Sunday, November 5, 2017

धर्मार्थ वार्ता के कुछ प्रमुख पोस्ट।

[10/31, 04:59] ‪+91 83496 55108‬: ----जय महादेव----
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अरुण दुबे------

सर्वतीर्थाश्रमश्चैव सर्वदेवाश्रयो गुरुः।
सर्ववेदस्वरूपश्च गुरुरुपि हरि:स्वयं।।
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अभिष्टदेवेरुष्टे च गुरुशक्तो हि रक्षितं।
गुरौरुष्टेभीष्टदेवो न हि शक्तश्च रक्षितुम्।।

।।प्रणाम।।
:::::शुभ अरूणोदय::::::
[10/31, 09:29] घनस्याम तिवारी जी: साध्वी आनन्द भारती बहन,धर्म ब्यापक है। इसकी ब्याख्या कभी समाप्त नही होगी। जितना भी कहा जाय वह कम है जोसे --  "आचार:परमो धर्म:"  आचार को सन्तो ने परम् धर्म माना है। कोई भी सत्कर्म बिना आचार के सफल नही होगा। अर्थात सत्कर्म करने वाला आचारवान होना चाहिए। मानस में -- "परहित सरिस धर्म नहि भाई,पर पीड़ा सम नहि अघमाई ।। अर्थात परहित के समान कोई धर्म नही। धर्म वही जो हम धारण करे। पिता के प्रति पुत्र का कर्तब्य,धर्म क्या है,पुत्र के प्रति पिता का धर्म क्या है? गुरु के प्रति शिष्य,शिष्य के प्रति गुरु का,मित्र के प्रति,समाज,ब्राह्मण, मानव,पशु,पक्षी,कोई भी जीव,भाई,बहन,सन्त आदि के प्रति हमारा कर्तब्य,धर्म क्या है? इसे समझना और समझकर करना यही धर्म है। भगवान के प्रति जीव का कर्तब्य,यही धर्म है। मात्र पूजा पाठ,जप,तप,भजन,यज्ञ,आदि ही धर्म नही है। धर्म वही जो हम धारण करते है। अब हम पर निर्भर करता है कि कौन सा धर्म हम धारण करते है। चोर का धर्म चोरी करना,बिछु का धर्म डंक मारना, पानी का धर्म प्यास बुझाना, आदि यही धर्म है। अभी हम सब का धर्म,कर्तब्य है श्रीमान देवी प्रसाद ( गोपाल ) जी को मदत करना। जो हम सब धर्मार्थ में उपस्थित या अन्य लोग भी कर रहे है। यही धर्म है,परहित से बड़ा कौन धर्म होगा। बस बहन संक्षेप में धर्म यही जाने । 🙏🙏
[10/31, 09:41] विरेन्द्र पाण्डेय जी: उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यजनिद्रां जगत्पते।
त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत्सुप्तमिदं भवेत्।।

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धत वसुंधरे।
हिरण्याक्ष प्राणिघातिन्त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।

देवप्रबोधिनी एकादशी की अनन्त शुभकामनाएं ।।
🌷🙏हरे कृष्णा🙏🌷
[10/31, 10:48] मार्कण्डेय जी: *🙏🏼🌻🌹व्याकरण सामर्थ्य की दृष्टि से संस्कृत साहित्य बहुत ही उच्चतम श्रेणी की भाषा  है*...
१- यह अधोलिखित पद्य और उनके भावार्थ से पता चलता है।
*कःखगौघाङचिच्छौजा झाञ्ज्ञोऽटौठीडडण्ढणः।*
*तथोदधीन् पफर्बाभीर्मयोऽरिल्वाशिषां सहः॥*
अर्थात्- पक्षिओं का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का , दुसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु। संहारको में अग्रणी, मनसे निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करता कौन? राजा मय कि जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं। "
आप देख सकते हैं कि संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस पद्य में आ जाते हैं इतना ही नहीं, उनका क्रम भी योग्य है।
२- एक ही अक्षरों का अद्भूत अर्थ विस्तार...
माघ कवि ने शिशुपालवधम् महाकाव्य में केवल "भ" और "र " दो ही अक्षरों से एक श्लोक बनाया है।
*भूरिभिर्भारिभिर्भीभीराभूभारैरभिरेभिरे।*
*भेरीरेभिभिरभ्राभैरूभीरूभिरिभैरिभा:।।*
अर्थात्- धरा को भी वजन लगे ऐसा वजनदार, वाद्य यंत्र जैसा अवाज निकाल ने वाले और मेघ जैसा काला निडर हाथी ने अपने दुश्मन हाथी पर हमला किया। "
३- किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल " न " व्यंजन से अद्भूत श्लोक बनाया है और गजब का कौशल्य का प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने थोडे में बहुत कहा है...
*न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नाना नना ननु।*
*नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नन्नुनन्नुनुत्।।*
अर्थात् - जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है। घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है।
*●ऐसे अनेक मधुर उदाहरण हमारे अन्यान्य पुरातन संस्कृत साहित्य के ग्रन्थों में ही देखने को मिलता है।*
*वन्दे संस्कृतम्।*🙏🏼🌻🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[10/31, 12:26] ‪+1 (562) 965-8399‬: 🥀  ॐ श्री  विष्णवे नम: - आज का भगवद चिन्तन ॥
31-10-2017
🌺   दुनिया के महान व्यक्ति केवल इसीलिए सफल हो पाए क्योंकि प्रत्येक क्षण वो अपने उद्देश्य में, संकल्प में संलग्न रहे। अपने लक्ष्यों के प्रति हमेशा सजग रहो। कल के लिए कार्यों को कभी भी मत टालो। समय अनुकूल ना हो तो भी कर्म करना बंद मत करो। कर्म करने पर तो हार या जीत कुछ भी मिल सकती है पर कर्म ना करने पर केवल हार ही मिलती है ।
🌺   पुरुषार्थी के पुरुषार्थ के आगे तो भाग्य भी विवश होकर फल देने के लिए बाध्य हो जाता है। प्रत्येक बड़ा आदमी कभी एक रोता हुआ बच्चा था। प्रत्येक भव्य इमारत सफ़ेद पेपर पर कभी मात्र एक कल्पना थी। यह मायने नहीं रखता कि आज आप कहाँ हैं ? महत्वपूर्ण ये है कि कल आप कहाँ होना चाहते हैं ?
🌺   भागीरथ तो देवलोक से गंगाजी को ले आये थे जमीन पर। समय मत गवाओ, अपने प्रयत्न जारी रखो, सफलता बाँह फैलाकर आपका स्वागत करने के लिए खड़ी है।
🌺  अमेरीका डाउनी से स्वामी चंद़प़काशदासजी का जय श्री स्वामिनारायण!
🍓देवोत्थान एकादशी की बहुत बहुत बधाई।🍇
[10/31, 14:52] ‪+91 94554 91582‬: उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद उत्तिष्ठ गरुड़ध्वज।
उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यं मंगलं कुरु।।

हे गोविंद जागिये, हे गरुड़ध्वज जागिये, हे लक्ष्मीपति जागिये और त्रिलोक का मंगल करिये।

     💐🌷  तुलसी  🌷
🌷    विवाह कि हार्दिक   🌷
🌹       शुभकामनाएं        🌹
💐💐💐💐💐💐
हिंदू धर्म के अनुसार देव उठनी ग्यारस के बाद सारे शुभ काम- मंगल काम शुरू होते हैं।
परमपिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि आज से आपके और आपके परिवार में सारे शुभ कार्य हों, सर्वमंगल हो 💐🙏🏻💐

  देव प्रबोधिनी एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएँ
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[10/31, 15:10] ओमीश: उत्थान-एकादशी                                   31/10/17
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अचिन्यो$क्रियो भगवान् अस्ति तथापि लीलां करोत्यम्।
उदरे शेते सृष्टिर्यस्य निद्राया नाटकं महत्।।
निद्रां त्यक्त्वा उत्थितो$स्ति उत्थान-एकादशी च वै।
प्रसन्नाः सर्वे सन्ति आराधनाय तत्पराश्च खलु।।
प्रातरुत्थाय करणीयं जलस्नानं नदीषु च ।
विष्णोः पूजा करणीया भक्त्या श्रद्धया हि वै।।
वर्ज्यमन्नसेवनमद्य फलाहारश्च  ग्राह्यः।
रात्रौ शयनं न करणीयं विष्णोः स्मरणं परम्।।
दहति तूलराशिं खलु अग्निस्फुल्लिंगो यथा हि वै।
नष्टानि भवन्ति पापानि तथा जन्मान्तरकृतानि च।।
सम्पादितानि भविष्यन्ति मंगलकार्याणि जीवने।
आयाता दिवसा: शुभा: समारब्धस्याद्य च कर्मणः।।
                            डा गदाधर त्रिपाठी
[11/1, 05:49] ‪+91 83496 55108‬: -----जय महादेव------
अरुण दुबे8349655108
:::::::::::::::
मन्त्र की मूल चेतन शक्ति ध्वनि में निहित होती है।
ओर यह ध्वनि पुस्तक के निर्जीव पृष्ठों में नही होती।
शुद्धि अशुद्धि का ज्ञान भी गुरुमुख से निश्रित मन्त्रो से होता है।।
गुरु ईश्वरीय प्रतिबिम्ब होता है।।
यथा घटश्च कलश:,कुम्भश्चैकार्द्ध वाचका:।
तथा मन्त्रो देवताश्च गुरुश्चयैकार्द्ध वाचकः।।
यस्य देवो परा भक्ति यथा देवो तथा गुरौ।
तस्येते कथिता ह्यार्था: प्रकाश्यन्ते महात्मभिः।।
।।न च धनं ,न च वयं, ज्ञान वृद्धोपि बृद्ध।।
।।प्रणाम।।
------शुभ अरूणोदय-------
[11/1, 08:36] ‪+91 98490 91808‬: *प्रश्नः एवमस्ति,*

*"ईश्वरस्तु नितरां न दृश्यते..*
*विश्वासः कथं भवेत् ?"*

*उत्तमं समाधामेवं लब्धम्…*
*श्रद्धा वाई-फ़ाई इव भवति। नैव दृश्यते …*             
*परं साधुना कूटशब्देन संयोगः अवश्यं भवति।"*

🙏🙏💐 💐
[11/1, 08:37] ‪+91 98490 91808‬: *प्रश्न है कि,*

*"ईश्वर तो दिखाई भी नहीं देते...*
*विश्वास कैसे करूँ ?"*

*सुंदर जवाब मिला …*
*श्रद्धा वाई-फ़ाई कि तरह होती है दिखती तो नहीं है …*             
*पर सही पासवर्ड डालो तो कनेक्ट हो जाते हो।"*

🙏🙏💐 💐
[11/1, 10:45] ‪+1 (562) 965-8399‬: 🌹सु प़भातम 🌹
.रामचरितमानस.
*एहि तन कर फल*
               *बिषय न भाई।*
   *स्वर्गउ स्वल्प*
                *अंत दुखदाई॥*

*नर तनु पाइ बिषयँ*
                     *मन देहीं।*
*पलटि सुधा ते*
             *सठ बिष लेहीं॥*

*भावार्थ:-*  हे भाई! इस शरीर के प्राप्त होने का फल विषय भोग नहीं है। इस जगत्‌ के भोगों की तो बात ही क्या? स्वर्ग का भोग भी बहुत थोड़ा है और अंत में दुःख देने वाला है। अतः जो लोग मनुष्य शरीर पाकर विषयों में मन लगा देते हैं, वे मूर्ख अमृत को बदलकर विष ले लेते हैं॥
🥀   स्वामी चंद़प़काशदासजी.अमेरीका डाउनी...
[11/1, 11:00] सुधा जी: 🌞🌞🌿🌿🌹🌹🌿🌿🌞🌞
✍.. *कभी हँसते हुए छोड़ देती है ये जिंदगी*
*कभी रोते हुए छोड़ देती है ये जिंदगी।*
*न पूर्ण विराम सुख में,*
        *न पूर्ण विराम दुःख में,*
*बस जहाँ देखो वहाँ अल्पविराम छोड़ देती है ये जिंदगी।*
*प्यार की डोर सजाये रखो,*
    *दिल को दिल से मिलाये रखो,*
*क्या लेकर जाना है साथ मे इस दुनिया से,*
*मीठे बोल और अच्छे व्यवहार से*
        *रिश्तों को बनाए रखो*...........✍🏻
🍂🍃🍂🍁🎭🍁🍂🍃🍂

        🌸 *शुभ प्रभात* 🌸
   🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿
‼GOOD MORNING  G
[11/1, 11:20] ‪+91 94554 91582‬: यदि सन्तं सेवति यद्यसन्तं तपस्विनं यदि वा स्तेनमेव।

वासो यथा रङ्गवशं प्रयाति तथा स तेषां वशमभ्युपैति ॥

                     अर्थात्

कपड़े को जिस रंग में रँगा जाए, उस पर वैसा ही रंग चढ़ जाता है, इसी प्रकार सज्जन के साथ रहने पर सज्जनता, चोर के साथ रहने पर चोरी तथा तपस्वी के साथ रहने पर तपश्चर्या का रंग चढ़ जाता है।

                    सुप्रभातम्
                        अंबे
                   जय श्रीकृष्णा
                   हर हर महादेव
           आपका दिन् मंगलमय् हो
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
[11/1, 12:25] घनस्याम तिवारी जी: महापापी कौन? -- रजोगुण से  उतपन्न काम ही महापापी है ।  महापापी क्या काम करता है ? -- धुंवा जैसे अग्नि को,मल जैसे दर्पण को,जेर जैसे गर्भ को ढक लेता है। वैसे ही काम मनुष्यो के विवेक को ढक लेता है। यह रहता कहा है?-- इसका तीन जगह निवास स्थान है,इंद्रियां,मन और बुद्धि में । इसे कैसे मार भगाया जाय? उत्तर - सत्संग के द्वारा मिली ज्ञान,विज्ञान के द्वारा विवेक से इसे मार भगाया जा सकता है। 🙏प. घनश्याम तिवारी शाण्डिल्य जी
[11/1, 18:16] पं विजय जी: अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद गजभूषणम्।
चातुर्यं भूषणं नार्या उद्योगो नरभूषणम्॥
तेज-चाल घोड़े का आभूषण है, मत्त-चाल हाथी का आभूषण है, चातुर्य-नारी का आभूषण है और उद्योग में लगे रहना नर का आभूषण है।
[11/1, 18:19] पं विजय जी: दुःखनाशक,सुखस्वरूप श्रेष्ठ,तेजस्वी,पापनाशक देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे
[11/1, 18:22] पं विजय जी: आँखे बंद करने से मुसीबत नहीं टलती और मुसीबत आए बिना आँखे नहीं खुलती..।  छल में बेशक बल है लेकिन प्रेम में आज भी हल निचोड़ हैं।।
[11/1, 18:29] ‪+91 98294 24183‬: 🙏🏻🕉🕉🕉🕉🕉🕉🙏🏻
भव भुज्ँग तुलसी नकुल
         डसत ज्ञान हर लेत 💐
चित्रकूट एक ओषथी
           देखत होत सचेत 💐
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काशी की जो भूमि है, वह गोस्वामीजी की कर्मभूमि है । मानस के अधिकांश भाग काशी में ही रचे गए । काशी के प्रति गोस्वामीजी के मन में बड़ी श्रद्धा है । यहीं पर भगवान शंकर ने उन्हें स्वप्न में 'मानस' की रचना करने का आदेश दिया । प्रारंभ में वे संस्कृत के श्लोकों में ग्रन्थ का निर्माण करने लगे । पर वे श्लोक लुप्त हो जाते । शंकरजी ने तब उन्हें 'भाषा' में रचना करने का आदेश दिया । काशी विद्वानों की भूमि है । शास्त्रों और अन्य विविध विधाओं के क्षेत्र में इसके पाण्डित्य की बड़ी प्रसिद्धि रही है ऐसी दिव्य ज्ञान-गौरव से मण्डित भूमि में, भगवान शंकर के आदेश से 'मानस' की रचना हुई । किसी ने गोस्वामीजी से पूछ दिया कि संस्कृत में जो दिव्य ग्रन्थ है, जैसे उनके पाठ का फल दिया गया है, क्या उस दृष्टि से आपके गाँव की भाषा में लिखे गए इस ग्रन्थ को भी लोग महत्व देंगे । गोस्वामीजी ने इस सन्दर्भ में लिखा है कि यह तो भगवान शंकर और पार्वतीजी की कृपा का प्रसाद है अतः महान कल्याणप्रद है । और सचमुच आज भी लोग इसका अनुभव करते हैं मानस की पंक्तियों को मन्त्रों से भी अधिक महत्व प्राप्त है
श्री रामचरित्र का चित्रण, गोस्वामीजी ने 'ग्यान खानि अघ हानि कर' - पुण्य भूमि काशी और धर्मभूमि अयोध्या में रहकर किया । पर प्रभु की कृपालुता और करुणा प्राप्त करने के लिए वे चित्रकूट की प्रेमभूमि में बार-बार जाते थे और कोल-किरातों, वनचरों के प्रति प्रभु के प्रेम का स्मरण कर वे उस भावरस में निमग्न होकर एक नवीन चेतना प्राप्त कर लौटते थे । इसका तात्पर्य यह है कि ज्ञान और कर्म के साथ-साथ ईश्वर की कृपा की भी आवश्यकता है । क्योंकि ईश्वर की कृपा के बिना, ईश्वर के प्रति प्रेम के बिना जीवन में धन्यता की स्थिति नहीं आ सकती । चित्रकूट की भूमि प्रभु के निरावृत चरणों के संस्पर्श से अंकित पदचिह्नों के द्वारा व्यक्ति को प्रभु प्रेम प्रदान कर धन्य बनाती है
गोस्वामीजी भगवान राम के विषय में कहते हैं कि श्री राम अनादि हैं । दूसरी ओर गोस्वामीजी संसार के लिए भी यही कहते हैं कि यह जो विश्व प्रपंच है वह अनादि है । श्री राम अनादि हैं, वेद अनादि हैं, देवतागण अनादि हैं और विधि-प्रपंच अनादि हैं, तो फिर 'आदि' क्या रह गया ? इसका अर्थ यही है कि जब 'आदि' को हम सत्य मान लेते हैं, तो हम अपने जीवन में कर्तव्य के अभिमान को अपने सिर पर लाद लेते हैं
पँ हरभजन शर्मा कोटा राजस्थान
[11/1, 18:56] पं विजय जी: 🌺"क्रोधात् भवति सम्मोह: सम्मोहात् स्मृति विभ्रम:।
स्मृति भ्रंशाद् बुद्धि नाशो बुद्धिनाशात् प्रणश्यति।।"

अर्थात्: क्रोध से अज्ञान पैदा होता है।अज्ञान से स्मरण शक्ति नष्ट होती है। स्मरण-शक्ति के नष्ट हो जाने से बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि नाश से जीवन नष्ट होता है।
🌺क्रोध मूर्खता से शुरू होता है और पश्ताचाप पर समाप्त होता है।"क्रोध के समय हमारा तन और मन विकृत होता है। उस समय न हमें अपना भान रहता है और न ही औरों का।
🌺 क्रोध के बाद हाथ लगती है - शिथिलता, कमज़ोरी, समय व शक्ति की बरबादी, पश्ताचाप,अशान्ति और मानसिक रोग आदि ।
🌺 मात्र क्रोध करने से इतनी हानि होती है तो  हमें यह विचार करना आवश्यक है कि अगर हम प्रेम करेंगें तो हमें क्या क्या लाभ हो सकते है मात्र एक प्रेम को बढ़ाने से हमारे जीवन में  आत्मीयता का सृजन हो सकता है।
🌺 आत्मीयता के माध्यम से हम अपने जीवन में शांति का संचार कर सकते है। तो क्यों न अपने जीवन में प्रेम और सामंजस्य के द्वारा आत्मीयता का निमार्ण किया जाए।
[11/1, 21:05] विरेन्द्र पाण्डेय जी: *गरुड़ जी के सात प्रश्न और काकभुशुण्डि जी के उत्तर*

* पुनि सप्रेम बोलेउ खगराऊ। जौं कृपाल मोहि ऊपर भाऊ॥।
नाथ मोहि निज सेवक जानी। सप्त प्रस्न मम कहहु बखानी॥

पक्षीराज गरुड़जी फिर प्रेम सहित बोले- हे कृपालु! यदि मुझ पर आपका प्रेम है, तो हे नाथ! मुझे अपना सेवक जानकर मेरे सात प्रश्नों के उत्तर बखान कर कहिए॥

* प्रथमहिं कहहु नाथ मतिधीरा। सब ते दुर्लभ कवन सरीरा॥
बड़ दुख कवन कवन सुख भारी। सोउ संछेपहिं कहहु बिचारी॥

हे नाथ! हे धीर बुद्धि! पहले तो यह बताइए कि सबसे दुर्लभ कौन सा शरीर है फिर सबसे बड़ा दुःख कौन है और सबसे बड़ा सुख कौन है, यह भी विचार कर संक्षेप में ही कहिए॥

* संत असंत मरम तुम्ह जानहु। तिन्ह कर सहज सुभाव बखानहु॥
कवन पुन्य श्रुति बिदित बिसाला। कहहु कवन अघ परम कराला॥

संत और असंत का मर्म (भेद) आप जानते हैं, उनके सहज स्वभाव का वर्णन कीजिए। फिर कहिए कि श्रुतियों में प्रसिद्ध सबसे महान्‌ पुण्य कौन सा है और सबसे महान्‌ भयंकर पाप कौन है॥

* मानस रोग कहहु समुझाई। तुम्ह सर्बग्य कृपा अधिकाई॥
तात सुनहु सादर अति प्रीती। मैं संछेप कहउँ यह नीती॥

फिर मानस रोगों को समझाकर कहिए। आप सर्वज्ञ हैं और मुझ पर आपकी कृपा भी बहुत है। (काकभुशुण्डिजी ने कहा-) हे तात अत्यंत आदर और प्रेम के साथ सुनिए। मैं यह नीति संक्षेप से कहता हूँ॥

*नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर जाचत तेही॥
नरक स्वर्ग अपबर्ग निसेनी। ग्यान बिराग भगति सुभ देनी॥

*मनुष्य शरीर के समान कोई शरीर नहीं है। चर-अचर सभी जीव उसकी याचना करते हैं। वह मनुष्य शरीर नरक, स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है तथा कल्याणकारी ज्ञान, वैराग्य और भक्ति को देने वाला है॥*

* सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर। होहिं बिषय रत मंद मंद तर॥
काँच किरिच बदलें ते लेहीं। कर ते डारि परस मनि देहीं॥

*ऐसे मनुष्य शरीर को धारण (प्राप्त) करके भी जो लोग श्री हरि का भजन नहीं करते और नीच से भी नीच विषयों में अनुरक्त रहते हैं, वे पारसमणि को हाथ से फेंक देते हैं और बदले में काँच के टुकड़े ले लेते हैं॥*

* नहिं दरिद्र सम दुख जग माहीं। संत मिलन सम सुख जग नाहीं॥
पर उपकार बचन मन काया। संत सहज सुभाउ खगराया॥

*जगत्‌ में दरिद्रता के समान दुःख नहीं है तथा संतों के मिलने के समान जगत्‌ में सुख नहीं है। और हे पक्षीराज! मन, वचन और शरीर से परोपकार करना, यह संतों का सहज स्वभाव है॥*

* संत सहहिं दुख पर हित लागी। पर दुख हेतु असंत अभागी॥
भूर्ज तरू सम संत कृपाला। पर हित निति सह बिपति बिसाला॥

*संत दूसरों की भलाई के लिए दुःख सहते हैं और अभागे असंत दूसरों को दुःख पहुँचाने के लिए। कृपालु संत भोज के वृक्ष के समान दूसरों के हित के लिए भारी विपत्ति सहते हैं (अपनी खाल तक उधड़वा लेते हैं)॥*

* सन इव खल पर बंधन करई। खाल कढ़ाई बिपति सहि मरई॥
खल बिनु स्वारथ पर अपकारी। अहि मूषक इव सुनु उरगारी॥

*किंतु दुष्ट लोग सन की भाँति दूसरों को बाँधते हैं और (उन्हें बाँधने के लिए) अपनी खाल खिंचवाकर विपत्ति सहकर मर जाते हैं। हे सर्पों के शत्रु गरुड़जी! सुनिए, दुष्ट बिना किसी स्वार्थ के साँप और चूहे के समान अकारण ही दूसरों का अपकार करते हैं॥*

* पर संपदा बिनासि नसाहीं। जिमि ससि हति हिम उपल बिलाहीं॥
दुष्ट उदय जग आरति हेतू। जथा प्रसिद्ध अधम ग्रह केतू॥

*वे पराई संपत्ति का नाश करके स्वयं नष्ट हो जाते हैं, जैसे खेती का नाश करके ओले नष्ट हो जाते हैं। दुष्ट का अभ्युदय (उन्नति) प्रसिद्ध अधम ग्रह केतु के उदय की भाँति जगत के दुःख के लिए ही होता है॥*

* संत उदय संतत सुखकारी। बिस्व सुखद जिमि इंदु तमारी॥
परम धर्म श्रुति बिदित अहिंसा। पर निंदा सम अघ न गरीसा॥

*और संतों का अभ्युदय सदा ही सुखकर होता है, जैसे चंद्रमा और सूर्य का उदय विश्व भर के लिए सुखदायक है। वेदों में अहिंसा को परम धर्म माना है और परनिन्दा के समान भारी पाप नहीं है॥*

* हर गुर निंदक दादुर होई। जन्म सहस्र पाव तन सोई॥
द्विज निंदक बहु नरक भोग करि। जग जनमइ बायस सरीर धरि॥

*शंकरजी और गुरु की निंदा करने वाला मनुष्य (अगले जन्म में) मेंढक होता है और वह हजार जन्म तक वही मेंढक का शरीर पाता है। ब्राह्मणों की निंदा करने वाला व्यक्ति बहुत से नरक भोगकर फिर जगत्‌ में कौए का शरीर धारण करके जन्म लेता है॥

* सुर श्रुति निंदक जे अभिमानी। रौरव नरक परहिं ते प्रानी॥
होहिं उलूक संत निंदा रत। मोह निसा प्रिय ग्यान भानु गत॥

*जो अभिमानी जीव देवताओं और वेदों की निंदा करते हैं, वे रौरव नरक में पड़ते हैं। संतों की निंदा में लगे हुए लोग उल्लू होते हैं, जिन्हें मोह रूपी रात्रि प्रिय होती है और ज्ञान रूपी सूर्य जिनके लिए बीत गया (अस्त हो गया) रहता है॥*

* सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं॥
सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुख पावहिं सब लोगा॥

*जो मूर्ख मनुष्य सब की निंदा करते हैं, वे चमगादड़ होकर जन्म लेते हैं। हे तात! अब मानस रोग सुनिए, जिनसे सब लोग दुःख पाया करते हैं॥*

* मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥

*सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान) है। उन व्याधियों से फिर और बहुत से शूल उत्पन्न होते हैं। काम वात है, लोभ अपार (बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोध पित्त है जो सदा छाती जलाता रहता है॥*

* प्रीति करहिं जौं तीनिउ भाई। उपजइ सन्यपात दुखदाई॥
बिषय मनोरथ दुर्गम नाना। ते सब सूल नाम को जाना॥

*यदि कहीं ये तीनों भाई (वात, पित्त और कफ) प्रीति कर लें (मिल जाएँ), तो दुःखदायक सन्निपात रोग उत्पन्न होता है। कठिनता से प्राप्त (पूर्ण) होने वाले जो विषयों के मनोरथ हैं, वे ही सब शूल (कष्टदायक रोग) हैं, उनके नाम कौन जानता है (अर्थात्‌ वे अपार हैं)॥*
🙏🌷हरे कृष्णा🌷🙏
[11/1, 22:19] ‪+91 83496 55108‬: "शेर बनके दहाड़ने वाले मुख्यमंत्री का क्या हाल हुआ ?"
- हिंदुओं की कट्टरता के सवाल पर जगद्गुरु शंकराचार्य

कट्टर जो कथा वाचक हैं उनको रहने देगी सरकार ? औेर मैं ढुल मुल आपकी दृष्टि में हूं या कट्टर हूं या जैसे होना चाहिये वैसे हूं ? विवेकयुक्त हूं । कोई भी राजनैतिक दल है ऐसा जो हमको सताता ना हो , कष्ट ना देता हो , यातना ना देता हो । मेरा अपराध क्या है ? मेरा अपराध है कि मैं किसी दल का नहीं हूं जो कहना चाहिये वही कहता हूं । इतनी यातना सहकर के कौन संत , और कौन कथावाचक दो दिन टिकेगा । यहां तो गुरु , गोविन्द और ग्रन्थ का बल प्राप्त है , समझ गये ना । इतनी सरकारें अाईं गईं इसिलिये हम उपेक्षित हैं , समय पर हमको रिज़र्वेशन भी नहीं मिल पाता , हमारे व्यक्ति मथुरा से सूरत तक खड़े हुएे गये , उसमें सत्तर साल के वृद्ध भी थे , इसिलिये यातना हमको मिलती है क्योंकि हमें जो कहना है वो कहते हैं । श्री श्री श्री श्री जिनको आप कहते हो सभी हमारे लाड़ले प्यारे हैं, सौ सौ एकड़ उड़िसा सरकार ने दिया उनको और हमारे मुश्किल से पांच सात एेकड़ में मठ है । हम आये थे तो ढा़ई एकड़ में हमको मठ मिला था मुश्किल से पांच सात एकड़ में जो मठ है उसको भी उड़िसा सरकार ने हड़प लिया , उस पर शंकराचार्य का कोई अधिकार नहीं होगा । जो कथा वाचक और संत कट्टरता का परिचय देगा वो तो मुझसे भी अधिक यातना को प्राप्त करेगा मुझे तो आध्यात्म का बल है और आपने जो कहा आत्मा परमात्मा , आत्मा का जिसको उपदेश होगा वो डरपोक होगा क्या । आत्मा का उपदेश कितने व्यक्ति करते हैं कहां करते हैं । हवाई जहाज की यात्रा हमने इसिलिये छोड़ दी वहां कर्मचारी तय करते थे दण्ड छू लेते थे , पानी चैक करो ये करो , अंत में हमने हवाई जहाज की यात्रा छोड़ दी । ट्रेन की यात्रा छोड़ दें तो आ ही ना सकें । इसिलिये वो जो यातना दी जाती है इसिलिये दी जाती है की आप बहुत अच्छे हैं लेकिन हमारी पार्टी के नहीं । किसी एक पार्टी के द्वारा जो जूठा नहीं होगा कथावाचक और संत वो टिक नहीं पायेगा , समझ गये । इसिलिये ये कल्पना मत किजिये कि भारत स्वतंत्र देश है घोर परतंत्र देश है । शेर बनकर दहाड़ने वाले मुख्यमंत्री को एक महिने के बाद क्या कर दिया गया वो संत वेष में थे या नहीं , है या नहीं । शेर बनकर दहाड़ने वाले को , अच्छा आप सोच लो उमा भारती ये सब संत वेष में हैं या नहीं , चिन्मयानन्द जी जो थे गृहराज्यमंत्री भी बने संत वेष में थे या नहीं । ये सब पार्लियामेंट में किसके नाम पर पहुंचे मालूम है , राम जी के नाम पर , राम लहर में पहुंचे ना , वहां जाकर राम जी के हो गये या पार्टी के हो गये , बोलो ना । वहां जाकर राम जी के विरोध में बहुत सा काम किया इन लोगों ने । राम लहर को दबाने के लिये उन नेताओं का उपयोग किया गया भगवा वस्त्र वालों का , वहां जाकर राम जी के रह गये या पार्टी के हो गये ?
[11/2, 04:52] ‪+91 83496 55108‬: -----जय -महादेव----
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गीता जी में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के समक्ष सन्यासी और योगी की जो परिभाषा रखी है, वह बड़ी ही अदभुत और विचारणीय है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन सन्यास आवरण का नहीं अपितु आचरण का विषय है।
      जिह्वा क्या बोल रही यह सन्यासी होने की कसौटी नहीं अपितु जीवन क्या बोल रहा है, यह अवश्य ही सन्यासी और योगी होने की कसौटी है।

अनाश्रित: कर्म फलं कार्यं कर्म करोति य:
स सन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चा क्रिया।
      जो पुरुष कर्म फल की इच्छा का त्याग कर सदैव शुभ कर्म करता रहता है, परोपकार ही जिसके जीवन का ध्येय है, वही सच्चा सन्यासी है। कर्मों का त्याग सन्यास नहीं, अपितु अशुभ कर्मों का त्याग सन्यास है। दुनियाँ का त्याग करना सन्यास नहीं है अपितु दुनियाँ के लिए त्याग करना यह अवश्य सन्यास है...।
.........प्रणाम.......
----शुभ -अरूणोदय----
[11/2, 08:08] ‪+91 98490 91808‬: देना हो तो दीजिए, जनम जनम का साथ।
मेरे सर पर रख बनवारी
मेरे सर पर रख गिरधारी, अपने दोनों ये हाथ॥

देना हो तो दीजिए, जनम जनम का साथ।
अब तो कृपा कर दीजिए, जनम जनम का साथ

देने वाले श्याम प्रभु से, धन और दौलत क्या मांगे।
श्याम प्रभु से मांगे तो फिर, नाम और इज्ज़त क्या मांगे।
मेरे जीवन में अब कर दे, तू कृपा की बरसात॥

देना हो तो दीजिए, जनम जनम का साथ।
मेरे सर पर रख बनवारी, अपने दोनों ये हाथ॥

श्याम तेरे चरणों की धूलि, धन दौलत से महंगी है।
एक नज़र कृपा की बाबा, नाम इज्ज़त से महंगी है।
मेरे दिल की तमन्ना यही है, करूँ सेवा तेरी दिन रात॥

देना हो तो दीजिए, जनम जनम का साथ।
मेरे सर पर रख गिरधारी, अपने दोनों ये हाथ॥

झुलस रहें है गम की धुप में, प्यार की छाया कर दे तू।
बिन मांझी के नाव चले ना, अब पतवार पकड़ ले तू।
मेरा रस्ता रौशन कर दे, छाई अंधियारी रात॥

देना हो तो दीजिए, जनम जनम का साथ।
मेरे सर पर रख बनवारी, अपने दोनों ये हाथ॥

सुना है हमने शरणागत को, अपने गले लगाते हो।
ऐसा हमने क्या माँगा, जो देने से घबराते हो।
चाहे जैसे रख बनवारी, बस होती रहे मुलाक़ात॥

देना हो तो दीजिए जनम जनम का साथ।
मेरे सर पर रख गिरधारी, अपने दोनों ये हाथ॥

मेरे सर पर रख बनवारी
मेरे सर पर रख गिरधारी, अपने दोनों यह हाथ।
देना हो तो दीजिए, जनम जनम का साथ।
[11/2, 08:49] विरेन्द्र पाण्डेय जी: गुणेषु क्रियतां यत्न: किमाटोपै: प्रयोजनम् विक्रीयन्ते न घण्टाभि: गाव: क्षीरविवर्जिता:॥

स्वयं मे अच्छे गुणों की वॄद्धी करनी चहिए| दिखावा करके लाभ नही होता। दुध न देनेवाली गाय उसके गलेमे लटकी हुअी घंटी बजानेसे बेची नही जा सकती।

सर्वनाशे समुत्पन्ने ह्मर्धं त्यजति पण्डित: अर्धेन कुरुते कार्यं सर्वनाशो हि दु:सह: ।

जब सर्वनाश निकट आता है, तब बुद्धिमान मनुष्य अपने पास जो कुछ है उसका आधा गवानेकी तैयारी रखता है| आधेसे भी काम चलाया जा सकता है, परंतु सबकुछ गवाना बहुत दु:खदायक होता है।

को न याति वशं लोके मुखे पिण्डेन पूरित: मॄदंगो मुखलेपेन करोति मधुरध्वनिम्।

मुख खाद्य से भरकर किसको अंकीत नहि किया जा सकता। आटा लगानेसे मॄदुंग भी मधुर ध्वनि निकालता है।

परिवर्तिनि संसारे मॄत: को वा न जायते ।
स जातो येन जातेन याति वंश: समुन्न्तिम् ॥

नितीशतक 32 इस जीवन मॄत्यु के अखंडीत चक्र में जिस की मॄत्यु होती ह क्या उसका पुन: जन्म नही होता? परन्तु उसीका जन्म, जन्म होता है जिससे उसके कुल का गौरव बढता है ।

सर्वार्थसंभवो देहो जनित: पोषितो यत: ।
न तयोर्याति निर्वेशं पित्रोर्मत्र्य: शतायुषा ॥

एक सौ वर्ष की आयु प्रााप्त हुआ मनुष्य देह भी अपने माता पिता के ऋणोंसे मुक्त नही होता । जो देह चार पुरूषार्थोंकी प्रााप्ती का प्रामुख साधन ह,ै उसका निर्माण तथा पोषण जिन के कारण हुआ है, उनके ऋण से मुक्त होना असंभव है | श्रीमदभागवत 10|45|5

शरदि न वर्षति गर्जति वर्षति वर्षासु नि:स्वनो मेघ: नीचो वदति न कुरुते न वदति सुजन: करोत्येव

शरद ऋतुमे बादल केवल गरजते है, बरसते नही|वर्षा ऋतुमै बरसते है, गरजते नही। नीच मनुश्य केवल बोलता है, कुछ करता नही|परन्तु सज्जन करता है, बोलता नही।

यदा न कुरूते भावं सर्वभूतेष्वमंगलम् ।
समदॄष्टेस्तदा पुंस: सर्वा: सुखमया दिश: ॥

जो मनुष्य किसी भी जीव के प्राती अमंगल भावना नही रखता, जो मनुष्य सभी की ओर सम्यक् दॄष्टीसे देखता है, ऐसे मनुष्य को सब ओर सुख ही सुख है । श्रीमदभागवत 9|15|15

अहं च त्वं च राजेन्द्र लोकनाथौ उभावपि ।
बहुव्रीहिरहं राजन् षष्ठीतत्पुरूषो भवान ॥

एक सन्यासी राजा से कहता है, “हे राजन्, मै और आप दोनों लोकनाथ है ।
अंतर इतना ही है कि मै बहुव्रीह समास हूँ तो आप षष्ठी तत्पुरूष हो !”

यावत् भ्रियेत जठरं तावत् सत्वं हि देहीनाम् ।
अधिकं योभिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति ॥

मनुस्मॄती, महाभारत अपने स्वयम के पोषण के लिए जितना धन आवश्यक है उतने पर ही अपना अधिकार है । यदि इससे अधिक पर हमने अपना अधिकार जमाया तो यह सामाजिक अपराध है तथा हम दण्ड के पात्र है ।

विपदी धैर्यमथाभ्युदये क्षमा सदसि वाक्पटुता युधि विक्रम: ।
यशसि चाभिरूचिव्र्यसनं श्रुतौ प्रकॄतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम् ॥

आपात्काल मे धेेैर्य , अभ्युदय मे क्षमा , सदन मे वाक्पटुता , युद्ध के समय बहादुरी , यशमे अभिरूचि , ज्ञान का व्यसन ये सब चीजे महापुरूषों मे नैसर्गिक रूप से पायी जाती हैं ।

आस्ते भग आसीनस्योर्ध्वस्तिष्ठति तिष्ठतः । शेते निपद्यमानस्य चराति चरतो भगश्चरैवेति ॥

जो मनुश्य (कुछ काम किए बिना) बैठता है, उसका भाग्य भी बैठता है । जो खडा रहता है, उसका भाग्य भी खडा रहता है । जो सोता है उसका भाग्य भी सोता है और जो चलने लगता है, उसका भाग्य भी चलने लगता है । अर्थात कर्मसेही भाग्य बदलता है ।(ऐतरेय ब्राह्मण, 3.3)

श्रमेण दु:खं यत्किन्चिकार्यकालेनुभूयते । कालेन स्मर्यमाणं तत् प्रामोद ॥

काम करते समय होनेवाले कष्ट के कारण थोडा दु:ख तो होता है । परन्तु भविष्य में उस काम का स्मरण हुवा तो निश्चित ही आनंद होता है ।

स्वभावं न जहात्येव साधुरापद्गतोऽपि सन् ।
कर्पूर: पावकस्पॄष्ट: सौरभं लभतेतराम् ॥

अच्छी व्यक्ति आपत्काल में भी अपना स्वभाव नहीं छोडती है , कर्पूर अग्निके स्पर्श से अधिक खुशबू निर्माण करता है।

खद्योतो द्योतते तावद् यवन्नोदयते शशी ।
उदिते तु सहस्रांशौ न खद्योतो न चन्द्रमा: ॥

जब तक चन्द्रमा उगता नही, जुगनु (भी) चमकता है । परन्तु जब सुरज उगता है तब जुगनु भी नही होता तथा चन्द्रमा भी नही (दोनो सुरज के सामने फीके पडते है |

वनेऽपि सिंहा मॄगमांसभक्षिणो बुभुक्षिता नैव तॄणं चरन्ति ।
एवं कुलीना व्यसनाभिभूता न नीचकर्माणि समाचरन्ति ॥

जंगल मे मांस खानेवाले शेर भूक लगने पर भी जिस तरह घास नही खाते, उस तरह उच्च कुल मे जन्मे हुए व्यक्ति (सुसंस्कारित व्यक्ति) संकट काल मे भी नीच काम नही करते ।

यत्र नार्य: तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: ।
यत्र एता: तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्र अफला: क्रिया: ॥

जहां स्त्रीयोंको मान दिया जाता है तथा उनकी पूजा होती है वहां देवताओंका निवास रहता है ।
परन्तू जहां स्त्रीयों की निंदा होती है तथा उनका सम्मान नही किया जाता वहां कोइ भी कार्य सफल नही होता l
[11/2, 13:09] विरेन्द्र पाण्डेय जी: *🌹 श्री कृष्ण स्तुति🌹*
*श्रीनिवासा गोविंदा,श्री वेंकटेशा गोविंदा,*
*भक्त वत्सल गोविंदा ,भागवता प्रिय गोविंदा!*

*नित्य निर्मल गोविंदा,नीलमेघ श्याम गोविंदा,*
*गोविंदा हरि गोविंदा,गोकुल नंदन गोविंदा!*

*पुराण पुरुषा गोविंदा, पुंडरीकाक्ष गोविंदा,*
*नंद नंदना गोविंदा,नवनीत चोरा गोविंदा!*

*पशुपालक श्री गोविंदा,पाप विमोचन गोविंदा,*
*दुष्ट संहार गोविंदा,दुरित निवारण गोविंदा!*

*गोविंदा हरि गोविंदा,गोकुल नंदन गोविंदा,*
*शिष्ट परिपालक गोविंदा,कष्ट निवारण गोविंदा!*

*वज्र मकुटधर गोविंदा,वराह मूर्ती गोविंदा,*
*गोपीजन लोल गोविंदा, गोवर्धनोद्धार गोविंदा!*

*दशरध नंदन गोविंदा, दशमुख मर्धन गोविंदा,*
*गोविंदा हरि गोविंदा,गोकुल नंदन गोविंदा!*

*पक्षि वाहना गोविंदा, पांडव प्रिय गोविंदा,*
*मत्स्य कूर्म गोविंदा,मधु सूधना हरि गोविंदा!*

*वराह नृसिंह गोविंदा,वामन भृगुराम गोविंदा,*
*बलरामानुज गोविंदा, बौद्ध कल्किधर गोविंदा!*

*गोविंदा हरि गोविंदा,गोकुल नंदन गोविंदा,*
*वेणु गान प्रिय गोविंदा, वेंकट रमणा गोविंदा!*

*सीता नायक गोविंदा, श्रितपरिपालक गोविंदा,*
*दरिद्रजन पोषक गोविंदा,धर्म संस्थापक गोविंदा!*

*अनाथ रक्षक गोविंदा, आपध्भांदव गोविंदा,*
*गोविंदा हरि गोविंदा,गोकुल नंदन गोविंदा!*

*शरणागतवत्सल गोविंदा, करुणा सागर गोविंदा,*
*कमल दलाक्षा गोविंदा, कामित फलदात गोविंदा!*

*पाप विनाशक गोविंदा, पाहि मुरारे गोविंदा,*
*श्रीमुद्रांकित गोविंदा, श्रीवत्सांकित गोविंदा!*

*गोविंदा हरि गोविंदा, गोकुल नंदन गोविंदा,*
*धरणी नायक गोविंदा,दिनकर तेजा गोविंदा!*

*पद्मावती प्रिय गोविंदा,प्रसन्न मूर्ते गोविंदा,*
*अभय हस्त गोविंदा,अक्षय वरदा गोविंदा!*

*शंख चक्रधर गोविंदा,सारंग गदाधर गोविंदा,*
*गोविंदा हरि गोविंदा,गोकुल नंदन गोविंदा!*

*विराज तीर्थ गोविंदा,विरोधि मर्धन गोविंदा,*
*सालग्राम हर गोविंदा,सहस्र नाम गोविंदा!*

*लक्ष्मी वल्लभ गोविंदा, लक्ष्मणाग्रज गोविंदा,*
*कस्तूरि तिलक गोविंदा, कांचनांबरधर गोविंदा!*

*गोविंदा हरि गोविंदा,गोकुल नंदन गोविंदा,*
*गरुड वाहना गोविंदा,गजराज रक्षक गोविंदा!*

*वानर सेवित गोविंदा,वारथि बंधन गोविंदा,*
*एडु कोंडल वाडा गोविंदा, एकत्व रूपा गोविंदा!*

*रामकृष्णा गोविंदा, रघुकुल नंदन गोविंदा,*
*गोविंदा हरि गोविंदा, गोकुल नंदन गोविंदा!*

*प्रत्यक्ष देव गोविंदा,परम दयाकर गोविंदा,*
*वज्र मुकुटदर गोविंदा,वैजयंति माल गोविंदा!*

*वड्डी कासुल वाडा गोविंदा, वासुदेव तनया गोविंदा,*
*बिल्वपत्रार्चित गोविंदा,भिक्षुक संस्तुत गोविंदा!*

*गोविंदा हरि गोविंदा,गोकुल नंदन गोविंदा,*
*स्त्री पुं रूपा गोविंदा, शिवकेशव मूर्ति गोविंदा!*

*ब्रह्मानंद रूपा गोविंदा,भक्त तारका गोविंदा,*
*नित्य कल्याण गोविंदा,नीरज नाभा गोविंदा!*

*हति राम प्रिय गोविंदा,हरि सर्वोत्तम गोविंदा,*
*गोविंदा हरि गोविंदा,गोकुल नंदन गोविंदा!*

*जनार्धन मूर्ति गोविंदा,जगत् साक्षि रूपा गोविंदा,*
*अभिषेक प्रिय गोविंदा, अभन्निरासाद गोविंदा!*

*नित्य शुभात गोविंदा,निखिल लोकेशा गोविंदा,*
*गोविंदा हरि गोविंदा,गोकुल नंदन गोविंदा!*

*आनंद रूपा गोविंदा,अध्यंत रहित गोविंदा,*
*इहपर दायक गोविंदा,इपराज रक्षक गोविंदा!*

*पद्म दलक्ष गोविंदा,पद्मनाभा गोविंदा,*
*गोविंदा हरि गोविंदा,गोकुल नंदन गोविंदा!*

*तिरुमल निवासा गोविंदा, तुलसी वनमाल गोविंदा,*
*शेषशायी गोविंदा, शेषाद्रिनीलय गोविंदा!*

*श्री श्रीनिवासा गोविंदा, श्री वेंकटेशा गोविंदा,*
*गोविंदा हरि गोविंदा, गोकुल नंदन गोविंदा!*

*श्री राधे कृष्ण:शरणं ममः*
🙏🏻🌷🙏🏻
[11/2, 15:03] ‪+1 (562) 965-8399‬: 🥀ॐ श्री हरि - आज का भगवद चिन्तन ॥
02-11-2017
🍀   स्वाभिमान का मतलब अपनी बात पर अड़े रहना नहीं अपितु सत्य का साथ ना छोड़ना है। दूसरों को नीचा दिखाते हुए अपनी बात को सही सिद्ध करने का प्रयास करना यह स्वाभिमानी का लक्षण नहीं अपितु दूसरों की बात का यथायोग्य सम्मान देते हुए किसी भी दबाब में ना आकर सत्य पर अडिग रहना यह स्वाभिमान है।
🍀   अभिमानी वह है जो अपने अहंकार के पोषण के लिए दूसरों को कष्ट देना पसंद करता है। स्वाभिमानी वह है जो सत्य के रक्षण के लिए स्वयं कष्टों का वरण कर ले।
🍀   मै जो कह रहा हूँ वही सत्य है, यह अभिमानी का लक्षण है और जो सत्य होगा मै उसे स्वीकार कर लूँगा यह स्वाभिमानी का लक्षण है। अपने आत्म गौरव की प्रतिष्ठा जरुर बनी रहनी चाहिए मगर किसी को अकारण, अनावश्यक झुकाकर, गिराकर या रुलाकर नहीं।
🍀   अमेरीका डाउनी से स्वामी चंद़प़काशदासजी का जय श्री स्वामिनारायण !
[11/3, 04:51] ‪+91 83496 55108‬: ------जय महादेव-----
................................
अरुण दुबे--8349655108

सुखमिच्छति चेत् प्राग्यो विधिवत्विषयान्त्यजेत्।
विषवद् विषयानाहुर्विषयैर्यैर्निहन्यते।।

जनो विषयिणा साकं वार्तात:पतति क्षणात्।
विषयं प्राहुराचार्या: सितालिपतेन्द्रवारुणीम्।।
------प्रणाम------
------------शुभ अरूणोदय--
[11/3, 07:22] ‪+91 83496 55108‬: *प्रात: नमन*

*स्वदेशं पतितं कष्टं,दूरस्थः लोकयन्ति ये*
*नैव च प्रतिकुर्वन्ति,ते नरा: शत्रुनन्दनाः*

भावार्थ- देश पर संकट के समय, जो मनुष्य दूर खड़े रहते हैं, राष्ट्र के सहयोग हेतु कोई प्रतिक्रिया अथवा योगदान नहीं करते, वे लोग शत्रु को आनन्द देने वाले होते हैं, अर्थात देश के शत्रु ही होते हैं। ऐसे व्यक्ति घृणा के पात्र हैं। 

*सुप्रभात*
[11/3, 08:32] मार्कण्डेय जी: *🙏🏼🌻🌹  "आजका सुविचार"*     
*वने रणेशत्रुजलाग्निमध्ये*
*महार्णवे पर्वतमस्तके वा*।
*सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितं वा*
*रक्षन्ति पुण्यानि पुरा कृतानि*।।
*भावार्थः*- पूर्व जन्मों में किये गए सत्कर्म ही वन में, संग्राम भूमि में, शत्रु, जल और आग के मध्य में, महासागर में अथवा पर्वत के शिखर पर सुप्तावस्था में प्रमाद की दशा में अथवा आपद्ग्रस्त होने पर मनुष्य की रक्षा करते हैं अर्थात् मनुष्य के सर्वोत्कर्ष सहायक उसके अपने पूर्वकृत सत्कर्म ही होते हैं, अतः शुभकर्म मनुष्यों को करना चाहिए । 🙏🏼🌻🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[11/3, 08:43] मार्कण्डेय जी: *🙏🏼🌻🌹शुभ प्रभात*
*जरा रूपं हरति, धैर्यमाशा*
      *मॄत्यु:प्राणान् , धर्मचर्यामसूया ।*
*क्रोध: श्रियं शीलमनार्यसेवा*
       *ह्रियं काम: , सर्वमेवाभिमान: ॥*
*भावार्थ -* वृद्धावस्था  से रूप का  हरण होता है, आशा एवम् तॄष्णा से धैर्य का,  मॄत्यु से प्राण का हरण होता है । मत्सर, ईर्ष्या से धर्माचरण का, क्रोध से संपत्ति का तथा दुष्टों की सेवा करने से शील का नाश होता है। काम वासना से लज्जा का और अभिमान से तो सभी गुणों का अन्त हो जाता है ।🙏🏼🌻🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[11/3, 09:39] पं विजय जी: वर्तमान से ही सुख लेने का प्रयास कीजिए ....
.
भविष्य बहुत कपटी होता है,
.
वो तो केवल आश्वासन देता है,
गारंटी नही.....!!!
.
शुभप्रभात
[11/3, 09:56] ‪+91 97586 40209‬: अनधिकारी के साधनसम्पत्तिहीन वासनावासित अन्त:करणमे ब्रह्मबिद्या का प्रकाश नही होता।जिस प्रकार मलिन वस्त्र पर रंग नहीं चढता और जिस प्रकार बंजर भूमि मे, जहां लंबी-लंबी जडों वाली घास पहले से जमी हुई है, धान्य बीज अंकुरित नहीं होता और कुछ  अंकुरित हो भी जाय तो वृद्धिड्ग्तिहोकर फलित नही होता ।
(उपनिषद-अंक)
[11/3, 12:28] ‪+1 (562) 965-8399‬: 🌹ॐ श्री परमान्दाय नम: - आज का भगवद चिन्तन ॥
03-11-2017
🍓  जीवन में बुराई अवश्य हो सकती है मगर जीवन बुरा कदापि नहीं हो सकता। जीवन एक अवसर है श्रेष्ठ बनने का, श्रेष्ठ करने का, श्रेष्ठ पाने का। जीवन की दुर्लभता जिस दिन किसी की समझ में आ जाएगी उस दिन कोई भी व्यक्ति जीवन का दुरूपयोग नहीं कर सकता।
🍓  जीवन वो फूल है जिसमें काँटे तो बहुत हैं मगर सौन्दर्य की भी कोई कमी नहीं। ये और बात है कुछ लोग काँटो को कोसते रहते हैं और कुछ सौन्दर्य का आनन्द लेते हैं।
जीवन को बुरा सिर्फ उन लोगों के द्वारा कहा जाता है जिनकी नजर फूलों की बजाय काँटो पर ही लगी रहती है। जीवन का तिरस्कार वे ही लोग करते हैं जिनके लिए यह मूल्यहीन है।
🍓  जीवन में सब कुछ पाया जा सकता है मगर सब कुछ देने पर भी जीवन को नहीं पाया जा सकता है। जीवन का तिरस्कार नहीं अपितु इससे प्यार करो। जीवन को बुरा कहने की अपेक्षा जीवन की बुराई मिटाने का प्रयास करो, यही समझदारी है।
🍓  अमेरीका डाउनी से स्वामी चंद़प़काशदासजी का जय श्री स्वामिनारायण!
[11/3, 12:59] ‪+91 98294 24183‬: 🙏🏻🕉🕉🕉🕉🕉🕉🙏🏻

श्री रामचरित मानस में वर्णन आता है कि श्रीभरत जब भगवान राम का राज्याभिषेक करने के लिए चित्रकूट आते हैं तो अन्य विविध आवश्यक सामग्रियों के साथ-साथ सभी तीर्थों का जल भी अपने साथ लाते हैं । पर जब यह निर्णय हो गया कि श्रीभरत को अयोध्या लौटना है तो वे भगवान राम से प्रश्न करते हैं कि प्रभु यह तीर्थों के जल जो लाया  गया है  इसका  क्या उपयोग करूँ ? भगवान श्री राम कहते हैं कि भरत ! तुम जाकर महर्षि अत्रि से निवेदन करो, वे ही इस जल का सदुपयोग बतायेंगे । श्रीभरत महर्षि अत्रि से पास आते हैं और महर्षि उस जल  को एक कूप में स्थापित करवा देते हैं । आज भी चित्रकूट की यात्रा में जाने वाले यात्री बड़ी श्रद्धा से इस कूप के भी दर्शनार्थ जाते हैं । अत्रिजी ने जल को स्थापित करवाते हुए कहा कि जो यहाँ पर प्रेम से स्नान करेगा उसका जीवन पवित्र होगा और उसमें रामप्रेम का संचार होगा । इस कूप का नाम 'भरत कूप' होगा । पर महर्षि साथ ही एक बात कहना नहीं भूलते कि यद्यपि इसका नाम भरतकूप होगा, पर तुम्हें कोई भ्रम न हो जाए इसलिए मैं तुम्हें यह भी बता देना चाहता हूँ कि यह तीर्थ तो अनादि काल से है पर लोग इसे बीच में एक समय के अन्तराल में भूल गए । अब तुम्हारे द्वारा पुनर्स्थापना से विश्व का उपकार हो गया । इसका भी संकेत यही है कि जो कुछ है 'अनादि' है । और इस 'अनादित्व' को समझ लें तो अभिमान कैसा
तीर्थोँ का जल रामजी के लिये लाया गया उपयोग के लिये प्रभू ने भक्त का नाम लिया की महर्षी अत्री से पूछो
व महर्षी ने भी भक्त की महिमा का ही प्रतिपादन करते हुवे कूप मे स्थापितं करवाया एवँ भरत कूप नाम रखा 💐💐💐💐💐
??ध्यान देना कि राम कूप?? 💐नाम नही रखा क्योँकी  भक्त की महिमा बडाना सँत व भगवंत दोनो का ही काम है महर्षी प्रभू की भक्त वत्सलता के भाव को समझ गये ।
पँ हरभजन शर्मा कोटा राजस्थान
💐💐💐💐💐💐💐💐
[11/3, 16:01] मार्कण्डेय जी: *🙏🏼🌻🌹सत्कर्म करते समय क्यों दी जाती है दक्षिणा ?*
*महालक्ष्मी का कलावतार हैं ‘दक्षिणा’*
देवी ‘दक्षिणा’ महालक्ष्मीजी के दाहिने कन्धे (अंश) से प्रकट हुई हैं इसलिए दक्षिणा कहलाती हैं। ये कमला (लक्ष्मी) की कलावतार व भगवान विष्णु की शक्तिस्वरूपा हैं। दक्षिणा को शुभा, शुद्धिदा, शुद्धिरूपा व सुशीला–इन नामों से भी जाना जाता है। ये उपासक को सभी यज्ञों, सत्कर्मों का फल प्रदान करती हैं।
*श्रीकृष्ण और दक्षिणा का सम्बन्ध*
गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण को अत्यन्त प्रिय सुशीला नाम की एक गोपी थी जो विद्या, रूप, गुण व आचार में लक्ष्मी के समान थी। वह श्रीराधा की प्रधान सखी थी। भगवान श्रीकृष्ण का उससे विशेष स्नेह था। श्रीराधाजी को यह बात पसन्द न थी और उन्होंने भगवान की लीला को समझे बिना ही सुशीला को गोलोक से बाहर कर दिया गोलोक से च्युत हो जाने पर सुशीला कठिन तप करने लगी और उस कठिन तप के प्रभाव से वे विष्णुप्रिया महालक्ष्मी के शरीर में प्रवेश कर गयीं। भगवान की लीला से देवताओं को यज्ञ का फल मिलना बंद हो गया। घबराए हुए सभी देवता ब्रह्माजी के पास गए। ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु का ध्यान किया। भगवान विष्णु ने अपनी प्रिया महालक्ष्मी के विग्रह से एक अलौकिक देवी ‘मर्त्यलक्ष्मी’ को प्रकट कर उसको दक्षिणा’ नाम दिया और ब्रह्माजी को सौंप दिया।
*यज्ञपुरुष, दक्षिणा और फल*
ब्रह्माजी ने यज्ञपुरुष के साथ दक्षिणा का विवाह कर दिया। देवी दक्षिणा के ‘फल’ नाम का पुत्र हुआ। इस प्रकार भगवान यज्ञ अपनी पत्नी दक्षिणा व पुत्र फल से सम्पन्न होने पर कर्मों का फल प्रदान करने लगे। इससे देवताओं को यज्ञ का फल मिलने लगा। इसीलिए शास्त्रों में दक्षिणा के बिना यज्ञ करने का निषेध है। दक्षिणा की कृपा के बिना प्राणियों के सभी कर्म निष्फल हो जाते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश व अन्य देवता भी दक्षिणाहीन कर्मों का फल देने में असमर्थ रहते हैं।
*दक्षिणाहीन कर्म हो जाता है निष्फल*
बिना दक्षिणा के किया गया सत्कर्म राजा बलि के पेट में चला जाता है। पूर्वकाल में राजा बलि ने तीन पग भूमि के रूप में त्रिलोकी का अपना राज्य, जब भगवान वामन को दान कर दिया तब भगवान वामन ने बलि के भोजन (आहार) के लिए दक्षिणाहीन कर्म उसे अर्पण कर दिया। श्रद्धाहीन व्यक्तियों द्वारा श्राद्ध में दी गयी वस्तु को भी बलि भोजन रूप में ग्रहण करते हैं।
*कर्म की समाप्ति पर तुरन्त देनी चाहिए दक्षिणा*
मनुष्य को सत्कर्म करने के बाद तुरन्त दक्षिणा देनी चाहिए तभी कर्म का तत्काल फल प्राप्त होता है। यदि जानबूझकर या अज्ञान से धार्मिक कार्य समाप्त हो जाने पर ब्राह्मण को दक्षिणा नहीं दी जाती, तो दक्षिणा की संख्या बढ़ती जाती है, साथ ही सारा कर्म भी निष्फल हो जाता है। संकल्प की हुई दक्षिणा न देने से (ब्राह्मण के अधिकार का धन रखने से) मनुष्य रोगी व दरिद्र हो जाता है व उससे लक्ष्मी, देवता व पितर तीनों ही रुष्ट हो जाते हैं।
*शास्त्रों में दक्षिणा के बहुत ही अनूठे उदाहरण देखने को मिलते हैं*।
श्रीकृष्ण और बलराम दोनों भाईयों ने गुरु सान्दीपनि के आश्रम में रहकर 64 दिनों के अल्पसमय में सम्पूर्ण शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त की । शिक्षा पूरी करने के पश्चात श्रीकृष्ण और बलराम ने गुरु सान्दीपनि से गुरुदक्षिणा माँगने की प्रार्थना की । तथा दक्षिणा स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण ने मृत गुरु पुत्र को वापिस जीवित लाकर गुरु चरणों में समर्पित किया ।🙏🏼🌻🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[11/3, 18:42] ‪+91 98490 91808‬: रामायण को सबूत के तौर पर पेश कर एक द्वीप को इंडोनेशिया ने अपना हिस्सा साबित किया था

इंडोनेशिया दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में स्थित एक देश है जो करीब सत्रह हज़ार द्वीपों का समूह है. इस देश में आज दुनिया की सबसे अधिक मुस्लिम आबादी निवास करती है।

भारत की तरह ही यह देश भी तकरीबन साढ़े तीन सौ साल से अधिक समय तक डचों के अधीन थी, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसे डचों से आजादी मिली। डचों से आजादी के लिये इण्डोनेशियाई लोगों के संघर्ष के दौरान एक बड़ी रोचक घटना हुई। इंडोनेशिया के कई द्वीपों को आजादी मिल गई थी पर एक द्वीप पर डच अपना कब्जा छोड़ने को तैयार नहीं थे. डचों का कहना था कि इंडोनेशिया इस बात का कोई प्रमाण नहीं दे पाया है कि यह द्वीप कभी उसका हिस्सा रहा है, इसलिये हम उसे छोड़ नहीं सकते।

जब डचों के तरफ से ये बात उठी तो इंडोनेशिया यह मामला लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ चला गया. संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इंडोनेशिया को सबूत पेश करने को कहा तो इंडो लोग अपने यहाँ की प्रचलित रामकथा के दस्तावेज लेकर वहां पहुँच गये और कहा कि जब सीता माता की खोज करने के लिये वानरराज सुग्रीव ने हर दिशा में अपने दूत भेजे थे तो उनके कुछ दूत माता की खोज करते-करते हमारे इस द्वीप तक भी पहुंचे थे पर चूँकि वानरराज का आदेश था कि माता का खोज न कर सकने वाले वापस लौट कर नहीं आ सकते तो जो दूत यहाँ इस द्वीप पर आये थे वो यहीं बस गए और उनकी ही संताने इन द्वीपों पर आज आबाद है और हम उनके वंशज है।

बाद में उन्हीं दस्तावेजों को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने वो द्वीप इंडोनेशिया को सौंप दिया. इसका अर्थ ये है कि हिन्दू संस्कृति के चिन्ह विश्व के हर भूभाग में मिलते हैं और इन चिन्हों में साम्यता ये है कि श्रीराम इसमें हर जगह हैं. भारत के सुदुर पूर्व में बसे जावा, सुमात्रा, मलेशिया और इंडोनेशिया हो या दक्षिण में बसा श्रीलंका या फिर चीन, मंगोलिया या फिर मध्य-पूर्व के देशों के साथ-साथ अरब-प्रायद्वीप के देश, राम नाम और रामकथा का व्याप किसी न किसी रूप में हर जगह है।

अमेरिका और योरोप की माया, इंका या आयर सभ्यताओं में भी राम हैं तो मिश्री लोककथायें भी राम और रामकथा से भरी पड़ी हैं. इटली, तुर्की, साइप्रस और न जाने कितने देश हैं जहाँ राम-कथा आज भी किसी न किसी रूप में सुनी और सुनाई जाती है। भारतीय संस्कृति के विश्व-संचार का सबसे बड़ा कारण राम हैं. राम विष्णु के ऐसे प्रथम अवतार थे जिनके जीवन-वृत को कलम-बद्ध किया गया ताकि दुनिया उनके इस धराधाम को छोड़ने के बाद भी उनके द्वारा स्थापित आदर्शों से विरत न हो और मानव-जीवन, समाज-जीवन और राष्ट्र-जीवन के हरेक पहलू पर दिशा-दर्शन देने वाला ग्रन्थ मानव-जाति के पास उपलब्ध रहे. इसलिये हरेक ने अपने समाज को राम से जोड़े रखा.

आज दुनिया के देशों में भारत को बुद्ध का देश तो कहा जाता है पर राम का देश कहने से लोग बचते हैं. दलील है कि बुद्ध दुनिया के देशों को भारत से जोड़ने का माध्यम हैं पर सच ये है कि दुनिया में बुद्ध से अधिक व्याप राम का और रामकथा का है. भगवान बुद्ध तो बहुत बाद के कालखंड में अवतरित हुए पर उनसे काफी पहले से दुनिया को श्रीराम का नाम और उनकी पावन रामकथा ने परस्पर जोड़े रखा था और चूँकि भारत-भूमि को श्रीराम अवतरण का सौभाग्य प्राप्त था इसलिये भारत उनके लिये पुण्य-भूमि थी. राम भारत भूमि को उत्तर से दक्षिण तक एक करने के कारण राष्ट्र-नायक भी हैं. " भारत को दुनिया में जितना सम्मान राम और रामकथा ने दिलवाया है, इतिहास में उनके सिवा और कौन दूसरा है जो इस गौरव का शतांश हासिल करने योग्य भी है ? "

आज जो लोग राम को छोड़कर भारत को विश्वगुरु बनाने का स्वप्न संजोये बैठे हैं उनसे सीधा प्रश्न है राम के बिना कैसा भारत और कैसी गुरुता ? राम को छोड़कर किस आदर्श-राज्य की बात ? राम की अयोध्या को पददलित और उपेक्षित कर भारत के कल्याण की कैसी कामना ? राम का नाम छोड़कर वंचितों और वनवासियों के उद्धार का कैसा स्वप्न ? यहाँ भारत में तो कांग्रेस ने राम को ही काल्पनिक बता दिया, वामपंथी तत्व राम को मानते ही नहीं, वहीँ इंडोनेशिया ने रामायण को सबूत के तौर पर पेश किया और द्वीप को इंडोनेशिया का हिस्सा साबित किया, और वो द्वीप आज इंडोनेशिया का है
[11/3, 19:44] ‪+91 97545 35118‬: आज दिन का मेरे लिए बहुत ही विशेष है

क्यो की आज के दिन ठाकुर जी पर चड़ी हुई तुलसी शिव जी पर चढ़ती है और शिव जी पर चढ़ा हुआ वेल पत्र ठाकुर जी पर चढ़ता है

मेरा जीवन कुछ ऐसा ही है

कभी महाकाल की मस्ती में मस्त रहता हूं 
तोकभी  बिहारी जी चर्चा में व्यस्त रहता हूं

(पं. माधवानन्द)
[11/3, 20:39] ‪+91 83496 55108‬: जय महादेव ----
------अरुण 8349655108
एक व्यक्ति ने  से सवाल पूछा-
"वृद्धाश्रम"" में रहने वाले माता-पिता की मृत्यु होने पर परिवार वालों को कितने दिन का सूतक लगता है?
गुरुदेव- ने बड़ा सुन्दर जवाब दिया-
जिस व्यक्ति ने अपने माता -पिता को वृद्धाश्रम भेज दिया है, उसे तो जीवन भर का सूतक लग गया है,और वह मन्दिर जाने लायक और शुभ कार्य करने लायक ही नहीं है।।
ऐसे कृतघ्नी लोगो का समाज को भी वहिष्कार करना चाहिये।।
[11/3, 21:07] ‪+91 98294 24183‬: 🙏🏻🕉🕉🕉🕉🕉🕉🙏🏻    ब्राह्मण के गुण व नेताओँ के गुण
💐💐💐💐💐💐💐💐
    छिपकली रातभर हजारो कीड़ो-मकोड़े खाकर सुबहहोते ही
महापुरुषों की तस्वीर के पीछे
छिप जाती है
यही चरित्र भारत के नेताओँ का है, और इसी से जहर घोलते है
💐💐💐💐💐💐💐💐
श्री यज्ञनारायण भगवान की जय
💐💐💐💐💐💐💐💐
यज्ञों का फल सभी को सर्वत्र देखने को मिला है
जो आज सम्पूर्ण राष्ट में महामारी जेसा डेंगू अनजाने वाली कई बीमारियां  के कारण अस्पताल में जनमानस  पीड़ित है
अनादिकाल से ब्राह्मण एक ऐसा कर्मठ रहा जिसने परमार्थ को अपना  सर्वस्व समझा,
काल बदला व्यक्ति के विचार बदले ,जिससे ब्राह्मण कि शक्ति को कमज़ोर मानस के लोग नही जान सके
ब्राहमण देवज्ञ  विशेष जड़ी बूटियां जो सर्वज्ञ  हो वनस्पति का ज्ञान रखने वाले द्बिजोत्तमगण
उनका मिश्रण कर प्रत्येक नगर ,घर ,ग्राम,ढाणी, कस्बे में यज्ञों का आयोजनों  से लोगो को प्रेरित कर या स्वम् उक्त आयोजनों को करेँ व करवावेँ जिससें अनेक रोगोँ का विनाश होता है
वातावरण शुद्ब होता है
वनस्पति विज्ञान है समस्त जहरीले वातावरण को नष्ट करता है  अब जनमानस मे आधुनिक मानसिकता के कारण यज्ञ से लगाव विश्वास कम रह गया है
इसलिये भारत भूमी पर कम वर्षा व वातावरण मे किटानूओँ सहित दूषित हो गया ।
जनता अनेक नये नये  रोगोँ का सामना कर रही है
जिसे मिटाने की क्षमता देवज्ञोँ मे है 
इसे प्रारँभ करेँ तो जन कल्याण हो सकता है
नेता जहर घोलता है
ब्राह्मण अमृत वर्षा करता है
मे विप्र शक्ती को नमन करता हूँ
पँ हरभजन शर्मा कोटा राज०
[11/4, 06:48] ‪+91 83496 55108‬: !! जय महादेव!!
--अरुण 83409655108---
कुसङ्गा बहवो लोके स्त्री सङ्गस्तत्र चाधिक:।
उद्धारेत्सकलैर्बन्धैर्न स्त्रीसंगात प्रमुच्यते।।
............
लोहदारुमयै:पाशैर्दृढ़म् बद्धोपि प्रमुच्यते।
स्त्र्यादिपाशुसम्बद्धो मुच्यते न कदाचिन्।।
............
वर्धन्ते विषयाःशश्वन्महाबन्धनकारिणः।
विषयाक्रान्तमनसः स्वप्ने मोक्षोपि दुर्लभः।।
:::::::::::प्रणाम:::::::::::
-----शुभ अरूणोदय---
[11/4, 08:41] मार्कण्डेय जी: *🙏🏼🌻🌹आज का सुविचार*
*आयुः श्रियं यशो धर्मं*
     *लोकानाशिष एव च*।
*हन्ति श्रेयांसि सर्वाणि*
     *पुंसो महदतिक्रमः*।।
*भावार्थ*:- बडों का अपमान देवताओं का अनादर गुरू जनों का तिरस्कार करने वाले मनुष्य के आयु संपत्ति यश धर्म लोगों की शुभ कामना इह लोक परलोक यानि कि जो भी कल्याण कारी उत्तम मार्ग या प्राप्य चीजें हैं वो सारी की सारी नष्ट हो जातीं हैं और वह अधो गति को चला जाता है। इसलिए मनुष्य को यत्न पूर्वक बडों का सम्मान माता पिता की सेवा और देवताओं की आराधना करते रहना चाहिए।🙏🏼🌻🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[11/4, 11:57] ओमीश: 🌺🙏🏻श्री मात्रे नमः 🌺🙏🏻
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है!! आचार्य ✍
[11/4, 13:21] पं अनिल ब: *बहुत मुश्किल नहीं हैं ज़िंदगी की सच्चाई समझना*

*जिस तराज़ू पर दूसरों को तौलते हैं उस पर कभी ख़ुद बैठ के देखिये।*

       🙏🏼 *जय महाँकाल* 🙏🏼
           🌹जय श्री कृष्णा🌹
               🌷राधे राधे🌷
[11/4, 13:53] ‪+1 (562) 965-8399‬: 🌹ॐ श्री घनश्यामाय नम: - आज का भगवद चिन्तन ॥
04-11-2017
🌸   जो काम धीरे बोलकर, मुस्कुराकर और प्रेम से बोलकर कराया जा सकता है उसे तेज आवाज में बोलकर और चिल्लाकर करवाना मूर्खों का काम है। और जो काम केवल गुस्सा दिखाकर हो सकता है, उसके लिए वास्तव में गुस्सा करना यह महामूर्खों का काम हैं।
🌸   अपनी बात मनवाने के लिए अपने अधिकार या बल का प्रयोग करना यह पूरी तरह पागलपन होता है। प्रेम ही ऐसा हथियार है जिससे सारी दुनिया को जीता जा सकता है । प्रेम की विजय ही सच्ची विजय है।
🌸   आज प्रत्येक घर में ईर्ष्या, संघर्ष, दुःख और अशांति का जो वातावरण है उसका एक ही कारण है और वह है प्रेम का अभाव। आग को आग नहीं बुझाती पानी बुझाता है। प्रेम से दुनिया को तो क्या दुनिया बनाने वाले तक को जीता जा सकता है। पशु -पक्षी भी प्रेम की भाषा समझते है। तुम प्रेम बाटों, इसकी खुशबू कभी ख़तम नहीं होती।
🌸    अमेरीका डाउनी से स्वामी चंद़प़काशदासजी का जय श्री स्वामिनारायण
[11/4, 14:27] ओमीश: दिल की बात.......

आज कल एक फैशन सा हो गया है वृंदावन जाना हर कोई कहता है भैया हम हर महीने जाते है भैया हम हर दो महीने मे जाते है और उनसे पुछो भैया क्या देखा वृंदावन मे तब उनका जवाब होता है सब कुछ जैसे सारे स्थानो के नाम तोते की तरहा रट रखे हो

उनसे पुछो कैसा लगा वृंदावन तो उनका जवाब होता है भैया भीड़ बहुत है गंदगी बहुत है लुट खसुट बहुत है पर लस्सी टिकी बहुत अच्छी मिलती है
तब दिल बहुत दुखता है अरे मूर्खो बिहारी जी के मोटे मोटे चंचल नैन तुमहे नहीं दिखते
सेवा कुंज का आलोकिक आनंद नही दिखता
निधिवन की रस वर्षा नहीं दिखती
तटिया स्थान की आलोकिक शांति नही दिखती
अरे किसी संत किसी रसिक के पास कुछ पल को बैठो तो सही जरा ब्रज रज को चखो तो सही स्नेह से किशोरी जी की तरफ तको तो सही कुछ पल को ही सही बृजवासी बनो तो सही
बस खाली के खाली ही रेस लगाने मे लगे हुए है!! आचार्य ✍
    
         👏👏*राधे राधे*👏👏
[11/4, 14:31] ‪+91 98896 25094‬: लहर और सागर
**************
एक दिन बोली लहर,
       कुछ मुस्करा सागर से यों,।
“तेरा ,मेरा साथ चिर ,
          कहती दुनिया ऐसा क्यों?

मैं तो दौड़ूँ ,उठती, गिरती,
        अठखेलियाँ करती फिरूँ,।
तू तो निश्चल ! गर्भ में
           शंख घोंघे जीव बहु।।

तू है सुन्दर मेरे से ही,
       मेरे बिन तु लगे भयानक,।
सब हैं अनुभव लेते मेरा,
      समझे नहीं वे तुझको तब।।”

बात सुन निज उर्मि की,
      विहँसि बोला जलधि तब,।
“भ्रम का पर्दा पड़ गया ,
       बोलती तू ऐसा जब।।

सागर को जब देखते ,
      नहिं  ध्यान तेरे पर है जाता,
मैं अकेला दीखता हूँ,।
       अनुभव में , उनके येआता ।

व्याप्त मैं , संपूर्ण मैं,
       तू बनी  मेरी  तरंग,।
मेरे स्फुरण से ही है , 
     उत्पत्ति प्रिये! कर मोह भंग।।

होती व्यक्त तू मेरे से,
    रहती खेले मेरे अंदर ,।
होती लय फिर मेरे में ,
      अस्तित्व तेरा मेरे से पर।।

तू मेरा स्वरूप है,
    तू है मेरी गति रूप ।
तू है  मेरी  शक्ति, प्रिये!
       मैं अरु तू एक रूप ।।

हो नहीं सकते अलग
     कभी, सोचकर देखो जरा ,
मैं नहीं तुझमें, मगर
          तू रहती मुझमें सदा।।”

“मेरा रूप मुझको खोजे ,
            मेरे ही अंदर रहकर ,।
है मेरी विचित्र लीला ,
        अनुभव करे वो श्रेष्ठ  नर ।।”
*********
[11/4, 16:03] ‪+91 70397 80394‬: एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया। रेस्टॉरेंट में बैठे दूसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे लेकिन वृद्ध का बेटा शांत था। खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया।
उनके कपड़े साफ़ किये, उनका चेहरा साफ़ किया, उनके बालों में कंघी की,चश्मा पहनाया और फिर बाहर लाया।
सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे।बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के साथ बाहर जाने लगा।
तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा " क्या तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ
अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? "
बेटे ने जवाब दिया" नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर
नहीं जा रहा। "
वृद्ध ने कहा " बेटे, तुम यहाँ छोड़ कर जा रहे हो,
प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद
(आशा)। "
आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसंद नहीँ करते
और कहते हैं क्या करोगे आप से चला तो जाता
नहीं ठीक से खाया भी नहीं जाता आप तो घर पर ही रहो वही अच्छा होगा.
क्या आप भूल गये जब आप छोटे थे और आप के माता पिता आप को अपनी गोद मे उठा कर ले जाया करते थे,
आप जब ठीक से खा नही पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी और खाना गिर जाने पर डाँट नही प्यार जताती थी
फिर वही माँ बाप बुढापे मे बोझ क्यो लगने लगते हैं???
माँ बाप भगवान का रूप होते है उनकी सेवा कीजिये और प्यार दीजिये...
क्योंकि एक दिन आप भी बूढ़े होगें।
Respect our Parents..आचार्य पं.कपिल पांडेय मुंबई मो नं.08840136935 /  07800966643
[11/4, 20:03] घनस्याम तिवारी जी: 🌺भजन में एक बड़ी बाधा विश्वास🌺यदि भगवान पर विश्वास करके उनके शरण हो जाय तो मनुष्य के सारा दोष समूल नष्ट हो जाय,पर एसी स्थिति सहज नही।क्षणविश्वासी,अल्पविश्वासी या साधारण लोग इस अवस्था से दूर रहते है।कुछ लोग भगवान की गुण,महिमा सुनकर विश्वास करते तो है,पर पुनः कई कारणों से लौट आते है।कई प्रकार बाधा उतपन्न होने के कारण रुक जाते है। उनमें मुख्य कारण पूर्वकर्मों के प्रतिबंध,वर्तमान काल के संग आदि भगवान पर विश्वास में बाधा उतपन्न कर देती है। जिसमे धन की चिंता एक प्रधान बाधा है,वह भी वह भी परिवार पालन के लिए धन नही।मूल कारण कामभोग परायणता है,जो मृत्युकाल तक नही छोडती।लोग सादा जीवन ब्यतीत नही करना चाहते,उच्च,श्रेष्ठ स्थिति के विपरीत जीवन जीना चाहते है,फलस्वरूप उन्हें रात दिन धन की चिंता लगी रहती है। वे भगवान और धर्म को भुल कर काम क्रोध परायण होकर अन्याय पूर्वक धन संग्रह में लग जाते है,पाप बटोरने में लग जाते है। हालाकि मानव चाहे तो प्रारब्ध या संचित प्रतिबंध को दूर कर सकता है-- संग बदलकर,अकर्तव्य कार्यो को छोड़कर,आवश्यकताओं को कमकर। जैसे-- दो कपड़ो से कम चल सकता है,पर छे सात रखते है,खाने में एक मिठाई से काम चल सकता है,पर दस बारह लेते है। छोटे मकान से भी काम चल सकता है,पर आलीशान मकान बनाते है।लोग हजारों शौके पाल रखे है,जिसमे पानी की तरह पैसा बहाते है। शादी,विवाह,जनेऊ,कर्णछेद,मरण आदि समारोह में पानी की तरह पैसा बहाते है।फैशन ने सबको तबाह कर रखा है।इन सारी अनर्थो का कारण हमारी कामभोग परायणता की वृद्धि है। इससे छूटने का एक मात्र उपाय है वैराग्यपूर्ण ईश्वरप्रायन्ता में भजन की आवश्यकता है।देश के लौकिक,पारलौकिक हित चाहने वाले मनुष्यो को चाहिए कि वे अपना खर्च घटाए,जीवन मे सादगी लाये,शादी,विवाह या अन्य सामाजिक खर्च कम करे। दहेज प्रथा को हटाए। धन नही अपितु परमात्मारूपी धन को बढ़ाए।पर अफशोस की आजकल लोग चारो ओर धन की पूजा कर रहे है,धन की चिंता कर रहे है। पूजा तो परमात्मा की होनी चाहिए,चिंता तो भगवान की होनी चाहिए। तभी एक सुंदर समाज का निर्माण होगा। प. घनश्याम तिवारी शाण्डिल्य जी 🙏🙏🙏
[11/4, 20:33] ‪+91 95548 67212‬: हे कान्हा हम तो समझते थे की जिसे अपनाते हो छोडते नही
पर आज क्यों ऐसा लग रहा की पास होकर भी दूर हो गये 
अरे मेरी खता तो बताते हम सुधरते या तेरे लिए जान दे देते
अब तक होश न था हम बेहोश थी तेरे आगोश,
जाने कब हाथ छुडाकर जाने लगे हम रोते रहे तुम निकल लिए
साँवरे......... साँवरे........ साँवरे.......... साँवरे
[11/4, 20:37] विरेन्द्र पाण्डेय जी: ==========================
🙏कविता द्वारा पर्यायवाची शब्द🙏
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सोम सुधाकर शशि राकेश
                          राजा  भूपति  भूप  नरेश
पानी अम्बु वारि या नीर
                     वात हवा और अनिल समीर
दिवा दिवस दिन या वासर
                       पर्वत  अचल  शैल महिधर
विश्व जगत जग भव संसार
                        घर गृह आलय या आगार

अग्नि पावक आग दहन
                          चक्षु  नेत्र  नयन  लोचन
विषधर सर्प या नाग भुजंग
                         घोड़ा घोटक अश्व तुरंग
हिरन कुरग सुरभी सारंग
                        गज हाथी करि नाग मतंग
वस्त्र वसन अम्बर पट चीर
                       तोता   सुआ   सुग्गा   कीर

दुग्ध दूध पय अमृत क्षीर
                         गात  कलेवर  देह  शरीर
सिंह  केशरी  शेर  मृगेन्द्र
                        सुरपति मघवा इन्द्र महेन्द्र
अमिय सुधा अमृत मधु सोम
                    नभ  अम्बर  आकाश  व्योम
बन्दर वानर मर्कट कीश
                      भगवन ईश्वर प्रभु जगदीश

दानव राक्षस दैत्य तमीचर
                       कमल कंज पंकज इन्दीवर
असि तलवार खडग करवाल
                     आम्र  आम  सहकार  रसाल
पुत्र तनय सुत बेटा पूत
                    कोयल कोकिल पिक परभूत
बेटी  पुत्री  सुता  आत्मजा
                      यमुना कालिन्दी व भानुजा

रक्त लहू शोणित अरु खून
                        पुष्प सुमन गुल फूल प्रसून
गिरि पर्वत या पहाड़ धराधर
                     वारिद बादल नीरद जलधर
बिजली चपला तड़ित दामिनी
                     रात  निशा  शर्वरी  यामिनी
भौंरा  मधुकर  षटपद  भृंग
                    खग पक्षी द्विज विहग विहंग

मित्र सखा सहचर या मीत
                        घी घृत अमृत या नवनीत
रक्तनयन  हारीत  कबूतर
                    चोर खनक मोषक रजनीचर
अम्बुधि नीरधि या रत्नाकर
                      सूरज  भानु  सूर्य  दिवाकर
सर तालाब सरोवर पुष्कर
                      आशुतोष शिव शम्भू शंकर।।
🙏🌷हरे कृष्णा🌷🙏
[11/4, 21:30] विरेन्द्र पाण्डेय जी: दीवानापन बस शब्द नही,
यह आत्मशक्ति का वाहक है |
कहने में सरल बहुत नीका,
अपनाने में जग घायल है ||

दीवानापन शंकर का था,
जो सती देह के साथ रहे |
बर्षों तक गुजर गये यूँ ही,
ना भूख लगे ना प्यास रहे ||

जिनकी पहचान ध्यान से है,
वे ध्यान ज्ञान  बिसरा बैठे |
बस नेह प्रेम के बन्धन में,
शव सती देह अपना बैठे ||

फिर कहो सरल कैसे यह है,
दीवानापन अलबेला है |
दीवाने जो बनते मन से,
जग देखे उनका मेला है ||

दीवानी थी बृषभानु सुता,
रग-रग में श्याम समाये थे |
मुरली की तान सुनी ज्यौं ही,
हर काम तुरत बिसराये थे ||

बरसानों त्याग सुरति साधी,
वृन्दावन हृदय वास लियो |
उन रसिक रसीली राधे ने,
श्रीश्याम नाम उपवास लियो ||

दीवानी मीरा कान्हा की,
सारे जग को बिषपान कियो |
सत नेह श्याम को तजो नही,
सारे जग ने अपमान कियो ||

दीवना भगतसिंह भी था,
आजादी माँगी भीख नही |
पन प्राण किये न्यौछाबर थे,
पर मानी जग की सीख नही ||

दीवाने थे आजाद नाम,
जंजीर गुलामी की छोड़ी |
हमें रहे ना रहें दुख नही,
पर राष्ट्र रहे दुनियाँ में यही ||

तो सरल न दीवाना होना,
काँटों पर चल कर मिलता है |
अँगारे मिलते भोजन में,
तब दीवानापन मिलता है |
🌷🙏हरे कृष्णा🙏🌷
[11/5, 00:37] ‪+91 98239 16297‬: *सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे दैनिक पंचांग-- ०५ नोव्हेंबर २०१७*
*पंचांगकर्ते*:सिद्धांती ज्योतिषरत्न गणकप्रवर *डॉ.पं.गौरवशास्त्री देशपांडे-०९८२३९१६२९७*

***!!श्री मयूरेश्वर प्रसन्न!!***
☀धर्मशास्त्रसंमत प्राचीन शास्त्रशुद्ध सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग (पुणे) नुसार
दिनांक ०५ नोव्हेंबर २०१७
*राष्ट्रीय भारतीय सौर दिनांक* कार्तिक १४ शके १९३९
पृथ्वीवर अग्निवास ०९:१५ नंतर.
मंगळ मुखात आहुती आहे.
शिववास गौरीसन्निध ०९:१५ पर्यंत नंतर सभेत,काम्य शिवोपासनेसाठी ०९:१५ पर्यंत शुभ नंतर अशुभ दिवस आहे.
*गुरु अस्त चालू आहे*
☀ *सूर्योदय* -०६:३९
☀ *सूर्यास्त* -१७:५७
*शालिवाहन शके* -१९३९
*संवत्सर* -हेमलंबी
*अयन* -दक्षिणायन
*ऋतु* -शरद (सौर)
*मास* -कार्तिक
*पक्ष* -कृष्ण
*तिथी* -प्रतिपदा (०९:१५ पर्यंत)
*वार* -रविवार 
*नक्षत्र* -कृत्तिका
*योग* -वरीयान
*करण* -कौलव (०९:१५ नंतर तैतिल)
*चंद्र रास* -मेष (०८:४५ नंतर वृषभ)
*सूर्य रास* -तुळ
*गुरु रास* -तुळ
*राहु काळ* -१६:३० ते १८:००
*पंचांगकर्ते*:सिद्धांती ज्योतिषरत्न गणकप्रवर *डॉ.पं.गौरवशास्त्री देशपांडे-०९८२३९१६२९७*
*विशेष* -द्वितीया श्राद्ध,मृत्यूयोग ०९:१५ पर्यंत नंतर त्रिपुष्करयोग २५:४२ पर्यंत
या दिवशी पाण्यात केशर घालून स्नान करावे.
आदित्य ह्रदय या स्तोत्राचे पठण करावे.
"-हीं सूर्याय नमः" या मंंत्राचा किमान १०८ जप करावा.
सत्पात्री व्यक्तिस गहू दान करावे.
सूर्यदेवांना दलियाच्या खिरिचा नैवेद्य दाखवावा.
यात्रेसाठी घरातून बाहेर पडताना तूप प्राशन करुन बाहेर पडल्यास प्रवासात ग्रहांची अनुकूलता प्राप्त होईल.
www.facebook.com/DeshpandePanchang
*टीप*-->>सर्व कामांसाठी चांगला दिवस आहे.
*कोणतेही महत्त्वाचे काम करणे झाल्यास ते दुपारी २.०० ते दुपारी ३.०० या वेळेत केल्यास कार्यसिद्धी होईल.*
**या दिवशी कोहळा व तोंडली खावू नये.
**या दिवशी केशरी वस्त्र परिधान करावे.
♦ *लाभदायक वेळा*-->>
लाभ मुहूर्त--  सकाळी ९.३० ते सकाळी ११
अमृत मुहूर्त--  सकाळी ११ ते दुपारी १२.३०
|| *यशस्वी जीवनाचे प्रमुख अंग* ||
|| *सूर्यसिध्दांतीय देशपांडे पंचांग* ||
आपला दिवस सुखाचा जावो,मन प्रसन्न राहो.
(कृपया वरील पंचांग हे पंचांगकर्त्यांच्या नावासहच व अजिबात नाव न बदलता शेअर करावे.या लहानश्या कृतीने तात्त्विक आनंद व नैतिक समाधान मिळते.@copyright)
[11/5, 04:47] ‪+91 83496 55108‬: ।।जय महादेव..जय महादेव।।
कामो हि नरकायैव तस्मात् क्रोधोभिजायते।
क्रोधाद्भवति सम्मोहो मोहाच्च भ्रंशते तपः।।
------
कामक्रोधौ परित्याज्यौ भवद्भिः सुरसत्तमै:।
सर्वैरेव च मन्तव्यं मदवाक्यं नान्यथा क्वचित्।।
-------    प्रणाम           -----------
-------   शुभ अरूणोदय---------
[11/5, 08:04] मार्कण्डेय जी: *🙏🏼🌻🌹आज का सुविचार*                          *पत्रं नैव यदा करीरविटपे दोषो वसन्तस्य किं*
*नोलूकोप्यलोकते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम्।*
*धारा नैव पतन्ति चातकमुखे मेघस्य किं दूषणं यत्पूर्वं विधिना ललाटलिखितं तन्मार्जितुं कःक्षमः।।*            
*भावार्थः -*जब करीर के वृक्ष में पत्ते उत्पन्न नहीं होते, तो इसमें वसन्त ऋतु का क्या दोष है? यदि उल्लू दिन में नहीं देख पाता है तो इसमें सूर्य का क्या दोष  है? और यदि चातक( पपीहे )के मुख में वर्षा की जलधारा नहीं गिरती तो इसमें मेघ(बादलों ) का क्या दोष है? विधाता ने जन्म से पूर्व, जिसके ललाट(भाग्य ) में जो लिख दिया है, उसे भला कौन मिटा सकता है । 🙏🏼🌻🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[11/5, 08:24] मार्कण्डेय जी: *🙏🏼🌻🌹आज का सुविचार*
       *आप्तद्वेषाद्भवेन्मृत्युः परद्वेषाद्धनक्षयः।*
*राजद्वेषाद्भवेन्नाशो ब्रह्मद्वेषात्कुलक्षयः।।*
*भावार्थः-*
इस श्लोक द्वारा आचार्यों ने द्वेष के परिणामों का उल्लेख किया है। वह कहते हैं कि जो मनुष्य संत पुरुषों से द्वेष करता है, वह शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। शत्रुओं से द्वेष होने पर प्राणों के साथ साथ धन की हानि होती है। राजा से द्वेष करने पर प्राण एवं धन सहित मान सम्मान का भी नाश हो जाता है। इसी प्रकार ब्राह्मण से द्वेष करने के परिणामस्वरूप मनुष्य का धन प्राण, सम्मान सब कुछ तो जाता ही है, साथ में ही उसके संपूर्ण कुल का भी नाश हो जाता है। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह सज्जन पुरुषों का संतों एवं ब्राह्मणों का सदैव आशीष प्राप्त करे। उनके आशीर्वाद से मनुष्य के कुल में  धन और वंश में वृद्धि होगी। साथ ही वह दीर्घायु होकर विभिन्न सुखों को जीवन पर्यंत  भोगेगा।🙏🏼🌻🌹आचार्य पं.मार्कण्डेय तिवारी - 9819030199. मुम्बई ।
[11/5, 09:25] ‪+91 94554 91582‬: *'समय अच्छा' हो तो आपकी* *गलती भी मजाक लगती है,*
*और*
*'समय ख़राब' हो तो आपकी* *मजाक भी गलती बन जाती है !!"*
*झुको उतना जितना सही हो.*
*बेवजह झुकना दूसरों के अहम् को बढ़ावा देता है*
   
    🌹🌹 *सुप्रभात*🌹🌹
🌻🌻 *आपका दिन शुभ हो*🌻🌻
[11/5, 09:40] ‪+91 74159 69132‬: (((((  जहाँ हो, वहीँ पर भजन   ))))))

दो बहने चक्की पर गेहूं पीस रही थी पीसते पीसते एक बहन गेहूं के दाने खा भी रही थी।
दूसरी बहन उसको बीच बीच में समझा रही थी।
देख अभी मत खा घर जाकर आराम से बैठ कर चोपड़ कर चूरी बनाकर खायेंगे लेकिन फिर भी दूसरी बहन खा भी रही थी पीस भी रही थी,
कुछ देर बाद गेहूं पीस कर कनस्तर में डाल कर दोनों घर की तरफ चल पड़ी। अचानक रास्ते में कीचड़ में गिरने से सारा आटा खराब हो गया।
कबीर दास जी सब देख रहे थे तो उन्होंने लिखा:-
*आटो पडयो कीच में।*
*कछु न आयो हाथ।*
*पीसत पीसत चाबयो।*
*सो ही निभयो साथ।*
अर्थात समस्याओं से भरे जीवन में
रहते हुवे भगवान् से अपनी प्रीत लगाये रखनी है।
न की अच्छा समय आने का इंतज़ार करना है। भगवान् से की गई यही प्रीत और परतीत अंत समय तक साथ निभायेगी।*
*इसलिये उठते बैठते सोते जागते दुनियाँ के काम करते हुवे हरि से लगन लगाये रखो.
🌴🌱🌹 सुप्रभात 🌹🌱🌴
[11/5, 10:24] पं विजय जी: स्वस्त्यस्तु विश्वस्य खलः प्रसीदताम्.
ध्यायन्तु भूतानि.  शिवं मिथो धिया .
मनश्च.   .  भद्रं.     भजतादधोक्षजे.
आवेशयतां.   नो.   मतिरप्यहैतुकी.
       श्रीमद्भागवत 5/18/9
   हे प्रभो! विश्वका कल्याण हो. दुष्ट दुष्टतासे विनिर्मुक्त होकर प्रमुदित हो. सब एक -दूसरे का हित चिन्तन करें. हमारा मन शुभ मार्ग में प्रवृत हो तथा हमारी बुद्धि निष्कामभाव से स्वप्रकाश सदानन्दस्वरूप भगवान् श्रीहरि में निमग्न हो.
[11/5, 11:49] ओमीश: प्रतिदिन भगवान सूर्य का अर्घ्यदान है बेहद कल्याणकारी!! 🙏🏻🙏🏻

पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में भगवान सूर्य के अर्घ्यदान की विशेष महत्ता बताई गई है। प्रतिदिन प्रात:काल रक्त चंदनादि से युक्त लाल पुष्प, चावल आदि ताम्रमय पात्र (तांबे के पात्र में) जल भरकर प्रसन्न मन से सूर्य मंत्र का जाप करते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर पुष्पांजलि देनी चाहिए।भगवान सूर्य को सुबह दस बजे तक अर्घ्य दे देना सूर्य उपासक के लिए बहुत लाभकारी होता है. इस अर्घ्यदान से भगवान ‍सूर्य प्रसन्न होकर आयु, आरोग्य, धन, धान्य, पुत्र, मित्र, कलत्र, तेज, यश, कान्ति, विद्या, वैभव और  सौभाग्य को प्रदान करते हैं!! आचार्य ✍
[11/5, 16:43] ‪+91 98294 24183‬: 🙏🏻🕉🕉🕉🕉🕉🕉🙏🏻 💐हवन का महत्व 💐
आज में आपको डेंगू जैसी महामारी से जूझ रहे समाज को ब्राहमण अपने तेज ,व स्वविवेक विचार द्वारा कैसे बचाए।
डेंगू के विनाश के लिये मेरे द्वारा बताई हुई हवन सामग्री से हवन करें।
इससे अधिक से अधिक प्रसारित करे जिससे ,आज के गरीब के
पास इसके खर्चा हेतु धन नही है परन्तु एक मात्र हवन जो कहि भी आसानी से किया जाने वाला हवन से उससे अनंतगुना आराम मिलेगा।
💐भारतीय संस्कृति सत्य सनातन धर्म की अमूल जड़💐

💐क्या हो हवन की समिधा 💐
समिधा के रूप में आम की लकड़ी सर्वमान्य है परन्तु अन्य समिधाएँ भी विभिन्न कार्यों हेतु प्रयुक्त होती हैं। सूर्य की समिधा मदार की, चन्द्रमा की पलाश की, मङ्गल की खैर की, बुध की चिड़चिडा की, बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु दूर्वा की और केतु की कुशा की समिधा कही गई है?स्वैतार्क तेज प्रदान करने वाला रोग नाशक होता है
मदार की समिधा रोग को नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।
हव्य (आहुति देने योग्य द्रव्यों) के प्रकार
प्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमण्डल रहते हैं। सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हलकापन, धूल, धुँआ, बर्फ आदि का भरा होना। विभिन्न प्रकार के कीटणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है। इसलिए कई बार वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है। कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।
होम द्रव्य -
होम-द्रव्य अथवा हवन सामग्री वह जल सकने वाला पदार्थ है जिसे यज्ञ (हवन/होम) की अग्नि में मन्त्रों के साथ डाला जाता है।
(१) सुगन्धित : केशर, अगर, तगर, चन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री छड़ीला कपूर कचरी बालछड़ पानड़ी आदि
(२) पुष्टिकारक : घृत, गुग्गुल ,सूखे फल, जौ, तिल, चावल शहद नारियल आदि
(३) मिष्ट - शक्कर, छूहारा, दाख आदि
(४) रोग नाशक -गिलोय, जायफल, सोमवल्ली ब्राह्मी तुलसी अगर तगर तिल इंद्रा जव आमला मालकांगनी हरताल तेजपत्र प्रियंगु केसर सफ़ेद चन्दनआदि

उपरोक्त चारों प्रकार की वस्तुएँ हवन में प्रयोग होनी चाहिए। अन्नों के हवन से मेघ-मालाएँ अधिक अन्न उपजाने वाली वर्षा करती हैं। सुगन्धित द्रव्यों से विचारों शुद्ध होते हैं, मिष्ट पदार्थ स्वास्थ्य को पुष्ट एवं शरीर को आरोग्य प्रदान करते हैं, इसलिए चारों प्रकार के पदार्थों को समान महत्व दिया जाना चाहिए। यदि अन्य वस्तुएँ उपलब्ध न हों, तो जो मिले उसी से अथवा केवल तिल, जौ, चावल से भी काम चल सकता है       हवन सामग्री ः--
तिल, जौं, सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , पानड़ी , लौंग , बड़ी इलायची , गोला , छुहारे नागर मौथा , इन्द्र जौ , कपूर कचरी , आँवला ,गिलोय, जायफल, ब्राह्मी. नाग केसर  बजृदन्ती अर्जुन पीली सरसोँ काली मिर्च जटाशँकरी शतावरी  ब्रह्मदण्डी जावित्री पुनरनवा आदि उपरोक्त हव्य द.व्य से वातावरण शुद्ब हैता हे
ग्रहो की शान्ती के साथ आरोग
य दायक भी है
पँ हरभजन शर्मा कोटा
💐💐💐💐💐💐💐💐
[11/5, 22:18] ‪+91 98490 91808‬: *कितनों ने खरीदा सोना*
*मैने एक 'सुई' खरीद ली*

*सपनों को बुन सकूं*
*उतनी 'डोरी' खरीद ली*

*सबने बदले पुराने कपड़े*
*मैंने अपनी ख्वाहिशे बदल ली*

*'शौक- ए- जिन्दगी' कम करके*
*'सुकून-ए-जिन्दगी' खरीद ली...*
[11/5, 22:46] ‪+1 (562) 965-8399‬: 🌹ॐ श्री राधारमणाय नम: - आज का भगवद चिन्तन ॥
05-11-2017
🌸   सच मानिये आज आदमी अपने दुःख से कम दुःखी और दूसरों के सुख से ज्यादा दुःखी है। आज आदमी इसलिए दुखी नहीं कि उसके पास कम है अपितु इसलिए दुखी है कि दूसरे के पास अधिक है।
हमारे शास्त्रों ने इसे " मत्सर " भाव कहा है। यह मत्सर भी मच्छर की तरह खून चूसता है। मगर दोनों में एक अंतर यह है कि मच्छर दूसरे का खून चूसता है मत्सर स्वयं का। दूसरों को देखकर जीना खुद को दुखाकर जीने जैसा है।
🌸    किसी क़ी खुशी को देखकर जलना उस मशाल की तरह जलना है, जिसे दूसरों को खाक करने से पहले स्वयं को राख़ करना पड़ता है। आपके पास जो है वह निसंदेह पर्याप्त है।
जो है उसके लिए परमात्मा को धन्यवाद दो, जो नहीं मिला उसके लिए किसी को दोष देने की वजाय अपनी योग्यता को बढाओ। आपके लिए शर्त मात्र इतनी कि दूसरे के पास कितना है यह देखना बंद किया जाए।
जिन्दगी होश में जिओ, होड़ में नहीं।
🌸   अमेरीका डाउनी से स्वामी चंद़प़काशदासजी का जय श्री स्वामिनारायण !
[11/6, 04:52] ‪+91 83496 55108‬: ।।जय महादेव।।

नित्यदा सर्वभूतानां ब्रह्मादीनां परंतप।
उत्पत्तिप्रलयावेके सूक्ष्मज्ञा:सम्प्रचक्षते ।।
..........
अनाद्यंतवतानेन कालेनेश्वरमूर्तिना।
अवस्था नैव दृश्यन्ते वियति ज्योतिषामिव।।

.....प्रणाम....
-------शुभ अरूणोदय------

1 comment:

  1. ५३८
    • रामचरितमानस .
    निज निंदक बहु नरक भोग करि । जग जनमइ बायस सरीर धरि।
    सर अति निंदक जे अभिमानी। रौरव नरक परहिं ते प्रानी।
    होहिं उलूक संत निंदा रत । मोह निसा प्रिय ग्यान भान गत ।
    सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होई अवतरही ।।
    सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुख पावहिं सब लोगा।
    मोह सकल व्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सला ॥
    काम बात कफ लोभ अपारा । क्रोध पित्त नित छाती जारा ॥
    प्रीति करहिं जौं तीनिठ भाई। उपजइ सन्यपात दुखदाई ॥
    विषय मनोरथ दुर्गम नाना । ते सब सूल नाम को जाना ।
    ममता दादु कंडु इरषाई। हरष बिषाद गरह बहुताई ॥
    पर सुख देखि जरनि सोइ छई। कुष्ट दुष्टता मन कुटिलई ।।
    अहंकार अति दुखद डमरुआ। दंभ कपट मद मान नेहरुआ।
    तत्रा उदरबृद्धि अति भारी। त्रिबिधि ईषना तरुल तिजारी ॥
    जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका । कहँ लगि कहाँ कुरोग अनेका ॥
    दो०-एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि ।
    पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि ।। १२१(क) ॥
    नेम धर्म आचार तप ग्यान जग्य जप दान ।
    भेषज पुनि कोटिन्ह नहिं रोग जाहिं हरिजान ।। १२१(ख) ॥
    एहि बिधि सकल जीव जग रोगी। सोक हरष भय प्रीति बियोगी॥
    मानस रोग कछुक मैं गाए। हहिं सब के लखि बिरलेन्ह पाए।
    जाने ते छीजहिं कछु पापी। नास न पावहिं जन परितापी ॥
    बिषय कुपथ्य पाइ अंकुरे । मुनिह हृदय का नर बापुरे ॥
    (राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संयोगा।
    सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय के आसा ॥
    रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान श्रद्धा मति पूरी ॥

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