Sunday, October 18, 2015

|| पितामह भीष्म का जीवन ||


     

पितामह भीष्म के जीवन का एक ही पाप था कि उन्होंने समय
पर क्रोध नहीं किया ...
और
जटायु के जीवन का एक ही पुण्य था कि उसने समय पर क्रोध
किया.
परिणामस्वरुप ................
एक को बाणों की शैय्या मिली और एक को प्रभु श्री राम की
गोद.
अतः क्रोध भी तब पुण्य बन जाता है जब वह धर्म और मर्यादा के
लिए किया जाए.
और सहनशीलता भी तब पाप बन जाती है जब वह धर्म और मर्यादा को
बचा ना पाये।



पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

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