Monday, December 21, 2015

|| ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां ||


     
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां ..
किलकि किलकि उठत धाय
गिरत भूमि लटपटाय .
धाय मात गोद लेत
दशरथ की रनियां ..
अंचल रज अंग झारि
विविध भांति सो दुलारि .
तन मन धन वारि वारि
कहत मृदु बचनियां ..
विद्रुम से अरुण अधर
बोलत मुख मधुर मधुर .
सुभग नासिका में चारु
लटकत लटकनियां ..
तुलसीदास अति आनंद
देख के मुखारविंद .
रघुवर छबि के समान
रघुवर छबि बनियां .


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  .

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