Monday, December 21, 2015

|| मन और आत्मा की आधुनिक संकल्पना ||


     
मन और आत्मा की आधुनिक संकल्पना
आत्मानं रथिनं  विद्धि शरीरं रथमेव तु।
बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च।।
इन्द्रियाणि हयानाहुर्विषयांस्तेषु गोचरान्।
आत्मेन्द्रियमनोयुक्तं भोक्तेत्याहुर्मनीषिणः।। (कठोप० १/३/३-४)
      "तू आत्मा को रथी जान, शरीर को रथ समझ, बुद्धि को सारथी जान और मन को लगाम समझ।३। विवेकी पुरुष इन्द्रियों को घोड़े बतलाते हैं तथा उनके घोड़ेरूप से कल्पना किये जाने पर विषयों को उनके मार्ग बतलाते हैं और शरीर, इन्द्रिय एवं मन से युक्त आत्मा को भोक्ता  कहते हैं।४।
        कठोपनिषद के उपरोक्त उद्धरण के अनुसार, भौतिक जगत वह मार्ग है जिस पर शरीररुपी रथ इंद्रियरूपी घोड़ों से खिंचता हुआ चलता है। बुद्धि इसका सारथी है और आत्मा रथी है। चूँकि बुद्धि मन को आच्छादित किये रहती है, अतः मन को ही सारथी समझना अनुचित नहीं होगा। इसप्रकार, मन आत्मा का वाहक कहलाता है।अगर यह मन लगाम को सख्ती और बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से न पकड़ रखे, तो इन्द्रियों के ये घोड़े बेकाबू होकर दिशा विहीन हो जाते हैं। फलःस्वरूप हमारा रथ लक्ष्य अथवा गंतव्य तक नहीं पहुँचता। कठोपनिषद के अनुसार, जन्म- मृत्यु के चक्र में बारम्बार फँसना इसी कारण से होता है। लेकिन, अगर मनुष्य बुद्धिमान और विवेकी है तथा मन का नियंत्रण करना जानता है तब वह किसी मंजे हुए घुड़सवार की भांति चंचल इन्द्रियों को भी परम आज्ञाकारी बना लेता है. हमारे मस्तिष्क या दिमाग की पेचीदा बनावट और कार्यप्रणाली इस तथ्य का समर्थन करती प्रतीत होती है. इस बात में किसी को संदेह नहीं कि आदमी का मस्तिष्क सभी जीवधारियों में अव्वल है और दिमाग के जीव विकासीय इतिहास में मनुष्य ने सभी जीवों को पीछे छोड़ दिया है. मोटे रूप में देखें तो आदमी के मस्तिष्क के कुछ हिस्से ऐसे हैं जो उसे विरासत में रीढ़ वाले पूर्वजों से प्राप्त हुए हैं। हिप्पोकैम्पस आदि से बना लिम्बिक तंत्र दिमाग का वह पुराना हिस्सा है जो खाना खाने , भावनात्मक व्यवहार , इच्छाओं , चेष्टाओं , प्रेरणाओं, जनन प्रवृत्ति राग -द्वेष आदि से सम्बंधित होता हैं। यह सभी कार्य किसी भी विकसित जीव की स्वाभाविक जंतु प्रकृति हैं , जंतु के जीवित रहने के लिए आवश्यक भी है। लेकिन मस्तिष्क का एक भाग ऐसा है जो विशेषरूप से स्तनधारियों में ही अधिक विकसित हुआ है। आदमी में तो इस नए भाग " नियोकोर्टेक्स (Neo-cortex)" का गजब का व अप्रत्याशित विकास हुआ है. इस भाग ने ही आदमी को इंसान बनाया है. हमारी इन्द्रियां पर्यावरण की घटनाओं से दिमाग को अवगत कराती हैं . मस्तिष्क का पुराना भाग अपनी जंतु प्रकृति के अनुसार उन पर क्रिया करना चाहता है लेकिन मनुष्य का यह खास " नियोकार्टेक्स " हमारी हर क्रिया को इंसानी चोला पहनाने का भरसक प्रयत्न करता है. मस्तिष्क का पुरातन भाग बड़ा ही शक्तिशाली होता है तथा किसी भी इच्छा के उपजने पर यह अपनी स्वाभाविक जंतु प्रकृति के अनुसार उस हेतु कार्य करने का खूब प्रयास करता है . इसे दबा पाना आसान नहीं होता. लेकिन यह इच्छा सही है या गलत इसका फैसला नियोकार्टेक्स में स्तिथ उच्च तंत्रिकीय केंद्र करते हैं. वह पुरजोर कोशिश करता है कि सही ही किया जाय. लेकिन आदिम लिम्बिक तंत्र के जोर और इंसानी नियोकार्टेक्स की इस जद्दोजहद में कभी आदिम तंत्र की जंतु प्रवृति जीतती है तो कभी नियोकार्टेक्स का इंसानी जज्बा . यूँ भी कहा जा सकता है कि हमारा लिम्बिक तंत्र बेलगाम घोड़े की तरह दौड़ना चाहता है और नियोकार्टेक्स उस पर लगाम लगाने का काम करता है. कठोपनिषद में यम द्वारा बताये मन से नियोकार्टेक्स की तुलना करना गलत नहीं जान पड़ता. नियोकार्टेक्स को प्रारंभ से ही संस्कार देकर उसे हमारी जंतु प्रवृतियों के नियंत्रण का प्रशिक्षण दिया जाय तो अनेक जटिल परिस्थितियों में भी इंसानियत की ही जीत होती है. यही सब हमारी शिक्षा के मूल में है जो आज कहीं विस्मृत हो गया है.


पं मंगलेश्वर त्रिपाठी
से.1वाशी नवी मुम्बई
8828347830  

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