Wednesday, December 30, 2015

हरिः ॐ तत्सत्! शुभमध्याह्नम्।
सर्वेभ्यो भक्तेभ्यो देवभाषारसरसिकेभ्यश्च।🙏
🌺सच्चर्चा🌺
💥आज मानव अशान्त क्यों है?
💥अध्यात्मचर्चा धर्मचर्चा और सच्चर्चा में उसकी वाह्यप्रकृति केवल वाणी-विलासता और अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध करने में समुत्साहित है।
💥भगवद्भजन की प्रियता से परे भौतिकता में रमण कर रहा व्यक्ति अध्यात्ममकरन्द का रसास्वादन करना चाहता है।
कपोल-कल्पित विचारधाराओं की विविधता में उलझ कर दिशा विहीन होकर स्वयं तो अन्धकूप में गिर रहा है और साथ में औरों को भी गिरा रहा है।
💥"वस्तु कहीं ढूढ़ें कहीं, केहि विधि आवै हाथ।
कहत कबीर तब पाइए, जब भेदी लीन्हा साथ॥ "
🙏पूज्यपाद भगवान् शङ्कराचार्यमहाभाग कहते हैं-
" शब्दजालं महारण्यं चित्तभ्रमणकारणम्"
💥यह शब्दों का जाल तो घनघोर जंगल की तरह हमारे चित्त को भटका देता है।

" राम अतर्क्य बुद्धि मन बानी।
मत हमार अस सुनहिं सयानी॥

भगवद्भक्तिरसानुभूति में श्रद्धा-विश्वास परमावश्यक है।

"श्रद्धा-विश्वासरूपिणौ"

अाज कल सत्संग से विमुख भौतिकता में रमें तथाकथित  लोग घर बैठे-बैठे, बडी-बड़ी दार्शनिक पुस्तकों को पढ़कर, ज्ञानसम्राट की उपाधि से स्वयं को विभूषित कर, सनातन-धर्मशास्त्रों अौर उसके मान-बिन्दुअों का शास्त्रप्रतिकूल भौतिकबुद्धि के अवलम्बन से खण्डन-मण्डन करके समाज में वाह-वाही लूटते हैं।
ऐसे मूढ यह नहीं जानते, जिस विशाल वट वृक्ष की शीतल छाया में बैठे हैं, वे उसी की जड़ को काटने का असफल प्रयास कर रहे हैं।
🙏निवेदन - हम सभी भगवत्प्रेमी साधुसेवी सनातनी और आध्यात्मिक लोग, ऐसे लोगों से सावधान और सतर्क रहते हुए, अपने धर्म और धर्मशास्त्र के मान-बिन्दुअों के प्रति निरन्तर जागरूक रहें।

🌺सत्य सनातन धर्म की जय🌺

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