Wednesday, December 30, 2015

हरिः ॐ तत्सत्!  सर्वेभ्यो भक्तेभ्यो देवभाषारसरसिकेभ्यश्च नमो नमः। 🌺🙏🌺

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
ममवर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥
(श्रीमद्भवद्गीता-४/११)

श्रीभगवान् कहते हैं, इस संसार में जो भक्तजन जिस भी भावना से मेरा भजन करते हैं, उनकी उसी भावना के अनुरूप उनको मैं फल देता हूँ। सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।

"यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी "

जिसकी जैसी भावना उसको वैसी ही सिद्ध प्राप्त होती है।

अपि च
"भावग्राही जनार्दनः"

श्रीहरि केवल भक्तों के भाव को ही महत्त्व देते हैं।

🙏सत्य सनातन धर्म की जय हो🙏

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