*मन की बात---------:*
यदिआकाश ढका हो बादलों से, पर बादलों के पार भी जो झांक सकता है, उसके लिए नीला शुभ्र आकाश उतना ही सत्य है जितना यह बदली भरा आकाश, बल्कि इससे भी अधिक सत्य क्योंकि यह बादल तो आज नहीं कल बरस कर रीते हो जायेंगे। इसी तरह जो देह के पीछे छिपे चिन्मय तत्व को देख सकता है उसके लिए देह का रहना या न रहना अर्थहीन हो जाता है, क्योंकि जो सदा है वह उसकी दृष्टि से कभी ओझल ही नहीं होता, जगत का कार्य-व्यवहार उसे क्रीड़ा मात्र ही प्रतीत होता है, और उसके पीछे छिपा निरंजन ही सत्य जान पड़ता है।बादल कितने भी घने हों एक न एक दिन समाप्त हो जायेंगे, इसी तरह भीतर का चैतन्य मन की धारणाओं, वासनाओं और कामनाओं से कितना भी क्यों न छिप गया हो, कभी मिटता नहीं। इस सत्य को स्वीकार करके उसे अपना अनुभव बनाना ही साधक का लक्ष्य है।
*जय श्री राधे*✍
*आप सभी को शनि प्रदोष की हार्दिक शुभ कामनायें।*😊
Sunday, April 9, 2017
*मन की बात---------:*
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