Thursday, March 2, 2017

।। धर्मार्थ वार्ता मार्च माह।।

[3/1, 20:40] ओमीश Omish Ji: हिन्दू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई। पढ़े एक ज्ञानवर्धक लेख।

             कुछ लोग कहते हैं की हिन्दू शब्द फारसियों की देन है । क्यूंकि इसका उल्लेख वेद पुराणों में नहीं है।

मेरे सनातनी भाईयों, इन जैसे लोगों का मुंह   बंद करने के लिये आपके सन्मुख हजारों वर्ष पूर्व लिखे गये सनातन शास्त्रों में लिखित चंद श्लोक (अर्थ सहित) प्रमाणिकता सहित बता रहा हूँ । आप सब सेव करके रख लें, और मुझसे यह सवाल करने वाले महामूर्खो को मेरा जवाब भी देख लें.

*1-ऋग्वेद के ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया है......!*

*"हिमलयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं ।*
*तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ।।*

*(अर्थात हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिंदुस्थान कहते हैं)*

*2- सिर्फ वेद ही नहीं.... बल्कि.. मेरूतंत्र ( शैव ग्रन्थ ) में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया है.....*

*"हीनं च दूष्यतेव् हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये ।"*

*(अर्थात... जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं)*

*3- और इससे मिलता जुलता लगभग यही यही श्लोक कल्पद्रुम में भी दोहराया गया है....!*

*"हीनं दुष्यति इति हिन्दू ।"*

*(अर्थात जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते है )*

*4- पारिजात हरण में हिन्दू को कुछ इस प्रकार कहा गया है....!*

*"हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टं । हेतिभिः श्त्रुवर्गं च स हिन्दुर्भिधियते ।।"*

*(अर्थात जो अपने तप से शत्रुओं का दुष्टों का और पाप का नाश कर देता है, वही हिन्दू है )*

*5- माधव दिग्विजय में भी हिन्दू शब्द को कुछ इस प्रकार उल्लेखित किया गया है....!*

*"ओंकारमन्त्रमूलाढ्य पुनर्जन्म द्रढ़ाश्य: ।*
*गौभक्तो भारतगरुर्हिन्दुर्हिंसन दूषकः ।।*

*(अर्थात.... वो जो ओमकार को ईश्वरीय धुन माने, कर्मों पर विश्वास करे, सदैव गौपालक रहे तथा बुराईयों को दूर रखे, वो हिन्दू है )।

*6- केवल इतना ही नहीं हमारे ऋगवेद ( ८:२:४१ ) में विव हिन्दू नाम के बहुत ही पराक्रमी और दानी राजा का वर्णन मिलता है । जिन्होंने 46000 गौमाता दान में दी थी.... और ऋग्वेद मंडल में भी उनका वर्णन मिलता है ।

*7- ऋग वेद में एक ऋषि का उल्लेख मिलता है जिनका नाम सैन्धव था । जो मध्यकाल में आगे चलकर "हैन्दव/हिन्दव" नाम से प्रचलित हुए, जिसका बाद में अपभ्रंश होकर हिन्दू बन गया...!!

*8- इसके अतिरिक्त भी कई स्थानों में हिन्दू शब्द उल्लेखित है....।।*

*इसलिये गर्व से कहो, हाँ हम हिंदू थे, हिन्दू हैं और सदैव सनातनी हिन्दू ही रहेंगे ॥🙏संकलित
[3/1, 21:25] P anuragi. ji: ओमीश जी
        शुभाशीष

आप द्वारा प्रेषित  हिन्दू विषयक लेख में       ऋग्वेद  के बृहस्पति अग्यम  का उल्लेख है । जिसमें
हिमालायं समारम्भय****प्रचक्षते ।।

      एतद सन्दर्भ में विद्वत समुदाय से जिज्ञासा  बस  यह  पूंछना चाहता हूँ कि उपर्युक्त श्लोक  वैदिक  नहीं होते हुये  भी वेद में कैसे स्थापित है ।
            
         आभारी
      अनुरागी जी
[3/1, 22:24] ‪+91 88274 29111‬: *माता  पिता के बिना घर कैसा*
            *होता है ?*
*अगर इसका*
            *अनुभव करना है तो...*

     *एक दिन अपने अंगूठे*
            *के बिना  सिर्फ अपनी*
            *उंगलियो से सारे काम*
            *करके देखो....*

     *माता पिता की कीमत पता*
            *चल जाएगी ।*
      🌹🌹 जय श्री कृष्णा🌹🌹
[3/1, 22:34] ‪+91 98239 16297‬: *सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे दैनिक पंचांग-- ०२ मार्च २०१७*

***!!श्री मयूरेश्वर प्रसन्न!!***
☀धर्मशास्त्रसंमत प्राचीन शास्त्रशुद्ध सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग (पुणे) नुसार
दिनांक ०२ मार्च २०१७
*राष्ट्रीय भारतीय सौर दिनांक* ११ फाल्गुन,शके १९३८
पृथ्वीवर अग्निवास १४:४४ नंतर.
बुध मुखात आहुती आहे.
शिववास क्रीडेत १४:४४ पर्यंत नंतर कैलासावर,काम्य शिवोपासनेसाठी १४:४४ पर्यंत अशुभ नंतर शुभ दिवस आहे.
☀ *सूर्योदय* -०६:५७
☀ *सूर्यास्त* -१८:३७
*शालिवाहन शके* -१९३८
*संवत्सर* -दुर्मुख
*अयन* -उत्तरायण
*ऋतु* -शिशिर (सौर)
*मास* -फाल्गुन
*पक्ष* -शुक्ल
*तिथी* -चतुर्थी (१४:४४ पर्यंत)
*वार* -गुरुवार
*नक्षत्र* -अश्विनी
*योग* -शुक्ल (०९:०५ नंतर ब्रम्हा)
*करण* -भद्रा (१४:४४ नंतर बव)
*चंद्र रास* -मेष
*सूर्य रास* -कुंभ
*गुरु रास* -तुळ
*राहु काळ* -१३:३० ते १५:००
*पंचांगकर्ते*:सिद्धांती ज्योतिषरत्न गणकप्रवर
*पं.गौरवशास्त्री देशपांडे-०९८२३९१६२९७*
*विशेष*-भद्रा १४:४४ पर्यंत,वैनायकी गणेश चतुर्थी,तिल-विघ्नहर-मनोहर चतुर्थीव्रत,पुत्रगणपतीव्रत,सर्वार्थसिद्धियोग २७:३१ पर्यंत,या दिवशी पाण्यात हळद घालून स्नान करावे.दत्तात्रेय वज्रकवच व गणेश सहस्रनाम या स्तोत्रांचे पठण करावे."बृं बृहस्पतये नमः" या मंत्राचा किमान १०८ जप करावा.सत्पात्री व्यक्तिस केळी व दक्षिणा दान करावी.गणपतीला उकडीच्या मोदकांचा नैवेद्य दाखवावा.यात्रेसाठी घरातून बाहेर पडताना दहि प्राशन करुन बाहेर पडल्यास प्रवासात ग्रहांची अनुकूलता प्राप्त होईल.
*विशेष टीप* - *आगामी नूतन संवत्सरारंभी येणारा गुढीपाडवा सूर्यसिद्धांतीय पंचांगानुसार म्हणजेच मुख्यतः धर्मशास्त्रानुसार या वेळी मंगळवार दि.२८ मार्च २०१७ रोजी नसून बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजी आहे.कारण, सूर्यसिद्धांत गणितानुसार दि.२८ मार्च रोजी सूर्योदयास अमावस्या तिथी आहे व दि.२९ मार्च रोजी सूर्योदयास प्रतिपदा तिथी आहे.याची विशेष नोंद हिंदूंनी घ्यावी व सर्वांनी गुढी-ब्रह्मध्वज पूजन हे चैत्र शु.प्रतिपदेला बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजी करावे.*
www.facebook.com/DeshpandePanchang
*टीप*-->> दुपारी ३ नंतर चांगला दिवस आहे.
**या दिवशी मुळ्याची भाजी खावू नये.
**या दिवशी पिवळे वस्त्र परिधान करावे.
*आगामी नूतन संवत्सराचे सर्वांना उपयुक्त व फायदेशीर असे धर्मशास्त्रसंमत सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग सर्वत्र उपलब्ध आहे.*
♦ *लाभदायक वेळा*-->>
लाभ मुहूर्त--  दुपारी १२.४५ ते दुपारी २.१५
अमृत मुहूर्त--  दुपारी २.१५ ते दुपारी ३.४५
|| *यशस्वी जीवनाचे प्रमुख अंग* ||
|| *सूर्यसिध्दांतीय देशपांडे पंचांग* ||
आपला दिवस सुखाचा जावो,मन प्रसन्न राहो.
(कृपया वरील पंचांग हे पंचांगकर्त्यांच्या नावासहच व अजिबात नाव न बदलता शेअर करावे.या लहानश्या कृतीने तात्त्विक आनंद व नैतिक समाधान मिळते.@copyright)
[3/1, 22:40] ‪+91 8076 170 336‬:
वनानि दहतो वन्हेस्सखा भवति मारूत:।
स एव दीपनाशाय कृशे कस्यास्ति सोहृदम्।।

जब जंगल में आग लगती है तो हवा उसकी मित्र बन जाती है और आग को फैलने में मदद करती है। मगर वही हवा एक छोटी सी चिंगारी को तुरंत बुझा देती है। इसलिए कमजोर का कोई मित्र नहीं होता है।
[3/2, 00:13] ‪+91 81093 29976‬: जब मनुष्य जन्म लेता है तो उसके पास सांसे तो होती हैं पर कोई नाम नहीं होता और जब मनुष्य की मृत्यु होती है तो उसके पास नाम तो होता है पर सांसे नहीं होती।
इसी सांसे और नाम के बीच की यात्रा को "जीवन" कहते हैं।
न किसी के अभाव में जियो,
न किसी के प्रभाव में जियो। यह जिंदगी है आपकी, अपने स्वभाव में ...श्री राधेकृष्ण
[3/2, 04:32] राम भवनमणि त्रिपाठी: यद्भूतहितमत्यंत तत् सत्यम्।[1]

जो वाक्य सभी प्राणियों के लिये अत्यंत हितकारी हो वही सत्य है।

सत्यं सत्येन दृश्यते।[2]

सत्य का दर्शन सत्य से ही होता है।

न तत्सत्यं यच्छलेनाभ्युपेतम्।[3]

जिस बात में कपट है वह सत्य नहीं है।

सत्यं धर्मस्तपो योग:।[4]

सत्य ही धर्म है, सत्य ही तप है और सत्य ही योग है।

सत्यं ब्रह्म सनातनम्।[5]

सदा रहने वाला परमेश्वर ही सत्य है।

सत्यं विद्यास्तथा विधि:।[6]

सत्य ही विद्या है सत्य ही विधि है।

सद्भाव: सत्यमुच्यते।[7]

सत्ता या वास्तविकता को ही सत्य कहते है।
[3/2, 07:03] पं अर्चना जी: ✍जो "प्राप्त" है वो ही "पर्याप्त" है ।
इन दो शब्दों में सुख बेहिसाब हैं।।

जो इंसान "खुद" के लिये जीता है उसका
एक दिन "मरण" होता है..

पर जो इंसान"दूसरों"के लिये जीता है                        उसका हमेशा "स्मरण" होता है ।।
     🌺आत्मीय वन्दन 🌺
        🙏🏻शुभ प्रभात 🙏🏻
[3/2, 07:29] ‪+91 99267 22827‬: !!ॐ!! अन्नमशितं त्रेधा विधीयते तस्य य: स्थविष्ठो धातुस्तत्पुरीषं भवति यो मध्यमस्तन्मांसं योSणिष्ठस्तन्मन: !!
                 -छान्दोग्योपनिषद्
अर्थात्‌  खाया हुआ अन्न तीन प्रकार का हो जाता है ! उसका जो अत्यन्त स्थूल भाग होता है, वह मल हो जाता है, जो मध्यम है वह मांस हो जाता है, और जो अत्यन्त सूक्ष्म भाग होता है वह मन हो जाता है !!
श्रीगुरुर्जयति !!
[3/2, 07:39] ‪+91 99267 22827‬: !!ॐ!! ओमित्येदक्षरमुद्गीथमुपासीत !!                                                                              -छान्दोग्योपनिषद्

अर्थात् ॐ यह अक्षर उद्गीथ है, इसकी उपासना करनी चाहिये !!
[3/2, 07:45] प सुभम्: *मानव कितने भी प्रयत्न कर ले* 
            *अंधेरे में छाया*
            *बुढ़ापे में काया*
                    *और*
          *अंत समय मे माया*
       *किसी का साथ नहीं देती*
 
*कर्म करो तो फल मिलता है*,
       *आज नहीं तो कल मिलता है।*
*जितना गहरा अधिक हो कुँआ,*
        *उतना मीठा जल मिलता है ।*
*जीवन के हर कठिन प्रश्न का,*
        *जीवन से ही हल मिलता है।*
             
     *" सुप्रभात ""*
[3/2, 08:13] ‪+91 98895 15124‬: .        ।। 🕉 ।।
    🌞 *सुप्रभातम्* 🌞
««« *आज का पंचांग* »»»
कलियुगाब्द.................5118
विक्रम संवत्...............2073
शक संवत्..................1938
मास.......................फाल्गुन
पक्ष...........................शुक्ल
तिथी.........................चतुर्थी
दोप 01.03 पर्यंत पश्चात पंचमी
रवि.....................उत्तरायण
सूर्योदय...........06.47.01 पर
सूर्यास्त...........06.30.14 पर
तिथि स्वामी..................यम
नित्यदेवी..................विजया
नक्षत्र.....................अश्विनी
रात्रि 01.41 पर्यंत पश्चात भरणी
योग..........................शुक्ल
प्रातः 07.21 पर्यंत पश्चात ब्रह्मा
करण.........................विष्टि
दोप 01.03 पर्यंत पश्चात बव
ऋतु..........................बसंत
दिन.........................गुरुवार

🇬🇧 *आंग्ल मतानुसार* :-
02 मार्च सन 2017 ईस्वी ।

👁‍🗨 *राहुकाल* :-
दोपहर 02.05 से 03.32 तक ।

🚦 *दिशाशूल* :-
दक्षिणदिशा -
यदि आवश्यक हो तो दही या जीरा का सेवन कर यात्रा प्रारंभ करें।

☸ शुभ अंक..................2
🔯 शुभ रंग............केसरिया

✡ *चौघडिया* :-
प्रात: 06.50 से 08.17 तक शुभ
प्रात: 11.11 से 12.38 तक चंचल
दोप. 12.38 से 02.05 तक लाभ
दोप. 02.05 से 03.32 तक अमृत
सायं 04.59 से 06.26 तक शुभ
सायं 06.26 से 07.59 तक अमृत
रात्रि 07.59 से 09.32 तक चंचल |

💮 *आज का मंत्र* :-
।। ॐ वासुदेवाय नम: ।।

📢 *सुभाषितम्* :-
*अष्टावक्र गीता - तृतीय अध्याय :-*
धीरस्तु भोज्यमानोऽपि पीड्यमानोऽपि सर्वदा।
आत्मानं केवलं पश्यन्
न तुष्यति न कुप्यति॥३- ९॥
अर्थात :-
सदा केवल आत्मा का दर्शन करने वाले बुद्धिमान व्यक्ति भोजन कराने पर या पीड़ित करने पर न प्रसन्न होते हैं और न क्रोध ही करते हैं॥९॥ 

🍃 *आरोग्यं* :-
अर्जुन से लाभ.....
✏- अर्जुन छाल को दूध् में पीसकर मधु मिलाकर सेवन करने से रक्तातिसार मिटता है।

✏- अर्जुन छाल एवं गंगेरण समभाग लेकर व आधा भाग एरण्ड बीज चूर्ण प्रतिदिन प्रातः सांयकाल बकरी के दूध् में डालकर ;लगभग ५ ग्राम चूर्णद्ध पकायें। ठण्डा होने पर विषम मात्राा ;१-३ या ३-१द्ध में घृत मध्ु मिलाकर पिलाने से क्षय रोग मिटता है।

✏- त्वक चूर्ण, अर्जुनत्वक चूर्ण एवं चावलों का चूर्ण सेवन करने से कुष्ठ में लाभ होता है व समस्त प्रकार के त्वचागत रोग मिटते है।

✏- भृंगराज एवं अर्जुनक्षार दही के पानी के साथ सेवन करने से संग्रहणी में लाभ होता है।

✏- उडद के आटे में अर्जुन छाल चूर्ण मिलाकर घृत में सेंक कर भैंस के दूध् में पकाकर सेवन करने से भस्मक तीक्ष्णाग्निद्ध मिटती है।

✏- २ ग्राम अर्जुन त्वक चूर्ण, २ ग्राम कडुवा इन्द्र जौ चूर्ण मिलाकर शीतल जल से सेवन करने से तीव्र अतिसार मिटता है।

✏- अर्जुन छाल ३ ग्राम, गुलाब जल १५ मिली, द्राक्षरिष्ट या मृ(कासव १५ मिली की मात्रा से प्रतिदिन भोजन के पश्चात यदि गर्भवती स्त्राी सेवन करें तो उसे बहुत सुंदर सन्तान की प्राप्ति होती है, ऐसा स्वयं कई बार परीक्षित है।

⚜ *आज का राशिफल* :-

*राशि फलादेश मेष* :-
व्यय अधिक होने से कर्ज लेना पड़ सकता है। प्रतिष्ठा, मान-सम्मान को ठेस लग सकती है। हानि-दुर्घटना से बचें। व्यापार-व्यवसाय मंदा चलेगा।
                 
🐂 *राशि फलादेश वृष* :-
रुका हुआ धन वापस आ सकता है। शत्रु परास्त होंगे। यात्रा लाभकारी होगी। नौकरीपेशा को ‍कोशिश करने पर सफलता मिलेगी।
                    
*राशि फलादेश मिथुन* :-
कार्य में रुचि बढ़ेगी। नई योजना बनेगी, जो लाभकारी रहेगी। मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। व्यापार-निवेश लाभकारी होंगे।
           
🦀 *राशि फलादेश कर्क* :-
राजकीय कार्य बनेंगे। धर्म-कर्म में रुचि बढ़ेगी। माता को कष्ट होगा। शत्रु परेशान करेंगे। जोखिम के कार्यों में सावधानी बरतें।
             
🦁 *राशि फलादेश सिंह* :-
पुराने मामले निपटेंगे। व्यापार-निवेश लाभकारी होंगे। जीवनसाथी की चिंता होगी। पराक्रम से लाभ बढ़ेगा। विद्यार्थी वर्ग सफलता हासिल करेगा।
                    
🏻 *राशि फलादेश कन्या* :-
गृहस्‍थी का वातावरण प्रसन्नतापूर्ण रहेगा। शत्रु परास्त होंगे। नौकरी इत्यादि का परिणाम शुभ होगा। विवाद में विजय मिलेगी। प्रतिष्ठा वृद्धि होगी।
                    
⚖ *राशि फलादेश तुला* :-
हानि-दुर्घटना से बचें। व्यापार-व्यवसाय से लाभ होगा। संतान पक्ष की चिंता बढ़ेगी। नौकरी, इंटरव्यू में सफलता मिलेगी। धन प्राप्ति सुगम होगी।
     
🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक* :-
हानि-दुर्घटना से बचें। व्यापार-व्यवसाय से लाभ होगा। संतान पक्ष की चिंता बढ़ेगी। नौकरी, इंटरव्यू में सफलता मिलेगी। धन प्राप्ति सुगम होगी।
      
🏹 *राशि फलादेश धनु* :-
विरोधी परेशान करेंगे। मान-सम्मान को ठेस पहुंचेगी। मनमाफिक काम नहीं बनेंगे। धैर्य रखेंगे। यात्रा में सावधानी रखें। शत्रु परास्त होंगे।
                         
🐊 *राशि फलादेश मकर* :-
पराक्रम से कार्य बनेंगे। मान-सम्मान में वृद्धि होगी। शत्रु परेशान करेंगे। हानि-दुर्घटना से बचें। शारीरिक पीड़ा हो सकती है।
                         
🏺 *राशि फलादेश कुंभ* :-
शुभ-समाचार मिलेंगे। दुष्ट व्यक्तियों का साथ नुकसान देगा। यात्रा में कष्ट हो सकता है। व्यापार-व्यवसाय धीमा चलेगा।
                 
*राशि फलादेश मीन* :-
यात्रा लाभदायक होगी। व्यापार निवेश से लाभ होगा। इंटरव्यू-नौकरी में सफलता मिलेगी, शत्रु शांत होंगे। रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे।
            
☯ आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो ।

।। *शुभम भवतु* ।।

🇮🇳🇮🇳 *भारत माता की जय*  🚩🚩
[3/2, 08:24] ओमीश Omish Ji: अनाहूतः अपि आयान्ति अस्मत्सभां, यतः इह स्वागतीकुर्वन्ति सन्तुष्टान्तरङ्गाः नतु कुसुमस्तबकाः।
👇👇👇
हमारी सभा में लोग बिना बुलाए आते हैं, क्योंकि यहाँ स्वागत में फूल नहीं दिल बिछाए जाते हैं!! आचार्य ओमीश !!
[3/2, 08:37] P Alok Ji: नाम जीह जपि जागहि जोगी। विरति विरंचि प्रपंच वियोगी।।
ब्रम्हसुखहि अनुभवहि अनूपा।
अकथ अनामय नाम न रूपा।।
ब्रम्ह के बनाये इस प्रपंच दृष्य जगत से भली भांति छुटे हुये वैराग्य वान् मुक्त योगी पुरूष इस राम नाम को हि जीभ से जपते हुये जागते हैं और नाम तथा रूप से रहित अनुपम अनिर्वचनीय ब्रम्हसुख का अनुभव करते हैं । पिबत रामचरित मानस रसम् ,,,श्रद्धेय आलोकजी शास्त्री इन्दौर
[3/2, 08:41] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूल श्लोकः 🔔*
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।।२.१९।।
*🏹पदच्छेदः........*
यः, एनम्, वेत्ति, हन्तारम्, यः, च, एनम्, मन्यते, हतम्।
उभौ, तौ, न, विजानीतः, न, अयम्, हन्ति, न, हन्यते।।
*🌹पदपरिचयः......🌹*
यः —यद्-द. सर्व. पुं. प्र. एक.
एनम् —एतद्-द. सर्व.पुं.द्वि.एक.
वेत्ति —विद्-पर. कर्तरि लट्.प्रपु.एक.
हन्तारम् —हन्तृृ-ऋ.पुं.द्वि.एक.
च —अव्ययम्
मन्यते —मन्-आत्म. कर्मणि लट्.प्रपु.एक.
हतम् —अ. पुं. द्वि. एक.
उभौ —उभ- अ. सर्व. पुं. प्र. द्विव.
तौ —तद्-द. सर्व. पुं. प्र. द्विव.
विजानीतः —वि-ज्ञा- पर. कर्तरि लट्. प्रपु. द्विव.
अयम् —इदम्-म. सर्व. पुं. प्र. एक.
हन्ति —हन्-पर. कर्तरि लट्.प्रपु.एक.
न —अव्ययम्
हन्यते —हन्- कर्मणि लट्.प्रपु.एक.
*🌷पदार्थः...... 🌷*
यः —यः जनः
एनम् —आत्मानम्
हन्तारं वेत्ति —मारकः इति जानाति
यः च —योsपि
एनम् —आत्मानम्
हतं मन्यते —मारितः इति जानाति
तौ उभौ —तौ द्वौ अपि
न विजानीतः —नैव अवगच्छतः
अयम् —आत्मा
न हन्ति —न मारयति
न हन्यते —नापि मारितो भवति।
*🌻अन्वयः 🌻*
यः एनं हन्तारं वेत्ति, यः च एनं हतं मन्यते तौ उभौ न विजानीतः। (यतः) अयं न हन्ति, न हन्यते।
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_न विजानीतः।_
कौ न विजानीतः?
*तौ न विजानीतः।*
तौ कौ न विजानीतः?
*तौ उभौ न विजानीतः।*
कौ तौ उभौ न विजानीतः?
*यः वेत्ति यः च मन्यते तौ उभौ न विजानीतः।*
सः कं वेत्ति, स च कं मन्यते यौ उभौ न विजानीतः?
*यः एनं वेत्ति, यः च एनं मन्यते तौ उभौ न विजानीतः।*
सः एनं कीदृशं वेत्ति, स च एनं कीदृशं मन्यते यौ उभौ न विजानीतः?
*यः एनं हन्तारं वेत्ति, यः च एनं हतं मन्यते तौ उभौ न विजानीतः।*
यः एनं हन्तारं वेत्ति, यः च एनं हतं मन्यते तौ उभौ न विजानीतः। कस्मात्?
*यः एनं हन्तारं वेत्ति, यः च एनं हतं मन्यते तौ उभौ न विजानीतः। (यतः) नायं हन्ति न हन्यते।*
*📢 तात्पर्यम्......*
यः जनः 'आत्मा कञ्चित् पुरुषं मारयति' इति जानाति यश्च जनः 'आत्मा केनापि पुरुषेण मार्यते' इति जानाति तौ द्वौ अपि वस्तुतः अज्ञानिनौ। यतः आत्मा कञ्चित् न हन्ति, न वा केनापि हन्यते।
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
य एनम् = यः +एनम् -विसर्गसन्धिः (लोपः)।
यश्च = यः +च = विसर्गसन्धिः (सकारः) श्चुत्वं च।
चैनम् = च + एनम्- वृद्धिसन्धिः।
विजानीतो न = विजानीतः + न - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः।
नायम् = न + अयम् - सवर्णदीर्घसन्धिः।
▶ कृदन्तः
हन्तारम् = हन् + तृच् (कर्तरि), तम्।
हतम् = हन् + क्त (कर्मणि), तम्।
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                              *गीताप्रवेशात्*
[3/2, 08:41] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूल श्लोकः 🔔*
न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोsयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।। २.२०।।
*🏹पदच्छेदः........*
न, जायते, म्रियते, वा, कदाचित्, नायम्, भूत्वा, भविता, वा, न, भूयः।
अजः, नित्यः, शाश्वतः, अयम्, पुराणः, न, हन्यते, हन्यमाने, शरीरे।।
*🌹पदपरिचयः......🌹*
न —अव्ययम्
जायते —जन्-आत्म. कर्तरि लट्.प्रपु.एक.
म्रियते —मृ-आत्म.कर्तरि लट्.प्रपु.एक.
वा—अव्ययम्
कदाचित् —अव्ययम्
अयम्—इदम्-म.सर्व.पुं.प्र.एक.
भूत्वा —क्त्वान्तम् अव्ययम्
भविता —भू-पर. कर्तरि लुट्.प्रपु.एक.
भूयः —अव्ययम्
अजः —अ. पुं. प्र. एक.
नित्यः —अ. पुं. प्र. एक.
शाश्वतः —अ. पुं. प्र. एक.
पुराणः —अ. पुं. प्र. एक.
हन्यते —हन्-कर्मणि लट्.प्रपु.एक.
हन्यमाने —अ. नपुं. स. एक.
शरीरे —अ. नपुं. स. एक.
*🌷पदार्थः...... 🌷*
अयम् —एषः आत्मा
कदाचित् —कदापि
न जायते —न उत्पद्यते
न वा म्रियते —मृतो वा न भवति
अयम् —एषः आत्मा
भूत्वा भूयः न भविता वा —उत्पद्य पुनः न उत्पत्स्यते
अयम् —एषः आत्मा
अजः — जनरहितः
नित्यः —निर्विकारः
शाश्वतः — क्षयरहितः
पुराणः —पुरातनः
शरीरे हन्यमाने —शरीरे नाशितेsपि
न हन्यते —न नश्यति।
*🌻अन्वयः 🌻*
अयं कदाचित् न जायते न वा म्रियते। अयं भूत्वा भूयः भविता वा न। अयम् अजः नित्यः शाश्वतः पुराणः शरीरे हन्यमाने अपि न च हन्यते।
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_अयम्।_
अयं कीदृशः?
*अयं न जायते।*
अयं न जायते, पुनश्च कीदृशः?
*अयं न जायते, न वा म्रियते।*
अयं न जायते, न वा म्रियते, पुनश्च कीदृशः?
*अयं न जायते, न वा म्रियते, अयं न वा भूयः भविता।*
अयं न जायते, न वा म्रियते, अयं किं कृत्वा न वा भूयः भविता?
*अयं न जायते, न वा म्रियते, अयं भूत्वा न वा भूयः भविता।*
अयं कदा न जायते, न वा म्रियते, अयं भूत्वा न वा भूयः भविता?
*अयं कदाचित् न जायते, न वा म्रियते, अयं भूत्वा न वा भूयः भविता।*
_अयम्।_
अयं कीदृशः?
*अयं अजः।*
अयम् अजः, पुनश्च कीदृशः?
*अयम् अजः, नित्यश्च।*
अयम् अजः, नित्यः, पुनश्च कीदृशः?
*अयम् अजः, नित्यः, शाश्वतश्च।*
अयम् अजः, नित्यः, शाश्वतः, पुनश्च कीदृशः?
*अयम् अजः, नित्यः, शाश्वतः, पुराणश्च।*
अयम् अजः, नित्यः, शाश्वतः, पुराणः, पुनश्च कीदृशः?
*अयम् अजः, नित्यः, शाश्वतः, पुराणः, न च हन्यते।*
अयम् अजः, नित्यः, शाश्वतः, पुराणः, कदा न हन्यते?
*अयम् अजः, नित्यः,शाश्वतः, पुराणः, शरीरे हन्यमानेsपि न च हन्यते।*
*📢 तात्पर्यम्......*
अयम् आत्मा कदापि न जायते न म्रियते वा, उत्पद्य पुनरपि उत्पत्स्यते इत्यपि वक्तुं न शक्यते, यतः अयम् आत्मा जन्मरहितः, सनातनः, पुरातनश्च। शरीरे नष्टेsपि सः न नश्यति।
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
कदाचिन्न = कदाचित् + न - परसवर्णसन्धिः।
अजो नित्यः = अजः + नित्यः - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः।
शाश्वतोsयम् = शाश्वतः + अयम् - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः,  उकारः, गुणः, पूर्वरूपं च।
पुराणो न = पुराणः + न - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः, गुणः।
▶ समासः
अजः = न जायते इति अजः। कर्तरि डप्रत्ययः उपपदसमासश्च।
▶ कृदन्तः
भूत्वा = भू + क्त्वा।
हन्यमाने = हन् + शानच् (कर्मणि)।
▶ तद्धितान्तः
शाश्वतः = शश्वत् + अण् (भवार्थे)। सदा भवः इत्यर्थः।
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                              *गीताप्रवेशात्*
[3/2, 08:53] ‪+91 99773 99419‬: *🔔मूल श्लोकः 🔔*
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः।
अनाशिनोsप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत।।२.१८।।
*🏹पदच्छेदः........*
अन्तवन्तः, इमे, देहाः, नित्यस्य, उक्ताः, शरीरिणः।
अनाशिनः, अप्रमेयस्य, तस्मात्, युध्यस्व, भारत।।
*🌹पदपरिचयः......🌹*
अन्तवन्तः —अन्तवन्त् -त. पुं. प्र. बहु.
इमे —इदम्-म. सर्व. प्र. बहु.
देहाः —अ. पुं. प्र. बहु.
नित्यस्य —अ. पुं. ष. एक.
उक्ताः —अ. पुं. प्र. बहु.
शरीरिणः —शरीरिन् -न. पुं. ष. एक.
अनाशिनः —अनाशिन् -न. पुं. ष. एक.
अप्रमेयस्य —अ. पुं. ष. एक.
तस्मात् —तद् -द. सर्व. पुं. पं. एक.
युध्यस्व —युध् -आत्म. कर्तरि लोट्.मपु.एक.
भारत —अ. पुं. सम्बो. एक.
*🌷पदार्थः...... 🌷*
अनाशिनः —नाशरहितस्य
अप्रमेयस्य —ज्ञातुम् अशक्यस्य
नित्यस्य —शाश्वतस्य
शरीरिणः —आत्मनः
इमे देहाः —एतानि शरीराणि
अन्तवन्तः उक्ताः —नाशसहितानि इति उक्तानि
भारत —हे भारतकुलोत्पन्न!
तस्मात् —तस्मात् कारणात्
युध्यस्व —युद्धं कुरु।
*🌻अन्वयः 🌻*
अनाशिनः अप्रमेयस्य नित्यस्य च शरीरिणः इमे देहाः अन्तवन्तः उक्ताः। भारत! तस्मात् युध्यस्व।
*🐚आकाङ्क्षाः🐚*
_युध्यस्व।_
कस्मात् युध्यस्व?
*उक्ताः, तस्मात् युध्यस्व।*
के उक्ताः, तस्मात् युध्यस्व?
*देहाः उक्ताः,तस्मात् युध्यस्व।*
के देहाः उक्ताः, तस्मात् युध्यस्व?
*इमे देहाः उक्ताः, तस्मात् युध्यस्व।*
इमे देहाः कीदृशाः उक्ताः, तस्मात् युध्यस्व?
*इमे देहाः अन्तवन्तः उक्ताः, तस्मात् युध्यस्व।*
कस्य इमे देहाः अन्तवन्तः उक्ताः, तस्मात् युध्यस्व?
*शरीरिणः इमे देहाः अन्तवन्तः उक्ताः, तस्मात् युध्यस्व।*
कीदृशस्य शरीरिणः इमे देहाः अन्तवन्तः उक्ताः, तस्मात् युध्यस्व?
*नित्यस्य शरीरिणः इमे देहाः अन्तवन्तः उक्ताः, तस्मात् युध्यस्व।*
नित्यस्य पुनश्च कीदृशस्य शरीरिणः इमे देहाः अन्तवन्तः उक्ताः, तस्मात् युध्यस्व?
*नित्यस्य अनाशिनः शरीरिणः इमे देहाः अन्तवन्तः उक्ताः, तस्मात् युध्यस्व।*
नित्यस्य अनाशिनः पुनश्च कीदृशस्य शरीरिणः इमे देहाः अन्तवन्तः उक्ताः, तस्मात् युध्यस्व?
*नित्यस्य अनाशिनः अप्रमेयस्य शरीरिणः इमे देहाः अन्तवन्तः उक्ताः, तस्मात् युध्यस्व।*
🍁अत्र श्लोके सम्बोधनपदं किम्? *-भारत।*
*📢 तात्पर्यम्......*
अयं च आत्मा अविनाशि, प्रत्यक्षादिप्रमाणैः ज्ञातुम् अशक्यः, शाश्वतस्य। तस्य एतानि शरीराणि तु नाशसहितानि इति उक्तानि सन्ति। यस्मात् अयम् आत्मा नित्यः,शरीरं च विनाशि तस्मात् त्वं युद्धं कुरु।
*🌻व्याकरणम्.......*
▶सन्धिः
अन्तवन्त इमे =अन्तवन्तः + इमे - विसर्गसन्धिः (लोपः)।
देहा नित्यस्य = देहाः + नित्यस्य - विसर्गसन्धिः (लोपः)।
नित्यस्योक्ताः = नित्यस्य + उक्ताः - गुणसन्धिः।
अनाशिनोsप्रमेयस्य= अनाशिनः + अप्रमेयस्य - विसर्गसन्धिः (सकारः) रेफः, उकारः गुणः पूर्वरूपं च।
तस्माद्युध्यस्व = तस्मात् + युध्यस्व - जश्त्वसन्धिः।
▶ समासः
अनाशिनः = न नाशी अनाशी, तस्य - नञ् तत्पुरुषः।
अप्रमेयस्य = न प्रमेयः अप्रमेयः, तस्य - नञ् तत्पुरुषः।
▶ कृदन्तः
उक्तः = वच् + क्त (कर्मणि)।
▶ तद्धितान्तः
अन्तवन्तः = अन्तः + मतुप्। अन्तः एषाम् एषु वा अस्ति।
शरीरिणः = शरीर + इनि (मतुबर्थे)। शरीरम् एषाम् एषु वा अस्ति।
नाशी =नाश + इनि (मतुबर्थे)। नाशः अस्य अस्मिन् वा अस्ति।
🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹🌷💐🌻🌹
                              *गीताप्रवेशात्*
[3/2, 09:18] ओमीश Omish Ji: 🌹सदुक्ति संचयः🌹
सत्यमेव जयति नानृतम्!!
                    मुण्डक उपनिषद्

सत्य की ही विजय होती है, असत्य की नहीं।

🌺प्रवक्ता, धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ🌺
              आचार्य ओमीश ✍
[3/2, 09:57] बाबा जी: ☘🌻सुप्रभातम्🌻🍀🌿🌿🌹 *एक प्यार भरा सँदेश* 🌹
"विश्वास किसी पर इतना करो कि वो तुम्हे छलते समय खुद को दोषी समझे
.                  और
प्रेम किसी से इतना करो कि उसके मन में सदैव तुम्हें खोने का डर बना रहे...!!!   
🌺श्रीसीताराम🌺
[3/2, 09:58] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: नेक आचरण --------(१) जो उपदेश से या पढ़ने से प्राप्त ज्ञान को आचरण में उतरने का प्रयत्न नहीं करता है ! उसका ज्ञान व्यर्थ हो जाता हैं !वह सिर्फ ज्ञान के भार को ढोने वाला ही होता है !जो व्यक्ति किसी बात को सुनता और समझाता नहीं है ! उस से कही हुई बात भी नष्ट हो जाती है !जिस व्यक्ति की इन्द्रियां विषय भोगों में अत्यंत आसक्त हैं ! उसका शास्त्र ज्ञान भी व्यर्थ हो जाता है !
(२)बुद्धिमान व्यक्ति अपनी बुद्धि से भली प्रकार जाँच कर ! और  अपने स्वयं के अनुभव से  ज्ञान  का उपदेश करने वाले विद्वान की योग्यता का निश्चय करे फिर दूसरों से सुनकर और स्वयं देखकर भलीभांत विचार करके विद्वानो के साथ मित्रता या सम्बन्ध स्थापित करे ! 
(३)विनय अपयश को दूर करती है ! पराक्रम अनर्थ को दूर करता है ! छमा सदा ही क्रोध का नाश करती है ! और सदाचार कुलक्छण का नाश करता है !
(४)जन्म किसी भी जाति या कुल में हुआ हो ---- जो मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता है ! सत्कर्म करता है ! ,कोमल, करुणा प्रधान अहिंसक स्वाभाव वाला है ! वह व्यक्ति हजारों  तथाकथित कुलीनों से उत्तम और बढ़कर है !
(५)जिन दो मनुष्यों की बुद्धि ,मन चित्त से बुद्धि ,मन और चित्त आपस में मिलजाते हैं  ! और एकदूसरे में सभी प्रकार की गुप्तता समाप्त हो जाती है ! उनकी मित्रता कभी नष्ट नहीं होती है !
(६)मेधावी विद्वान पुरुष को चाहिए कि तृण से ढके हुए कुंए की भांति दुर्बुद्धि और विचार से हीन, कदाचारी व्यक्ति का परित्याग कर दे ! क्योँकि ऐसे लोगों के साथ मित्रता स्थायी नहीं रहती है ! 
(७)विद्वान पुरुष को उचित है कि वह अभिमानी ,मुर्ख ,क्रोधी और आचरण तथा नीति विहीन पुरुष के साथ मित्रता न करे !मित्र तो ऐसा होना चाहिए ,जो कृतज्ञ ,नैतिक, सदाचारी उदार ,दृढ अनुराग रखने वाला, अपनी इन्द्रियों को बस में रखने वाला, मर्यादा का पालन करने वाला और मित्रता का त्याग ना करने वाला हो !
सुप्रभात।🌹🙏🏻🌹
[3/2, 10:26] राम भवनमणि त्रिपाठी: [02/03, 09:30] Hari Bansh Pandey: भगवद  गीता अध्याय: 4
श्लोक 17
*ॐ श्री परमात्मने नमः*
श्लोक:
*कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः।*
*अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः॥*

भावार्थ:
*कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए और अकर्मण का स्वरूप भी जानना चाहिए तथा विकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए क्योंकि कर्म की गति गहन है*
॥17॥
*तात्पर्य*
कर्मणो हि अपि बोधव्यम--कर्म के रूप को जानना चाहिए,बोधव्यम च विकर्मणः--बिकर्म को भी जानना चाहिए, अकर्मणश्च बोधव्यम--अकर्म को जानना चाहिए,गहना कर्मणो गतिः--क्योंकि कर्म की गति गहन है।
#कर्म क्या हो,इसके लिए,जो शास्त्र सम्मत,शास्त्र बिहित कर्म है,उसे कर्म की श्रेणी में रखते हैं।
   शास्त्र बिहित कर्मो को न करना ही "अकर्म"है।
    शास्त्र के विपरीत निषिद्ध आचरण ही "बिकर्म" है।
   कर्म का तत्व गहन अर्थात दुर्गम है।
कर्म से (शास्त्र बिहित)से मोक्ष मिलता है।बिकर्म से जीवो की दुर्गति होती है।
   विचार करे तो अकर्म को तीन श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं, पहला वे जो"अज्ञानी" हैं आलश्य से वेद बिहित कर्म नही करते।दूसरे वे ज्ञानी लोग जो कर्मफल को नश्वर एवम दुखदाई जानकार निर्वेद प्राप्त करते हैं,मोक्ष का प्रयास करते हैं।तीसरे वे हो सकते हैं सत्संग के कारण बिहित कर्म छोड़ कर भक्ति को अपनाते है।
   मेरी समझ से भक्ति का अनुशीलन कर जो विकर्म  छोड़ कर शास्त्र सम्मत कार्य और वो भी "सब कार्य परमात्मा का है"सोच कर करते हैं,फल में नही उलझते,वे उत्तम हैं।
   #कर्म की गति को गहन क्यों कहा?यह इसलिए कि फर्क बड़ा महीन है। कर्म को दुःख पूर्ण सोच बिहित कर्म भी नही करते,इससे तो शरीर निर्बाह भी नही होगा।कर्मबन्धन से भी नही बचेंगे,क्योंकि मानसिक रूप से कर्म होता रहेगा।
  विकर्म को न जानने से शास्त्र विपरीत कर्म हो जाय,तो दुःखो की प्राप्ति होगी।
  उत्तम कर्मयोग ही है। करणीय है।
[3/2, 10:37] ‪+91 99773 99419‬: उद्गीथः, पुं, (उत् + गै + थक् ।) सामवेदभेदः । प्रणवः । इत्यमरटीकायां भरतः ॥ (“अस्मिन्नगस्त्यप्रमुखाः प्रदेशे भूयांस उद्गीथविदो वसन्ति” ॥ इति उत्तररामचरिते । २ याङ्के” ।) सामवेदध्वनिः । इत्यरुणः ॥ सामगानम् । इति सारसुन्दरी ॥ साम्नां द्वितीयोऽध्यायः । इति भगी- रथः ॥ (भवपुत्त्रः । इति विष्णुपुराणम् ॥)
[3/2, 10:58] ‪+91 88274 29111‬: *श्याम तुम्हारे भजन भाव से मन पावन हो जाता है*

*तेरा सुमिरन तेरा चिन्तन हर उलझन सुलझाता है*

   *🙏🏻🙏🏻जय श्री श्याम जी 🙏🏻🙏🏻*
[3/2, 11:04] ‪+91 99267 22827‬: स्वयमेव श्रुतिरोङ्कारस्योद्गीथशब्दवाच्यत्वे हेतुमाह- ओमिति ह्युद्गायति ! ओमित्यारभ्य हि यस्मादुद्गायत्यत उद्गीथ ओङ्कार इत्यर्थ: !!
[3/2, 11:19] ‪+91 99673 46057‬: राधे राधे॥ आज का भगवद चिन्तन ॥
               02-03-2017
🌼     मन को जीत पाना थोडा कठिन तो है पर मुश्किल नही। बिना मन को जीते जीवन में शांति सम्भव नहीं है। अशांति का कारण हमारी असीमित इच्छाएं ही हैं और इसके मूल में हमारा मन ही हैं। दूसरा व्यक्ति हमें 5 प्रतिशत ही कष्ट दे सकता है, 95 प्रतिशत हम खुद के द्वारा दुःख प्राप्त करते हैं।
🌺      जिसने मन को साध लिया उसे किसी और को साधने की जरुरत नहीं है। जिसने स्वयं को जान लिया उसे किसी और को जानने की इच्छा नहीं रहती, जिसने मन को जीत लिया उसे किसी और को जीतने की जरुरत नहीं है ।
🌸    आज छोटी-छोटी बातों पर घर में अशांति व क्लेश हो रहे हैं। उसका समाधान आपके स्वयं के सिवा कोई नहीं जानता। अपने मन को थोडा बड़ा और मजबूत बनाओ। जिस दिन विवक के द्वारा आपने मन को साध लिया उस दिन समझ आ जायेगा कि हार-जीत कुछ नहीं होती।

  !! मन के हारे हार है और मन के जीते जीत ॥
[3/2, 11:54] ‪+91 94301 19031‬: 🙏ॐ नमः शिवाय 🙏    बहुत से लोग कहते है कि शिव जी ने क्रोध में अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को जला दिए । पर मेरा मानना है कि ये गलत है। शिवजी के मस्तक पर माँ गंगा है,चन्द्रमा है। शिव जी को कभी क्रोध आता ही नही। वे क्रोधी नही वरदायी है। और कदाचित शिवजी को क्रोध आ भी जाय तो जगत में कुछ भी बाकी नही रहेगा सबका नाश हो जायेगा। भाई शिवजी को क्रोध कभी आता ही नही । अरे ये तो भगवान शंकर जी का तेज वह सह नही सका, एज सहन नही होने के कारण वह जल गया। इसमें शिव जी का क्या दोष । ये तो सरासर कामदेव की गलती है साहब । जब तेज सहन नही कर सकता था तो उनके पास गया ही क्यों था ? भाई अगर आज की बात होती तो मैं तो अदालत में केस कर देता । भाई मेरे शिव पर कोई झूठा आरोप लगायेगा तो मैं तो बर्दास्त नही कर सकता। आप सब क्या कहना चाहते है?
[3/2, 11:57] राम भवनमणि त्रिपाठी: प्रथम सकल सुचि मज्जन अमल बास,
जावक सुदेस केस-पास को सम्हारिबौ।
अंगराज भूषन बिबिध मुखबास-राग,
कज्जल कलित लोल लोचन निहारिबौ॥
बोलनि हँसनि मृदु चाकरी, चितौनि चार,
पल प्रति पर प्रतिबत परिपालिबौ।
'केसोदास' सबिलास करहु कुँवरि राधे,
इहि बिधि सोरहै सिंगारनि सिंगारिबौ॥
[3/2, 13:41] बाबा जी: सौरभ पल्लव मदनु.बिलोका ।
भयउ कोपु कंपेउ त्रैलोका ॥
तब सिवँ तीसर नयन
उघारा ।
चितवत कामु भयउ जरि छारा ॥
🙏🙏🙏🙏🙏
[3/2, 14:17] ‪+91 99267 22827‬: कामस्तु वासुदेवांशो दग्ध: प्राग्रुद्र मन्युना...-श्रीमद्भागवत
रुद्र मन्युना....
अर्थात् रुद्रस्य=शिवस्य
मन्यु:=क्रोध:
रुद्र मन्यु:,
तेन =रुद्र मन्युना
काम:=काम
दग्ध:=भस्मीभूत:

अर्थात् शिव के क्रोध से कामदेव जल गया था !
[3/2, 16:39] P anuragi. ji: जय सीताराम

     मुनि रघुबीर परस्पर नवहीं ।
       बचन अगोचर सुखु अनुभवही ।।

जी प्रभु जी समयाभाव बस वार्ता पूर्ण ना कर सका था । भक्त और भक्ति दोनों स्वतन्त्र हैं परमात्मा को किसी भी रूप में मानें । भक्त के भगवान्  निराकार या साकार नहीं वो तदाकार होते हैं जैसा चाहिए वो वैसा बनकर आते हैं ।
   यथा
      सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुर भूपा ।
        
         धर्मार्थ  को सुपुष्पित सुपल्लवित निहारकर आज वैसी ही प्रसन्नता हो रही है जैसे किसी कृषक को उसकी  लहलहाती कृषि देखकर होती है । आप सब सकुशल सानंद रहें  ।  यही मनकामना । शमिति ।
[3/2, 20:05] ‪+91 98896 25094‬: वह गाड़ी से उतरा और बड़ी तेज़ी से एयरपोर्ट मे घुसा , जहाज़ उड़ने के लिए तैयार था , उसे किसी कांफ्रेंस मे पहुंचना था जो खास उसी के लिए आयोजित की जा रही थी.....वह अपनी सीट पर बैठा और जहाज़ उड़ गया...अभी कुछ दूर ही जहाज़ उड़ा था कि....कैप्टन ने ऐलान किया  , तूफानी बारिश और बिजली की वजह से जहाज़ का रेडियो सिस्टम ठीक से काम नही कर रहा....इसलिए हम क़रीबी एयरपोर्ट पर उतरने के लिए मजबूर हैं.।
जहाज़ उतरा वह बाहर निकल कर कैप्टन से शिकायत करने लगा कि.....उसका एक-एक मिनट क़ीमती है और होने वाली कांफ्रेस मे उसका पहुचना बहुत ज़रूरी है....पास खड़े दूसरे मुसाफिर ने उसे पहचान लिया....और बोला डॉक्टर त्रेहन साहब आप जहां पहुंचना चाहते हैं.....टैक्सी द्वारा यहां से तीन घंटे मे पहुंच सकते हैं.....उसने शुक्रिया अदा किया और टैक्सी लेकर निकल पड़ा...

लेकिन ये क्या आंधी , तूफान , बिजली , बारिश ने चलना मुश्किल कर दिया , फिर भी वह चलता रहा...अचानक ड्राइवर को एह़सास हुआ कि वह रास्ता भटक चुका है...
नाउम्मीदी के उतार चढ़ाव के बीच उसे एक छोटा सा घर दिखा....इस तूफान मे वही ग़नीमत समझ कर गाड़ी से नीचे उतरा और दरवाज़ा खटखटाया....
आवाज़ आई....जो कोई भी है अंदर आ जाए..दरवाज़ा खुला है...

अंदर एक बुढ़िया आसन बिछाए भगवद् गीता पढ़ रही थी...उसने कहा ! मां जी अगर इजाज़त हो तो आपका फोन इस्तेमाल कर लूं...
बुढ़िया मुस्कुराई और बोली.....बेटा कौन सा फोन ?? यहां ना बिजली है ना फोन..
लेकिन तुम बैठो..सामने चरणामृत है , पी लो....थकान दूर हो जायेगी..और खाने के लिए भी कुछ ना कुछ मिल जायेगा.....खा लो ! ताकि आगे सफर के लिए कुछ शक्ति आ जाये...

डाक्टर ने शुक्रिया अदा किया और चरणामृत पीने लगा....बुढ़िया अपने पाठ मे खोई थी कि उसकेे पास उसकी नज़र पड़ी....एक बच्चा कंबल मे लपेटा पड़ा था जिसे बुढ़िया थोड़ी थोड़ी देर मे हिला देती थी...
बुढ़िया फारिग़ हुई तो उसने कहा....मां जी ! आपके स्वभावऔर एह़सान ने मुझ पर जादू कर दिया है....आप मेरे लिए भी दुआ कर दीजिए....मुझे उम्मीद है आपकी दुआऐं ज़रूर क़बूल होती होंगी...
बुढ़िया बोली....नही बेटा ऐसी कोई बात नही...तुम मेरे अतिथी हो और अतिथी की सेवा ईश्वर का आदेश है....मैने तुम्हारे लिए भी दुआ की है.... परमात्मा का शुक्र है....उसने मेरी हर दुआ सुनी है..
बस एक दुआ और मै उससे माँग रही हूँ शायद  जब वह चाहेगा उसे भी क़बूल कर लेगा...

कौन सी दुआ..?? डाक्टर बोला...

बुढ़िया बोली...ये जो बच्चा तुम्हारे सामने अधमरा पड़ा है , मेरा पोता है , ना इसकी मां ज़िंदा है ना ही बाप , इस बुढ़ापे मे इसकी ज़िम्मेदारी मुझ पर है , डाक्टर कहते हैं...इसे खतरनाक रोग है जिसका वो इलाज नही कर सकते , कहते हैं एक ही नामवर डाक्टर है , क्या नाम बताया था उसका ! हां "त्रेहन" ....वह इसका ऑप्रेशन कर सकता है , लेकिन मैं बुढ़िया कहां उस तक पहुंच सकती हूं ? लेकर जाऊं भी तो पता नही वह देखने पर राज़ी भी हो या नही ? बस अब बंसीवाले से ये ही माँग रही थी कि वह मेरी मुश्किल आसान कर दे..!!

डाक्टर की आंखों से आंसुओं का सैलाब बह रहा है....वह भर्राई हुई आवाज़ मे बोला !
माई...आपकी दुआ ने हवाई जहाज़ को नीचे उतार लिया , आसमान पर बिजलियां कौदवां दीं , मुझे रस्ता भुलवा दिया , ताकि मैं यहां तक खींचा चला आऊं ,हे भगवान! मुझे यकीन ही नही हो रहा....कि कन्हैया एक दुआ क़बूल करके अपने भक्तौं के लिए इस तरह भी मदद कर सकता है.....!!!!
●●●●
वह सर्वशक्तीमान है....परमात्मा के बंदो उससे लौ लगाकर तो देखो...जहां जाकर इंसान बेबस हो जाता है , वहां से उसकी परमकृपा शुरू होती है...। हरे कृष्ण..हरीबोल.
[3/2, 21:40] ‪+91 91656 66823‬: धातुओं
से बना है। जिनका अर्थ हैं- विद सत्तायाम् - (सत्तार्थ)
होना; विद विचारे - विचार करना; विद ज्ञाने - ज्ञान करना,
जानना; विद चेतनाख्याननिवासेषु - प्रेरणा देना, खोलकर
बताना तथा जीवन का आधार होना; विद्लृ लाभे - प्राप्त
करना इत्यादि। इन सब का संयोग से पदार्थ बनेगा - परमाणु से
लेकर परमात्मा तक सब सत्ताओं का विचारपूर्वक

ज्ञानविज्ञान जहां हो, उक्त ज्ञानविज्ञान के आधार पर
मानविक कर्मों के विषय में विधि-निषेधरूप प्रेरणा देना और
सत्य का मण्डन तथा असत्य का खण्डन खोलकर कहना,
नित्यजीवन का आधार होना आदि जिसका कर्तव्य हो,
आत्मा आदि अत्यन्त रहस्यमय पदार्थों तक
की प्राप्ति जिसके बिना सम्भव नहीं हो वह वेद ह
अर्थात् जिस से हमें ज्ञान का लाभ,
ईश्वर आदि अनन्यप्रमाणसिद्ध पदार्थों की सत्ता का बोध
(ज्ञान), विचार आदि उत्तम कर्मों की विधि, विद्या, सुख
आदि उत्तम पदार्थों की प्राप्ति होती हो वही Ved Hai
वेद सनातन धर्म के प्राचीन पवित्र
ग्रंथों का नाम है । केवल इन ग्रन्थों में ही वेद शब्दार्थ लागू
होता है, जिन में ज्ञान, कर्म, उपासना के समग्रविवरण
उपलब्ध है। ज्ञानादि तीनों का सामूहिक नाम है त्रयीविद्या,
इसलिये वेदों का 'त्रयी' भी नाम होता है। वेदों को श्रुति
भी कहा जाता है, क्योंकि पहले मुद्रण
की व्यवस्था बिना इनको एक दूसरे से सुन- सुनकर याद
रखा गया इस प्रकार वेद प्राचीन भारत के वैदिक काल की
वाचिक परम्परा की अनुपम कृति है जो वंशानुगत रूप से
हज़ारों वर्षों से चली आ रही है । नित्यवस्तुवों का अस्तित्व
नित्य होने से उनका ज्ञान भी नित्य होना अनिवार्य है। ईश्वर
के अलावा दूसरी कोई वस्तु नहीं है जो कि नित्यज्ञान
का आधार हो। इसलिये भारतीय विचारधारा मैं वेद अपौरुषेय और
ईश्वररचित माने जाते हैं। वेद ही सनातन धर्म के सर्वोच्च और
सर्वोपरि धर्मग्रन्थ हैं।
वेदों का निरूपम महत्व
भारतीय संस्कृति में ��
[3/2, 21:47] ‪+91 91656 66823‬: ऋग्वेद - सबसे प्राचीन वेद - ज्ञान हेतु लगभग १० हजार मंत्र। इसमें देवताओं के गुणों का वर्णन और प्रकाश के लिए मन्त्र हैं - सभी कविता-छन्द रूप में।
सामवेद - उपासना में गाने के लिये संगीतमय मन्त्र हैं - १९७५ मंत्र।
यजुर्वेद - इसमें कार्य (क्रिया), यज्ञ (समर्पण) की प्रक्रिया के लिये गद्यात्मक मन्त्र हैं- ३७५० मंत्र।
अथर्ववेद-इसमें गुण, धर्म,आरोग्य,यज्ञ के लिये कवितामयी मन्त्र हैं - ७२६० मंत्र। इसमे जादु-टोना की, मारण, मोहन, स्तम्भन आदि से सम्बद्ध मन्त्र भी है जो इससे पूर्व के वेदत्रयी मे नही हैं।
वेदों को अपौरुषेय (जिसे कोई व्यक्ति न कर सकता हो, यानि ईश्वर कृत) माना जाता है।
[3/2, 21:49] ‪+91 91656 66823‬: यह ज्ञान विराटपुरुषसे वा कारणब्रह्म से श्रुतिपरम्परा के माध्यमसे सृष्टिकर्ता ब्रह्माजीने प्राप्त कीया माना जाता है। इन्हें श्रुति भी कहते हैं जिसका अर्थ है 'सुना हुआ ज्ञान'। अन्य हिन्दू ग्रंथों को स्मृति कहते हैं यानि वेदज्ञ मनुष्यों की वेदानुगतबुद्धि या स्मृति पर आधारित ग्रन्थ। वेदके समग्रभागको मन्त्रसंहिता,ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद के रुपमें भी जाना जाता है।इनमे प्रयुक्त भाषा वैदिकसंस्कृत कहलाती है जो लौकिक संस्कृत से कुछ अलग है। ऐतिहासिक रूप से प्राचीन भारत और हिन्द-आर्य जाति के बारे में वेदों को एक अच्छा सन्दर्भश्रोत माना जाता है। संस्कृत भाषा के प्राचीन रूप को लेकर भी इनका साहित्यिक महत्व बना हुआ है।
[3/2, 21:50] ‪+91 91656 66823‬: छः उपांगों की व्यवस्था थी। शिक्षा,कल्प,निरुक्त,व्याकरण,छन्द और ज्योतिषके अध्ययनके बाद ही प्राचीन कालमे वेदाध्ययन पूर्ण माना जाताथा | प्राचीन कालके ब्रह्मा,वशिष्ठ ,शक्ति,पराशर, वेदव्यास ,जैमिनी याज्ञवल्क्यकात्यायन इत्यादि ऋषियोंको वेदोंका अच्छाज्ञाता माना जाता है। मध्यकाल में रचित व्याख्याओं में सायणका रचा चतुर्वेदभाष्य जो "माधवीय वेदार्थदीपिका" बहुत मान्य है। यूरोप के विद्वानों का वेदों के बारे में मत हिन्द-आर्य जाति के इतिहास की जिज्ञासा से प्रेरित रही है। अठारहवीं सदी उपरांत यूरोपियनों के वेदों और उपनिषदों में रूचि आने के बाद भी इनके अर्थों पर विद्वानों में असहमति बनी रही है।
[3/2, 22:26] ‪+91 91656 66823‬: पूज्य सद्गुरुदेव ललिताम्बा पीठाधीश्वर
आचार्य श्री जयराम जी महाराज के पावन सानिध्य मे

*होली मंगल मिलन महोत्सव*

दिनांक: *4 मार्च 2017*
समय: 4 से 5 बजे तक कीर्तन
        5 बजे से भण्डारा प्रसाद

स्थल: *श्री ललिताम्बा तपोभूमि आश्रम, कंझावला रोड, सुखवीर नगर, दिल्ली-110081*

होली मंगल मिलन महोत्सव मे आप सादर आमंत्रित हैं।

निवेदक: आचार्य उमेश पाठक
9810861035
[3/2, 23:23] ओमीश Omish Ji: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

हृदयाद्यदि निर्यासि पौरुषं
गणयामि ते
-------------------------------------------------

हस्तमुत्क्षिप्य यातोऽसि
बलात्कृष्ण किमद्भुतम्।
हृदयाद्यदि निर्यासि पौरुषं
गणयामि ते।।

             –बिल्वमंगल

"कोई बात नहीं! हाथ छूटनेसे क्या हुआ, यदि आप हृदयसे जाएँ तो मैं आपको वीर समझूँ और वीर कहूँ।"

एक बार बिल्वमङ्गल जी श्रीवृन्दावन की ओर चल जा रहे थे। रास्ते में वे एक कुएँ में गिर पड़े। भगवान्‌ ने उन्हें निकाला। भगवान् उनका हाथ पकड़कर उन्हें रमणरेती पर्यन्त ले गए। और जब भगवान् जाने लगे, तब बिल्वमङ्गल जी ने भगवान्‌ का हाथ पकड़ लिया। भगवान्‌ ने हाथ झटक दिया। तब बिल्वमङ्गल जी ने कहा, कोई बात नहीं –

"हस्तमुत्क्षिप्य यातोऽसि
बलात्कृष्ण किमद्भुतम्।
हृदयाद्यदि निर्यासि पौरुषं
गणयामि ते।।"

'बाँह छुड़ाये जात हो निर्बल जान के मोहि।
हिरदय से जब जाओगे बीर बदौंगो तोहि॥"

बरबस भी जिसके मंगलमय नाम से, बड़ी से बड़ी पापराशि नष्ट हो जाती है, ऐसे परम स्वतन्त्र सर्वशक्ति सम्पन्न भगवान जिसके अन्तकरण में स्नेहार्द्रता रूप प्रणय-पाश में बँधकर निकल न सकें, वही प्रधान भागवत होते हैं। तभी तो किसी प्रेमी ने, राग से पिघले हुए अपने अन्तःकरण में उसी द्रवावस्था रूप प्रणयपाश से प्रभु को बाँधकर उनकी सर्वज्ञता, सर्वशक्तिमत्ता, महाशक्ति को भी कुण्ठित करके निःशंक होकर कहा है, अच्छा यदि आप मेरे हृदय से निकल सकें तो मैं आपके पौरुष को देखूँगा।

          –रमेशप्रसाद शुक्ल

          –जय श्रीमन्नारायण।
[3/2, 23:23] ओमीश Omish Ji: निषेवते प्रशस्तानी निन्दितानी न सेवते।
अनास्तिकः श्रद्धान एतत् पण्डितलक्षणम्।।

जो अच्छे कर्म करता है और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो ईश्वर में भरोसा रखता है और श्रद्धालु है, उसके ये सद्गुण पंडित होने के लक्षण हैं।

            –जय श्रीमन्नारायण।
[3/2, 23:23] ओमीश Omish Ji: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

सत्सङ्गत्वे निस्सङ्गत्वं
निस्सङ्गत्वे निर्मोहत्वम् ।
निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं
निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः ।।

सत्संग से वैराग्य, वैराग्य से विवेक, विवेक से स्थिर तत्त्वज्ञान और तत्त्वज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अन्वय: –

सत्सङ्गत्वे निस्सङ्गत्वम् । निस्सङ्गत्वे निर्मोहत्वम् । निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वम् । निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः (भवति) ।

सार: –

ब्रह्मज्ञानिनां संसर्गेण भोगेषु संगराहित्यं भवति । संगाभावसिद्धौ मोहापगम: भवति । मोहापगमे च स्थिरता सिद्ध्यति । स्थैर्यसिद्धौ च जीवन् एव अविद्याबन्धात् मुक्त: भवति ।

              –जय श्रीमन्नारायण।
[3/3, 06:19] राम भवनमणि त्रिपाठी: ♨🌐शिव तत्व समस्त प्राणियों में विश्राम का स्थान है🌐♨
     ★★★★★★★★★★★★★★★★★★
मूलतः शिव और विष्णु एक ही है।
फिर भी सत्व से युक्त होने से विष्णु को सात्विक और तमयुक्त होंने स रूद्र को तामस भी कहा गया है।
सत्त्व नियन्ता विष्णु और तमं नियन्ता रूद्र है।
तमं प्रधान प्रलयावस्था से ही सर्व प्रपंच की सृष्टि होती है।
तम ही मृत्यु है।काल है।उसके नियन्ता मृत्युमजयमहाकालेश्वर भगवान रूद्र है।
      शिव की आत्मा विष्णु और विष्णु की आत्मा शिव है।तम काला होता है और सत्व शुक्ल ,शिव और विष्णु की एक दूसरे की ध्यानावस्था जनित तन्मयता के कारण दोनों के स्वरूप में परिवर्तन हो गया ।
सतो गुणी विष्णु कृष्ण वर्ण हो गए।
तमो गुणी रुद्र शुक्लमय हो गए।
भगवान शिव और माता अन्नपूर्णा अपने आप परम् विरक्त रहकर संसार का सब ऐश्वर्य श्री लक्ष्मी विष्णु को अर्पण कर देते है।लक्ष्मी विष्णु ही संसार के सभी कार्य सँभालने सुधारने के लिए अपने आप अवतीर्ण होते है।
यस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके
भाले बलविधुर्गले च गरलं यस्योरसी व्यालराट।
सो$यं भूतिविभूषण:सुरवर:सर्वाधिपः सर्वदा
शर्व:सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशंकरःपातु माम्।।
   जिनकी गोद में हिमाचल सुता पार्वतीजी ,मस्तकपर गंगाजी ,ललाट पर द्वितीयाका चंद्रमा,कंठ में हालाहल विष और वक्ष:स्थल पर सर्पराज शेषजी सुशोभित है, वे भस्मसे विभूषित देवताओं में श्रेष्ठ सर्वेश्वर संहारकर्ता/(भक्तो के पाप नाशक)सर्वव्यापक ,कल्याण रूप चंद्रमा के समान शुक्लवर्ण /शुभ्र वर्णश्री शंकर जी सदा मेरी रक्षा करें।।शिवसंकल्पमस्तु।।
[3/3, 06:46] अरविन्द गुरू जी: हरि ॐ तत्सत्!  सुप्रभातम्। नमस्सर्वेभ्यः।🙏🌺🙏

भगवदनुग्रहात्सर्वविधिपरमकल्याणं भूयात्सर्वदा।

*संसारकटुवृक्षस्य द्वे फले अमृतोपम।*
*सुभाषितरसास्वादः सङ्गतिः सुजने जने॥*

सुधीजन उपदेशित करते हैं, संसाररूपी कड़ुवे पेड़ से अमृततुल्य दो ही फल समुपलब्ध हो सकते हैं, उनमें से एक है- मधुर भाषा का रसास्वादन और दूसरा है सज्जनों की संगति।
यह संसार दुःख का आलय है, जहाँ पग-पग पर हमें निराशाप्रद स्थितियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे  में यदि दूसरों से कुछ एक मधुर बोल सुनने को मिल जाएँ अथवा सद्व्यवहार के धनी लोगों का सान्निध्य प्राप्त हो जाए तो हृदय को सान्त्वना मिल  जाती है।
प्रिय सज्जनों! मधुर बोल और सद्व्यवहार की कोई कीमत नहीं होती है, परन्तु दिव्यातिदिव्य मधुरातिमधुर बिना किसी मूल्य की यह वह परम अौषधि है, जो सबका दुःख-दर्द दूर करने में परमसहायक है। इसलिए सबकी और अपनी प्रसन्नता के लिये, सदैव मधुर वार्तालाप करना अत्यन्त श्रेयस्कर है।

*तुलसी मीठे बचन तें, सुख उपजत चहुँ अोर।*
*बसीकरण एक मंत्र है, तजि दे बचन कठोर॥*

॥ सत्यसनातनधर्मो विजयतेतराम्॥
[3/3, 06:54] प सुभम्: 💐💐💐💐💐💐💐💐

           *"स्वाद" और "विवाद"*
               *दोनों को छोड़*
                 *देना चाहिए*

             *"स्वाद" छोड़ो तो*
              *शरीर को फायदा,*
             *"विवाद" छोड़ो तो*
             *संबंधों को फायदा।*
                 😉😉😉
               *Very Sweet*
            *Good Morning*
             🙏🙏🙏🙏

💐💐💐💐💐💐💐💐    
🌹🌻🕉जय श्री राधे🕉🌻🌹
[3/3, 08:02] ‪+91 98895 15124‬: .        ।। 🕉 ।।
    🌞 *सुप्रभातम्* 🌞
««« *आज का पंचांग* »»»
कलियुगाब्द.................5118
विक्रम संवत्...............2073
शक संवत्..................1938
मास........................फाल्गुन
पक्ष...........................शुक्ल
तिथी.........................पंचमी
प्रातः 10.43 पर्यंत पश्चात षष्ठी
रवि......................उत्तरायण
सूर्योदय............06.46.44 पर
सूर्यास्त............06.31.37 पर
तिथि स्वामी..................चन्द्र
नित्यदेवी...............नीलपताका
नक्षत्र..........................भरणी
रात्रि 12.03 पर्यंत पश्चात कृत्तिका
योग...............................इंद्र
रात्रि 01.11 पर्यंत पश्चात वैधृति
करण..........................बालव
प्रातः 10.43 पर्यंत पश्चात कौलव
ऋतु...........................बसंत
दिन........................शुक्रवार

🇬🇧 *आंग्ल मतानुसार* :-
03 मार्च सन 2017 ईस्वी ।

☸ शुभ अंक..............3
🔯 शुभ रंग.............नीला

👁‍🗨 *राहुकाल* :-
प्रात: 11.11 से 12.38 तक ।

🚦 *दिशाशूल* :-
पश्चिमदिशा - यदि आवश्यक हो तो जौ का सेवन कर यात्रा प्रारंभ करें।

✡ *चौघडिया* :-
प्रात: 08.17 से 09.44 तक लाभ
प्रात: 09.44 से 11.11 तक अमृत
दोप. 12.38 से 02.05 तक शुभ
सायं 04.59 से 06.27 तक चंचल
रात्रि 09.32 से 11.05 तक लाभ ।

💮 *आज का मंत्र* :-
।।ॐ गोविन्दाय नम: ।।

📢 *संस्कृत सुभाषितानि* --
*अष्टावक्र गीता - तृतीय अध्याय :-*
चेष्टमानं शरीरं स्वं पश्यत्यन्यशरीरवत्।
संस्तवे चापि निन्दायां
कथं क्षुभ्येत् महाशयः॥३- १०॥
अर्थात --
अपने कार्यशील शरीर को दूसरों के शरीरों की तरह देखने वाले महापुरुषों को प्रशंसा या निंदा कैसे विचलित कर सकती है॥१०॥

🍃 *आरोग्यं* :-
स्किन फंगल इंफेक्शन के आसान उपचार :-
▪ इससे बचने के लिए पैरों को खुले वातावरण में रखना चाहिए।
▪ मोजे सूती की और साफ पहननी चाहिए।
▪ इंफेक्शन होने पर बराबर मात्रा में पानी और सिरका मिलाकर पैरों को दस मिनट उसमें रखें फिर पोंछकर, सुखाकर, एंटी फंगल क्रीम लगाएं।
▪ इलाज के लिए नियमित साफ-सफाई प्रभावित हिस्सों को यथासंभव सूखा रखने की कोशिश करनी चाहिए, टैल्कम पाउडर का उपयोग हरगिज नहीं करें।
▪ जिंक ऑक्साइड युक्त क्रीम एवं एंटी फंगल क्रीम को मिलाकर लगा सकते हैं।
▪ त्वचा को नमी और गर्म वातावरण से बचाएं।
▪ कसे हुए नाइलॉन, पॉलिस्टर आदि के बने वस्त्र या अंडरगारमेंट नहीं पहनें।

⚜ आज का राशिफल :-

🐑 *राशि फलादेश मेष* :-
व्यय बढ़ने से कष्ट होगा। मान-प्रतिष्ठा में हानि हो सकती है। वाहन-मशीनरी का प्रयोग सावधानी से करें। शत्रु सक्रिय होंगे। यात्रा सफल रहेगी।
                        
🐂 *राशि फलादेश वृष* :-
दिया हुआ धन वापस आएगा। शत्रु परास्त होंगे। यात्रा से लाभ होगा। नौकरी, इंटरव्यू में सफलता मिलेगी। शत्रु शांत होंगे।
                     
👫 *राशि फलादेश मिथुन* :-
नई योजनाएं फलीभूत होंगी। मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी। व्यापार-निवेश, नौकरी में लाभ होगा। शत्रु शांत रहेंगे। चिंता, भय व कष्ट का माहौल बनेगा।
               
🦀 *राशि फलादेश कर्क* :-
शासकीय कार्य में सहयोग मिलेगा। धार्मिक यात्रा होगी। शत्रु परेशान करेंगे। जोखिम के कार्य में सावधानी रखें। अचानक बड़े खर्च सामने आएंगे।
           
🦁 *राशि फलादेश सिंह* :-
पुराने विवादों का निपटारा होगा। मनमाफिक कार्य होंगे। निवेश-इंटरव्यू में सफलता मिलेगी। पराक्रम से लाभ होगा। शुभ समाचार मिलेंगे।
                 
👸🏻 *राशि फलादेश कन्या* :-
शत्रु शांत रहेंगे। नौकरी-व्यापार ठीक रहेंगे। विरोधी मंसूबे बनाएंगे। यात्रा लाभकारी रहेगी। बकाया वसूली का प्रयास सफल रहेंगे।
                        
⚖ *राशि फलादेश तुला* :-
जोखिमभरे कार्य टालें। व्यापार-व्यवसाय ठीक चलेगा। संतान पक्ष की चिंता होगी। नौकरी-निवेश से लाभ होगा। शत्रु शांत रहेंगे।
                    
🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक* :-
पार्टी-दावत का सुख मिलेगा। विद्यार्थी वर्ग को सफलता मिलेगी। शरीर शिथिल रहेगा। शत्रु शांत रहेंगे। व्यापार-निवेश ठीक चलेगा।
                      
🏹 *राशि फलादेश धनु* :-
शत्रु सक्रिय रहेंगे। प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचेगी। काम न होने से मनोमालिन्य रहेगा। यात्रा में कष्ट संभव है। शरीर कष्ट हो सकता है। नई योजना बनेगी।
                             
🐊 *राशि फलादेश मकर* :-
जोखिमभरे कार्य में सावधानी रखें। प्रतिष्ठा बढ़ेगी। पराक्रम से लाभ होगा। शत्रु षड्यंत्र रचेंगे। शरीर शिथिल रहेगा। कार्यपद्धति में सुधार होगा।
                      
🏺 *राशि फलादेश कुंभ* :-
कुसंगति हानिप्रद होगी। यात्रा में सावधानी रखें। व्यापार-व्यवसाय ठीक चलेगा। शत्रु शांत रहेंगे। लाभ के अवसर बढ़ेंगे। वाणी पर नियंत्रण आवश्यक है।
                  
🐬 *राशि फलादेश मीन* :-
व्यापार-निवेश-नौकरी से लाभ होगा। विद्यार्थी वर्ग को प्रशंसा मिलेगी। यात्रा लाभकारी होगी। पराक्रम वृद्धि होगी। अध्यात्म में रुचि बढ़ेगी।
                    
☯ आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो ।

।।  🐚 *शुभम भवतु* 🐚 ।।

🇮🇳🇮🇳 *भारत माता की जय* 🚩🚩
[3/3, 08:38] प विजय विजयभान: 🙏🌹सुप्रभातम🌹🙏
भवानी त्वं दासे मयि वितर दृष्टिं सकरुणां,
इति स्तोतुं वांछन् कथयति भवानि त्वमिति य:।
तदैव त्वं तस्मै दिशसि निजसायुज्यपदवीं
मुकुन्दब्रह्मेन्द्रस्फुटमुकुटनीराजितपदां ।।
( सौन्दर्य लहरी – 22)
अर्थात् हे भवानी माता! मैं तुम्हारा दास हूँ, मेरी तरफ अपनी करुणा मयी दृष्टि करो, और जब भक्त माता से ऐसी इच्छा करता है कि मेरे अन्दर माता समावेशित हो जाय, तत्क्षण उस भक्त को सायुज्य रूप का वरदान दे देती हो, ब्रह्मा, इन्द्र, विष्णु आदि देवों के मुकुट तुम्हारे चरणकमल पर नत रहते है।
[3/3, 08:46] P Alok Ji: राम भगत हित नर तनुधारी।
सहिसंकट किये साधु सुखारी।।
नामु सप्रेम जपत अनयासा।भगत होहि मुद मंगल बासा ।।श्रीरामचन्द्रजी भक्तो के हित के लिये मनुष्य शरीर धारण करके संवयं कष्ट सहकर साधुओं को सुख दिया परन्तु भक्त गण प्रेम के साथ नाम का जप करते हुये सहज मे हि आनन्द और कल्याण के घर हो जाते हैं । पिबत रामचरित मानस रसम् ,,,श्रद्धेय आलोकजी शास्त्री इन्दौर
[3/3, 08:58] बाबा जी: 🐾🐾सुप्रभातम्🐾🐾
सकलभुवनमध्ये निर्धनास्तेऽपि धन्या
निवसति हृदि येषां श्रीहरेर्भक्तिरेका।
हरिरपि निजलोकं सर्वथातो विहाय
प्रविशति हृदि तेषां भक्तिसूत्रोपनद्धः।।

अर्थात्- संसार में वे निर्धन भी धन्य है, जिनके हृदय में एकमात्र भगवान श्रीहरि की भक्ति निवास करती है। क्योंकि श्रीहरि भी सर्वथा निजलोक का त्याग कर उन धन्यभाग के हृदय प्रदेश में भक्ति सूत्र उपनद्ध-आबद्ध प्रवेश कर विराजते है।
        लोक दृष्टि में व्यक्ति भले ही निर्धन हो, पर उसके हृदय मे अगर भगवान की भक्ति विराजमान है तो वह महान भाग्यशाली हैं। उसके भाग्य की प्रशंसा कैसे की जा सकती है। भगवान भी अपने लोक को छोडकर उस भक्त के हृदय में आकर भक्ति सूत्र मे बंधकर रह जाते हैं।
   🌺🙏🙏🙏🌺
[3/3, 09:01] ‪+91 98896 25094‬: !! सावरे तेरी मेरी प्रीत पुरानी ,
               शक की ना गुंजाइश है !!
!! रखना हमेशा चरणों में ही ,
             छोटी सी ये फरमाइश है !!
                

आप सभी भुदेवों को सादर प्रणाम🙏🙏🙏🙏
[3/3, 09:16] ओमीश Omish Ji: 🙏श्री मात्रे नमः🙏
   🌷सदुक्ति संचयः🌷
स्वाध्याय प्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम्!!

          स्वाध्याय और प्रवचन में प्रमाद नहीं करना चाहिए।

🌺प्रवक्ता, धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ🌺
              आचार्य ओमीश ✍
[3/3, 09:27] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *जय श्री राधे कृष्ण*
*सुप्रभात*🌷🙏🏻🌷
क्या भगवान से बड़ा है कर्म?
इस विषय पर आप सभी विद्वत गुरूजन प्रकाश डालने की महती कृपा करें।
मेरे विचार से यदि कोई भी व्यक्ति ये दावा करे कि हम लोगो की मनोकामना पूरी कर देते हैं, आप समझना वह आदमी धूर्त है। क्यों? क्योंकि साधारण मनुष्य के हाथ में इतनी ताकत नहीं कि आदमी के कर्म और आदमी के प्रारब्ध को पूरी तरह से बदल सके। ये काम भगवान कर सकते हैं? लेकिन यहां विचारणीय यह है कि स्वयं भगवान भी यह कठिन कार्य करने मे सायद असमर्थ है। क्योंकि भगवान ने कर्म की व्यवस्था ऐसी बना दी कि वह अपने स्वयं पिता माता की मुसीबत को दूर न कर सके।
जब भगवान रामचन्द्र जी के पिता दशरथ जी को शाप लगा था।उस शाप से बिलख-बिलख करके उनके प्राण छूटे। श्रीकृष्ण भगवान अपने भांजे को मृत्यु से बचा न सके। श्रीकृष्ण भगवान ने पहले जन्म में बालि को तीर मारा था, उसका कर्म आकर के उनके पैर में लगा और पैर उनका फट गया। बहेलिया आकर के रोया-महाराज जी ! गलती हो गई। उन्होंने कहा-गलती नहीं है। आप पहले जन्म में बालि थे और हम पहले जन्म में राम। हमने आपको छिप करके तीर मारा, उसका प्रारब्ध-भोग आज हमें इस रूप में मिला है। हमने जो गलती की उसी का यह फल है। चाहे रामचन्द्रजी ही क्यों न हों, छिपकर के अनैतिक बालि बध करने के कारण, भगवान जी को भी छुट्टी नहीं मिल सकी कर्म का भोग भोगना पड़ा। भगवान बड़े है; लेकिन सायद कर्म भगवान से बड़ा है- ये विचार करने की बात है।🌷🙏🏻🌷
[3/3, 09:59] ‪+91 99673 46057‬: राधे राधे - आज का भगवद चिन्तन ॥
              03-03-2017
🌺     प्रेम ही सबसे बड़ा धन है। प्रेम ही पन्चम पुरुषार्थ है और यही श्री कृष्ण के माधुर्य का आस्वादन कराता है। "" प्रीतम प्रीति ही ते पैये ""। प्रभु रीति से नहीं प्रीति से ही प्राप्त होते हैं। मुक्ति तो भगवान् किसी भी भाव से भक्ति करने वाले को दे देते हैं पर भक्ति प्रेम वाले को ही देते हैं।
🌺     प्रेम के लक्षण क्या है ? बल्लभाचार्य जी महाराज कहते हैं कि जब भगवान् के नाम, रूप , लीला का स्मरण होते ही आँखों से अश्रुपात तथा शरीर में रोमांच होने लगे , वाणी गदगद हो जाये , कंठ अवरुद्ध हो जाये तो उसे प्रेम की दशा समझनी चाहिए। ऐसी दशा पर रीझकर ही भगवान् भक्तों को दर्शन देते हैं।
🌺     ऐसा प्रेम जिसके वश में भगवान् भी हो जाते हैं वह प्रेम केवल दो ही मार्ग से प्राप्त होता है। संत के संग से या सत्संग से , इसलिए निरंतर इनका आश्रय करो।
[3/3, 10:22] पं अनिल ब: 🌺🌺📚🌳🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌳📚🌺🌺

*।।धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ।।*

*॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥*

*🕉गीता प्रबोधनी🕉*

*नमो नमः*

श्री भगवानुवाच

कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे
येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।३२।।
तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व
जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव
निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्।।३३।।

श्रीभगवान् बोले –

मैं सम्पूर्ण लोकों का क्षय करनेवाला बढ़ा हुआ काल हूँ और इस समय मैं इन सब लोगोंका संहार करनेके लिये यहाँ आया हूँ। तुम्हारे प्रतिपक्ष में जो योद्धालोग खड़े हैं, वे सब तुम्हारे (युद्ध किये) बिना भी नहीं रहेंगे ।
इसलिये तुम युद्धके लिये खड़े हो जाओ और यशको प्राप्त करो तथा शत्रुओंको जीतकर धनधान्य से सम्पन्न राज्य को भोगो । ये सभी मेरे द्वारा पहले से ही मारे हुए हैं । हे सव्यसाचिन् अर्थात् दोनों हाथों से वाण चलाने वाले अर्जुन ! तुम इनको मारने में निमित्तमात्र बन जाओ।

व्याख्या—

निमित्तमात्र बनने का तात्पर्य यह नहीं है कि नाममात्र के लिये कर्म करो, प्रत्युत इसका तात्पर्य है कि अपनी पूरी-की-पूरी शक्ति लगाओ, पर अपने को कारण मत मानो अर्थात्‌ अपने उद्योग में कमी भी मत रखो और अपनेमें अभिमान भी मत करो ।  भगवान्‌ ने अपनी ओर से हम पर कृपा करने में कोई कमी नहीं रखी है ।  हमें तो निमित्तमात्र बनना है ।  अर्जुन के सामने तो युद्ध था, इसलिये भगवान्‌ उनसे कहते हैं कि तुम निमित्तमात्र बनकर युद्ध करो, तुम्हारी विजय होगी ।  इसी तरह हमारे सामने संसार है, इसलिये हम भी निमित्तमात्र बनकर साधन करें तो संसार पर हमारी विजय हो जायगी ।

ॐ तत्सत् !

*राधे*

*महादेव*
🌺🌺📚🌳💐💐💐🌳📚🌺🌺

1 comment:

  1. हीनं च दूष्यतेव् हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये । iska matlab Heen aur kalushit hai bhai

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