सुखाय दुःख मोक्षाय संकल्प इह कर्मिणः। सदाप्रोतीहया दुःखमनीहायाः सुखावृतः।। कर्म मे प्रवृत्त हो के दो ही उद्देश्य होते हैं सुख पाना और दुख से छूटना। परन्तु जो पहले कामना न रहने के कारण सुख मे मग्न रहता था उसको ही अब कामना के कारण यहा सदा ही दुख भोगना पडता है।
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