
सामूहिक रूप से लड़ता था 
किसी के भी संबंधी को 
अपना कुटुंब बताने वाले । 
 गाँव की पंचायतों  में 
स्वयं परमेश्वर बसता था। 
सहकारी परंपरा से 
सारा कार्य निबटता था।   
किसी के घर के चूने पर 
मिलकर छप्पर छाने वाले । 
कहाँ गए वो लोग। ?
कहाँ गए वो लोग। ?

पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

No comments:

Post a Comment