Saturday, December 5, 2015

|| सत्संग ||


     


""  सत्संग  ""

हम जैसा चाहते हैं, वैसे ही भगवान् हमें मिलते हैं । दो भक्त थे । एक भगवान् श्रीरामका भक्त था, दूसरा भगवान् श्रीकृष्णका । दोनों अपने-अपने भगवान् (इष्टदेव)-को श्रेष्ठ बतलाते थे । एक बार वे जंगलमें गये । वहाँ दोनों भक्त अपने-अपने भगवान्‌को पुकारने लगे । उनका भाव यह था कि दोनोंमेंसे जो भगवान् शीघ्र आ जायँ वही श्रेष्ठ हैं । भगवान् श्रीकृष्ण शीघ्र प्रकट हो गये । इससे उनके भक्तने उन्हें श्रेष्ठ बतला दिया । थोड़ी देरमें भगवान् श्रीराम भी प्रकट हो गये इसपर उनके भक्तने कहा कि आपने मुझे हरा दिया; भगवान् श्रीकृष्ण तो पहले आ गये, पर आप देरसे आये, जिससे मेरा अपमान हो गया ! भगवान् श्रीरामने अपने भक्तसे पूछा‒‘तूने मुझे किस रूपमें याद किया था ?’ भक्त बोला‒‘राजाधिराजके रूपमें ।’ तब भगवान् श्रीराम बोले‒‘बिना सवारीके राजाधिराज कैसे आ जायँगे । पहले सवारी तैयार होगी, तभी तो वे आयँगे !’ कृष्ण-भक्तसे पूछा गया तो उसने कहा‒‘मैंने तो अपने भगवान्‌को गाय चरानेवालेके रूपमें याद किया था कि वे यहीं जंगलमें गाय चराते होंगे ।’ इसीलिये वे पुकारते ही तुरन्त प्रकट हो गये ।
दुःशासनके द्वारा भरी सभामें चीर खींचे जानेके कारण द्रौपदीने ‘द्वारकावासिन् कृष्ण’ कहकर भगवान्‌को पुकारा, तो भगवान्‌के आनेमें थोड़ी देर लगी । इसपर भगवान्‌ने द्रौपदीसे कहा कि तूने मुझे ‘द्वारकावासिन्’ (द्वारकामें रहनेवाले) कहकर पुकारा, इसलिये मुझे द्वारका जाकर फिर वहाँसे आना पड़ा । यदि तू कहती कि यहींसे आ जाओ तो मैं यहींसे प्रकट हो जाता ।
भगवान् सब जगह हैं । जहाँ हम हैं, वहीं भगवान् भी हैं । भक्त जहाँसे भगवान्‌को बुलाता है, वहींसे भगवान् आते हैं । भक्तकी भावनाके अनुसार ही भगवान् प्रकट होते हैं‒--
जाके हृदयँ भगति जसि प्रीती ।
प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती ।।
""हरि व्यापक सर्वत्र समाना ।
प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ॥
देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं ।
कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाही ।।"






पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830

No comments:

Post a Comment