Tuesday, September 29, 2015

|| भगवद् चिंतन ||

🌹🌹🌹जय श्री राधे कृष्ण🌹🌹🌹
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आज का भगवद् चिंतन
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श्रीमद्भागवत महापुराण एक ऐसे ग्रंथ हैं जो वैष्णव, संतो का परम धन है. परमहंसों की संहिता, पुराणों का तिलक है. ज्ञानियों का चिंतन, भक्तों का वंदन है. जब जन्म जन्मातर के पुण्यो का उदय होता है तब उसे श्रीमद्भागवत पुराण कहना, सुनना और पढऩा मिलता है. “एतस्मादपरं किंचिदन्मन: शुद्धयै न विघते जन्मान्तरे भावेत्पुण्यं तदा भागवतं लभते” भागवत महापुराण वह शास्त्र हैं जिसमें बीते कल की स्मृति, आज का बोध और भविष्य की योजना है. तो आज भागवत में प्रवेश करने से पहले थोड़ा भीतर उतरने की तैयारी करिए. यह स्वयं मूल से परिचित कराने का ग्रंथ है. भगवान ने भागवत की पंक्ति- पंक्ति में ऐसा रस भरा है कि वे स्वयं लिखते हैं- ” पिबत भागवतं रसमालयं मुहुरवो रसिका भुवि भावुका: हमारे भीतर जो रहस्य भरा हुआ है उसको उजागर करने के लिए भागवत एक अध्यात्म दीप है. जैसे हम भोजन करते हैं तो हमको संतुष्टि मिलती है उसी प्रकार भागवत मन का भोजन है. जब मन को ऐसा शुद्ध भोजन मिलेगा तो मन संतुष्ट होगा, पुष्ट होगा और तृप्त होगा और जिसका मन तृप्त है उसके जीवन में शांति है. संत और महात्माओं का यह कहना है पहली बात है भगवान ने अपना स्वरूप भागवत में रखा तो भागवत भगवान का स्वरूप है. जिसे शब्दब्रह्म कहते है, दूसरी बात इसमें ग्रंथों का सार है और तीसरी बात हमारे जीवन का व्यवहार है. ये तीन बातें भागवत में हैं.भागवत के महत्व में कहा गया है कि जब जन्म जन्मातर के पुण्यों का उदय होता है तब श्रीमद्भागवत कथा सुनने को मिलती है. संत जन कहते है,कथा इतने दुर्लभ है कि हमारे पुण्यो में भी इतना दम नहीं है कि पुण्यो के दम पर कथा सुनने को मिल जाए, कहने का अर्थ यह है कि पूर्व जन्मो में हमसे किसी संत महापुरुष की सेवा बन गई होगी, उसी के प्रभाव से हमें श्रीमद्भागवत कथा सुनने को मिली.
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सर्वोत्कृष्ट आनंदोत्सव है शरद पूर्णिमा :–
क्योंकि आज ही के दिन “आनंद” की जो अंतिम सीमा है,उस अंतिम सीमा वाले आनंद को श्रीराधाकृष्ण ने जीवों को प्रदान किया था । आनंद के भी अनेक स्तर हैं । ज्ञानियों का निर्गुण ,निर्विशेष परमानंद,दिव्यानंद अथवा ईश्वरीय आनंद किन्तु ये सब सबसे निम्न कक्षा का आनंद है । इसके बाद फिर सगुण साकार का आनंद प्रारम्भ होता है । इसके भी अनेक स्तर हैं :–शांत भाव का प्रेमानंद ,उससे ऊँचा दास्य भाव का प्रेमानंद ,उससे ऊँचा सख्य भाव का प्रेमानंद ,उससे अधिक सरस वात्सल्य भाव का प्रेमानंद ,और इन सबसे अधिक् सरस माधुर्य भाव का प्रेमानंद । माधुर्य भाव के भी तीन स्तर हैं : १)साधारणी रति २) समंजसा रति ३)समर्था रति
सिद्ध महापुरुषों में भी अरबों -खरबों में किसी एक को मिलता है समर्थारति । उस रस को ,महारास के रूप में ,आज के दिन ५ हज़ार वर्ष पहले ,राधाकृष्ण ने जीवों को वितरित किया था । इसीलिए मै कह रहा हूँ , आज का पर्व सर्वोत्कृष्ट पर्व है ॥
इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचा था। मान्यता है इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का विधान है।
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जयतु भारतम्

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 पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
 वाशी से.1नवी मुम्बई
     8828347830

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