Monday, December 21, 2015

|| लघुशंकाऽर्थ पवित्रकरण प्रयोग: ||

     

लघुशंकाऽर्थ पवित्रकरण प्रयोग:
क्रमतः१. तीन बार कुहनी तक हाथ, २.घुटनों तक पाँव, ३.मुँह धोएँ। चार गण्डुष(कुल्ली) करके शेष क्रिया हेतु ताम्र-पात्र में जल संग्रहण करें और इस प्रकार आगे कृत्य करें —
गुरुमंत्र/इष्टमंत्र जप करते हुए जल लें और जपते हुए बीच हाथ पर रख कर नीचे बाँया हाथ लगाकर पाँच बार जप और तीन नमः पूर्वक
    ॐ अस्मिन् कलशस्थ जले मंत्रदेवता आवाहितो, सुप्रतिष्ठितो च भवतु। सर्वोपचारार्थं नमस्कारं समर्पयामि ॐ....नमः(३बार) नमस्कारं प्रतिगृह्यताम्। कूपजलाऽभावे यथोपलब्धे जले सन्निधिपूर्वकं प्रोक्षणाचमनाभ्यां पुनातु माम्।
१.अथैतत्पवित्रकरणार्थं अनुज्ञां दातुमर्हसि
ॐ भूर्भुवःस्वः (मन्त्र)अनुज्ञां प्रददातु माम्। (३बार)
२.प्रोक्षण--
   ॐ भूर्भुवःस्वः (मन्त्र) पुनातु माम्। (३बार)
३.आचमन--
   ॐभूर्भुवःस्वः (मन्त्र) पुनातु मदन्तःकरणम्। (३बार)
४.क्षमापन--
   ॐ भूर्भुवःस्वः (मन्त्र) इष्टमन्त्रस्योच्चारणमात्रेण सर्वांगान् मम पुनातु। तत्रैव कूपजलाऽभावे यथोपलब्धेन जलेन मयाकृतेऽस्मिन् संक्षिप्त सूक्ष्म पवित्रकरण प्रयोगे कृतोप्रभूतो वा मया ज्ञातेनाऽज्ञातेन वा सर्वान् दोषानपराधान् व्यतिक्रमांश्च क्षमस्व परमेश्वर।
   ॐ भूर्भुवःस्वः (मन्त्र)- अज्ञानत्वेन मया कृतं व्यतिक्रमार्थं क्षमस्व माम्।
   ॐ     "     "       "   - मम अपूर्ण ज्ञानार्थं क्षमस्व माम्।
   ॐ     "     "       "   -मम अवशिष्ट अज्ञानार्थं क्षमस्व माम्।
   ॐ     "     "       "   - सर्वोपरि पुनातु माम्। इति नमामि त्वां, नमस्करोमि त्वां च प्रणमामि त्वां परमेश्वर। कृतज्ञोऽस्मि।
अब अंगूठा-अनामिका से मन्त्रपूर्वक कर्ण मूल स्पर्श करें। फिर मन्त्र पूर्वक जनेऊ उतारें, 'इति पवित्रकरणम्'- कह कर तीन पग पीछे हट कर गंतव्य को जावें।
    जहाँ जल या समय की सुविधा न हो, वहाँ अंगूठा-अनामिका से दक्षिण-कर्ण स्पर्श किये हुए चार बार मन्त्र जपें, चार बार मन्त्रपूर्वक 'क्षमस्वमाम्' और 'पुनातुमाम्'कहें तथा ॐ....स्वावासे प्रत्यावर्त्तनोपराऽन्ते पूर्ण पवित्रकरणं करिष्यामि तावत् पुनातु माम् परमेश्वर। प्रणमामि त्वाम्।। — कहकर जनेऊ उतार सकते हैं।
।।इति प्रवासे स्थूल पवित्रकरण प्रयोगः।।


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830 

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