Wednesday, December 30, 2015

मन्यते वै पापकारी न कश्चित् पश्यतीति माम् ।
तांश्च   देवा   प्रपश्यन्ति   तथा   ह्यन्तरपूरुष ।।
        अर्थात् पाप करने वाला व्यक्ति यह समझता है कि कोई मुझे नहीं देख रहा है, किंतु देवता एवं उसकी अन्तरात्मा दोनों ही उसे देखरहे होते हैं।
पं. जगदीश प्रसाद द्विवेदी(धर्मार्थ. ):
        ज्ञान का अभिमान होता है पर अभिमान का ज्ञान नहीं होता. पात्र और कुपात्र में इतना ही फर्क है – गाय घास खाकर भी दूध देती है और सांप दूध पीकर भी जहर देता है.

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