Tuesday, May 9, 2017

धर्मार्थ वार्ता

[4/7, 09:55] व्यासup: ॐ त्रयंमकम यजामहे, सुंगधीपुष्टीवर्धनम
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।
महामृत्युंजय मंत्र-संस्कृत में महामृत्युंजय उस व्यक्ति को कहते हैं जो मृत्यु को जीतने वाला हो। ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद में भी इस मंत्र का उल्लेख मिलता हैं। इसके अलावा शिवमहापुराण में इस मंत्र व इसके आशय को विस्तार से बताया गया हैं। रतलाम के अनेक शिवमंदिरों में इस मंत्र का जप निरंतर चलता रहता हैं।
महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरश: अर्थ
त्रयंबकम- त्रि.नेत्रों वाला ;कर्मकारक।
यजामहे- हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं। हमारे श्रद्देय।
सुगंधिम- मीठी महक वाला, सुगंधित।
पुष्टि- एक सुपोषित स्थिति, फलने वाला व्यक्ति। जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम- वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है।
उर्वारुक- ककड़ी।
इवत्र- जैसे, इस तरह।
बंधनात्र- वास्तव में समाप्ति से अधिक लंबी है।
मृत्यु- मृत्यु से
मुक्षिया, हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
मात्र न
अमृतात- अमरता, मोक्ष।
सरल अनुवाद
हम त्रि-नेत्रीय वास्तविकता का चिंतन करते हैं। जो जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित करता है और वृद्धि करता है। ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग हम जीवन व मृत्यु के बंधन से मुक्त हो।
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ !!
[5/2, 16:36] ‪+91 98896 25094‬: *मेरेगिरधारी...*
🙏🏻🥀🙏🏻🥀🙏🏻🥀🙏🏻
*आसरा इस जहाँ का मिले ना मिले*
*मुझको तेरा सहारा सदा चाहिए*

👆आदरणीय मंगलेश्वर भैया जी  हमसे गाने के लिये कहे पर समयाभाव के चलते उस वक्त मैं गा न सका सो आज उस भजन को भेजा है ।
आप एक बार सुनने की कृपा करें ।
[5/2, 16:48] ‪+91 89616 84846‬: 🌹श्रील प्रभुपाद जी से एक भक्त ने पुछा:-

🌷"हम लोग अपने दोनों हाथो को ऊपर उठा कर कीर्तन, सत्संग क्यों करते हैं जबकि ये तो बिना हाथ ऊपर करे भी किया जा सकता हैं?:

🌼श्रील प्रभुपाद बताते है की:-
"बच्चा जब छोटा होता हैं, तब वो अपनी माँ को देख कर अपने दोनों हाथो को ऊपर उठा कर मचलने लगता हैं, तड़पने लगता हैं।

🎋वो ये कहना चाहता हैं की मुझे अपनी गोद में उठा कर अपने सीने से लगा लो।

🍁ठीक वैसे हैं जब एक भक्त हाथ उठा कर सत्संग करता हैं तो वो ये कहना चाहता हैं की:-
🍂🍃"हे गोविन्द" ,
🍂🍃"हे करुणानिधान" ,
🍂🍃"हे गोपाल" ,
🍂🍃"हे मेरे नाथ"
आप मेरा हाथ पकड़ लो और मुझे इस भवसागर से, इस दुखरूपी भौतिक संसार से बाहर निकाल कर अपने चरणों से लगा लो।

🌾मेरे जीवन की नैय्या को पार लगा दो प्रभु, मुझे इन 84 लाख योनियों के चक्कर से मुक्ति दीजिये
🍂🍃"गोविन्द"....

एक बार सभी दोनों हाथ उठा के बोले

📢🙌☺हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे,
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे...🙌🌺🙌🌸🙌                                      जय सोनी उदयपुर राजः
[5/2, 17:04] घनश्याम जी पं: 🌹❤मन की बातें,आपके साथ 🌹❤ -- दृढ़ निश्चयी ब्यक्ति के कार्यो में कोई भी बाधा कार्य को पूरा होने में बाधक नही बन सकता है । -- पर साधक दृढ़ निश्चयी हो तब । यदि साधक दृढ निश्चय कर लिया कि चाहे लोग मेरा स्तुति करे या गाली दे,या निन्दा, आपमान हो,या विमार हो जाऊ,सत्य पथ पर चलने से मौत ही क्यो न हो जाय मैं नही रुकूँगा चलते रहूंगा,चाहे कोई भी आफत क्यो न आये तो साधक को सफलता से कोई नही रोक सकता। और अन्त में अपने ध्येय प्राप्त कर ही लेता है। जैसे ध्रुव आदि । बन्धुओ दुनियां में तीन तरह के लोग रहते है। ये मेरा मानना है । --- (1) द्वेष रखने वाले लोग , (2)स्नेह करने वाले लोग, (3) उदासीन लोग जो न स्नेह न द्वेष करने वाले । ये तीनो प्रकार के लोग दृढ़ निश्चयी साधक को सहायता ही करते है। हानि नही पहुचा पाते । जैसे ध्रुव द्वेष रखने वाली विमाता ने द्वेष किया पर फल ?भजन के लिए प्रेरित कर दी । स्नेह मयी माता ने भी भगवत भजन का समर्थन कर दिया। माता का स्नेह ध्रुव को नही रोक पाया । उल्टे मद्त की । उदासीन श्री देवर्षि नारदजी आशीर्वाद प्रदानकर मार्ग ही बता दिया । भाव ---परमकर्तव्य पथ पर चलने वाले दृढ़ निश्चयी ब्यक्ति को किसी भी प्रकार की बाधा कोई नुकसान नही पहुचा पाता । यदि आप परमकर्तब्य पथ चल रहे हो और रास्ते मे यदि अपमान,गाली,सुख, दुख,कस्ट,दरिद्रता,आलोचना,आदि मिले तो समझ लो हम सही रास्ता पर चल रहे है।तब जीव को और भी दुगने उत्साह से चलना चाहिए । क्योंकि निश्चय की दृढ़ता सफलता की कुंजी है । समस्त गुरुजन,भूदेव,एवम विद्वत समाज को नमन बन्दन। कोई गलती होगी तो क्षमा के साथ ही मार्गदर्शन अवश्य करे । 🙏
[5/2, 20:20] ‪+91 94501 23732‬: अन्नाद् भवन्ति भूतानि अद्यत इत्यन्नं मतम्।
अपरिपक्वं न हितकरं नैव स्वास्थ्यकरञ्च तत्।।
पक्वं फलं विलोक्यैव मदमत्ता कोकिला भवति।
तथा विम्बाधरं प्राप्य मदमत्तो युवको भवति।।
पक्वे फले च माधुर्यं पाकभावे प्रसन्नता।
अपरिपक्वे स्वभावे च सौमनस्यं न जायते।।
  परिपक्वं भोजनं मात्रा गुरुणा ज्ञानं प्रदत्तञ्च।
    मनुष्येभ्यो द्वे हितकरे स्तः वै  नास्त्यत्रविशंकनम्।। 

                          डा गदाधर त्रिपाठी
[5/3, 07:26] पं ऊषा जी: *छिन्नोपि रोहति तरुः*
*क्षीणोप्युपचीयते पुनश्चन्द्रः।*
*इति विमृशन्त: सन्तः*
*सन्तप्यन्ते न लोकेषु।।*

कटा हुआ भी वृक्ष पुनः उग जाता है तथा कृष्णपक्ष में क्षीण हुआ चन्द्रमा शुक्लपक्ष में बढ़ जाता है। यह विचार करते हुए सज्जन दुःख से पीड़ित होने पर अथवा विपत्तिग्रस्त होने पर दुःखी नहीं होते हैं।

🌹🍃🌹 *अमरवाणी विजयतेतराम्* 🌹🍃🌹
--गणान्तरात्

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