Wednesday, September 30, 2015

|| धर्मार्थ वार्त्ता समाधान ||

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जीवन में सबसे बड़ा कष्ट क्या है ?
१.Whatsapp का रिचार्ज
२.नहि दरिद्र सम दुख जग माही। (असन्तुष्टि)
३.कष्ट को महसूस करना
४.कह  हनुमंत  विपति प्रभु  सोई |
   जब तक सुमिरन भजन न होई || 
५.जिस काल में भगवान का भजन-स्मरण नहीं होता, वह  काल भले ही सौभाग्यपूर्ण हो या चारों ओर यश, कीर्ति, मान, पूजा होने लगे, लेकिन भगवान की ओर से उदासीनता की दृष्टि से वह विपत्ति में ही है। ऐसी विपत्ति को भगवान हरण करते है, अपने स्मरण की सम्पत्ति देकर।
६.जद्यपि जग दारुन दुःख नाना।
सबते कठिन जाति अपमाना
(अपमान तीसरे पायदान पर है= ? )
७.सर्पाःपिबन्ति पवनं न  च दुर्बलास्ते।
   शुष्कैस्तृणैवर्नगजा बलिनो भवन्ति।।
   कन्दैर्फलै मुनिवरा  गमयन्ति कालं।
   सन्तोष एव पुरुषस्य  परं निधानम्।।
८.पं. जगदीश प्रसाद द्विवेदी
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   बिना अग्नि मेते प्रदहन्ति कायः।
   गर्भ वास समे दुःखं नैव जीवो परायणे ।
   एतत्तु भगवान्प्रोक्तः स्वयं भागवती कथा
                               --कपिलोपाख्यान।
   जग में जन्मे जब बाल भये तब एक रही सुधि भोजनकी।
   तरुणाई जबै प्रकटी मन में तब आस जगी तरुणी-तनकी।
   जब बृद्ध भयो तन सूखि गयो तब लोग कहे सनकी-सनकी।
   नहिं भक्ति करी नहिं दान दियो रहि अंत समय मनमें मनकी।
   यहाँ प्रश्न दुःख का है।
   सन्तोष परेऽनुवाक्यः अस्ति
९.पं.मंगलेश्वर त्रिपाठी :
   मोदेऽहं यदवाप्तं हि तस्मिन् प्रीत्या समन्विता।
   मोदे चान्यदवाप्तुं च सद्यत्नेषु कृतेषु मे॥
१०.077150 00848‬:
कत बिधि सृजीं नारि जग माहीं।
पराधीन   सपनेहुँ   सुखु  नाहीं।।
११.089621 58268‬:
बासुदेव जरा कष्टं,कष्टं निर्धनजीवनं।
पुत्रशोक महाकष्टं,कष्टं ते अधिकं क्षुधा।।
१२.पं. जगदीश प्रसाद द्विवेदी(धर्मार्थ. ): आशारे खलु संसार दुःख रूपी विमोहकः। सुतं कस्य धनं कस्य स्नेहबद्धान्जलि ते निशम्।।
१३.पं. जगदीश प्रसाद द्विवेदी
जब माता देवहुती ने किया तो सबसे पहले दुःख ही पूछा। जन्म नरक, नारी जीवन और मृत्यु भयाटवी का पूरा वर्णन है
१४.मंगलेश्वर त्रिपाठी :
इस समय जो चारों अोर अशान्ति देखने में आ रही है, उसका मूल कारण है- अभिमान और स्वार्थ की अति वृद्धि। जहाँ स्वार्थ और अभिमान का बोल-बाला होगा वहाँ किस प्रकार प्रेम की प्रतिष्ठा हो सकेगी। जहाँ परस्पर प्रेम-सद्भाव का अभाव रहेगा, वहाँ शान्ति कैसे होगी?
मेरे विचार से सुख की इच्छा करना ही स्वार्थ है और दूसरों की अपेक्षा अपने में विशेषता देखना ही अभिमान है।
सन्त कहते हैं -
कंचन तजना सहज है, सहज त्रिया का नेह।
मान बड़ाई ईरिषा तजना मुश्किल एह॥
"जानहिं तबहिं जीव जग जागा।
जब सब बिषय बिलास बिरागा॥"
मान में अपमान का खटका।
कंजूस को मेहमान का खटका।
भोग में रोग का खटका।
भक्त को भगवान का खटका॥
मन पंछी तब लौं उड़ै बिषय वासना माहिं।
प्रेम बाज की झपट में जब लगि आवत नाहिं॥
प्रेमी ढूँढत मैं फिरुँ प्रेमी मिला न कोय।
प्रेमी को प्रेमी मिलै सब बिष अमरित होय॥
१५.पं. जगदीश प्रसाद द्विवेदी :
यहसत्य है कि पुत्र शोक महत् कष्ट है, पर यहाँ सन्योक्ति भी बनती है कि - "जाया सुतादिषु सदा ममतां विमुञ्च"।इससे यह साबित होता है की जीवन में मोह आना किसी के प्रति सबसे बड़ा कष्ट है। चाहे पुत्र हो या दरिद्रता या धन या क्षुधा - ये सब मोह के कारण ही पनपते है इस लिए मोह होना सबसे बड़ा कष्ट है।
१६.पं.मंगलेश्वर त्रिपाठी :
जीवन में एकाग्रता और संचय की ही सर्वाधिक महत्ता है और सबसे बड़ी मूर्खता है, शक्तियों को यूँही बिखेर देना। बहुचित्रता कैसी भी हो, है तो अधम ही। वही चीज स्तुत्य है जो सारे भ्रम और क्रीडा-सामग्री से हमे उचाट देती है और कर्म की ओर प्रेरित करती है। जो व्यक्ति जीवन एक ही अनन्य लक्ष्य पर चलता है तो वह सोच सकता है कि वह उस लक्ष्य को जीवन काल के भीतर ही प्राप्त कर लेगा।

सौ०  धर्मार्थ वार्त्ता समाधान" वार्ता विवरण
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पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
  8828347830  

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