Thursday, October 22, 2015

एतिहातन
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ऐतिहातन किफायत ,बरतते हैं हम,
फूँक कर राह पर,पांव रखते हैं हम ।

आदमी की नीयत का, पता कुछ नहीं ,
दोस्त-दुश्मन सभी को, परखते हैं हम।

हो गए सोचने को ,विवश मेहृरवाँ ,
ऐसे अंदाज में ,प्रश्न करते हैं हम ।

ये तो मेरी शराफत है, कुछ न कहूँ ,
हौंसला तो, शिकायत का रखते हैं हम ।

पेश आये कभी ,गर जरूरत मेरी ,
तो बुला लीजियेगा ,तरसते हैं हम ।

फासले दरमियाँ हैं ,सिमटते नहीं,
फितरतन तय सफ़र, रोज करते हैं हम।

आईना देखना आप ,फुर्सत में अब ,
आपकी आँख में रक्स ,करते हैं हम ।

ये इनायत ये,आबो-अदब किसलिए ,
आपकी तो नजर में, खटकते हैं हम ।

तोड़ दो आज 'अनुराग'सारे भरम ,
संगदिल तो नहीं ,लो पिघलते हैं हम ।
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अपनी वीणा के तार
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उठो !और दृढ़तर कसलो अपनी वीणा के तार,
आदि -अंत से दिग-दिगंत तक ,दो स्वर को विस्तार ।

मधुर-मधुर ध्वनि छेड़ ,तान ले ,राग आलाप,निराले ,
साध सुरों की सरगम से,सारे संवेग जगा लो ;
शब्द -संतुलन ,मधुर-मधुर सुर गूंजे शत-शत बार ॥

उठो !और दृढ़तर कसलो अपनी वीणा के तार,
आदि -अंत से दिग-दिगंत तक ,दो स्वर को विस्तार ।

मुदित -माधुरी ,रूप मनोहर ,ज्योतिष्ना मनुहार ,
शुचिता स्वर सुन ,जाग-जाग, नव उत्त्कर्षों के द्वार,
नवल सृजन पुष्पहार बन,दे-दे ,दे उपहार ।

उठो !और दृढ़तर कसलो अपनी वीणा के तार,
आदि -अंत से दिग-दिगंत तक ,दो स्वर को विस्तार ।

द्वेष,राग,तम बेध ,वेद, विदित- विज्ञान प्रचारो
कर्म-यज्ञ ,श्रुति ,संकल्पों के मंत्र उच्चारो ,
गीत,प्रीती,संगीत,रीति मय ,रच अद्दभुत संसार 

उठो !और दृढ़तर कसलो अपनी वीणा के तार,
आदि -अंत से दिग-दिगंत तक ,दो स्वर को विस्तार ।

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