Wednesday, December 30, 2015

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जयति श्रीराधिके सकलसुखसाधिके / गदाधर भट्ट

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जयति श्रीराधिके सकलसुखसाधिके 
तरुनिमनि नित्य नवतन किसोरी।
कृष्णतनु लीन मन रुपकी चातकी 
कृष्णमुख हिमकिरिनकी चकोरी॥१॥

कृष्णदृग भृंग बिस्त्रामहित पद्मिनी 
कृष्णदृग मृगज बंधन सुडोरी।
कृष्ण-अनुराग मकरंदकी मधुकरी 
कृष्ण-गुन-गान रास-सिंधु बोरी॥२॥

बिमुख परचित्त ते चित्त जाको सदा 
करत निज नाहकी चित्त चोरी।
प्रकृति यह गदाधर कहत कैसे बनै 
अमित महिमा इतै बुद्धि थोरी॥३॥

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