Wednesday, December 30, 2015

मित्र करइ सत रिपु कै करनी, ता कहँ बिबुधनदी बैतरणी।
सब जग ताहि अनलहु ते ताता, जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता।।

(अरण्यकाण्ड - श्रीरामचरितमानस)

भावार्थ:-गोस्वामी जी कहते है जो रघुनाथ जी से विमुख होता है उसके मित्र सैकड़ो शत्रुओ सी करनी करने लगते है, देवनदी गंगा जी उसके लिए वैतरणी (यमपुरी को नदी) हो जाती हैं। और हे भाई सुनिए ! सारा जगत उसके लिए अग्नि से भी अधिक गरम जलाने वाला हो जाता है जो भी रघुनाथ जी से विमुख हो जाता है।

श्रीराम जय राम जय जय राम

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