Saturday, December 5, 2015

|| स्वामी हरिदास ||

     

स्वामी हरिदास
बादशाह अकबर ने तानसेन से पूछा >>,क्या तुमसे भी अच्छा गाने वाला कोई है?
तानसेन बोला> जहांपनाह,मैं क्या हूं,जो मेरे गुरु स्वामी हरिदासजी हैं?
 
उनको बुलवाओ,बादशाह ने कहा।
जहांपनाह,वे तो अकिंचन हैं,उन्हें दरबार से क्या लेना?
बाद्शाह तडप उठा >>>>ठीक है,तो हम ही निधिवन चलेंगे।
तानसेन बोला >बादशाह बन कर चलेंगे तो संगीत सुनने को नहीं मिलेगा। >>वे तो अपने आराध्य के रस में डूबे हैं!
बादशाह आम आदमी बन कर तानसेन के पीछे-पीछे निधिवन पंहुचा।
जब गायन सुन कर लौटा तो बोला> तानसेन,तुम ऐसा क्यों नहीं गा सकते?
तानसेन ने कहा,मालिक! मैं आपको खुश करने को गाता हूं,मेरे मन में लालच है,वे क्षुद्र वासनाओं से ऊपर जा चुके हैं,वे बादशाहों के बादशाह के गायक हैं।
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  ध्यान रहे कि    बांकेबिहारी  स्वामी हरिदास के उपास्य-विग्रह या  ठाकुर हैं ,
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स्वामी हरिदास के संबंध में नाभादासजी ने लिखा था कि >> नृपति द्वार ठाडे रहें दरसन आसा जासु की !
और
देह विदेह भये जीवत ही बिसरे बिस्व विलास ! वे देहभाव से ऊपर उठ चुके थे और भावदेह उनको प्राप्त हो चुकी थी ।
     हरी सुमिरन संघ से साभार संकलित 
      अनुरागी जी     


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

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